दो शब्द
महामारी आए हुए एक वर्ष से अधिक समय बीत चुका है इसमें से बहुत लोग संक्रमित होकर स्वस्थ भी हो गए हैं उनमें से अनेकों संक्रमितों की दुर्भाग्य पूर्ण मृत्यु हो गई है |महामारी का स्वरूप इतना अधिक भयावह था कि सभी संक्रमितों की जाँच करने में ही सरकारी संसाधन अत्यंत बौने सिद्ध हुए थे |अस्पतालों की संख्या कम पड़ गई चिकित्सकों की संख्या कम पड़ गई संक्रमितों को एडमिट करने के लिए वस्त्रों की संख्या कम पड़ गई औषधियों का संग्रह कम पड़ गया उपयोगी माने जाने वाले इंजेक्शन कम पड़ गए आक्सीजन कम पड़ गई | अस्पतालों में पड़े कातर रोगी कराह रहे थे चिकित्सक लाचार थे | चिकित्सकों को महामारी के लक्षण नहीं पता थे औषधियाँ नहीं पता थीं | संक्रमितों में दिखाई पड़ने वाले जिन लक्षणों को कोरोना के लक्षण मानकर आज चिकित्सा प्रारंभ की जा रही थी कल कोई दूसरे परसों तीसरे आदि लक्षण दिखाई पड़ने लगते थे | इसलिए जो चिकित्सा पहले दिन प्रारंभ की जाती थी दूसरे ही दिन बदलनी पड़ जाती थी तीसरे दिन कुछ और सोचना पड़ता था |
ऐसी परिस्थिति में चिकित्सा करना संभव ही नहीं था |चिकित्सालयों भर्ती रोगी भी अपने अपने भाग्य के भरोसे ही जीवित घर लौटे हैं उन्हें स्वस्थ करने में चिकित्सा की कोई भूमिका बन ही नहीं पा रही थी |चिकित्सा के नाम पर जो कुछ प्रयास किए भी जा रहे थे संक्रमितों पर उसका प्रभाव अच्छा या बुरा कैसा पड़ेगा यह किसी को पता नहीं था | जिस पर अच्छा पड़ता था वह स्वस्थ होकर घर चला जाता था जिस पर बुरा पड़ता था वो रिसर्च का बिषय बन जाता था यही स्थिति छोटे बड़े प्रायः सभी देशों की थी | बड़े बड़े विकसित देश भी चिकित्सा की दृष्टि से पहली बार इतने बेबश लाचार असहाय दिख रहे थे | चिकित्सावैज्ञानिक महामारी से बिल्कुल अनभिज्ञ थे सरकारें चिकित्सा वैज्ञानिकों की ओर देख रहीं थीं बचाव की दृष्टि से वे जो जो उपाय बताते सरकारें जनता से उन्हें तुरंत पालन करवाने लग जातीं जनता भी उन प्रतिबंधों का पालन करने लगती उसे पता था कि सरकार हमारी भलाई के लिए ऐसा करने को कह रही है | सरकार को भी विश्वास था कि चिकित्सावैज्ञानिक जनता की भलाई के लिए ही कह रहे हैं क्योंकि सरकारों का उद्देश्य जनता को महामारी से मुक्ति दिलाना था इसके लिए वे संपूर्ण रूप से चिकित्सावैज्ञानिकों के आधीन थीं यह उनकी मजबूरी भी थी |
कुलमिलाकर चिकित्सक सरकारें और जनता जिन चिकित्सा वैज्ञानिकों के आधीन थीं उनके अपने चिकित्सा वैज्ञानिक अनुसंधान महामारी को समझने में कितने सफल हो रहे थे यह समझना भी बहुत महत्वपूर्ण है | चिकित्सा वैज्ञानिकों की अपनी मज़बूरी है उन्होंने विज्ञान के नाम पर जिस विज्ञान को पढ़ा है रिसर्च भी वे उसी के आधार पर करेंगे स्वाभाविक ही है |विज्ञान के नाम पर उन्हें जो बिषय पढ़ाया गया है उस विज्ञान के द्वारा प्रकृति के स्वभाव को समझ पाना संभव ही नहीं है | यही कारण है कि भूकंप आँधी तूफ़ान सूखा वर्षा बाढ़ आदि सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का वास्तविक कारण आज तक खोजा नहीं जा सका है|उपग्रहों रडारों के द्वारा की जाने वाली बादलों या आँधी जासूसी में विज्ञान का कोई उपयोग ही नहीं है | कुलमिलाकर सभी प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में कोई न कोई ऐसी कहानी गढ़ ली गई है जिसे किसी ने देखा नहीं सुना नहीं एवं प्राकृतिक घटनाओं के साथ उनका कोई मेल खाते नहीं देखा जाता है किंतु जब उस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ घटित होने लगती हैं तब वही लावा पर तैरती प्लेटों के टकराने वाली या भूमिगत गैसों के दबाव वाली उसी प्रकार की कुछ कल्पित कहानियाँ सुना दी जाती हैं यही स्थिति मौसम एवं महामारी से संबंधित सभी प्राकृतिक बिषयों के अनुसंधानों की है |
ऐसी परिस्थिति में जो विज्ञान प्रकृति के स्वभाव को समझने में सक्षम नहीं है उससे प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है| प्राकृतिक आपदाएँ हों या प्राकृतिक महामारियाँ इनके बिषय में पूर्वानुमान ही तो सब कुछ है क्योंकि ऐसी प्राकृतिक घटनाएँ हमेंशा अचानक ही घटित होती हैं और इनकी पहली ठोकर ही सबसे तेज लगती है जो नुक्सान होता है वो पहली ठोकर में ही हो जाता है | इसलिए बाकी सारी तैयारियाँ
तो बाद में काम आती हैं वो कितनी काम आ पाएँगी ये तो पहली ठोकर से हुए नुक्सान के आधार पर ही पता लग पाता है |जो जीवित बचेंगे उन्हीं के काम आएँगी वे भी कितने काम आ पाएँगी ये तो परिस्थितियों के अनुसार देखा जाएगा किंतु पहली ठोकर वाली चोट के दुष्प्रभाव को कैसे कम किया जाए वैज्ञानिक अनुसंधान इसे ही लक्ष्य लेकर किए जाने चाहिए जिससे प्राकृतिक आपदाओं या प्राकृतिक महामारियों के बिषय में पूर्वानुमान लगाया जा सके ताकि प्रारंभ में ही अधिक से अधिक सतर्कता बरती जा सके जिससे पहली ठोकर से ही बचाव किया जा सके |
एक बार भूकंप आँधी तूफान बाढ़ महामारी आदि सबको अपनी चपेट में ले ही लेगी तब तो जिसे जो होना होगा हो ही जाएगा | ऐसी परिस्थिति में उन वैज्ञानिक अनुसंधानों से जनता को क्या लाभ पहुँचाया जा सकता है जिन अनुसंधानों को करने वालों पर उन्हें सैलरी आदि समस्त सुख सुविधाएँ उपलब्ध करवाने पर सरकारों को पानी की तरह पैसा बहाना पड़ता है |यह धन सरकारें टैक्स रूप में जिस जनता से वसूल करती हैं वो धन जिन अनुसंधानों पर खर्च किया जाता है उनसे प्राकृतिक आपदाओं या प्राकृतिक महामारियों के कठिन समय में जनता को कितना लाभ पहुँचाया जा पा रहा है | इसकी सरकारों को भी चिंता होनी चाहिए इतनी जवाबदेही तो सरकारों की भी बनती है इस जिम्मेदारी से वे बच नहीं सकती हैं |
महामारी प्रारंभ हुए लगभग डेढ़ वर्ष हो गया जिस बिषय को विज्ञान के रूप में पढ़कर उनके आधार पर अनुसंधान करके वैज्ञानिक लोग महामारी के आने से पहले महामारी आनेउन पर अंकुश लगाने के लिए कोई के बिषय में पूर्वानुमान नहीं बता पाए !आज तक यह नहीं बता पाए महामारी कब प्रारंभ हुई थी और कब समाप्त होगी !कोरोना संक्रमितों की संख्या किस महीने की किस तारीख से कम होगी एवं किस तारीख से बढ़ेगी संक्रमितों की संख्या घटने और बढ़ने का कारण क्या है ?महामारी पैदा कब हुई कहाँ पैदा हुई कैसे हुई इसका विस्तार कितना है प्रसार माध्यम क्या है इसकी अंतरगम्यता कितनी है !मौसम के बदलाव से इसका संबंध कैसा है | तापमान एवं वायुप्रदूषण घटने बढ़ने का असर महामारी पर कैसा पड़ता है |इसके लक्षण क्या हैं इस पर अंकुश कैसे लगेगा और इसकी औषधि कैसे बनाई जा सकती है आदि आवश्यक बातों के बिषय में न कोई पूर्वानुमान पता लगाया जा सका है और न ही कोई आवश्यक जानकारी ही दी जा सकी है | जो जानकारी दी भी जाती रही है वो प्रायः गलत निकलती रही है |
सरकारें ऐसे निरर्थक अनुसंधानों पर जनता का धन क्यों खर्च करती हैं जिनसे प्राकृतिक आपदाओं या महामारियों के संकटकाल में कोई मदद ही न पहुँचाई जा सके | महामारियाँ जब तक चला करती हैं तब तक उन पर अंकुश लगाने के नाम पर संक्रमितों पर किसी न किसी दवा का प्रयोग किया जाता रहता है और जब महामारियाँ समाप्त होने लगती हैं उस समय प्रयोग के तौर पर जो औषधि चलाई जा रही होती है उसे ही महामारी की औषधि मान लिया जाता है ऐसा सभी प्रकार के प्राकृतिक रोगों के बिषय में होते देखा जाता है | इसके बाद जब कोई दूसरी महामारी आती है तब कोई दूसरा नया जुगाड़ सोच लिया जाता है |
वैज्ञानिकों के द्वारा बताया जा रहा है कि महामारी की अभी तीसरी लहर आएगी ?उनसे पूछा गया कब आएगी बोले पता नहीं कहाँ आएगी नहीं पता उसकी संक्रामकता कितनी होगी नहीं पता उसके लिए तैयारियाँ करके क्या रखनी होंगी नहीं पता | जब कुछ नहीं पता तब आपने ये किस आधार पर कह दिया कि तीसरी लहर आएगी ही | पता लगा आधार कोई नहीं है कह केवल इसलिए दिया गया है कि यदि आ जाएगी तब तो वैज्ञानिक अनुसंधान इसलिए सफल मान लिए जाएँगे कि हमने पहले ही कह दिया था और यदि नहीं आएगी तो कोरोना नियमों का कड़ाई से पालन करके एवं औषधीय सतर्कता बरतकर उसे नियंत्रित कर लिया गया है | इस जुगाड़ के आधार पर वैज्ञानिक अनुसंधान चलाए जा रहे हैं |
मार्च अप्रैल 2020 में वैज्ञानिकों के द्वारा कहा गया कि तापमान बढ़ने पर कोरोना संक्रमण समाप्त हो जाएगा किंतु ऐसा नहीं हुआ !इसीप्रकार से अक्टूबर 2020 में भारत सरकार के दो जिम्मेदार लोगों के द्वारा कहा गया कि सर्दी के समय में कोरोना संक्रमण बढ़ जाएगा किंतु ऐसा भी नहीं हुआ |
ऐसी परिस्थिति में जो कहा गया वो हुआ नहीं यह उतनी बड़ी बात नहीं है जितनी बड़ी बात यह है कि ऐसी बातें किस वैज्ञानिक आधार पर कही गई थीं ? क्योंकि विज्ञान के नाम पर जिस विषय को पढ़ाया जा रहा है उस बिषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई प्रक्रिया ही नहीं है |
ऐसी परिस्थिति में कोरोना महामारी से सरकारों को सबक लेना चाहिए और अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए सरकार को ऐसा पूर्वाग्रह पालकर नहीं बैठना चाहिए जिस विषय को मैंने विज्ञान के रूप में जिस बिषय को स्वीकार कर लिया है उसके आधार पर ही वैज्ञानिक अनुसंधान करवाने हैं अन्यथा नहीं |
सरकार को चाहिए कि प्राकृतिक आपदाएँ हों या महामारियाँ उनके बिषय में अनुसंधान करने के लिए जो बिषय उपयुक्त बैठेगा उसी बिषय के आधार पर अनुसंधान किए और करवाए
समयविज्ञान और महामारी
विश्व के बड़े बड़े वैज्ञानिक महामारी के बिषय में अनुसंधान करने में दशकों से लगे हुए हैं |जिसके द्वारा महामारी के बिषय में कुछ भी पता नहीं लगाया जा सका है |
महामारी कब प्रारंभ होगी और कब समाप्त होगी कोरोना संक्रमितों की संख्या किस महीने की किस तारीख से कम होगी एवं किस तारीख से बढ़ेगी आदि आवश्यक बातों का पूर्वानुमान अभी तक नहीं लगाया जा सका है | महामारी पैदा कब हुई कहाँ पैदा हुई कैसे हुई इसका विस्तार कितना है प्रसार माध्यम क्या है इसकी अंतरगम्यता कितनी है !मौसम के बदलाव से इसका संबंध कैसा है | पापमान एवं वायुप्रदूषण घटने बढ़ने से इसका क्या संबंध है |इसके लक्षण क्या हैं इस पर अंकुश कैसे लगेगा और इसकी औषधि कैसे बनाई जा सकती है आदि आवश्यक बातों के बिषय में न कोई पूर्वानुमान पता लगाया जा सका है और न ही कोई आवश्यक जानकारी ही दी जा सकी है | जो जानकारी दी भी जाती रही है वो प्रायः गलत निकलती रही है |
समय विज्ञान पद्धति के द्वारा गणित विज्ञान के माध्यम से मैंने ऐसे सभी प्रश्नों के उत्तर न केवल खोजे हैं अपितु उन्हें 19 मार्च 2020 को ही पीएमओ की मेल पर भेज दिया था जो सब कुछ बाद में सही होता चला गया था |
इसी प्रकार से महामारी का संक्रमण घटने और बढ़ने के बिषय में जो भी पूर्वानुमान आगे से आगे पीएमओ की मेल पर भेजता रहा हूँ बाद में वे सही निकलते रहे हैं | मेरा उद्देश्य था कि यह जानकारी यदि आगे से आगे प्रधानमंत्री जी तक पहुँचती रहेगी तो हो सकता है कि बढ़ते कोरोना संक्रमण पर अंकुश लगाने में कुछ मदद मिले |
समयविज्ञान पद्धति से ऐसे सभी प्रश्नों के उत्तर मैंने खोजकर पीएमओ को भेजी गई मेंलों में लिखे भी हैं | कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ने और घटने बिषय में ही यदि देखें तो 19 मार्च 2020 को भेजे गए मेल में मैंने लिखा है कि कोरोना संक्रमण 6 मई 2020 से समाप्त होने लगेगा |
इसके बाद 16 जून 2020 को पीएमओ को भेजी गई मेल में मैंने लिखा है कि 8 अगस्त 2020 से कोरोना संक्रमण दोबारा बढ़ने लगेगा जो 24 सितंबर 2020 तक क्रमशः बढ़ता चला जाएगा 25 सितंबर 2020 से कम होना प्रारंभ होगा और 16 नवंबर 2020 से कोरोना संक्रमण पूरी तरह से समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा | ऐसा होते देखा भी गया था और कोरोना संक्रमण दिनोंदिन समाप्त होता चला जा रहा था |
इसी बीच सरकार ने वैक्सीन लगाने का निर्णय लिया इस बिषय में भी मैंने 23-12-2020 पीएमओ को मेल भेजा कि वैक्सीन लगने से संक्रमण बढ़ने लगेगा | ऐसा होते भी देखा जा रहा था |
एक ओर वैक्सीनेशन होता जा रहा था तो दूसरी ओर संक्रमण बढ़ता जा रहा था | जिन जिन प्रदेशों ने वैक्सीनेशन में जितनी अधिक सक्रियता दिखाई उन प्रदेशों में उतनी तेजी से बढ़ता चला गया | पहली लहर में कोरोना संक्रमण गाँवों तक नहीं पहुँच पाया था किंतु वैक्सीनेशन की प्रक्रिया जैसे जैसे गाँवों की ओर बढ़ने लगी वैसे वैसे संक्रमण गाँवों में भी पैर पसारता चला जा रहा था |
इसके बाद जब संक्रमण बहुत अधिक बढ़ गया तब मैंने 19 अप्रैल 2021 को पीएमओ को एक पत्र लिखकर सूचित किया कि 20 अप्रैल 2021 से ही कोरोना संक्रमण पर अंकुश लगना प्रारंभ हो जाएगा और 23 अप्रैल 2021 से महामारी पर अंकुश लगा हुआ दिखेगा भी और 2 मई से कोरोना संक्रमण संपूर्ण रूप से समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा |
यह पूर्वानुमान भी सच निकला है और कोरोना महामारी दिनोंदिन समाप्त होती चली जा रही है |
ऐसी परिस्थिति में समय विज्ञान को भी समझा जाना चाहिए था कि यह आखिर है क्या
दो शब्द
कोरोना महामारी की सुनामी आज नहीं तो कुछ समय बाद समाप्त हो ही जाएगी
किंतु कुछ घाव इतने गहरे दे गई है कि वे शायद ही इस जन्म में भरें !जिन
परिवारों का कोई न कोई सदस्य साथ छोड़ गया है उनकी संख्या बहुत बड़ी है इसके
साथ साथ बहुत ऐसे परिवार भी हैं जिनका सबकुछ समाप्त हो गया है | कुल
मिलाकर इस आपदा ने पृथ्वीपरिवार से बहुत कुछ छीन लिया है | महामारी के समय
ऐसे ऐसे दिन देखे गए जिनकी कल्पना भी कभी नहीं की गई थी | हमें अपने
अत्यंत उन्नत चिकित्सा विज्ञान पर इतना बड़ा घमंड था वो इस महामारी ने तोड़
दिया है जिन चिकित्सा वैज्ञानिकों को भगवान् का दूसरा स्वरूप मानने लगे थे
महामारी के समय उन्हें असहाय होते देखा है पहली बार वे बेबश लाचार देखे जा
रहे थे |
हम स्वास्थ्य अपनी संबंधी समस्याओं से निपट लेने का कितना दंभ पाले बैठे
थे कि अपने धन के बलपर हम अच्छी से अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएँ पाकर रोगमुक्त
हो सकते हैं वह धन का घमंड टूट गया | अत्यंत उन्नत चिकित्सा व्यवस्था वाले
विकसित विशेष देश जो चिकित्सा के क्षेत्र में विश्व का विश्वास जीतने में
सफल हुए थे लोग बड़े गर्व से कह दिया करते थे चिकित्सा के लिए अमेरिका चले
जाएँगे !अब यह कह पाना उतना आसान नहीं होगा |
हमारी सक्षम लोकप्रिय सरकारें जिन पर कितना विश्वास करके देशों
प्रदेशों की वागडोर सौंपी गई थी उन पर इतना विश्वास किया गया था कि सभी
प्रकार के संकटों से ये हमारी रक्षा कर लेंगे किंतु इस महामारी ने हमारा वह
घमंड भी तोड़ दिया है |
हमारी सक्षम एवं अत्यंत प्राचीन आयुर्वेद पद्धति से हमें बहुत आशाएँ थीं
कि कोरोना जैसी महामारी से हमारी आयुर्वेद पद्धति हमारी रक्षा कर लेगी
किंतु इस महामारी ने हमारा वह घमंड भी तोड़ दिया कि आयुर्वेद पद्धति के आधार
पर हम अपने को रोगमुक्त बना सकते हैं | इस महामारी में आयुर्वेद के उन
विद्वानों के दर्शन दुर्लभ हो गए जो आयुर्वेद के बिषय में कुछ जानते भी थे
जिससे महामारी के समय भी आयुर्वैदिक औषधियों उपायों आदि के द्वारा जनता के
जीवन की रक्षा की जा सके !
भारतीय वेद पुराणों आदि समस्त संस्कृत वांग्मय में महामारियों का
पूर्वानुमान लगाने की अनेकों विधियाँ बताई गई हैं महामारी से मुक्ति दिलाने
के लिए यज्ञ आदि अनेकों उपायों का वर्णन मिलता है | जिन्हें संस्कृत के
बड़े बड़े विद्वान मनीषी साधक साधू संत आदि करके समाज की रक्षा कर लेंगे ऐसा
विश्वास था किंतु वह भरोसा भी इस महामारी ने तोड़ा है | सबसे अधिक निराशा तो
तब हुई जब कुंभ जैसे मेले का विसर्जन समय से पहले करना पड़ा | जहाँ बड़े बड़े
अखाड़े साधू संत परंपराएँ एवं विविध विषयों के विद्वानों की उपस्थिति से
बहुत बड़ी आशा थी किंतु महामारी ने उस विश्वास को भी तोड़ दिया है |
कुलमिलाकर इस महामारी ने सभी चिकित्सा विधाओं एवं सभी धर्मों तथा उनके
ईश्वरीय विश्वास को खुली चुनौती दी है| महामारी से संक्रमित होने वालों को
स्वस्थ करने की कल्पना तो बहुत बड़ी बात है चिंता तो इस बात के बिषय में की
जानी चाहिए कि गर्व करने लायक हमारा इतना उन्नत विज्ञान महामारी के किसी
छोटे से छोटे अंश को भी समझने में सफल नहीं हो सका है | अमेरिका जैसे
समृद्ध देश जिनकी चिकित्सा सेवाओं की विश्व में दुहाई दी जाती है महामारी
को ठीक ठीक समझपाने में वे भी अभी तक असफल रहे हैं | महामारी को लेकर कुछ
आंकड़े अंदाजे आदि तीर तुक्के लगाए जा रहे हैं जिनमें वैज्ञानिक अनुसंधानों
जैसी तर्कसंगत दृढ़ता नहीं है | जिसे प्रस्तुत करके जनता के विश्वास को जीता
जा सके |
प्रायः सभी प्रकार के प्राकृतिक रोगों या महामारियों के समय में एक बात समान रूप से देखी जाती है कि उस प्रकार के प्राकृतिकरोग
या महामारियाँ जब तक रहती हैं तब तक सभी चिकित्सा पद्धतियों से जुड़े लोगों
के द्वारा महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए कोई न कोई दीर्घकालीन रिसर्च
शुरू कर दी जाती है | उस रिसर्च व्यवस्था में तमाम प्रकार की कल्पनाएँ करनी
पड़ती हैं कुछ किस्से कहानियाँ गढ़ने पड़ते हैं कुछ भय उपजाना पड़ता है कुछ
सांत्वना देनी पड़ती है कुछ औषधियों का उपयोग करना पड़ता है इसी उछलकूद में
समय बीतते चला जाता है महामारी को जितने समय तक रहना होता है रहती है समय के प्रभाव से महामारियाँ जब स्वतः समाप्त होने लगती हैं उस समय सभी चिकित्सा
पद्धतियों से जुड़े लोग अपनी एक एक औषधि पकड़कर बैठ जाते हैं और दावा करने
लगते हैं कि इसी औषधि प्रयोग के द्वारा उन्होंने उस समय चल रहे प्राकृतिकरोग
या महामारी से मुक्ति दिलाने में सफलता प्राप्त की है | श्रेय लूटने की
होड़ में न केवल सभी चिकित्सा पद्धतियों से जुड़े लोग ही सम्मिलित होते हैं
अपितु जादू टोना करने वाले या यंत्र तंत्र ताबीज आदि बनाने वाले लोग भी यह कहते सुने जाते हैं कि उन्होंने बहुत लोगों को अपनी दवाओं या जादू
टोना यंत्र तंत्र ताबीज आदि के माध्यम से महामारी से मुक्ति दिलाई है | हर
किसी के पास अपने अपने दावों के समर्थन में कुछ तर्क तथ्य एवं कुछ उदाहरण
होते हैं जिन्हें दिखा बताकर वे अपने अपने दावों की पुष्टि करने का प्रयास
कर रहे होते हैं |
सरकारें अपने वैज्ञानिकों के दावों पर विश्वास करती हैं लोगों को जिस समय महामारी से मुक्ति मिलती है उस समय वे जिस डॉक्टर वैद्य या जादू टोना यंत्र तंत्र ताबीज आदि करने वाले तांत्रिक आदि की सेवाएँ ले रहे होते हैं वे अपने स्वस्थ होने का श्रेय उन्हें देने लगते हैं |
डेंगू जैसे समयजनित प्राकृतिक रोग को ही देखा जाए तो प्रायः
प्रतिवर्ष अपने समय पर आ जाता है उसके रहने का जबतक समय होता है तब तक रहता
है तब तक किसी का कोई बश नहीं चलता है समय प्रभाव से जब वह स्वतः समाप्त
होने लगता है तब लोग स्वतः स्वस्थ होने लगते हैं | उस समय औषधियों का उपयोग
करने वाले लोग औषधियों को बकड़ी का दूध पीने वाले लोग बकड़ी के दूध को पपीता
के पत्ते का रस लेने वाले लोग उसे अपने स्वस्थ होने का श्रेय देने लगते
हैं | दूसरे वर्ष अपने समय पर पुनः डेंगू प्रारंभ हो जाता है तब वही
औषधियाँ वही बकड़ी के दूध वही पपीते के पत्ते का रस डेंगू रोगियों पर अपना कोई अच्छा प्रभाव नहीं डाल पाता है |
ऐसी परिस्थिति में डेंगू या महामारियों को जीतने का दावा जिन औषधियों के बल पर किया जा रहा होता है उन औषधियों की ऐसे प्राकृतिक रोगों से मुक्ति दिलाने में कोई विशेष भूमिका नहीं होती है |इसके बाद भी भ्रमवश उन प्राकृतिक
रोगों की औषधियों के रूप में उन्हें मान्यता मिल जाती है | डेंगू प्रायः
प्रतिवर्ष आता है इसलिए एक वर्ष में डेंगू पर बिजय प्राप्त करने का श्रेय
जिन औषधियों को दिया जाता है अगला वर्ष आने पर जब दुबारा डेंगू प्रारंभ
होता है उस समय उन औषधियों का परीक्षण हो जाता है और वे निष्प्रभावी सिद्ध
हो जाती हैं |
महामारियाँ प्रतिवर्ष नहीं आती हैं उनमें सैकड़ों वर्षों का अंतराल
होता है ऐसी परिस्थिति में एक महामारी के समाप्त करने का श्रेय जिस औषधि या
वैक्सीन आदि को दिया जाता है वह औषधि या वैक्सीन आदि उस प्रकार के रोगों पर कितनी प्रभावी है इसका परीक्षण तो दूसरी महामारी के समय ही हो पाएगा तब तक के लिए तो उस औषधि या वैक्सीन आदि को महामारी से मुक्ति दिलाने वाली औषधि के रूप में मान्यता मिल ही जाती है |
ऐसे निराधार प्रयोगों पर विश्वास करके संतुष्ट हो जाने से भविष्य में ऐसे
अनुसंधानों की आवश्यकता नहीं समझी जाती है जिसकी कीमत अगली महामारी के समय
जनता को चुकानी पड़ती है |
अबकी बार भी ऐसा न हो इसलिए हमारा उद्देश्य महामारियों के रहस्य को
सुलझाना है ताकि भविष्य में जब कोई महामारी आवे तो झूठे आश्वासनों से जनता
को दिलासा न देनी पड़े अपितु कुछ सच्चाई भी अपने पास हो |
समयविज्ञान और महामारी !
कुल मिलाकर डेंगू हो या महामारियाँ ये समय जनित प्राकृतिक रोग होते हैं इन
पर औषधि आदि प्रयासों का प्रभाव बहुत कम पड़ता है यह समय से आते और समय से
ही जाते हैं यह जानते हुए भी केवल यह सोच पर संतोष कर लेना पर्याप्त नहीं
होगा | इस बिषय में परिणामप्रद कोई न कोई अनुसंधान अवश्य होना चाहिए जो
भविष्य के लिए छलावा सिद्ध न हो | वह महामारी से जूझती जनता का संकट कम
करने में कुछ तो सहायक हो |
समय जनित महामारियाँ या रोग बुरे समय के प्रभाव से आते हैं और अच्छा समय
आते ही समाप्त हो जाते हैं | बुरे समय के प्रभाव से आने वाली महामारियों के
समय में भी ऐसा नहीं कि सभी लोग संक्रमित हो जाते हैं उसमें भी महामारी से
पीड़ित या संक्रमित केवल वही लोग होते हैं जिनका अपना व्यक्तिगत समय
भी खराब चल रहा होता है | उसमें भी जिसका समय जितना कम या अधिक खराब चल
होता है संक्रमित होने के बाद भी वह व्यक्ति उसी अनुपात में पीड़ित होता है |
जिनका अपना व्यक्तिगत समय अच्छा चल रहा होता है महामारी काल में उन्हीं
स्थानों पर उन्हीं परिस्थितियों में उन्हीं के जैसा खान पान करते रहने पर
भी यहाँ तक कि संक्रमितों के संपर्क में रहने पर भी वे लोग स्वस्थ बने रहते
हैं इसका मुख्यकारण हमारी दृष्टि में तो समय ही है |
केवल महामारी ही नहीं अपितु सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं में यही होता है भूकंप सुनामी चक्रवात तूफ़ान बाढ़ बज्रपात या
अन्य सभी प्रकार से घटित होने वाली दुर्घटनाओं में प्रभावित तो बहुत लोग
होते हैं किंतु उनमें भी कुछ को खरोंच भी नहीं लगती है कुछ घायल होकर
चिकित्सकीय प्रयासों से स्वस्थ हो जाते हैं जबकि कुछ की दुर्भाग्यपूर्ण
मृत्यु होते देखी जाती है जैसा जिसका अपना समय होता है वैसे उसके साथ
परिणाम घटित होते हैं |
किसी
भी रोग से पीड़ित अनेकों रोगी चिकित्सा का लाभ लेकर स्वस्थ होने की आशा से
बड़े बड़े चिकित्सालयों में जाते हैं वहाँ के चिकित्सक उन्हें स्वस्थ करने के
लिए सभी प्रकार से पूर्ण प्रयत्न करते हैं चिकित्सकों के प्रयास करने के
बाद कुछ रोगी स्वस्थ हो जाते हैं कुछ अस्वस्थ बने रहते हैं और कुछ मृत्यु
को प्राप्त हो जाते हैं |
ऐसी परिस्थिति में स्वस्थ होने का उद्देश्य लेकर सभी रोगी चिकित्सकीय लाभ
ले रहे थे और चिकित्सक भी सभी रोगियों को स्वस्थ करने का उद्देश्य लेकर
ही उन रोगियों की चिकित्सा करने में लगे हुए थे |रोगी और चिकित्सक जब
दोनों अपने अपने दायित्व का निर्वाह संपूर्ण समर्पण के साथ कर रहे थे तो
उसका परिणाम भी उनके उद्देश्य के अनुरूप ही होना चाहिए था | हमारे कहने का
अभिप्राय यह है कि चिकित्सा के प्रभाव से उन सभी को स्वस्थ हो जाना चाहिए
था |
ऐसे प्रकरणों में सच्चाई का पता लगाने के लिए निष्पक्ष अनुसंधान करके
इस बात की खोज की जानी चाहिए कि चिकित्सा के बाद जो रोगी स्वस्थ हुए उनके
स्वस्थ होने में चिकित्सा का कितना योगदान था यदि उन्हें चिकित्सा का लाभ न
मिला होता तो क्या उनकी भी मृत्यु हो सकती थी चिकित्सा करने उन्हें जीवित
बचा लिया गया !यदि हाँ तो चिकित्सा को क्या इतना सक्षम मान लिया जाना
चाहिए कि उसके द्वारा किसी की मृत्यु को टाला जा सकता है |
मृत्यु को टालने की क्षमता यदि चिकित्सा में है तो चिकित्सा का प्रभाव
तो उन रोगियों पर भी दिखना चाहिए जिनकी मृत्यु हो जाती है उनकी भी मृत्यु
नहीं होनी चाहिए | चूँकि सघन चिकित्सकाल में भी रोगियों की मृत्यु होते
देखी जाती है इससे यह स्पष्ट हो जाता है चिकित्सा मृत्यु को टालने में
सक्षम नहीं है |
दूसरी बात क्या किसी रोगी को स्वस्थ करने की क्षमता चिकित्सा प्रक्रिया
में है ?इस प्रश्न पर बिचार करते समय कुछ उन लोगों पर ध्यान देना होगा जो
किसी रोगविशेष से वर्षों या दशकों से पीड़ित हैं प्रतिदिन दवा खाते हैं तो
जीवन बीतता जाता है किंतु वे सारे जीवन रोगमुक्त नहीं हो पाते हैं |
इन दोनों उदाहरणों से एक बात स्पष्ट हो जानी चाहिए कि यदि किसी की मृत्यु
होनी है तो कितनी भी चिकित्सा की जाए मृत्यु तो होगी ही और यदि किसी को
रोगी रहना है तो कितनी भी चिकित्सा की जाए वो रोगी रहेगा ही |
चिकित्सा की भूमिका उन लोगों के जीवन में महत्त्व पूर्ण होती है
जिन्हें रोग मुक्त होना निश्चित होता है ऐसे लोग किसी औषधि का सहारा लेते
हैंतो रोगों से जल्दी मुक्ति मिल जाती है अन्यथा कुछ समय अधिक लग जाता है |
यही कारण है कि चिकित्सा सुविधा से विहीन सुदूर जंगलों में रहने वाले
बनबासियों के शरीरों में भी रोग होते हैं घाव होते हैं बिना किसी दवा के ही
समय के साथ साथ वे भी स्वस्थ होते देखे जाते हैं | जंगलों में जीव जंतु एक
दूसरे से लड़ झगड़ कर घायल हो जाते हैं समय के साथ धीरे धीरे स्वस्थ भी हो
जाते हैं |
चिकित्सा से स्वस्थ होने में भी समय की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है किसी
रोग या घाव में जितनी मात्रा की औषधि 21 दिन में प्रयोग की जानी है यदि वह
एक ही दिन में प्रयोग कर ली जाए तो वह रोगी एक ही दिन में स्वस्थ नहीं हो
जाएगा अपितु 21 दिन की दवा 21 दिनों में ही देनी पड़ेगी |दवा की अपेक्षा किए
बिना भी विभिन्न रोगों से पीड़ित बहुत रोगी समय के साथ साथ बिना किसी औषधि
प्रयोग से भी स्वस्थ होते देखे जाते हैं |
इसका मतलब किसी रोगी को स्वस्थ करने की प्रक्रिया में चिकित्सा को तो
समय की आवश्यकता है किंतु किसी रोगी को स्वस्थ करने में समय को चिकित्सा
की आवश्यकता नहीं है | इसलिए चिकित्सा के क्षेत्र में भी समय की ही
प्रधानता स्वीकार करनी होगी |प्रकृति और जीवन में समय की बहुत प्रधानता है |
इसके बाद भी समय की भी एक सीमा और सुनिश्चित क्षेत्र है |
जिस प्रकार से कोई दीपक जलाया जाता है वह कितनी देर तक जलेगा इसका
अनुमान उस दीपक में पड़े हुए घी के अनुशार लगा लिया जाता है किंतु यदि दीपक
में दो घंटे तक जलने के लिए घी है इससे यह अनुमान
लगा लिया जाता है कि यह दीपक दो घंटे तक जलेगा किंतु दो घंटे तक तभी जलेगा
जब उसमें किसी प्रकार की बाहरी रुकावट पैदा नहीं की जाएगी | तेज हवा लगने
से या कोई चीज दीपक के ऊपर गिर जाने से या किसी अन्य प्रकार से ब्यवधान
पहुँचने पर दीपक दीपक बुझ भी सकता है दो घंटे का मतलब यह नहीं कि दीपक के साथ कुछ भी हो फिर भी दीपक दो घंटे तक जलेगा ही |
जिसप्रकार से दीपक की आयु का आकलन उसमें स्थपित घी के अनुशार किया
जाता है उसी प्रकार से मनुष्य की आयु का आकलन उसके अपने समय के अनुशार करना
होता है | जिस प्रकार से हवा आदि के बाहरी विक्षेपों का निवारण करते हुए
दीपक को तभी तक सुरक्षित रखा जा सकता है जब तक उसमें घी रहेगा दीपक का घी
समाप्त होते ही उसकी कितनी भी सुरक्षा क्यों न कर ली जाए फिर भी घी के बिना
केवल सघन सुरक्षा करके भी दीपक को जलाकर सुरक्षित नहीं रखा जा सकता है |
इसी प्रकार से दीपक में घी की भूमिका का निर्वाह मनुष्य जीवन में समय करता
है जब तक जिसका समय उसके अनुकूल होता है तभी तक वह सुरक्षित रह पाता है |
चिकित्सा के द्वारा हम मनुष्य जीवन की सुरक्षा तभी तक कर सकते हैं जब तक
उसका अपना समय उसका साथ दे रहा होता है |मनुष्य जीवन के साथ अचानक घटित
होने वाली दुर्घटनाओं से प्राप्त पीड़ा का निवारण तो चिकित्सा के द्वारा
किया जा सकता है किंतु किसी की आयु बढ़ाना चिकित्सा के बश की बात नहीं है |
जिसप्रकार से तेज आँधी आदि के प्रकोप से यदि बचाव न किया जाए तो दीपक बुझ
सकता है किंतु इसका मतलब यह नहीं कि उसका गहि समाप्त हो गया है| इसी प्रकार
से जीवन के साथ कोई आकस्मिक दुर्घटना घटित होने पर यदि चिकित्सा आदि के
द्वारा उसकी सुरक्षा न की जाए तो जीवन समाप्त हो सकता है किंतु इसका मतलब
यह नहीं है कि उसकी आयु समाप्त हो गई है |
जिस प्रकार से आँधी तूफ़ान आदि के आने पर बचाव का इंतजाम करके दीपक को
बुझने से रोक लेने का यह मतलब नहीं है कि दीपक में डाले गए घी की मात्रा को
बढ़ा दिया गया है उसी प्रकार से जीवन के साथ घटित होने वाली दुर्घनाओं के
समय चिकित्सा आदि के द्वारा जीवन
को विघ्न रहित बनाया जा सकता है और उसे अपनी पूरी आयु भोगने का अवसर दिया
जा सकता है किंतु चिकित्सा के द्वारा किसी की आयु नहीं बढ़ाई जा सकती है |
जीवन में जो आकस्मिक दुघर्टनाएँ घटित होती हैं चिकित्सा के द्वारा उनसे
बचाव तो किया जा सकता है किंतु बिना किसी मनुष्यकृत प्रयास से मनुष्यजीवन
में घटित होने वाली दुर्घटनाओं को रोककर रखना या उससे रक्षा कर लेना मनुष्य
के बश की बात नहीं है |
समय निरंतर चला करता है समय की गति के साथ साथ संपूर्ण संसार के प्रत्येक
कण में बदलाव होते रहते हैं |ऋतुएँ बदलती हैं पक्ष बदलते हैं दिन रात बदलते
हैं | इन बदलावों से तापमान बढ़ने घटने की क्रिया संपन्न होती है वर्षा
होने की क्रिया भी इन्हीं बदलावों के साथ घटित होती है | वर्षा बाढ़ आँधी
तूफ़ान आदि सभी घटनाएँ समय के बदलाव के कारण ही घटित होती हैं | कोरोना आदि
सभी महामारियाँ भी समय के परिवर्तन का ही एक स्वरूप हैं |
सूर्य चंद्र ग्रहण पड़ने का भी समय आता है वर्षा सर्दी गर्मी आदि ऋतुओं का
भी समय आता है वर्षा आँधी तूफ़ान आदि घटनाओं का भी समय आता है |जब जिस
प्रकार की घटना घटित होने का समय आता है तब उस प्रकार की घटना घटित होने
लगती है सूर्य चंद्र ग्रहण पड़ने का समय आने पर ग्रहण पड़ने लगते हैं वर्षा
सर्दी गर्मी आदि ऋतुओं का समय आने पर वर्षा सर्दी गर्मी आदि पड़ने लगती है |सूखा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि सभी घटनाएँ भी समय आने पर ही घटित होती हैं | कुल मिलाकर ऐसी सभी प्राकृतिक घटनाएँ समय का ही अनुगमन करते देखी जाती रही हैं |
कोरोना जैसी सभीप्रकार की महामारियाँ भी समय के कारण ही घटित होती रही
हैं पिछले चार सौ वर्ष से हर सौ वर्ष में महामारियाँ घटित होते देखी जा
रही हैं | यद्यपि आगे भी ऐसा ही होगा या निश्चित नहीं है अनिश्चित होने का
कारण यह भी नहीं है कि यह समय सीमा के बाहर की बात है | सूर्य चंद्र ग्रहण
पड़ने का समय भी वर्ष मास आदि दृष्टि से तो निश्चित नहीं है फिर भी ग्रहण
जैसी घटनाएँ समय संचार के किसी प्रकार से तो जुड़ी होती ही हैं |इसीलिए तो
उनके बिषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |
सूर्य चंद्र ग्रहण जैसी घटनाओं की तरह ही तो कोरोना जैसी महामारियाँ भी
समय से ही संबंधित हैं समय के संचार के साथ ही आती और समय के संचार के साथ
ही समाप्त होती रहती हैं|ये प्राकृतिक महामारियाँ हैं सभी प्रकार के
प्राकृतिक रोग उसी प्रकार से अपने समय से आते और अपने समय से ही चले जाते
हैं जिस प्रकार से समय आने पर सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ अपने आप से आती
और अपने आप से चली जाया करती हैं | जब ये आती हैं तब क्रमशः इनका प्रकोप
बढ़ता जाता है इसके बाद उसी क्रम में समाप्त होने लगती हैं | इन्हें आने से
रोकने के लिए कोई औषधि आदि नहीं है इसीप्रकार से इनका प्रकोप कम करने के
लिए कोई उपाय नहीं है | केवल इनसे बचाव के लिए उपाय पहले से करके रखने होते
हैं | क्योंकि इनके बिषय में पता होता है कि कौन ऋतु किस समय कितने महीनों
दिनों आदि के लिए आएगी इसके बाद समाप्त हो जाएगी |कोरोना जैसी महामारियों
के बिषय में अधिक समस्या इसीलिए होती है क्योंकि सर्दी गर्मी वर्षा आदि
ऋतुओं की तरह महामारी के बिषय के पूर्वानुमान हमें पहले से पता नहीं होते
हैं |
अपनी अपनी ऋतुओं में भी सभी ऋतुओं का प्रभाव एक जैसा कभी नहीं रहता है
घटता बढ़ता रहता है |वर्षा काल (ऋतु) में भी किसी दिन अधिक वर्षा होती है
किसी दिन कम किसी दिन केवल बादल आते हैं किसी दिन तेज धूप निकलती है |
सर्दी और गर्मी आदि ऋतुओं में भी इनका अपना अपना प्रभाव कम और अधिक होते
देखा जाता है | शीत काल में कुछ समय तक बहुत अधिक सर्दी पड़ती है फिर उतनी
नहीं पड़ती ऐसा ही गर्मी में होता है | जिस प्रकार से वर्षाकाल में कुछ दिन
बहुत अधिक वर्षा होती है ऐसा पूरी वर्षा काल में दो तीन बार ही होता है यही
स्थिति अन्य ऋतुकाल में भी उनके न्यूनाधिक प्रभाव की है | इन्हीं
प्राकृतिक घटनाओं की तरह ही महामारी काल में भी दो तीन बार बढ़ जाता है फिर
कम होने लगता है | इसे महामारी की पहली लहर दूसरी तीसरी लहर आदि के नाम से
जाना जाता है | जिस प्रकार से सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं का एवं सूखा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि घटनाओं का प्रभाव
समाप्त करने के लिए या समय से पहले सूर्य चंद्र आदि ग्रहणों को घटित होने
से रोकने के लिए कोई मनुष्यकृत प्रयासों की कोई भूमिका नहीं होती है उसी
प्रकार से महामारियों पर विजय प्राप्त करना मनुष्य के बश की बात नहीं हैं |
इसी प्रकार से महामारियों से लड़ाई लड़ने में मनुष्य सक्षम नहीं हो सकता है
|
यदि कोई मनुष्य आँधी तूफान आदि किसी घटना के प्रारंभ हो जाने पर अपने
को उससे लड़ने लायक योद्धा समझने की भूल कर बैठे ! उस आँधी तूफान को पराजित
करके उस पर बिजय प्राप्त करने का गुमान पाल बैठे और उस आँधी तूफान आदि
प्राकृतिक घटना को रोकने के लिए किसी ऊँचे स्थान पर बैठकर को भस्म धूल
पाउडर आदि आँधी में उड़ाना शुरू कर दे कि मैं इसे पराजित कर दूँगा रोक दूँगा
आदि आदि | ऐसे जादू टोनों टोटकों से वे आँधी तूफ़ान तो रुकेंगे नहीं किंतु
हमेंशा चलते भी नहीं रहेंगे कभी तो उन्हें रुकना ही होगा | ऐसी परिस्थिति
में कुछ समय बाद तो उस आँधी तूफ़ान को अपने आप से ही रुकना होता है इसलिए वो
रुक जाता है | उस आँधी तूफ़ान के अपने आपसे रुकने तक यदि वह जादू टोना
टोटका आदि करने वाला व्यक्ति अपनी सक्रियता बनाए रखता है तो वह आँधी तूफ़ान
को पराजित कर देने का दंभ भरने लगता है जबकि उस व्यक्ति की उस प्रकार की
प्राकृतिक घटनाओं के प्रारंभ या समाप्त होने में कोई भूमिका ही नहीं होती
है |
इसी प्रकार से महामारियाँ अपने समय से आती और अपने समय से ही जाती हैं |
इन्हें न कोई बना सकता है समाप्त कर सकता है | आँधी तूफान आदि घटनाएँ जिस
दिशा की ओर से आ रही होती हैं उस दिशा में पढ़ने वाले देशों को उन आँधी
तूफान आदि घटनाओं को तैयार करने के लिए जिम्मेदार मान लेना जिस प्रकार का
भ्रम है महामारी को कोई मनुष्य तैयार कर देगा यह भी उतना ही बड़ा भ्रम है |
हमें याद रखना चाहिए कि कोई शरारती तत्व माचिस की तीली निकालकर जला तो
सकता है किंतु उससे आग नहीं लगा सकता !आग लगने के लिए वहाँ आग लगने लायक
ज्वलन शील किसी पदार्थ का होना अनिवार्य होता है | किसी कमरे में
ज्वलनशील गैस का रिसाव हो गया हो उसमें पहुँचकर कोई माचिस की तीली जला दे
तो उसमें आग लग जाएगी किंतु इस आग लगने के लिए माचिस की तीली जलाना जितना
खतरनाक रहा उससे कम जिम्मेदार वहाँ का वातावरण नहीं था | यदि वहाँ उस
प्रकार की गैस न होती तो माचिस की तीली जलने के बाद बुझ जाती उससे आग लगती
ही ऐसा जरूरी नहीं था | इसी प्रकार से किसी महामारी का निर्माण कोई व्यक्ति
या देश कर देगा इसे केवल आंशिक रूप से ही सच माना जा सकता है |
कुल मिलाकर महामारियों का निर्माण तभी हो सकता है जब उस प्रकार का
प्राकृतिक वातावरण बन गया हो और उस प्रकार का प्राकृतिक वातावरण तभी बन
सकता है जब उस प्रकार का समय प्रारंभ हो गया हो क्योंकि समय के सहयोग के
बिना इतनी बड़ी घटना घटित होना संभव नहीं है |
इस प्रकार से सूर्य चंद्र ग्रहण ,बसंत आदि सभी ऋतुएँ ,सूखा बाढ़ आँधी तूफ़ान ज्वार भाटा आदि प्राकृतिक घटनाएँ एवं प्राकृतिक रोग और प्राकृतिकमहामारियाँ आदि जितने
भी प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ होती हैं या हो सकती हैं वे सभी समय के
संचार के साथ जुड़ी होती हैं उनका आरंभ और अंत समय के ही आधीन होता है |
उनका संपूर्ण लेखा जोखा भी समयफलक पर ही अंकित होता है जिसे समय विज्ञान के
सहयोग से ही समझा जा सकता है | विज्ञान को ठीक ठीक समझने के लिए गणित ही
सबसे अच्छा माध्यम है |इसीलिए गणित के ही माध्यम से ही सुदूर आकाश में घटित
होने वाली सूर्य चंद्र ग्रहण जैसी घटनाओं के बिषय में सैकड़ों हजारों वर्ष
पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | इसी प्रकार से अन्य सभी प्रकार की
प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है जिनके बिषय में
अभी नहीं लगा लिया जाता है उनके बिषय में भी गणित के द्वारा पूर्वानुमान
लगा लेना संभव है |
कोरोना जैसी महामारी को ही लिया जाए तो गणितविज्ञान के द्वारा समय के
संचार को समझा जा सकता है और समय के संचार के आधार पर सभी प्रकार की
प्राकृतिक घटनाओं को न केवल समझा जा सकता है अपितु उनके के बिषय में
पूर्वानुमान भी लगाया जा सकता है |
किसी भी महामारी के आने से वर्षों पहले महामारी के आने के बिषय में
संकेत मिलने लगते हैं | दस से पंद्रह वर्ष पहले से वातावरण में कुछ इस प्रकार के बदलाव होने लगते हैं जिनका सूक्ष्म विश्लेषण करने से इस प्रकार की महामारियों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |
समय जैसे जैसे महामारी की ओर बढ़ने लगता है वैसे वैसे कुछ इस प्रकार की
प्राकृतिक घटनाएँ घटित होने लगती हैं जो आम लोगों के देखने में तो सामान्य
रूप से दिखाई देने वाली घटनाएँ लगती हैं किंतु इनमें कुछ खोजने की दृष्टि
से जब कोई विशेषज्ञ देखता है तो उसमें कुछ भविष्य में घटित होने वाली
घटनाओं के संकेत मिल रहे होते हैं उन संकेतों का गणितीय विश्लेषण करके उन
घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है जो भविष्य में कुछ महीनों
वर्षों या दशकों बाद घटित होनी होती हैं |
ऐसी घटनाएँ आकाश समुद्र बादल वायु सूर्य चंद्रादि ग्रहों जीव जंतुओं
पेड़ पौधों आदि से संबंधित होती हैं | भूकंप सूखा वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान एवं
बज्रपात आदि से संबंधित होती हैं ये घटनाएँ अक्सर प्रकृति में हो रहे कुछ
ऐसे परिवर्तनों के बिषय में सूचना दे रही होती हैं जो प्रकृति के सहज क्रम
से कुछ अलग हट कर घटित हो हो रही होती हैं | इनमें कुछ ऐसे परिवर्तन आने
लगते हैं जो समय के बदलाव की सूचना दे रहे होते हैं | उन बदलावों का
अनुसंधान पूर्वक अध्ययन करने से भविष्य में घटित होने वाली कई बड़ी घटनाओं
के बिषय में काफी हद तक सही सही अनुमान लगा लिया जाता है |
व्यवहार में अक्सर देखा जाता है कि दो देशों के शासकों के बीच में आपसी
संवाद होता है दो प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों के बीच दो जिलों के
जिलाध्यक्षों आदि के बीच आपसी संवाद होता है उस संवाद से जो कुछ निकलता है
उससे दोनों देशों के प्रदेशों जिलों आदि में एक दूसरे के साथ मिलकर कुछ ऐसे
बदलावों की संभावनाएँ निर्मित की जाती हैं जो किसी एक के द्वारा करना संभव
नहीं होता है | हमें यह याद रखना चाहिए कि किसी एक देश प्रदेश जिले आदि
में जो घटनाएँ घटित हो रही होती हैं उनसे पड़ोसी देश प्रदेश जिले आदि भी
प्रभावित होते हैं | इसलिए कई ऐसी घटनाएँ भी देश प्रदेश जिलों आदि में घटित
हो रही होती हैं जिनका संबंध दूसरे देशों प्रदेशों जिलों आदि से होता है
ऐसी घटनाओं को ठीक ठीक समझने के लिए पड़ोसी देशों प्रदेशों जिलों आदि से भी
सूचनाएँ जुटानी होती हैं |
जिस प्रकार से देशों प्रदेशों जिलों आदि में घटित होने वाली घटनाओं का
संबंध दूसरे देशों प्रदेशों जिलोंआदि से होता है इसलिए उसे ठीक ठीक समझने
के लिए एक दूसरे से संवाद करना आवश्यक होता है उस संवाद के माध्यम से ही उस
घटना की सच्चाई को समझा जा सकता है |
उसी प्रकार से पृथ्वी आदि का भी पड़ोसी ग्रहों से भी तो आपसी संवाद होता है
कई बार पृथ्वी आदि किसी एक ग्रह पर जो घटनाएँ घटित हो रही होती हैं उसके
कारण किसी दूसरे ग्रह पर विद्यमान होते हैं उन्हें समझने के लिए उन दोनों
ग्रहों के आपसी संवाद को समझना होता है |
कई बार अपने से कुछ दूर खड़े शेर को देखकर भयवश या सर्दी के समय ठंडी ठंडी
हवाएँ लगने से किसी के शरीर में कंपन होने लगता है उस शरीर में कंपन होने
का कारण जो शेर और जो ठंडी हवा होती है उनमें से कोई कारण उस शरीर के
पास हमें दिखाई नहीं पड़ रहा होता है और शेर ठंडी हवा के मनुष्य शरीर पर
पड़ने वाले असर का ज्ञान और अनुभव न होने के कारण उसके शरीर में कंपन होने
का कारण खोजने के लिए उसके पेट का आपरेशन कर देना विज्ञानसम्मत नहीं है |
इसी प्रकार से भूकंप जैसी घटनाओं के घटित होने का कारण धरती के अंदर
ही विद्यमान मानकर धरती के अंदर ही गहरे
गड्ढे खोदने लग जाने की प्रक्रिया में विज्ञान कहाँ है | विज्ञानसम्मत तो
तब होगा जब भूकंप जैसी घटनाओं के स्वभाव को समझने का प्रयास किया जाए |
ऐसे ही वर्षा होने न होने या कम अधिक होने का कारण खोजने के लिए केवल
बादलों की जासूसी करना ही पर्याप्त नहीं होता है |उपग्रहों रडारों के सहयोग
से एक स्थान पर बादलों की उपस्थिति देखकर उसकी गति और दिशा के आधार पर
उसके दूसरे स्थान पर पहुँचने का अंदाजा लगा लेने को मौसम विज्ञान मानकर
संतोष कर लेना ठीक नहीं है क्योंकि यह एक कला है इसमें तो विज्ञान का उपयोग
ही नहीं है | आँधी तूफानों के पूर्वानुमान के बिषय में भी यही प्रक्रिया
अपनाई जाती है जो विज्ञान सम्मत नहीं है यही कारण है कि सन 2018 मई जून में
बिहार पूर्वी उत्तर प्रदेश में आए हिंसक तूफानों में से किसी के बिषय में
पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था | इसलिए ऐसी घटनाओं को समझने के लिए
प्रकृति के स्वभाव को समझना बहुत आवश्यक है |
इसी प्रकार से वायु प्रदूषण का स्तर क्यों बढ़ता है इसका कारण खोजा
जाना चाहिए ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधान के अभाव में जहाँ कहीं से धुआँ या धूल
उड़ते देखा जाता है उसे वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जाता
है यह भी एक कला मात्र है इसमें विज्ञान तो कहीं नहीं है | दिवाली में
पटाखे हमेंशा से फोड़े जा रहे हैं फसलों के अवशेष हमेंशा से जलाए जा रहे हैं
निर्माण कार्य हमेंशा होते रहे हैं वाहन हमेंशा चलते रहे हैं ईंट भट्ठे या
कल कारखानों से धुआँ हमेंशा निकलता रहा है | अब भी ये घटनाएँ न्यूनाधिक
रूप से हमेंशा चला करती हैं किंतु वायु प्रदूषण महीने में कुछ दिनों में बढ़
जाने और फिर घाट जाने का वैज्ञानिक कारण खोजा जाना चाहिए |
इसलिए प्रकृति के स्वभाव को समझे बिना विज्ञान के नाम पर किसी बिषय में
कुछ भी बोलते रहना ठीक नहीं है | किसी घटना के कारणों को खोजने में
जल्दबाजी एवं लापरवाही नहीं की जानी चाहिए अपितु प्रकृति के स्वभाव एवं
प्राकृतिक तत्वों के पारस्परिक अर्थात एक दूसरे पर पड़ने वाले प्रभाव का भी
गंभीर अनुसंधान होना चाहिए |
कोरोना महामारी को ही लें भारत में इसका पीक दो बार बढ़ा है एक अगस्त
सितंबर 2020 में तो दूसरा मार्च अप्रैल 2021 में उसके बाद कम होने लगा था |
इन दो बार बढ़ने एवं दो बार कम होने का कारण क्या था इस बिषय में बातें
बहुत हैं किंतु इसका जो भी वैज्ञानिक कारण होगा वह किसी को पता नहीं है |
इसके बाद तीसरी लहर की भविष्यवाणी करना बिल्कुल विज्ञान सम्मत नहीं हैं
क्योंकि विज्ञान के पास इस प्रकार का पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई विज्ञान
सम्मत तर्कसंगत प्रणाली ही नहीं है | ऐसी परिस्थिति में प्रकृति के स्वभाव
को समझे बिना इस प्रकार की अफवाहें फैलाना कतई ठीक नहीं है | ऐसे तीर
तुक्के यदि कभी कदाचित सच निकल भी जाएँ तो भी विश्वसनीय नहीं होते हैं |
जिस प्रकार से देशों प्रदेशों जिलों या ग्रहों आदि का प्रभाव अपने
पड़ोसियों पर पड़ता है उसी प्रकार से वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि घटनाओं का
संबंध भी उनके साथ या आगे पीछे घटित होने वाली घटनाओं के साथ होता है |
इसलिए मूल घटनाओं के घटित होने के लिए उनके वास्तविक कारणों को खोजने के
लिए उनके आगे पीछे घटित होने वाली घटनाओं का अनुसंधान उन दूसरी घटनाओं की
दृष्टि से भी किया जाना चाहिए |
25 अप्रैल 2015 को नेपाल में जो भूकंप आया था उसका जो केंद्र था उसका
प्रभाव भारत समेत जिन जी स्थानों पर जैसा पड़ा था और उससे जिस प्रकार की जन
धन हानि हुई थी | नेपाल के उसी स्थान से 22 अप्रैल 2015 को एक हिंसक तूफ़ान
आया था जिससे उन उन स्थानों पर सैकड़ों लोग मारे गए थे जहाँ भूकंप आने पर
मारे गए थे |
ऐसी परिस्थिति में 25 अप्रैल 2015 को नेपाल में संभावित भूकंप की सूचना
देने आए 22 अप्रैल 2015 को वाले हिंसक तूफ़ान के प्रकृति संदेश को यदि समझा
जा सका होता तो संभव है कि उसके बाद में घटित हुए भूकंप से होने वाले
नुक्सान को कुछ काम किया जा सकता था | ऐसे ही कई घटनाएँ एक दूसरी घटना के
साथ जुड़ी होती हैं जिन मूल घटनाओं को ठीक ठीक समझने के लिए उनके आगे पीछे
घटित हुई घटनाओं के बिषय में अनुसंधान करना आवश्यक होता है |
तौकते तूफान को गुजरात की ओर बढ़ता देख 17 मई 2021 को गुजरात की धरती काँप उठी इसीलिए 17 मई 2021 गुजरात के राजकोट में भूकंप के झटके महसूस किए गए। इसी प्रकार से यास तूफान ने 26 मई 2021 को भारत के पूर्वी तटों पर दस्तक दी !बंगाल के
जलपाईगुड़ी में दोपहर के वक्त पहुंचा और इसी दौरान 3.8 तीव्रता का भूकंप भी
रिकॉर्ड किया गया। ऐसे और भी बहुत सारी प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती रहती हैं जिनका एक दूसरी प्राकृतिक घटना से संबंध होता है |
विशेष बात यह है कि केवल प्रकृति घटनाओं से ही प्राकृतिक घटनाओं का
संबंध नहीं होता है अपितु प्राकृतिक घटनाएँ रोग एवं महामारियों को भी जन्म
देते देखी जाती हैं |
9
सितंबर 2018 को 3.8 तीव्रता का दिल्ली में भूकंप आया था जिसका केंद्र
हरियाणा का झज्जर था ! इसी प्रकार से दूसरा भूकंप उत्तरप्रदेश के मेरठ
जिले में 10 सितंबर 2018 को 3.6 तीव्रता का भूकंप आया था इस भूकंप का
केंद्र मेरठ के खरखौदा में था।सूर्य के मंडल में अचानक काले धब्बे दिखाई
देने लगे उसी सूर्य प्रकोप से निर्मित ये दोनों भूकंप थे |
इन
भूकंपों को समय विज्ञान की दृष्टि से गणित विज्ञान के माध्यम से मैंने
अनुसंधान किया तो पता लगा कि इस क्षेत्र में निकट भविष्य में इस प्रकार के
रोग होंगे जिसे मैंने तुरंत प्रकाशित कर दिया था वो ये पंक्तियाँ हैं
-"भूकंपीय क्षेत्र के वातावरण में सीमा से अधिक गरमी बढ़नी स्वाभाविक है
!यहाँ सूखीखाँसी, साँस लेने की समस्या एवँ आँखों में जलन आदि जानलेवा होती
जाएगी !गर्मी की अधिकता से होने वाले और रोग भी अधिक बढ़ेंगे !"
इसके बाद देखा भी गया था कि झज्झर से मेरठ के बीच अर्थात दिल्ली के आस पास
के क्षेत्रों में गलाघोंटू रोग बच्चों फैला था| जिससे अनेकों बच्चों की मौत
हो गई थी |28सितंबर 2018तक ही दिल्ली में डिप्थीरिया (गलघोंटू) बीमारी से
24बच्चों की मौत हो गई थी ।
25 अप्रैल 2015 को नेपाल में जो
भूकंप आया था उस समय भी नेपाल से भारत तक के सीमावर्ती गाँवों में सूखी
खाँसी उलटीदस्त घबड़ाहट एवं चक्कर आने की समस्या से लोग जूझने लगे थे |
कुल मिलाकर ऐसी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ अनेकों बार घटित हुई हैं जिनकी
पूर्व सूचना किसी न किसी प्राकृतिक घटना के द्वारा दी जाती रही है|केवल
भूकंप ही नहीं अपितु अनेकों प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ मनुष्य जीवन से
जुड़ी शारीरिक मानसिक आर्थिक सामाजिक राजनैतिक एवं दो देशों के आपसी संबंधों
के बिषय में अग्रिम सूचनाएँ उपलब्ध करवाती रही हैं | जिनके बिषय में
गणितविज्ञान के द्वारा समय विज्ञान पद्धति से आगे से आगे पूर्वानुमान लगा
लिया जाता है |
वस्तुतः प्राकृतिक घटनाओं से स्वास्थ्य का सीधा
संबंध है|वैसे तो6 ऋतुएँ होती हैं उनमें भी सर्दी गर्मी और वर्षा तीन
ऋतुएँ प्रमुख हैं इन का प्रभाव यदि संतुलित बना रहता है तो सभी स्वस्थ बने
रहते हैं इनमें से किसी एक का संतुलन बिगड़ता है तो उसके प्रभाव से दूसरी
ऋतु का प्रभाव भी असंतुलित होता है | दो का संतुलन बिगड़ते ही तीसरी ऋतु का
प्रभाव भी बिगड़ने लगता है | ऋतुएँ जब भटकने लगती हैं तो महामारियों का
निर्माण प्रारंभ हो चुका होता है |
16 और17 जून 2013 में
केदारनाथजी में जो तवाही हुई थी वह जून के महीने में हुई थी | जून के महीने
में हुई थी| बाढ़ की घटनाएँ सहज एवं सामान्य वर्षा में नहीं आती हैं उसमें
भी ग्रीष्म (गरमी) ऋतु में बाढ़ की घटना ऋतु के बिलकुल विरोधी स्वभाव की
घटना है ऐसा कुछ अन्य वर्षों में भी घटित हुआ है | अभी हाल में ही 2020 और
2021 के मई जून के महीने में गर्मी पता ही नहीं लगी मई महीने भर तो बारिश
होती रही | गर्मी की ऋतु में वर्षा होने से तापमान गर्मी की अपेक्षा कम
रहने का प्रभाव दूसरी ऋतुओं पर भी पड़ता है उनका भी आचरण असंतुलित होने लगता
है |यही कारण है कि 2019 और 2020 की संधि में सर्दी सामान्य से अधिक पड़ गई
एवं 2020 और 2021की संधि में सर्दी सामान्य से कम पड़ गई |
सन
2016 में दक्षिण पश्चिम भारत में अधिक गर्मी पड़ी जगह जगह पर आग लगने की
घटनाएँ इतनी अधिक घटित हुईं कि 25 अप्रैल 2016 को बिहार सरकार के आपदा
प्रबंधन विभाग ने ग्रामीण इलाक़ो में सुबह नौ बजे के बाद और शाम छह बजे से
पहले खाना न बनाने और पूजा-हवन न करने की सलाह दी थी|यही स्थिति उत्तर
प्रदेश समेत कई प्रदेशों में रही| अधिक गर्मी के कारण पानी की इतनी कमी हो
गई कि पहली बार ट्रेन से लातूर पानी भेजना पड़ा | इसी अप्रैल 2016 से लेकर
मई जून तक असम आदि पूर्वोत्तर प्रदेशों में भीषण वर्षा एवं भयंकर बाढ़ की
घटनाएँ घटित होते देखी जाती रहीं जिसमें दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु हो गई थी |
ये दोनों परस्पर विरोधी घटनाएँ ऋतु के सहज स्वभाव के अनुरूप नहीं थीं
दिनों दिन न केवल वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा था अपितु मनुष्य का चिंतन
दिनोंदिन दूषित होते देखा जा रहा था | प्राकृतिक दृष्टि से दक्षिण पश्चिम
भारत में हुई भीषण गर्मी एवं पूर्वोत्तर भारत में भीषण वर्षा की घटनाएँ
घटित होते देखी गई थीं | ग्रीष्म ऋतु में इस प्रकार का संतुलन बिगड़ने का
दुष्प्रभाव वर्ष की अन्य ऋतुओं पर पड़ना स्वाभाविक ही था |
इसमें विशेष बात एक और है कि 10-4-2016 को दक्षिण पश्चिम भारत में भूकंप
आया था और 13 -4-2016 को देश के पूर्वोत्तर में भूकंप आया था!
हमने समय विज्ञान पद्धति के अनुशार गणित के माध्यम से इन दोनों भूकंपों के
बिषय में अध्ययन किया जिससे पता लगा कि 10-4-2016 को दक्षिण पश्चिम
भारतवर्ष में घटित हुआ भूकंप पृथ्वी पर पड़ने वाले सूर्य मिश्रित मंगल ग्रह
के संयोग से निर्मित हुआ था इसलिए भूकंप घटित होने के दिन से ही इस
क्षेत्र में गर्मी और आग लगने की घटनाएँ बढ़ने लगेंगी |
इस
भूकंप के प्रभाव से घटित होने घटित होने वाली घटनाओं के बिषय में मैंने उसी
दिन यह पूर्वानुमान प्रकाशित किया था -"प्रभाव से अग्नि सम्बन्धी समस्याएँ
और अधिक भी बढ़ सकती हैं इस समय वायुमण्डल में व्याप्त है अग्नि !इसलिए
अग्नि से सामान्य वायु भी इस समय ज्वलन शील गैस जैसे गुणों से युक्त होकर
विचरण कर रही है । इसके अलावा इस समय दिशाओं में जलन, तारे टूटना ,उल्कापात
होने जैसी घटनाएँ भी देखने सुनने को मिल सकती हैं । इस भूकंप के कारण
ही नदियाँ कुएँ तालाब आदि अबकी बार बहुत जल्दी ही सूखते चले जाएँगे
!"
इसी प्रकार से 13-4-2016 को देश के पूर्वोत्तर
प्रदेशों में आया भूकंप चंद्र एवं शुक्रग्रह के संयोग से निर्मित हुआ था
| इसलिए इस क्षेत्र में आए भूकंप के प्रभाव के बिषय में पूर्वानुमान
प्रकाशित किया था -"इस भूकंप से प्रभावित क्षेत्रों में अति शीघ्र अधिक
वर्षा बाढ़ से हो सकती भारी क्षति !"
भूकंपों के तुरंत बाद ही
असम अरुणाचल आदि पूर्वोत्तर भारत में भीषण वर्षा प्रारंभ हो गई थी एवं
दक्षिण पश्चिमी भारत में भीषण गर्मी एवं आग लगने की घटनाएँ घटित होनी
प्रारंभ हो गई थीं |
इसी प्रकार से सन 2018 के अप्रैल मई में
पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार आदि में भीषण हिंसक आँधी तूफ़ान आए जिसमें
बहुत लोग मारे गए ऐसा हर वर्ष तो नहीं होता है | विगत कुछ वर्षों से बिजली
गिरने की ऐसी घटनाएँ बढ़ी हैं जिनमें काफी लोग मारे गए हैं ऐसा हमेंशा तो
नहीं होता रहा है |
इस प्रकार से बहुत सारी ऐसी प्राकृतिक घटनाएँ ऋतु के स्वभाव के विपरीत घटित हुआ करती हैं जिनका अनुसंधान पूर्वक अध्ययन करने से एक घटना का संबंध संभावित दूसरी घटना
से प्रकट हो जाता है |उसके आधार पर कई बड़ी प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |उन
सभी घटनाओं को यहाँ उद्धृत करना संभव नहीं है| हमारे द्वारा प्रस्तुत किए
गए ऐसे कुछ उदाहरणों से केवल इतना ध्यान दिया जाना चाहिए कि जो प्रकृति में
चल रहा होता है वही सभी प्राणियों के शरीर एवं मन में चला करता है | समय
के संचार के साथ साथ आकाश से लेकर पाताल तक प्रतिक्षण सूक्ष्म बदलाव होते
रहते हैं | समुद्रों वृक्षों बनस्पतियों जीव जंतुओं मनुष्यों के स्वास्थ्य
एवं चिंतन आदि में प्रतिपल होते अत्यंत सूक्ष्म परिवर्तनों पर सदैव दृष्टि
रखनी आवश्यक होती है और उन परिवर्तनों का एक दूसरी घटना के साथ मिलान करते
चलना होता है | यदि ऐसे बदलाव विशेष असंतुलित होने लगें तो उसी समय सतर्क
हो जाना चाहिए ये किसी बड़ी प्राकृतिक आपदा अथवा संभावित महामारी की सूचना
दे रहे होते हैं |
प्रकृति में घटित एक प्राकृतिक घटना कई दूसरी प्राकृतिकघटनाओं से संबंध
रखती
है|इसलिए एक ऋतु का संतुलन बिगड़ने से कई दूसरी ऋतुओं का संतुलन बिगड़ जाता
है यह बिगड़ा हुआ क्रम वर्षों तक चला करता है | लगातार ऐसा होने से कुछ रोग
या महारोगों (महामारी) के पैदा होने की संभावनाएँ बढ़ती चली जाती हैं |ऐसे
समय होने वाले सभी प्रकार के रोगों पर अत्यंत पैनी दृष्टि राखी जानी चाहिए
|कुछ रोगियों के एक जैसे रोग लक्षण यदि लीक से हट कर जाते दिखाई दें ऐसे
रोगियों पर किए जाने वाले चिकित्सकीय प्रयासों के यदि विपरीत परिणाम
निकलने लगें तो यह समझ लिया जाना चाहिए कि महामारी प्रारंभ हो चुकी है
|समयविज्ञान से संबंधित गणितीय अनुसंधानों के द्वारा महामारियों के बिषय
में किए जाने वाले अनुसंधानों को सफल बनाया जा सकता है |
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