दो शब्द -
ऐसा कभी नहीं सोचा गया था ! लॉकडाउन लगने से सारे काम काज ठप्प पड़ जाएँगे !स्कूल कालेज बंद हो जाएँगे !यातायात के साधन अवरुद्ध हो जाएँगे | ऐसी परिस्थिति में भोजन जैसी आवश्यक वस्तुओं के लिए भी सोचना पड़ेगा | लोगों को अपनों से भी मिलने में भय लगने लगेगा | गंगा जी की रेती में निर्जीव शरीर विखरे पड़े होंगे | चिकित्सालयों से लेकर श्मशान तक अवरुद्ध हो जाएँगे !निर्जीव शरीरों को स्वजनों के हाथों का स्पर्श मिलना मुश्किल हो जाएगा | स्वजनों के शवों को देखने से भी लोग बचते दिखाई देंगे | वर्तमान पीढ़ी के लोगों ने ऐसी दुखद कभी कल्पना भी नहीं की होगी जो दुर्दृश्य देखने को मिले हैं |
कोरोना जैसी महामारी से जूझती जनता की पीड़ा के दुखद दृश्य जो देखने को मिले वे शायद इस जन्म में भूल पाना संभव नहीं होगा |सबसे बड़ी पीड़ा की बात यह है कि इस वैज्ञानिक युग में जिन वैज्ञानिक प्रयासों से मानव चंद्रमा पर कदम रखने में सफल हुआ है | चिकित्सा दूरसंचार आदि कई अन्य क्षेत्रों में कई बड़े कीर्तिमान स्थापित कर चुका है | जहाँ एक ओर अपनी वैज्ञानिक सफलता पर गर्व होता हैं वहीं दूसरी ओर एक बड़ी चिंता की बात यह है कि कोरोना जैसी इतनी बड़ी महामारी अचानक प्रारंभ होने का कारण क्या है इसका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका |महामारी के स्वभाव को समझा नहीं जा सका | इतनी बड़ी महामारी अचानक प्रारंभ हुई इसके शुरू होने से पहले इसके विषय में पूर्वानुमान लगाकर जनता को सूचित नहीं किया जा सका | मेरी जानकारी के अनुशार महामारी आदि विषयों में वैज्ञानिक अनुसंधान तो हमेंशा चलते ही रहते होंगे, जिसमें दो वर्ष महामारी को आए भी हो गए हैं किंतु अभी तक अँधेरे में ही तीर चलाए जा रहे हैं |महामारी को लेकर अभी तक कोई विश्वसनीय बात दृढ़ता पूर्वक कही जा सके ऐसा संभव नहीं हो पाया है |
महामारियाँ अन्य प्राकृतिक आपदाओं की तरह आती अचानक ही हैं और जनधन की हानि बहुत करती हैं | महामारी कहने का मतलब ही होता है कि इस समय होने वाले रोगों को पहचानना आसान नहीं होगा | इसकी चिकित्सा खोजना भी कठिन होगा | महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाना तो और भी कठिन होगा | इन्हीं जटिलताओं का समाधान खोजने के लिए तो वैज्ञानिक अनुसंधानों की आवश्यकता होती है | जनता को उनसे यह आशा और अपेक्षा रहती है कि हमारे महान वैज्ञानिक महामारी से संबंधित अभी तक किए गए अपने अनुसंधानों अनुभवों के बलपर महामारी के संकट काल में भी समाज को सुरक्षित बचाने में सफल होंगे | चिकित्सकों को भगवान् का दूसरा स्वरूप मानने वाला समाज आज इसलिए हतप्रभ है कि महामारी जैसे भयावह समय में समाज को महामारी से ही अपने एवं अपनों के जीवन की भीख माँगनी पड़ी है | महामारी ने जिसे चाहा उसे छोड़ दिया है और जिसे चाहा उसे निगल लिया है | हम अपनी वैज्ञानिक तैयारियों के बलपर महामारी से बचाव करना तो दूर रहा महामारी का स्वभाव समझने में आंशिक रूप से भी सफल नहीं हो पाए हैं |जनता के जीवन से संबंधित यह बहुत बड़ी घटना है जिसे दशकों तक भुलाया नहीं जा सकेगा |
ये चिंता की बात है कि तीन वर्ष तक जो महामारी रौंदती रही उसके विषय में यह भी पता नहीं लगाया जा सका कि यह संकट प्राकृतिक है कि मनुष्यकृत ! संक्रमण वायु में है या नहीं !महामारी का विस्तार कितना है प्रसार माध्यम क्या है अंतर्गम्यता कितनी है ! महामारी पर किस मौसम का प्रभाव कैसा पड़ेगा ! तापमान बढ़ने घटने का महामारी पर क्या प्रभाव होगा | वायु प्रदूषण का महामारी पर कैसा प्रभाव पड़ेगा !संक्रमण अचानक बढ़ने घटने का कारण क्या है !महामारी कब तक रहेगी |किस किस प्रकार के लोगों की महामारी से संक्रमित होने की संभावना है |मृत्यु किस वर्ग ,उम्र या श्रेणी के लोगों की हो सकती है | इससे बचाव के लिए किस प्रकार का खान पान रहन सहन आदि अपनाया जाना चाहिए |संक्रमितों पर चिकित्सा का कैसा प्रभाव पड़ेगा | ऐसी तमाम आवश्यक बातों की जानकारी अंत तक नहीं पता लगाईं जा सकी है |
महामारी की जगह यदि किसी शत्रु राजा के द्वारा इसीप्रकार से अचानक हमला करके पूरे देश को चपेट में ले लिया गया होता | अपने पास उससे निपटने की तैयारी बिल्कुल न होती | शत्रु की तैयारियों एवं युद्ध कौशल के विषय में अनुमान ही न होता | उस समय राजा की आक्रामकता का पता लगाने के लिए रिसर्च शुरू की जाती उसके आधार पर जो जो अनुमान या पूर्वानुमान लगाए जाते वे गलत निकलते जा रहे होते | ऐसी परिस्थिति में तो शत्रुकृत कृपा का ही सहारा बचता फिर तो जीवन की आशा उसी से लगानी पड़ती | महामारी ने जिस वर्ग ,उम्र या श्रेणी आदि के लोगों को अपनी चपेट में लिया उन्हें निगलते चली गई |उस समय महामारी के सामने आत्मसमर्पण करने के अतिरिक्त अंकुश लगाने लायक कोई उपाय समाज के पास नहीं था |
ऐसी परिस्थिति में महामारी में बहुत कुछ खो चुके समाज का भय दूर करने के साथ साथ उत्साह बर्द्धन के लिए महामारी जैसे भयावह संकट से बचाव हेतु कुछ ऐसा किया जाना आवश्यक हो गया है जिससे समाज के मन में बैठे महामारी के भय को कम किया जा सके ताकि समाज पहले की तरह ही अपने काम काज का उत्साह पूर्वक संचालन कर सके एवं निश्चिंत भाव से उत्साह पूर्वक जीवन जी सके |
विषय प्रवेश
विदेशों के पास तो आधुनिक विज्ञान था जबकि भारत के पास आधुनिक विज्ञान तो था ही इसके साथ ही साथ अपना प्राचीन वैदिकविज्ञान भी था | जिसके बल पर भारत में प्रकृति से लेकर जीवन तक से संबंधित सभी विषयों में हमेंशा से सही एवं सटीक अनुसंधान किए जाते रहे हैं | इसलिए भारत में दोनों पद्धतियों का उपयोग करते महामारी के विषय में सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाकर महामारी का भयावह समय प्रारंभ होने से पहले महामारी मुक्त समाज की नींव रखी जा सकती थी या फिर महामारी की इतनी भयावहता से बचाकर सुरक्षित रखा जा सकता था | कमी कहाँ रह गई इसके समझने की आवश्यकता है |
आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से देखें तो महामारी या प्राकृतिक आपदा जैसा कोई संकट उपस्थित होता है | ऐसे समय संकटों से जूझ रही जनता को वैज्ञानिक अनुसंधानों से प्राप्त अनुभवों की अपने बचाव के लिए सबसे अधिक आवश्यकता होती है | उस कठिन समय में अभी तक किए गए अनुसंधानों से जनता को कोई मदद न मिल पाना चिंता की बात है |
महामारियों एवं प्राकृतिक आपदाओं के विषय में अनुसंधान करने की जिम्मेदारी जिन्हें विशेषज्ञ समझ समझकर दी गई है और उन्होंने न केवल सहमति पूर्वक स्वीकार की है अपितु इसके लिए ही सरकारें उनका आर्थिकअर्चन करती हैं इसके साथ ही उन्हें उचित पद प्रतिष्ठा प्रदान करती हैं| इसके बाद जलवायुपरिवर्तन या महामारी के वैरियंटवदलने को भी अनुसंधान पूर्वक अच्छी प्रकार से समझकर ऐसी घटनाओं का कारण खोजना एवं उनसे बचाव के लिए पूर्वानुमान लगाकर उनसे सरकारों को अवगत करवाना ये उनका कर्तव्य होता है |
कुलमिलाकर जलवायुपरिवर्तन हो या वैरियंट बदले फिर भी प्राकृतिक संकटों के समय अनुसंधानों से जनता को हर हाल में मदद मिलना सुनिश्चित किया जाना चाहिए | उस महामुसीबत के समय जनता को ऐसी निरर्थक बातें बोलने का औचित्य ही क्या है| ऐसा कहना ही है तो ऐसे प्राकृतिक संकट आने से पहले ही जनता को बता दिया जाए कि हम महामारी अथवा प्राकृतिक आपदाओं के समय में आपकी कोई मदद करने की स्थिति में नहीं हैं तो जनता कोई आशा ही नहीं रखेगी |
जिन्हें ऐसे विषयों के विशेषज्ञ समझकर यह जिम्मेदारी सौंपी गई है संभावित ऐसी सभी परिस्थितियों से निपटना जिम्मेदारी सँभाल रहे उन विशेषज्ञों का अपना कर्तव्य बन जाता है | जिस प्रकार से देश की सीमाओं पर सुरक्षा के उद्देश्य से डटे सैनिक जिम्मेदारी सँभालकर संभावित सभी परिस्थितियों से स्वयं निपटते हैं |उस समय शत्रु कितनी भी चालें चले,वेष बदलकर हमला करे, कितना भी छल प्रपंच रचे | ऐसी सभी चालों को समझने की उन्हें ट्रेनिंग पहले ही दी जा चुकी होती है उसी विशेष योग्यता से संपन्न सैनिकों को ही ऐसी जिम्मेदारी दी गई होती है | उसी विशेष योग्यता एवं साहस के बल पर कर्तव्यनिष्ठ सैनिकों का लक्ष्य हर हाल में शत्रु को जीतना ही होता है और वह युद्ध को जीतकर ही चैन लेते भी हैं | प्रकृति वैज्ञानिकों से भी ऐसी ही अपेक्षा जनता किया करती है |
महामारियों का अपना कोई निश्चित स्वभाव आचरण या लक्षण आदि नहीं होता है |इसी अनिश्चितता के कारण महामारी में स्वरूप परिवर्तन का भ्रम होते देखा जाता है| इसीलिए प्रत्यक्ष लक्षणों के आधार पर महामारी को समझ पाना संभव नहीं होता है | विशेषज्ञ लोग ही अनुसंधान पूर्वक ऐसी महामारियों को समझ पाते हैं |
प्राकृतिक महामारियाँ प्रायः अपने समय से आतीं और अपने समय से ही जाती हैं | ये जब तक पीड़ित करती रहती हैं तब तक सरकारें और चिकित्सक चुप तो बैठते नहीं हैं ये अपनी जनता को महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए कोई न कोई औषधि टीका आदि उपाय तो किया ही करते हैं |
महामारी को समझने में कहाँ चूक गया वैदिक विज्ञान !
महामारी तथा प्राकृतिक आपदाओं की उत्पत्ति का कारण खोजना या इनके विषय में पूर्वानुमान लगाना प्रत्यक्ष विज्ञान के द्वारा संभव होता तब तो आधुनिक विज्ञान के द्वारा इसे आसानी से किया जा सकता था | ऐसी घटनाओं के स्वभाव को समझने के लिए प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों प्रकार के ही वैज्ञानिक अनुसंधानों की आवश्यकता होती है |
इसीलिए भारत के प्राचीन वैदिकविज्ञान से संबंधित विभिन्न ग्रंथों में न केवल महामारी एवं प्राकृतिक आपदाओं के आगमन से पहले उनके विषय में पूर्वानुमान लगाने की गणितीय विधा का वर्णन मिलता है अपितु ऐसी दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाने वाले यज्ञविज्ञान के आधार पर उपायों को भी बताया गया है |प्राचीन काल में ऐसे विषयों में सुयोग्य विद्वान लोग अनुसंधान पूर्वक महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में न केवल पूर्वानुमान लगा लिया करते थे अपितु यज्ञविज्ञान में वर्णित प्रभावी उपाय करके मानव समाज को ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षित बचा लिया करते थे |इस प्रकार से उस युग में भी महामारी मुक्त समाज का सपना साकार होते देखा जाता था जबकि उस समय आधुनिक विज्ञान जैसे संसाधन कहाँ थे |
वर्तमान समय में वेद विज्ञान के अध्ययन अध्यापन अनुसंधान आदि प्रक्रिया में सम्मिलित लोगों का भी इतना तो कर्तव्य बनता ही था कि वे भी उस परंपरा के अनुशार कुछ तो करते | महामारी जैसे कठिन संकट के अवसर पर अपनी शास्त्रीयक्षमता का परिचय देते हुए कोरोना महामारी आने के विषय में पहले से पूर्वानुमान लगाकर उनसे सरकारों को अवगत करवाते एवं यज्ञ विज्ञान पद्धति के आधार पर उपाय करवाकर समाज को महामारी मुक्त बनाए रखने की दृष्टि से कुछ तो सार्थक प्रयास करते | उनके प्रयास से तैंतीस कोटि देवी देवताओं की पहचान वाला यह देश अन्य धर्मावलंबियों की अपेक्षा कुछ तो अलग रहता | प्राचीन वैज्ञानिकों के प्रयास से भारत वर्ष को महामारी मुक्त बनाए रखने में यदि थोड़ी भी सफलता मिली होती तो सारी दुनियाँ भारतवर्ष की इस प्राचीनवैज्ञानिक क्षमता पर विश्वास करने के लिए विवश होती | विश्वमंच पर अपने भारत की प्राचीनवैज्ञानिक क्षमता के प्रभाव को प्रस्तुत करने का यह अत्यंत उत्तम अवसर दुर्भाग्यवश अपने हाथ से निकल गया |
ऐसे विषयों से संबंधित अध्ययन अध्यापन की परंपरा तो न्यूनाधिक रूप में हमेंशा से चलती ही रही है !विगत कुछ दशकों से तो सरकारी संस्कृतविश्व विद्यालयों में ऐसे सभी विषयों पर अध्ययन अध्यापन अनुसंधान आदि किए करवाए जाते रहे हैं | उसमें भी वर्तमान समय की स्थापित सरकार ने अपने भारत की प्राचीनवैज्ञानिक क्षमता को प्रोत्साहित करने में कोई कमी नहीं रखी है फिर भी यदि ऐसे अनुसंधान करने करवाने की जिम्मेदारी सँभाल रहे प्राच्यविद्या से जुड़े लोग महामारी मुक्त समाज की संरचना में अपना कितना योगदान किस प्रकार से दे पाए हैं उसके तर्क संगत प्रमाण संस्कृत विश्व विद्यालयों के द्वारा प्रस्तुत किए जाने चाहिए जिससे कोरोना महामारी से भयभीत जनता का भरोसा भविष्य के लिए कुछ तो बढ़ाया जा सके | संस्कृतविश्व विद्यालयों की जिम्मेदारी सँभाल रहे लोगों का यह कर्तव्य बनता है कि वे भी बताएँ कि उनके अध्ययनों अनुसंधानों के द्वारा महामारी पीड़ितों को कितनी मदद पहुँचाई जा सकी है | उनकी योग्यता कर्मठता एवं सार्थकता का मूल्याँकन सरकारें उसी के आधार पर करके ऐसे विषयों में भविष्य संबंधी अनुसंधानों के लिए प्रभावी योजनाएँ बना सकती हैं |
वेद वैज्ञानिक अनुसंधान क्षेत्र से जुड़े विद्वानों को भी अपने अध्ययनों अनुसंधानों की सामर्थ्य सिद्ध करने के लिए कुछ तो करना ही चाहिए | केवल प्राचीन ग्रंथों में वर्णित वैज्ञानिक विषयों की प्रशंसा करते रहने की अपेक्षा उस विज्ञान के आधार पर उन्हें भी प्रत्यक्ष प्रायोगिक रूप से कुछ ऐसा प्रस्तुत करना चाहिए जो वर्तमान समय में महामारी से निराश हताश जनता का उत्साह बर्द्धन कर सके | प्राचीन वैज्ञानिक ग्रंथों में वर्षा विज्ञान से लेकर सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने का वर्णन किया गया है | प्राकृतिक आपदाओं से अपने समाज को सुरक्षित बचाकर रखने की विधियाँ बताई गई हैं उनसे संबंधित अनुसंधानों की समाज को आवश्यकता है |
कोरोना महामारी से जो अधिक जनधन की हानि हुई है उसका बड़ा कारण संक्रामकता का वेग अधिक होना था या फिर महामारी का सामना करने के लिए पहले से की गई तैयारियों में ही कमी थी | महामारियाँ तो नुकसान करने के लिए ही आती हैं |इसलिए उनका दोष देना ठीक नहीं है | वे नुक्सान कम करेंगी ऐसी आशा ही नहीं की जानी चाहिए थी | ऐसे समय में केवल बचाव करना ही अपना कर्तव्य होता है |
महामारियाँ सशक्त शत्रुओं की तरह होती हैं |जनधन की हानि करना इनकी स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है | जिस प्रकार से कोई भी शत्रु हमला करते समय छल बल के सभी प्रयोग करता है | इसके लिए वह जितने भी प्रकार के मायावी स्वरूप धारण कर युद्ध जीतने के प्रयत्न कर सकता है वे सभी करता ही है | ऐसा करने के लिए उसे दोषी नहीं माना जा सकता | वैसे भी शत्रु से सहयोग की आशा तो रखनी भी नहीं चाहिए |शत्रु है तो हमला करेगा ही वो हमला न करे उससे ऐसी अपेक्षा कैसे की जा सकती है | ऐसे कठिन समय ही आपत्कालीन परिस्थितियों से निपटने के लिए की गई वैज्ञानिक तैयारियों का परीक्षण हो पाता है कि कितनी मजबूत थीं |
ऐसे समय में आक्रांता शत्रु की तैयारियों का बखान करने या महिमामंडन करने की जगह शत्रु के प्रत्येक दाँव (षड्यंत्र) को विफल करने की जो तैयारी पहले से करके रखी गई होती है वही काम आ पाती है | महामारी ने जब आक्रमण किया उस समय महामारी से निपटने की तैयारियों के नाम पर हम खाली हाथ थे | वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर महामारी की मारक क्षमता ,विस्तार या परिवर्तित स्वरूपों की संक्रामकता के विषय में जो अंदाजा लगाया जा रहा था उसका वास्तविकता से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं था | महामारी में जो जो कुछ होता जा रहा था वही आँखों देखा हाल महाभारत के संजय की तरह वैज्ञानिकों के द्वारा वर्णन किया जा रहा था | उसी के अनुशार कुछ अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लिए जाते रहे हैं | कोरोना और अधिक संक्रामक हो गया है उसकी मारक क्षमता बढ़ गई है | कोरोना अपना स्वरूप बदल रहा है | कोरोना सर्दी में बढ़ेगा ! कोरोना वायु प्रदूषण के कारण बढ़ेगा आदि आदि |
वैज्ञानिक अनुसंधानों का उद्देश्य कोरोना क्या करेगा क्या नहीं अपितु हमें कोरोना से निपटने के लिए क्या करना चाहिए इसकी इतनी मजबूत तैयारियाँ करके पहले से ही रखनी चाहिए थीं कि उस संकटकाल में हम समाज को यह भरोसा दे सकते कि कोरोना कितने भी स्वरूप बदल ले कैसा भी संक्रामक हो जाए फिर भी हम उससे भयभीत नहीं हैं | हमारे पास महामारी का सामना करने की इतनी तैयारियाँ हैं कि मनुष्यों को संक्रमित होने से बचा लेंगे उन्हें महामारी से मरने नहीं देंगे | हमें अपने अनुसंधानों पर इतना विश्वास तो होना ही चाहिए था |महामारी भी मानवता की शत्रु ही तो है उससे सहानुभूति की उम्मींद तो नहीं ही की जानी चाहिए थी | पर्याप्त तैयारियों के अभाव में महामारी के भरोसे समाज को छोड़ दिया जाना कितना उचित था |
महामारियों के विषय में किए जाने वाले अनुसंधानों पर खर्च होने वाला धन जनता का होता है जिसे टैक्स रूप में लेकर सरकारें ऐसे अनुसंधानों पर खर्च किया करती हैं फिर अनुसंधानों से भी तो कुछ ऐसे परिणाम निकलने आवश्यक थे जो जनता के सामने सरकारें उसी गौरव के साथ प्रस्तुत कर पातीं | जिनके बलपर महामारी के संकट काल में भी जनता को निर्भयता पूर्वक अपनी दिनचर्या रोजगार आदि अनुपालन की अनुमति दी जा सकी होती | इससे जनता का भी उत्साह बढ़ता है | गणतंत्र दिवस पर झाँकियों के माध्यम से अपनी तैयारियाँ देखकर जन सामान्य का भी मन प्रफुल्लित हो उठता है|अपनी सुरक्षा की तैयारियों पर गर्व तो होता ही है इसके साथ ही साथ अपना मनोबल भी बढ़ता है और इस बात का विश्वास जगता है कि हमारी सुरक्षा की तैयारियाँ हमारे देश को सुरक्षित बनाए रखने में सक्षम हैं |
कुल मिलाकर राष्ट्रसुरक्षा की तरह ही स्वास्थ्य सुरक्षा संबंधित चुनौती भी स्वीकार की जानी चाहिए थी | जिस प्रकार से शत्रु के द्वारा हमला कर दिए जाने के बाद भी हम अपनी सुरक्षा तैयारियों के बलपर शत्रु को मुखतोड़ जवाब देते हुए अपनी जन धन की हानि को कम से कम होने देते हैं | ऐसे ही अपने स्वास्थ्य सुरक्षा संबंधी अनुसंधानों को पहले से ही इतना सक्षम बनाया जाना चाहिए था कि महामारी आने के बाद भी बिना किसी को चोट पहुँचाए उसे जाने के लिए बाध्य कर देते हमारा चिकित्सकीय युद्ध कौशल यही होता | महामारी से कोई संक्रमित नहीं होता इस प्रकार की अपनी महामारी मुक्त समाज संरचना की तैयारियाँ पहले से करके रखी जानी चाहिए थीं |
महामारी प्रभाव से लोग तेजी से संक्रमित होने लग सकते हैं !संक्रमितों के लिए अस्पतालों में विस्तरों समेत जिन आवश्यक चिकित्सकीय औषधियों आक्सीजन सिलेंडरों आदि की आवश्यकता अधिक मात्रा में पड़नी थी उसकी व्यवस्था कैसे होगी | अस्पतालों से श्मशानों तक जाम लग सकता है | महामारी का मतलब ही यही होता है कि सब कुछ अनियंत्रित हो जाता है | यही तैयारियाँ आगे से आगे करके रखने के लिए समय तो चाहिए इसकी आवश्यकता सरकार एवं प्रशासन से लेकर समाज तक सबको पहले से करके रखनी होती है |
रोगों महारोगों पर नजर रखने वाले चिकित्सकीय खुपिया विभाग की विफलता का ही यह नतीजा है कि सरकारों से लेकर जनता तक को अचानक प्राप्त परिस्थितियों से अकेले अपने बल पर जूझना पड़ा है |सोचने की बात है कि महामारी जैसे संकटों से निपटने के लिए हमेंशा चलाए जाने वाले वैज्ञानिक अनुसंधानों से जनता को आखिर ऐसी कितनी मदद पहुँचाई जा सकी जो वैज्ञानिक अनुसंधानों के बिना संभव न थी | अनुसंधानों से ऐसा तो कुछ भी सहयोग तो नहीं मिला |
आकाशवाणियों की खोज !
प्राचीनकाल में आकाशवाणियों
के विषय में वर्णन मिलता है कि किसी अच्छी या बुरी कुछ विशेष घटनाओं के
विषय में अग्रिम सूचनाएँ देने के लिए आकाशवाणियाँ हुआ करती थीं और वे
हमेंशा सही निकलती रही हैं | उनसे कई बड़ी अच्छी बुरी संभावित घटनाओं के
विषय में पहले से पता लगा लिया जाया करता था, उससे यथा संभव सावधानी बरतकर
संभावित हानिकारक घटनाओं से अपना बचाव कर लिया जाता था |
महामारी भूकंप जैसी कई बड़ी हिंसक दुर्घटनाएँ अभी भी घटित होते देखी जाती हैं जिनसे भारी भरकम जनधन की हानि होते देखी जाती है | उनके विषय में कोई पूर्वानुमान पता होता तो संभव है कि ऐसी दुर्घटनाओं से इतना अधिक नुक्सान न होने पाता |
आकाशवाणियों के विषय में वर्णन मिलता है कि इस प्रक्रिया में मनुष्यों का कोई हस्तक्षेप नहीं था | ये संपूर्ण रूप से प्राकृतिक हुआ करती थीं |ये अपने आप अचानक होते सुनी जाती थीं |जिससे कई बार बड़ी दुर्घटनाओं से बचाव की दृष्टि से बड़ी मदद मिल जाया करती थी |
वर्तमान समय में भी प्रकृति वही है परंपराएँ वही हैं प्राकृतिक घटनाऍं भी प्राचीनकाल की तरह ही घटित होते देखी जा रही हैं | सर्दी गर्मी वर्षा आदि प्रमुख ऋतुएँ दिन रात सुबह शाम आदि घटनाएँ सूर्य चंद्र ग्रहण ,समुद्र में बनती बिगड़ती लहरें एवं महामारी भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात आदि अन्य सभी घटनाएँ अभी भी पहले जैसी ही घटित होते देखी जा रही हैं | केवल आकाशवाणियों को ही घटित होते क्यों नहीं देखा सुना जा रहा है |
यदि ऐसा भी था तो वे संकेत क्या थे उन्हें कैसे देखा और समझा जाता था वे संकेत वर्तमान समय में भी दिखाई पड़ते हैं या अब नहीं दिखाई पड़ते हैं | उन्हें समझने के लिए किस विद्या को पढ़ने की आवश्यकता होती है | इस विषय में गंभार अनुसंधान की आवश्यकता है | जिससे प्राचीन समय की तरह ही वर्तमान समय में भी आकाशवाणियों से प्राप्त सूचनाओं को समझने में सफलता मिल सके |
प्राकृतिक घटनाओं से भविष्य में संभावित घटनाओं का ज्ञान
प्राचीन काल में संभवतः प्राकृतिक घटनाओं के द्वारा दी जाने वाली सूचनाओं
को आकाशवाणी कहा जाता रहा होगा | इसमें प्रकृति एवं जीवन से संबंधित सभी
प्रकार की
घटनाएँ सम्मिलित होती होंगी | ऐसा माना जाता है कि प्रकृति एवं जीवन से
जुड़ी सभी प्रकार की
घटनाएँ भविष्य में घटित होने वाली ऐसी सभी घटनाओं की सूचनाएँ हमेंशा देती
रहती हैं | इन सूचनाओं के अभिप्राय को समझने वाले वैज्ञानिक लोग उन्हीं
संकेतों के आधार पर प्रकृति
एवं जीवन से जुड़ी संभावित भावी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लिया करते
रहे हैं | प्राचीनकाल में ऐसे प्रकृति साधकों की अधिकता थी इसलिए
सभीप्रकार
की प्राकृतिक आपदाओं के विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगा लिया जाता था |
ऐसी
आपदाओं से बचाव के लिए आगे से आगे उपाय खोज लिए जाते थे | पहले से पता हो
जाने के कारण कुछ में बचाव संभव हो पाता था जबकि कुछ में सहने के लिए तैयार
हो जाया जाता था |
सर्दी गर्मी
वर्षा आदि ऋतुएँ भी प्राकृतिक घटनाएँ ही तो हैं जब जिस प्रकार की ऋतु आती है तब प्रकृति वैसा
व्यवहार करने लगती है | शिशिर ऋतु में जो प्रकृति बर्फ बरस रही होती है
ठंडी ठंडी हवाएँ चल रही होती हैं भीषण ठंड से लोग काँप रहे होते हैं | बिना
किसी मनुष्यकृत प्रयास के बाद भी वही प्राकृतिक वातावरण आग उगलने लगता है
तापमान बढ़ चुका होता है चारों ओर गरम गरम हवाएँ चल रही होती हैं आदि | ऐसे
ही गर्मी की ऋतु में नदी तालाब कुएँ आदि प्रायः सूखने लग जाते हैं उसी के
कुछ समय बाद इतनी अधिक वर्षा हो जाती है कि वे सब भर जाते हैं |इसमें भी
मनुष्यकृत प्रयासों की कोई भूमिका ही नहीं होती है |कुल मिलाकर संपूर्ण
प्रकृति ही समय का अनुगमन कर रही है जब जैसा समय चलता है तब तैसा प्राकृतिक
वातावरण बनता बिगड़ता रहता है | सर्दी गर्मी
वर्षा आदि ऋतुओं का समय क्रम अवधि आदि सब
कुछ सुनिश्चित होता है जो हमेंशा एक जैसा ही रहता है | इसलिए इसके विषय में अनुमान लगाना आसान होता है किस ऋतु के बाद कौन सी ऋतु आएगी उस समय प्राकृतिक वातावरण किस प्रकार का होगा यह प्रायः सभी को पता होता है |
प्रकृति के इसी सुनिश्चित सामान्य वातावरण के आधार पर संपूर्ण प्रकृति एवं जीवन का संतुलन बना हुआ अनादि काल से ऐसा ही होता चला आ रहा है | सर्दी गर्मी और वर्षा जिसे आयुर्वेद की भाषा में कफ पित्त और वात कहा जा सकता है | इनका आपसी अनुपात जब तक संतुलित बना रहता है तब तक संपूर्ण प्रकृति एवं जीवन स्वस्थ सुखी सुरक्षित बना रहता है |
इसके अतिरिक्त सर्दी में सर्दी बहुत अधिक या बहुत कम होती है ऐसे ही गर्मी वर्षा आदि का जब संतुलन बिगड़ता है अर्थात ऋतुओं का प्रभाव जब कम या अधिक होता है अथवा कम या अधिकदिनों तक चलता है उस समय प्रकृति और प्राणी रोगी होने लग जाते हैं | प्रकृति के रोगी होने का मतलब वृक्ष बनस्पतियाँ पेड़ पढ़े आनाज शाक सब्जी आदि रोग कारक होने लगते हैं | जल और वायु प्रदूषित होते देखे जाते हैं | प्राकृतिक दुर्घटनाएँ घटित होने लगती हैं |
इसी प्रकार से प्राणियों के रोगी होने का मतलब प्राकृतिक रोग फैलने लगते हैं | समाज में अनेकों प्रकार की मनुष्यकृत दुर्घटनाएँ उन्माद वैमनस्य बीमारियाँ आदि घटित होने लगती हैं तथा प्राणियों के स्वभाव में बदलाव आने लगता है |
इस प्रकार का बैषम्य बढ़ते हुए संतुलन जब बहुत अधिक बिगड़
जाता है उस समय हिंसक भूकंप आँधी तूफ़ान अतिवृष्टि अनावृष्टि बज्रपात जैसी
बड़ी प्राकृतिक दुर्घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं | प्राणियों में बड़े बड़े
रोग या महारोग आदि फैलने लगते हैं |
आकाशवाणियों की भाषा समझने के लिए प्रकृतिकृत ऐसे संकेतों का निरंतर सूक्ष्म अध्ययन होते रहना चाहिए उसके आधार पर वह सब कुछ आगे से आगे पता लगता जाता है कि भविष्य में प्रकृति में क्या घटित होने वाला है और भविष्य में प्राणियों को किस प्रकार की परिस्थिति का सामना करना पड़ेगा |
प्रकृति एवं जीवन से संबंधित सभीप्रकार की घटनाओं के घटित होने का कोई न कोई निर्धारित निश्चित समय होता है | ये निश्चय दो प्रकार का होता है एक तो वह जो प्रतिवर्ष प्रतिमास प्रतिपक्ष प्रतिदिन एक जैसा ही घटित होता रहता है उनका क्रम समय आदि सबकुछ निश्चित रहता है |इसमें सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं का समय क्रम अवधि आदि सब कुछ सुनिश्चित होता है|किस ऋतु के बाद कौन सी ऋतु आएगी उस समय प्राकृतिक वातावरण किस प्रकार का होगा यह प्रायः सभी को पता होता है |यह हमेंशा एक जैसा ही रहता है | इसलिए इसके विषय में अनुमान लगाना आसान होता है |
सूर्य और चंद्र ग्रहण हमेंशा बदलते रहते हैं इनका समय आकार प्रकार अवधि आदि एक जैसी कभी नहीं होती है इसके बाद भी इनके विषय में सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है जो बिल्कुल सही सही घटित होते देखा जाता है | इससे इस बात का निश्चय होना स्वाभाविक ही है कि ऐसी घटनाएँ जो अचानक घटित होते देखी जाती हैं वे अचानक घटित न होकर अपितु अनादि काल से सुनिश्चित होती हैं | किस ग्रहण को कब कितना घटित होना है किस ग्रहण का आकार प्रकार आदि क्या होगा | इनका समय निश्चित होता है |
इसी प्रकार से महामारी भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात एवं तापमान का बढ़ना कम होना आदि घटनाएँ घटित होते समय अचानक घटित हुई सी लगती हैं किंतु वास्तविकता में ऐसा होता नहीं है | वस्तुतः ग्रहणों की तरह ही ऐसी घटनाएँ भी पूर्वनिर्धारित ही होती हैं उनका समय भी निश्चित होता है |
प्राचीन काल में ऋषियों ने ऐसी सभी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान
लगाने का विज्ञान विकसित कर लिया था उसी के आधार पर ऐसी घटनाओं के विषय में
उसी युग में सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लिया जाता रहा है |
इसी प्रकार से कालक्रम बीतता चला गया घटनाएँ घटित होती रहीं उनके विषय में पूर्वानुमान भी आगे से आगे लगा लिया जाता रहा है जो सही भी निकलता रहा है | ये सब कुछ गणित के द्वारा ही संभव हो पाता रहा है | समय के साथ साथ परिस्थितियाँ बदलती चली गईं | दुर्भाग्यवश देश परतंत्र हो गया उसमें आक्रांताओं ने हमारे पूर्वजों के द्वारा अनंत काल से किए अनुसंधान या तो उठा ले गए या फिर नष्ट कर दिए | पुस्तकालयों में आग लगा दी | इनसे जो नष्ट हो गए वे तो वहीं समाप्त होगए और जो वे अपने यहाँ ले गए वे इसलिए नष्ट हो गए कि वहाँ इस विद्या को जानने वाले विद्वान नहीं थे |इसलिए उनके यहाँ ले जाए गए हमारे पूर्वजों के अनुसंधानों का उपयोग नहीं हो सका | इसलिए वे वहाँ नष्ट हो गए |
उन आक्रांताओं के द्वारा नष्ट किए जाने पर भी हमारे पूर्वजों ने
अपने जीवन को संकट में डालकर जितना संभव हुआ वो जहाँ तहाँ छिपा लिया था
उसके आधार पर व्यक्तिगत रूप से वे ऐसी गणनाएँ करते रहे किंतु प्रत्यक्ष रूप
से उन्हें प्रोत्साहन नहीं मिल सका और वे ऐसे अनुसंधान करने के लिए
स्वतंत्र भी नहीं थे | ऐसी अवस्था में सदियों तक परतंत्र रहने के कारण ऐसी
विद्याएँ विलुप्त होती चली गईं | ग्रहण गणना जैसी जो विद्याएँ सुरक्षित रखी
जा सकीं वे अभी भी सही एवं सटीक घटित होते देखी जाती हैं |
महामारी
के समय बेबश लाचार वैश्विक समाज को देखकर कई बार ऐसा लगता है कि
आक्रांताओं ने हमारे पूर्वजों के द्वारा किए गए अनुसंधानों
को यदि इतनी निर्ममता पूर्वक नष्ट न किया होता तो संभव है कि कोरोना
महामारी के समाने वर्तमान वैज्ञानिक विश्व को इतना बेबश लाचार निरीह न होता
| पूर्वजों के द्वारा किए गए उन अनुसंधानों के द्वारा वर्तमान
विश्व को कोरोना महामारी जनित संकट से बचाकर महामारी मुक्त समाज के
निर्माण का सपना देखा जा सकता था | इससे महामारी से निराश हताश उन आक्रांताओं की संतानें भी लाभान्वित हो सकती थीं जिनके पूर्वजों के द्वारा भारत की उस तपोसंपदा को नष्ट करने का कुत्सित प्रयास किया था |
पूर्वजों की गणितीय अनुसंधान पद्धति से प्राप्त अभीतक के अनुभवों के आधार पर अब मैं विश्वासपूर्वक कह सकता हूँ कि पूर्वजों से प्राप्तगणितीय अनुसंधान पद्धति के आधार पर भविष्य में महामारी मुक्त समाज की संरचना का स्वप्न साकार हो सकता है |
इसकी प्रमाणिकता से प्रभावित होकर मैंने महामारी समेत समस्त प्राकृतिक घटनाओं को अपने अनुसंधान का विषय बनाया है उसके आधार पर मैं बीते तैंतीस वर्षों से ऐसी अधिकाँश घटनाओं के विषय में अनुसंधान कार्य करता चला आ रहा हूँ जो प्रायः सही घटित होते देखे जा रहे हैं |
महामारी मुक्त समाज की संरचना का संकल्प !
गरीब परिवारों के बच्चे परिस्थितिवश या किसी मजबूरी में अथवा लापरवाही से ही सही उन कोविड नियमों का पालन बिल्कुल नहीं करते रहे चिकित्सा वैज्ञानिकों के द्वारा जिनका उपदेश स्वस्थ रहने के लिए किया गया था | ऐसे परिवारों के छोटे छोटे सुकोमल बच्चे जिनके शरीरों में वे अधिकाँश टीके नहीं लगाए जा सके थे जिन्हें प्रत्येक बच्चे को स्वस्थ रखने के लिए चिकित्सक आवश्यक बताया करते हैं | ऐसे बच्चों को उस प्रकार का स्वास्थ्यकर पौष्टिक खान पान नहीं मिला एवं उसप्रकार की चिकित्सकीय देखरेख नहीं मिल पाई थी ! ऐसे गरीब घरों के बच्चे महामारी आने पर खाद्य सामग्री संकलित करते घूमते रहे | सबसे मिलते जुलते रहे सबका लिया दिया खाते पीते रहे | ऐसे बच्चे भी महामारी काल में प्रायः स्वस्थ बने रहे | यह महामारी मुक्त समाज की संस्थापना की दृष्टि से आशा की बड़ी किरण है |
महामारी को समझना और उसकी रोक थाम के लिए कुछ कर पाना यदि चिकित्सावैज्ञानिकों के बश की बात होती तो चिकित्सकीय संसाधनों से संपन्न अमेरिका जैसे देशों में और भारत के दिल्ली मुंबई जैसे सक्षम महानगरों में चिकित्सावैज्ञानिकों की योग्यता अनुसंधान जनित अनुभवों एवं चिकित्सकीय क्षमता का प्रभाव कुछ तो दिखाई पड़ता | कम से कम महामारी इस प्रकार से तो नहीं ही रौंद पाती , जबकि महामारी काल में ऐसे देशों महानगरों की स्थिति बार बार सबको चिंता में डालती रही है | इससे यह विश्वास करना होता है कि महामारी मुक्तसमाज की संरचना में चिकित्सावैज्ञानिकों की विशेष आवश्यकता नहीं है | यदि महामारी मुक्त रहना चिकित्सकों के सहयोग से संभव हुआ होता तो महामारी मुक्तसमाज की संरचना हेतु बड़ी संख्या में चिकित्सावैज्ञानिकों की आवश्यकता पड़ती जिसके लिए अधिक संसाधनों और उसके लिए अधिक धन की आवश्यकता पड़ती किंतु इसमें चिकित्सावैज्ञानिकों की कोई विशेष भूमिका न रहने से यह आशा जगना स्वाभाविक ही है कि चिकित्सावैज्ञानिकों की मदद के बिना भी महामारी काल में स्वस्थ बने रहना संभव है |
महामारी और उपाय
महामारी आगमन की आहट पहले ही लग गई थी !
मैं पिछले लगभग तैंतीस वर्षों से ऐसे प्राकृतिक बिषयों पर अनुसंधान करता आ रहा हूँ जिसमें भूकंप आँधी तूफ़ान सूखा वर्षा बाढ़ वायु प्रदूषण एवं तापमान का घटता बढ़ता स्तर प्राकृतिक स्वास्थ्य समस्याएँ मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं एवं महामारियों के बिषय में अनुसंधान करता आ रहा हूँ | प्राकृतिक परिवर्तनों के कारण पैदा होने वाली सामाजिक राजनैतिक वैश्विक आदि समस्याओं के पैदा होने एवं उनका समाधान निकलने के बिषय में भी पूर्वानुमान लगाता आ रहा हूँ | उसी क्रम में सन 2010 के बाद सुदूर आकाश से समुद्र समेत समस्तप्रकृति में कुछ इस प्रकार के परिवर्तन दिखाई देने लगे थे जो निकट भविष्य में किसी बड़ी महामारी या अन्य प्रकार की प्राकृतिक आपदा या युद्ध आदि के द्वारा बड़ी संख्या में लोगों के मारे जाने की ओर संकेत देने लगे थे | सन 2013 के बाद प्राकृतिक वातावरण पूरी तरह बदला बदला दिखाई देने लगा था आकाशीय परिस्थितियाँ सूर्य चंद्रादि ग्रहों के विंबीय आकार प्रकार वर्ण आदि परिस्थितियाँ क्रमशः बदलती जा रही थीं वायुसंचार में बदलाव वृक्ष बनस्पतियों में परिवर्तन होने लगे थे | समय जैसे जैसे बीतते जा रहा था वैसे वैसे जल वायु अन्न आदि समस्त खाद्य वस्तुएँ अपने अपने गुण स्वाद आदि से विहीन होती जा रहीं थीं | औषधीय बनस्पतियाँ जिन गुणों के लिए जानी जाती थीं उनमें उसप्रकार के गुणों का ह्रास होता चला जा रहा था |
वायुतत्व दिनोंदिन अधिक चंचल एवं प्रदूषित होता जा रहा था| वायुमंडल में प्रदूषण ,बज्रपात की हिंसक घटनाएँ बार बार घटित होती देखी जा रही थीं | इसीलिए 2018 के अप्रैल मई में आँधी तूफानों की घटनाएँ बारबार घटित होने लगी थीं | चक्रवात जैसी हिंसक घटनाएँ घटित होते अक्सर देखी जाने लगी थीं |
पृथ्वीतत्व के स्थिरता संबंधी स्वाभाविक गुण विकृत होने लगे थे | धरती बार बार काँपने लगी थी भूकंपों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी |सुनामीजैसी घटनाओं के डरावने दृश्य दिखाई पड़ने लगे थे | महामारी काल में केवल भारत में ही एक हजार बार से अधिक भूकंप घटित हुए थे |
प्रकुपित अग्नितत्व हिंसक स्वरूप धारण करता जा रहा था | कहीं भी कभी भी आग लगने की घटनाएँ घटित होती देखी जा रही थीं इसीलिए तो 2016 अप्रैल में बिहार सरकार ने दिन में हवन करने एवं चूल्हा जलाने आदि पर रोक लगा दी गई थी |
जलतत्व में दिनोंदिन विकृति आती देखी जा रही थी कहीं भीषण बाढ़ तो कहीं सूखा था | जमीन के अंदर का जलस्तर दिनों दिन कम होता जा रहा था |जल की गुणवत्ता में कमी होती जा रही थी !बादलों के फटने की घटनाएँ देखी जाने लगी थीं |
आकाश अक्सर धूम्रवर्ण या लाल पीला होता दिख रहा था !नीला एवं स्वच्छ आकाश तो वर्ष के कुछ महीनों में ही दिखाई देने लगा था | इसके अतिरिक्त आकाश में और भी प्रतिसूर्य गंधर्वनगर जैसी घटनाएँ दिखने लगीं थीं |
इस प्रकार से पंचतत्वों में बढ़ते विकार बनस्पतियों एवं खाद्यपदार्थों के स्वाद एवं गुणवत्ता में आती कमी मनुष्य समेत सभी जीव जंतुओं के स्वभाव में बढ़ते अस्वाभाविक बदलाव किसी बड़ी विपदा की ओर संकेत करने लगे थे | ऐसी घटनाओं का जब गणितीय पद्धति से परीक्षण किया गया तो महामारी जैसी किसी बड़ी हिंसक प्राकृतिक घटना का आभास होने लगा था |
इसलिए इसीप्राचीन अनुसंधान के आधार पर सन 2017 से ही वर्तमान महामारी के बिषय में मुझे संभावना दिखने लगी थी इस बिषय में मैंने संबंधित मंत्रालयों सरकारी विभागों निजीसंस्थाओं एवं विविध मीडिया माध्यमों से अपनी बात सरकार तक पहुँचाने का प्रयत्न करता रहा हूँ | इसी संदर्भ में सामाजिक स्वयं सेवी संगठनों एवं निजी संगठनों के बड़े बड़े नेताओं से संपर्क करके भारत सरकार तक अपनी बात पहुँचाने का प्रयास करता रहा कई पत्र रजिस्टर्ड डॉक से भी भेजे हैं | पीएमओ की मेल पर भेजकर प्रधानमंत्री जी से मैंने मिलने के लिए समय माँगा किंतु मुझे अपनी बात भारत के प्रधानमंत्री जी तक पहुँचाने का अवसर नहीं मिल सका ऐसे प्रयासों में भटकते भटकते काफी लंबा समय बीत गया तब तक सन 2020 प्रारंभ हो चुका था महामारी प्रारंभ हो चुकी थी उसकी चर्चा सभी जगह सुनाई देने लगी थी महामारी को लेकर तरह तरह की आशंकाएँ व्यक्त की जा रही थीं महामारी के बिषय में लोग तरह तरह की अफवाहें फैलाए जा रहे थे | मीडिया माध्यमों से भारत सरकार भी चिंतित दिखाई दे रही थी किंतु चाहकर भी मैं अपनी बात भारत के प्रधानमंत्री जी तक नहीं पहुँचा सका इसलिए अब निराश हताश होकर शांत बैठ गया था | इसी बीच अचानक एक बात मन में आई कि बिषय में मैं अपनी बात पीएमओ की मेल पर डाल दूँगा तो भविष्य के लिए यह प्रमाण सुरक्षित बना रहेगा | इसलिए मैंने पीएमओ की मेल पर सबसे पहला पर 19 मार्च 2020 को भेजा था जिसमें महामारी के बिषय में हमारे द्वारा कुछ आवश्यक बातें लिखी गई थीं |
1. कोरोना प्राकृतिक है -" किसी महामारी पर नियंत्रण न हो पाने का कारण यह है कि कोई भी महामारी तीन चरणों में फैलती है और तीन चरणों में ही समाप्त होती है | महामारी फैलते समय सबसे बड़ी भूमिका समय की होती है | सबसे पहले समय की गति बिगड़ती है ऋतुएँ समय के आधीन हैं इसलिए अच्छे या बुरे समय का प्रभाव सबसे पहले ऋतुओं पर पड़ता है ऋतुओं का प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है | "
2. कोरोनाहवा में विद्यमान है -"पर्यावरण बिगड़ने का प्रभाव वृक्षों बनस्पतियों फूलों फलों फसलों आदि समस्त खाने पीने की वस्तुओं पर पड़ता है वायु और जल पर भी पड़ता है इससे वहाँ के कुओं नदियों तालाबों आदि का जल प्रदूषित हो जाता है | इन परिस्थितियों का प्रभाव जीवन पर पड़ता है इसलिए शरीर ऐसे रोगों से पीड़ित होने लगते हैं जिनमें चिकित्सा का प्रभाव बहुत कम पड़ पाता है यहीं से महामारी फैलने लगती है |"
3. महामारी में होने वाले रोग को न तो पहचाना जा सकता है और न ही इसकी औषधि बनाई जा सकती है -"इसमें चिकित्सकीय प्रयासों का बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा | क्योंकि महामारियों में होने वाले रोगों का न कोई लक्षण होता है न निदान और न ही कोई औषधि होती है |"
4. महामारी में होने वाले रोगके वेग को प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा कर घटाया जा सकता है -"ऐसी महामारियों को सदाचरण स्वच्छता उचित आहार विहार आदि धर्म कर्म ,ईश्वर आराधन एवं ब्रह्मचर्य आदि के अनुपालन से जीता जा सकता है |"
"24 मार्च 2020 के बाद इस महामारी का समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा जो क्रमशः 6 मई तक चलेगा | |उसके बाद के समय में पूरी तरह सुधार हो जाने के कारण संपूर्ण विश्व अतिशीघ्र इस महामारी से मुक्ति पा सकेगा |"
"यह महामारी 9 अगस्त 2020 से दोबारा प्रारंभ होनी शुरू हो जाएगी जो 24 सितंबर 2020 तक रहेगी !उसके बाद यह संक्रमण स्थायी रूप से समाप्त होने लगेगा और 16 नवंबर 2020 के बाद यह स्थायी रूप से समाप्त हो जाएगा !"
यह पूर्वानुमान पूरी तरह से सही हुआ था 9 अगस्त से संक्रमितों की संख्या बढ़ने लगी थी सरकारी गणना के अनुशार 17 सितंबर को सबसे अधिक संक्रमितों की संख्या आयी थी उसके बाद क्रमशः कम होते चले जा रहे थे ! समय विज्ञान की दृष्टि से प्राकृतिक कोरोना महामारी यहाँ से संपूर्ण रूप से समाप्त हो जानी चाहिए थी और कोरोना अब तक समाप्त हो चुका होता !ऐसा होते प्रत्यक्ष देखा भी जा रहा था !यदि वैक्सीन न लगाई जाती तो मुझे विश्वास है कि कोरोना संक्रमण यहीं से समाप्त हो जाता | इसी बीच भारत सरकार की ओर से वैक्सीन लगाने की तैयारियाँ की जाने लगीं !इस समय वैक्सीन लगाने से संक्रमितों की संख्या बढ़ने की पूरी संभावना थी |
भारत सरकार में स्वास्थ्य मंत्री जी एवं नीतिआयोग के डॉ.वी.के.पाल साहब ने अक्टूबर 2020 में आशंका जताई थी कि सर्दी में कोरोना संक्रमण बढ़ जाएगा | कुछ अन्य लोगों ने कहा था कि सर्दी में वायु प्रदूषण बढ़ने के कारण कोरोना संक्रमण बढ़ जाएगा | इस बिषय में भी मैंने पीएमओ को पत्र भेजकर स्थिति स्पष्ट की थी कि सर्दी के मौसम में तापमान कम होने से कोरोना नहीं बढ़ेगा |
हमारे द्वारा पीएमओ को भेजा गया तीसरा मेल -
3. इसीलिए 23 दिसंबर 2020 को मेल भेजकर मैंने पीएमओ से वैक्सीन न लगावाने के लिए निवेदन किया था और यदि लगवाना भी हो तो बहुत सोच बिचार कर बहुत सोच बिचार कर लगाने के लिए निवेदन किया था उस मेल का इस बिषय से संबंधित अंश :-
23 दिसंबर 2020 को मेल भेजकर पीएमओ को सूचित करने का मेरा उद्देश्य यही था कि वैक्सीन लगाने का कार्यक्रम या तो रोका जाएगा और या फिर वैक्सीन लगने के बाद संभावित संक्रमण बढ़ने की आशंका को ध्यान में रखते हुए उसे नियंत्रित करने के लिए पहले आवश्यक तैयारियॉँ कर लेने के बाद वैक्सीन लगाई जाएगी किंतु मेरे पूर्वानुमान के अनुशार वैक्सीन लगने के बाद संक्रमण दिनोंदिन अनियंत्रित होता चला गया !
5. "प्रधानमंत्री जी !यदि अब भी मैं मौन बैठा रहा तो प्रकुपित ईश्वरीय शक्तियाँ विश्वका चेहरा बर्बाद कर देने पर आमादा दिख रही हैं | दैवी शक्तियों का मानवजाति पर इतना अधिक क्रोध !आश्चर्य !! महोदय ! ऐसी परिस्थिति में जनता की ब्यथा से ब्यथित होकर व्यक्तिगत रूप से मैं एक बड़ा निर्णय लेने जा रहा हूँ |अपने अत्यंत सीमित संसाधनों से कल अर्थात 20 अप्रैल 2021 से "श्रीविपरीतप्रत्यंगिरामहायज्ञ" अपने ही निवास पर गुप्त रूप से प्रारंभ करने जा रहा हूँ | यह कम से कम 11 दिन चलेगा ! इसयज्ञ रूपी 'ईश्वरीयन्यायालय' में विश्व की समस्त भयभीत मानव जाति की ओर से व्यक्तिगत रूप से पेश होकर क्षमा माँगने का मैंने निश्चय किया है |मुझे विश्वास है कि ईश्वर क्षमा करके विश्व को महामारी से मुक्ति प्रदान कर देगा | यज्ञ प्रभाव के विषय में मेरा अनुमान है कि ईश्वरीय कृपा से 20 अप्रैल 2021 से ही महामारी पर अंकुश लगना प्रारंभ हो जाएगा ! 23 अप्रैल के बाद महामारी जनित संक्रमण कम होता दिखाई भी पड़ेगा !और 2 मई के बाद से पूरी तरह से संक्रमण समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा |"
कोरोना जैसी महामारी के दुष्प्रभाव का अनुभव हमारी पीढ़ी ने भले पहली बार किया है किंतु इतना तो निश्चय है कि कालक्रम के साथ आने वाली महामारियाँ तो हर युग में ही आती जाती रही हैं भले वह प्राचीनकाल ही क्यों न रहा हो | उस समय अत्याधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधानों के अभाव में बहुत बड़ी क्षति हुई हो ऐसा कहीं वर्णन नहीं मिलता है |
इसके दो ही कारण हो सकते हैं | एक तो ऐसे सोच लिया जाए कि महामारियाँ बुरे समय के प्रभाव से आती हैं और अच्छा समय आने पर समय के प्रभाव से स्वतः समाप्त हो जाती हैं इसमें मनुष्यकृत प्रयासों का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है जैसा कि कोरोना महामारी के समय में भी होते देखा गया है |कोरोना के प्रत्येक पक्ष में वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए अनुमान ,पूर्वानुमान या रोग मुक्ति के लिए किए गए प्रयास निरंतर धराशायी होते रहे हैं |जिन्हें संक्रमित होना था उन्होंने कितना भी ने भी नियम संयम का पालन किया किंतु उनका बचाव नहीं हो सका और जिन्हें नहीं होना था वे कितने भी खुले घूमे उनका बचाव होता ही रहा ! महानगरों से मजदूरों के पलायन में,दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन में ,हरिद्वार के कुंभ मेले में या महानगरों में घनी बस्तियों में रहने वाले लोगों आदि में यह प्रत्यक्षरूप से देखा जाता रहा है |
कुल मिलाकर कोरोना महामारी के समय वैज्ञानिक अनुसंधानी अनुभवों या चिकित्सकीय प्रयासों का कोई बहुत बड़ा योगदान रहा हो ऐसा दिखाई नहीं पड़ता है | इसीलिए तो गाँवों शहरों में या गरीबों रईसों में तथा अस्पताल जाकर एडमिट होने में या घर पड़े रहकर स्वस्थ होने वालों की संख्या में कोई बहुत बड़ा अंतर नहीं दिखता है | जिन साधनसंपन्न लोगों ने अत्याधुनिक चिकित्सकीय अनुसंधानों का लाभ लिया या जिन गरीबों ग्रामीणों बनबासियों ने नहीं लिया | उन दोनों ही प्रकार के लोगों के संक्रमित या स्वस्थ होने की संख्या में कोई बहुत बड़ा अंतर नहीं दिखा | चिकित्सकीय सुविधाओं की दृष्टि से सक्षम माने जाने वाले अमेरिका ब्रिटेन जैसे सक्षम देशों की बात हो या भारत के दिल्ली मुंबई जैसे सक्षम महानगरों में संक्रमितों की संख्या अन्य देशों या नगरों के अनुपात में कोई कम तो नहीं रही है और संक्रमितों की मृत्यु होने में भी वैज्ञानिक अनुसंधानों के प्रभाव से रोक तो लगाई जा सकी है | चिकित्सकीय सुविधाएँ कितनी प्रभावी रही हैं यह स्वयं में अनुसंधान का विषय है | यदि चिकित्सकीय संसाधनों से इस युग में कोई बहुत बड़ा सहयोग नहीं मिल सका है तो प्राचीन युग में भी महामारी का प्रभाव या तो इसीप्रकार का रहा होगा या फिर उस युग में महामारी पर बचाव के लिए जो प्रक्रिया अपनाई जाती रही होगी वह वर्तमान अनुसंधानों से अधिक प्रभावी रही होगी तभी उस युग में बचाव हो पाता होगा |
उस युग में महामारी से बचाव के लिए क्या कोई वैज्ञानिक पद्धति थी जिसका अनुपालन करके लोग अपना बचाव कर लिया करते थे |इस विषय में भारत वर्ष के वैदिक सूत्रों में या अन्य प्राचीनतम ग्रंथों में महामारी के विषय में भिन्न भिन्न स्थानों पर जो वर्णन मिलता है |महामारी की भयावहता के विषय में चर्चा मिलती है उसके बचाव के लिए उपाय एवं सतर्कता के विषय में जो सुझाव दिए गए हैं | महामारी आने से काफी पहले महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाकर औषधि संग्रह करके रख लेने के लिए जिस प्रकार से प्रेरित किया गया है | उन पूर्व संग्रहीत बनषाधियों को महामारी से मुक्ति दिलाने में जिस प्रभावी बताया गया है | उनके आधार पर नए सिरे से अनुसंधान किए जाने की आवश्यकता है | महामारी जैसे विषयों का पूर्वानुमान लगाने के उस समय जो गणितीय पद्धति प्रचलन में थी उससे महामारी के विषय में लगाए जाने वाले पूर्वानुमान आज के समय में कितने प्रतिशत सही घटित होते हैं | प्राचीन काल में महामारियों से बचाव के लिए शास्त्रों में जो उपाय बताए गए हैं वे वर्तमान समय में कितने प्रतिशत प्रभावी होते हैं | इस दृष्टि से अनुसंधान की आवश्यकता है | वर्तमान समय में आधुनिक विज्ञान की पद्धति से महामारी के विषय में किए जा रहे अनुसंधानों को आगे बढ़ाने में यदि प्राचीन विज्ञान से यदि थोड़ा भी सहयोग मिलेगा तो महामारी से भयभीत मानवता को ढाढस बँधाने में बहुत सहायक होगा | इसी दृष्टि से मैंने व्यक्तिगत स्तर पर भारत की प्राचीन वैज्ञानिक पद्धति से अनुसंधान करने का निर्णय लिया है और व्यक्तिगत प्रयास से जितना कुछ कर पाया हूँ वह यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ |
प्राचीनकाल और महामारियाँ
कोरोना जैसी महामारी के दुष्प्रभाव का अनुभव हमारी पीढ़ी ने भले पहली बार किया है किंतु महामारियों का इतिहास बहुत पुराना है भारत वर्ष के वैदिक साहित्य में या अन्य प्राचीनतम ग्रंथों में महामारी के विषय में भिन्न भिन्न स्थानों पर वर्णन मिलता है |इससे यह तो स्पष्ट ही है कि महामारियाँ आदिकाल से ही आती जाती रही हैं | ऐसा कहना भी अनुचित न होगा कि सृष्टि का क्रम जब से प्रारंभ हुआ है महामारियाँ भी तभी से चली आ रही हैं
एशिया में 20 हजार साल पहले भी आई थी महामारी :28 जून 2021 को प्रकाशित -अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालयों में प्राचीन मानव जीन संरचना के अध्ययन से पता चला है कि मौजूदा चीन, जापान, मंगोलिया, उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया और ताइवान के इलाके में कोविड-19 जैसी महामारी 20 हजार साल पहले भी आई थी। लेकिन यह एक बार आकर खत्म हो गई थी। बीते 20 साल में भी कोरोना वायरस तीन बार आई महामारियों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। इस दौरान सबसे पहले फैले सार्स-कोरोना वायरस से श्वसन तंत्र को गंभीर नुकसान हुआ था। यह बीमारी 2002 में चीन से ही पैदा हुई थी और उससे 800 से ज्यादा लोग मारे गए थे। जबकि मर्स-कोरोना वायरस पश्चिम एशिया में पैदा हुआ, उसने भी श्वसन तंत्र पर हमला किया। उससे 850 से ज्यादा लोग मारे गए। वर्तमान में सार्स-कोरोना वायरस-2 के कारण कोविड-19 महामारी फैली है जिससे अभी तक दुनिया में 39 लाख लोग मारे जा चुके हैं।
विशेषकर भारतवर्ष में उस प्राचीनकाल को यदि आधुनिकवैज्ञानिकों की दृष्टि से देखा जाए तो उस युग में महामारी को समझने की इतनी विकसित व्यवस्था नहीं रही होगी | उससमय महामारीसंबंधी परीक्षणों के लिए वर्तमान समय की तरह यंत्र आदि थे|औषधिसंबंधी अनुसंधानों के लिए ऐसी व्यवस्था नहीं थी | निर्माण के लिए ऐसी कोई तकनीक विकसित नहीं थी | संचार व्यवस्था एवं यातायात के साधनों का विकास नहीं हुआ था | कुल मिलाकर वर्तमान दृष्टि से यदि देखा जाए तो उस युग में महामारी से बचाव के लिए मानव बिल्कुल खाली हाथ रहा होगा | महामारी को जानने समझने तथा इस पर रिसर्च करने एवं इसका सामना करने लायक उन लोगों के पास न ज्ञान विज्ञान रहा होगा और न ही अनुसंधान के लिए उपयुक्त इतने उन्नत साधन ही रहे होंगे |
उसयुग में महामारी के विषय में लोगों को तो तभी पता लग पाता होगा जब किसी गाँव या किसी जनपद या किसी राज्य आदि में महामारी से संबंधित घटनाएँ फैलने लगतीहोंगी | बड़ी संख्या में लोग अचानक संक्रमित हो जाते रहे होंगे | उन पर चिकित्सा का प्रभाव बिल्कुल नहीं पड़ने लगता होगा, तब महामारी की पहचान हो पाती होगी |ऐसी परिस्थिति में उस युग में महामारियाँ जब आती होंगी तो जानकारी न होने के कारण तैयारियों के अभाव में बहुत बड़ी संख्या में लोगों की महामारियों से मृत्यु हो जाती रही होगी | इसके अतिरिक्त उनके पास महामारी से बचाव के लिए कोई विकल्प ही नहीं रहा होगा |
वर्तमान समय में भी कोरोना महामारी के समय में चिकित्सावैज्ञानिकों ने अनुसंधानपूर्वक स्वीकार किया है कि महामारी से ग्रस्त अधिकाँश गंभीर रोगियों को चिकित्सा के लिए पर्याप्त समय ही नहीं मिल पाता है |गंभीर रोगियों में से अधिकाँश का एक दो दिन ही समय पार हो पाता रहा है |मरने वाले गंभीर रोगियों में से अधिकाँश की मौतें चिकित्सालयों में आने के एक दो दिनों के अंदर ही हो जाती रही हैं |
वर्तमानवैज्ञानिक युग में जब इतने नए नए आविष्कार हो चुके हैं हमेंशा नए नए रिसर्च चला करते हैं |अनुसंधान के लिए एक से एक उन्नत साधनों का सहयोग है | इसीलिए तो कोरोना महामारी आने के विषय में भारत जैसे देशों को तो महीनों पहले पता लग गया था कि चीन में कोरोना महामारी प्रारंभ हो चुकी है आशंका थी कि भारत भी इस संक्रमण से प्रभावित हो सकता है फिर भी वैश्विक दृष्टि से देखा जाए तो लाखों लोग कोरोना महामारी की भेंट चढ़ गए |
यदि वर्तमान समय जब वैज्ञानिक अनुसंधान दिनों दिन उन्नति के पथ पर अग्रसर हैं |विज्ञान की दृष्टि से ऐसे विकसित समय में यदि कोरोना महामारी ने विज्ञान को इतनी बुरी तरह बेबश किया है कि महामारी के विषय में किसी वैज्ञानिक को कुछ पता ही नहीं है | वैज्ञानिकों का समूह महामारी के जिस भी पक्ष के विषय में जो भी अनुमान या पूर्वानुमान लगा पा रहा था वो गलत सिद्ध होता जा रहा था | स्वाभिमानी वैज्ञानिकों को बार बार अपने बचन बदलने को विवश होना पड़ रहा था आज जो बोलते थे वो कल गलत निकल जाता था | कुल मिलाकर वैज्ञानिकों को महामारी के विभिन्न पक्षों के विषय में बार बार अपने बचन बदलने पड़े | महामारी रौंदती चली जा रही थी है | इतने विकसित विज्ञान के समय की जब यह स्थिति है तो संसाधनों की दृष्टि से देखा जाए तो उस प्राचीन युग में सहज ही कल्पना की जा सकती है |
ऐसी परिस्थिति में प्राचीन काल के विषय में यदि कल्पना की जाए तो तब स्थिति और अधिक ख़राब रही होगी क्योंकि उस युग में तो आधुनिक विज्ञान का उदय भी नहीं हुआ था | वर्तमान समय की तरह उस युग में महामारियों से सुरक्षा किस प्रकार हो पाती रही होगी ? महामारी के बिषय में जब तक लोगों को पता लग पाता रहा होगा तब तक तो भारी संख्या में लोगों की मृत्यु हो जाती रही होगी |जिनकी मृत्यु नहीं भी होती रही होगी महामारी चिन्हित होने से पहले एक दूसरे के संपर्क में आने से संक्रमित तो वे भी हो ही जाते रहे होंगे | काल्पनिक दृष्टि से तो प्राचीन काल में महामारियों के समय में स्थिति और अधिक ख़राब हो जाती रही होगी ,किंतु साधन न होने के कारण इतनी बड़ीसंख्या में लोगों की मृत्यु हुई हो ऐसा कोई वर्णन प्राचीन ग्रंथों में मिलता नहीं हैं | महामारियों में कुछ लोग तो मरते ही हैं इसीलिए तो वे महामारियाँ कही जाती हैं |
महामारी अनुसंधान और चिंताएँ ! - FINAL 4-10-2021
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