Skip to main content

प्रथम खंड फाइनल melen

                                                                   दो शब्द - 

        ऐसा कभी नहीं सोचा गया था ! लॉकडाउन लगने से सारे काम काज ठप्प पड़ जाएँगे !स्कूल कालेज बंद हो जाएँगे !यातायात के साधन अवरुद्ध हो जाएँगे | ऐसी परिस्थिति में भोजन जैसी आवश्यक वस्तुओं के लिए भी सोचना पड़ेगा | लोगों को अपनों से भी मिलने में भय लगने लगेगा | गंगा जी की रेती में निर्जीव शरीर विखरे पड़े होंगे | चिकित्सालयों से लेकर श्मशान तक अवरुद्ध हो जाएँगे !निर्जीव शरीरों को स्वजनों के हाथों का स्पर्श मिलना मुश्किल हो जाएगा | स्वजनों के शवों को देखने से भी लोग बचते दिखाई देंगे | वर्तमान पीढ़ी के लोगों ने ऐसी दुखद कभी कल्पना भी नहीं की होगी जो दुर्दृश्य देखने को मिले हैं |

     ऐसे कठिन समय में चिकित्सकों को भगवान का दूसरा स्वरूप मानने वाले समाज को आवश्यक चिकित्सकीय सुविधाओं के लिए दर दर भटकना पड़ेगा फिर भी उन्हें अपने उन्हीं चिकित्सकों कोई मदद नहीं मिल सकेगी |रोगियों को चिकित्सकों से संपर्क साधना मुश्किल हो जाएगा | अस्पतालों में प्रवेश वर्जित हो जाएगा | हृदय रोगियों को,आसन्न प्रसवा महिलाओं को, सद्यः प्रसूताओं को, सद्यः प्रसूत शिशुओं को आवश्यकता पड़ने पर भी चिकित्सकीय सहायता नहीं मिल सकेगी |
     इतने कठिन समय में चिकित्सा से संबंधित वे अनुसंधान वे चिकित्सा सुविधाएँ जनता के किसी काम नहीं आ सकेंगी | जिनका संचालन लोगों के खून पसीने की कठिन कमाई से प्राप्त टैक्स रूपी अंश के योगदान से इसीलिए किया जाता है ताकि महामारी जैसे कठिन समय में उनसे मानवता को मदद मिल सके किंतु ऐसे कठिन समय में उस प्रकार के अनुसंधान किसी काम नहीं आ सकेंगे ऐसा कभी सोचा न था |
      चिकित्सकों की सलाह पर जो टीके बचपन से इस आशा से लगवाए जाते रहे थे कि भविष्य में संभावित रोगों से सुरक्षा होती रहेगी | चिकित्सकों के द्वारा दी जाने वाली स्वास्थ्यकर संपूर्ण सलाहों का अक्षरशः पालन इसीलिए लिए किया जाता रहा था कि महामारी जैसी कठिन अवस्थाओं में ये टीके कुछ तो सहायक होंगे ही किंतु उसके बाद भी महामारी काल में जो हुआ वैसा कभी सोचा न था |                                                                                                                                 भूमिका 

      कोरोना जैसी महामारी से जूझती जनता की पीड़ा के दुखद दृश्य जो देखने को मिले वे शायद इस जन्म में भूल पाना संभव नहीं होगा |सबसे बड़ी पीड़ा की बात यह है कि इस वैज्ञानिक युग में जिन वैज्ञानिक प्रयासों से मानव चंद्रमा पर कदम रखने में सफल हुआ है | चिकित्सा दूरसंचार आदि कई अन्य क्षेत्रों में कई बड़े कीर्तिमान स्थापित कर चुका है | जहाँ एक ओर अपनी वैज्ञानिक सफलता पर गर्व होता हैं वहीं दूसरी ओर एक बड़ी चिंता की बात यह है कि कोरोना जैसी इतनी बड़ी महामारी अचानक प्रारंभ होने का कारण क्या है इसका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका |महामारी के स्वभाव को समझा नहीं जा सका | इतनी बड़ी महामारी अचानक प्रारंभ हुई इसके शुरू होने से पहले इसके विषय में पूर्वानुमान लगाकर जनता को सूचित नहीं किया जा सका | मेरी जानकारी के अनुशार महामारी आदि  विषयों में वैज्ञानिक अनुसंधान तो हमेंशा चलते  ही रहते होंगे, जिसमें दो वर्ष महामारी को आए भी हो गए हैं किंतु अभी तक अँधेरे में ही तीर चलाए जा रहे हैं |महामारी को लेकर अभी तक कोई विश्वसनीय बात दृढ़ता पूर्वक कही जा सके ऐसा संभव नहीं हो पाया है |

   महामारियाँ अन्य प्राकृतिक आपदाओं की तरह आती अचानक ही हैं और जनधन की हानि बहुत करती हैं | महामारी कहने का मतलब ही होता है कि इस समय होने वाले रोगों को पहचानना आसान नहीं होगा | इसकी चिकित्सा खोजना भी कठिन होगा | महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाना तो और भी कठिन होगा | इन्हीं जटिलताओं का समाधान खोजने के लिए तो वैज्ञानिक अनुसंधानों की आवश्यकता होती है | जनता को उनसे यह आशा और अपेक्षा रहती है कि हमारे महान वैज्ञानिक महामारी से संबंधित अभी तक किए गए अपने अनुसंधानों अनुभवों के बलपर महामारी के संकट काल में भी समाज को सुरक्षित बचाने में सफल होंगे | चिकित्सकों को भगवान् का दूसरा स्वरूप मानने वाला समाज आज इसलिए हतप्रभ है कि महामारी जैसे भयावह समय में समाज को महामारी से ही अपने एवं अपनों के जीवन की भीख माँगनी पड़ी है | महामारी ने जिसे चाहा उसे छोड़ दिया है और जिसे चाहा उसे निगल लिया है | हम अपनी वैज्ञानिक तैयारियों के बलपर महामारी से बचाव करना तो दूर रहा महामारी का स्वभाव समझने में आंशिक रूप से भी सफल नहीं हो पाए हैं |जनता के जीवन से संबंधित यह बहुत बड़ी घटना है जिसे दशकों तक भुलाया नहीं जा सकेगा |

     ये चिंता की बात है कि तीन वर्ष तक जो महामारी रौंदती रही उसके विषय में यह भी पता नहीं लगाया जा सका कि यह संकट प्राकृतिक है कि मनुष्यकृत ! संक्रमण वायु में है या नहीं !महामारी का विस्तार कितना है प्रसार माध्यम क्या है अंतर्गम्यता कितनी है ! महामारी पर किस मौसम का प्रभाव कैसा पड़ेगा ! तापमान बढ़ने घटने का महामारी पर क्या प्रभाव होगा | वायु प्रदूषण का महामारी पर कैसा प्रभाव पड़ेगा !संक्रमण अचानक बढ़ने घटने का कारण क्या है !महामारी कब तक रहेगी |किस किस प्रकार के लोगों की महामारी से संक्रमित  होने की संभावना है |मृत्यु किस वर्ग ,उम्र या श्रेणी के लोगों की हो सकती है | इससे बचाव के लिए किस प्रकार का खान पान रहन सहन आदि अपनाया जाना चाहिए |संक्रमितों पर चिकित्सा का कैसा प्रभाव पड़ेगा | ऐसी तमाम आवश्यक बातों की जानकारी अंत तक नहीं पता लगाईं जा सकी है |

    महामारी की जगह यदि किसी शत्रु राजा के द्वारा इसीप्रकार से अचानक हमला करके पूरे देश को  चपेट में ले लिया गया होता | अपने पास उससे निपटने  की तैयारी बिल्कुल न होती | शत्रु की तैयारियों एवं युद्ध कौशल के विषय में अनुमान ही न होता | उस समय राजा की आक्रामकता का पता लगाने के लिए रिसर्च शुरू की जाती उसके आधार पर जो जो अनुमान या पूर्वानुमान लगाए जाते वे गलत निकलते जा रहे होते | ऐसी परिस्थिति में तो शत्रुकृत कृपा का ही सहारा बचता फिर तो जीवन की आशा उसी से लगानी पड़ती |  महामारी ने जिस वर्ग ,उम्र या श्रेणी आदि के लोगों को अपनी चपेट में लिया उन्हें निगलते चली गई |उस समय महामारी के सामने आत्मसमर्पण करने के अतिरिक्त अंकुश लगाने लायक कोई उपाय समाज के पास  नहीं था | 

      ऐसी परिस्थिति में महामारी में बहुत कुछ खो चुके समाज का भय दूर करने के साथ साथ उत्साह बर्द्धन के लिए महामारी जैसे भयावह संकट से बचाव हेतु कुछ ऐसा किया जाना आवश्यक हो गया है जिससे समाज के मन में बैठे महामारी के भय को कम किया जा सके ताकि समाज पहले की तरह ही अपने काम काज का उत्साह पूर्वक संचालन कर सके एवं निश्चिंत भाव से  उत्साह पूर्वक जीवन जी सके |                                             

                                                 विषय प्रवेश 

                                    महामारी  को समझने में कमी कहाँ रह गई ?

      विदेशों के पास तो आधुनिक विज्ञान था जबकि भारत के पास आधुनिक  विज्ञान तो था ही इसके साथ ही साथ अपना प्राचीन वैदिकविज्ञान भी था | जिसके बल पर भारत में प्रकृति से लेकर जीवन तक से संबंधित सभी विषयों में हमेंशा से सही एवं सटीक अनुसंधान किए जाते रहे हैं | इसलिए भारत में दोनों पद्धतियों का उपयोग करते  महामारी के विषय में सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाकर महामारी का भयावह समय प्रारंभ होने से पहले महामारी मुक्त समाज की नींव रखी  जा सकती थी या फिर महामारी की इतनी भयावहता से बचाकर सुरक्षित रखा जा सकता था | कमी कहाँ रह गई इसके समझने की आवश्यकता है |

     आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से देखें तो महामारी या प्राकृतिक आपदा जैसा  कोई संकट उपस्थित होता है | ऐसे समय  संकटों से जूझ रही जनता को वैज्ञानिक अनुसंधानों से प्राप्त अनुभवों की अपने बचाव के लिए सबसे अधिक आवश्यकता होती है | उस कठिन समय में अभी तक किए गए अनुसंधानों से  जनता को कोई मदद न मिल पाना चिंता की बात है |
     इसके लिए ऐसे तर्क दिए जाना कि महामारी अपना स्वरूप बदल रही है इसलिए ऐसे नए वेरियंट को समझा नहीं जा सका | इसीप्रकार से प्राकृतिक आपदाओं के आने का कारण जलवायुपरिवर्तन है इसलिए  ऐसी  घटनाओं के विषय  में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं है आदि ऐसी बातें वैज्ञानिक जगत के मुख से शोभा नहीं देती हैं क्योंकि ऐसे संकट के समय में से जनता बड़ी आशा से अपने वैज्ञानिकों  की ओर देख रही होती है | सरकारें जनता का प्रतिनिधित्व करते हुए  ऐसी संकट कालीन परिस्थितियों में जनता की मदद करने हेतु जो जिम्मेदारी वैज्ञानिक अनुसंधान कर्ताओं को देती हैं उसका निर्वाह उसी आत्मीय भावना से होना चाहिए | जलवायुपरिवर्तन हो या  वैरियंट वदले उससे जनता का क्या लेना देना !वो तो वैज्ञानिक ही समझ सकते हैं| जनता को केवल सेवाओं से मतलब है | 

   महामारियों एवं प्राकृतिक आपदाओं  के विषय में अनुसंधान करने की जिम्मेदारी जिन्हें विशेषज्ञ समझ समझकर दी गई है और उन्होंने न केवल सहमति पूर्वक स्वीकार की है अपितु इसके लिए ही सरकारें उनका आर्थिकअर्चन करती हैं इसके साथ ही उन्हें उचित पद प्रतिष्ठा प्रदान करती हैं|  इसके बाद जलवायुपरिवर्तन या  महामारी के वैरियंटवदलने को भी अनुसंधान पूर्वक अच्छी प्रकार से समझकर ऐसी घटनाओं का कारण खोजना एवं उनसे बचाव के लिए पूर्वानुमान लगाकर उनसे सरकारों को अवगत करवाना ये उनका कर्तव्य होता है |

    कुलमिलाकर जलवायुपरिवर्तन हो या  वैरियंट बदले फिर भी प्राकृतिक संकटों के समय अनुसंधानों से जनता को हर हाल में मदद मिलना सुनिश्चित किया जाना चाहिए | उस महामुसीबत के समय जनता को ऐसी निरर्थक बातें बोलने का औचित्य ही क्या है| ऐसा कहना ही है तो ऐसे प्राकृतिक संकट आने से पहले ही जनता को बता दिया जाए कि हम महामारी अथवा प्राकृतिक आपदाओं के समय में आपकी कोई मदद करने की स्थिति में नहीं हैं तो जनता कोई आशा ही नहीं रखेगी |

     जिन्हें ऐसे विषयों के विशेषज्ञ समझकर यह जिम्मेदारी सौंपी गई है संभावित ऐसी सभी परिस्थितियों से निपटना जिम्मेदारी सँभाल रहे उन  विशेषज्ञों का अपना कर्तव्य  बन  जाता है | जिस प्रकार से देश की सीमाओं पर सुरक्षा  के उद्देश्य से डटे सैनिक जिम्मेदारी सँभालकर संभावित सभी परिस्थितियों से  स्वयं निपटते हैं |उस समय शत्रु कितनी भी चालें चले,वेष  बदलकर हमला करे, कितना भी छल प्रपंच रचे | ऐसी सभी चालों को समझने की उन्हें ट्रेनिंग पहले ही दी जा चुकी होती है उसी  विशेष योग्यता से संपन्न सैनिकों को ही ऐसी जिम्मेदारी दी गई होती है | उसी विशेष योग्यता एवं साहस के बल पर कर्तव्यनिष्ठ सैनिकों  का लक्ष्य हर हाल में शत्रु को जीतना ही होता है और वह युद्ध को जीतकर ही चैन लेते भी हैं | प्रकृति वैज्ञानिकों से भी ऐसी ही अपेक्षा जनता किया करती है |

     महामारियों का अपना कोई निश्चित स्वभाव आचरण या लक्षण आदि नहीं होता है |इसी अनिश्चितता के कारण महामारी में स्वरूप परिवर्तन का भ्रम होते देखा जाता है| इसीलिए प्रत्यक्ष लक्षणों के आधार पर महामारी को समझ पाना संभव नहीं होता है | विशेषज्ञ लोग ही अनुसंधान पूर्वक ऐसी महामारियों को समझ पाते हैं |

     प्राकृतिक महामारियाँ प्रायः अपने समय से आतीं और अपने समय से ही जाती हैं | ये जब तक पीड़ित करती रहती हैं  तब तक सरकारें और चिकित्सक चुप तो बैठते नहीं हैं ये अपनी जनता को महामारी से मुक्ति दिलाने  के लिए कोई न कोई औषधि टीका आदि उपाय तो किया ही करते हैं |
   इसी क्रम में बिना किसी औषधि के ही स्वाभाविक रूप से महामारी कभी न कभी तो समाप्त होती ही है उस समय भी कोई न कोई औषधि टीका आदि चलाया ही जा रहा होता है | ऐसी परिस्थिति में उनमें से जिस किसी भी औषधि टीका आदि का प्रयोग महामारी के स्वाभाविक रूप से समाप्त होते समय किया जा रहा होता है भ्रमवश उसे ही महामारी की औषधि के रूप में चिन्हित करके उसी घटक को महामारी की औषधि मान लिया लिया जाता है |इसके बाद दूसरी बार जब कोई महामारी आती है उस समय उसी पुराने औषधीय घटक का प्रयोग करने पर उससे कोई लाभ नहीं होता है चूँकि वह महामारी की औषधि ही नहीं होती है जिसे पिछली बार भ्रमवश महामारी की औषधि के रूप में स्वीकार कर लिया गया होता है | इसलिए नई महामारी पर नए सिरे से बिचार किया जाने लगता है जब तक महामारी रहती है तब तक एक के बाद दूसरा और दूसरे के बाद तीसरे आदि प्रयोग किए जाते रहते हैं जिस प्रयोग काल में महामारी समाप्त होती है उसी प्रयोग को अगली महामारी आने तक के लिए महामारी की औषधि के रूप में संरक्षित करके रख लिया जाता है |

                             महामारी को समझने में कहाँ चूक गया वैदिक विज्ञान !

      महामारी तथा  प्राकृतिक आपदाओं की उत्पत्ति का कारण खोजना या इनके विषय में पूर्वानुमान लगाना प्रत्यक्ष विज्ञान के द्वारा संभव होता तब तो आधुनिक विज्ञान के द्वारा इसे आसानी से किया जा सकता था | ऐसी घटनाओं के स्वभाव को समझने के लिए प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों प्रकार के ही वैज्ञानिक अनुसंधानों की आवश्यकता होती है |

      इसीलिए भारत के प्राचीन वैदिकविज्ञान से संबंधित विभिन्न ग्रंथों में न केवल महामारी एवं प्राकृतिक आपदाओं के आगमन से पहले उनके विषय में पूर्वानुमान लगाने की गणितीय विधा का वर्णन मिलता है अपितु ऐसी दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाने वाले यज्ञविज्ञान के आधार पर उपायों को भी बताया गया है |प्राचीन काल में ऐसे विषयों में  सुयोग्य विद्वान लोग अनुसंधान पूर्वक महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं के  विषय में न केवल पूर्वानुमान लगा लिया करते थे अपितु यज्ञविज्ञान में वर्णित  प्रभावी उपाय करके मानव समाज को ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षित बचा लिया करते थे |इस प्रकार से उस  युग में भी महामारी मुक्त समाज का सपना साकार होते देखा जाता था जबकि उस समय आधुनिक विज्ञान जैसे संसाधन कहाँ थे |

      वर्तमान समय में वेद विज्ञान के  अध्ययन अध्यापन अनुसंधान आदि प्रक्रिया में सम्मिलित लोगों का भी इतना तो कर्तव्य बनता ही था कि वे भी उस परंपरा के अनुशार कुछ तो करते | महामारी जैसे कठिन संकट के अवसर पर अपनी शास्त्रीयक्षमता का परिचय देते हुए कोरोना महामारी आने के विषय में पहले से पूर्वानुमान लगाकर उनसे सरकारों को अवगत करवाते एवं यज्ञ विज्ञान पद्धति के  आधार पर उपाय करवाकर समाज को महामारी मुक्त बनाए रखने की दृष्टि से कुछ तो सार्थक प्रयास करते | उनके प्रयास से तैंतीस कोटि देवी देवताओं की पहचान वाला यह देश अन्य धर्मावलंबियों की अपेक्षा कुछ तो अलग रहता | प्राचीन वैज्ञानिकों के प्रयास से भारत वर्ष को महामारी मुक्त बनाए रखने में यदि थोड़ी भी सफलता मिली होती तो सारी दुनियाँ भारतवर्ष की इस प्राचीनवैज्ञानिक क्षमता पर विश्वास करने के लिए विवश होती | विश्वमंच पर अपने भारत की प्राचीनवैज्ञानिक क्षमता के प्रभाव को प्रस्तुत करने का यह अत्यंत उत्तम अवसर दुर्भाग्यवश अपने हाथ से निकल गया |

      ऐसे विषयों से संबंधित अध्ययन  अध्यापन की परंपरा तो न्यूनाधिक रूप में हमेंशा से चलती ही रही है !विगत कुछ दशकों  से तो सरकारी संस्कृतविश्व विद्यालयों में ऐसे सभी विषयों पर अध्ययन  अध्यापन अनुसंधान आदि किए करवाए जाते रहे हैं | उसमें भी वर्तमान समय की स्थापित सरकार ने अपने भारत की प्राचीनवैज्ञानिक क्षमता को प्रोत्साहित करने में कोई कमी नहीं रखी है फिर भी यदि ऐसे अनुसंधान करने करवाने की जिम्मेदारी सँभाल रहे प्राच्यविद्या से जुड़े लोग महामारी  मुक्त समाज की संरचना में अपना कितना योगदान किस प्रकार से दे पाए हैं उसके तर्क संगत प्रमाण संस्कृत विश्व विद्यालयों के द्वारा प्रस्तुत किए जाने चाहिए जिससे  कोरोना महामारी से भयभीत जनता का भरोसा भविष्य के लिए कुछ तो बढ़ाया जा सके | संस्कृतविश्व विद्यालयों की जिम्मेदारी सँभाल रहे लोगों का यह कर्तव्य बनता है कि वे भी बताएँ कि उनके अध्ययनों अनुसंधानों के द्वारा महामारी पीड़ितों को कितनी मदद पहुँचाई जा सकी है | उनकी योग्यता कर्मठता एवं सार्थकता का मूल्याँकन सरकारें उसी के आधार पर करके ऐसे विषयों में भविष्य संबंधी अनुसंधानों के लिए प्रभावी योजनाएँ बना सकती हैं |

     वेद वैज्ञानिक अनुसंधान क्षेत्र से जुड़े विद्वानों को भी अपने अध्ययनों अनुसंधानों की सामर्थ्य सिद्ध करने के लिए कुछ तो करना ही चाहिए | केवल प्राचीन ग्रंथों में वर्णित वैज्ञानिक विषयों की प्रशंसा करते रहने की अपेक्षा उस विज्ञान के आधार पर उन्हें भी प्रत्यक्ष प्रायोगिक रूप से कुछ ऐसा प्रस्तुत करना चाहिए जो वर्तमान समय में महामारी से निराश हताश जनता का उत्साह बर्द्धन कर सके | प्राचीन वैज्ञानिक ग्रंथों में वर्षा विज्ञान से लेकर सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने का वर्णन किया गया है | प्राकृतिक आपदाओं से अपने समाज को सुरक्षित बचाकर रखने की विधियाँ बताई गई हैं उनसे संबंधित अनुसंधानों की समाज को आवश्यकता है |
                                              महामारी और बचाव की तैयारियाँ !          

     कोरोना महामारी से जो अधिक जनधन की हानि हुई है उसका बड़ा कारण संक्रामकता का वेग अधिक होना था या फिर महामारी का सामना करने के लिए पहले से की गई तैयारियों में ही कमी थी | महामारियाँ तो नुकसान करने के लिए ही आती हैं |इसलिए उनका दोष देना ठीक नहीं है | वे नुक्सान कम करेंगी ऐसी आशा ही नहीं की जानी चाहिए थी | ऐसे समय में केवल बचाव करना ही अपना कर्तव्य होता है | 

    महामारियाँ सशक्त शत्रुओं की तरह होती हैं |जनधन की हानि करना इनकी स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है | जिस प्रकार से कोई भी शत्रु हमला करते समय छल बल के सभी प्रयोग करता है | इसके लिए वह जितने भी प्रकार के मायावी स्वरूप धारण कर युद्ध जीतने के प्रयत्न कर सकता है वे सभी करता ही है | ऐसा करने के लिए उसे दोषी नहीं माना जा सकता | वैसे भी शत्रु से सहयोग की आशा तो रखनी भी नहीं चाहिए |शत्रु है तो हमला करेगा ही वो हमला न करे उससे ऐसी अपेक्षा कैसे की जा सकती है | ऐसे कठिन समय ही आपत्कालीन परिस्थितियों से निपटने के लिए की गई वैज्ञानिक तैयारियों का परीक्षण हो पाता है कि कितनी मजबूत थीं | 

     ऐसे समय में आक्रांता शत्रु की तैयारियों का बखान करने या महिमामंडन करने की जगह  शत्रु के प्रत्येक दाँव (षड्यंत्र) को विफल करने की जो तैयारी पहले से करके रखी गई होती है वही काम आ पाती है | महामारी ने जब आक्रमण किया उस समय महामारी से निपटने की तैयारियों के नाम पर हम खाली हाथ थे | वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर महामारी की मारक क्षमता ,विस्तार या परिवर्तित स्वरूपों की संक्रामकता के विषय में जो अंदाजा लगाया जा रहा था उसका वास्तविकता से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं था | महामारी में जो जो कुछ होता जा रहा था वही आँखों देखा हाल महाभारत के संजय की तरह  वैज्ञानिकों के द्वारा वर्णन किया जा रहा था | उसी के अनुशार कुछ अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लिए जाते रहे हैं | कोरोना और अधिक संक्रामक हो गया है उसकी मारक क्षमता बढ़ गई है | कोरोना अपना स्वरूप बदल रहा है | कोरोना सर्दी में बढ़ेगा ! कोरोना वायु प्रदूषण के कारण बढ़ेगा आदि आदि | 

    वैज्ञानिक अनुसंधानों का उद्देश्य कोरोना क्या करेगा क्या नहीं अपितु हमें कोरोना से निपटने के लिए क्या करना चाहिए इसकी इतनी मजबूत तैयारियाँ करके पहले से ही रखनी चाहिए थीं कि उस संकटकाल में हम समाज को यह भरोसा दे सकते  कि कोरोना कितने भी स्वरूप बदल ले कैसा भी संक्रामक  हो जाए फिर भी हम उससे भयभीत नहीं हैं | हमारे पास महामारी का सामना करने की इतनी तैयारियाँ हैं कि मनुष्यों को संक्रमित होने से बचा लेंगे उन्हें महामारी से मरने नहीं देंगे | हमें अपने अनुसंधानों पर इतना विश्वास तो होना ही चाहिए था |महामारी भी  मानवता की शत्रु ही तो है उससे सहानुभूति की उम्मींद तो नहीं ही की जानी चाहिए थी | पर्याप्त तैयारियों के  अभाव में महामारी के भरोसे समाज को छोड़ दिया जाना कितना उचित था |  

    महामारियों के विषय में किए जाने वाले अनुसंधानों पर खर्च होने वाला धन जनता का होता है जिसे टैक्स रूप में लेकर सरकारें ऐसे अनुसंधानों पर खर्च किया करती हैं फिर अनुसंधानों से भी तो कुछ ऐसे परिणाम निकलने आवश्यक थे जो जनता के सामने सरकारें उसी गौरव के साथ प्रस्तुत कर पातीं | जिनके बलपर महामारी के संकट काल में भी जनता को निर्भयता पूर्वक अपनी दिनचर्या रोजगार आदि अनुपालन की अनुमति दी जा सकी होती | इससे जनता का भी उत्साह बढ़ता है | गणतंत्र दिवस पर झाँकियों के माध्यम से अपनी तैयारियाँ देखकर जन सामान्य का भी मन प्रफुल्लित हो उठता है|अपनी सुरक्षा की तैयारियों पर गर्व तो होता ही है इसके साथ ही साथ अपना मनोबल भी बढ़ता है और इस बात का विश्वास जगता है कि हमारी सुरक्षा की तैयारियाँ हमारे देश को सुरक्षित बनाए रखने में सक्षम हैं | 

    कुल मिलाकर राष्ट्रसुरक्षा की तरह ही स्वास्थ्य सुरक्षा संबंधित चुनौती भी स्वीकार की जानी चाहिए थी | जिस प्रकार से शत्रु के द्वारा हमला कर दिए जाने के बाद भी हम अपनी सुरक्षा तैयारियों के बलपर शत्रु को मुखतोड़ जवाब देते हुए अपनी जन धन की हानि को कम से कम होने देते हैं | ऐसे ही अपने स्वास्थ्य सुरक्षा संबंधी अनुसंधानों को पहले से ही इतना सक्षम बनाया जाना चाहिए था कि महामारी आने के बाद भी बिना किसी को चोट पहुँचाए उसे जाने के लिए बाध्य कर देते हमारा चिकित्सकीय युद्ध कौशल यही होता | महामारी से कोई संक्रमित नहीं होता इस प्रकार की अपनी महामारी मुक्त समाज संरचना की तैयारियाँ पहले से करके रखी जानी चाहिए थीं |

                                          
   सार्थक अनुसंधानों की आवश्यकता ! 
     
     कई बार लगता है कि जिन प्राकृतिक आपदाओं को रोक पाना हमारे बश की बात ही नहीं है उन्हें रोक देने के लिए हम बड़े बड़े सभा सम्मेलन आयोजित किया करते हैं | जलवायु पविर्तन जैसे निराधार काल्पनिक विषयों पर निरर्थक सुझाव ले दे रहे होते हैं झूठे संकल्प कर रहे होते हैं जिनसे कुछ होना जाना होता तो हो जाता | 
    वर्तमान समय विज्ञान इतना उन्नत हैफिर भी उसके द्वारा भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात तथा महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं से जूझती जनता को कुछ काल्पनिक कथा कहानियों के अतिरिक्त और क्या दिया जा सका है| ये तो प्राकृतिक आपदाओं और महामारी से जूझती जनता को ही पता है या फिर प्रकृति पीड़ित किसानों को पता है कि पिछले कुछ दशकों में जितने भी प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ घटित हुई हैं उनसे बचाव की दृष्टि से वैज्ञानिक अनुसंधानों की कैसी भूमिका नहीं रही है |  
     कहने को तो हम महारोगों को रोकने के टीके बना लेने लगे हैं | भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान जैसी प्राकृतिक घटनाओं के लिए जिम्मेदार कारण के स्वरूप में जलवायु पविर्तन होने का कारण को खोज लिया है |ये  प्राकृतिक एवं मानव  क्रियाकलापों के परिणाम स्वरूप घटित होता है ।मनुष्य द्वारा उद्योगों से निःसृत कार्बन डाई आक्साइड आदि गैसों के वायुमण्डल में अधिक मात्रा में बढ़ जाने का परिणाम बताया जा रहा है। कई लोग इस समस्या के समाधान पर काम कर रहे हैं | उससे हो सकता है यह समस्या भी समाप्त ही हो जाए | इससे संभव है कि भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान जैसी प्राकृतिक घटनाओं की अति पर अंकुश लगाया जा सके | ऐसे ही पृथ्वी के अंदर की लावे पर तैरती प्लेटों की आपसी टकराहट को भूकंपों केघटित होने का कारण मान लिया गया है |  

    बिचारणीय विषय यह है कि अनुसंधानों का मतलब कुछ भी करना नहीं होता है अपितु यह सोचा जाना आवश्यक है कि ऐसे अनुसंधानों से उस जनता को क्या मिला है जिसके लिए ये किए जा रहे हैं | आज तक किए गए वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा महामारी से जूझती जनता को कितनी मदद पहुँचाई जा सकी है |विगत कुछ वर्षों में घटित हुई  भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान जैसी प्राकृतिक  आपदाओं से पीड़ित लोगों को वैज्ञानिक अनुसंधानों से क्या राहत पहुँचाई जा सकी है | ऐसी घटनाएँ घटित हो जाने के बाद तो आपदाप्रबंधन की भूमिका प्रारंभ हो जाती है वैज्ञानिक अनुसंधानों की भूमिका तो उससे पहले ही रहती है | ऐसी घटनाओं से पहले वो कितनी सार्थक सिद्ध हो पाती है यह बिचारणीय विषय है |  
    अत्यंत चिंता की बात है कि वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा महामारी का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा  सका है| यह रोगों महारोगों पर नजर रखने वाले चिकित्सकीय खुपिया विभाग की सबसे बड़ी विफलता है | मानव समाज पर महामारी जैसा  इतना बड़ा संकट आने वाला है इसकी भनक तक शोधकर्ताओं को पहले से नहीं लग सकी |महामारी के बाद उनके द्वारा व्यक्त की जा रही तरह तरह की निराधार आशंकाएँ अफवाहों को जन्म देते देखी जाती हैं | 
   जनता को पता ही नहीं था कि अचानक  शिक्षण संस्थानों से लेकर व्यापार आदि  साराकाम काज आदि सब कुछ अचानक बंद कर देना  पड़ेगा !बाजार बंद हो जाएँगे | यातायात के  समस्त साधन रोक देने पड़ेंगे | ऐसी परिस्थिति में उस समय दैनिक उपयोगी खानपान आदि आवश्यक वस्तुओं की आवश्यकता भारी मात्रा में तुरंत होगी उसकी आपूर्ति कैसे हो पाएगी | दैनिक कमाने खाने वाले श्रमिकवर्ग का भरण पोषण कैसे हो सकेगा |

    महामारी प्रभाव से लोग तेजी से संक्रमित होने लग सकते हैं !संक्रमितों के लिए अस्पतालों में विस्तरों समेत जिन आवश्यक चिकित्सकीय औषधियों आक्सीजन सिलेंडरों आदि की आवश्यकता अधिक मात्रा में पड़नी थी उसकी व्यवस्था कैसे होगी | अस्पतालों से श्मशानों तक जाम लग सकता है | महामारी का मतलब  ही यही होता है कि सब कुछ अनियंत्रित हो जाता है | यही तैयारियाँ आगे  से आगे करके रखने  के लिए समय तो चाहिए इसकी आवश्यकता सरकार एवं प्रशासन से लेकर समाज तक सबको पहले से करके रखनी होती है | 
    इसके लिए ही तो  ऐसी घटनाओं  के विषय में पूर्वानुमान लगाकर सरकार एवं समाज को अवगत कराना अनुसंधान कर्ताओं का अपना कर्तव्य होता है |वैसे भी महामारी हों  प्राकृतिक आपदाएँ इनके घटित होने के  पहले ही इनकी सेवाओं की आवश्यकता होती है |   इन्हीं आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए वैज्ञानिकों को आगे से आगे अनुसंधान करने के लिए समस्त संसाधन उपलब्ध करवाए जाते हैं उन्हें सुख सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं | इसलिए अनुसंधानों की भी जनता के प्रति कुछ तो जवाबदेही होनी ही चाहिए| 
   रोगों महारोगों पर नजर रखने वाले चिकित्सकीय खुपिया विभाग की विफलता का ही यह नतीजा है कि सरकारों से  लेकर जनता तक को अचानक प्राप्त परिस्थितियों  से अकेले अपने बल पर जूझना पड़ा है |सोचने की बात है कि  महामारी जैसे संकटों से निपटने  के लिए हमेंशा चलाए  जाने वाले वैज्ञानिक अनुसंधानों से जनता को आखिर ऐसी कितनी मदद पहुँचाई जा सकी जो वैज्ञानिक अनुसंधानों के बिना संभव न थी | अनुसंधानों से ऐसा तो कुछ भी सहयोग तो नहीं मिला |
    महानगरों से श्रमिकों को घबड़ाकर पलायित होते देखा गया है |अस्पतालों में विस्तरों समेत जिन आवश्यक चिकित्सकीय औषधियों आक्सीजन सिलेंडरों आदि की आवश्यकता अधिक मात्रा में पड़नी थी उसकी व्यवस्था अचानक पर्याप्त मात्रा में न हो  पाने के कारण ही लोग दर दर भटकते देखे गए | अस्पतालों से श्मशानों तक जाम लग  गया | अग्रिम जानकारी के अभाव में ही तो शोशलडिस्टेंसिंग, सैनिटाइजिंग, छुआछूत, मॉस्कधारण लॉकडाउन जैसे कठोर कोविड नियमों का पालन महामारी की चिकित्सा की तरह करना पड़ा है|नदियों में  जहाँ तहाँ बिखरे पड़े  शवों के वे दारुण दृश्य देखने पड़े हैं ! इसके अतिरिक्त और भी बहुत कुछ ऐसा संकटप्रद हुआ है जिसमें वैज्ञानिक अनुसंधानों द्वारा जनता को ऐसी कोई मदद नहीं पहुँचाई जा सकी  जो उनसे अपेक्षा थी |
    ऐसी परिस्थिति में प्राकृतिक घटनाओं के आधारभूत वास्तविक कारणों की खोज न हो सकने के कारण कुछ काल्पनिक कारणों को मानने मनवाने का अपना पूर्वाग्रह छोड़कर प्राकृतिक अनुसंधानों को करने करवाने के वास्तविक उद्देश्य को समझा जाना चाहिए और जिसकिसी भी प्रकार से संभव हो सके जनता के बचाव पक्ष को लक्ष्य बनाकर पारदर्शी प्रमाणित एवं सार्थक अनुसंधान किए जाने चाहिए | प्राकृतिक आपदाओं को घटित होनेसे रोकने कीबड़ी बड़ी बातों के चक्कर में न पड़कर उनसे मनुष्यों का बचाव कैसे हो उस उद्देश्य को केंद्र में रखकर नए सिरे से वैज्ञानिक अनुसंधान प्रारंभ किए जाने चाहिए | जो प्राकृतिक संकटों के समय में जनता के लिए कुछ तो सहायक सिद्ध हो सकें | 

                         प्रथम खंड

   आकाशवाणियों की खोज !

     प्राचीनकाल में
आकाशवाणियों के विषय में वर्णन मिलता है कि किसी अच्छी या बुरी कुछ विशेष घटनाओं के विषय में अग्रिम सूचनाएँ देने के लिए आकाशवाणियाँ हुआ करती थीं और वे हमेंशा सही निकलती रही हैं | उनसे कई बड़ी अच्छी बुरी संभावित घटनाओं के विषय में पहले से पता लगा लिया जाया करता था, उससे यथा संभव सावधानी बरतकर संभावित हानिकारक घटनाओं से अपना बचाव कर लिया जाता था |

    महामारी भूकंप जैसी कई बड़ी हिंसक दुर्घटनाएँ अभी भी घटित होते देखी जाती हैं जिनसे भारी भरकम जनधन की हानि होते देखी जाती है | उनके विषय में कोई पूर्वानुमान पता होता तो संभव है कि ऐसी दुर्घटनाओं से इतना अधिक नुक्सान न होने पाता | 

    आकाशवाणियों के विषय में वर्णन मिलता है कि इस प्रक्रिया में मनुष्यों का कोई हस्तक्षेप नहीं था | ये संपूर्ण रूप से प्राकृतिक हुआ करती थीं |ये अपने आप अचानक होते सुनी जाती थीं |जिससे कई बार बड़ी दुर्घटनाओं से बचाव की दृष्टि से बड़ी मदद मिल जाया करती थी | 

      वर्तमान समय में भी प्रकृति वही है परंपराएँ वही हैं प्राकृतिक घटनाऍं भी प्राचीनकाल की तरह ही घटित होते देखी जा रही हैं | सर्दी गर्मी वर्षा आदि प्रमुख ऋतुएँ दिन रात सुबह शाम आदि घटनाएँ सूर्य चंद्र ग्रहण ,समुद्र में बनती बिगड़ती लहरें एवं महामारी भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात आदि अन्य सभी घटनाएँ अभी भी पहले जैसी ही घटित होते देखी जा रही हैं | केवल आकाशवाणियों को ही घटित होते क्यों नहीं देखा सुना जा रहा है |

      ऐसी परिस्थिति में आकाशवाणियों की आवश्यकता तो आज भी है वर्तमान समय में  क्या आकाशवाणियाँ होनी बंद हो गई हैं या आकाशवाणियाँ जिस भाषा में होती हैं उसे समझने की क्षमता ही मनुष्यों ने खो दी है | जिस भाषा में आकाशवाणियाँ होती रही होंगी वह भाषा वर्तमान समय प्रचलन में है या नहीं |उनकी कोई भाषा थी भी या नहीं अथवा कोई ऐसे संकेत ही हुआ करते थे जिन उन संकेतों को उस युग के तपस्वी वैज्ञानिक लोग समझकर उनके आधार पर प्रकृति और जीवन के विषय में जो भविष्यवाणी कर दिया करते थे उसे ही उससमय आकाशवाणियों के नाम से जाना जाता था | 

   यदि ऐसा भी था तो वे संकेत क्या थे उन्हें कैसे देखा और समझा जाता था वे संकेत वर्तमान समय में भी दिखाई पड़ते हैं या अब नहीं दिखाई पड़ते हैं | उन्हें समझने के लिए किस विद्या को पढ़ने की आवश्यकता होती है | इस  विषय में गंभार अनुसंधान की आवश्यकता है | जिससे प्राचीन समय की तरह ही वर्तमान समय में भी आकाशवाणियों से प्राप्त सूचनाओं को  समझने में सफलता मिल सके | 

                            प्राकृतिक घटनाओं से भविष्य में संभावित घटनाओं का ज्ञान           

     प्राचीन काल में संभवतः प्राकृतिक घटनाओं के द्वारा दी जाने वाली सूचनाओं को आकाशवाणी कहा जाता रहा होगा | इसमें प्रकृति एवं जीवन से संबंधित सभी प्रकार की घटनाएँ सम्मिलित  होती होंगी | ऐसा माना जाता है कि प्रकृति एवं जीवन से जुड़ी सभी प्रकार की घटनाएँ भविष्य में घटित होने वाली ऐसी सभी घटनाओं की सूचनाएँ हमेंशा देती रहती हैं | इन सूचनाओं के अभिप्राय को समझने वाले वैज्ञानिक लोग उन्हीं संकेतों के आधार पर प्रकृति एवं जीवन से जुड़ी संभावित भावी घटनाओं के  विषय में पूर्वानुमान लिया करते रहे हैं | प्राचीनकाल में  ऐसे प्रकृति साधकों की अधिकता थी इसलिए सभीप्रकार की प्राकृतिक आपदाओं के विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगा लिया जाता था | ऐसी आपदाओं से बचाव के लिए आगे से आगे उपाय खोज लिए जाते थे | पहले से पता  हो जाने के कारण कुछ में बचाव संभव हो पाता था जबकि कुछ में सहने के लिए तैयार हो  जाया जाता था |
     सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ भी प्राकृतिक घटनाएँ ही तो हैं जब जिस प्रकार की ऋतु आती है तब प्रकृति वैसा व्यवहार करने लगती है | शिशिर ऋतु में जो प्रकृति बर्फ बरस  रही होती है ठंडी ठंडी हवाएँ चल रही होती हैं भीषण ठंड से लोग काँप रहे होते हैं | बिना किसी मनुष्यकृत प्रयास के बाद भी वही प्राकृतिक वातावरण आग उगलने लगता है तापमान बढ़ चुका होता है चारों ओर गरम गरम हवाएँ चल रही होती हैं आदि | ऐसे ही गर्मी की ऋतु में नदी तालाब कुएँ आदि प्रायः सूखने लग जाते हैं उसी के कुछ समय बाद इतनी अधिक वर्षा हो जाती है कि वे सब भर जाते हैं |इसमें भी मनुष्यकृत प्रयासों की कोई भूमिका ही नहीं होती है |कुल मिलाकर संपूर्ण प्रकृति ही समय का अनुगमन कर रही है जब जैसा समय चलता है तब तैसा प्राकृतिक वातावरण बनता बिगड़ता रहता है |
सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं का समय क्रम अवधि आदि सब कुछ सुनिश्चित होता है जो हमेंशा एक जैसा ही रहता है | इसलिए इसके विषय में अनुमान लगाना आसान होता है किस ऋतु के बाद कौन सी ऋतु आएगी उस समय प्राकृतिक वातावरण किस प्रकार का होगा यह प्रायः सभी को पता होता है |

    प्रकृति के इसी सुनिश्चित सामान्य वातावरण के आधार पर संपूर्ण प्रकृति एवं जीवन का संतुलन बना हुआ अनादि काल से ऐसा ही होता चला आ रहा है | सर्दी गर्मी और वर्षा जिसे आयुर्वेद की भाषा में कफ पित्त और वात कहा जा सकता है | इनका आपसी अनुपात जब तक संतुलित बना रहता है तब तक संपूर्ण प्रकृति एवं जीवन स्वस्थ सुखी सुरक्षित बना रहता है |    

    इसके अतिरिक्त सर्दी में सर्दी बहुत अधिक या बहुत कम होती है ऐसे ही गर्मी वर्षा आदि का जब संतुलन बिगड़ता है अर्थात ऋतुओं का प्रभाव जब कम या अधिक होता है अथवा कम या अधिकदिनों तक चलता है उस समय प्रकृति और प्राणी रोगी होने लग जाते हैं | प्रकृति के रोगी होने का मतलब वृक्ष बनस्पतियाँ पेड़ पढ़े आनाज शाक सब्जी आदि रोग कारक होने लगते हैं | जल और वायु प्रदूषित होते देखे जाते हैं | प्राकृतिक दुर्घटनाएँ घटित होने लगती हैं | 

   इसी प्रकार से प्राणियों के रोगी होने का मतलब प्राकृतिक रोग फैलने लगते हैं | समाज में अनेकों प्रकार की मनुष्यकृत दुर्घटनाएँ उन्माद वैमनस्य बीमारियाँ आदि घटित होने लगती हैं तथा प्राणियों के स्वभाव में बदलाव आने लगता है | 

    इस प्रकार का बैषम्य बढ़ते हुए संतुलन जब बहुत अधिक बिगड़ जाता है उस समय हिंसक भूकंप आँधी तूफ़ान अतिवृष्टि अनावृष्टि बज्रपात जैसी बड़ी प्राकृतिक दुर्घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं | प्राणियों में बड़े बड़े रोग या महारोग आदि फैलने लगते हैं |

     आकाशवाणियों की भाषा समझने के लिए प्रकृतिकृत ऐसे संकेतों का निरंतर सूक्ष्म अध्ययन होते रहना चाहिए उसके आधार पर वह सब कुछ आगे से आगे पता लगता जाता है कि भविष्य में प्रकृति में क्या घटित होने वाला है और भविष्य में प्राणियों को किस प्रकार की परिस्थिति का सामना करना पड़ेगा | 

    प्रकृति एवं जीवन से संबंधित सभीप्रकार की घटनाओं के घटित होने का कोई न कोई निर्धारित निश्चित समय होता है | ये निश्चय दो प्रकार का होता है एक तो वह जो प्रतिवर्ष प्रतिमास प्रतिपक्ष प्रतिदिन एक जैसा ही घटित होता रहता है उनका क्रम समय आदि सबकुछ निश्चित रहता है |इसमें  सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं का समय क्रम अवधि आदि सब कुछ सुनिश्चित होता है|किस ऋतु के बाद कौन सी ऋतु आएगी उस समय प्राकृतिक वातावरण किस प्रकार का होगा यह प्रायः सभी को पता होता है |यह हमेंशा एक जैसा ही रहता है | इसलिए इसके विषय में अनुमान लगाना आसान होता है | 

     सूर्य और चंद्र ग्रहण हमेंशा बदलते रहते हैं इनका समय आकार  प्रकार अवधि आदि एक जैसी कभी नहीं होती है इसके बाद भी इनके विषय में सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है जो बिल्कुल सही सही घटित होते देखा जाता है | इससे इस बात का निश्चय होना स्वाभाविक ही है कि ऐसी घटनाएँ जो अचानक घटित होते देखी जाती हैं वे अचानक घटित न होकर अपितु अनादि काल से सुनिश्चित होती हैं |  किस ग्रहण को कब कितना घटित होना है किस ग्रहण का आकार प्रकार आदि क्या होगा | इनका समय निश्चित होता है | 

   इसी प्रकार से महामारी भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात एवं तापमान का बढ़ना कम होना आदि घटनाएँ घटित होते समय अचानक  घटित हुई सी लगती हैं किंतु वास्तविकता में ऐसा होता नहीं है | वस्तुतः ग्रहणों की तरह ही ऐसी घटनाएँ भी पूर्वनिर्धारित ही होती हैं उनका समय भी निश्चित होता है | 

    प्राचीन काल में ऋषियों ने ऐसी सभी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने का विज्ञान विकसित कर लिया था उसी के आधार पर ऐसी घटनाओं के विषय में उसी युग में सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लिया जाता रहा है |

   इसी प्रकार से कालक्रम बीतता चला गया घटनाएँ घटित होती रहीं उनके विषय में पूर्वानुमान भी आगे से आगे लगा लिया जाता रहा है जो सही भी निकलता रहा है | ये सब कुछ गणित के द्वारा ही संभव हो पाता रहा है | समय के साथ साथ परिस्थितियाँ बदलती चली गईं | दुर्भाग्यवश देश परतंत्र हो गया उसमें आक्रांताओं ने हमारे पूर्वजों के द्वारा अनंत काल से किए अनुसंधान या तो उठा ले गए या फिर नष्ट कर दिए |  पुस्तकालयों में आग लगा दी | इनसे जो नष्ट हो गए वे तो वहीं समाप्त होगए और जो वे अपने यहाँ ले गए वे इसलिए नष्ट हो गए कि वहाँ इस विद्या को जानने वाले विद्वान नहीं थे |इसलिए उनके यहाँ ले जाए गए हमारे पूर्वजों के अनुसंधानों का उपयोग नहीं हो सका | इसलिए वे वहाँ नष्ट हो गए | 

    उन आक्रांताओं के द्वारा नष्ट किए जाने पर भी हमारे पूर्वजों ने अपने जीवन को संकट में डालकर जितना संभव हुआ वो जहाँ तहाँ छिपा लिया था उसके आधार पर व्यक्तिगत रूप से वे ऐसी गणनाएँ करते रहे किंतु प्रत्यक्ष रूप से उन्हें प्रोत्साहन नहीं मिल सका और वे ऐसे अनुसंधान करने के लिए स्वतंत्र भी नहीं थे | ऐसी अवस्था में सदियों तक परतंत्र रहने के कारण ऐसी विद्याएँ विलुप्त होती चली गईं | ग्रहण गणना जैसी जो विद्याएँ सुरक्षित रखी जा सकीं वे अभी भी सही एवं  सटीक घटित होते देखी जाती हैं | 

     महामारी के समय बेबश लाचार वैश्विक समाज को देखकर कई बार ऐसा लगता है कि आक्रांताओं ने हमारे पूर्वजों के द्वारा किए गए अनुसंधानों को यदि इतनी निर्ममता पूर्वक नष्ट न किया होता तो संभव है कि कोरोना महामारी के समाने वर्तमान वैज्ञानिक विश्व को इतना बेबश लाचार निरीह न होता | पूर्वजों के द्वारा किए गए उन अनुसंधानों के द्वारा वर्तमान विश्व को कोरोना महामारी जनित संकट से बचाकर  महामारी मुक्त समाज के निर्माण का सपना देखा जा सकता था | इससे  महामारी से निराश हताश उन आक्रांताओं की संतानें  भी लाभान्वित हो सकती थीं जिनके पूर्वजों के द्वारा भारत की उस तपोसंपदा को नष्ट करने का  कुत्सित  प्रयास किया था |

   पूर्वजों की गणितीय अनुसंधान पद्धति से प्राप्त अभीतक के अनुभवों के आधार पर अब मैं विश्वासपूर्वक कह सकता हूँ कि पूर्वजों से प्राप्तगणितीय अनुसंधान पद्धति के आधार पर भविष्य में महामारी मुक्त समाज की संरचना का स्वप्न साकार  हो सकता है | 

   इसकी प्रमाणिकता से प्रभावित होकर मैंने महामारी समेत समस्त प्राकृतिक घटनाओं को अपने अनुसंधान का विषय बनाया है उसके आधार पर मैं बीते तैंतीस वर्षों से ऐसी अधिकाँश घटनाओं के विषय में अनुसंधान कार्य करता चला आ रहा हूँ जो प्रायः सही घटित होते देखे जा रहे हैं | 

                             महामारी मुक्त समाज की संरचना का संकल्प !

    महामारी के महान संकट से सारा विश्व जूझ रहा है चारों ओर त्राहि त्राहि मची हुई है | इस सबके बाद भी हमें यह याद रखना चाहिए कि महामारी संक्रमितों की संख्या उनकी अपेक्षा बहुत कम है जो संक्रमित नहीं हुए हैं और मृतकों की संख्या संक्रमितों की संख्या की अपेक्षा बहुत कम है | 
   ऐसी परिस्थिति में महामारी का प्रभाव सभी प्राणियों पर एक जैसा पड़ा किंतु उसका परिणाम एक जैसा नहीं दिखाई दिया अर्थात उनमें से कुछ संक्रमित हुए कुछ नहीं  हुए और कुछ नहीं हुए | जो लोग महामारी से संक्रमित हुए भी थे उनमें से अधिक संख्या में लोग स्वस्थ हो गए जबकि उन्हीं संक्रमितों में से कुछ लोगों की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु भी गई है |
   जिस प्रकार से शिशिरऋतु में सर्दी ,ग्रीष्मऋतु में गर्मी एवं वर्षाऋतु में अधिक वर्षा होने के कारणों को चिन्हित कर लिया गया है | सूर्य चंद्र ग्रहण क्यों कब और किन परिस्थितियों में घटित होते हैं वे कारण खोज लिए गए हैं | समुद्र में कुछ विशेष दिनों में ऊँची ऊँची लहरें उठने का कारण भी खोज लिया गया है | ऐसे ही अन्य घटनाओं के घटित होने से संबंधित कारणों को भी खोज लेने के प्रयास किए गए हैं |  
    इसी प्रकार से कोरोना महामारी से संबंधित कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनके विषय में अनुसंधान किया जाना आवश्यक है | 
  1. महामारी वर्षों में अन्य वर्षों से अलग ऐसा क्या विशेष प्राकृतिक कारण घटित होता है जिसकी वजह से महामारियाँ जन्म लिया करती हैं | किसी भी महामारी के समय में आने जाने वाली लहरों के कारण क्या होते हैं ?
   2.महामारियाँ प्रारंभ और समाप्त होने के कारण एवं महामारियों के समय अलग अलग लहरें आने और जाने के कारण प्राकृतिक होते हैं या मनुष्यकृत ?
  3.कोरोना महामारी का प्रसार कितना है, विस्तार कितना है, प्रसार माध्यम क्या है,अंतर्गम्यता कितनी है महामारी पर मौसम तापमान एवं वायु प्रदूषण का प्रभाव किस प्रकार का होता है ?
   4.महामारी से कुछ लोगों के संक्रमित होने और कुछ के न होने के अलग अलग कारण क्या हैं ?
   5 .महामारी संक्रमितों में से बहुतों के  स्वस्थ हो जाने एवं कुछ की मृत्यु हो जाने के अलग अलग कारण क्या हैं ?

    ऐसी परिस्थिति में संक्रमित न होने वाले प्राणियों के शरीरों में ऐसी कौन सी विशेषता थी जो संक्रमित होने वाले लोगों के शरीरों में नहीं थी | जिसके कारण बाक़ी लोग संक्रमित होने से बचे एवं कुछ लोग संक्रमित होते देखे गए  | दोनों के विषय में अलग अलग अनुसंधान की आवश्यकता है | 
    जो लोग जिन कारणों से संक्रमित नहीं हुए या फिर संक्रमित होने के बाद भी स्वस्थ हो गए हैं उनके शरीरों की  उन विशेषताओं को खोजा जाना चाहिए जिनसे उनका बचाव होता रहा है उनमें वे विशेषताएँ प्राकृतिक हैं या मनुष्यकृत ! वे ऐसी क्या विशेषताएँ हैं जिनके द्वारा उनका महामारी से बचाव होना संभव हो पाया है | 
    महामारी के समय संक्रमित होने से जो नहीं बच पाए या जो संक्रमित होकर मृत्यु को प्राप्त हो गए | इसके कारण उनके शरीरों में प्राकृतिक थे अथवा मनुष्यकृत ! प्राकृतिक थे तो क्या थे ?और यदि उनके स्वयं के द्वारा अपनाए गए आहार व्यवहार रहन सहन आदि से संबंधित थे तो वे क्या थे जिन्हें अपनाकर वे लोग महामारी काल में भी संक्रमित होने से बचे रहे | जो लोग संक्रमित नहीं हुए उनके द्वारा जो रहन सहन खान पान आदि सावधानियाँ बरती गई थीं उन्हें अपनाकर के वे लोग भी संक्रमित होने से बचे रह सकते थे जो संक्रमित हुए तथा जिन संक्रमितों की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु हुई है ऐसे उपायों को अपनाकर क्या उन्हें भी स्वस्थ किया जा सकता था अथवा जीवित बचाया जा सकता था | महामारी के विषय में अनुसंधान करने के लिए ऐसे सभीप्रकार के प्रश्नों के उत्तर खोजे जाने आवश्यक हैं |   
                         महामारी मुक्ति अभियान में कुछ समस्याएँ और उनके समाधान !
    ऐसी परिस्थिति में महामारी के समय में खान पान रहन सहन आदि स्वास्थ्य य संबंधी जिन जिन सावधानियों को बरतते हुए इतनी बड़ी संख्या में लोग स्वस्थ बने रहे उन्हीं तैयारियों के बलपर सावधानीपूर्वक संक्रमित हुए लोगों को भी संक्रमित होने से बचाया जा सकता था | इस प्रकार से महामारी मुक्त समाज की संरचना संभव थी | 
   संक्रमित होने से बचे रहे लोगों में यदि अधिक संख्या उसवर्ग की होती जो साधन संपन्न एवं आर्थिक रूप से सक्षम था उसे आवश्यकता पड़ने पर अच्छी से अच्छी सुविधाएँ मिल सकती थीं | 
   ऐसी परिस्थिति में सभी लोगों के पास तो इतना धन नहीं था जिसके बलपर उन सभी को सुरक्षित बचा लिया जाता !सरकार यदि इतना सहयोग करती भी तो किस किस को कितना धन दे देती | इसलिए वह कठिन होता | 
   महामारी काल में भी महामारी संक्रमण से मुक्त रहे लोगों में यदि अधिक संख्या उन लोगों की होती जिन्होंने बचपन से स्वास्थ्य सुरक्षा पर ध्यान देते हुए सभी टीके समय पर लगवाए होते ! समय समय पर जाँच होती रही होती उसी हिसाब से कैल्शियम बिटामिन आदि का सेवन किया होता | 
    यह इसलिए विशेष चिंता की बात होती क्योंकि बचपन से ही इतनी सावधानी जिनके साथ बरती गई होती उनकी संख्या बहुत अधिक नहीं होती तब तो उतने लोग ही बच पाते जिन्होंने बचपन से इस प्रकार की सतर्कता बरती होती | यह संख्या तो बहुत कम लोगों की होती | उतने से संपूर्ण समाज का बचाव कैसे संभव हो पाता | 
    इसी प्रकार से यदि चिकित्सा से बचाव होना संभव होता तब तो जो जितनी अच्छी चिकित्सा सुविधाएँ जुटा पाता उसी के अनुशार उन्हीं संक्रमितों का वैसा ही बचाव हो पाता | ऐसे चिकित्सा संपन्न लोगों की संख्या तो बहुत कम होती वैसे भी चिकित्सकीय संसाधन इतनी अधिक मात्रा में कैसे संभव हो पाते | इसलिए इस विधा से भी बहुत कम लोगों का ही बचाव संभव था |
    ऐसे ही जिन्होंने बचपन से दूध दही घी मक्खन मेवा फल फलों का जूस आदि स्वास्थ्य बर्द्धक पौष्टिक पदार्थों एवं टीके टॉनिक बिटामिन कैल्शियम आयरन आदि शक्तिबर्द्धक पदार्थों का सेवन किया होगा यदि उन्हीं का बचाव संभव होता | ऐसे भी कम लोगों का ही बचाव हो पाता | सभी लोग तो इसप्रकार की व्यवस्था से संपन्न नहीं थे |
   कोविड नियमों का अच्छी प्रकार से पालन करने वाले लोग ही यदि महामारी संक्रमण से मुक्त रह पाए होते या फिर ऐसे लोग ही स्वस्थ बच पाए होते तो भी बहुत कम लोगों का ही बचाव संभव हो पाता |सभी लोगों के लिए कोविड  नियमों का संपूर्ण रूप से पालन संभव नहीं था | धनहीन गरीब ग्रामीण आदिवासी महानगरों में झुग्गियों में रहने वाले लोग,मलिन एवं संकीर्ण बस्तियों में रहने वाले लोग छोटे छोटे मकानों में अधिक संख्या में रहने वाले लोग,फैक्ट्रियों आदि कार्यस्थलों में सामूहिक रूप से अधिक संख्या में रहने वाले लोग सामूहिक शौचालयों का उपयोग करने वाले लोगों एवं जहाँ तहाँ रहने खाने पीने सो जाने वाले बड बड़े मजदूर रिक्साचालक या अन्य प्रकार के परिश्रमी लोगों का बचाव कैसे हो पाता | 
     सामान्य या गरीब वर्ग के लोगों को महामारी काल में परिस्थितिबशात या किसी मजबूरी में संक्रमितों के साथ रहना खाना पीना सोना जागना आदि पड़ा | इसके बाद भी उनके संक्रमित न होने का कारण खोजा जाना आवश्यक है ?जिन नगरों या महानगरों में महामारी रौद्ररूप दिखाती जा रही थी उन्हीं बस्तियों में रिक्सा चालक ,फल एवं सब्जी विक्रेता ,दूध वाले तथा सब्जी आदि बेचने वाले उन्हीं रोडों पर खुले घूमते रहे और स्वस्थ बने रहे |कहीं गैरिज आदि में सोते जागते कुछ भी खाते पीते समय व्यतीत करते रहे | ऐसे ही संक्रमित परिवारों में भी झाड़ू पोछा आदि करने वाली सेविकाएँ एवं संपन्न संक्रमित घरों में बाजार से खरीद कर आवश्यक सामग्री पहुँचाने वाले सेवक ड्राइवर आदि उनके संपर्क में रहकर भी संक्रमित नहीं हुए | यदि कोई हुआ भी तो सामान्य औषधि प्रयोग से स्वस्थ होते देखा जाता रहा | चिकित्सालयों तक पहुँचने या जीवनांतक परिस्थितियों से जूझने की नौबत बहुत कम लोगों की ही आई है | इससे इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि यदि कोविड संबंधी सावधानियाँ बरते बिना भी महामारी के प्रकोप से बचना संभव हो सकता है |  

     गरीब परिवारों के बच्चे परिस्थितिवश या किसी मजबूरी में अथवा लापरवाही से ही सही उन कोविड नियमों का पालन बिल्कुल नहीं करते रहे चिकित्सा वैज्ञानिकों के द्वारा जिनका उपदेश स्वस्थ रहने के लिए किया गया था | ऐसे परिवारों के छोटे छोटे सुकोमल बच्चे जिनके शरीरों में वे अधिकाँश टीके नहीं लगाए जा सके थे जिन्हें प्रत्येक बच्चे को स्वस्थ रखने के लिए चिकित्सक आवश्यक बताया करते हैं | ऐसे बच्चों को उस प्रकार का स्वास्थ्यकर पौष्टिक खान पान नहीं मिला एवं  उसप्रकार की चिकित्सकीय देखरेख नहीं मिल पाई  थी ! ऐसे गरीब घरों के बच्चे महामारी आने पर खाद्य सामग्री संकलित करते घूमते रहे | सबसे मिलते जुलते रहे सबका लिया दिया खाते पीते रहे | ऐसे बच्चे भी महामारी काल में प्रायः स्वस्थ बने रहे | यह महामारी मुक्त समाज की संस्थापना की दृष्टि से आशा की बड़ी किरण है |

          महामारी को समझना और उसकी रोक थाम के लिए कुछ कर पाना यदि चिकित्सावैज्ञानिकों के बश की बात होती तो चिकित्सकीय संसाधनों से संपन्न अमेरिका जैसे देशों में और भारत के दिल्ली मुंबई जैसे सक्षम महानगरों में चिकित्सावैज्ञानिकों की योग्यता अनुसंधान जनित अनुभवों एवं चिकित्सकीय क्षमता का प्रभाव कुछ तो दिखाई पड़ता | कम से कम महामारी इस प्रकार से तो नहीं ही रौंद पाती , जबकि महामारी काल में ऐसे देशों महानगरों की स्थिति बार बार सबको चिंता में डालती रही है | इससे यह विश्वास करना होता है कि महामारी मुक्तसमाज की संरचना में चिकित्सावैज्ञानिकों की विशेष आवश्यकता नहीं है | यदि महामारी मुक्त रहना चिकित्सकों के सहयोग से संभव हुआ होता तो महामारी मुक्तसमाज की संरचना हेतु बड़ी संख्या में चिकित्सावैज्ञानिकों की आवश्यकता पड़ती जिसके लिए अधिक संसाधनों और उसके लिए अधिक धन की आवश्यकता पड़ती किंतु इसमें चिकित्सावैज्ञानिकों की कोई विशेष भूमिका न रहने से यह आशा जगना स्वाभाविक ही है कि चिकित्सावैज्ञानिकों की मदद के बिना भी महामारी काल में स्वस्थ बने रहना संभव है |

                                                    महामारी और उपाय 

   प्राकृतिक कारणों से प्रारंभ हुई घटनाएँ प्राकृतिक प्रकार से ही शांत होती हैं उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि भी प्राकृतिक नियमों के आधार पर ही लगाए जा सकते हैं |अपने मन को संतोष देने के लिए ऐसी घटनाओं को  शांत करने वाले कुछ उपाय किए भले ही जाएँ किंतु उनसे कुछ ऐसे परिणाम निकलना संभव नहीं हो पाता है जिनकी कुछ प्रमाणिकता सिद्ध हो सके |
   मनुष्यकृत कारणों से प्रारंभ हुई घटनाएँ मानवीय प्रयासों से शांत हो जाती हैं उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि भी मानवीय आधार पर लगाऐसी घटनाओं को  शांत करने वाले उपाय भी प्रमाणिकता पूर्वक सफल होते देखे जाते हैं |
   ऐसी परिस्थिति में कोरोना माहामारी से संबंधित अनुसंधान प्रारंभ करने से पहले यह पता लगाना आवश्यक है कि यह महामारी प्राकृतिक है या मनुष्यकृत !इससे  संबंधित अनुसंधानों के लिए किस वैज्ञानिक विधा का आश्रय लेकर आगे बढ़ा जाए | 
   ऐसा बिचार करके अत्यंत अनुसंधान पूर्वक ही मैंने कोरोना महामारी को प्राकृतिक कारणों से पैदा हुआ महारोग माना है इसीलिए प्राकृतिक प्रकार से ही इनके विषय में अनुसंधान प्रारंभ किए हैं | वेदविज्ञान की गणितीय विधा के द्वारा कोरोना महामारी के विषय में अनुसंधान पूर्वक जो अनुमान या पूर्वानुमान आदि लगाए हैं वे लगभग पूरी तरह सही घटित घटित होते रहे हैं | 

                                 महामारी आगमन की आहट पहले ही लग गई थी !

     मैं पिछले लगभग तैंतीस वर्षों से ऐसे प्राकृतिक बिषयों पर अनुसंधान करता आ रहा हूँ जिसमें भूकंप आँधी तूफ़ान सूखा वर्षा बाढ़ वायु प्रदूषण एवं तापमान का घटता बढ़ता स्तर प्राकृतिक स्वास्थ्य समस्याएँ  मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं एवं महामारियों के बिषय में अनुसंधान करता आ रहा हूँ | प्राकृतिक परिवर्तनों के कारण पैदा होने वाली सामाजिक राजनैतिक वैश्विक आदि समस्याओं के पैदा होने एवं उनका समाधान निकलने के बिषय में भी पूर्वानुमान लगाता आ रहा हूँ | उसी क्रम में सन 2010 के बाद सुदूर आकाश से समुद्र समेत समस्तप्रकृति में कुछ इस प्रकार के परिवर्तन दिखाई देने लगे थे जो निकट भविष्य में किसी बड़ी महामारी या अन्य प्रकार की प्राकृतिक आपदा या युद्ध आदि के द्वारा बड़ी संख्या में लोगों के मारे जाने की ओर संकेत देने लगे थे | सन 2013 के बाद प्राकृतिक वातावरण पूरी तरह बदला बदला दिखाई देने लगा था आकाशीय परिस्थितियाँ सूर्य चंद्रादि ग्रहों के विंबीय आकार प्रकार वर्ण आदि परिस्थितियाँ क्रमशः बदलती जा रही थीं वायुसंचार में बदलाव वृक्ष बनस्पतियों में परिवर्तन होने लगे थे | समय जैसे जैसे बीतते जा रहा था वैसे वैसे जल वायु अन्न आदि समस्त खाद्य वस्तुएँ अपने अपने गुण स्वाद आदि से विहीन होती  जा रहीं थीं | औषधीय बनस्पतियाँ जिन गुणों के लिए जानी जाती थीं उनमें उसप्रकार के गुणों का ह्रास होता चला जा रहा था | 

   वायुतत्व दिनोंदिन अधिक चंचल एवं प्रदूषित होता जा रहा था| वायुमंडल में प्रदूषण ,बज्रपात की हिंसक घटनाएँ बार बार घटित होती देखी जा रही थीं | इसीलिए 2018 के अप्रैल मई में आँधी तूफानों की घटनाएँ बारबार घटित होने लगी थीं | चक्रवात जैसी हिंसक घटनाएँ घटित होते अक्सर देखी जाने लगी थीं | 

    पृथ्वीतत्व के स्थिरता संबंधी स्वाभाविक गुण विकृत होने लगे थे | धरती बार बार काँपने लगी थी भूकंपों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी |सुनामीजैसी घटनाओं के डरावने दृश्य दिखाई पड़ने लगे थे | महामारी काल में केवल भारत में ही एक हजार बार से अधिक भूकंप घटित हुए थे |

प्रकुपित अग्नितत्व  हिंसक स्वरूप  धारण करता जा रहा था | कहीं भी कभी भी आग लगने की घटनाएँ घटित होती देखी जा रही थीं इसीलिए तो 2016 अप्रैल में बिहार सरकार ने दिन में हवन करने एवं चूल्हा जलाने आदि पर रोक लगा दी गई थी | 

    जलतत्व में दिनोंदिन विकृति आती  देखी जा रही थी कहीं भीषण बाढ़ तो कहीं  सूखा था | जमीन के अंदर का जलस्तर  दिनों दिन कम होता जा रहा था |जल की गुणवत्ता में कमी होती जा रही थी !बादलों के फटने की घटनाएँ  देखी जाने लगी थीं | 

     आकाश अक्सर धूम्रवर्ण या लाल पीला होता दिख रहा था !नीला एवं स्वच्छ आकाश तो वर्ष के कुछ महीनों में ही दिखाई देने लगा था | इसके अतिरिक्त आकाश में और भी प्रतिसूर्य गंधर्वनगर जैसी घटनाएँ दिखने लगीं थीं | 

    इस प्रकार से पंचतत्वों में बढ़ते विकार बनस्पतियों एवं खाद्यपदार्थों के स्वाद एवं गुणवत्ता में आती कमी मनुष्य समेत सभी जीव जंतुओं के स्वभाव में बढ़ते अस्वाभाविक बदलाव  किसी बड़ी विपदा की ओर संकेत करने लगे थे | ऐसी  घटनाओं का जब गणितीय पद्धति से परीक्षण किया गया तो महामारी जैसी किसी बड़ी हिंसक प्राकृतिक घटना का आभास होने लगा था | 

    इसलिए इसीप्राचीन अनुसंधान के आधार पर सन 2017 से ही वर्तमान महामारी के बिषय में मुझे संभावना दिखने लगी थी इस बिषय में मैंने संबंधित मंत्रालयों सरकारी विभागों निजीसंस्थाओं एवं विविध मीडिया माध्यमों से अपनी बात सरकार तक पहुँचाने का प्रयत्न करता रहा हूँ | इसी संदर्भ में सामाजिक स्वयं सेवी संगठनों एवं निजी संगठनों के बड़े बड़े नेताओं से संपर्क करके भारत सरकार तक अपनी बात पहुँचाने का प्रयास करता रहा कई पत्र रजिस्टर्ड डॉक से भी भेजे हैं | पीएमओ की मेल पर भेजकर प्रधानमंत्री जी से मैंने मिलने के लिए समय माँगा किंतु मुझे अपनी बात भारत के प्रधानमंत्री जी तक पहुँचाने का अवसर नहीं मिल सका ऐसे प्रयासों में भटकते भटकते काफी लंबा समय बीत गया तब तक सन 2020 प्रारंभ हो चुका था महामारी प्रारंभ हो चुकी थी उसकी चर्चा सभी जगह सुनाई देने लगी थी महामारी को लेकर तरह तरह की आशंकाएँ व्यक्त की जा रही थीं महामारी के बिषय में लोग तरह तरह की अफवाहें फैलाए जा रहे थे | मीडिया माध्यमों से भारत सरकार भी चिंतित दिखाई दे रही थी किंतु चाहकर भी मैं अपनी बात भारत के प्रधानमंत्री जी तक नहीं पहुँचा सका इसलिए अब निराश हताश होकर शांत बैठ गया था | इसी बीच अचानक एक बात मन में आई कि  बिषय में मैं अपनी बात पीएमओ की मेल पर डाल दूँगा तो भविष्य के लिए यह प्रमाण सुरक्षित बना रहेगा | इसलिए मैंने पीएमओ की मेल पर सबसे पहला पर 19 मार्च 2020 को भेजा था जिसमें महामारी के बिषय में हमारे द्वारा कुछ आवश्यक बातें लिखी गई थीं | 

      महामारी के जन्म स्वभाव प्रभाव विस्तार प्रसारमाध्यम अंतर्गम्यता आदि को ठीक ठीक जाने बिना महामारी से राहत दिलाने वाली प्रभावी तैयारियाँ करना संभव न था और न ही महामारी से मुक्ति दिलाने योग्य औषधि वैक्सीन आदि का निर्माण ही किया जा सकता था | इसीलिए महामारी से संबंधित कुछ और जरूरी जानकारियाँ 19मार्च 2020 को मेल भेजकर मैंने पीएमओ को दी थी !ये हैं वे महत्वपूर्ण जानकारियाँ जिन्हें वैज्ञानिकों ने बहुत बाद  में स्वीकार किया था !उसी मेल के संबंधित अंश मैं यहाँ उद्धृत कर रहा हूँ -
1.  कोरोना प्राकृतिक है -" किसी महामारी पर नियंत्रण न हो पाने का कारण यह है कि  कोई भी महामारी तीन चरणों में फैलती है और तीन चरणों में ही समाप्त होती है | महामारी फैलते समय सबसे बड़ी भूमिका समय की होती है | सबसे पहले समय की गति बिगड़ती  है  ऋतुएँ समय के आधीन हैं इसलिए अच्छे या बुरे समय का प्रभाव सबसे पहले ऋतुओं पर पड़ता है ऋतुओं का प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है | "
2.    कोरोनाहवा में विद्यमान है -"पर्यावरण बिगड़ने का प्रभाव वृक्षों बनस्पतियों फूलों फलों फसलों आदि समस्त खाने पीने की वस्तुओं पर पड़ता है वायु और जल पर भी पड़ता है इससे वहाँ के कुओं नदियों तालाबों  आदि का जल प्रदूषित हो जाता है | इन परिस्थितियों का प्रभाव जीवन पर पड़ता है इसलिए शरीर ऐसे रोगों से पीड़ित होने लगते हैं जिनमें चिकित्सा का प्रभाव बहुत कम पड़ पाता है यहीं से महामारी फैलने लगती है |"
 3.  महामारी में होने वाले रोग को न तो पहचाना जा सकता है और न ही इसकी औषधि बनाई जा सकती है -"इसमें चिकित्सकीय प्रयासों का बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा | क्योंकि महामारियों में होने वाले रोगों का न कोई लक्षण होता है न निदान और न ही कोई औषधि होती है |"
 4. महामारी में होने वाले रोगके वेग को प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा कर घटाया जा सकता है -"ऐसी महामारियों को सदाचरण स्वच्छता उचित आहार विहार आदि धर्म कर्म ,ईश्वर आराधन एवं ब्रह्मचर्य आदि के अनुपालन से जीता जा सकता है |"
5.  प्रकृति के द्वारा इस समय दवाओं की शक्ति समाप्त कर दी गई है इसलिए महामारी में होने वाले रोगों में प्रयोग की गई औषधियाँ निष्प्रभावी रहेंगी -"विशेष बात यह है जो औषधियाँ बनस्पतियाँ आदि ऐसे रोगों में लाभ पहुँचाने के लिए जानी जाती रही हैं बुरे समय का प्रभाव उन पर भी पड़ने से वे उतने समय के लिए निर्वीर्य अर्थात गुण रहित हो जाती हैं जिससे उनमें रोगनिवारण की क्षमता नष्ट हो जाती है | "
   1. कोरोना प्रथम चरण के बिषय में 19 मार्च 2020 को मेल भेजकर मैंने पीएमओ को सूचित किया था यह है उस मेल का इस बिषय से संबंधित अंश :-
       "24 मार्च 2020 के बाद इस महामारी का समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा जो क्रमशः 6 मई तक चलेगा | |उसके बाद के समय में पूरी तरह सुधार हो जाने के कारण संपूर्ण विश्व अतिशीघ्र इस महामारी से मुक्ति पा सकेगा |"
     इसी समय से महामारी समाप्त होने भी लगी थी महामारी का वेग क्रमशः कम होता चला जा रहा था यह देखकर विश्व के कुछ देशों के वैज्ञानिक तो यहाँ तक सोचने लगे थे कि अब वैक्सीन नहीं बन पाएगी क्योंकि ट्रायल के लिए संक्रमित रोगी ही नहीं मिलेंगे तो वैक्सीन कैसे बन पाएगी | कुलमिलाकर समूचे विश्व में संक्रमण की गति धीमी पड़  चुकी थी भारत में भी लोग दिनोंदिन लापरवाह होते चले जा रहे थे | उन्हें नहीं पता था कि 9 अगस्त 2020 से कोरोना संक्रमण दोबारा बढ़ने लगेगा | तब हमने पीएमओ को दूसरा मेल 16 जून  2020 को भेजा था | 
 
   2. दूसरे चरण के बिषय में 16 जून  2020 को मेल भेजकर मैंने पीएमओ को सूचित किया था यह है उस मेल का इस बिषय से संबंधित अंश :-

        "यह महामारी 9 अगस्त 2020 से दोबारा प्रारंभ होनी शुरू हो जाएगी जो 24 सितंबर 2020 तक रहेगी !उसके बाद यह संक्रमण स्थायी रूप से समाप्त होने लगेगा और  16 नवंबर 2020 के बाद यह स्थायी रूप से समाप्त हो जाएगा !"  

     यह पूर्वानुमान पूरी तरह से सही हुआ था  9 अगस्त से संक्रमितों की संख्या बढ़ने लगी थी सरकारी गणना के  अनुशार 17 सितंबर को सबसे अधिक संक्रमितों की संख्या आयी थी उसके बाद क्रमशः कम होते चले जा रहे थे !    समय विज्ञान की दृष्टि से  प्राकृतिक कोरोना महामारी यहाँ से संपूर्ण रूप से समाप्त हो जानी चाहिए थी और  कोरोना अब तक समाप्त हो चुका होता !ऐसा होते प्रत्यक्ष देखा भी जा रहा था !यदि वैक्सीन न लगाई जाती तो मुझे विश्वास है कि कोरोना संक्रमण यहीं से समाप्त हो जाता | इसी बीच भारत सरकार की ओर से वैक्सीन लगाने की तैयारियाँ की जाने लगीं !इस समय वैक्सीन लगाने से संक्रमितों की संख्या बढ़ने की पूरी संभावना थी | 

      भारत सरकार में स्वास्थ्य मंत्री जी एवं नीतिआयोग के डॉ.वी.के.पाल साहब ने  अक्टूबर 2020 में आशंका जताई थी कि सर्दी में कोरोना संक्रमण बढ़ जाएगा | कुछ अन्य लोगों ने कहा था कि सर्दी में वायु प्रदूषण बढ़ने के कारण कोरोना संक्रमण बढ़ जाएगा | इस बिषय में भी मैंने पीएमओ को पत्र भेजकर स्थिति स्पष्ट की थी कि सर्दी के मौसम में तापमान कम होने से कोरोना नहीं बढ़ेगा |   

      हमारे द्वारा पीएमओ को भेजा गया तीसरा मेल -

    3.  इसीलिए  23 दिसंबर 2020 को मेल भेजकर मैंने पीएमओ से वैक्सीन न लगावाने के लिए निवेदन किया था और यदि लगवाना भी हो तो बहुत सोच बिचार कर बहुत सोच बिचार कर लगाने के लिए निवेदन किया था उस मेल का इस बिषय से संबंधित अंश :-

4.  23 दिसंबर 2020 के मेल का अंश :-  "  आपसे मेरा विनम्र निवेदन है कि अच्छी प्रकार परीक्षण करवाकर ही कोरोना वैक्सीन लोगों को लगाने की अनुमति दी जानी चाहिए |वेद वैज्ञानिक दृष्टि में मैं संपूर्ण विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि ब्रिटेन में फैल रहा कोरोना वायरस का नया स्वरूप लोगों को लगाए जा रहे कोरोना वायरस के दुष्प्रभाव हो सकते हैं |"
    "महामारी से संक्रमितों की संख्या बिना किसी दवा या वैक्सीन के स्वयं ही दिनोंदिन तेजी से कम होती जा रही है |केवल श्रेय लेने की होड़ में सम्मिलित लोगों के द्वारा वैक्सीन के रूप में एक नई समस्या को जन्म दिया जा सकता है | ऐसी परिस्थिति में देश और समाज की सुरक्षा के लिए विशेष सतर्कता संयम  एवं सावधानी की आवश्यकता है | वैसे भी यदि कोरोना महामारी भारत वर्ष में लगभग समाप्त हो ही चुकी है तो किसी वैक्सीन के रूप में एक नए प्रकार की समस्या मोल लेने की आवश्यकता ही आखिर क्या है ? "
   "ऐसी परिस्थिति में यदि वैक्सीन नहीं लगाई जाती है तब तो कोरोना अतिशीघ्र समाप्त हो ही जाएगा क्योंकि वातावरण में अब कोरोना वायरस के उत्पन्न होने की प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है और भारत समेत समस्त विश्व को कोरोना के इस नए स्वरूप से अब डरने की आवश्यकता बिलकुल ही नहीं है | यदि वैक्सीन लगाई जाती है तो ब्रिटेन की तरह ही उसके द्वारा फैलने वाले संक्रमण विस्तार का अनुमान मुझे नहीं है |मेरे अनुसंधान के अनुसार कोरोना जैसी महामारी से मुक्ति दिलाने वाली वैक्सीन निर्माण वाले दावे बहुत विश्वसनीय नहीं हैं |"      
      23 दिसंबर 2020 को मेल भेजकर पीएमओ को सूचित करने का मेरा उद्देश्य यही था कि वैक्सीन लगाने का कार्यक्रम या तो रोका जाएगा और या फिर वैक्सीन लगने के बाद संभावित संक्रमण बढ़ने की आशंका को ध्यान में रखते हुए उसे नियंत्रित करने के लिए पहले आवश्यक तैयारियॉँ कर लेने के बाद वैक्सीन लगाई जाएगी किंतु मेरे पूर्वानुमान के अनुशार वैक्सीन लगने के बाद संक्रमण दिनोंदिन अनियंत्रित होता चला गया !
                                                            : विशेष बात : 
     ब्रिटेन में ऐसा हो चुका था वहाँ 8 दिसंबर 2020 को वैक्सीनेशन प्रारंभ किया गया था उसके बाद एक सप्ताह के अंदर संक्रमण बढ़ने लग गया था | यही स्थिति भारत की हुई एक ओर वैक्सीनेशन होता जा रहा था तो दूसरी ओर संक्रमण बढ़ता जा रहा था | जिन जिन प्रदेशों ने वैक्सीनेशन में जितनी अधिक सक्रियता दिखाई उन प्रदेशों में उतनी तेजी से बढ़ता चला  गया | पहली लहर में कोरोना संक्रमण गाँवों तक नहीं पहुँच पाया  था किंतु वैक्सीनेशन की प्रक्रिया जैसे जैसे गाँवों की ओर बढ़ने लगी वैसे वैसे संक्रमण गाँवों में भी पैर पसारता चला जा रहा था |     
   अस्पतालों शमशानों में लाइनें लगने लगीं आक्सीजन कम पड़ गई  सरकारों एवं चिकित्सावैज्ञानिकों के प्रयास निष्फल होते चले जा रहे थे | कुंभ जैसे ऐतिहासिक महामेले का समय से पूर्व विसर्जन करना पड़ा साधू संत अपने अपने आश्रमों के लिए  रवाना होने लगे | 
        महामारी से संक्रमित लोग सरकारों से संपर्क कर रहे थे !महामारी के आगे बेवश सरकारें संसाधन विहीन थीं अस्पतालों में बेड नहीं थे बाजार में आक्सीजन दवाएँ इंजेक्शन आदि कुछ भी नहीं मिल रहे थे समस्त चिकित्सा पद्धतियाँ महामारी के सामने असहाय थीं अस्पतालों की क्या कहें शमशानों में जगह नहीं थी !धनी लोगों का धन पहली बार उनके काम नहीं आ पा रहा था |वह कितना भयावह मंजर था | सेवा भाव में लगे चिकित्सक मित्रों को मैंने रोते देखा है | सरकारों में स्वास्थ्य सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाल रहे कुछ लोगों या उनके प्रतिनिधियों की लाचारी के फोन हमारे पास आ रहे थे | जिसमें कहा जा रहा था कि कई दिनों से रात रात भर हम सो नहीं पा रहे हैं सिफारिस के लिए मेरे पास फ़ोन आ रहे हैं किंतु उनकी मदद कर पाने लायक मेरे पास कुछ भी नहीं है फिर भी फोन तो उठाने ही पड़ते हैं |किसे क्या आश्वासन दूँ समझ में नहीं आ रहा है |मीडियाकर्मी संक्रमित होते जा रहे थे आशंकाओं से ग्रस्त जनता घरों में कैद थी | सभी ओर भय का वातावरण बना हुआ था |
      ऐसे भयावह वातावरण में निराश हताश होकर जनता वैज्ञानिकों के मुख की ओर देख रही थी | विवश वैज्ञानिक कुछ कहने की स्थिति में नहीं वे जहाँ जब जैसा कुछ होते देखते थे वैसा ही आगे होता रहेगा जैसी कुछ बातें बोल दिया करते थे इतने दिन से होते चले आ रहे वैज्ञानिक अनुसंधानों से केवल इतनी ही मदद जनता को मिल पा रही थी | महामारी का नाम कोरोना रख दिया गया था संपूर्ण महामारी काल में वैज्ञानिक अनुसंधानों की यही एक सबसे बड़ी सफलता मानी जा सकती है | कोई यह बताने की स्थिति में नहीं था कि महामारी कितनी और बढ़ेगी कितने दिनों सप्ताहों तक और चलेगी आगे इसका स्वरूप और अधिक विकराल होगा या सामान्य होगा | इस बिषय में कोई प्रामाणिक तौर पर कुछ कहने की स्थिति में नहीं था | 
    ऐसी परिस्थिति में प्राचीन काल में महामारी समेत समस्त प्राकृतिक आपदाओं को रोकने के लिए यज्ञ किए जाते थे उन यज्ञों के माध्यम से मानवता की ओर से दैवी शक्तियों से माफी माँगी जाती थी उससे दैवी शक्तियाँ मानवता को क्षमा कर दिया करती थीं और महामारियों समेत समस्त प्राकृतिक आपदाओं को समेट लिया करती थीं | 
     इसी आशा से 15 से 19 अप्रैल के बीच मीडिया शासन एवं सरकारों से जुड़े हमारे कई भयभीत मित्रों ने हमसे फ़ोन पर संपर्क किया और अत्यंत हैरान परेशान होकर बड़ी आशा से व्यक्तिगत रूप से हमसे ऐसा कुछ उपाय करने को कहा जिससे भारत समेत समस्त विश्व वासियों को महामारी के भय पूर्ण वातावरण से मुक्ति मिल सके |दुखी मैं स्वयं भी था ही ऊपर से उन  मित्रों के दबाव में आकर मुझे उन्हीं परिस्थितियों में एक गुप्तयज्ञ करने का निर्णय लेना पड़ा | 
    हमारे सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी महामारी दैवी शक्तियों से प्रेरित थी इसलिए उसे मनुष्यकृत प्रयासों से रोका जाना संभव न था !इधर कोरोना योद्धाओं के द्वारा महामारी को पराजित करने या महामारी पर विजय प्राप्त करने की बड़ी बड़ी बातें की जा रही थीं किंतु दैवीशक्तियों को पराजित करना संभव न था | सरकारों समेत समस्त अहंकारी मनुष्यजाति का मानमर्दन करने पर उतारू दैवी शक्तियों ने मनुष्यकृत प्रयासों को कुचलना शुरू कर दिया था | ऐसी परिस्थिति में कुपित दैवी शक्तियों के सामने कौन टिकता !इसीलिए महामारी को पराजित करने के लिए जितने भी प्रयास किए जा रहे थे वे सारे न केवल निष्फल होते जा रहे थे अपितु उन प्रयासों के दुष्प्रभावों से नए नए रोग पैदा होते जा रहे थे |सरकार को मेरी बात सुनने का समय नहीं था मेरा ऐसा कोई वजूद भी नहीं था कि प्रधानमंत्री जी मुझे मिलने का समय देना जरूरी समझते !मिल भी लेते तो मेरी बात क्यों मानते मेरे जैसे बहुत लोग ऐसी बातें करते होंगे | यदि मेरी बात सुन भी लेते और वैक्सीनेशन रोकने संबंधी हमारा निवेदन मान भी लेते तो उनके लिए दूसरी बड़ी मुसीबत यह तैयार हो जाती कि उन्हें विपक्ष के सामने उत्तर देना कठिन हो जाता | खैर मैंने यथा संभव कुछ सरकारों तक अपनी बात पहुँचाई कि महामारी को पराजित करने वाली बातें बोलना बंद कर दीजिए आप महामारी की एक चपेट सहने की स्थिति में तो हैं नहीं महामारी को पराजित करन संभव नहीं है | हमारी इन बातों को अपने कुछ लोगों ने माना भी जिससे उनका भी दैवी शक्तियों  पर विश्वास बढ़ने लगा | 
      लोगों के विशेष आग्रह पर मैंने इसी उद्देश्य से एक यज्ञ करने का निश्चय किया जो गुप्त एवं व्यक्तिगत रूप से किया जा रहा था | ये यज्ञ 20 अप्रैल 2021 से मेरे द्वारा प्रारंभ किया गया था और 2 मई 2021 तक चलना  था !इसकी सूचना भी 19 अप्रैल 2021 को मैंने मेल भेजकर पीएमओ को दे दी थी यह है उस मेल का इस बिषय से संबंधित अंश -
5.  "प्रधानमंत्री जी !यदि अब भी मैं मौन बैठा रहा तो प्रकुपित ईश्वरीय शक्तियाँ विश्वका चेहरा बर्बाद कर देने पर आमादा दिख रही हैं | दैवी शक्तियों का मानवजाति पर इतना अधिक क्रोध !आश्चर्य !! महोदय ! ऐसी परिस्थिति में जनता की ब्यथा से ब्यथित होकर व्यक्तिगत रूप से मैं एक बड़ा निर्णय लेने जा रहा हूँ |अपने अत्यंत सीमित संसाधनों से कल अर्थात 20 अप्रैल 2021 से "श्रीविपरीतप्रत्यंगिरामहायज्ञ" अपने  ही निवास पर गुप्त रूप से प्रारंभ करने जा रहा हूँ | यह कम से कम 11 दिन चलेगा ! इसयज्ञ रूपी 'ईश्वरीयन्यायालय' में विश्व की समस्त भयभीत मानव जाति की ओर से व्यक्तिगत रूप से पेश होकर क्षमा  माँगने का मैंने  निश्चय किया है |मुझे विश्वास है कि ईश्वर क्षमा करके विश्व को महामारी से मुक्ति प्रदान कर  देगा | यज्ञ प्रभाव के विषय में मेरा अनुमान है कि ईश्वरीय कृपा से 20 अप्रैल 2021 से ही महामारी पर अंकुश लगना प्रारंभ हो जाएगा ! 23 अप्रैल के बाद महामारी जनित संक्रमण कम होता दिखाई भी पड़ेगा !और 2 मई के बाद से पूरी तरह से संक्रमण समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा |" 
      भगवती से की गई प्रार्थना के प्रभाव से महामारी का वेग 20 अप्रैल से ही रुकने लगा था 23 अप्रैल के बाद दिखाई भी पड़ने लगा था और दो मई से समाप्त होने लगा था | 

                                              हमारी पूर्वानुमान लगाने की प्राचीन पद्धति !
ये पूर्वानुमान विगत दस वर्षों में घटित हुई प्राकृतिक घटनाओं के आधार पर लगाए  गए  हैं जो सही घटित होते देखे गए हैं | इसके लिए बीते दस वर्षों में वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान भूकंप बज्रपात  जैसी अनेकों प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ जिस समय जहाँ घटित हुई थीं एवं उन घटनाओं के आगे पीछे जिस प्रकार की जो जो   प्राकृतिक घटनाएँ घटित हुई थीं |पहले उन घटनाओं के विषय में जो पूर्वानुमान लगाया गया था जब वो सही निकला तो उन्हीं प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का जो समय था उस समय के आधार पर खगोलविज्ञान के द्वारा गणितीय पद्धति से महामारी जनित संक्रमण घटने बढ़ने या महामारी के  विषय में जो  पूर्वानुमान लगाए गए हैं वे सही घटित हुए हैं | 
      इसी गणितीय पद्धति से हमारे द्वारा मौसमसंबंधी जो पूर्वानुमान अभी भी लगाए  जाते जाते हैं वे भी सही घटित होते देखे जाते हैं | ऐसा बीते 25 वर्षों से मेरे द्वारा अनुसंधान पूर्वक अनुभव किया  जा रहा है |इस पद्धति की एक विशेषता यह भी है कि इसके आधार पर मौसम या महामारी से संबंधित पूर्वानुमान हजारों वर्ष पहले लगा लिए जाते हैं | 
     तापमान का महत्त्व शरीर और प्रकृति दोनों में है | तापमान बढ़ने को सूर्य का प्रभाव और कम होने को चंद्र का प्रभाव माना जाता है |इसे ही मौसम की दृष्टि से सर्दी और गर्मी संबंधी ऋतुओं के रूप में जाना जाता है | इसे ही शरीर की दृष्टि से पित्त और कफ के रूप में जाना जाता है |सूर्य के उत्तरायण  होने पर सूर्य का प्रभाव अधिक बढ़ता है और सूर्य के दक्षिणायन होने पर चंद्र का प्रभाव अधिकबढ़ता है | 
   इसीप्रकार से वर्ष में सर्दी गर्मी वर्षा आदि प्रमुख ऋतु प्रभाव हैं इनका क्रम मात्रा अवधि आदि सबकुछ निश्चित है | उससे घटने बढ़ने का मतलब प्राकृतिक संतुलन बिगड़ना होता है उसका मतलब उस समय किसी प्राकृतिक आपदा का जन्म हो रहा होता है |  
    प्राकृतिक रूप से जब वातावरण बहुत अधिक ठंढा या बहुत अधिक गर्मी होने लगता है तब रोग जन्म लेने लगते हैं |ऐसे ही जब सभी ऋतुएँ अपने अपने स्वभाव के अनुसार वर्ताव न करके दूसरी ऋतुओं के गुणों कोअपनाने लगती हैं | वर्षाऋतु में वर्षा कम होकर दूसरी ऋतुओं में वर्षा होने लगे ऐसे ही सर्दी गर्मी में ऋतुएँ अपने अपने गुणों का परित्याग करके दूसरे गुणों को ग्रहण करने लगें लगातार कुछ वर्ष ऐसा होता रहे तो महामारी के पैदा होने की परिस्थिति पैदा हो जाती है | 
      जिसप्रकार से मानव शरीर में जब तक वात पित्त कफ संतुलित मात्रा में बना रहता है तब तक शरीर स्वस्थ बना रहता है इनका संतुलन बिगड़ते ही शरीर रोगी होने लगता है |जिसप्रकार से  किसी व्यक्ति को बहुत अधिक या बहुत कम तापमान में रख दिया जाए या रहना पड़े तो वह रोगी हो जाता है |इसीलिए जब किसी व्यक्ति को अधिक ठंड या अधिक गर्मी, लू आदि लग जाती है तो उसका रोगी होना स्वाभाविक होता है | यह रोग ही शारीरिक आपदा है | इसमें विशेष बात यह है कि जिस व्यक्ति को जब अधिक ठंड या अधिक गर्मी या  लू आदि लग जाती है तब लोग प्रायः इस बात का पूर्वानुमान लगा लिया करते हैं कि उन्हें इस सर्दी या गर्मी लग जाने के कारण स्वास्थ्य संबंधी किस किस प्रकार के रोग हो सकते हैं उससे बचाव के उपाय भी खोज लेते हैं उसी के अनुसार  आहार बिहार रहन सहन आदि में बदलाव करके अपने को रोगी होने से बचा लिया करते हैं | 
    
     वर्तमानसमय में  प्रकृति में घटित होने वाली प्रत्येकघटना अतीत में घटित हुई किसी उसीप्रकार की घटना के परिणामस्वरूप घटित हो रही होती है और वह भविष्य में किसी उसी प्रकार की घटना के घटित होने का कारण बनती है |      
                                         
                                          अनुसंधानों के लिए चुनौती बनी हैं प्राकृतिक घटनाएँ -
    किसी महामारी, भूकंप,आँधी, तूफ़ान, वर्षा, बाढ़  आदि प्राकृतिक घटनाएँ अचानक घटित होने लगती हैं सरकारों और वैज्ञानिकों को इनके विषय में पहले से कुछ भी पता नहीं होता है | किसी बस्ती में बीस तीस फिट ऊँची पानी  की लहरें अचानक प्रवेश लगें तो उस समय  गाँव के लोगों को ही लहरों का सीधा सामना करना होगा |ऐसी घटनाओं को घटित होने से रोकना मनुष्यकृत प्रयासों से संभव नहीं है | इसलिए ऐसी घटनाएँ तो घटित होंगी ही यह तो  निश्चित है | जनता के बचाव के लिए सरकारें सतर्कता पूर्वक प्रयास अवश्य कर सकती हैं | 
      सरकारों के द्वारा प्रभावी  बचाव भी तभी किया जा सकता है जब घटनाओं के विषय में पहले से पूर्वानुमान पता हो | घटनाओं के पूर्वानुमानों  को जाने बिना सरकारों के द्वारा भी अग्रिम उपाय कैसे किए जा सकते हैं |घटनाएँ घटित होने  के बाद में आपदा प्रबंधन की दृष्टि से ही प्रयास किए जा  सकते हैं | 
     आपदा घटित होने से पहले संभावित प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए प्रयास किया जाना तभी संभव है जब सरकारों को ऐसी आपदाओं के विषय में पहले से जानकारी हो |ऐसा तभी संभव है जब वैज्ञानिकों को ऐसी संभावित घटनाओं  विषय में सही सही अनुमान या पूर्वानुमान पता हों | यदि वैज्ञानिकों को ही नहीं पता होंगे तो वो सरकारों को ऐसे आवश्यक अनुमान या पूर्वानुमान  कैसे उपलब्ध करवा सकेंगे | वैज्ञानिक सहयोग के बिना सरकारें जनता के लिए सार्थक बचाव कार्य कैसे कर सकती हैं | 

    वैज्ञानिकों ने जिस विज्ञान को पढ़ा समझा होगा उसके द्वारा यदि  प्राकृतिक घटनाओं को समझना ,अनुमान ,पूर्वानुमान  आदि लगाना संभव होगा तभी उनके द्वारा ऐसा कुछ किया जा सकता है किंतु जिस विज्ञान के द्वारा ऐसा किया जाना संभव ही न हो उसके द्वारा प्राकृतिक घटनाओं को समझा ही कैसे जा सकता है | 
    यही कारण है कि भूकंपों के घटित होने के लिए जिम्मेदार आधारभूत जो जो कारण बताए जाते हैं यदि उन वैज्ञानिक कल्पनाओं में थोड़ी भी सच्चाई है तो उसके आधार पर भूकंपों के विषय में अभी तक ऐसा कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि क्यों नहीं पता लगाया जा सका जिससे भूकंपों के विषय में कोई ऐसी प्रमाणित जानकारी जुटाई जा सकी होती अनुसंधानों के बिना जिसका पता लगाया जाना संभव न हो | 
     भूकंपों के कारणों के रूप में जो भूमिगत प्लेटों के आपस में टकराने को या पृथ्वी के अंदर की गैसों के दबाव को कारण बताया जाता है | ये तब तक केवल कोरी कल्पनाएँ हैं जब तक इनके विषय में कोई ऐसे सर्व स्वीकार्य  तर्कसंगत वैज्ञानिककारण भूत प्रमाण  प्रस्तुत  नहीं किए जाते हैं जिनका प्रत्यक्ष भूकंपों के साथ कोई संबंध सिद्ध होता हो | 
     ऐसे कारण बताए जाने में विज्ञान और वैज्ञानिक चिंतन क्या है  | तर्क की कसौटी पर ये कैसे सही उतरता है और इसमें साइंटिफिकता अर्थात अर्थात वैज्ञानिकता क्या है ?यदि इस प्रक्रिया में वैज्ञानिकता जैसी रंच मात्र भी कोई चीज है तो इसके द्वारा आज तक  भूकंपों के विषय में कोई सही सटीक पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाया जा सका | इसके बिना वैज्ञानिकों के द्वारा  रही उन बातों सही किस आधार  लिया जाए जिन्हें वैज्ञानिकों के द्वारा भूकंप आने के लिए जिम्मेदार बताया जाता है | 

  इसीप्रकार से मानसून आने और जाने के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए ऐसी कौन सी सर्व स्वीकार्य  तर्कसंगत वैज्ञानिक  तकनीक खोजी जा सकी है  जिसके आधार पर प्रतिवर्ष मानसून आने और  जाने के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है जो प्रायः गलत निकलते देखा जाता है | इस प्रक्रिया में साइंटिफिकता  अर्थात अर्थात वैज्ञानिकता क्या है और वो किस प्रकार से सिद्ध होती है ?यदि इसे विज्ञान सम्मत मान भी लिया जाए तो  इसके आधार पर लगाए गए पूर्वानुमान आखिर सही क्यों नहीं घटित होते हैं ?      

   लोग भी ऐसी घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमानों के विषय में नहीं पता होगा तो वैज्ञानिक ही  सरकार एवं समाज को ऐसी घटनाओं के  विषय में बचाव के लिए आगे से आगे कैसे सतर्क कर पाएँगे | वैज्ञानिक लोग भी ऐसी घटनाओं के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान तभी तो लगा सकते हैं जब उनके द्वारा किए  जाने वाले अनुसंधानों से ऐसा कर पाना संभव हो | 
      जिस विषय को विज्ञान मानकर उसके द्वारा ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान लगाने की कल्पना की जाती है उस विषय का ऐसी प्राकृतिक घटनाओं से संबंध ही क्या है और उसमें प्रकृति संबंधी अध्ययनों की आधारभूत क्षमता क्या है ?यह स्वयं में अनुसंधान का  विषय है | 
    ऐसे ही समय समय पर तापमान घटने और बढ़ने के विषय में जो पूर्वानुमान लाए जाते हैं वे प्रायः गलत निकलते देखे जाते हैं | यदि ये किसी वैज्ञानिक आधार पर लगाए जाते हैं तो वो तर्कसंगत वैज्ञानिक आधार क्या है और ये गलत क्यों होते हैं ?  
      वायु प्रदूषण बढ़ने और घटने के लिए वास्तविक जिम्मेदार कारणों को अभी तक खोजा नहीं जा सका है  और न ही इसके विषय में सही पूर्वानुमान ही लगाने की विधि खोजी जा सकी है | इसके बाद भी समय समय पर  प्रदूषण बढ़ने और घटने के लिए जो जिम्मेदार कारण बताए जाते हैं उनके आधार पर जो पूर्वानुमान लगाया जाता है उसका वैज्ञानिक आधार क्या है और वे पूर्वानुमान सही न निकलने का कारण क्या  है ?
    इसी प्रकार से वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं को उपग्रहों रडारों के माध्यम से एक जगह घटित होता देखकर इनकी गति और दिशा के हिसाब से दूसरी जगह घटित होने के विषय में जो अंदाजा लगाया जाता है |इस प्रक्रिया में साइंटिफिकता  अर्थात वैज्ञानिकता क्या है और वो किस प्रकार से सिद्ध होती है ? 

  

उस समय वैज्ञानिक और सरकारें चाहकर भी कोई मदद नहीं कर सकती हैं | 
    ऐसे अचानक घटित होने लगने वाले संकटों से जनता को जितना अधिक से अधिक सुरक्षित बचाकर रखने में जो सरकारें जितनी अधिक सफल होती हैं कैसे सुरक्षित बचा कर ए रखने के संकल्पों सेजुड़ी सरकारें के समय हैरान परेशान घबड़ाई हुई जनता आपदाओं  के समय सरकारें दो ही प्रमुख विकल्प होते हैं | ऐसी घटनाओं 

घटनाएँ घटित 
      जिस प्रकार शत्रु राजा के द्वारा किसी देश पर आक्रमण करके  उस  देश को अपने आधीन कर लिया जाता है | इसके बाद उस देश में आक्रांता का ही हुक्म चलता है | इसीप्रकार से महामारी, भूकंप,आँधी, तूफ़ान, वर्षा, बाढ़  आदि प्राकृतिक घटनाएँ  अचानक आक्रमण करती हैं जिनके विषय में पहले से किसी को कुछ नहीं पता होता है | ऐसी घटनाओं के विषय में पहले से पता न  होने के कारण ही सबसे अधिक जनधन की  हानि होती है | 
       
                                                       समय खंड 
                                         महामारी की दृष्टि से मौसम का महत्त्व -
         प्रकृति वह दर्पण है जो भविष्य में घटित होने वाली संभावित घटनाओं के दृश्य आगे से आगे दिखाया करता है | जिसमें भविष्य में घटित होने वाली वे सभी घटनाएँ काफी पहले से दिखाई पड़ने लगती हैं जो प्रकृति को या मानव जीवन को प्रभावित करती हैं | उन्हीं के आधार पर प्रकृति और मानवजीवन के भविष्य में घटनाएँ घटित होने लगती हैं | 
   संसार में जब जब कोई आपदा आती है तो उसका प्रभाव भी सबसे पहले मौसम पर ही पड़ता है उससे ऋतु स्वभाव के विपरीत तापमान या तो बहुत कम होने लगता है और या फिर बहुत अधिक बढ़ने लग जाता है | उससे मौसम संबंधी घटनाओं का संतुलन  बिगड़ने लगता है |कुलमिलाकर जब जब प्राकृतिक स्वास्थ्यजनित समाजिक आदि आपदाएँ घटित होती रही हैं तब तब उनका प्रभाव मौसमसंबंधी प्राकृतिकघटनाओं पर जरूर दिखाई देता रहा है|  
     मनुष्यों पर आने वाली सभीप्रकार की प्राकृतिकआपदाएँ सबसे पहले मौसमसंबंधी घटनाओं को प्रभावित करती हैं इसके बाद में वृक्षों बनस्पतियों एवं जीव जंतुओं तक पहुँच पाती हैं | 
   ऐसी परिस्थिति में उन प्राकृतिक आपदाओं या महामारियों को यदि मौसम के स्तर  पर ही पहचान लिया जाए तो उसीसमय से स्वास्थ्य संबंधी सावधानियाँ अपनाकर महामारियों से बचाव के उपाय किए जा सकते हैं |इसके अतिरिक्त यदि मौसम  के स्तर पर महामारियों को न पहचाना जा सका और वहीं से सावधानियाँ नहीं बरती गईं तो उस बिगड़े हुए मौसम का विषैला प्रभाव आकाशीय वातावरण में पड़ने लगता है जिससे पक्षियों में बेचैनी बढ़ने लगती है अकारण बड़ी संख्या में पक्षियों की मृत्यु होने लगती है | मनुष्यों में दमा आदि स्वाँस रोग बढ़ने लगते हैं | वही बिषैला प्रभाव जल एवं जलीय जीवन पर पड़ता है उससे  बड़ी संख्या में जल में रहने वाले जीव जंतु मारे जाने लगते हैं |पानी में पहुँचे उस महामारी जनित बिषैले  प्रभाव  से उस जल को पीकर मनुष्यों की पाचन शक्ति बिगड़ने लगती है |
   प्रदूषित वायु और जल का बिषैला प्रभाव कृषि वृक्षों बनस्पतियों आदि समस्त खाने पीने वाली वस्तुओं औषधियों आदि पर पड़ने लगता है उन्हें खाने पीने से मनुष्य संपूर्ण रूप  महामारियों के प्रभाव में आ जाता है | जो कुछ भी खाता पीता या जिस वातावरण में श्वास लेता है उस सबके साथ महामारी जनित सूक्ष्मबिषाणु मनुष्य शरीरों में प्रवेश कर रहे होते हैं | यहाँ तक कि वातावरण के विषैले प्रभाव से बनस्पतियाँ औषधियाँ आदि अपने अपने गुणों से हीन  हो जाती हैं कई बार तो वे दूसरे गुणों को या अपने स्वभाव से विपरीत गुणों को अपने अंदर स्वीकार कर लिया करती हैं | इसलिए वे औषधियाँ और औषधीय द्रव्य भी स्वास्थ्य के लिए अधितकर हो जाते हैं | 
     आम या इमली के फल बसंत ऋतु के प्रभाव में खट्टे और ग्रीष्म ऋतु में लू आदि गर्म हवाओं के प्रभाव से वही फल मीठे हो जाते हैं | खरबूजा तरबूज  आदि की मिठास बढ़ जाती है | यदि किसी वर्ष ग्रीष्म ऋतु में उस प्रकार की गर्मी न पड़े वैसी लू न चले या पानी बरस जाए तो आम इमली  खरबूजा तरबूज आदि के स्वाद गुणों प्रभाव आदि में अंतर आ जाता है |  कई बार तो गर्मी में पानी बरस जाने के कारण इनकी मिठास बिल्कुल ही चली जाती है | गर्मी में पानी बरस जाने का यदि ऐसा प्रभाव आम ,इमली ,खरबूजा, तरबूज आदि पर पड़कर उनके स्वाद और गुणों में इतना परिवर्तन कर देता है तो इसका ऐसा ही प्रभाव दूसरी खाने पीने की वस्तुओं पर पड़ता होगा वृक्षों बनस्पतियों पर पड़ता होगा तो उनके भी स्वभाव और गुणों में उस हिसाब का परिवर्तन आता होगा | जो स्वास्थ्य के लिए हितकर होगा ही ऐसा नहीं सोचा जाना चाहिए | यही कारण है कि जो अदरख हल्दी आदि औषधियाँ सर्दी जुकाम जैसे रोगों से मुक्ति दिलाने के लिए जानी जाती हैं | महामारी आने से पहले आए मौसमी बदलाव से ऐसी औषधियों केस प्रकार के गुणों में कमी आ जाती है इसलिए महामारी के समय में सर्दी जुकामखाँसी आदि रोगों पर उनका प्रभाव उस प्रकार का नहीं पड़ता जिसके लिए  वे जानी जाती हैं |
     इसीप्रकार से पूर्वनिर्मित औषधियों के गुणों में विकार आ जाते  हैं |जिन रोगों के लिए प्रभावी मानकर बनाई गई जो औषधियाँ संग्रहीत होती हैं उनमें विकार आने के कारण वे निष्प्रभावी हो जाती हैं | इसलिए वे जहाँ एक ओर लाभ नहीं करने लगती हैं वहीं दूसरी ओर मनुष्य शरीरों पर भी उसी अनुपात में महामारी का प्रभाव पड़ा होता है इसलिए शरीरोंकी भी प्रतिरोधक क्षमता में कमी आ जाती है जिससे वे महामारी के दुष्प्रभाव को सहने की स्थिति में  बिल्कुल नहीं रह  जाते हैं | 
     ऐसी परिस्थिति में औषधियों का यदि थोड़ा बहुत प्रभाव पड़ता भी है तो महामारी जनित बिषैलेपन से प्रदूषित होचुकी खान पान की समस्त वस्तुएँ खाने से एवं उसी प्रदूषित वायुमंडल में श्वास लेने से वे रोग पुनः अपनी पुरानी स्थिति में पहुँच जाते हैं | इसीलिए महामारी से मुक्ति मिलना कठिन होता जाता है | 
       वही सर्दी ज़ुकाम खाँसी आदि अन्य समय में होता है तब उन औषधियों से लाभ हो जाने का एक कारण तो यह है कि औषधियों में महामारी जनित  विकार नहीं होते,खानपान वातावरण आदि प्रदूषित नहीं होता एवं शरीरों में प्रतिरोधक क्षमता की उस प्रकार की कमी नहीं होती है |  
      हमें यह बात हमेंशा याद रखनी चाहिए कि जिस प्रकार से भोजन बनाते समय या औषधि बनाते समय इस बात का ध्यान रखना आवश्यक होता है कि इसमें कौन सा मशाला या द्रव्य कितनी मात्रा में डाले जाने पर तथा कितनी देर तक पकाए जाने पर उसका स्वाद गुण प्रभाव आदि किसप्रकार का होगा | मशाला या उन औषधीय द्रव्यों की मात्रा यदि घट बढ़ जाती है और उस अनुपात में नहीं रहतीअथवा उसे मात्रा से अधिक या कम पका दिया जाता है तब उस भोजन एवं औषधि के स्वाद और गुणों में अंतर आ ही जाता है | 
      इसी प्रकार से प्राकृतिक वातावरण एक क्रम एवं मात्रा में व्यवस्थित है उससे कम या अधिक होगा तो वातावरण बिगड़ना स्वाभाविक है | प्राकृतिक क्रम में सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं का क्रम क्या होगा | कितने कितने समय तक कौन कौन सी ऋतुएँ रहेंगी | अपनी अपनी ऋतु में कौन सी ऋतु अपना प्रभाव कितना छोड़ेगी यह सब कुछ सुनिश्चित है सबकी मर्यादा बनी हुई है | इस अनुशासन का पालन प्रकृति स्वयं करती है | उसी के अनुशार मनुष्य समेत समस्त जीव जंतुओं के शरीर स्वभाव क्षमता आदि बनी हुई है उसी हिसाब से खान पान की वस्तुओं औषधियों वृक्षों बनस्पतियों आदि के गुण स्वभाव प्रभाव आदि व्यवस्थित चले आ रहे हैं | ऋतुओं के स्वरूप में प्रकृति जब स्वयं इस मर्यादा का उल्लंघन करने लगती है तो मौसम बिगड़ता है उससे कृषि वृक्ष बनस्पतियाँ  आदि खाने पीने की समस्त वस्तुएँ प्रभावित होती हैं मनुष्य आदि सभी जीव जंतु प्रभावित होते हैं तब रोग पैदा होते हैं जिनकी औषधि नहीं मिल पाती है |  
      उस समय मनुष्य वेबश होता है सारा जीव जगत महामारी की चपेट में आ जाता है | ऐसे समय चिकित्सा जगत के लिए महामारियों को समझपाना ही सबसे कठिन काम होता है और किसी रोग को समझे बिना उससे बचाव के लिए चिकित्सा खोज लेने या उससे बचाव के लिए औषधि बना लेने की कल्पना ही कैसे की जा सकती है |इसीलिए महामारियाँ आकर चली भी जाती हैं उनके विषय में किसी को कुछ पता भी नहीं लग पाता है | महामारियों को समझ लेने के दावे करने वाले लोग जो जब तक महामारियाँ रहती हैं तब तक तो अपनी बेबशी लाचारी असहायपन आदि दिखाया करते हैं महामारियों के विषय में तरह तरह की निराधार अफवाहें फैलाया करते हैं जिन महामारियों के विषय में उन्हें कुछ पता ही नहीं होता है उन्हीं के  विषय में महामारी बीतते ही ऐसे लोग अपनी अपनी मन गढंत कहानियाँ  सुनाना शुरू कर देते हैं | 
       एक बार ग्रीष्मऋतु में गर्मी से व्याकुल एक हाथी छाया में कुछ आराम करने के उद्देश्य से किसी पेड़ के नीचे आया !उस पेड़ पर दो चूहे रहते थे उनमें से एक हाथी की पीठ पर कूद गया !उसी समय छाया में आकर हाथी बैठ गया | तो हाथी पीठ पर बैठा चूहा दूसरे चूहे से कहता है | देख मैंने एक लात मारी  तो  हाथी उसी चोट से बैठ गया है बोल तो एक और लात मारूँ !ऐसा कह ही रहा था कि हाथी ने अपनी पीठ की खुजली मिटने के लिए जैसे ही पीठ पर सूँड घुमाई तो उससे रगड़कर चूहा बेचारा मर गया | 
       यही स्थिति महामारी को पराजित करने या उसे जीतने या उसपर विजय प्राप्त करने के नारे लगाने वाले बहुत लोगों की हुई है | इसलिए महामारियों को समझने के लिए गंभीर अनुसंधान किए जाने चाहिए ताकि भविष्य में महामारी की इतनी बड़ी कीमत कभी न चुकानी पड़े | 
मौसम  और  समय की गति को समझने वाला गणित !

        वैदिकविज्ञान की  दृष्टि से प्रकृति में घटित होने वाली सभी प्रकार की घटनाओं का समय निश्चित है सभी ऋतुएँ अपने अपने समय पर घटित होती जाती हैं हमेंशा से ही ऐसा होता चला आ रहा है | मौसमसंबंधी घटनाएँ भी समय के आधार पर ही घटित होती हैं कब सूखा पड़ना है, कब बादल आना है, कब वर्षा होनी है, कब अधिक वर्षा होनी है कब आँधी आनी है कब तूफ़ान आना है कब चक्रवात आना है सबका अपना  अपना समय सुनिश्चित होता है |भूकंप आने का भी समय निश्चित है !यहाँ तक कि वायु प्रदूषण बढ़ने घटने का भी समय निश्चित होता है |
ऐसी सभी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने के लिए सबसे पहले समय खोजना होता है कि ऐसी घटनाएँ किस प्रकार के समय पर घटित होती हैं फिर वो समय कब आएगा !यह जानने के लिए गणित का  सहारा लेना होता है |
    जिसप्रकार से समुद्र में ऊँची ऊँची लहरें उठते देखी जाती हैं  किंतु यदि ये पता करना हो कि कब उठेंगी तो उत्तर मिलता है कि अमावस्या पूर्णिमा अष्टमी आदि के आस पास ऐसी लहरें उठती हैं | इसके बाद प्रश्न उठता है कि  अमावस्या पूर्णिमा अष्टमी आदि तिथियाँ कब आएँगी तो इसकी खोज सिद्धांतगणित की प्रक्रिया के अनुशार करनी होती है |इसकेबाद गणित के द्वारा इस बात का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है कि अमावस्या और पूर्णिमा आएगी किस तारीख को?ऐसा निश्चित होने के बाद कह दिया जाता है कि उसतारीख को समुद्र में ऊँची ऊँची लहरें उठेंगी | 
   प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने की वैदिक प्रक्रिया यही है | इसके अंतर्गत सबसे पहले यह खोजना होता है कि किस प्रकार की प्राकृतिक घटना किस प्रकार के समय में घटित होती है फिर उस प्रकार का समय कब आएगा ? मौसम पूर्वानुमान लगाने के लिए केवल उन उन घटनाओं से संबंधित समय को खोजना होता है जो जिस प्रकार की प्राकृतिक घटना के लिए निश्चित होता है |
      जिस प्रकार से समुद्र के जल का स्पर्श किए बिना समुद्र के पास जाए बिना समुद्र या समुद्र जल का परीक्षण किए बिना ही केवल गणित के द्वारा उस तारीख को खोज लिया जाता है जिस दिन समुद्र में सबसे ऊँची लहरें   उठनी होती हैं |उसी प्रकार से  आकाश को देखे बिना ,बादलों को देखे बिना कोई किसी का अनुमान सुने बिना सिद्धांतगणित की प्रक्रिया के अनुशार उन उन घटनाओं से संबंधित समय को खोज लिया जाता है जो जिस प्रकार की प्राकृतिक घटना के लिए निश्चित होता है|
         कुछ लोगों का मत है कि सूर्य चंद्र ग्रहण के आस प्राकृतिक उत्पात बढ़ जाते हैं उस समय भूकंप जैसी घटनाएँ घटित होते अक्सर देखी जाती हैं | इसके आधार पर भूकंप आने  की संभावना यदि इसी प्रकार से सूर्य या चंद्र का ग्रहण अक्सर देखा जाता है आकाश में कब पड़ेगा इस प्राकृतिक घटना का पूर्वानुमान लगाने के लिए पहले यह जानना होता है कि सूर्य और चंद्र ग्रहण पड़ते किस किस तिथि को हैं जब पता लगा कि सूर्य ग्रहण अमावस्या को और चंद्र ग्रहण पूर्णिमा को लगता है | इसके बाद सूर्यग्रहण किस अमावस्या को पड़ेगा और चंद्र ग्रहण किस पूर्णिमा को पड़ेगा आदि तारीख पता लगने के बाद उसका समय क्या होगा कितनी देर पड़ेगा !भविष्य में कब कब पड़ेगा आदि बातों का पूर्वानुमान सिद्धांतगणित की प्रक्रिया के अनुशार लगा लिया जाता है | इसके लिए किसी उपग्रह या रडार आदि से सूर्य चंद्र के चित्र नहीं लेने या देखने होते हैं और न ही इनके किसी प्रकार के परीक्षण की ही आवश्यकता होती है यहाँ तक कि सूर्य चंद्र और आकाश आदि तक को देखे बिना ही केवल गणित के आधार पर उस समय का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है जिसमें इस प्रकार की घटना घटित होती है|लाखों वर्ष बीतने के बाद भी  ग्रहणों के विषय में लगाए गए पूर्वानुमान बिलकुल सही एवं सटीक निकलते हैं  कोई भविष्यवाणी कभी गलत नहीं हुई इसीलिए वेदवैज्ञानिकों को जलवायुपरिवर्तन , ग्लोबलवार्मिंग , अलनीनो-लानीना जैसी कभी कोई  काल्पनिक कहानी नहीं गढ़नी पड़ी !
     गणित के द्वारा लगाए जाने वाले पूर्वानुमानों में केवल उस समय की खोज करनी होती है समय के आधार पर ही प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती हैं !
     मानसून की तारीखें बदलते रहने का कारण भी समय ही है इसीलिए आजतक किसी एक निश्चित तारीख को न मानसून आया है  और न भविष्य में ही कभी आएगा !
     इसका कारण मानसून हमेंशा तिथियों के अनुशार ही आता है तारीखों के अनुशार नहीं !क्योंकि तिथियों का निर्माण सूर्य और चंद्र के संयोग से होता है और वर्षा बाढ़ आँधी तूफानों आदि प्राकृतिक घटनाओं का निर्माण भी सूर्य चंद्र आदि ग्रहों के वायु मंडल में पड़ने वाले प्रभाव से होता है |इसलिए मानसून के आने जाने में तिथियों का महत्त्व होता है | 
               गणितीय प्रक्रिया से मौसम पूर्वानुमान लगाने का प्रकार -
      प्रकृति जब सूर्य से अधिक प्रभावित होती है तब हवा तो चलती है किंतु वर्षा नहीं होती है ऐसे समय धूप अधिक निकलती है गर्मी बढ़ती है आँधी तूफ़ान की घटनाएँ घटित होती हैं वायु प्रदूषण बढ़ने लगता है |ऐसे समय में आकाश में या तो बादल  नहीं रहते हैं यदि बादल होते भी हैं तो वे भूरे रंग के होते हैं ऐसे बादल तीव्र गति से किसी एक दिशा की ओर उड़ रहे होते हैं |
     इसी प्रकार से जब केवल चंद्र का ही प्रभाव बढ़ता है तो आकाश में घनघोर काले काले बादल तो छा जाते हैं किंतु वर्षा अत्यंत कम होती है या नहीं भी होती है और कई बार बिना बरसे ही निकल जाते हैं | ये किसी एक ही दिशा की ओर जा रहे होते हैं |
    कई बार सूर्य और चंद्र दोनों का प्रभाव समान रूप से पड़ रहा होता है ऐसे समय में सूर्य और चंद्र के बादल एक दूसरे से विपरीत दिशा में गमन कर रहे होते हैं कई बार ऐसा भी होता है कि कुछ बादल स्थिर  होते हैं तो दूसरी ओर से आने वाले बादल उन्हें लाँघ रहे होते हैं |ऐसे समय में अच्छी बारिस होने की संभावना होती है | ये प्रभाव जितना अधिक शक्तिशाली होता है वर्षा का वेग भी उतना ही अधिक होता है |
   कभी कभी सूर्य और चंद्र दोनों का प्रभाव अत्यंत अधिक बढ़ा हुआ होता है और दोनों का प्रभाव लगभग एक समान होता है ऐसे समय में बड़े बड़े आकार के घनघोर डरावने बादल उठते हैं इनके प्रभाव से वर्षा आँधी तूफ़ान आदि घटनाएँ साथ साथ ही घटित होते देखी जाती हैं |  
   ऐसे ही अन्य कुछ खगोलीय परिस्थितियाँ दूसरे ग्रहों की दूसरे ग्रहों के साथ बनती हैं उनके प्रभाव से भी कुछ इसी प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती हैं |
    जब कोई दो या दो से अधिक खगोलीय परिस्थितियाँ वर्षा करने वाली बन जाती हैं उससमय अधिक वर्षा होने की संभावना बन जाती है | ऐसे ही आँधी तूफ़ान आदि की घटनाएँ भी घटित होते देखी जाती हैं |
   इस प्रकार से खगोलीय परिस्थितियाँ कब कैसी बन रही हैं या भविष्य में कब कैसी बनेंगी इसका पूर्वानुमान गणितीय पद्धति से आगे से आगे लगा लिया जाता है इसके साथ ही सूर्य और चंद्र का प्रभाव कब कैसा पड़ रहा है इसका पूर्वानुमान भी बहुत पहले से लगा लिया जाता है और इसी के आधार पर वर्षा बाढ़ या आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |

      भारत  का प्राचीनविज्ञान और महामारियाँ !  

      कोरोना जैसी  महामारी  के दुष्प्रभाव का अनुभव हमारी पीढ़ी ने भले पहली बार किया है किंतु  इतना तो निश्चय है कि कालक्रम के साथ आने वाली महामारियाँ तो हर युग में ही आती जाती रही हैं भले वह प्राचीनकाल ही क्यों न रहा हो | उस समय अत्याधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधानों के भाव में बहुत बड़ी क्षति हुई हो ऐसा कहीं वर्णन  नहीं  मिलता है | 

    इसके दो ही कारण हो सकते  हैं | एक तो ऐसे सोच लिया जाए कि महामारियाँ बुरे समय के प्रभाव से आती हैं और अच्छा समय आने पर समय के प्रभाव से स्वतः  समाप्त हो जाती हैं इसमें मनुष्यकृत प्रयासों का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है जैसा कि कोरोना महामारी के समय में भी होते देखा गया है |कोरोना के प्रत्येक पक्ष में वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए अनुमान ,पूर्वानुमान या रोग मुक्ति के लिए किए गए प्रयास निरंतर धराशायी होते रहे हैं |जिन्हें संक्रमित होना था उन्होंने कितना भी ने भी नियम संयम का पालन किया किंतु उनका बचाव नहीं हो सका और जिन्हें नहीं होना था वे कितने भी खुले घूमे उनका बचाव होता ही रहा !  महानगरों से मजदूरों के पलायन में,दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन में ,हरिद्वार के कुंभ मेले में या महानगरों में घनी बस्तियों में रहने वाले लोगों आदि में यह प्रत्यक्षरूप से देखा जाता रहा है |

    कुल मिलाकर कोरोना महामारी के  समय वैज्ञानिक अनुसंधानी अनुभवों या चिकित्सकीय प्रयासों का कोई बहुत बड़ा योगदान रहा हो ऐसा दिखाई नहीं पड़ता है | इसीलिए तो गाँवों शहरों में या  गरीबों रईसों  में तथा अस्पताल जाकर एडमिट होने में या घर पड़े रहकर स्वस्थ होने वालों की संख्या में कोई बहुत बड़ा अंतर नहीं दिखता है | जिन साधनसंपन्न लोगों ने अत्याधुनिक चिकित्सकीय अनुसंधानों का लाभ लिया या जिन गरीबों ग्रामीणों बनबासियों ने नहीं लिया | उन दोनों ही प्रकार के लोगों के संक्रमित या स्वस्थ होने की संख्या में कोई बहुत बड़ा अंतर नहीं दिखा | चिकित्सकीय सुविधाओं की दृष्टि से सक्षम माने जाने वाले अमेरिका ब्रिटेन जैसे सक्षम देशों की बात हो या भारत के दिल्ली मुंबई जैसे सक्षम महानगरों में संक्रमितों की संख्या अन्य देशों या  नगरों के अनुपात  में  कोई कम तो नहीं रही है और संक्रमितों की मृत्यु होने में भी वैज्ञानिक अनुसंधानों के प्रभाव से  रोक तो  लगाई जा  सकी है |  चिकित्सकीय सुविधाएँ कितनी प्रभावी रही हैं यह स्वयं में अनुसंधान का विषय है | यदि चिकित्सकीय संसाधनों से इस युग में  कोई बहुत बड़ा सहयोग नहीं मिल सका है तो प्राचीन युग में भी  महामारी का प्रभाव या तो  इसीप्रकार का रहा होगा या फिर उस युग में महामारी पर बचाव के लिए जो प्रक्रिया अपनाई जाती रही होगी वह वर्तमान अनुसंधानों से अधिक प्रभावी रही होगी तभी उस युग में बचाव हो पाता होगा | 

   उस युग में महामारी से बचाव के लिए क्या कोई वैज्ञानिक पद्धति थी जिसका अनुपालन करके लोग अपना बचाव कर लिया करते थे |इस विषय में भारत वर्ष के वैदिक  सूत्रों  में या अन्य प्राचीनतम  ग्रंथों में महामारी के विषय में भिन्न भिन्न स्थानों पर जो वर्णन मिलता है |महामारी की भयावहता के विषय में चर्चा  मिलती है उसके बचाव के लिए उपाय एवं  सतर्कता के विषय में जो सुझाव दिए गए हैं | महामारी आने से काफी पहले महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाकर औषधि संग्रह करके रख लेने के लिए जिस प्रकार से प्रेरित किया गया है | उन पूर्व संग्रहीत बनषाधियों को महामारी से मुक्ति दिलाने में जिस  प्रभावी बताया गया है | उनके आधार  पर  नए सिरे से अनुसंधान किए जाने की आवश्यकता है | महामारी जैसे विषयों का पूर्वानुमान लगाने के उस समय जो गणितीय पद्धति प्रचलन में थी उससे महामारी के विषय में लगाए जाने वाले पूर्वानुमान आज के समय में कितने प्रतिशत सही घटित होते हैं | प्राचीन काल में महामारियों से बचाव के लिए  शास्त्रों में जो उपाय बताए गए हैं वे वर्तमान समय में कितने प्रतिशत प्रभावी होते हैं | इस  दृष्टि से अनुसंधान की  आवश्यकता है | वर्तमान समय में आधुनिक विज्ञान की पद्धति से महामारी के विषय में किए जा रहे अनुसंधानों को आगे बढ़ाने में यदि प्राचीन विज्ञान से यदि थोड़ा भी सहयोग मिलेगा तो महामारी से भयभीत मानवता को ढाढस बँधाने में बहुत सहायक होगा | इसी दृष्टि से मैंने व्यक्तिगत स्तर पर भारत की प्राचीन वैज्ञानिक पद्धति से अनुसंधान करने का निर्णय लिया है और व्यक्तिगत प्रयास से जितना कुछ कर पाया हूँ वह यहाँ प्रस्तुत कर  रहा हूँ | 

प्राचीनकाल और महामारियाँ      

      कोरोना जैसी  महामारी  के दुष्प्रभाव का अनुभव हमारी पीढ़ी ने भले पहली बार किया है किंतु महामारियों का इतिहास बहुत पुराना है भारत वर्ष के वैदिक साहित्य में या अन्य प्राचीनतम  ग्रंथों में महामारी के विषय में भिन्न भिन्न स्थानों पर वर्णन मिलता है |इससे यह तो स्पष्ट  ही है कि महामारियाँ आदिकाल से ही आती जाती रही हैं | ऐसा कहना भी अनुचित न होगा कि सृष्टि का क्रम जब से प्रारंभ हुआ है महामारियाँ भी तभी से चली आ रही हैं 

     एशिया में 20 हजार साल पहले भी आई थी महामारी :28 जून 2021 को प्रकाशित -अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालयों में प्राचीन मानव जीन संरचना के अध्ययन से पता चला है कि मौजूदा चीन, जापान, मंगोलिया, उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया और ताइवान के इलाके में कोविड-19 जैसी महामारी 20 हजार साल पहले भी आई थी। लेकिन यह एक बार आकर खत्म हो गई थी। बीते 20 साल में भी कोरोना वायरस तीन बार आई महामारियों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। इस दौरान सबसे पहले फैले सार्स-कोरोना वायरस से श्वसन तंत्र को गंभीर नुकसान हुआ था। यह बीमारी 2002 में चीन से ही पैदा हुई थी और उससे 800 से ज्यादा लोग मारे गए थे। जबकि मर्स-कोरोना वायरस पश्चिम एशिया में पैदा हुआ, उसने भी श्वसन तंत्र पर हमला किया। उससे 850 से ज्यादा लोग मारे गए। वर्तमान में सार्स-कोरोना वायरस-2 के कारण कोविड-19 महामारी फैली है जिससे अभी तक दुनिया में 39 लाख लोग मारे जा चुके हैं।

       20 हजार साल पहले कोरोना वायरस के कारण हुई तबाही के बारेमें क्वींसलैंडयूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी, यूनिवर्सिटी ऑफ एडिलेड, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया सैन फ्रांसिस्कोऔर यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना ने अध्ययन किया है। यह अध्ययन करेंट बायलॉजी नाम के जर्नल में प्रकाशित हुआ है। वैज्ञानिक दल ने 2,500 से ज्यादा मानव जीनोम का अध्ययन किया। ये जीनोम दुनिया के 26 भू भागों से संकलित किए गए थे। इन सब पर कोरोना वायरस से फैली बीमारी का अध्ययन किया गया। |

      विशेषकर  भारतवर्ष में उस  प्राचीनकाल को यदि आधुनिकवैज्ञानिकों की दृष्टि से देखा जाए तो उस युग में महामारी को समझने की इतनी विकसित व्यवस्था नहीं  रही होगी | उससमय महामारीसंबंधी परीक्षणों के लिए वर्तमान समय की तरह यंत्र आदि थे|औषधिसंबंधी  अनुसंधानों  के लिए ऐसी व्यवस्था नहीं थी | निर्माण के लिए ऐसी कोई तकनीक विकसित नहीं थी | संचार व्यवस्था एवं यातायात के साधनों का विकास नहीं हुआ था | कुल मिलाकर वर्तमान दृष्टि से यदि देखा जाए तो उस युग में महामारी से बचाव के लिए मानव बिल्कुल  खाली हाथ रहा होगा | महामारी को जानने समझने तथा  इस पर रिसर्च करने एवं इसका सामना करने लायक उन लोगों के पास न ज्ञान विज्ञान रहा होगा और न ही अनुसंधान के लिए उपयुक्त इतने उन्नत साधन ही रहे होंगे | 

       उसयुग में  हामारी के विषय में लोगों को तो तभी पता लग पाता होगा जब किसी गाँव या किसी जनपद या किसी राज्य आदि में महामारी से संबंधित घटनाएँ फैलने लगतीहोंगी | बड़ी संख्या में लोग अचानक संक्रमित हो जाते रहे होंगे | उन पर चिकित्सा का प्रभाव बिल्कुल नहीं  पड़ने  लगता होगा,  तब महामारी की पहचान हो पाती होगी |ऐसी परिस्थिति में उस युग में महामारियाँ जब आती होंगी तो जानकारी न होने के कारण  तैयारियों के अभाव में बहुत बड़ी संख्या में लोगों की  महामारियों से मृत्यु हो जाती रही होगी | इसके अतिरिक्त उनके पास महामारी से बचाव के लिए कोई विकल्प ही नहीं रहा होगा | 

    वर्तमान समय में भी कोरोना महामारी के समय में चिकित्सावैज्ञानिकों ने अनुसंधानपूर्वक  स्वीकार किया है कि महामारी से ग्रस्त अधिकाँश गंभीर रोगियों को चिकित्सा के लिए पर्याप्त समय ही नहीं मिल पाता है |गंभीर रोगियों में से अधिकाँश का एक दो दिन ही समय पार हो पाता रहा है |मरने वाले गंभीर रोगियों में से अधिकाँश की मौतें चिकित्सालयों में आने के एक दो दिनों के अंदर ही हो जाती रही हैं |

     वर्तमानवैज्ञानिक युग में जब इतने नए नए आविष्कार हो चुके हैं हमेंशा नए नए रिसर्च चला करते हैं |अनुसंधान के लिए एक से एक उन्नत साधनों का सहयोग है | इसीलिए तो  कोरोना महामारी आने के विषय में भारत जैसे देशों को तो महीनों पहले पता लग गया था  कि चीन में कोरोना महामारी प्रारंभ हो चुकी  है आशंका थी कि भारत भी इस संक्रमण से प्रभावित हो सकता है फिर भी वैश्विक दृष्टि से देखा जाए तो लाखों लोग कोरोना महामारी की भेंट चढ़ गए |         

     यदि वर्तमान समय जब वैज्ञानिक अनुसंधान दिनों दिन उन्नति के पथ पर अग्रसर हैं |विज्ञान की दृष्टि से ऐसे विकसित  समय में यदि कोरोना महामारी ने विज्ञान को इतनी बुरी तरह बेबश किया है कि महामारी के विषय में किसी वैज्ञानिक को कुछ पता ही नहीं है | वैज्ञानिकों का समूह महामारी के जिस भी पक्ष के विषय में जो भी अनुमान या पूर्वानुमान लगा पा रहा था  वो गलत सिद्ध होता जा  रहा था | स्वाभिमानी वैज्ञानिकों को बार बार अपने बचन बदलने को विवश होना पड़ रहा था आज जो बोलते थे वो कल गलत निकल जाता था | कुल मिलाकर वैज्ञानिकों को महामारी के विभिन्न पक्षों के विषय में बार बार अपने बचन बदलने पड़े | महामारी रौंदती चली जा रही थी है | इतने विकसित विज्ञान के समय की जब यह स्थिति है तो संसाधनों की दृष्टि से देखा जाए तो उस प्राचीन युग में सहज ही कल्पना की जा सकती है | 

      ऐसी परिस्थिति में प्राचीन काल के विषय में यदि कल्पना की जाए तो तब स्थिति और अधिक ख़राब रही होगी क्योंकि उस युग में  तो आधुनिक विज्ञान का उदय भी नहीं हुआ था | वर्तमान समय की  तरह उस युग में महामारियों से सुरक्षा किस प्रकार  हो पाती रही होगी ? महामारी के बिषय में जब तक लोगों को पता लग पाता रहा होगा तब तक तो भारी संख्या में लोगों की मृत्यु हो जाती रही होगी |जिनकी मृत्यु नहीं भी होती रही होगी महामारी चिन्हित होने से पहले एक दूसरे के संपर्क में आने से संक्रमित तो वे भी हो ही जाते रहे होंगे |  काल्पनिक दृष्टि से तो प्राचीन काल में महामारियों के समय में स्थिति और अधिक ख़राब हो जाती रही होगी ,किंतु साधन न होने के कारण इतनी  बड़ीसंख्या में लोगों की मृत्यु हुई हो ऐसा कोई वर्णन प्राचीन ग्रंथों में मिलता नहीं हैं | महामारियों में कुछ लोग तो मरते ही हैं इसीलिए तो वे महामारियाँ कही जाती हैं |

                             महामारी अनुसंधान और चिंताएँ ! - FINAL 4-10-2021

__________________________________________________________________________

समय से प्रभावित होती है प्रकृति  





 'समय'की गति का ज्ञान हुए बिना मौसमविज्ञान अधूरा है !

     प्रकृति में सभी घटनाएँ समय के अनुशार घटित हो ती है किसी भी काल खंड में समय हमेंशा एक जैसा नहीं रहता है |समय ही संसार में घटित होने वाली सभी प्रकार की घटनाओं का निर्माण और समापन करता है |  संसार में केवल 'समय'' ही स्वतंत्र है जीवन हो या प्रकृति सबको समय के अनुशार ही चलना होता है हमारे द्वारा किए जाने वाले जो प्रयास समय के अनुशार नहीं किए जाते हैं उनके सफल होने में अक्सर चंद्रयान 2 की तरह कठिनाई होती ही है |समय की उपेक्षा करके किसी भी कार्य के लिए हम प्रयास तो कर सकते हैं किंतु उसके परिणाम पर अधिकार 'समय' का होता है परिणाम कैसा होगा इस बात का पूर्वानुमान उस कालखंड में चल रहे समय के अनुसार ही लगाया जा सकता है |समय की उपेक्षा करने के कारण छोटे बड़े अनेकों प्रयास असफल होते रहते हैं कई वैज्ञानिक अनुसंधान भी इसी की भेंट चढ़ गए ! 
    समय हमेंशा अपनी गति से चला करता है और जीवन में हो या प्रकृति में सभी घटनाएँ घटित होते चली जाती हैं | समय स्वतंत्र तो है किंतु स्वच्छंद नहीं है अपितु नियमबद्ध है इसीलिए उसका क्रम और समय अंतराल लगभग एक जैसा ही हमेंशा बना रहता है |हमारे कहने का अभिप्राय संपूर्ण प्रकृति ही समय के अनुशार संचालित होती देखी जा रही है |
    प्रतिदिन के सूर्योदय तथा सूर्य के अस्त होने का समय निश्चित है प्रतिवर्ष सर्दी  गर्मी  वर्षा आदि ऋतुओं का समय निश्चित है उनका क्रम निश्चित है|समय का पालन संपूर्ण प्रकृति करती है !संपूर्ण संसार में सब कुछ एक जैसा रहता है केवल समय के बदलने से सबकुछ बदलता जाता है |
    सर्दी का समय आते ही भयंकर सर्दी पड़ने लगती है और गर्मी का समय आते ही भीषण गर्मी पड़ने लगती है नदियाँ कुएँ तालाब आदि सब सूख जाते हैं | वर्षा का समय आते ही वर्षा होने लगती है सूखे हुए नदियाँ कुएँ तालाब आदि फिर भर जाते हैं | जाने कहाँ कहाँ से आकर कितने बादल सारे आकाश मंडल को घेर लेते हैं इन्हें कोई निमंत्रण देने तो नहीं जाता !आकाश बादलों से  भर जाता है !समय बीतते ही सारे बादल न जाने कहाँ चले जाते हैं आकाश फिर साफ हो जाता है |
    कुल मिलाकर प्रकृति में होने वाले ऐसे सभी प्रकार के परिवर्तनों में केवल समय बदलता जा रहा होता है उसके साथ साथ प्रकृति में बदलाव होता जाता है |
   इसप्रकार से जिस प्रकृति पर समय का इतना बड़ा प्रभाव देखा जाता है वर्षा आँधी तूफ़ान आदि प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने के लिए यदि उसी समय सिद्धांत का अनुपालन करते हुए गणितीय प्रक्रिया के द्वारा मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाया जाए तो अधिक सही एवं सटीक होने की संभावना होती है |





Comments

Popular posts from this blog

मुश्किल है मौसम की सटीक भविष्यवाणी

28 June 2013-मौसम का सही अनुमान घटा सकता है नुकसान !उत्तराखंड में आई आपदा के बाद यह जरूरी हो चला है कि मौसम का सटीक see ... https://hindi.business-standard.com/storypage.php?autono=74073&fbclid=IwAR1lUVXZ5Se2pF1PmlosxjRZPMcLF15g3MwptGf27pwjM_RtIOCeUVsgJXo 09 Aug 2015 - मौसम विभाग ने कहा था सूखा पड़ेगा, अब बारिश बनी मुसीबत !see more... https://www.naidunia.com/madhya-pradesh/indore-was-the-drought-the-rain-made-trouble-now-443720? fbclid=IwAR1M27RhN7beIPbj9rUYDc3IekccbHWF0bInssXxtdnrivIBiZqGAQ8Lciw 11 Apr 2019- मानसून को लेकर आए स्काईमेट के इस पहले पूर्वानुमान पर बहुत अधिक भरोसा नहीं किया जा सकता। स्काईमेट पिछले छह वर्षों मानसून का पूर्वानुमान लगाता रहा है, लेकिन उसका अनुमान सही साबित नहीं होता।see... https://www.drishtiias.com/hindi/daily-updates/daily-news-editorials/problems-in-monsoon-prediction   11-10-2019-    मौसम विभाग को दगा देता रहा मौसम , अधिकांश भविष्यवाणी गलत साबित हुई see .... https://www.bhaskarhindi.com/city/news/meteorological-department-weather-m...

अनुमान लिंक -1008

 Rit-see ....  https://bharatjagrana.blogspot.com/2022/06/rit.html   __________________________________________________  समाज के अनुत्तरित प्रश्न ! भूमिका : https://snvajpayee.blogspot.com/2022/01/blog-post_25.html प्रारंभिक स्वास्थ्य  चेतावनी पूर्व प्रणाली का क्या होगा ? 22 दिसंबर 2020 : पृथ्वी   विज्ञान मंत्रालय   (MoES) एक अद्वितीय   प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली   विकसित कर रहा है जिससे देश में बीमारी के प्रकोप की संभावना का अनुमान लगाया जा सकता है। भारत का  मौसम विज्ञान विभाग   (IMD) भी विकास अध्ययन और प्रक्रिया में शामिल है।see... https://www-drishtiias-com.translate.goog/daily-updates/daily-news-analysis/early-health-warning-system?_x_tr_sl=en&_x_tr_tl=hi&_x_tr_hl=hi&_x_tr_pto=sc    1.  महामारी प्राकृतिक है या मनुष्यकृत !    2.  मौसम और कोरोना    3. तापमान बढ़ने का कोरोना पूर्वानुमान !    4. तापमान बढ़ने से घातक हुआ कोरोना !    5. सर्दी बढ़ने...

मुश्किल है कोरोना की भविष्यवाणी !-1008

  09 May 2020- कोरोना का जवाब विज्ञान है नौटंकीनहीं, महामारी पर गलत साबित हुई केंद्र सरकार see... https://caravanmagazine.in/health/surge-in-covid-cases-proves-centre-wrong-pandemic-response-marked-by-theatrics-not-science-hindi 06 Jun 2020 -गणितीय मॉडल विश्लेषण में खुलासा, मध्य सितंबर के आसपास भारत में कोरोना महामारी हो जाएगी खत्म see...  https://www.amarujala.com/india-news/covid-19-pandemic-may-be-over-in-india-around-mid-september-claims-mathematical-model-based-analysis 18 Jun 2020 - कोविड-19 के लिए केवल गणितीय मॉडल पर नहीं रह सकते निर्भर : Iकोविड-19 महामारी की गंभीरता का अंदाजा लगाने के लिए अपनाए जा रहे बहुत से गणितीय मॉडल भरोसेमंद नहीं हैं।इस तरह के अनुमान के आधार पर नीतिगत फैसले लेना या आगे की योजनाएं बनाना बहुत खतरनाक हो सकता है। इसलिए इनसे बचना चाहिए।यह लेख राजेश भाटिया ने लिखा है। वह डब्ल्यूएचओ के साउथ-ईस्ट एशिया रीजनल ऑफिस में संचारी रोग विभाग के डायरेक्टर रह चुके हैं।इसकी सह लेखिका आइसीएमआर-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी की डायरेक्टर प्रिया अब्राहम हैं। लेख में कह...