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आधुनिक विज्ञान बाद में -1 - 8 -24

                                               महामारी  की विज्ञान को चुनौती                  

                                                 महामारी  और विज्ञान की विफलता        

                                            महामारी विज्ञान में वैज्ञानिकता  की खोज !

                                               महामारी को समझने में चूक गया विज्ञान 

      कोरोना महामारीमें सभी प्रकार से बहुत बड़ा नुकसान हुआ है स्वास्थ्य संकट पैदा हुआ जीवन संकट पैदा हुआ व्यापार बर्बाद हुआ शिक्षा चौपट हुई कुल मिलाकर बहुत बड़ी चोट पड़ी है जो दशकों तक भुलाई नहीं जा सकेगी | महामारी से बचाव के लिए जो उपाय बताए जा रहे हैं जो औषधियाँ दी जा रही हैं जो वैक्सीन आदि दी जा रही हैं हमें नहीं पता कि वे कितने कारगर हैं किंतु स्वास्थ्य संबंधी हर परिस्थिति में साथ देने वाले चिकित्सकों की बातों पर विश्वास करना हमारा कर्तव्यऔर मजबूरी दोनों ही है क्योंकि स्वास्थ्य संबंधी कभी भी कोई संकट काल उपस्थित होने पर हमें रोगमुक्त होने की आशा से जाना उन्हीं के पास पड़ता है चिकित्सा के नाम पर वे हमें रोगमुक्त करने के लिए संपूर्ण प्रयास करते हैं उनकी चिकित्सा का परिणाम कैसा भी हो | वे प्रयास कर सकते हैं करते हैं बाक़ी किसे स्वस्थ होना है किसे नहीं होना है किसे मृत्यु को प्राप्त होना है ये परिणाम उस व्यक्ति के अपने व्यक्तिगत समय या भाग्य के आधार पर प्राकृतिक रूप से सुनिश्चित होता है जहाँ किसी का बश नहीं चलता है |उसे प्रभावित करने की क्षमता मनुष्य में कुछ तो होती होगी किंतु कितनी होती है ये किसी को नहीं पता है |

      कुल मिलाकर जो होना था वह तो हो ही गया जो रहा बचा वो भी हो जाएगा !जो होगा वह सहने के लिए हम विवश हैं | हमें महामारी के बिषय में हमें कुछ पता ही नहीं है इसलिए हमारे पास उससे भयभीत होकर भाग खड़े होने का भी तो विकल्प नहीं है भागकर आखिर कहाँ जाएँगे | चिकित्सकीय अनुसंधानों की दृष्टि से अत्यंत उन्नत सफलता का शिखर चूम रहे राष्ट्र भी तो आज औरन की तरह ही हैरान परेशान और विवश हैं चिकित्सकों की भी वही विवशता है | हमारे प्रिय चिकित्सकों को भी  इस महामारी के संकट काल में हमारे लिए अपने जीवन दाँव पर लगाने पड़े हैं | सरकारों में सम्मिलित या प्रतिपक्षी राजनेताओं समाज सुधारकों  स्वयंसेवियों ने भी मानवता की रक्षा करने में कोई कोर कसर छोड़ी नहीं है यदि हम कुछ नकारात्मक संदेशों की ओर न जाएँ तो सबने समाज की बहुत सेवा की है | इसमें किसी प्रकार का संशय नहीं किया जाना चाहिए और न ही उससे कुछ हासिल होने वाला ही है | 

      महामारी के बिषय में  पूर्वानुमान लगाने में या महामारी को ठीक ठीक प्रकार से समझने में हमसे कहीं कोई चूक हुई है या नहीं इस बिषय में परिवार भावना से आत्ममंथन किया जाना चाहिए सभी के उपयोगी बिचार स्वीकार किए जाने चाहिए और चिंता इस बात की की जानी चाहिए कि महामारी जैसी परिस्थितियों को समझने में हम कितना सक्षम हैं अपनी वैज्ञानिक क्षमता के आधार पर महामारी से निपटने के लिए ऐसा और क्या किया जा सकता था जो हम नहीं कर पाए यदि वो किया जा सका होता तो क्या और अधिक बचाव हो सकता था  या हमारी वैज्ञानिक  क्षमताएँ इतनी ही थीं महामारी के वेग को कम करने में हम इससे अधिक कुछ कर ही नहीं सकते थे | यदि ऐसा भी है तो भी यह सोचा जाना चाहिए कि हम क्यों नहीं कर सकते थे हमारे पास ऐसी वैज्ञानिक क्षमता का अभाव है या हमसे कोई वैज्ञानिक चूक हुई है |हमें उस वास्तविक कारण को खोजना चाहिए जिसके कारण इतनी बड़ी  महामारी पर किसी भी प्रकार से अंकुश लगाने में हम पूरी तरह असफल रहे | महामारी काल में हमें अपनी एवं अपनों की जिंदगी ईश्वर के भरोसे छोड़नी पड़ी या फिर संपूर्ण रूप से महामारी के समक्ष आत्म समर्पण कर देना पड़ा | 

     ऐसे समय में हमारे उन वैज्ञानिक अनुसंधानों की क्या भूमिका थी जिन्हें जनता से लिए गए टैक्स के धन से सरकारें लगातार चलाया करती हैं जनता की इतनी बड़ी मुसीबत के समय में उन वैज्ञानिक अनुसंधानों से जनता को कितनी मदद पहुँचाई जा सकी है |यह सोचने का बिषय है |  

   महामारी यदि प्राकृतिक परिस्थितियों का आश्रय लेकर आयी थी तब तो प्रकृति का अनुसंधान लगातार चला करता है उपग्रह रडार या वायु प्रदूषण करने वाले न जाने कितने यंत्रों को कहाँ कहाँ तैनात कर रखा होगा उनसे इतनी बड़ी महामारी के वायु मंडल में व्याप्त होने के क्या कोई संकेत नहीं मिले | 

       इतनी बड़ी महामारी का पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पाया इतने सतर्क वैज्ञानिक अनुसंधानों के बाद भी किसी को कानों कान भनक नहीं लगी ! यदि यह महामारी किसी देश के द्वारा निर्मित थी तो हम भी तो प्रभुता संपन्न देश हैं हमारे पास भी तो एक से एक योग्य वैज्ञानिक हैं हमारे यहाँ भी वैज्ञानिक अनुसंधानों पर सरकारें पानी की तरह पैसे बहाती हैं | ऐसी परिस्थिति में किसी देश के द्वारा रची गई इतनी बड़ी हिंसक गतिविधि का अनुमान क्यों  नहीं  लगाया जा सका !उचित तो ये था कि अपनी वैज्ञानिक क्षमता के द्वारा अपना बचाव करने में हमें सक्षम होना चाहिए था दूसरी बात हमें अपना बचाव करते हुए उस देश को उसी भाषा में जवाब दिया जाना चाहिए था ताकि भविष्य में इस प्रकार की हरकत करने में वह डरता !महामारी जैसी घटनाऍं वास्तव में यदि किसी एक देश के अधीन हैं तब तो हमें हमेंशा उससे डर डर कर जीना होगा | हम अपने स्वस्थ रहने के लिए किसी दूसरे देश के अधीन इतना अधिक क्यों हैं ऐसे तो वो जब जिसे परेशान  करना चाहेगा कर सकता है |इसीलिए तो पूर्वज कह गए थे कि अपने सुख का स्विच हमें पडोसी के घर में कभी नहीं लगाना चाहिए और यदि लगाना ही पड़े तो यह सोचकर लगाया जाए कि इस सुख रूपी बल्व को ऑन ऑफ करने के लिए पडोसी स्वतंत्र है | हम उसे अपनी इच्छा के अनुशार चलने के लिए बाध्य नहीं कर सकते हैं | इसलिए महामारी आदि सभी स्वास्थ्य संबंधी संभावित परिस्थितियों से अपना बचाव करने में हमें अपने को ही सक्षम बनानेका लक्ष्य लेकर  हमें वैज्ञानिक अनुसंधान करने होंगे | 

                                                                          विनम्र निवेदन    

                महामारियों के बिषय में मैं पिछले लगभग तीस वर्षों से अनुसंधान कार्यकरता आ रहा हूँ मेरे जीवन में महामारियाँ कभी आयी नहीं थीं इसलिए इनका परीक्षण करने का कभी अवसर मुझे नहीं मिल सका था यही कारण है कि अपने अनुसंधान  के आधार पर महामारियों के बिषय में निश्चित तौर पर कुछ कह पाना मेरे लिए संभव न था | यद्यपि प्राकृतिक परिवर्तनों एवं मौसमी घटनाओं का अत्यधिक असंतुलन महामारियों की ओर इशारा करता आ रहा था | इसके आधार पर मुझे किसी महामारी के आने का अँदेशा सन 2008 से ही था उसके आधार पर मैं प्राकतिक परिस्थितियों पर लगातार नजर बनाए हुए था | सन 2016 से मैं इस निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचने लगा था कि प्राकृतिक वातावरण को अपने आगोश में लेती जा रही महामारी आगामी तीन से चार वर्षों में मानवजाति को अपनी चपेट में ले लेगी अपने अनुसंधान के आधार पर मेरा ऐसा अनुमान था किंतु अपनी बात को भारत सरकार तक पहुँचाने के लिए मैंने वे संपूर्ण प्रयास किए जहाँ तक मैं प्रयत्न पूर्वक पहुँच सकता था | जिम्मेदार अनुसंधानकर्ता होने के नाते मैं मीडिया के किसी माध्यम को महामारी के आगमनसंबंधी यह डरावनी बात बताकर मैं आत्मीय समाज को पहले से भयभीत नहीं करना चाहता था | इसलिए मेरा उद्देश्य था कि सरकार के जिम्मेदार लोगों से मिलकर अपनी बात उन तक पहुँचाऊँ जो इस बिषय में कुछ प्रभावी कदम उठा सकते हों | 

    इसी क्रम में सरकारी तंत्र यह कहकर टाल देता रहा कि तुम्हारी बातों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है मैं जो आधार दे भी रहा था उनकी जानकारी के अनुशार उन्हें वे वैज्ञानिक नहीं लग रहे थे ! क्योंकि वर्तमान वैज्ञानिक अनुसंधान प्रणाली की महामारी तक पहुँच संभव ही नहीं है | इसलिए सरकारी तौर पर जिसे विज्ञान के रूप में स्वीकार किया गया है उसमें महामारी को समझने की क्षमता नहीं है और जिस वैज्ञानिक अनुसंधानप्रणाली के द्वारा महामारी के रहस्य को समझा जा सकता है उसे वे विज्ञान नहीं मानते !उन्हीं के पास सरकारों ने ऐसे बिषयों पर निर्णय लेने के अधिकार दे रखे हैं फिर भी जिस किसी भी तरह से भारत सरकार के विभिन्न विभागों तक मैंने अपनी बात पहुँचाई |  कुछ सांसदों मंत्रियों मुख्यमंत्रियों तक पहुँच बनाकर अपनी बात पहुँचाने का प्रयास किया !डॉक से कुछ पत्र प्रधान मंत्री जी को भी भेजे किंतु वहाँ से भी कोई उत्तर नहीं आया ! भारत सरकार में प्रधानमंत्री जी तक अपनी बात पहुँचाने के लिए मैंने इंटरनेट के लगभग सभी माध्यमों का उपयोग किया किंतु वहाँ से भी कोई सदाशयता नहीं दिखाई गई और न ही मेल पर भेजे गए मेरे अनेकों पत्रों में से किसी एक का भी उत्तर देने की आवश्यकता ही समझी गई | 

    इसी बीच सन 2019 में चीन में महामारी का प्रवेश पहचाना जा चुका था जबकि अन्यदेशों में सामान्य लक्षणों के के कारण उनकी पहचान नहीं की जा  सकी थी वे इसे मनुष्यकृत मानकर चीन की ओर ही ताकते रहे तब तक उनके अपने अपने देश कोरोना संक्रमण की चपेट में आने लगे | महामारी के विषय में वैज्ञानिक अनुसंधानों की दृष्टि से संपूर्ण विश्व  की स्थिति इतनी बदतर थी कि महामारी के बिषय में विशेषज्ञ माने जाने वाले किसी को कुछ पता ही नहीं था !

     कुलमिलाकर अत्यंत उन्नत विज्ञान के इस युग में समाज जिन वैज्ञानिकों पर आँख मूँदकर भरोसा करता रहता है वही समाज महामारी जैसी आपदाओं पर लगातार अनुसंधान करने वाले अपने वैज्ञानिकों की ओर बड़ी आशा भारी दृष्टि से देख जा रहा था कि इतनी बड़ी महामारी के अकस्मात् आगमन पर हमारे वैज्ञानिक क्या  कहते हैं किंतु वैज्ञानिक समुदाय या तो मौन था या फिर जो बोल रहा था उसका आधार न तो वैज्ञानिक था और न ही तर्कसंगत था | वैज्ञानिक समुदाय महामारी के बिषय में कुछ भी बता पाने में असमर्थ था केवल अँधेले में तीर तुक्के लगाए जा रहे थे | असहाय जनता महामारी से अकेली जूझ रही थी |जनता अपने वैज्ञानिकों से जानना चाहती थी -      "महामारी प्रारंभ कैसे हुई कहाँ हुई क्यों हुई होने का कारण क्या था इसके लक्षण क्या हैं विस्तार कितना है प्रसार माध्यम क्या है विस्तार  कितना  है अंतरगम्यता कितनी है ये कम कब होगा समाप्त कब होगा संक्रमण से खतरा अधिक किस को है संक्रमण से बचाव करने के लिए क्या किया जाना चाहिए !महामारीजनित संक्रमण पर तापमान घटने एवं बढ़ने का  क्या प्रभाव पड़ेगा !वर्षाऋतु में इसका स्वरूप कैसा होगा ?वायु प्रदूषण बढ़ने का प्रभाव इस पर क्याअसर होगा ? महामारीसे बचने के लिए क्या खाना हितकर होगा कैसे रहना हितकर होगा !आदि प्रश्नों का उत्तर जाने की समाज  में जिज्ञासा थी किंतु ऐसे  प्रश्नों का प्रमाणित  उत्तर देने वाला दूर दूर तक कोई नहीं था |  महामारी के बिषय में केवल आशंकाएँ व्यक्त की जा रही थीं | एक से एक पढ़े लिखे लोग महामारी के बिषय में कुछ पता  पर भी विज्ञान के नाम पर तरह तरह की अफवाहें फैलाए जा रहे थे | 

       विशेषज्ञ लोगों को पता था कि महामारी का सामना करने लायक हमारे पास कुछ भी नहीं है पहले से कोई इंतजाम न होने के कारण इसमें अधिक संख्या में लोग मारे  जा सकते हैं इसलिए ऐसे समय में जनता की मदद करने लायक हम कुछ भी नहीं कर सकते हैं अब तो जो करना है वो महामारी ही करेगी | अब तो कुछ पता हो न हो किंतु इतनी बड़ी मुसीबत के समय में वैज्ञानिक कुछ बोलते एवं सरकारें कुछ करते दिखना चाहती थीं  | उस बोलने और करने से परिणाम क्या निकलेगा हमारी समझ में इसका  अनुमान किसी को नहीं था | 

                                                     महामारी और वैज्ञानिक अनुसंधान 

      विज्ञान में प्रकृति या शरीर की वर्तमान अवस्था को समझने की अत्यंत उत्तम क्षमता है वातावरण में  चुके किसी वायरस को पहचानने  क्षमता है उससे संक्रमित हुए रोगियों को चिन्हित करने की क्षमता है वायरस किस किस प्रकार से शरीर को नुक्सान पहुँचा रहा है उसका मनुष्य शरीर के किस किस अंग पर कितना अधिक दुष्प्रभाव पड़ रहा है वो देखने में कैसा है उसका वजन कितना है उसकी व्याप्ति कहाँ कहाँ तक है उसका प्रवेश वस्तुओं के अंदर है या नहीं केवल बाहरी भाग पर ही है पशुओं पक्षियों आदि समस्त जीव जंतुओं पर उसका प्रभाव किस किस प्रकार से पड़ता है| पेड़पौधे नदी कुऍं आदि उस महामारी के बिषाणु से कितने दुष्प्रभावित हैं|ऐसी और भी बहुत सारी  बातों के बिषय में परीक्षण पूर्वक पता लगाया जा सकता है किंतु यह सारी परीक्षण प्रक्रिया करने में इतना अधिक समय लग जाता है कि तब तक महामारी बिकराल रूप ले चुकी होती है दूसरी बात यह जानकारी इतनी मजबूत या स्थायी नहीं होती  है जिसे यह मान लिया जाए कि इस बिषय में ऐसा ही होगा क्योंकि संभव ऐसा भी  कि जो जानकारी अभी मिली है वो कल गलत निकल जाए क्योंकि उसका कोई मजबूत आधार नहीं होता है | जो अनुमान आशंकाएँ संभावनाएँ किसी मजबूत आधार पर आधारित न हों उन्हें जनता तक पहुँचाने से बचा जाना चाहिए क्योंकि उनसे जनता का तनाव बढ़ता है तनाव से वीपी शुगर जैसे रोग बढ़ने लगते हैं उससे हृदय रोग की संभावनाएँ बनने लगती हैं | ऐसी परिस्थिति में चिकित्सा कर रहे चिकित्सकों को कहना पड़ता है कि ऐसे रोग महामारी के कारण फैल रहे होते हैं जबकि इस प्रकार के रोग उन अफवाहों के कारण फैल रहे होते हैं जोअज्ञान के कारण फैलाई गई होती हैं | 

      आजकल तो ऐसा प्रायः सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं के समय में होने लगा है जिस जगह पर एक भूकंप आ जाता है वहाँ जो नुक्सान होना होता है वह तो हो ही जाता है उससे लोग डरे सहमे तो होते ही हैं उसी समय यदि यह कहा जाता है कि अभी ऐसा झटके और लगेंगे या यहाँ इससे बड़ा भूकंप कभी भी आ सकता है|इसलिएअपने अपने घरों से निकलकर लोग खुली जगहों पर आ जाएँ किंतु कब तक के लिए खुली जगहों पर आ जाएँ !यदि यही नहीं बताना है तो ऐसेवैज्ञानिक अनुसंधानों से लोगों को मदद कैसे पहुंचे जा सकती है क्योंकि यह तो उन्हें भी पता है कि भूकंप के बाद कई बार कुछ और झटके भी लगते देखे जाते हैं | 

    महानगरों में विशेषकर घनी बस्तियों में ऊँची ऊँची बिल्डिंगों के बीच जो पार्क होते हैं ऐसी परिस्थितियों के लिए तो वे भी सुरक्षित नहीं होते हैं | ऐसी परिस्थिति में छोटे छोटे बच्चों एवं परिवार के वृद्धों रोगी सदस्यों को लेकर अधिक समय के लिए घर छोड़ना संभव नहीं हो पाता है इसलिए उन झूठी अफवाहों के कारण उन्हें डर डर कर जीने के लिए विवश होना पड़ता है |

    ऐसा आजकल प्रायः सभीप्रकार की प्राकृतिकआपदाओं या महामारियों के समय में किया जाने लगा है |एक भूकंपआ जाए तो भूकंप  की अफवाहें आँधी तूफ़ान आवे तो उसकी अफवाहें  कि अभी और आँधी तूफ़ान आते रहेंगे अधिक वर्षा बाढ़ होने लगे तो उसके विषय की अफवाहें बार बार फैलाई जाने लगती हैं|जिनका कोई वैज्ञानिक आधार न होने के कारण केवल भय पैदा करने के उद्देश्य से ऐसा बोलना ठीक नहीं है | 

                         उदाहरण के लिए महामारी की तीसरी लहर को ही लें- 

    5-5-2021  को   कोरोना की तीसरी लहर के बिषय में सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के. विजय राघवन ने कहा कि कोरोना की तीसरी लहर भी आएगी। इसे कोई नहीं रोक सकता है। हालांकि, यह कब आएगी और यह कैसे इफेक्ट करेगी, अभी कहना मुश्किल है। 

 7-5-2021  को   कोरोना की तीसरी लहर के बिषय में सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के. विजय राघवन ने अपना बयान  बदला और कहा -" अगर हम मजबूत उपाय करते हैं तो ऐसा संभव है कि देश में अगली लहर कहीं ना आए !"

4-6-2021 को नीति आयोग के सदस्य वीके सारस्वत ने कहा -"कोविड-19 की तीसरी लहर अपरिहार्य है और इसके सितंबर-अक्टूबर से शुरू होने की आशंका है।" 

8 -6-2021 को स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान दिल्ली के एम्स अस्पताल के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया नेकहा -"ऐसा कोई सबूत नहीं है कि भविष्य में COVID-19 की लहर में बच्चे गंभीर रूप से संक्रमित होंगे।"(पहले  तो  कहा गया था कि तीसरी लहर में बच्चों को अधिक खतरा है )

 9-6-2021 को भारतीय प्रौद्यौगिकी संस्थान (आईआईटी) के विशेषज्ञों ने कहा - "भारत में भी तीसरी लहर ज्यादा बड़ी नहीं होगी। यह पहली और दूसरी लहर की तुलना में बहुत कमजोर हो सकती है।"

9-6-2021 को चिकित्सा विज्ञान क्षेत्र की प्रतिष्ठित पत्रिका लैनसेट की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बात के अब तक कोई ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं, जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि कोविड-19 महामारी की तीसरी संभावित लहर में बच्चों के गंभीर रूप से संक्रमित होने की आशंका है। लैंसेट कोविड-19 कमीशन इंडिया टास्क फोर्स ने भारत में 'बाल रोग कोविड-19' के विषय के अध्ययन के लिए देश के प्रमुख बाल रोग विशेषज्ञों के एक विशेषज्ञ समूह के साथ चर्चा करने के बाद यह रिपोर्ट तैयार की है। इसके लिए  तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के 10 अस्पतालों में इस दौरान भर्ती हुए 10 साल से कम उम्र के करीब 2600 बच्चों के क्लीनिकल आंकड़ों को एकत्र कर उसका विश्लेषण करने के बाद ही यह रिपोर्ट तैयार की गई है।इस में कहा गया है कि भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित बच्चों में उसी प्रकार के लक्षण पाए गए हैं, जैसा कि दुनिया के अन्य देशों में देखने को मिले हैं।

     ऐसी परिस्थिति में वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर महामारी के बिषय में 5 मई को जो अफवाहें बड़ी जोर शोर से शुरू की गई थीं उनका क्या कोई वैज्ञानिक आधार था !उसमें बच्चों को बहुत अधिक खतरा बताया गया था उसका वैज्ञानिक आधार क्या था !उनके बिषय में भी 8जून तक आते आते कह दिया गया कि बच्चों पर बिशेष खतरा नहीं है |यहाँ तक कि जिस महामारी को इतना डरावना बनाकर प्रस्तुत किया जाता रहा था उसी के बिषय में 9 जून को कह दिया गया -"भारत में भी तीसरी लहर ज्यादा बड़ी नहीं होगी। यह पहली और दूसरी लहर की तुलना में बहुत कमजोर हो सकती है।"

    कुल मिलाकर कुछ लोगों ने काल्पनिक रूप से 5 मई को महामारी की तीसरी लहर को जन्म देकर उससे निपटने के लिए सरकार एवं सरकारी तंत्र को काम में लगा दिया !सरकारें तीसरी लहर से निपटने के इंतजाम में लग गईं ऐसी अफवाहें फैलाकर जनता को चिंता में डाल दिया गया | महामारी की तीसरी लहर के बिषय में वैज्ञानिकों के द्वारा जो डर स्वयं प्रस्तुत किया गया था वह वैज्ञानिकों के द्वारा ही 9 जून को स्वयं समाप्त कर दिया गया !9 जून को तीसरी लहर में अधिक नुक्सान न होने की बात कह दी गई | ऐसा सभी प्राकृतिक आपदाओं और महामारियों के समय में होते देखा जाता है | वैज्ञानिक अनुसंधानों को करने करवाने का उद्देश्य ऐसा करना तो नहीं था ?

                           अगली महामारी के लिए तैयार रहना चाहिए 

   7 सितंबर 2020 को डब्ल्यूएचओ प्रमुख टेड्रोस अधनोम ग्रेबेसियस नेकहा कि दुनिया को अगली महामारी के लिए बेहतर तरीके से तैयार रहना चाहिए। अपनी बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं को और अधिक से अधिक मजबूत करें और उसमें निवेश करें।

     ऐसी बातों का अनुपालन करने का अर्थ यह है धनसंग्रह करके स्वास्थ्य सुविधाओं को और अधिक मजबूत किया जाए !कहने का अभिप्राय यह है अस्पतालों  में एडमिट करने के लिए बेड की संख्या बढ़ाई जाए !आवश्यक औषधियों इंजेक्शन आक्सीजन आदि की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए !मास्क धारण सैनिटाइजर से बार बार हाथ धोना दो गज दूरी बनाए रखना वैक्सीन लगवाना एवं इम्युनिटी बढ़ाने के लिए उचित खान पान रहन सहन आदि के लिए जन जागरण आदि प्रयास करने जैसी आवश्यक बातों का अनुपालन करना चाहिए | 

     विशेष बात यह है कि इनमें से जितनी भी बातें हैं उनमें अधिकाँश उपाय  एक बार महामारी से संक्रमित हो जाने के बाद के हैं |जो पहले के हैं उनका कितना कुछ असर होता है इसके बिषय में अभी तक कोई निश्चित निराकरण नहीं किया जा सका है  कि इनमें से किसका कितना प्रभाव होगा ,क्योंकि अभी तक जब जब कोरोना संक्रमण बढ़ा है  तब तब  ऐसे उपायों का ऐसा विशेष प्रभाव नहीं पड़ते देखा गया है जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि महामारी पर अंकुंश लगाने के लिए ये उपाय पर्याप्त मान कर बैठ जाया जाए  | 

   इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि महामारी के स्वभाव स्वरूप एवं संक्रमण के प्रकार विस्तार प्रसारमाध्यम अंतरगम्यता आदि की पहचान अच्छी तरह किए बिना उस पर अंकुश लगाने के लिए आवश्यक एवं प्रभावी उपायों औषधियों आदि के बिषय में कोई भी निर्णय कैसे लिया जा सकता है | 

     जहाँ तक बात अगली महामारी के लिए तैयार रहने की है तो ऐसे एक जैसे उपाय हमेंशा तो किए नहीं  जा सकते हैं  जब किसी महामारी के आने की संभावना होती है उसके कुछ पहले से ही ऐसे उपाय करना आवश्यक होता है | उसके लिए सबसे पहली तैयारी तो भावी महामारी के प्रारंभ होने के निश्चित समय का पूर्वानुमान लगाने के लिए करनी होगी | उसके बाद महामारी के आने से कुछ समय पहले से उसप्रकार के रोकथाम वाले प्रिवेंटिव उपाय अपनाने पड़ेंगे जो आने वाली महामारी में संक्रमित होने से रक्षा कर सकें |

    प्राकृतिकआपदाएँ हों या महामारियाँ इन्हें जितना नुक्सान करना होता है वह पहले झटके में ही कर देती हैं | इसलिए पहले झटके का पुर्वनुमा लगाना सबसे पहले आवश्यक होता है | महामारी का पूर्वानुमान लगाने के लिए अभी तक ऐसी कोई विधा विकसित नहीं की जा सकी है जिसके आधार पर भावी महामारी के बिषय में यही सटीक पूर्वानुमान लगाया जा सकता हो | सुना जा रहा है कि इस कमी को पूरा करने के लिए सरकार स्वास्थ्य के बिषय में पूर्वानुमान लगाने की दिशा में अनुसंधान किया जाएगा !

                                          प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली

      "पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय  द्वारा एक ऐसी विशिष्ट प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली विकसित की जा रही है, जिससे देश में किसी भी रोग के प्रकोप की संभावना का अनुमान लगाया जा सकेगा।इस योजना की एक सबसे बड़ी विशेषता यह है कि भारतीय  मौसम विज्ञान विभाग भी इस विशिष्ट प्रणाली की विकास अध्ययन और प्रक्रिया में शामिल है।पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा विकसित किया जा रहा मॉडल मौसम में आने वाले परिवर्तन और रोग की घटनाओं के बीच संबंध पर आधारित है।बताया जा रहा है कि ऐसे कई रोग हैं, जिनमें मौसम की स्थिति अहम भूमिका निभाती है।मलेरिया  जैसे रोग जिसमें विशेष तापमान और वर्षा पैटर्न के माध्यम से इसके प्रकोप के बारे में आसानी से पता लगाया जा सकता है।विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली एक ऐसी निगरानी प्रणाली है, जो त्वरित सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप को संभव बनाने के लिये ऐसे रोगों से संबंधित सूचना एकत्र करती है, जो भविष्य में महामारी का रूप ले सकते हैं | विश्लेषण के मुताबिक, मौसम में अस्थायी और स्थानिक परिवर्तन, उदाहरण के लिये अल-नीनो के प्रभाव के रूप में तापमान और वर्षा में अल्पकालिक वृद्धि, मलेरिया के प्रकोप का कारण बन सकता है।जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनलने अपने एक अध्ययन में कहा था कि जलवायु परिवर्तन के कारण डायरिया संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। जलवायु परिवर्तन, जो कि बाढ़ और सूखे जैसी चरम घटनाओं में वृद्धि के लिये उत्तरदायी है, विकासशील देशों में अत्यधिक चिंता का विषय है।यद्यपि कोरोना वायरस महामारी के प्रसार को प्रभावित करने वाले मौसम के पैटर्न पर कई अध्ययन और विश्लेषण किये गए हैं, किंतु अभी तक शोधकर्त्ता कोरोना वायरस महामारी और मौसम के बीच एक निश्चित संबंध स्थापित करने में सफल नहीं हो पाए हैं।                                                                                                                                                                                                                                       - प्रकाशित 22 -12-2020 

     यदि सरकार ऐसी कोई प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली बनाने जा रही है तो यह सरकार के द्वारा सही दिशा में दूर से उठाया गया एक कदम है | इसकी सबसे बड़ी अच्छाई यह है कि इस प्रकार से अनुसंधान में मौसम विज्ञान विभाग  के वैज्ञानिकों को भी सम्मिलित किया जाएगा | हमें भी अपने  अनुशार ऐसा लगता है कि महामारी जैसे प्राकृतिक रोग मौसम संबंधी घटनाओं से प्रभावित   होते  हैं | इसलिए  सरकार के द्वारा इस प्रकार की कोई योजना बनाई जा रही है यह सुनकर हमें भी अच्छा लगा |

      मुझे लगता है कि इसप्रकार की स्वास्थ्य योजना में मौसमसंबंधी अनुसंधानों की बड़ी भूमिका होने जा  रही है क्योंकि इस योजना का मुख्य आधार  मौसम संबंधी अनुसंधान ही हैं  किंतु इसमें प्रकृति के स्वभाव को समझने वाले वास्तविक मौसम वैज्ञानिक चाहिए  जो प्रकृति का स्वभाव  प्रकृतिक लक्षणों का  करके मौसम संबंधी घटनाओं के चिन्ह किसी भी रूप में प्रकट होने से पूर्व वर्षा आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान लगाने में सक्षम हों ऐसे स्वास्थ्य संबंधी अध्ययनों में प्रकृति के स्वभाव को समझने वाले वैज्ञानिक महत्त्वपूर्ण भूमिका  अदा सकते हैं | इसके अतिरिक्त उपग्रहों रडारों से बादलों या आँधी तूफ़ानों  को एक स्थान पर देखकर उनकी दिशा और गति के हिसाब से उनके दूसरे स्थान पर पहुँचने  का अंदाजा लगाने वाले  वैज्ञानिकों की ऐसे अध्ययनों  में कोई भूमिका इस लिए नहीं है क्योंकि उपग्रहों रडारों के माध्यम से बादलों या आँधी तूफ़ानों  की जासूसी करने में विज्ञान है ही कहाँ यह तो आकाशस्थ कैमरों के आधार पर लगाए जाने वाले तीर तुक्के मात्र हैं | 
   | इसलिए ऐसी स्वास्थ्य प्रणाली को सफल बनाने के लिए  सरकार को कुछ वास्तविक मौसम वैज्ञानिक खोजने होंगे |जो प्रकृति के स्वभाव को समझने में सक्षम हों अन्यथा  यदि प्रकृति के स्वभाव को समझना इतना ही आसान होता तो इस प्रकार की परिस्थितियाँ पैदा ही न हुई होतीं  और अब तक महामारी के बिषय में पूर्वानुमान लगा लिया गया होता |   
   महामारी के बिषय में पूर्वानुमान लगाने से पहले मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं का सही सही पूर्वानुमान लगाना आवश्यक है उन्हीं मौसमी घटनाओं  के आधार पर भावी  महामारियों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |        

वास्तविक मौसम वैज्ञानिकों के अभाव में ही नहीं लगाए जा सके थे इन घटनाओं के पूर्वानुमान !

      2005 में मुंबई में भीषण बाढ़ आई थी !16 जून 2013 को केदारनाथ जी में भयंकर सैलाव आया उसमें हजारों लोग मारे गए !16 जून, 2013 को उत्तराखंड में आई भीषण जलप्रलय की। लाखों श्रद्धालुओं की आस्था के प्रतीक तीर्थस्थल केदारनाथ और इसके आसपास भारी बारिश, बाढ़ और पहाड़ टूटने से सबकुछ तबाह हो गया और हजारों लोग मौत के आगोश में समा गए थे।इनमें से किसी घटना के बिषय में मौसमवैज्ञानिकों के द्वारा कोई पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था |
       नवंबर सन्‌ 2015 में चैन्नई में भीषण बाढ़  आई थी !
सितंबर 2014 में मूसलाधार मानसूनी वर्षा के कारण भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर ने अर्ध शताब्दी की सबसे भयानक बाढ़ आई। यह केवल जम्मू और कश्मीर तक ही सीमित नहीं थी अपितु पाकिस्तान नियंत्रण वाले आज़ाद कश्मीर, गिलगित-बल्तिस्तान व पंजाब प्रान्तों में भी इसका व्यापक असर दिखा। 8 सितंबर 2014 तक, भारत में लगभग 200 लोगों तथा पाकिस्तान में 190 लोगों की मृत्यु हो चुकी है।450 गाँव जल समाधि ले चुके थे ।इनमें से किसी भी बाढ़ के बिषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था |

      सितंबर 2019 में बिहार में आई भीषण बाढ़ के बिषय में कोई पूर्वानुमान बताने में मौसम विभाग असफल रहा था !मौसम पूर्वानुमान बताने वाले लोग कुछ बता ही नहीं पा  रहे थे और जो बता रहे थे वो गलत होता जा रहा था तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने पत्रकारों से बात करते हुए स्वीकार किया कि मौसम विभाग वाले लोग कुछ बता ही नहीं पा  रहे हैं वर्षा के बिषय में वे सुबह कुछ कहते हैं दोपहर में कुछ दूसरा कहते हैं और शाम होते होते कुछ और कहने लगते हैं | पत्रकारों ने पूछा तो इस बाढ़ के बिषय में आप जनता से क्या कहना चाहेंगे तो नीतीश जी ने कहा कि मेरा मानना है कि हथिया नक्षत्र के कारण यह अधिक बारिश हो रही है |स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे जी ने भी पत्रकारों के पूछने पर यही कहा कि हथिया नक्षत्र के कारण ही  अधिक बारिश हो रही है | 

       28 जून 2015 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी की वाराणसी में सभा होने वाली थी किंतु भीषण वर्षा के कारण उस सभा को रद्द करना पड़ा | इसके बाद मौसम विभाग से पूर्वानुमान पूछकर 16 जुलाई 2015 को वही सभा वर्षा से निपटने की अधिक तैयारियों के साथ निश्चित की गई सरकारी मौसम भविष्य वक्ताओं से भी सलाह ली गई थी उन्होंने कहा था  कि 16 जुलाई को वर्षा की संभावना नहीं है  किंतु मौसम विभाग की भविष्यवाणी गलत हुई और उस दिन इतनी भयंकर बारिश हुई कि प्रधान मंत्री जी की वह सभा भी रद्द हुई !दोनों सभाओं के आयोजन पर खर्च की गई भारी भरकम धनराशि मौसम विभाग की भविष्यवाणी गलत होने के कारण निरर्थक चली गई |

    अप्रैल मई जून आदि के महीनों में गर्मी तो हर वर्ष होती है किंतु  2016 के अप्रैल मई में आधे भारत में गरमी से संबंधित अचानक अलग प्रकार की घटनाएँ घटित होने लगीं ! जमीन के अंदर का जलस्तर तेजी से नीचे जाने लगा बहुत इलाके पीने के पानी के लिए तरसने लगे | पानी की कमी के कारण ही पहली बार पानी भरकर लातूर में एक ट्रेन भेजी गई थी |गर्मी का असर केवल जमीन के अंदर ही नहीं था अपितु वातावरण में इतनी अधिक ज्वलन शीलता विद्यमान थी कि आग लगने की घटनाएँ बहुत अधिक घट रही थीं यह स्थिति उत्तराखंड के जंगलों में तो 2 फरवरी 2016 से ही प्रारंभ हो गई थी क्रमशः धीरे धीरे बढ़ती चली जा रही थी 10 अप्रैल 2016 के बाद ऐसी घटनाओं में बहुत तेजी आ गई थी ! ऐसा होने के पीछे का कारण किसी को समझ में नहीं आ रहा था |इस वर्ष आग लगने की घटनाएँ इतनी अधिक घटित हो रही थीं इस बिषय में संबंधित वैज्ञानिक कुछ कहने की स्थिति में नहीं थे उन्हें खुद कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था | अंत में आग लगने की घटनाओं से हैरान परेशान होकर 28 अप्रैल 2016 को बिहार सरकार के राज्य आपदा प्रबंधन विभाग ने ग्रामीण इलाकों में सुबह नौ बजे से शाम छह बजे तक खाना न पकाने की सलाह दी थी . इतना ही नहीं अपितु इस बाबत जारी एडवाइजरी में इस दौरान पूजा करने, हवन करने, गेहूँ  का भूसा और डंठल जलाने पर भी पूरी तरह रोक लगा दी गई थी | इस बिषय में जब वैज्ञानिकों से पूछा गया कि इस वर्ष ऐसा क्यों हो रहा है और यदि ऐसा होना ही था तो इसका पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाया जा सका ?तो उन्होंने कहा कि इस बिषय में हमें स्वयं ही कुछ नहीं पता है कि इस वर्षा ऐसा क्यों हुआ !ये तो रिसर्च का बिषय है इसलिए ऐसे बिषयों पर अनुसंधान की आवश्यकता है | 

        इसी समय में 13 अप्रैल 2016 से असम आदि पूर्वोत्तरीय प्रदेशों में भीषण वर्षा और बाढ़ का भयावह दृश्य था त्राहि त्राहि मची हुई थी |यह वर्षा और बाढ़ का तांडव 60 दिनों से अधिक समय तक लगातार चलता रहा था |

    सन 2016 के अप्रैल मई में घटित हुई परस्पर विरोधी इन दोनों घटनाओं के बिषय में वैज्ञानिकों से पत्रकारों ने पूछा कि इन दोनों घटनाओं के बिषय में पहले से कोई पूर्वानुमान क्यों नहीं बताया जा सका था | इस पर वैज्ञानिकों ने कहा कि असम आदि पूर्वोत्तरीय प्रदेशों में हो रही भीषण वर्षा और बाढ़ का कारण जलवायु परिवर्तन है तथा बिहार उत्तर प्रदेश राजस्थान मध्यप्रदेश महाराष्ट्र आदि में अधिक गर्मी एवं आग लगने की अधिक घटनाओं का कारण ग्लोबल वार्मिंग है | जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण घटित होने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता | 

     इन्हीं बिषयों में काफी पहले मेरे द्वारा की हुई भविष्यवाणियाँ सही होती जा रही थीं उसके प्रमाण आज भी इंटरनेट पर विद्यमान हैं इसी बिषय में चर्चा करने के लिए मैं मौसम विज्ञान विभाग में गया था वहाँ एक मौसम वैज्ञानिक महोदय से मिलाया गया वहाँ उनके पास एक पत्रकार महोदय बैठे इन्हीं बिषयों पर चर्चा कर रहे थे उसी क्रम में पत्रकार महोदय ने उन वैज्ञानिक महोदय से निजी चर्चा में पूछा कि यह कैसे पता लगे कि मौसम संबंधी कौन सी घटना जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण घटित हो रही है और कौन सी घटना अपने आप से घटित हो रही है  जिसके बिषय में पूर्वानुमान के सही होने की आशा की जाए !इस पर हँसते हुए उन्होंने कहा कि सीधी सी बात है हमारे विभाग के द्वारा लगाया गया जो पूर्वानुमान सही निकले उसे मौसम संबंधी सामान्य घटना मान लीजिए और हमारे विभाग के द्वारा लगाया गया जो पूर्वानुमान सही न निकले उसे जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण घटित होने वाली घटना मान लेना चाहिए | दोनों लोग हँसने लगे चर्चा समाप्त हुई और मैं भी चला आया !

     2018 के अप्रैल मई में हिंसक आँधी तूफानों की घटनाएँ बार बार घटित हो रही थीं 2 मई की रात्रि में आए तूफ़ान से काफी जन धन हानि हुई थी | ऐसे तूफानों के बिषय में किसी को कुछ पता ही नहीं था मौसम वैज्ञानिकों को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि ऐसे बिषयों में क्या बोला जाए !इनके बिषय में कभी कोई पूर्वानुमान बताया ही नहीं जा पा रहा था वैज्ञानिक लोगों ने भविष्यवाणियाँ करने के लिए कुछ तीर तुक्के लगाए भी किंतु वे पूरी तरह से गलत निकलते चले गए !यहाँ तक कि 7 और 8 मई 2018 को उन्होंने दिल्ली और उसके आस पास भीषण तूफ़ान की भविष्यवाणी बड़े जोर शोर से कर दी यह सुन कर कुछ प्रदेशों की भयभीत सरकारों ने अपने अपने प्रदेशों में स्कूल कालेज बंद कर दिए किंतु उन दो दिनों में हवा का एक झोंका भी नहीं आया !बताया जाता है कि इस बिषय को बाद में पीएमओ ने संज्ञान भी लिया था | इसी घटना के बिषय में एक निजी टीवी चैनल के साथ परिचर्चा में मौसम विज्ञान विभाग के निदेशक महोदय डॉ.के जे रमेश जी से एक पत्रकार महोदय ने प्रश्न कर दिया कि क्या कारण है कि आपका विभाग इतने भयंकर आँधी तूफानों के बिषय में कोई पूर्वानुमान नहीं लगा सका और जो लगाए भी गए वे गलत निकलते चले गए !इस पर डॉ.के जे रमेश जी ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण ऐसे तूफ़ान आ रहे हैं इसीलिए इनके बिषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पा रहा है और अचानक आ जा रहे हैं आँधी तूफ़ान पता ही नहीं लग पा रहा है | अगले दिन कई अखवारों में हेडिंग छपी थी -"चुपके चुपके से आते हैं चक्रवात !"

       केरल में जब भीषण बाढ़ आई तो उसमें भी मौसम विज्ञान विभाग की ऐसी ही ढुलमुल भूमिका रही !3 अगस्त 2018 को मौसम विज्ञान विभाग की ओर से जो प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई उसमें भविष्यवाणी की गई थी कि अगस्त और सितंबर महीने में दक्षिण भारत में सामान्य वर्षा की संभावना है !जबकि 5 अगस्त से ही भीषण बारिश प्रारंभ हो गई थी जिससे केरल कर्नाटक आदि दक्षिण भारत में त्राहि त्राहि माही हुई थी | जिसके बिषय में केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री जी ने स्वीकार भी किया कि यदि मौसम विभाग की भविष्यवाणी झूठी न निकली होती तो बाढ़ से जनता इतनी अधिक पीड़ित न हुई होती | इसके बिषय में मौसम निदेशक डॉ.के. जे. रमेश से एक टीवी चैनल ने पूछा तो उन्होंने कहा कि केरल की बारिश अप्रत्याशित थी इसलिए इसके बिषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था | इसका कारण जलवायु परिवर्तन है जबकि दक्षिण भारत में 2018 के अगस्त महीने में हुई इसी भीषण वर्षा के बिषय में 2018 के अगस्त महीने का मौसम पूर्वानुमान मैंने मौसम विभाग के निदेशक डॉ.के जे रमेश जी की मेल पर 29 जुलाई 2018 को ही भेज दिया था !उसमें लिखा है कि अगस्त की एक से ग्यारह तारीख के बीच इतनी भीषण वर्षा दक्षिण भारत में होगी कि बीते कुछ दशकों का रिकार्ड टूटेगा !वर्षा का स्वरूप इतना अधिक डरावना होगा !"यह हमारी मेल पर अभी भी पड़ा है जिसे उन्होंने स्वीकार भी किया था कि मेरा वर्षा पूर्वानुमान सही निकला है |
     सन 2019 \2020 की सर्दियों के बिषय में  मौसम विभाग की पुणे इकाई ने सामान्य से कम सर्दी का अनुमान व्यक्त किया था लेकिन सर्दी ने तो सौ साल के रिकार्ड तोड़ दिये। इस पर पत्रकारों ने मौसम विभाग की उत्तर क्षेत्रीय पूर्वानुमान इकाई के प्रमुख डॉ. कुलदीप श्रीवास्तव से पूछा कि सर्दी की दस्तक से पहले मौसम विभाग ने कहा था कि इस साल सर्दी सामान्य से कम रहेगी,लेकिन सर्दी ने तो सौ साल के रिकार्ड तोड़ दिये। पहले मानसून और अब सर्दी का पूर्वानुमान भी गलत साबित हुआ क्यों ? 

     इस प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि कड़ाके की ठंड मौसम की चरम गतिविधि का नतीजा है  जिसका सटीक पूर्वानुमान लगाना संभव ही नहीं है |भारत जैसे ऊष्ण कटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्र में मौसम के इस तरह के अनपेक्षित और अप्रत्याशित रुझान का सटीक पूर्वानुमान लगाने की तकनीक दुनिया में कहीं भी नहीं है।सर्दी ही नहीं, अतिवृष्टि और भीषण गर्मी जैसी मौसम की चरम गतिविधियों का दीर्घकालिक अनुमान संभव ही नहीं है।मौसम की चरम गतिविधियों के दौरान, मौसम का मिजाज तेजी से बदलने की प्रवृत्ति प्रभावी होने के कारण अल्पकालिक अनुमान भी मुश्किल से ही सटीक साबित होता है| मौसम के तेजी से बदलते मिजाज को देखते हुये चरम गतिविधियों का दौर भविष्य में और अधिक तेजी से देखने को मिल सकता है। इनकी आवृत्ति में भी तेजी देखी जा सकती है। ऐसे में बारिश के अनुकूल परिस्थिति बनने पर मूसलाधार बारिश होना या गर्मी का वातावरण तैयार होने पर अचानक तापमान में उछाल या गिरावट जैसी घटनायें भविष्य में बढ़ सकती हैं। मौसम संबंधी शोध और अनुभव से स्पष्ट है कि इस तरह की घटनाओं का समय रहते पूर्वानुमान लगाना भी मुश्किल है। ऐसे में पूर्वानुमान के गलत साबित होने की संभावना भी रहेगी। 

      इसके बाद एक बार फिर गलत हुई मौसम वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी !2020-21 में  लानीना का प्रभाव बताकर शीतऋतु में अधिक सर्दी होने की भविष्यवाणी की गई थी किंतु अबकी  बार तो जनवरी से ही तापमान बढ़ने लग गया था ऐसा होने के पीछे का कारण जब उन भविष्यवक्ताओं से पूछा गया तब उन्होंने वही जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिंग को कारण बता दिया था | 

     भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुए लगभग 145 वर्ष बीत चुके हैं अभी तक सही एवं सटीक निकलने वाली मानसून आने और जाने की तारीखें नहीं तय की जा सकी हैं जो तय की भी गई थीं वे अधिकाँश वर्षों में  हो जाती रही हैं |इसीलिए मानसून आने और जाने के बिषय में सही पूर्वानुमान लगाने की वास्तविक वैज्ञानिक प्रक्रिया खोजने की बजाए अब मानसून आने और जाने की तारीखों में ही बदलाव किया जा रहा है | इस बदलाव का कोई मजबूत वैज्ञानिक आधार नहीं है इसलिए ये तारीखें भी गलत होंगी ही कुछ समय तक ये तारीखें भी गलत निकलती रहेंगी तब तारीखें ही फिर बदल दी जाएँगी | मौसम विज्ञान के क्षेत्र में यह या तो अनुसंधान की क्षमता का अभाव है या फिर विज्ञान भावना के साथ यह खुला खिलवाड़ है | 

      वर्षा ऋतु के चार महीनों में से किस महीने में वर्षा कैसी होगी कृषि कार्यों के लिए यह बहुत उपयोगी एवं आवश्यक होता है किंतु इसी उद्देश्य से की गई भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना को लगभग 145 वर्ष बीत चुके हैं किंतु बीते 145 वर्षों में सही सही दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान किसानों को उपलब्ध नहीं करवाया जा सका है | ये चिंता की बात होनी चाहिए | किसान मार्च अप्रैल के महीने में एक फसल पूरी हो जाने के बाद जुलाई अगस्त में बोई जाने वाली दूसरी फसल के बिषय में योजना बनाते हैं | वर्षाऋतु में जिसप्रकार की वर्षा होने की संभावना होती है उसी के अनुसार फसलों का चयन किया जाता है उसी के हिसाब से ऊँचे नीचे आदि खेतों के हिसाब से इस वर्ष में किस प्रकार की फसल बोना हितकर होगा |इसके साथ ही वर्षाऋतु में जिसप्रकार की वर्षा होने की संभावना होती है उसी के अनुसार ही वे एक वर्ष के लिए आनाज भूसा आदि का संरक्षण करते हैं बाक़ी मार्च अप्रैल के महीने में ही फसल पूरी हो जाने पर खर्चे के लिए बेच लिया करते हैं | कृषिक्षेत्र के अतिरिक्त सैन्य आदि अन्य क्षेत्रों में भी दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है | 

          अल्पावधि मौसम पूर्वानुमान की यह स्थिति है कि इसमें वैज्ञानिक अनुसंधान भावना का कोई विशेष योगदान नहीं होता है इसमें तो रडारों एवं उपग्रहों के सहयोग सेजो घटना एक जगह घटित होते देख ली जाती है उसकी गति और दिशा के हिसाब से अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये इतने दिन में उस देश प्रदेश या जिले आदि में पहुँच सकती है | बीच में हवाओं का रुख बदल जाने से लगाया हुआ अंदाजा गलत हो जाता है | वैसे भी जो बादल जिधर जिधर जाते हैं सभी जगह तो नहीं बरसते हैं कुछ जगहों पर बरसकर वापस लौट जाते हैं | तूफानों चक्रवातों में ऐसे कैमरों से मिली तस्बीरें कई बार काम आ जाती हैं जिनसे कुछ तीर तुक्के सही फिट भी हो जाते हैं इस कैमरा जुगाड़ से कई बार निकट भविष्य में होने वाली जनधन की हानि से बचाव हो जाता है ,क्योंकि इनमें बादलों की तरह बिना बरसे लौटने की गुंजाइस बहुत कम रहती है ये जहाँ पहुँचते हैं वहाँ नुक्सान करते ही हैं | 

     हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह मात्र एक जुगाड़ है इसमें कोई विज्ञान नहीं है जो महामारियों से संबंधित अनुसंधानों में किसी सहयोग लायक हो | जुगाड़ तो केवल जुगाड़ ही होता है | किसी गाँव के एक छोर पर एक जंगल था उस जंगल से निकलकर हाथियों का झुण्ड कई बार गाँव में घुस आता था और काफी नुक्सान कर जाया करता था इससे परेशान होकर गाँव वालों ने कैमरे लगाने का जुगाड़ सोचा गाँव के जिस ओर जंगल था उस ओर कैमरे लगा दिए फिर जब हाथियों का झुण्ड गाँव की ओर आता दिखाई पड़ता था तो गाँव वाले इकट्ठे होकर हाथियों को जंगल में ही खदेड़ आते थे जिससे गाँव वालों का हाथियों से होने वाले नुक्सान से बचाव हो जाता था यह सह है किंतु यह एक जुगाड़ मात्र है इसे हाथीविज्ञान नहीं कहा जा सकता है | 

     वर्षा संबंधी अल्पावधि भविष्यवाणियाँ भी गलत होती हैं ऐसा होने पर नुक्सान भी होता है | कई बार कहीं वर्षा होना जब शुरू हो जाता है उसके साथ मौसम भविष्य वक्ता लोग भी शुरू हो जाते हैं जैसे जैसे वर्षा होती चली जाती है वैसे वैसे  वे भी दो दो दिन बढ़ाते चले जाते हैं अभी दो दिन और बरसेगा लोग समझते हैं दो दिन बाद बंद हो जाएगा फिर कह दिया जाता है अभी तीन दिन और बरसेगा लोग सोचते हैं कि चलो तीन दिन और बरसेगा काम चला लेते हैं तो घर में पानी भर जाने के बाद भी लोग छत पर काम चलाने के लिए रह जाते हैं उसके बाद भी पानी बरसते रहता है तो ये कहते हैं तीन दिन और बरसेगा तब तक पानी छत के करीब आ चुका होता है ऐसी परिस्थिति में तब लोग घर छोड़कर कहीं जाने लायक भी नहीं रह जाते हैं और न छत पर ही रहने की परिस्थिति रह पाती है ! लोगों का सामान भी सड़ जाता है और खुद भी हादसे के शिकार होते हैं ! ऐसे तीरतुक्कों को मौसम पूर्वानुमान कैसे कहा जा सकता है और इसमें विज्ञान कहाँ होता  है ! 2015 के नवंबर महीने में मद्रास में हुई भीषण बारिश और बाढ़ का कारण कुछ ऐसा ही होना था | प्रशांत महासागर से चली बादलों की श्रंखला जिस और जिस गति से जाती है उस गति से उस दिशा के हिसाब से अनुमान लगा लिया जाता है किंतु तब तक जितने बादल दिखाई पड़ रहे होते हैं उतने के बिषय में ही अंदाजा लगाया जा सकता है तीन दिन बाद भी यदि बादलों की श्रृंखला टूटती नहीं है तो तीन दिन और बरसेगा उसके बाद भी बादल दिखाई पड़ते रहें तो तीन दिन और बरसेगा ऐसे अंदाजे लगाए जाते रहते हैं | ऐसे अनुमान यदि मौसम विज्ञान के आधार पर लगाए जा रहे होते तो बिना बादलों को देखे ही पहले से पता होता कि बादल कितने दिनों तक बरस सकते हैं | ऐसा विज्ञान महामारियों से संबंधित अनुसंधानों में मदद कर सकता है किंतु ऐसा करने की योग्यता रखने वाले मौसम वैज्ञानिक हैं कहाँ जिन की योग्यता पर भरोसा करके महामारी से संबंधित अनुसंधान प्रारंभ किए जा सकते हैं |

                        मौसम संबंधी अनुसंधानों की असफलताओं से निराशा होनी स्वाभाविक ही है
     जनता को भी अब लगने लगा है कि वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ताओं को महामारियों के बिषय में अनुसंधान करने के लिए चार सौ वर्ष तो दिए जा चुके आखिर कितना समय और दिया जाना चाहिए तब वे महामारियों के बिषय में किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुँच सकेंगे |जनता को भी वैज्ञानिकों की ऐसी मजबूरियाँ पता लगनी चाहिए | 
    महामारी सन् 1720, फिर 1820, इसके बाद 1920 और अब 2020 में आई है | कुलमिलाकर पिछले चार सौ वर्षों से यह देखा जा रहा है कि महामारी हर  सौ वर्ष बाद आती रही है किंतु महामारियों का पूर्वानुमान लगाने की दृष्टि से जितने हम सन् 1720 में असमर्थ थे उतने ही असमर्थ 2020 में भी हैं | आखिर इन चार सौ वर्षों से जितने भी अनुसंधान  किए गए इससे उस जनता को क्या मिला जिससे टैक्स लेकर सरकारें ऐसे अनुसंधानों पर धन खर्च किया करती हैं |सच्चाई यही है कि सन् 1720 में महामारी से जनता अकेले जूझी होगी आज भी जनता ही जूझ रही है उसे ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों से कोई मदद नहीं मिली जो पिछले चार सौ वर्षों से निरर्थक ही चलाए जाते रहे हैं | महामारी से संबंधित पूर्वानुमानों के अनुसंधान कितने कारगर हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है | 
   इसी प्रकार से ऐसे मौसमविभागकी स्थापना हुए 144 वर्ष हो गए उस समय पश्चिम बंगाल में एक बड़ा हिंसक तूफ़ान आया था और अभी सन 2018 में पूर्वोत्तर भारत में जितने भी बड़े हिंसक तूफ़ान आए न तब पूर्वानुमान लगाया जा सका और न अब !उससे जनता तब भी अकेले जूझी होगी आज भी जनता ही जूझ रही है उसे ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों से कोई मदद नहीं मिली जो पिछले एक सौ चवालीस वर्षों से चलाए जाते रहे हैं |मौसम से संबंधित संबंधित पूर्वानुमानों के अनुसंधान कितने कारगर हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है |ये हमारे मौसम संबंधी वैज्ञानिक  अनुसंधानों की 144 वर्षों की उपलब्धि है | 
      भारत सरकार की और से अब स्वास्थ्य  सुरक्षा प्रणाली के तहत महामारियों के बिषय में पूर्वानुमान लगाए जाने पर बिचार किया जा रहा है इसमें IMDको भी सम्मिलित किया जा रहा है किन्तु जब उसकी अपनी हालत इतनी पतली है तब वह स्वास्थ्य  सुरक्षा प्रणाली को सफल बनाने में कैसे मददगार सिद्ध होगा !
     प्राकृतिक क्षेत्र में अक्सर यह अनुभव किया गया है कि केवल कोरोना जैसी भयंकर महामारी ही नहीं अपितु भूकंप वर्षा बाढ़ सूखा आँधी तूफान च्रकवात ,बज्रपात या फिर बढ़ता वायु प्रदूषण का बढ़ता स्तर आदि जितने भी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं ने जब जब विकराल  स्वरूप धारण किया है तब तब भयभीत जनता बड़ी आशा से मदद पाने की इच्छा लेकर अपने वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ताओं की ओर देखती है किंतु दुर्भाग्य से महामारी प्राकृतिक आपदाओं जैसे कठिन समय में जब जीवन के लिए विज्ञान की जब सबसे अधिक आवश्यकता होती है  तब वही अनुसंधान धोखा दे जाते हैं |
     ऐसे कठिन बिषयों का वैज्ञानिक अनुसंधान करने में सरकारों के द्वारा लगाए गए लोगों से जब उनकी असफलता का कारण पूछा जाता है तो वो इधर उधर की बातें करने लगते हैं या कुछ ऐसे ऊटपटाँग आंकड़े पेश करके मीडिया को भटका देते हैं जिनका सच्चाई से कोई लेना देना ही नहीं होता है मीडिया उन कल्पित बातों को विज्ञान बता बता कर जनता को भ्रमित किया करता है | 
     इसी शोर शराबे के बीच वैज्ञानिक एक बार धीरे से कह देते हैं कि मैंने तो सरकार को पहले ही बताया था किंतु सरकार ने सुना ही नहीं ! ऐसी बातें सुनते ही विपक्ष की बाछें खिल जाती हैं यहीं से राजनीति शुरू हो जाती है विपक्ष ऐसी वैज्ञानिक विफलताओं के लिए सरकारों को कटघरे में खड़ा करने लगता है सरकारें सफाई देने लगती हैं लोग मुख्य मुद्दे से भटक जाया करते  हैं सत्तापक्ष और विपक्ष के वाद विवाद में मीडिया उलझ जाया करता है आम जनता मीडिया के मुद्दों में रूचि लेने लगती है | उधर महामारी या प्राकृतिक आपदा से जूझ रही जनता बिल्कुल अकेली पड़ चुकी होती है उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं होता है | 
    विगत एक दो दशकों में जितनी भी प्राकृतिक आपदाएँ घटित हुईं उनमें से एक आध को छोड़कर अधिकाँश के बिषय में किसी भी प्रकार का कोई पूर्वानुमान वैज्ञानिकों के द्वारा नहीं बताया जा सका था और बाद में कह दिया जाता है कि मैंने तो पहले ही बता दिया था सरकार ने सुना ही नहीं | केदारनाथ ,चेन्नई ,केरल और कश्मीर आदि की बाढ़ में यही हुआ बाद में अपनी आलोचना से आहत होकर उन उन प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों ने मुख खोलने की हिम्मत की और सच्चाई जनता के सामने सच्चाई रखी कि इस घटना के बिषय में वैज्ञानिकों के द्वारा कोई पूर्वानुमान हमें पहले से नहीं बताया गया था | 
    कोरोना जैसी महामारी के बिषय में कोई पूर्वानुमान पहले से तो बताया ही नहीं जा सका और जब जब जो जो कुछ बताया जाता रहा वो सब कुछ गलत निकल जाता रहा उसे ढकने के लिए एक नया पूर्वानुमान बोल दिया जाता रहा वो भी गलत निकल जाता रहा था इन दोनों को ढकने के लिए कोई ऐसी डरावनी अफवाह फैलाई जाती रही कि महामारी से डरी सहमी जनता उन दोनों गलत पूर्वानुमानों को भूलकर अब नए उस डरावने पूर्वानुमान को सुन कर सहम गए जो बाद में बोला  गया था | 
   मौसम के बिषय में कोई पूर्वानुमान गलत निकले तो हम सही पूर्वानुमान नहीं निकाल सके इसकी जगह मौसम धोखा दे गया बता दिया जाता है | 
  मानसून आने जाने के बिषय में कोई पूर्वानुमान कभी सही नहीं निकला तो यह स्वीकार करने के बजाय कि मानसून आने जाने की सही तारीखों का अनुमान लगाने में हम असफल रहे !कहा गया कि मानसून आने जाने का पैटर्न बदल रहा है इसलिए इसके आने जाने की तारीखों में बदलाव किया जा रहा है | 
   दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान कभी सही नहीं निकला !इसके लिए भी मौसम को धोखेबाज बताया गया अपनी गलती कभी नहीं स्वीकार की गई | 
     हिंसक आँधी तूफानों के बिषय में पूर्वानुमान न लगाए जाने पर कहा जाता है कि चुपके से चक्रवात आ जाते  हैं पता ही नहीं लगता !
     कोरोना जैसी महामारियों के समय में भी यही खिलवाड़ होता रहा !कोरोना संक्रमण के बढ़ने घटने आदि के बिषय में कोई पूर्वानुमान बताया जाता रहा उसके गलत निकल जाने पर अपनी गलती स्वीकार करने के बजाय कभी महामारी का म्यूटेशन होने को कभी नया वैरियंट आने को कारण बताकर अपनी कमी को छिपा लिया जाता है | 
     वस्तुतः कोई सैनिक जब सीमा पर लड़ने जाता है तो वो शत्रु को पराजित करने  के लिए जो भी निर्णय लेता है वो शत्रु के सभी संभावित म्युटेशनों एवं नए वैरियंटों को ध्यान में रखकर लेता है तभी वो शत्रु को पराजित कर पाता है | यदि वो ऐसा न करे तो उसकी अपनी थोड़ी भी चूक उसकी अपनी जान पर भारी पड़ सकती है|इसलिए अपनी भी जान का जोखिम सामने देखकर उसे  संभावित सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखकर निर्णय लेना पड़ता है | ये उसकी अपनी जिम्मेदारी होती है | 
    सैनिकों की उत्साहपूर्ण मजबूत देखकर शत्रु का आधा मनोबल युद्ध प्रारंभ होने से पहले ही टूट  टूट जाता है इसलिए युद्ध में बिजय पाना आसान होता है दूसरी ओर प्राकृतिक आपदाओं और महामारियों के कारणों को खोजने की या पूर्वानुमान पता लगाने की जिम्मेदारी जो लोग सँभाल रहे होते हैं वे कुछ भी न करें तो भी उनके अपने लिए न कोई शारीरिक जोखिम होता है और न ही कोई आर्थिक !इसीलिए संबंधित बिषय में जब जो मन आता है बोल दिया जाता है उसके गलत हो जाने पर कुछ और बोल दिया जाता है | इतनी स्वछंदता जिस भी विभाग या क्षेत्र में होगी उससे अपक्षित परिणामों की आशा किसी को नहीं करनी  चाहिए | 
     प्राकृतिक आपदाओं या महामारी से संबंधित अनुसंधानों के बिषय में जब जब आपदाएँ आई हैं तब तब उनका पूर्वानुमान लगाने में विज्ञान असफलहुआ है | ऐसे समय में आवश्यकता इस बात की थी कि इस संकल्प के साथ कमियों को खोजा जाता कि ऐसी परिस्थिति भविष्य में दोबारा पड़ने पर इस प्रकार की असफलता न मिले किंतु आज भूकंप संबंधी असफलता मिलने पर कुछ गहरे गड्ढे खोजकर उसमें कोई मशीन फिट कर के भूकंपों को खोजने का रिसर्च यह जानते हुए शुरू कर दिया जाता है कि इससे कोई परिणाम नहीं निकलेगा | मौसम के बिषय में ऐसी परिस्थिति आने पर कुछ उपग्रह रडार आदि और अधिक लगाने की  बात कर दी जाती है | कुछ सुपर कंप्यूटर खरीदने आदि का संकल्प ले लिया जाता है | यह सब देख सुन कर उस समय तो लगता है कि अब भविष्य में हमारा विज्ञान कभी इस प्रकार से असफल नहीं होगा किंतु फिर वही होता है |हर बार संसाधनों की कमी और रिसर्च की आवश्यकता बता कर आगे बढ़ जाया जाता है | 
    सरकारों से लेकर महामारियों के बिषय में अनुसंधान करने वालों तक को यह सच्चाई स्वीकार करनी चाहिए कि महामारियों के बिषय में हमारे द्वारा कोई ऐसी तैयारी करके नहीं रखी जा सकी थी जिससे महामारियों को समझने में उनका पूर्वानुमान लगाने में संक्रमितों की संख्या घटने बढ़ने का कारण समझने में या इसका पूर्वानुमान लगाने में थोड़ी भी मदद मिल सकी होती जिससे महामारी से भयभीत जनता को थोड़ी भी मदद पहुँचाई जा सकी होती |ऐसी कोई भी तैयारी पहले से करके नहीं रखी जा सकी थी | 
     केवल  भारत में ही नहीं अपितु  इटली अमेरिका आदि उन्नत चिकित्सा पद्धतियों की दृष्टि से इतने सक्षम देश भी इस एक कमजोरी के कारण इतना नुक्सान उठाने पर विवश हुए | चिकित्सा की दृष्टि से भारत के चिकित्सकों ने भी अपनी जान जोखिम में डालकर अपने परिवारों का मोह त्यागकर जो समर्पण दिखाया है उनके परिजनों अभिभावकों ने ऐसी बिषम परिस्थिति में असहाय भयभीत जनता की मदद करने हेतु चिकित्सकों को उनके कर्तव्यपथ पर डटे रहने का संबल दिया है इस सबके आगे श्रद्धा से सिर झुक जाना स्वाभाविक है |मुझे विश्वास है कि चिकित्सा से संबंधित अनुसंधानों से भी  समय  रहते यदि कुछ भी मदद मिली होती तो संभव है उन चिकित्सकों का भी बहुमूल्य जीवन बचा लिया जाता जनता की जीवन रक्षा यज्ञ में जिन्होंने अपने प्राणों की आहुतियाँ दी हैं | 

                                        महामारीविज्ञान में वैज्ञानिकता  की खोज 

     जिस विज्ञान के बल पर महामारी को पराजित करने के सपने देखे  जा रहे थे महामारी पर विजय प्राप्त करने लायक उनके पास था आखिर वे कैसे कोरोना योद्धा  थे जिन्हें इतनी बड़ी महामारी से लड़ने के लिए भेजा जा रहा था उनके पास कोरोना से लड़ने लायक कोई हथियार नहीं था | कोरोना परिधान ही उनके लिए कवच कुंडल थे जिससे महामारी को पराजित कर पाना तो संभव नहीं था किंतु महामारी के उस परिधान को धारण करके आंशिक रूप से  अपना  बचाव किया जा सकता था उस पर भी इतना अधिक विश्वास कर लेना ठीक नहीं था कि इससे बचाव हो ही जाएगा |   

    कोरोना की चिकित्सा लक्षणों के आधार पर की जा रही थी  सीधे तौर पर महामारी से मुक्ति दिलाने लायक कोई औषधि नहीं थी | जो औषधियाँ अनुमान के आधार पर दी भी गईं कई बार उन औषधियों के दुष्प्रभाव भी सुनने को मिले !खैर जो भी हो उसे तो महामारी से जूझ रहे चिकित्सक ही बेहतर समझ रहे होंगे | 

    

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