31मई 2021 विश्व स्वास्थ्य संगठनके द्वारा कोरोना वायरस के वेरिएंटके डेल्टा,कप्पा,अल्फा , बीटा,गामा ,एपलिसन,जीटा,,ईटा,थीटा ,लोटा आदि नाम रखे गए ।
1. महामारी अनुसंधान और चिंताएँ !
2. प्राचीन विज्ञान से संबंधित अनुसंधान मेल आदि !
3. वैज्ञानिक अनुसंधानों की असफलताएँ
4. प्रकृति और विज्ञान मौसम
5. उपसंहार
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भूमिका
लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि होती है | जनता की सेवा करने के लिए समाज के जो लोग भी राजनीति में आते हैं उन्हें यह याद रखना चाहिए कि सेवाकार्य निस्वार्थ किए जाते हैं इसमें पारिश्रमिक (सैलरी) नहीं होती | सैलरी लेते ही कोई सेवक सेवाधर्म से बंचित होकर दास (नौकर)बन जाता है | सेवाधर्म बहुत पवित्र होता है शास्त्रों में सेवा धर्म को योगियों के लिए भी अगम्य कहा है - सेवाधर्मोपरमगहनोयोगिनामप्यगम्यः | जो लोग राजनैतिक जीवन जीते हुए पारिश्रमिक पाने का लोभ रखते हैं वो सेवाधर्म के अनुरूप नहीं है | कुछ लोग तो जनता के खून पसीने की कठोर कमाई से पारिश्रमिक भी लेते हैं उसके बदले में या तो कार्य नहीं करते या फिर घूस लेकर सरकारी सेवाऍं दिया करते हैं जबकि यह उनका अपना कर्तव्य बनता है कि वे जनता के कार्य ईमानदारी पूर्वक सेवा भावना से करें |यदि वे ऐसा नहीं करते तो उनके द्वारा किए जाने वाले भ्रष्टाचार को रोकने की जिम्मेदारी सरकारों की बनती है उसका सफलता पूर्वक निर्वाह सरकारें स्वयं करें | जनता को भ्रष्टाचार मुक्त सेवाएँ उपलब्ध करवाना सरकारें जिस दिन प्रारंभ कर देंगीतो सरकारों के प्रति जनता का भी विश्वास बढ़ेगा और इससे सभी समस्याएँ स्वयं समाप्त होने लगेंगी |सरकारों की जवाबदेही जनता के प्रति होनी ही चाहिए |
जनता के द्वारा कररूप में दिया गया धन जिन कार्यों में जिस उद्देश्य से लगाया जाता है उस उद्देश्य की पूर्ति में कितने प्रतिशत सफलता मिली है |वैज्ञानिक अनुसंधानों की सफलता असफलता का परीक्षण भी प्राकृतिक घटनाओं के साथ तालमेल बैठकर किया जाना चाहिए |
कोई भी शासक टैक्स देने के लिए जितनी निर्ममता पूर्वक जनता को बाध्यकर्ता है उतनी ही जिम्मेदारी का निर्वाह उसे टैक्स से प्राप्तधन को खर्च करने में भी करना चाहिए |जिससे कोई भी ईमानदार सरकार जनता के सामने प्रतिज्ञा पूर्वक कहने का साहस कर सके कि आपके टैक्सरूप में दिए गए एक एक पैसे का उपयोग आपके अपने लिए ,समाज के लिए और आपके अपने देश के लिए किया गया है | जिससे कि जीवन समाज एवं देश के सभी क्षेत्रों में देशवासियों की कठिनाइयों को कम करके जनता को अधिक से अधिक सुख सुविधापूर्ण जीवन दिया जा सके | इससे सरकारों पर जनता का विश्वास सुरक्षित बना रहेगा | शासकों के इशारों पर जनता चलने लगेगी | सरकारें ऐसे उपाय यदि जनता की भलाई के लिए करना चाहती हैं तो अपनी भलाई तो जनता भी चाहती है फिर जनता को उसकी समझ में आने लायक तर्कों प्रमाणों के आधार पर क्यों नहीं समझाया जाता है कि सच क्या है और उसके लिए जनता को क्या करना चाहिए | ऐसे अनुशासन को जनता स्वयं स्वीकार कर लेगी और उसका पालन प्रसन्नता पूर्वक करेगी उसके लिए सरकारों को दंड विधान क्यों करना पड़ेगा |
महामारी भूकंप बाढ़ आँधीतूफ़ान आदि आपदाओं से अकेली जूझती जनता को ऐसी आपदाओं के विषय में हमेंशा अनुसंधान करते रहने वाले अपने प्रिय वैज्ञानिकों की बहुत याद आती है | उनकी सैलरी आदि सुख सुविधाओं एवं उनके द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानकार्यों पर खर्च किए जाने वाला वह धन भी याद आता है जो जनता की अपनी खून पसीने की कमाई अंश होता है जिसे टैक्स रूप में जनता के द्वारा सरकारों को दिया गया होता है | जनता का स्वभाव है कि वह अपने पैसे बहुत सोच बिचार कर खर्च किया करती है और खर्च किए गए धन के बिषय में भी बहुत सोच बिचार किया करती है | जीवन के लिए जरूरी वस्तुओं को खरीदने हेतु दो दो पैसे बचाने के लिए न जाने कितनी बाजारें और कितनी दुकानें बदल बदल कर कितना मोल तोल करके खरीददारी किया करती है | कहावत भी है कि जिसका जहाँ धन लगता है उसका वहाँ मन जरूर लगा रहता है | वैसे भी जनता के पास इतना खुला धन कहाँ होता है कि टैक्स में दिए गए धन को वह भूल जाए !इसलिए अनुसंधान कार्यों पर खर्च होने वाले धन के बदले में भी जनता कुछ तो सहयोग चाहती ही है |
सरकार या प्रशासनिकतंत्र की सबसे ज्यादा जरूरत जनता को तब होती है जब वो महामारी भूकंप बाढ़ आँधीतूफ़ान आदि आपदाओं में घिरा होता है और उसे उसी समय यदि उसके अपने हाल पर छोड़ दिया जाए तो ये सबसे बड़े दुर्भाग्य की बात है | जनता को जब सब कुछ अपने आप ही करना होगा तो फिर सरकारों का क्या मतलब और ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों से क्या लेना देना !जो संकट काल में काम आने लायक ही न हों ! महामारी जैसी इतनी बड़ी बड़ी प्राकृतिक आपदाओं से जब जनता को अकेले जूझना था तो ऐसे विषयों पर सरकारों के द्वारा करवाए जाने वाले अनुसंधानों का औचित्य ही क्या है|जनता को भी तो यह जानने का अधिकार है कि कोरोना महामारी जैसे इतने बड़े संकट काल में वैज्ञानिक अनुसंधानों का योगदान क्या रहा है |उससे जनता के महामारी जनित संकटों को कितना कम किया जा सका है जबकि ऐसे समय पर जनता को ऐसे अनुसंधानों से प्राप्त अनुभवों की आवश्यकता सबसे अधिक थी |
महामारी की तरह ही भूकंप वर्षा बाढ़ आँधीतूफ़ान आदि प्राकृतिक घटनाएँ इस क्षेत्र में जो भी अनुसंधान किए गए हैं या किए जा रहे हैं उनसे केवल महामारी में ही नहीं अन्य प्राकृतिक घटनाओं या आपदाओं के विषय में भी वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा ऐसा क्या खोजा जा सका है जिसके लिए यह कहा जा सके कि ऐसे अनुसंधान न किए गए होते तो ऐसी आपदाओं से निपटते समय इतनी कठिनाई का और अधिक सामना करना पड़ता |बिचार किए जाने की आवश्यकता है कि प्राकृतिक आपदाओं के समय ऐसे अनुसंधानों के द्वारा जनता को कितना लाभ पहुँचाया जा सका है |इसकी समीक्षा किए बिना ऐसे विषयों पर वैज्ञानिक अनुसंधान कर्ताओं की बातों बिचारों का अंधानुकरण करते रहना कहाँ तक उचित है और जनता अपने अनुभवों के आधार पर यदि ऐसा अंधानुकरण नहीं अपनाना चाहती है तो उस पर सरकारों के द्वारा दबाव दिया जाना आवश्यक क्यों है |
महामारी भूकंप बाढ़ आँधीतूफ़ान आदि घटनाओं को ठीक ठीक समझने के लिए जनता के पास उसका अपना पूरा पारंपरिकविज्ञानतंत्र होता है अनुभव होते हैं जो उसे पूर्वजों से पीढ़ी दर पीढ़ी परंपरा पूर्वक प्राप्त होता रहा है | जब आधुनिक विज्ञान का उदय भी नहीं हुआ था तब ही जनता उस परंपरा विज्ञान के आधार पर अबाधरूप से अपना जीवन जीती रही है |इसीलिए जब जब आधुनिक विज्ञानजनित अनुसंधान असफल होते हैं तब तब जनता अपने उसी परंपरा विज्ञान के आधार पर जीवन जीना प्रारंभ कर दिया करती है इसमें अपराध क्या है |वैज्ञानिक अनुसंधान कर्ताओं की जो बातें बिचार आदि परंपरा विज्ञान से प्राप्त जनता के अपने तर्कों और अनुभवों पर खरे नहीं उतरते तो जनता उसे नहीं मानना चाहती है सरकारें उसे मानने के लिए जनता को बाध्य करती हैं अन्यथा जुर्माना लगाती हैं | जनता एक ओर तो महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रही होती है दूसरी ओर सरकारें उन पर जुर्माना लगाकर उनसे पैसे वसूल रही होती हैं |
महामारी हों या प्राकृतिक घटनाएँ इस क्षेत्र में जो भी अनुसंधान किए जा रहे हैं उन वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा जो कुछ भी पता लगाकर जनता को बताया जाता है उसके सही गलत या काल्पनिक होने का परीक्षण किए बिना उन्हें वैसे के वैसे जनता पर किस विश्वास के साथ थोप दिया जाता है उसे न मानने वालों से जुर्माना भी वसूला जाने लगता है |उनका परीक्षण किए बिना यह विश्वास कैसे कर लिया जाता है कि ऐसा करने से महामारी पर अंकुश लगेगा ही |पहले तो उसके आधारभूत प्रमाण जनता के सामने रखे जाएँ इसके बाद जनता को उनका पालन करने के लिए प्रयास किए जाएँ अन्यथा वैज्ञानिक अनुसंधानों की असफलताओं का ठीकरा जनता पर फोड़ा जाना कतई ठीक नहीं है |
इसके लिए जनता के अपने तर्कों और अनुभवों को भी तो सुना जाना चाहिए कि वैज्ञानिकों के द्वारा बताई जाने वाली सलाहों का पालन न करने की जनता की अपनी मजबूरी क्या है|वे कौन से मजबूत कारण हैं जिनके आधार पर जनता वैज्ञानिकों की उन सलाहों को मानना जरूरी नहीं समझती है |
वैज्ञानिकअनुसंधानों की विश्वसनीयता जनता की दृष्टि में ! (प्रथम)
वायुप्रदूषण बढ़ने पर काल्पनिक कारण बता बता कर सरकारें जनता को तंग करने लगती हैं | दिवाली नहीं मानाने देती हैं | पराली जलाने के लिए किसानों को तंग किया करती हैं | भवन निर्माण बंद करा दियाजाता है | धुआँ फेंकते बाहनों उद्योंगों ईंट भट्ठों आदि को दण्डित किया जाने लगता है | ऑडइवेन जैसे निराधार कार्यक्रम बना बनाकर जनता के दैनिक कार्यों को बाधित किया जाता है ऐसा और ही बहुत कुछ किया जाता है उसका वास्तविकता से पता नहीं कोई लेना देना है | |जनता जानना चाहती है कि प्रत्येक वर्ष के कुछ महीनों के कुछ दिनों में ही वायुप्रदूषण क्यों बढ़ जाता है उन दिनों में ऐसा नया क्या किया जाने लगता है जो अन्य समय में नहीं किया जाता है | उस कारणरूपी कार्य को जनता उतने समय के लिए अपनी इच्छा से रोक देना चाहती है बशर्ते वैज्ञानिक इस बात की जिम्मेदारी लेने को तैयार हों कि यदि जनता इतने दिनों तक ऐसा ऐसा करना बंद कर देगी तो वायु प्रदूषण बढ़ने की समस्या समाप्त हो सकती है |
डेंगू के प्रकोप के लिए वैज्ञानिकों के द्वारा जिन परिस्थितियों को जिम्मेदार बताया जाता है वे परिस्थितियाँ प्रतिवर्ष सभी स्थानों पर रहती हैं किंतु डेंगू कुछ स्थानों पर कुछ समय के लिए विशेष उपद्रव करता है | इसे रोकने के लिए कूलरों गमलों आदि में भरे पानी के लिए चालान किया जाने लगता है किंतु वैज्ञानिक जनता को इस बात के लिए विश्वास क्यों नहीं दिला पाते हैं कि यदि जनता ऐसा ऐसा करना छोड़ दे तो डेंगू जैसे रोगों से उसे बिल्कुल तंग नहीं होना पड़ेगा |
महामारी के समय जो कोरोना नियम बनाए गए उन्हें पालन करने के लिए जनता को बाध्य किया जाता रहा | उन्हें जो पालन करते थे और जो नहीं पालन करते थे उन दोनों प्रकार के लोगों में कोई विशेष अंतर तो नहीं मिला !दिल्ली में आंदोलनरत किसान और महानगरों से पलायित श्रमिक, कुंभ मेले में एकत्रित हुई भीड़ बिहार बंगाल आदि के चुनावों में उमड़ी भारी भीड़ में सम्मिलित जनता ने कोविड नियमों का पालन बिल्कुल नहीं किया | सन 2020 की धनतेरस दीपावली जैसी त्योहारी बाजारों में कोविड नियमों का पालन किए बिना भारी भीड़ उमड़ती थी | वैज्ञानिक सलाहों को यदि विश्वास की कसौटी पर कैसा जाए तब तो ऐसी भीड़ों के उमड़ने के बाद भारी मात्रा में संक्रमितों की संख्या बढ़नी चाहिए थी जबकि ऐसा कुछ हुआ नहीं अपितु वैज्ञानिकों के अनुमानों के विरुद्ध संक्रमितों की संख्या दिनोंदिन कम होती जा रही थी | परंपरा ज्ञान विज्ञान को जानने वाली जनता ने ऐसी आशंकाओं को निराधार मान लिया | इसमें जनता की गलती क्या है | जनता ने अपनी आँखों से देखा और अनुभव किया | जनता अपने अनुभव कोबरीयता दे रही थी जबकि सरकारें उन काल्पनिक नियमों को जनता पर थोप रही थीं जिनका कोई तर्क पूर्णआधार प्रस्तुत ही नहीं किया जा सका |
साधन संपन्न वर्ग ने वैज्ञानिकों की सलाह मानकर बचपन से लेकर समय से संपूर्ण टीके लगवाए !पारिवारिक चिकित्सक देखरेख के लिए रिजर्व रखे ,जीवन में एक से एक पौष्टिक खाद्य पदार्थ खाते हुए तरह तरह के टॉनिक पीते हुए जीवन बिताया सुख सविधापूर्ण जीवन बिताया |उन्होंने महामारी आने पर उचित समय पर उचित प्रकार से एकांतवास रहन सहन खान पान सोने जागने आदि की व्यवस्था की | भयवश सभी प्रकार से कोरोना नियमों का पालन स्वेच्छा से करते रहे | इसके बाद भी उनमें से बहुत लोग संक्रमित होते देखे गए जिनमें से कुछ लोगों की तो दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु भी हुई है |परंपरा वैज्ञानिक जनता की कसौटी पर यह बात भी सही सिद्ध नहीं हो सकी |
ऐसी परिस्थिति में घटित होने का वास्तविक एवं विश्वसनीय कारण क्या हो सकता है वो जनता को समझाया नहीं जा सका !इम्युनिटी जैसी बातों पर जनता का विश्वास दो कारणों से नहीं बन पाया पहली बात तो इम्युनिटी जिसप्रकार के सुख सुविधापूर्ण रहन सहन खानपान आदि में बढ़ती है उससे बंचित वर्ग भी कोरोना संक्रमण से काफी हद तक बचा रहा जबकि साधनसंपन्न वर्ग में तो अच्छी इम्युनिटी रहनी चाहिए,किंतु वह वर्ग भी संक्रमित होते देखा जाता रहा है | उसका वास्तविक कारण जनता को समझाया नहीं जा सका |
एक और बात विशेष बिचार किए जाने की है कि लोगों के संक्रमित होने का कारण कोरोनामहामारी का प्रकोप था या इम्युनिटी की कमी थी | यदि इम्युनिटी की कमी ही थी |यदि वैज्ञानिकों को इस बात की आशंका थी तो इसके लिए कोरोना महामारी के आगमन की प्रतीक्षा क्यों इसके लिए तो पहले से उपाय खोजे जाते या टीके लगाए जाते औषधियाँ दी जातीं | ऐसे उपायों से जनता को इतना सुरक्षित बना लिया जाता कि महामारी का प्रकोप उन तक पहुँचता ही नहीं | महामारी आती और चली जाती लोगों को संक्रमित होने से बचा लिया जाता |
विशेष बात एक और है कि यदि संक्रमित होने का कारण इम्युनिटी की कमी ही थी तो इम्युनिटी की जाँच करवाकर कम से कम उन्हें तो भयमुक्त किया जा सकता था जाँच में जिनकी इम्युनिटी ठीक पाई जाती |
वैसे इम्युनिटी और जलवायुपरिवर्तन जैसी बातों पर जनता का उतनाविश्वास नहीं है क्योंकि जनता के तर्क की कसौटी पर ऐसी बातें कभी प्रमाणित नहीं की जा सकीं | जनता सोचती है कि जिस प्रकार से मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा मौसमसंबंधी पूर्वानुमानों के गलत निकल जाने पर अपनी कमजोरियों को छिपाने के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है उसीप्रकार से कोरोना महामारी के विषय में वैज्ञानिकअनुसंधान कर्ताओं के द्वारा लगाए गए संपूर्ण अनुमानों पूर्वानुमानों के लगातार गलत निकलते रहने पर कहीं अपनी अनुसंधानात्मिका कमजोरियों को छिपाने के लिए ही तो नहीं इम्युनिटी शब्द का सहारा लिया गया है | जनता की दृष्टि में संभावना ऐसी भी है कि कोरोना महामारी से संक्रमित होने और न होने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारण कुछ और ही रहे हों वैज्ञानिकों के द्वारा जिनके विषय में पता ही नहीं लगाया जा सका है |
इस विषय में आम जनता को क्या कहा जाए अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी वैज्ञानिकों की निराधार बातों पर नाराजगी जताई थी | 22 मई 2020 को उनका एक वक्तव्य प्रकाशित हुआ था -" कोरोना को लेकर अपने देश के वैज्ञानिकों पर ट्रंप भड़के उठे थे ! बातडोनाल्ड ट्रंप ने हफ्ते में दो बार कहा था कि हमारे देश के वैज्ञानिकों की बातें बेसिर पैर की हैं | उनकी बातों में कोई सबूत नहीं हैं |देश के कई बड़े वैज्ञानिकों और डॉक्टरों की सलाह को खारिज करते हुए ट्रंप लॉकडाउन हटाना चाहते थे |"
उनके कहने का मतलब था कि लॉकडाउन लगाने से कोई लाभ होता भी है कि नहीं तो महामारी से जूझती जनता पर लॉकडाउन जैसी निराधार आशंकाओं को थोपकर जनता को केवल यह दिखाने के लिए ही क्यों तंग किया जाए कि देख लो सरकार तुम्हारे लिए चिंतित है या महामारी समाप्त करने का प्रयास में लगी हुई है |
जनता को तो केवल इतना ही पता है कि भारत के दिल्ली मुंबई सूरत आदि महानगरों से श्रमिकों के पलायन के समय कोरोना नियमों का पालन करना न तो संभव था और न ही किया गया | महानगरों की घनी बस्तियों के छोटे छोटे भीड़ भरे घरों में कोरोना नियमों का पालन करना न तो संभव था और न ही किया गया | गरीब परिवारों के बच्चे वा बड़े कोरोना नियमों का पालन किए बिना दिन दिन भर लाइनों में खड़े रहे, जहाँ जो मिला जैसे हाथों से मिला जिस किसी ने दिया वो खाते रहे | किसानों गरीबों ग्रामीणों आदिबासियों आदि के लिए कोरोना नियमों का पालन करना संभव न था इसके बाद भी वे सुरक्षित कैसे बने रहे | कई बार तो ऐसा भी देखा गया कि भीड़ भरे घरों में किसी एक को कोरोना हो भी गया तो वह उन घरों के जिन जिन सदस्यों के साथ तब तक रहता खाता पीता सोता जागता आदि रहा वे सारे सुरक्षित बने रहे |
भूमिका
भूकंप आँधी तूफानों वर्षा बाढ़ आदि मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में हमेंशा से वैज्ञानिक अनुसंधान किए जाते रहे हैं इसी प्रकार से प्राकृतिक रोगों और महारोगों(महामारियों) के विषय में भी अनुसंधान तो हमेंशा से होते चले आ रहे हैं अभी तक किए गए उन अनुसंधानों से मौसम और महामारी से संबंधित अनुसंधानों के विषय में आखिर ऐसा क्या मिला जिससे महामारी से जूझती जनता को कुछ राहत पहुँचाई जा सकी हो |ये बिचार किए जाने का समय आ गया है इसे निरुद्देश्य रूप से अधिक समय तक टाला जाना मानवता के हित में नहीं होगा |
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुए लगभग डेढ़ सौ वर्ष होने जा रहे हैं उपग्रहों रडारों की मदद से आँधी तूफानों या बादलों की जासूसी करके उनकी गति और दिशा के अनुशार कितने दिन में कहाँ पहुँचेंगे इसके अनुशार मौसम संबंधी कुछ घटनाओं के विषय में अंदाजा लगा लेने को कोई ऐसी वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं माना जा सकता है जिसे करने में इतना लंबा समय लग गया हो | इसमें प्रकृति के स्वभाव संबंधी उपयोग कहाँ कितना और क्या होता है | यही कारण है कि इतने लंबे समय तक अनुसंधान चलाए जाने के बाद भी बीते कुछ वर्षों में जितनी भी प्राकृतिकआपदाएँ घटित हुईं उनमें से अधिकाँश का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका है और यदि लगाया भी गया है तो गलत निकला है | ऐसे ही मानसून आने जाने की तारीखें दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान आदि हैं | तापमान एवं वायुप्रदूषण बढ़ने घटने के कारण एवं पूर्वानुमान दोनों से संबंधित अनुसंधानों के विषय में भी अभी तक संशय बना हुआ है | भूकंपों के विषय में तो किसी के पास वैज्ञानिक अनुसंधानों से संबंधित कोई सार्थक चर्चा ही नहीं है | प्रत्येक देश के शासक का पवित्र कर्तव्य है कि वो अपनी सरकारों की वैज्ञानिक अनुसंधान क्षमता को पारदर्शिता पूर्वक जनता के सामने रखकर जनता को विश्वास में ले और उसे समझावे कि महामारी जैसी इतनी बड़ी आपदा से अकेली जूझती जनता की चाहकर भी सरकारें कोई विशेष मदद क्यों नहीं कर सकीं जिससे जनता की कठिनाइयाँ कुछ कम होकर उसे कुछ राहत मिली होती | पिछले कुछ सौ वर्षों से महामारियाँ जब सौ सौ वर्षों के अंतराल में घटित हो ही रही हैं तो वर्तमान समय में उनसे निपटने की वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर आखिर क्या तैयारी करके रखी गई थी और उस तैयारी के द्वारा जनता की कठिनाइयों को कम क्यों नहीं किया जा सका |
महामारी पर आत्ममंथन की आवश्यकता !
पिछले कुछ सौ वर्षों से महामारियाँ जब सौ सौ वर्षों के अंतराल में घटित होती चली आ रही हैं दूसरी ओर महामारियों को जानने समझने उनसे बचाव के उपाय खोजने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान लगातार चलाए जा रहे हैं अनुसंधान होते इतना लंबा समय बीत जाने के बाद भी उनसे प्राप्त अनुभवों के आधार पर क्या हम कोरोना महामारी के छोटे से छोटे अंश को भी समझने में सफल हो सके हैं |क्या हम यह पता लगाने में सफल हो पाए हैं कि कोरोना महामारी के पैदा होने का कारण क्या था ? वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा क्या कोरोना महामारी के पैदा होने से पहले इस विषय में कोई पूर्वानुमान लगाया जा सका था क्या ? महामारी समाप्त कब होगी इसी विषय में कभी कोई पूर्वानुमान लगाया जा सका था क्या ?|महामारी से संक्रमितों की संख्या अचानक बढ़ने और घटने का कारण क्या रहा एवं ऐसी परिस्थिति पैदा होने से पहले इस विषय में क्या कभी कोई पूर्वानुमान लगाया जा सका था ?महामारी प्राकृतिक थी या मनुष्यकृत !महामारी यदि प्राकृतिक थी तो उस विषय में क्या पहले कभी कोई वैज्ञानिक अनुसंधान किए जा सके थे !यदि हाँ तो कोरोना महामारी संबंधित अध्ययनों में उन अनुसंधानों से प्राप्त अनुभवों का क्या योगदान रहा है |
कोरोना महामारी यदि मनुष्यकृत है तो जो पहले कभी नहीं किया जाता रहा है ऐसा मनुष्य ने अचानक नया क्या नया करना प्रारंभ कर दिया जिससे कोरोना महामारी पैदा हो गई !मनुष्य यदि वो वैसा करना बंद कर देता तो क्या महामारी के प्रकोप से बचा जा सकता था या महामारीकाल में बंद कर देता तो क्या महामारी शांत हो सकती थी !क्या महामारी शांत तभी होगी जब मनुष्य वैसा करना बंद करेगा !यदि नहीं बंद करेगा तो महामारी चलती रहेगी | संक्रमितों की संख्या अचानक कम होने का मतलब क्या समझा जाए कि महामारी पैदा करने वाले आचरणों को मनुष्यों ने कम करना प्रारंभ कर दिया है और संख्या अचानक बढ़ जाने का मतलब क्या मनुष्यों ने उस प्रकार के आचरणों को अधिक अपना लिया है क्या जिनके आधार पर महामारीजनित संक्रमण बढ़ जाता है | ऐसी परिस्थिति में यह जानना आवश्यक हो जाता है कि वे आचार व्यवहार आदि क्या थे कोरोना महामारी से बचाव के लिए मनुष्यों को जिनसे बचना चाहिए था |
कोरोना महामारी यदि किसी देश की शरारत से पैदा हुई तो उसने शरारत एक बार की होगी इसलिए संक्रमितों की संख्या भी एक ही बार बढ़नी चाहिए थी और संक्रमण जब घटने लगा था तो उसी क्रम में बिल्कुल ही समाप्त हो जाना चाहिए था | ये घटने बढ़ने या लहरें आने जाने का कारण क्या था ?
महामारी का अनुमानित विस्तार कहाँ से कहाँ तक था ?क्या पृथ्वी की गंभीर गहराई से आकाश की सुदूर उँचाई तक महामारी सभी में व्याप्त थी या केवल मनुष्यों की पहुँच तक ही महामारी जनित संक्रमण की पहुँच थी |
महामारी में अंतर्गम्यता कितनी थी |संक्रमण का प्रवेश केवल मनुष्य शरीरों में ही हुआ था या सभी जीव जंतुओं में था या पेड़ों पौधों वृक्षों बनस्पतियों आदि सृष्टि के कण कण में संक्रमण व्याप्त था |
महामारी से तापमान के बढ़ने घटने से महामारी का क्या संबंध था ?वायु प्रदूषण बढ़ने घटने का महामारीजनित संक्रमण पर कोई प्रभाव पड़ता था या नहीं ?भूकंप आदि घटनाओं का महामारी जनित संक्रमण से कोई संबंध था या नहीं ? मौसमसंबंधी प्राकृतिकघटनाओं का कोई संबंध था या नहीं ?यदि नहीं तब तो कोई बात नहीं और यदि था तब तो क्या था | मौसम में किस प्रकार की प्राकृतिक परिस्थिति बनने पर महामारियाँ पैदा होती हैं प्रकृति में किस प्रकार की परिस्थिति बनने पर महामारी से संक्रमितों की संख्या बढ़ जाती है और किसप्रकार की परिस्थिति बनने पर कम हो जाती है ?
महामारी पर यदि मौसमसंबंधी प्राकृतिकघटनाओं का कोई प्रभाव पड़ता ही है और उससे महामारियाँ पैदा होती हैं उससे ही महामारी जनित संक्रमण घटता और बढ़ता है तब तो मौसम से संबंधित प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाकर उसी के आधार पर कोरोना महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता संक्रमितों की संख्या अचानक घटने और बढ़ने के विषय में भी मौसम के पूर्वानुमान के आधार पर ही पूर्वानुमान लगाया जा सकता था |
इसके लिए मौसम से संबंधित घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना अतीव आवश्यक था उसके बिना महामारी से संबंधित पूर्वानुमान मौसम के आधार पर लगाया जाना संभव ही नहीं है |
मौसम संबंधी पूर्वानुमानों के लिए लगातार वैज्ञानिक अनुसंधान चलाए जा रहे हैं प्रायः प्रत्येक देश में मौसम संबंधी अनुसंधानों के लिए मंत्रालय हैं | उनके संचालन पर जनता से प्राप्त टैक्स से भारी भरकम धनराशि खर्च की जाती है | न जाने कितने उपग्रह रडार आदि से मदद ली जाती है मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में बड़ी बड़ी भविष्यवाणियाँ कर दी जाती हैं | पहली भविष्यवाणी गलत निकले उससे पहले ही दूसरी कर दी जाती है उसके गलत होने से पहले तीसरे कर दी जाती है इससे जनता उसी भविष्यवाणियों के खेल में उलझी रहती है और मौसम विज्ञान भविष्यवाणियाँ किया करता है | इस प्रक्रिया से समय तो पास होता जाता है किंतु इनकी सच्चाई का परीक्षण तभी हो पाता है जब कोई कोरोना जैसी महामारी या फिर प्राकृतिक आपदा घटित होती है और उसके विषय में वैज्ञानिकों के द्वारा पहले से कोई पूर्वानुमान नहीं बताया गया होता है |
यदि महामारी के पैदा होने में या इससे संबंधित संक्रमण के घटने बढ़ने में मौसमसंबंधी घटनाओं का प्रभाव पड़ता भी हो तो उसके विषय में पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है जब मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए ही अभी तक कोई ऐसा प्रमाणित वैज्ञानिक अनुसंधान नहीं किया जा सका है जिसकी सच्चाई पर विश्वास करके उसके आधार पर कोरोना जैसी महामारी के पैदा होने या इससे संबंधित संक्रमण के घटने बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सके |
1864 में चक्रवात के कारण कलकत्ता में हुई क्षतिऔर1866 और1871 के अकाल के बाद1875 में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुई।जिसका उद्देश्य ऐसी घटनाओं के घटित होने का वास्तविक कारण खोजना एवं उनके विषय में पूर्वानुमान लगाना था | लगभग 144 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं ये अनुसंधान यात्रा लगभग वहीं रुकी हुई जहाँ से प्रारंभ हुई थी | अभी 2018 में जब भारत में बार बार आँधी तूफान घटित हो रहे थे उसके विषय में लगाए गए सभी पूर्वानुमान गलत होते जा रहे थे उस समय मौसम विभाग के निदेशक महोदय ने एक पत्रकार महोदय से कहा था कि तूफ़ान अचानक आ जाते हैं इसलिए पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं है | यही केरल की भीषण बारिश और बाढ़ के विषय में उन्होंने कहा था कि जलवायु परिवर्तन के कारण हो रही अप्रत्याशित बारिश के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं है | तापमान बढ़ने घटने तथा वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ने घटने एवं भूकंपों के घटित होने के विषय में भी जहाँ एक ओर यही कहा जाता है कि इनके विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है वहीं दूसरी ओर महामारी के पैदा होने या उससे संबंधित संक्रमण की बढ़ने घटने के लिए कभी मौसम को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है तो कभी तापमान और वायुप्रदूषण का स्तर बढ़ने घटने को महामारी के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है |
ऐसी परिस्थिति में जब तक ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है तब तक उनके आधार पर कोरोना जैसी महामारी का पूर्वानुमान लगाने की कल्पना भी कैसे की जा सकती है |
मौसमसंबंधी अध्ययन ही अधूरे हैं !
किसी रोगी के रोग को समझने के लिए जिस प्रकार से रोग क्यों हुआ उसके कारण खोजे जाते हैं उसी प्रकार से वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि घटनाओं के घटित होने के भी कारण होते हैं जिनके प्रभाव से ऐसी घटनाएँ घटित होती हैं |उन कारणों का पता लग जाने पर प्राकृतिक घटनाओं के विषय में काफी पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |
यह है मौसम संबंधी घटनाओं
का निर्माण करने वाली शक्तियों के स्वभाव से यदि हम सुपरिचित होंगे तभी
उनके विषय में पूर्वानुमान भी लगा सकते हैं |उनके स्वभाव को समझे बिना केवल
अंदाजा लगाकर किसी भी तीर तुक्के के आधार पर कोई भविष्यवाणी कर भी दी जाती
है तो वो सही या गलत दोनों हो सकती है क्योंकि यह एक तुक्का होता है
भविष्यवाणी नहीं |
कई बार ऐसा जब तुक्का गलत हो जाता है तो उस
गलती को खोजने का कोई आधार इसलिए नहीं होता है क्योंकि उस पूर्वानुमान का
कोई आधार नहीं होता जिसके आधार पर अनुसंधान करके गलती को खोजा जा सके |
ऐसी परिस्थिति में जलवायुपरिवर्तन ,ग्लोबलवार्मिंग,अलनीनो-लानीना जैसी न
जाने कितनी काल्पनिक कहानियाँ गढ़ ली जाती हैं सच्चाई फिर भी सामने नहीं आ
पाती है | ऐसी रिसर्चें रिसर्चों के में समा इनसे कुछ निकलता नहीं है और
नहीं किसी को कुछ पता लग पाता है |
यदि जलवायुपरिवर्तन
,ग्लोबलवार्मिंग,अलनीनो-लानीना जैसी घटनाओं का वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान जैसी
प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने में इतना ही बड़ा प्रभाव पड़ता है तो
मौसमपूर्वानुमान संबंधी अनुसंधान प्रक्रिया में इन्हें शुरू से ही
सम्मिलित क्यों नहीं किया जाता है ताकि मौसमसंबंधी भविष्यवाणियाँ गलत होने
की परिस्थिति ही पैदा न हो ,क्योंकि जलवायुपरिवर्तन
,ग्लोबलवार्मिंग,अलनीनो-लानीना जैसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाए
बिना मौसम
संबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया ही क्यों जाता है | ऐसे अनुसंधान अपने
में ही आधे अधूरे होते हैं |इन के बिना किसी भी प्रकार की प्राकृतिक घटना
से संबंधित पूर्वानुमान आधार विहीन, अधूरा एवंअविश्वसनीय होता है क्योंकि
ऐसे काल्पनिक कारणों का उपयोग तो किसी भी भविष्यवाणी के गलत होने पर अपनी
सुविधानुसार कर लिया जाता है | ऐसे अनुसंधान अपने
में ही आधे अधूरे होते हैं |
मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगाने के
लिए अभी तक कोई प्रमाणित वैज्ञानिक तकनीक नहीं है यही कारण है कि
प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित भविष्यवाणियाँ तो गलत होती ही रहती हैं पर इस
सच को स्वीकार करने के बजाए मौसमी घटनाओं को ही दोषी सिद्ध कर दिया जाता है
|
मानसून समय से नहीं आया ,मानसून समय से गया नहीं,मानसून
चकमा दे गया ,मानसून ने निराश किया आदि बातें क्यों ?सीधी सी बात है कि
मानसून आने के विषय में हमने जो भविष्यवाणी की यदि वह गलत हो गई तो इसमें मानसून का दोष क्या है गलत तो हमारी भविष्यवाणी हुई है ?
ऐसे ही सन 2018 अगस्त में सामान्य वर्षा की भविष्यवाणी की गई किंतु उसी
समय केरल में भीषण वर्षा होने लगी भयंकर बाढ़ आ गई | सच्चाई ये है कि
पूर्वानुमान लगाने में चूक हुई है किंतु बाढ़ आने का कारण हम जलवायुपरिवर्तन
को बता रहे होते हैं |
सन 2018 के मई जून में बार बार आए
हिंसक आँधी तूफ़ानों के विषय में कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकी थी तथा 7 और
8 मई को आँधी तूफ़ान आने के लिए भविष्यवाणी की गई तो वो पूरी तरह गलत हो गई
| ऐसा इसीलिए हुआ क्योंकि आँधी तूफ़ानों के विषय में पूर्वानुमान लगाने के
लिए अपने पास कोई प्रक्रिया है ही नहीं ! | इसलिए पूर्वानुमान लगाने वालों
से चूक हुई किंतु दोष तूफानों का दिया जाने लगा कहा गया कि -'चुपके से आते
हैं चक्रवात' या ग्लोबलवार्मिंग के कारण आते हैं तूफ़ान |
कुलमिलाकर ऐसी असफल भविष्यवाणियों की सूची काफी लंबी भी हो सकती है जिसके
विषय में हम केवल इतना ही कहना चाहते हैं कि मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं
के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए अभी तक कोई तकनीक विकसित ही नहीं हो
पाई है |
वर्तमान समय में मौसम संबंधी पूर्वानुमान अनुसंधानों
के नाम पर एक ऐसे ताले को खोलने का प्रयास किया जा रहा है जिसकी अपनी चाभी
खो गई है दूसरी चाभियों से उसे खोलने का प्रयास किया जा रहा है किंतु ताला
खुल नहीं पा रहा है | जिसको खोलने में असफल रहने के कारण लोग ताले को ही
खराब बताने लगे हैं | किसी का ध्यान इस ओर नहीं आ रहा है कि कहीं ऐसा तो
नहीं है कि हम ताला खोलने के लिए जिस चाभी का प्रयोग कर रहे हैं वो चाभी ही
गलत हो |
यही स्थिति हमारे मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाने की
है मौसम निर्माण करने वाली शक्तियों का अनुसंधान करने के बजाए
जलवायुपरिवर्तन ,ग्लोबलवार्मिंग,अलनीनो-लानीना जैसी निरर्थक कल्पनाएँ की जा
रही हैं | वर्षा बाढ़ और आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं के विषय में लगाया जाने
वाला पूर्वानुमान निरंतर गलत होता जा रहा है |
बादलों या आँधी
तूफ़ान जैसी घटनाओं को उपग्रहों रडारों आदि के माध्यम से देखकर उनकी गति और
दिशा के हिसाब से अंदाजा लगाकर कि ये किस दिन किस देश प्रदेश या शहर आदि
में पहुँच सकते हैं उसके आधार पर मौसम संबंधी भविष्यवाणी कर दी जाती हैं
इसी बीच हवाएँ यदि बदल गईं तो वो अंदाजा भी गलत हो जाता है | ऐसा अंदाजा
लगाने में विज्ञान कहाँ है |
महामारीविज्ञान और विनम्र वेदना
वैज्ञानिक अनुसंधानों से अनेक क्षेत्रों में अभी तक जो सफलता मिलती रही है उससे जनता की अनेक क्षेत्रों में कठिनाइयाँ कम हुई हैं एवं उनकी जीवनचर्या को आसान बनाया जा सका है| इसी के साथ यह स्वीकार करने में भी कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि मौसम संबंधी प्राकृतिक अनुसंधानों को संतोषजनक नहीं हैं |
खगोलविज्ञान के आधार पर मैं पिछले लगभग तीस वर्षों से मौसम और महामारी जैसे प्राकृतिक विषयों में अनुसंधान करता आ रहा हूँ उसके आधार पर जो अनुभव प्राप्त हुए हैं वे इस ओर स्पष्ट संकेत देते हैं कि महामारी के घटित होने में मौसमसंबंधी प्राकृतिक घटनाओं की बहुत बड़ी भूमिका रही है |इसके आधार पर हमने महामारी के विषय में जो जो अनुमान या पूर्वानुमान लगाए हैं वे पूरी तरह सही घटित हुए हैं | इसी विश्वास पर मुझे यह कहने में कोई संशय नहीं है कि मौसमसंबंधी प्राकृतिक घटनाओं के आधार पर सामूहिक रोगों या महारोगों (महामारी)के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |
ऐसी परिस्थिति में विश्वासपूर्वक कह सकता हूँ कि मौसमसंबंधी प्राकृतिक घटनाओं को ठीक ठीक समझे बिना सामूहिक प्राकृतिक रोगों या महारोगों (महामारी)के विषय में किया जाने वाला कोई भी अनुसंधान अधूरा ही रहेगा | इसके लिए छोटे बड़े सभी प्राकृतिक परिवर्तनों के वास्तविक कारणों की खोज की जानी चाहिए और खोज से प्राप्त अनुभवों के आधार पर भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ आदि प्राकृतिक घटनाओं के विषय में जो पूर्वानुमान लगाया जाए वह जितने प्रतिशत सही घटित होगा | सामूहिक प्राकृतिक रोगों या महारोगों (महामारी)के विषय में किए जाने वाले अनुसंधान उतने ही प्रतिशत सही घटित होने की आशा की जानी चाहिए उससे अधिक नहीं |
चूँकि अभी तक ऐसी कोई वैज्ञानिक अनुसंधान प्रक्रिया नहीं विकसित की जा सकी है जिसके आधार पर मौसमसंबंधी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के सही कारण खोजे जा सके हों या उनके सही पूर्वानुमान लगाए जा सके हों | हमेंशा से बसंत और ग्रीष्म ऋतु में तापमान बढ़ जाएगा तथा हेमंत और शिशिर ऋतुओं में तापमान कम हो जाएगा एवं प्रावृट और वर्षाऋतु में वर्षा होगी |इसे लोग जानते हैं | बसंत आदि अपनी अपनी ऋतुओं के समय में ऋतुप्रभाव किसी वर्ष कुछ कम रहेगा किसी वर्ष कुछ अधिक रहेगा और किसी वर्ष उचित मात्रा में रहेगा | प्रकृति का यह क्रम सभी को पता ही है | इसलिए ऐसी घटनाओं में मौसम संबंधी अनुसंधानों की भूमिका ही बचती ही कितनी है |
प्राकृतिक परिवर्तनों से संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधानजनित अनुभवों की शून्यता के कारण ही मौसम या महामारी से संबंधित जो भी प्राकृतिक घटनाएँ प्रकृतिक्रम से थोड़ा भी हटकर घटित होने लगती हैं | उनके लिए वैज्ञानिकों के द्वारा या तो आश्चर्य व्यक्त करवा दिया जाता है या फिर उनके घटित होने का कारण जलवायुपरिवर्तन को बतवा दिया जाता है |जिन घटनाओं के घटित होने का कारण जलवायुपरिवर्तन को माना जाने लगा है महामारियों के घटित होने के लिए वही घटनाएँ जिम्मेदार हैं | उनके रहस्य को उद्घाटित किए बिना महामारियों के घटित होने का सही कारण पता लगाना एवं उनका पूर्वानुमान लगाना संभव ही नहीं है | यही कारण है कि डेढ़ वर्ष हो रहा है महामारी के विषय में कोई विश्वसनीय जानकारी अभीतक उपलब्ध नहीं करवाई जा सकी है और भविष्य में हजारों वर्षों तक भी यदि मौसम को आग करके महामारियों के विषय में अनुसंधान किये जाए रहेंगे तो उनसे कभी कोई सार्थक परिणाम नहीं निकलेगा ऐसा मैं विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ |
अबकी बार भी कोरोनामहामारी आने के कुछ वर्ष पहले से मौसमसंबंधी कई ऐसी प्राकृतिक घटनाएँ घटित हुई हैं और महामारी के समय में भी ऐसी घटनाएँ घटित होती रही हैं महामारी काल में एक हजार से अधिक बार भूकंप केवल भारत में आए हैं मई के महीने तक वर्षात होती रही है भीषण सर्दी की ऋतु में भी जनवरी के बाद से अचानक तापमान बढ़ने लग गया था ऐसी कई अन्य भी प्राकृतिक घटनाएँ घटित हुई हैं जो हमेंशा नहीं देखी जाती हैं|ऐसी घटनाओं के विषय में न तो कोई पूर्वानुमान लगाया जा सका था और न घटनाओं के घटित होने के बाद ही उनके घटित होने का कोई कारण पता लगाया जा सका था |कुल मिलाकर प्रकृति के सहज क्रम से अलग हटकर जो प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती हैं उनके घटित होने का कारण जलवायु परिवर्तन को मान ही लिया जाता है | इसलिए उनका पूर्वानुमान लगाने की कोई आवश्यकता समझी नहीं गई जबकि यही वे घटनाएँ थीं जिनके आधार पर महामारी एवं भविष्य की संभावित प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता था | मैंने इसी के आधार पर महामारी के विषय में जो जो पूर्वानुमान लगाए हैं वे सही घटित हुए हैं |
भूमिका
महामारी हो मौसम इनसे संबंधित प्राकृतिक आपदाएँ आती हैं चली जाती हैं कई बार इनका वेग इतना अधिक तीव्र होता है कि भारी जनधन की हानि होते देखी जाती है | घटनाएँ घटित होने के बाद कुछ आधार विहीन काल्पनिक कहानियाँ तैयार करके अपने मन को संतोष दे लिया जाताहै और ऐसी ही निराधार बातें वैज्ञानिक अनुसंधानों के रूप में मीडिया में परोस दी जाती हैं | उन्हें ही मीडिया समाज में प्रसारित कर दिया करता है | उन काल्पनिक कहानियों का उस विषय के विज्ञान से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं होता है और न ही वे सच होती हैं | ऐसी मनगढंत कहानियों की शरण लेकर वास्तविक सच को समाज से कब तक छिपाकर रखा जा सकेगा |
1864 में चक्रवात के कारण कलकत्ता में हुई क्षतिऔर1866 और1871 के अकाल के बाद1875 में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुई।जिसका उद्देश्य ऐसी घटनाओं के घटित होने का वास्तविक कारण खोजना एवं उनके विषय में पूर्वानुमान लगाना था | लगभग 144 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं ये अनुसंधान यात्रा लगभग वहीं रुकी हुई जहाँ से प्रारंभ हुई थी |
ग्रीष्मऋतु में किसी वर्ष सीमा से अधिक या कम गर्मी पड़ जाए या हेमंत शिशिर आदि ऋतुओं में सीमा से अधिक या कम सर्दी पड़ने लग जाए | वर्षा ऋतु में बहुत काम या बहुत अधिक वर्षा हो जाए या वर्षाऋतु आने के समय से काफी पहले या काफी बाद में वर्षा होना प्रारंभ हो या वर्षाऋतु समाप्त होने के समय से पहले या बाद में वर्षाऋतु जन्य वर्षा होना समाप्त हो | किसी बहुत अधिक बज्रपात होने ,ओले गिरने ,भूकंप होने या आँधी तूफ़ान जैसी घटनाएँ घटित होने का कारण खोजना या पूर्वानुमान लगाना ही मौसमविज्ञान के द्वारा संभव हो पाया है|
इसीलिए
आज तक जितनी भी अनिमित या असंतुलित प्राकृतिक घटनाएँ घटित हुई हैं उनमें
से किसी भी घटना के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाए जा सके हैं और
उपग्रहों रडारों के माध्यम से जिन बादलों आँधी तूफानों आदि की जासूसी कर भी
ली जाती है उसकी गति और दिशा के हिसाब से कुछ तीर तुक्के लगा भी लिए जाते
हैं उनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता है इसीलिए वे प्रायः गलत निकल
जाया करते हैं | यही कारण है कि वर्षा आँधी तूफानों आदि के विषय में जब
जब जो भी पूर्वानुमान लगाए जाते हैं उनमें से सच तो कोई नहीं निकलता है |
वह बात और है कि मौसमसंबंधी घटनाओं के विषय में लोग ज्यादा ध्यान नहीं देते
हैं इसलिए बातें पकड़ में नहीं आती हैं किंतु महामारी के समय में यह पूरी
तरह से साफ हो गया कि आधुनिकविज्ञान में पूर्वानुमान लगाने की क्षमता
नहीं है | यही कारण है कि महामारी के विषय में जिन जिन वैज्ञानिकों के
द्वारा जब जब जो जो पूर्वानुमान लगाए गए वे सब के सब गलत निकले हैं | इसका कारण प्रकृति को समझने की क्षमता रखने वाले वैज्ञानिक अनुसंधानों का अभाव है |
दशकों से या वर्षों से प्रकृति में होते चले आ रहे उथल पुथल के परिणाम स्वरूप सभीप्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ एवं महामारियाँ आदि घटित होती हैं | इसलिए ऐसी घटनाओं के वास्तविक कारण एवं पूर्वानुमान को खोजने के लिए प्रकृति क्रम या संतुलन आदि को समझना बहुत आवश्यक है | प्रकृति में घटित घटनाओं के स्वभाव को समझना बहुत आवश्यक है | बनस्पतियों एवं जीव जंतुओं पर उसके पड़ने वाले प्रभाव को समझना आवश्यक है | इन्हीं सभी परिवर्तनों का संयुक्त अनुसंधान करके इसी आधार पर संभावित प्राकृतिक घटनाओं रोगों एवं महारोगों के स्वभाव को समझा जा सकता है और उसी के आधार पर महामारी समेत भविष्य में घटित होने वाली सभी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |
भारत वर्ष की प्राचीन शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान परंपरा में प्रकृति को समझने लायक बहुत कुछ ऐसा है जिसके आधार पर प्रकृति के स्वभाव को समझा जा सकता है | प्रकृति में समय समय पर आने वाले प्राकृतिक बदलावों को एवं उनके क्रम को समझा जा सकता है उनके गणीतीय सूत्रों को खोजा जा सकता है उसके आधार पर सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | इससे प्रकृति संबंधी वैज्ञानिक अनुसंधानों की कमजोरियों को दूर करके उनमें सुधार किया जा सकता है | ऐसे विषयों से संबंधित कुछ जिम्मेदार लोगों की संकीर्णता की कीमत हर बार समाज को जन धन की हानि सहकर चुकानी पड़ती है | सूखा बाढ़ आँधी तूफान भूकंप महामारी आदि जितने भी प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ पिछले दस बीस वर्षों में घटित हुई हैं उनके घटित होने के न तो कारण खोजे जा सके और न ही स्पष्ट पूर्वानुमान लगाए जा सके हैं | पूर्वानुमान लगाने के नामपर जो जो कुछ किया जाता है घटनाओं के साथ उनका कभी कोई संबंध भी नहीं सिद्ध हो सका है | इसलिए भारत के पारंपरिक ज्ञानविज्ञान की मदद से प्रकृति को ठीक ठीक प्रकार से समझे जाने की आवश्यकता है इसके बिना न मौसम और महामारी दोनों को ही समझना संभव नहीं है |
महामारी अनुसंधान और चिंताएँ !
प्राचीनकाल की अपेक्षा वर्तमानसमय में विज्ञान ने बहुत तरक्की की है समुद्र की गहराई से लेकर आकाश की ऊँचाई तक कहीं भी पहुँच पाना संभव हो सका है|सभी स्थानों पर संचार के साधन सुलभ हुए हैं | जीवन के आवश्यक प्रायः सभी सभी क्षेत्रों से संबंधित अनेकों प्रकार के छोटे बड़े यंत्रों का निर्माण किया जा सका है|जो कठिन से कठिन कार्यों को आसान बना देते हैं |
वैज्ञानिकअनुसंधानों के द्वारा न केवल भूकंपों के घटित होने का कारण खोजने में हम सफल हुए हैं अपितु भूकंप धरती की कितनी गहराई में आया है भूमिगत गैसों के दबाव से आया है या भूमिगत प्लेटों के आपस में टकराने से आया है | कुलमिलाकर जमीन के अंदर घटित होने वाली घटनाओं के विषय में इतना स्पष्ट पता लगा लेने जैसा कठिन कार्य इन्हीं वैज्ञानिक अनुसंधानों के बलपर किया जा सका है |
वर्षा के विषय में वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा दीर्घावधि मध्यावधि एवं अल्पावधि पूर्वानुमान लगाए जा रहे हैं | मानसून आने जाने की तारीखों को खोजने में सफलता हासिल की जा चुकी है |आँधीतूफानों का अनुमान लगा लिया जाने लगा है अलनीनों ला-निना के मौसम पर पड़ने वाले प्रभाव का अनुमान लगा लिया जाने लगा है|तापमान एवं वायुप्रदूषण के घटने बढ़ने के स्तर को माप लिया जाने लगा है |वायुप्रदूषण के बढ़ने घटने के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले कारणों को खोज लिया गया है | जलवायु परिवर्तन जैसे दीर्घकालिक घटनाओं के पूर्वानुमान लगा लिया गया है उसके प्रभाव से आज के सौ दो सौ वर्ष बाद घटित होने वाली संभावित प्राकृतिक आपदाओं के विषय में अभी से पूर्वानुमान लगाया जा चुका है | उन प्रकृति परिवर्तनों के कारण होने वाले संभावित रोगों के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया गया है |
चिकित्सा समेत सभी क्षेत्रों में अत्यंत उन्नत एवं सूक्ष्म व्यवस्थाएँ विकसित की जा सकी हैं |रोगों का परीक्षण करने के लिए अत्याधुनिक तकनीक विकसित कर गई है | जिससे बड़े बड़े रोगों के वास्तविक स्वरूप का पता लगा लिया जाता है और उसकी चिकित्सा खोज ली जाती है जिससे रोगी लोग स्वरस्थ हो जाया करते हैं |वैक्सीन जैसी बड़ी विधा किसी छोटे अनुसंधान का परिणाम नहीं है जिसका सभी लोगों पर लगभग समान रूप से प्रयोग किया जा सकता है बचपन में लगाए जाने वाले टीके सारे जीवन स्वास्थ्य की सुरक्षा में सहायक बनते हैं |यहाँ कि जलवायु परिवर्तन आदि के प्रभाव से आज के सौ दो सौ वर्ष बाद घटित होने वाले संभावित रोगों के विषय में अभी से पूर्वानुमान लगाया जा चुका है |
चिकित्सा के क्षेत्र में रोगों का पूर्वानुमान लगाने में सफलता प्राप्त हुई है | महामारी की दूसरी तीसरी आदि लहरें कब आएँगी और कब जाएँगी !यहाँ तक कि संक्रमितों की संख्या कब कितनी बढ़ेगी या घटेगी ! इस बात का आगे से आगे पूर्वानुमान लगा लिया जाता है| उन प्रकृति परिवर्तनों के कारण होने वाले संभावित रोगों के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया गया है |
कोरोना जैसी महामारी को ही लें तो चीन से शुरू होकर कोरोना जैसे जैसे आगे बढ़ता गया वैसे वैसे पता लगता गया | उन्नत विज्ञान एवं चिकित्सकीय अनुसंधानों उपकरणों की सुविधा से अब तो कोरोना महामारी को समझना बहुत आसान हो गया है | उन्हीं चिकित्सकीय वैज्ञानिकअनुसंधानों के द्वारा ही इसे शुरुआत के समय में ही चीन में पहचान लिया गया | उन्नत संचार माध्यमों से सारे विश्व को यह जानकारी तुरंत दे दी गई|विश्व के अधिकाँश वैज्ञानिक अपने अध्ययनों अनुभवों को दूसरे देश के वैज्ञानिकों के साथ साझा कर सकने में समर्थ हुए |जिनसे अनुसंधान कार्यों में गति मिलती रही |औषधियाँ बनाना आसान हो गया है बहुत कम समय में भारी मात्रा में महामारी के विषय में जानकारी जुटाई जा सकती है | औषधियाँ तैयार की जा सकती हैं | उन्हें कहीं से कहीं तक बहुत कम समय में पहुँचाया जा सकता है |ऑक्सीजन तकनीक एवं वैक्सीन आदि व्यवस्थाएँ विकसित की जा सकी हैं | कुल मिलाकर वर्तमानसमय में विज्ञान ने बहुत बड़ी तरक्की की है इससे समस्त वैश्विक समाज लाभान्वित हो रहा है | यह सब सोचकर हम सभी को अपने वैज्ञानिकों के प्रयासों पर गर्व होता ही है |
वैज्ञानिकों के नित नूतन अविष्कार समाज का विश्वास जीत पाने में सफल रहे हैं | विज्ञान जैसे जैसे तरक्की करता जा रहा है वैसे वैसे मानव मन विज्ञान के सहारे निश्चिंत होता जा रहा है |बड़े बड़े लोगों से ग्रस्त लोग चिकित्सा वैज्ञानिकों के प्रयासों के बल पर अपने रोगों के विषय में एवं रोगों से मुक्ति पाने के बिषय में जानकारी पा लिया करते हैं | किस रोग से कब तक स्वस्थ हुआ जा सकता है इस बात का पूर्वानुमान लगा लिया करते हैं | हार्टसर्जरी जैसी कठिन शल्यक्रिया के बाद वे कब तक स्वस्थ हो जाएँगे इस बात का अनुमान लगा लिया करते हैं | लोग बड़ी बड़ी विज्ञान के प्रति विश्वास बढ़ने की इस क्रमिक यात्रा में महामारी ने अचानक ऐसा व्यवधान डाला है कि लोग अब महामारी के भयानक भय को भूल ही नहीं पा रहे हैं |
महामारी के विषय में समाज की चिंताएँ स्वाभाविक भी हैं !
महामारी तो बीतती जा रही है क्रमशः समाप्ति की ओर है किंतु समाज के मन में महामारी का जो भय बैठ गया है वो निकलने का नाम ही नहीं ले रहा है | समाज का प्रत्येक वर्ग महामारी को लेकर सशंकित है | महामारी न जाने कब दोबारा लौट आवे और अपनों को छूने से डर लगने लगे,फिर सारे काम काज बंद करने पड़ें , फिर लॉकडाउन लगा दिया जाए, फिर बाजार स्कूल आदि बंद कर दिए जाएँ | लोगों को एक दूसरे से मिलना जुलना बंद करना पड़े | श्रमिकों को शहर छोड़ छोड़कर हजारों किलोमीटर पैदल चलकर अपने अपने गाँवों के लिए पलायन करना पड़े | विवाह आदि के कार्यक्रम स्थगित करने पड़ें | कोरोना जैसी किसी महामारी के प्रभाव से न जाने कब लोग भारी संख्या में संक्रमित होने लगें, कब अस्पतालों में जगह न मिलने लगे,औषधियों आक्सीजन आदि का आभाव होने लगे | लोग के शरीरों को अंतिम समय भी अतिप्रिय अपनों के आत्मीय हाथों का स्पर्श न मिल सके ! सहज न छोड़े जा सकने योग्य अपनों के शरीरों का अपशिष्ट पदार्थों की तरह परित्याग करना पड़े !शमशानों में भारी भीड़ लग जाए |ऐसी बहुत सारी चिंताएँ मानव मन को दिन रात बिचलित किए रहती हैं |
चिकित्सा वैज्ञानिकों ने स्वास्थ्य संबंधी सारी जिम्मेदारियाँ जब तक सँभाल रखी थीं तब तक समाज चिकित्सा वैज्ञानिकों के भरोसे बिल्कुल निश्चिंत बना रहता था | महामारी के समय चिकित्सकों के द्वारा किए गए बहुत सारे प्रयासों से जनता को बहुत आशा थी कि हमारे चिकित्साविज्ञानिक हमें संक्रमित नहीं होने देंगे,हमें संक्रमण से मुक्ति दिला देंगे,हमें मरने नहीं देंगे !बहुत सारे धनीवर्ग के लोग अपनों को बचाने के लिए भारी भरकम धनराशि खर्च करने को तैयार थे किंतु किसी से कोई सहयोग नहीं मिल सका |महामारी के विभिन्न विषयों बहुत वैज्ञानिकों के द्वारा अनेकों प्रकार के अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए गए ऐसे चिकत्सा वैज्ञानिकों की बातों पर जनता ने विश्वास किया किंतु उनके द्वारा लगाए गए अनुमान सही नहीं निकले | उनसे जनता को कोई विशेष सहयोग नहीं मिल सका |
महामारी आने और जाने के बिषय में कभी कोई निश्चित पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका और जो बताए जाते रहे उनका न कोई तर्कसंगत वैज्ञानिक आधार ही प्रस्तुत किया जा सका और न वे सही ही होते देखे गए | महामारी मनुष्यकृत थी या प्राकृतिक इस बिषय में कभी कोई विश्वसनीय उत्तर नहीं दिया जा सका | महामारी का विस्तार कितना है प्रसारमाध्यम क्या है अंतरगम्यता कितनी है | महामारी पैदा होने का कारण क्या है और इसके समाप्त होने का उपाय क्या है | महामारी से संक्रमितों की संख्या अचानक बढ़ने और घटने का कारण मनुष्यकृत है या प्राकृतिक !इनके विषय में पता नहीं लगाया जा सका | महामारी के परिवर्तन शील स्वभाव संचार लक्षण आदि को अंत तक नहीं पहचाना जा सका | महामारी का संक्रमण बढ़ने घटने पर ऋतुजन्य परिवर्तनों का कितना प्रभाव पड़ता है | तापमान के घटने बढ़ने का कितना प्रभाव पड़ता है | वायु प्रदूषण का स्तर कम ज्यादा होने का महामारी के संक्रमण विस्तार पर किस प्रकार का कितना प्रभाव पड़ता है | महामारी से जूझती जनता महामारी से संबंधित ऐसी सभी प्रकार की जरूरी जानकारी अपने प्रिय चिकित्साविज्ञानिकों से प्राप्त करना चाहती थी | वो मिल नहीं पाई और जो मिली भी उसकी सच्चाई कभी सिद्ध नहीं हो सकी |
इसीलिए वर्तमान समय में जहाँ एक ओर समाज के मन में भविष्य को लेकर तमाम आवश्यकताओं की आपूर्ति की चिंता है तो दूसरी ओर महामारी को लेकर तरह तरह की अफवाहें आशंकाएँ एवं बड़ी बड़ी चिंताएँ हैं कि महामारी की तरह ही न जाने कब किस प्रकार की परिस्थिति का सामना अचानक करना पड़ जाए |महामारी से अकेली जूझती रही जनता ने महामारी से भी बहुत कुछ सीखा है आधी अधूरी जानकारियों को लेकर वैज्ञानिक लोग मीडिया को परोस दिया करते थे|उन्हें वैज्ञानिकों के अनुसंधान जनित अनुभव समझकर जनता उन पर विश्वास कर लिया करती थी |वे बाद में गलत निकल जाया करते थे | वही वैज्ञानिक फिर कुछ दूसरा बोल दिया करते थे बाद में वह भी गलत निकल जाया करता था | कुलमिलाकर महामारी काल में महामारी के विषय में चिकित्साविज्ञानिकों के द्वारा समय समय पर दी जाती रहीं जानकारियाँ अक्सर गलत होती रही हैं | उन्हीं कटु अनुभवों के आधार पर महामारियों के विषय में अब किसी की किसी प्रकार की बातों पर विश्वास करना जनता के लिए कठिन होता जा रहा है |समाज के इस टूटते विश्वास को बचाया जाना बहुत आवश्यक है |
सैकड़ों वर्षों से सरकारों के द्वारा जिन वैज्ञानिक अनुसंधानों पर पानीकी तरह पैसा बहाया जा रहा हो !उसके बाद भी प्राकृतिक आपदाओं या महामारियों से जनता को सीधे स्वयं जूझना पड़ रहा हो | बाद में सरकारें बचाव के लिए मल्हम लेकर पहुँच जाती हों | वैज्ञानिक अनुसंधानों का उद्देश्य केवल इतना ही नहीं था | महामारी के समय लॉकडाउन लगाकर सारा काम काज ठप्प करना पड़ा ही हो और लाखों लोगों को बीमार होकर मरना भी पड़ा हो तो यह अपने को धोखा देने वाली बात है कि यदि वैज्ञानिक सहयोग न मिला होता इतने लोग और अधिक संक्रमित हो सकते थे या इतनी मौतें और हो सकती थीं |
कुलमिलाकर महामारी के समय जनता को जिस दुर्दशा से बचाया जाना चाहिए था वह भोगनी ही पड़ी इसके बाद वैक्सीन के रूप में जो सुरक्षा कवच उपलब्ध करवाया गया | वह प्रभावी रहा या नहीं रहा या कितना रहा इसे समझने का जनता के पास कोई पैमाना नहीं था | संक्रमण की जाँच या वैक्सीन आदि के जब आधुनिक संसाधन नहीं थे महामारियाँ तो तब भी आती जाती रही हैं डेढ़ दो वर्ष तो कोरोना महामारी को भी हो ही रहे हैं | वैसे भी जीवन भर रहने के लिए तो महामारियाँ आती नहीं हैं |
इसलिए हमें वैज्ञानिक अनुसंधानों के उद्देश्यों को याद रखना चाहिए कि वैज्ञानिक अनुसंधानों का उद्देश्य प्राकृतिक घटनाओं के विषय में केवल आंकड़े जुटाना या किस घटना ने कितने वर्षों का रिकार्ड तोड़ा है या कहाँ कितने सेंटीमीटर बारिश हुई है यह बताना मात्र नहीं है और न ही सारी प्राकृतिक घटनाओं को जलवायु परिवर्तन के मत्थे मढ़ देना ही है जलवायु परिवर्तन जैसी कोई घटना घटित हो भी रही हो तो उसे भी ध्यान में रखकर पूर्वानुमान लगाना ही तो मौसम वैज्ञानिकों की जिम्मेदारी है |फावड़ा चलाने वाले की कमर कोई दूसरा व्यक्ति पकड़कर नहीं रखता है उसे भी सँभाल कर रखने की जिम्मेदारी भी फावड़ा चलाने वाले की ही होती है |इसलिए मौसम और महामारी से संबंधित पूर्वानुमानों की असफलता जलवायु परिवर्तन के मत्थे मढ़कर अपने अनुसंधानों को एवं उस अनुसंधान प्रक्रिया को क्षमतावान एवं सफल कैसे माना जा सकता है |
सरकारों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे जिस कठोरता के साथ जनता से टैक्स वसूलकर उसका कुछवैज्ञानिक अनुसंधानों पर खर्च किया करती हैं उसी जिम्मेदारी के साथ सरकारें महामारियों एवं प्राकृतिक आपदाओं के विषय में पूर्वानुमान एवं स्वास्थ्य सुरक्षा कवच वैज्ञानिक अनुसंधान पूर्वक जनता को उपलब्ध करवाएँ | ताकि भविष्य में महामारियाँ आवें भी तो हमारे पास वैज्ञानिकों के प्रयासों से कोई ऐसा सुरक्षा कवच उपलब्ध हो सके कि कम से कम लोग संक्रमित हों एवं किसी की मृत्यु महामारी या प्राकृतिक आपदा से न हो | इसके साथ ही लॉकडाउन लगाकर सारे काम काज को ठप्प न करना पड़े |
इसलिए ऐसे विज्ञान की खोजपर ध्यान दिया जाना चाहिए जो प्रकृति के समय समय पर बनते बिगड़ते स्वभाव को समझने में सहायक हो उसके आधार पर प्राकृतिक घटनाओं एवं महामारियों के बिषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता हो !जिससे ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधान प्राकृतिक मुसीबतों से जनताकी सुरक्षा करते हुए उसे भयभीत होने से बचा सकें |
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