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समयविज्ञान और ऋषिपरंपरा !-Book 9-1-2023

                                          

                                                           समय विज्ञान 

    प्रकृति और जीवन दोनों साथ साथ चलते हैं |प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों से जीवन प्रभावित होता है |प्रकृति में गर्मी सर्दी अधिक होती है तो उसका प्रभाव शरीरों पर भी पड़ता है | कई बार शरीर सर्दी गर्मी के उस वेग को नहीं सह पाते हैं इसलिए रोगी होते देखे जाते हैं | प्रकृति का प्रभाव शरीरों पर न पड़ता होता तब तो ऐसा होते नहीं देखा जाता | 

    सर्दी गर्मी का प्रभाव शरीर पर पड़ने के चार कारण होते हैं जो मनुष्यों को रोगी बना सकते हैं | पहला कारण सर्दी और गरमी से संबंधित ऋतुएँ होती हैं जिनके सर्द गर्म प्रभाव  से मनुष्य जीवन को प्रभावित होता है| ऋतुओं के आने और जाने का कारण समय का संचार होता है समय के क्रमिक बदलाव से ऋतुओं का जन्म होता है | ये प्रतिवर्ष अपने अपने समय पर आती और समय से चली जाती हैं | इनका सबकुछ  प्रायः  सुनिश्चित होता है|जो  शरीरों के सहने लायक होता है |  

    कई बार समय में होने वाले आकस्मिक परिवर्तनों के प्रभाव से ऋतुओं के स्वभाव से अलग तापमान में कुछ आकस्मिक परिवर्तन होते हैं जिनसे ऋतुओं का संतुलन बिगड़ता है उससे प्रकृति प्रभावित होती है|जिससे शरीर रोगी होते हैं | ऐसा कब होने लगेगा ! प्राकृतिक संतुलन किस सीमा तक बदलेगा !यह कितने अंतराल में होने लगेगा !ये किस वर्ष बदलेगा और किस वर्ष नहीं बदलेगा आदि बातों में कुछ भी निश्चित नहीं होता है | ऐसा कभी भी होने लग सकता है |कितना भी कम या अधिक हो सकता है |उसके प्रभाव से उसी प्रकार के रोग या महारोग आदि होने लग सकते हैं |    

   सभीप्रकार के रोगों ,महारोगों (महामारियों) के पैदा होने में प्राकृतिक परिवर्तन बड़े कारण होते हैं |ऐसे ही  प्रकृति में होने वाले सभीप्रकार के बदलावों में  समय  की प्रमुख भूमिका होती है |यदि हम प्रकृति में होने वाले उन बदलावों को अच्छी प्रकार से समझना चाहते हैं या उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना चाहते हैं तो इसके लिए समय के संचार को ही समझना पड़ेगा ! इसके अतिरिक्त प्राकृतिक बदलावों को समझने का या रोगों ,महारोगों (महामारियों) आदि के पैदा होने के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए और कोई दूसरा वैज्ञानिक विकल्प नहीं है |  

     समय के संचार को समझने के लिए भारत के परंपरागत प्राचीनविज्ञान में गणितीय पद्धति है जिसके आधार पर सूर्य और चंद्रमा में घटित होने वाले ग्रहणों की गणना हजारों वर्ष पहले कर ली जाती रही है और वे बिल्कुल सही समय पर घटित होते रहे हैं| इससे यह प्रमाणित भी हो जाता है कि गणितविज्ञान के द्वारा समय के संचार को ठीक ठीक प्रकार से न केवल समझा जा सकता है अपितु उससे संबंधित अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए जा सकते हैं | इसके आधार पर  प्रकृति में होने वाले सभीप्रकार के परिवर्तनों (बदलावों ) के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सकता है| उसी के आधार सभीप्रकार के रोगों ,महारोगों (महामारियों) आदि के पैदा होने एवं घटने बढ़ने के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सकता है | 

                                  समयविज्ञान और प्राकृतिकघटनाएँ !

      वर्षा बाढ़ जैसी घटनाएँ प्रायः वर्षाऋतु में घटित होती हैं !आँधी तूफ़ान जैसी घटनाएँ प्रायः गर्मी की ऋतु में घटित होती हैं |कोहरा पाला जैसी घटनाएँ प्रायः वर्षा ऋतु में ही घटित होती हैं | ऐसी बहुत सारी प्राकृतिक घटनाओं का संबंध ऋतुओं से जुड़ा हुआ है | ऋतुएँ समय का ही तो एक लघुखंड हैं | प्रत्येक ऋतु का समय आते ही ऋतुएँ अपना अपना प्रभाव दिखाने लगती हैं |उसी समय ऋतुओं से संबंधित घटनाएँ घटित होने लगती हैं | इनका समय क्रम स्वभाव प्रभाव आदि सब कुछ सुनिश्चित होता है |

     इनसे अलग हटकर बहुत सारी ऐसी प्राकृतिकघटनाएँ होती हैं जो कभी भी घटित होती देखी जाती हैं| बादल कभी भी आते और बरसने लग जाते हैं जबकि उस समय वर्षा ऋतु का समय नहीं होता है फिर भी वर्षा होते देखी जा रही होती है | ऐसे ही आँधी तूफ़ान कभी भी घटित होने लगते हैं | इनका समय और क्रम ऋतुओं की तरह से निश्चित नहीं होता है | ये तो कभी भी घटित होते देखी जाती हैं |
     ऐसी घटनाएँ देखने में भले ही अनिश्चित या अचानक घटित होती सी लगें किंतु ये अनिश्चित होती नहीं  हैं और न ही अचानक घटित हो रही होती हैं अपितु आकस्मिक सी घटित होती दिखने वाली वाली ऐसी घटनाओं के घटित होने का समय भी निश्चित होता है जिसे गणित विज्ञान के द्वारा ही समझा जा सकता है और उसी के द्वारा ही ऐसी घटनाओं के घटित होने के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सकता है | 

     इसीप्रकार से भूकंप बज्रपात उल्कापात जैसी घटनाएँ  भी समय से ही संबंधित होती हैं | ग्लेशियरों का बनना बिगड़ना  समय से ही संबंधित होता है |पृथ्वी में या पृथ्वी पर तथा समुद्रों में, वायुमंडल में या अंतरिक्ष में जितनी भी प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती हैं वे सभी अपने अपने समय पर ही घटित हो रही होती हैं |समय के संचार को न समझ पाने के कारण वे अचानक घटित होती सी लग रही होती हैं | 

     जिस प्रकार से किसी स्थान पर आपको बुलाया गया हो और किसी दूसरे को भी बुलाया गया हो वो सदस्य भी वहाँ आकर उपस्थित हो जाए | ऐसी स्थिति में उसका  आना आपको भले ही आकस्मिक लगे जबकि वो अपने निर्धारित समय पर ही पहुँचा होता है | उसका आगमन आपको केवल इसलिए आकस्मिक लग रहा होता है क्योंकि आपको ये पता नहीं है कि उस समय उसे भी बुलाया गया है |उसको भी बुलाए जाने के विषय में आपको
जैसे ही पता लग जाएगा तो आपका यह भ्रम टूट जाएगा कि वह अचानक आया है | 

      इसीप्रकार से सभीप्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ आपदाएँ तभी तक अचानक घटित हुई सी लगती हैं जब तक  उनके विषय में हमें पता नहीं होता है उनके विषय में पता लगते ही ऐसा भ्रम होना बंद हो जाएगा !  

    ऐसी घटनाओं के विषय में भी समय संचार के आधार पर सही सही अनुमान  पूर्वानुमान आदि गणितविज्ञान के द्वारा लगाया जा सकता है |    

                                                      समयविज्ञान और पेड़ पौधे ! 

     जिसप्रकार से अपनी अपनी ऋतुओं के आगमन पर पेड़ पौधों में फलफूल लगते देखे जाते हैं |समय आने पर ही वृक्षों में पतझड़ होते देखा जाता है |प्रायः सभी प्रकार के पेड़ों पौधों में इसप्रकार के ऋतुनियमों का पालन होते देखा जाता है | ये सुनिश्चित घटनाएँ हैं इसलिए ऐसा होते हमेंशा ही देखा जाता है | इनके विषय में सबको आगे से आगे पता रहता है |

     इनसे अलग हटकर कुछ पेड़ पौधे ऐसे भी होते हैं जिनमें प्राकृतिकनियमों का पालन कभी कभी इसप्रकार से होते नहीं देखा जाता है | इसीलिए उनकी अपनी ऋतु आने पर भी उन वृक्षों में फूल फल नहीं फूलते फलते हैं |कुछ वृक्ष ऐसे भी होते हैं जो कभी कभी अपनी ऋतु न होने पर भी फूलते फलते देखे जाते हैं | ये उन पेड़ पौधों के अपने अपने निजी कारण होते हैं |जो उनके जन्म के समय में सम्मिलित हुए समयजनित गुण दोषों के कारण इसप्रकार की परिस्थिति पैदा हो जाती है |

     उन पेड़ पौधों में समय के कारण इसप्रकार की घटनाएँ  घटित हो रही होती हैं |पेड़ पौधों में घटित होने वाली  ऐसी सभीप्रकार की घटनाओं को ठीक ठीकप्रकार से समझने एवं उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए गणित विज्ञान ही एक मात्र विकल्प है |   

                                               समयविज्ञान और मनुष्यजीवन !  

    मनुष्य का जीवन भी पूरी तरह से समय पर आश्रित होता है | यदि समय अच्छा होता है तो नदियों तालाबों में जल स्वच्छ होने लगता है | वायुमंडल प्रदूषण मुक्त होता है वृक्ष बनस्पतियों समेत समस्त पेड़ पौधे शाक सब्जियाँ फूल फल फसलें एवं समस्त खाद्यपदार्थ विकार रहित होते हैं | पशु पक्षी रोग रहित होकर पूरी तरह  स्वस्थ  होते हैं | ऐसे समय में पशुओं से प्राप्त होने वाला दूध विकाररहित एवं पुष्टि प्रदान करने वाला होता है |ऐसे समय में मनुष्यों का जीवन स्वस्थ एवं सामाजिक रूप से  समरसता संपन्न होता है | मनुष्यों का चिंतन पूरी तरह से सात्विक हो जाता है |समस्त समाज का चिंतन परस्पर सहयोगकारी होता है | लोग अपने साथ साथ दूसरों के भी हितसाधन के लिए कार्य करते देखे जाते हैं |   
   इसके बिपरीत बुरा समय आते ही सारा वातावरण बिल्कुल बिपरीत होने लगता है जहाँ एक ओर वृक्ष बनस्पतियाँ शाक सब्जियाँ आनाज आदि सभी पदार्थ स्वगुणों से विहीन होने लगते हैं सभी हितकर पदार्थ अपनी अपनी  क्षमता खोने लगते हैं | नदियों तालाबों के जलों में बिकार आने लगते हैं |
    बुरा समय आते ही समस्त चराचर प्रकृति के स्वभाव प्रभाव बनावट रंग रूप स्वाद आदि में कुछ ऐसे सूक्ष्म और स्थूल दोनों ही प्रकार के बदलाव आने लगते हैं ,जिन्हें देख समझकर उनका अनुभव करके उस प्रकार के  परिवर्तनों को पहचाना जा सकता है | उनके आधार पर कुछ संभावित घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं | इन घटनाओं में प्राकृतिक और मनुष्यकृत दोनों ही प्रकार की घटनाएँ घटित होने की संभावना हो  सकती है |
     बुरे समय के प्रभाव से  सामाजिक तनाव बढ़ने लगता है,प्राकृतिक या मनुष्यकृत वातावरण बिल्कुल बिगड़ने लगता है |भूकंप सुनामी बज्रपात चक्रवात सूखा बाढ़ जैसे प्राकृतिक उपद्रव घटित होने लगते हैं | शरीरों में सामूहिक रूप से तरह तरह के रोग महारोग अर्थात महामारियाँ आदि जन्म लेने लगते हैं| 
   उसी बुरे समय के प्रभाव से लोगों,समुदायों संप्रदायों तथा देशों में आपसी तनाव बढ़ने लगता है |परस्पर सहनशीलता समाप्त होने लगती है |एक से एक आत्मीय लोग स्वजनों को भी शंका की दृष्टि से देखने लगते हैं | मनुष्यों पशुओं पक्षियों समेत समस्त चराचर प्रकृति को एक दूसरे के प्रति हिंसक होते देखा जाता  है | 
                                                    सामूहिकसमय  और हिसंक घटनाएँ और मृत्यु ! 
   सामूहिक समय में सामूहिक रूप से अच्छा या बुरा समय आने पर चराचर प्रकृति ,समाज और शासन प्रशासन में अच्छी या बुरी घटनाएँ घटित होती हैं उनसे मनुष्य प्रभावित होता है |ग्रीष्मऋतु से संबंधित समय आने पर तापमान तेजी से बढ़ने लगता है जिससे लोग गरमी संबंधी रोगों की चपेट में आ सकते हैं |
    भूकंप बाढ़ सुनामी आँधीतूफ़ान एवं बज्रपात जैसी प्राकृतिक घटनाओं में बहुत लोगों की मृत्यु  हो जाती है | इसमें विशेष बिचार करने योग्य बात यह है कि बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु होनी होती है तब ऐसी घटनाएँ घटित होती हैं या जब ऐसी घटनाएँ घटित होती हैं तब लोगों की मृत्यु होती है | कुल मिलाकर लोगों की मृत्यु होने और ऐसी घटनाएँ घटित होने का आपस में कोई संबंध होता भी है या नहीं |कहीं ऐसा तो नहीं है कि समय के प्रवाहक्रम में जब जैसी घटनाएँ घटित होनी होती हैं तब घटित होती हैं |ऐसे ही जब जिस व्यक्ति की मृत्यु होनी होती है तब होती है | कई बार ऐसी दोनों प्रकारी की घटनाएँ एक साथ घटित होने लगती हैं तब भ्रम वश ऐसा लगता है कि इस समय हुई मौतों के लिए प्राकृतिक घटनाएँ जिम्मेदार हैं जबकि ऐसा है नहीं ! यदि भूकंप बाढ़ सुनामी आँधीतूफ़ान एवं बज्रपात जैसी प्राकृतिक घटनाएँ यदि किसी को मार देने में सक्षम होतीं, तब तो वे उन्हें भी मार सकती थीं जो लोग ऐसी प्राकृतिक आपदाओं में पीड़ित होकर भी बिल्कुल सुरक्षित बच जाया करते हैं |जिन्हें खरोंच भी नहीं लगती ! इसलिए ऐसी सभी घटनाओं का किसी की मृत्यु होने न होने से कोई संबंध नहीं होता | 
     ऐसा इसलिए भी सोचना पड़ता है क्योंकि जिनके चोट चभेट लगती है उन सबकी भी मृत्यु होते नहीं देखी जाती है |दूसरी ओर चोट चभेट लगने जैसे प्रत्यक्ष कारण बने बिना भी बहुत लोगों की मृत्यु होते देखी जाती है | कोरोना महामारी के समय में ही लें तो कोरोना महामारी से संक्रमित हुए बिना भी बहुत लोगों की मृत्यु इसी समय में हुई है |उन लोगों की मृत्यु के लिए बहाने अलग अलग बने हैं | कुछ देश आपस में लड़ गए उन युद्धों में सम्मिलित रहे बहुत लोग मृत्यु को प्राप्त हो गए हैं | कुछ देशोंमें फैले हिंसक आंदोलनों, जाति एवं संप्रदायगत संघर्षों में बहुत लोग मृत्यु को प्राप्त हुए हैं |  कुछ और प्राकृतिक या मनुष्यकृत ऐसी घटनाएँ घटित हुईं जिनमें बहुत लोग मृत्यु को प्राप्त हुए हैं | 
   कुछ लोगों की मृत्यु का समय वही सुनिश्चित था जब वे महामारी से संक्रमित चल रहे थे | संक्रमित हुए ही मृत्यु को प्राप्त हुए हैं | इसलिए उनकी मृत्यु उसी समय हुई | यदि वे संक्रमित न भी हुए होते तो भी उनकी मृत्यु उसी समय होनी ही थी | कुछ संक्रमितों को चिकित्सकीय सुविधाओं का लाभ नहीं मिला उनकी मृत्यु हुई तो लगा कि यदि उन्हें चिकित्सकीय लाभ मिले होते तो वे शायद सुरक्षित बच जाते !किंतु ऐसे भी बहुत लोगों की मृत्यु हुई है जो सघन चिकित्सकाल में सुयोग्यचिकित्सकों की देखरेख में वेंटीलेटरों पर पड़े पड़े मृत्यु को प्राप्त हुए | कुछ लोगों ने वैक्सीन नहीं ली वे मृत्यु को प्राप्त हुए तो उन्हें लगा कि उन्होंने वैक्सीन ली होती तो शायद ऐसा नहीं होता किंतु जिन लोगों ने वैक्सीन ली थी उनमें भी बहुत लोग मृत्यु को प्राप्त हुए | महामारी काल में जिन लोगों ने कोविड नियमों का पालन नहीं किया था यदि उनमें से कुछ लोग मृत्यु को प्राप्त हुए तो उनकी भी संख्या कम नहीं थी जो कोविड नियमों का पालन करते हुए भी मृत्यु को प्राप्त हुए ! ऐसे भी बहुत लोग  प्राप्त हुए जिनकी मृत्यु के लिए जिम्मेदार कोई प्रत्यक्ष कारण दिखाई ही नहीं  पड़ा ! कुछ लोग जिम में कसरत करते करते मृत्यु को प्राप्त हुए तो कुछ लोग चलते चलते गिरे और मृत्यु हो गई ! कुछ लोग उठते बैठते नाचते गाते खाते पीते  प्राप्त हो गए  | बताया गया कि उनका हृदय धोखा दे गया था !
     इसका मतलब है कि प्रत्येक व्यक्ति की मृत्यु स्वतंत्र होती है वो प्रत्येक व्यक्ति के अपने अपने समय से निबद्ध होती है जो उसके  समय ही निश्चित हो जाती है और अपनी समय आते ही घटित हो जाती है | वो किसी प्रत्यक्ष घटना के घटित होने की प्रतीक्षा नहीं करती है और न ही वो ऐसी किसी घटना के आधीन ही होती है |जिस प्रकार से  प्रत्येक व्यक्ति की मृत्यु का समय निश्चित होता है उसी प्रकार से प्रत्येक घटना के घटित होने का समय सुनिश्चित होता है | ऐसी स्थिति में  घटनाएँ अपने समय से घटित होती हैं और मौतें अपने समय से हो रही होती हैं | कई बार कुछ घटनाओं और कुछ मौतों का समय एक ही होता है इसलिए वे दोनों एक साथ घटित होते देखी जाती हैं | ऐसे समय में उन मौतों के लिए उन्हीं घटनाओं को जिम्मेदार मान लिया जाता है | 
    जिस प्रकार से बहुत लोगों की मृत्यु का समय उनके सोते जागते हँसते खेलते या विश्राम करते  समय आ जाता है तो वे उसी समय मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं इसी प्रकार से बहुत लोगों की मृत्यु का जब समय आता है उसीसमय प्रकृति क्रम से भूकंप आँधी तूफ़ान बज्रपात चक्रवात या महामारी जैसी घटनाएँ घटित हो रही होती हैं | ऐसे समय में लोगों की मृत्यु तो उनकी आयु पूरी होने से हो रही होती है | उनकी मृत्यु के लिए जिम्मेदार कोई प्रत्यक्ष कारण न दिखाई पड़ने के कारण ऐसी प्राकृतिक आपदाओं को ही उनकी मृत्यु के लिए जिम्मेदार मान लिया जाता है | 
    वस्तुतः भूकंप बाढ़ सुनामी आँधीतूफ़ान एवं बज्रपात जैसी हिंसक घटनाएँ बुरे समय के प्रभाव से घटित होती हैं उनके घटित होने का उद्देश्य जनहानि करना नहीं होता है | वे तो समयक्रम से प्रेरित होकर केवल घटित हो रही होती हैं |वे भी समय के बश में  होने के कारण घटित हो रही होती हैं | वे घटनाएँ परबश होने के कारण घटित होने से अपने को रोक नहीं सकती हैं | 
    जिसप्रकार से अपने सहज सामान्य रास्ते पर चलता जाता  हुआ कोई व्यक्ति यदि अचानक  फिसल कर गिर जाए तो उस गिरने में उसकी सहमति नहीं होती है और न ही वहाँ जाकर गिरना उसका उद्देश्य ही होता है यहाँ तक कि अपने को गिरने से रोकने के लिए वह हर संभव प्रयत्न भी करता है फिर भी गिर जाता है | उसके गिरने पर उसके नीचे दबकर कुछ जीव जंतु मर जाएँ तो इसका अर्थ यह कतई नहीं हो सकता है कि वह व्यक्ति उन्हें मारने के लिए ही गिरा था | उस व्यक्ति का गिरना और उससे दबकर  कुछ जीव जंतुओं का मर जाना ये दोनों बिल्कुल अलग घटनाएँ घटित हो रही होती हैं |
    समयविज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो उस व्यक्ति के गिरने की और उससे दबकर कुछ जीव जंतुओं के मरने की पटकथा जब जिसके द्वारा जहाँ कहीं भी लिखी गई होगी वहाँ न तो गिरने वाला वह व्यक्ति रहा  होगा और न ही वे मृत हुए वे जीव जंतु ! उस व्यक्ति के गिरने का जो समय था उस समय वह व्यक्ति गिरा, उसी समय अपनी अपनी आयु पूरी कर चुके उन जीव जंतुओं की मृत्यु का समय आ पहुँचा था ! इसलिए उसी समय उनकी जीवन लीला पूरी हुई ! ऐसे ही प्राकृतिक घटनाओं के घटित होते समय ही कुछ लोगों की मृत्यु का समय भी आ जाने से उनकी मृत्यु भी हो जाती है | ये दोनों एक दूसरे से बिल्कुल अलग अलग घटनाएँ हैं |
   इसमें बिचार करने वाली बात यह है कि उन जीव जंतुओं की मृत्यु तब हुई जब वो व्यक्ति गिरा ,किंतु उनकी मृत्यु का कारण उस व्यक्ति का गिरना ही था यह कैसे मान लिया जाए ! क्योंकि हर किसी की मृत्यु कोई चोट लगने से ही होती है या उसके लिए कोई न कोई कारण बनना आवश्यक ही होगा, ऐसा कोई सिद्धांत तो नहीं है | बहुत लोगों की आयु पूरी होते समय वे बैठे होते हैं, पूजा कर रहे होते हैं, भोजन कर रहे होते हैं ,सो या जाग रहे होते हैं, हँस खेलते रहे होते हैं, नाच कूद रहे होते हैं या  विश्राम कर रहे होते हैं | वैसे ही शरीर छूट जाता है किसी को पता ही नहीं चल पाता है कि उनकी मृत्यु का कारण क्या बना है !
     कई बार जिस प्लेन से कुछ लोग जा रहे होते हैं उनमें से किसी की मृत्यु का समय समीप भले न आ पाया हो किंतु पायलट की मृत्यु का समय आ गया हो |ऐसे में यदि बीच समुद्र में विमानचालक  की यदि मृत्यु हो ही जाती है तो विमान का देर तक उड़ पाना संभव नहीं होता है | विमान गिरने के बाद उन सभी की मृत्यु होना निश्चित होता है | 
 कुल मिलाकर किसी की मृत्यु किसी घटना के आधीन नहीं होती है अपितु उसका अपना समय होता है | जिस प्रकार से किसी वस्तु के निर्माण के साथ ही उसके सुरक्षित रहने की एक समयसीमा (एक्सपायरी) होती है | उसी प्रकार से प्रत्येक वस्तु के निर्माण के साथ ही उसके नष्ट होने की कोई न कोई समय सीमा होती है | जिसका ज्ञान उसके निर्माण समय के आधार पर ही किया जा सकता है |ग्लेशियर पिघलते हैं ये उनके बनने के समय ही निश्चित हो गया होता है इसीलिए वे अपने अपने समय से पिघल रहे होते हैं ऐसे अन्य घटनाओं या परिस्थितियों के विषय में समझा जाना चाहिए |जो संबंध या रिश्ते जिसके साथ जिस समय बनते हैं उनके टूटने का समय भी उसी समय निर्धारित हो जाता है उसी समय वे टूट जाते हैं हैं | वे टूटे अपने समय से हैं किंतु लोग उनके लिए न जाने कितनी परिस्थितियों या बातों व्यवहारों को जिम्मेदार ठहरा लिया करते हैं उसी में घुटा करते हैं या एक दूसरे को दोष दिया करते हैं |
   कोरोना महामारी के समय भी यही हुआ इसका पैदा होने का समय किसी को पता नहीं था इसीलिए इसके समाप्त होने के समय के विषय में कोई अंदाजा अनुमान या पूर्वानुमान आदि लगाना संभव भी न था| लगाया भी नहीं जा सका |     
 
                                             व्यक्तिगत समय!
     
     व्यक्तिगत समय से अभिप्राय उस समय से होता है जो किसी एक ही व्यक्ति से संबंधित होता है |यह किसी  एक व्यक्ति को रोगी सुखी दुखी सफल असफल आदि कुछ भी बना सकता है |व्यक्तिगत समय यदि किसी व्यक्ति का अच्छा चल रहा होता है तो वो व्यक्ति स्वस्थ सफल और प्रसन्न होता है | उस व्यक्ति के बहुत सारे लोग मित्र रिस्तेदार आदि सगे संबंधी बन  जाते हैं | हर ओर से सफलता और प्रसन्नता के संदेश मिलते देखे जाते हैं |ऐसे लोग जो खाने पहनने लगें वो बहुत लोगों की पसंद बन जाता है | जो बोलने लगते हैं वो बहुत लोगों को अच्छा लगने लगता है | अच्छे समय वाले लोग सभी के लिए  प्रिय हो जाते हैं |ऐसे लोग किसी संगठन या राजनैतिक दल में हों या किसी संस्था में हों या सरकार में हों या चुनाव में खड़े हों तो बहुत लोगों की पहली पसंद बन जाने के कारण चुनाव जीत जाते हैं | ऐसे लोग कथा बाचक,महात्मा आदि हों तो कितने भी अयोग्य हों प्रवचन में कोई क्षमता हो न हो फिर भी इन्हें चाहने वाले बहुत लोग हो जाते हैं |ये प्रयत्न से अधिक परिणाम प्राप्त करते देखे जाते हैं | 
      ऐसे लोग शिक्षा में विशेष सफल  इसलिए  हो जाते हैं क्योंकि अन्य लोगों की अपेक्षा इनका मन पढ़ने में अधिक लगता है | दूसरी बात ऐसे विद्यार्थियों ने जितना जो कुछ पढ़ा होता है वह यदि संपूर्ण पाठ्यक्रम का आधा भी हो तो भी प्रश्नपत्र में जो प्रश्न पूछे जाते हैं वे उसी में से आ जाते हैं जितना इन्होंने पढ़ा होता है |परीक्षक भी कॉपी जॉंचते समय इनके प्रति अधिक उदारता बरतता है | ऐसे लोग किसी सर्विस के लिए साक्षात्कार देने जाएँ तो भी इन्होंने जितना जो कुछ पढ़ा होता है प्रश्न  उसी से संबंधित पूछे जाते हैं |
      ऐसे चिकित्सक लोग जिस रोगी की चिकित्सा करते हैं वे रोगी  शीघ्र स्वस्थ हो जाते हैं |ये अपने कर्तव्य का निर्वाह इतने अच्छे ढंग से कर लेते हैं कि जिसकी मदद करने में लग  जाते हैं उसकी मदद तो कर ही देते हैं साथ ही उनका मन भी जीत लेते हैं |जिन रोगियों का अपना समय अच्छा नहीं चल रहा होता है ऐसे रोगी अच्छे समय वाले चिकित्सकों के पास पहुँच ही नहीं पाते हैं |यदि किसी प्रकार से पहुँच भी गए तो भी तो कोई विघ्न ऐसा पड़ जाता है कि वे उनकी चिकित्सा का लाभ नहीं ले पाते हैं |
      रोगियों का अपना व्यक्तिगत समय ख़राब चल रहा होता है वे ऐसे लोगों पर विश्वास ही नहीं कर पाते हैं | यदि  जाते भी हैं तो कोई न कोई ऐसा व्यवधान पड़ जाता है कि उनसे चिकित्सा नहीं करवा पाते हैं |ऐसे ही जिस व्यक्ति को कोई मुकदमा हारना ही होता है वो ऐसे वकील के पास पहुँच ही नहीं पाता है जिसका अपना समय अच्छा चल रहा होता है |
 
    ऐसे ही अच्छे समय वाले वकीलों की योग्यता का लाभ भी वही लोग ले सकते हैं जिनका अपना समय अच्छा हल रहा होता है | जिन वादी प्रतिवादियों का अपना समय अच्छा नहीं चल रहा होता है वे उन योग्य  वकीलों की सेवा ला लाभ नहीं ले पाते हैं | कोई विघ्न पड़ता है और वे भटक जाते हैं |ऐसा सभी क्षेत्रों में समझा जाना चाहिए |  
     कई लोगों का बुरा समय आता है इसलिए उन्हें दंड मिलना होता है | बुरे समय के  प्रभाव से वे कोई अपराध कर बैठते हैं उसके परिणाम स्वरूप वे तब तक के लिए दंडित कर दिए जाते हैं जब तक कि उनका बुरा समय चलने को होता है | अच्छा समय आते ही वे  आरोप मुक्त होकर कैद से छूट जाते हैं |

      वर्तमान समय में सामाजिक पारिवारिक दाम्पत्यिक तथा मित्रता संबंधी संबंध बिगड़ते जा रहे हैं |इससे समाज बिखर रहा है परिवार टूट रहे हैं | प्रत्येक व्यक्ति को एक दूसरे के विषय में यह शिकायत है कि हम जो कहते हैं उस बात को वो मानता नहीं है | इसलिए वे उसे दोषी मान कर संबंध तोड़ लिया करते हैं | जो गलत है |  

     इसमें बसे बड़ा कारण यह है कि जो जिसे अपनी बात मनवाना चाहता है वो उसकी बात तभी मान सकता है जब उन दोनों का समय एक जैसा चल रहा होता है | यदि उन दोनों का समय बुरा चल रहा होता है तो वे दोनों एक दूसरे की बुरी बातों से सहमत हो सकते हैं अच्छी बातों से नहीं | यदि दोनोंका समय अच्छा चल रहा होता है तो दोनों एक दूसरे की अच्छी बातों से सहमत हो सकते हैं बुरी बातों से नहीं | बुरे समय से पीड़ित किसी व्यक्ति को यदि कोई अच्छी बात समझाने के लिए प्रयत्न किया जाए तो वो तब तक नहीं समझेगा जब तक उसका अपना बुरा समय चलता रहेगा | ऐसे लोगों को कोई बात समझाने के लिए उनका अच्छा  समय आने का इंतजार करना पड़ेगा ! इसके बाद अच्छा समय आते ही उसे वह बात समझ में आ जाएगी |अच्छा समय आने तक उस संबंध को धैर्य पूर्वक सँभालकर रखना होगा | जिनमें इतना धैर्य नहीं होता है वो संबंध बिगाड़ लिया करते हैं वैवाहिक जीवन में तलाक ले लिया करते हैं | 

     कई बार समझाने वाले का अपना ही बुरा समय चल रहा होता है | ऐसे समय में वह जो सोच या समझ रहा होता है वह हितकर नहीं होता है |जिसका उसे स्वयं नुक्सान उठाना पड़ तहा होता है इसके बाद भी वह बड़े बुजुर्ग  होने  के नाते दूसरे को समझाए जा रहा होता है जबकि उस समझ से उसका भी नुक्सान हो सकता है जिसे वह समझा रहा होता है |ऐसी परिस्थिति में उसे यह हठ करना ठीक नहीं है कि उसकी बात मानी ही जानी चाहिए |

   इसीलिए  प्राचीन काल में लोग शास्त्र अध्ययन,बड़े बूढ़ों की संगति एवं महापुरुषों के सत्संग से सदाचरण आदि का इतना अभ्यास किया करते थे कि यदि उनका बुरा समय समय आवे तो भी उनकी रूचि राय पसंद आदि बुरे बिचारों से प्रभावित न हो इससे बुरा समय आने पर उनका अपना नुक्सान तो होता था किंतु वे अपनी वाणी बिचारों आदि का वजन बनाए एवं बचाए रखते थे |

     व्यापारिक कार्यों में भी बड़े धैर्य की आवश्यकता होती है कोई सफल या असफल व्यक्ति किसी को कुछ समझाना चाहता है वो उसे पसंद तभी आता है जब वो उसकी अपनी सोच के अनुरूप होता है|उसकी  उस प्रकार की सोच तभी बनती है जब उसका अपना उस प्रकार का समय चल रहा होता है | 

     इसके दो कारण होते हैं यदि उसका समय हमसे अच्छा चल रहा होता है   तो उसे हमारे बिचार पसंद ही नहीं आते हैं | यदि बुरा चल  रहा होता है तो उसे हमारे बिचारों में कोई रूचि नहीं होती है | यदि उसका समय न अच्छा   और न  बुरा होता है अर्थात मध्यम होता है | उस समय हमारा समय अच्छा चल रहा होता है तब तो वो हमारे बिचारों से सहमत होकर हमारी बात मान लिया करता है | 

     कोरोना महामारी जैसी घटनाओं में जहाँ जिन परिस्थितियों में जैसे रह रहे कुछ लोग संक्रमित हो जाते हैं उनमें से कुछ लोग मृत्यु को भी प्राप्त हो जाते हैं| वहाँ उन्हीं परिस्थितियों में रहते खाते पीते सोते जागते हुए भी बहुत सारे लोग संक्रमित तक नहीं होते पूरी तरह स्वस्थ बने रहते हैं क्योंकि उनका  अपना व्यक्तिगत समय स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा चल रहा होता है | कोरोना काल में ऐसा होते बहुत बार देखा गया है | 

    किसी भी उद्योग व्यापार संगठन संस्था राजनैतिक दल सरकार आदि में जितने अधिक संख्या अच्छे समय वालों की होती है वे उतना अधिक सफल होते हैं | 
                                    महामारीमुक्त समाज की रचना संभव है !




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समय का अनुभव !  
      समयखंड समय का एक छोटा सा अंश बसंतऋतु है |इस कालखंड में समय के प्रभाव से तापमान क्रमशः बढ़ने लगता है |उष्णता लिए हुए पश्चिमी हवाओं का प्रवाह प्रारंभ हो जाता है,बर्फबारी ,कोहरा आदि से मुक्ति मिलती है|वृक्षों में  पतझड़ होना एवं नवीन कोपलें आना आम के वृक्षों में फूल (बौर)और फल लगना ,आनंदित कर देने वाले प्राकृतिक वातावरण का बनना आदि ये सब उसी समय से संबंधित प्रकृति में होने वाले परिवर्तन हैं| समय प्रभाव से इसी ऋतु में कोयलों का बोलना एवं ऋतुजनित प्राकृतिक वातावरण से मनुष्यों के मन का प्रसन्न होना तथा ऋतुप्रभाव से कफ प्रकुपित होने के कारण कफ जनित स्वास्थ्य विकार होना आदि ये बसंतऋतु नामक समयखंड  से संबंधित बदलाव हैं |

     जिस प्रकार से यह समय प्रकृति और प्राणियों में साथ साथ होने वाले परिवर्तनों का श्रेष्ठ उदाहरण है | इन तीनों में से किसी एक के विषय में जानकारी होते ही शेष दो में होने वाले परिवर्तनों के विषय में भी अनुमान लगा लिया जाता है | जैसे कोयल बोलते सुनकर बसंतऋतु आने का आभाष हो जाता है और उस समय बनने वाले समस्त प्राकृतिक और जीव जनित वातावरण का अनुमान स्वतः लग जाता है | ये समय प्रकृति और जीवन से संबंधित सर्व विदित प्रत्यक्ष  उदाहरण है |

    इसी प्रकार से परोक्ष उदाहरण भी होते हैं जो कभी कभी घटित होते हैं उनमें भी समय का प्रकृति और जीवन के साथ परोक्ष संबंध होता है | उस प्रकार की प्राकृतिक एवं जीवन संबंधी घटनाएँ भी समय से संबंधित होती हैं | भूकंप आँधी तूफ़ान आदि मौसम संबंधी जितनी भी प्राकृतिक घटनाएँ घटित  हो  रही होती हैं | उनका संबंध  समय संचार के साथ होता है उससे मानव मन  और शरीर भी उसी प्रकार से प्रभावित होते हैं |

       ग्रीष्मऋतु नामक समयखंड के प्रभाव से पश्चिमी उष्ण हवाओं (लू) के मधुर स्वाद से खट्टे लगने वाले आम इमली आदि के स्वाद में मधुरता आ जाती है | खरबूजा तरबूज आदि की मधुरता में वृद्धि होते देखी जाती है | समय जनित हवाओं की मधुरता का यह प्रभाव इसी अनुपात में मनुष्य आदि प्राणियों के शरीरों पर भी  पड़ता है जिससे मधुमेही आदि शर्करा रोगियों में शर्करा (शुगर )की मात्रा बढ़ते देखी जाती है |
     
 
                                                                 समय का प्रभाव 
 
 अच्छे समय में कोई व्यक्ति जिन संसाधनों विशेषताओं आदि से युक्त होने के कारण जिन कार्यों में सफल होता रहता है बुरे समय में उन्हीं कार्यों के लिए वही व्यक्ति उन्हीं संसाधनों विशेषताओं आदि से उसी प्रकार के प्रयास करने पर भी असफल होते देखा जाता है उसके बाद फिर कभी अच्छा समय आने पर वह सफल होता है |

     बाकी सारी परिस्थितियाँ प्रयास आदि एक जैसे रहने पर भी कार्यों के बनने बिगड़ने की प्रक्रिया यदि समय नहीं तो दूसरा और क्या हो सकता है अर्थात समय ही होता है |

    अच्छे समय में जिन परिस्थितियों में रहते खाते पीते हुए जो शरीर स्वस्थ बना रहता है उन्हीं परिस्थितियों में रहते खाते पीते हुए भी दूसरे समय में वही शरीर अस्वस्थ होते देखा जाता है |इन परस्पर विरोधी दोनों परिस्थितियों में बाकी सबकुछ एक जैसा रहते हुए भी केवल समय ही तो बदला होता है जिसके प्रभाव से ऐसे परिवर्तन होते देखे जाते हैं |

     ऐसे ही जो लड़की ,लड़का, स्त्री-पुरुष,मित्र,साझेदार,रिस्तेदार,पति पत्नी भाई बहन आदि अपने जिन गुणों शिक्षा सौंदर्य संपन्नता आदि विशेषताओं के कारण कभी एक दूसरे की पहली पसंद बने रहे होते हैं | वही शिक्षा शरीर सौंदर्य आदि विशेषताओं के रहते हुए भी वही लोग दूसरे समय में एक दूसरे से  घृणा करने लगते हैं इसके बाद कभी फिर एक दूसरे से प्रेम पूर्वक मिलते देखे जाते हैं | इस प्रकार से इनके एक दूसरे के प्रति आकर्षण विकर्षण का कारण उनका शिक्षा शरीर सौंदर्य आदि न होकर अपितु समय होता है |

     कोरोना महामारी के समय भी महामारी पैदा होने तथा संक्रमितों की संख्या बढ़ने घटने का कारण समय ही था | चिकित्सकों के चिकित्सा करते समय भी रोगियों के स्वस्थ न होने या मृत्यु को प्राप्त होने का कारण समय का सहयोग न मिलना ही था | चिकित्सा तो उनकी हो ही रही थी | समय का सहयोग न मिलने के कारण दो दो टीके लगने के बाद भी लोग संक्रमित होते और मृत्यु को प्राप्त होते देखे गए हैं |

     किसी प्रतिकूल समय में जो व्यक्ति जिस पद प्रतिष्ठा आदि को पाने का प्रयास करता है फिर भी उस समय सफल नहीं हो पाता है दूसरे अनुकूल समय में वही व्यक्ति उसी प्रकार के सारे संसाधन रहते हुए भी अनायास ही वही पद प्रतिष्ठा आदि प्राप्त करते देखा जाता है |  

   कुलमिलाकर मनुष्य केवल प्रयास करता है परिणाम तो समय ही देता है | समय की शक्ति का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि कई बार मनुष्यकृत प्रयासों के परिणाम उनके प्रयासों के विरुद्ध भी होते देखे जाते हैं | कर्मवादी लोगों को कई बार भ्रम होता है कि सारे कार्य उनके प्रयास का ही परिणाम होते हैं | ऐसे लोग यहाँ तक कर्म वाद का समर्थन करते हैं कि यदि किसी विषय में सौ बार लगातार प्रयत्न करने के बाद भी कोई व्यक्ति सफल नहीं होता है उसके बाद किए गए किसी एक प्रयत्न में सफल हो जाता है | उस सफलता का श्रेय भी वह अपने द्वारा किए गए प्रयासों को ही देते हैं और कहते सुने जाते हैं कि कोई पत्थर यदि सौ चोट मारने पर सौवीं चोट से टूटता है इसका मतलब यह नहीं होता है कि उसके द्वारा मारी गई बाक़ी चोटें निरर्थक चली गई हैं ,किंतु यदि इसी बात को आधार माना जाए तो सैकड़ों बार प्रयत्न करने के बाद भी यदि कोई कार्य बिगड़ जाता है इसका मतलब यह तो नहीं होता है उसके द्वारा किया गया प्रत्येक प्रयत्न उसका कार्य बिगाड़ने के लिए ही किया गया था | ऐसी परिस्थिति में काम बनने बिगड़ने का कारण उसका अपना अच्छा बुरा समय होता है | जिसके अनुसार अच्छे बुरे परिणाम प्राप्त हो रहे होते हैं |

      इस प्रकार से समय के परोक्ष प्रभाव को न जानने के कारण लोग इस रहस्य को नहीं समझ पाते हैं और वे जो जैसा चाहते हैं वो वैसा न होने पर या जिसे पाना चाहते हैं उसके न मिलने पर घबड़ा जाते हैं | उसका कारण अपने को या किसी दूसरे को मान लिया करते हैं और दंडित करने लगते हैं कई बार तो ऐसे ही असंतोष में हत्या आत्महत्या जैसी घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं | जो लोग समय के रहस्य को समझते हैं उन्हें पता होता है कि समय  कभी एक सा नहीं रहता है | अभी रात हुई है तो निर्धारित समय के बाद दिन भी होगा !सर्दी की ऋतु आई है तो उसके बाद गरमी  भी आएगी आदि | इस प्रकार से समय के संचार को समझकर बिना घबड़ाए अपने को सुख देने वाली परिस्थितियाँ निर्मित होने वाले समय की प्रतीक्षा करने लग जाते हैं | समय मिलते ही पुनः पयास करके अपने मनोनुकूल परिस्थितियों का निर्माण कर लिया करते हैं |

    इसी प्रकार से समय के साथ प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती हैं | एक समय में गरम गरम हवाएँ चलती हैं भीषण गरमी पड़ रही होती है नदी तालाब आदि सूख जाते हैं दूसरे समय में वर्षा होने लगती है भीषण बाढ़ देखी जाती है | कभी भीषण सर्दी पड़ने लगती है |इसके लिए मनुष्यकृत कोई प्रयास तो जिम्मेदार नहीं होता है | एक समय आसमान साफ होता है दूसरे समय आकाश में बादलों का जमावड़ा लगा होता है तीसरे समय आँधी तूफ़ान आ रहे होते हैं  तो कभी पाला कोहरा बर्फबारी आदि घटनाएँ घटित होते दिखाई पड़ रही होती हैं | ऐसी समस्त परस्पर विरोधी प्राकृतिक परिस्थितियाँ बनने का कारण समय ही तो होता है |

    कुल मिलाकर ऐसी दोनों प्रकार की परस्पर विरोधी घटनाओं के घटित होने में बाकी सब कुछ तो वही बना रहता है केवल समय ही तो बदला रहता है समय के साथ साथ दृश्य भाव स्वाद रंग रूप अवस्था आकार प्रकार आदि सब कुछ बदलता रहता है इसके अतिरिक्त तो और कोई दूसरा बदलाव नहीं हुआ होता है जिसे उन परस्पर विरोधी घटनाओं के घटित होने का कारण माना जा सके |

      ऐसी समयकृत परिस्थितियों से अनजान लोग अपने प्रयासों के बल पर परिस्थितियों को बदल देना चाहते हैं ऐसे लोग प्रयास करते घाटा उठाते तनाव सहते संघर्ष करते लड़ते झगड़ते आदि कृत्रिम व्यस्तता में उस प्रकार का दुखप्रद समय पार लिया करते हैं उन्हें सफलता समय से ही मिलते देखी जाती है समय की शक्ति को न समझने वाले लोग ऐसी सफलता को अपने प्रयास का परिणाम मान लिया करते हैं जबकि सफल होने का कारण केवल प्रयास ही न होकर अपितु समय भी होता है | घटनाओं के घटित होने न होने में समय का बहुत बड़ा योगदान होता है |

     प्रायः घटनाओं के घटित होने का कारण 'समय' होने के बाद भी समय के संचार पर अनुसंधान नहीं होते ! इस प्रकार से परंपरा प्राप्त अनुसंधानों की उपेक्षा होने के कारण ही भूकंप आँधी तूफ़ान आदि प्राकृतिक आपदाओं का एवं कोरोना जैसी महामारी के घटित होने का कारण खोजना एवं ऐसे विषयों में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पाता है | इसीलिए महामारी के दो वर्ष और तीन लहरें बीत चुकी हैं अभी तक कोरोना महामारी पैदा होने एवं संक्रमितों की संख्या बढ़ने घटने का कारण खोजना एवं इनके विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पाया है जिसका जो मन आ रहा है वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर वह वही बोलने लगता है |

     वैज्ञानिक अनुसंधानों की शिथिलता के कारण ही तो समाज आज ऐसी दुखद परिस्थिति सहने के लिए विवश है जिसमें भूकंप वैज्ञानिकों को भूकंपों के घटित होने का कारण एवं पूर्वानुमान नहीं पता होते ! वर्षा बाढ़ सूखा आदि परिस्थितियों के कारण समझने एवं इन विषयों में पूर्वानुमान लगाने की क्षमता से वे विहीन हैं जो ऐसे अनुसंधानों की जिम्मेदारी सँभाल रहे होते हैं | किसी समय विशेष में अचानक किसी महामारी के शुरू होने के क्या कारण होते हैं और अपने आप से उसके समाप्त होने के क्या कारण होते हैं संक्रमितों की संख्या बढ़ने घटने के क्या कारण होते हैं | ऐसे महामारी संबंधी भावों को समझने की क्षमता से विहीन लोगों की ओर  महामारी पीड़ित समाज टकटकी लगाए बैठा है कि इस संकट से मुक्ति दिलाने में वे अपनी भूमिका का निर्वाह अवश्य करेंगे | वे महामारी का समय बीतने के बाद महामारी के स्वतः समाप्त होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं | उस समय का इंतजार तो है किंतु उस समय संबंधी अनुसंधानों की आवश्यकता अभी नहीं समझी जा रही है |

     समय ही सर्वशक्तिवान है |

     किसी वर्ष बहुत अधिक भूकंप  वर्षा बाढ़ बज्रपात आँधी तूफ़ान महामारी आदि घटित होते हैं जबकि किसी दूसरे वर्ष ऐसा नहीं होता है |ऋतुएँ वही होती हैं | उसी क्रम से अपने अपने प्रभाव का वितरण करती हुई बीत रही होती हैं किंतु किसी एक वर्ष में ऐसी घटनाओं का अचानक घटित होने और अन्य वर्षों में ऐसा न होने का कारण यदि समय नहीं तो और दूसरा क्या हो सकता है | समय की शक्ति को समझने वाले लोग इसका कारण समय को ही मानते हैं और कहते सुने जाते हैं कि समय ही ऐसा है |

   इसी प्रकार से लोग अक्सर  सफल या असफल होने के बाद इस बात को आपसी चर्चाओं में स्वीकार किया करते हैं कि समय ने साथ नहीं दिया |अच्छी से अच्छी चिकित्सा करने के बाद भी जब किसी रोगी की मृत्यु हो जाती है तब बड़े बड़े चिकित्सकों के द्वारा कहते सुना जाता है कि समय ने साथ नहीं दिया | पति पत्नी दोनों के पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद भी बहुतों को संतान नहीं होते देखी जाती है ऐसे समय में भी चिकित्सकों को यही कहते सुना जाता है कि समय साथ नहीं दे रहा है | किसी बहुत बड़ी दुर्घटना का शिकार होने के बाद भी बचाव हो जाने के लिए यही कहा जाता है कि दुर्घटना तो बहुत बड़ी थी किंतु समय अच्छा था इसलिए बचाव हो गया | शिक्षा व्यापार राजनीति आदि किसी भी क्षेत्र में बहुत परिश्रम करने के बाद भी जब सफलता नहीं मिलती है तब समय को ही दोष दिया जाता है |

      कुल मिलाकर समय सबसे अधिक  बलवान है  जीवन संबंधी प्रायः सभी विषयों में जहाँ कोई शक्ति काम नहीं करती है वहाँ भी समयशक्ति सभी कार्यों को संचालित कर रही होती है | इसीलिए सभी कार्य स्वतः होते जा रहे होते हैं | मनुष्य जिन कार्यों को करने में स्वयं को सम्मिलित कर लेता है उन्हें वह अपने किए हुए मान लेता है | मनुष्य का यह भ्रम तब टूटता है जब मनुष्य जो कार्य जैसे करने के लिए प्रयत्न करता है वे वैसे नहीं होते हैं | कई बार तो वे मनुष्यकृत प्रयास के विरुद्ध होते देखे जाते हैं |

     कोई गाड़ी किसी बिल्कुल बराबर जगह में खड़ी हो उसे कुछ लोगों के द्वारा धक्का लगाकर आगे को ठेला जाए तो गाड़ी या तो आगे को बढ़ जाएगी या नहीं बढ़ेगी अर्थात जहाँ खड़ी है वहीं खड़ी रहेगी इन्हीं दो में से कोई एक परिणाम निकल सकता है किंतु यदि गाड़ी आगे न बढ़े और वहाँ भी रुकी न रहे अपितु प्रयास के विरुद्ध पीछे की ओर जाने लगे | इससे यह प्रश्न होना स्वाभाविक है कि वह गाड़ी अपने आपसे यदि आगे को नहीं जा रही है तो पीछे कैसे चली जाएगी और उस गाड़ी के पीछे जाने का क्या कारण है क्योंकि धक्का तो आगे ले जाने के लिए लगाया जा रहा है |

     ऐसी परिस्थिति में यह सोचा जाना स्वाभाविक  ही है कि गाड़ी को आगे की ओर बढ़ाने के लिए जो शक्ति लगाई जा रही है उससे अधिक शक्ति उस गाड़ी को पीछे की ओर धकेल रही है तभी तो वह गाड़ी पीछे की ओर जा रही है |यदि वह शक्ति प्रत्यक्ष न दिखाई पड़े तो अनुसंधान का मतलब यही है कि गाड़ी के पीछे जाने का कारण तो खोजा ही जाना चाहिए |जबतक ऐसा नहीं किया जाता है तब तक यह अनुसंधान अधूरा ही रहेगा |ऐसे अधूरे अनुसंधानों को जलवायु परिवर्तन आदि कारण बताकर बीच में ही छोड़ देने से अच्छा है कि अलग अलग विधियाँ अपनाकर अनुसंधान भावना से इस गुत्थी को सुलझाया जाए |

    वस्तुतः कृत कार्यों का परिणाम यदि मनुष्यकृत प्रयासों का प्रतिफल माना जाए तो कार्य वैसे होने चाहिए थे जिस उद्देश्य से जिस प्रकार के प्रयासों के द्वारा किए जा रहे होते हैं या जैसा करने की इच्छा से मनुष्य ने प्रयास प्रारंभ किए थे और यदि वैसे न होते तो कैसे भी न होते जैसे थे वैसे ही बने रहते इससे अधिक से अधिक मनुष्यकृत उस प्रयास को असफल मान लिया जाता किंतु कई बार उसकी इच्छा और प्रयासों के विरुद्ध प्ररिणाम होते देखे जाते हैं उसका कारण क्या है ? किसी रोगी की चिकित्सा की जा रही है तो उसे स्वस्थ होना चाहिए और यदि ऐसा नहीं होता है तो जैसा है वैसा ही बना रहना चाहिए किंतु उस रोगी का रोग बढ़ते जाने या रोगी की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु हो जाने को चिकित्सा का परिणाम तो कतई ही नहीं माना जा सकता है | ऐसे ही अन्य प्रयासों के विरुद्ध हुए परिणामों के विषय को भी समझा जाना चाहिए |

     कहने मतलब प्रयास करने के बाद भी किसी कार्य के होने न होने पर मनुष्य का कोई अधिकार नहीं होता है |इसीलिए प्रकृति या जीवन से संबंधित किसी भी घटना को मनुष्य कृत कार्यों का परिणाम कैसे माना जा सकता है | जलवायु परिवर्तन जैसी घटनाएँ मनुष्यकृत कैसे मानी जा सकती हैं |मनुष्य चाहकर भी प्रकृति परिवर्तन कैसे कर सकता है | भूकंप  वर्षा बाढ़ बज्रपात आँधी तूफ़ान महामारी आदि घटनाएँ मनुष्यकृत प्रयासों का परिणाम कैसे मानी जा सकती हैं इसका आधार क्या होगा |

     परिवर्तन ही तो कार्य हैं जहाँ मनुष्य की पहुँच नहीं है परिवर्तन रूपी कार्य तो वहाँ भी हो ही रहे होते हैं उनमें भी बहुत कार्यों से मनुष्य को सुख मिलता है बहुत कार्यों से दुखी होता है किंतु  कार्य तो समय कर ही रहा है | मनुष्य जिन कामों के लिए कोई प्रयास नहीं कर रहा होता है वे भी कार्य तो हो ही रहे होते हैं इसका मतलब मनुष्य तो कभी कार्य करता है कभी नहीं भी करता है किंतु घटनाओं में परोक्ष भूमिका का निर्वाह करने वाला समय तो निरंतर कार्य किया ही करता है | मनुष्य की जहाँ बिल्कुल पहुँच नहीं है ऐसे सुदूर जंगलों पहाड़ों नदियों तालाबों समुद्रों आकाश पाताल आदि सभी स्थानों में समय के प्रभाव से घटनाएँ तो घटित होते देखी ही जा रही होती हैं |जिन भूकंपों के लिए भूमिगत गैसों या लावे पर तैरती प्लेटों को जिम्मेदार बताया जाता है वे घटनाएँ भी तो हमेंशा घटित नहीं होती हैं | कभी होने और कभी न होने का कारण भी तो खोजा जाना चाहिए |

   कुलमिलाकर समय के आगे किसी की चलती नहीं है|वैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए किए गए प्रयासों के असफल होने के बाद इसके लिए भी समय का सहयोग न मिलना माना जाता है |
   
        समयविज्ञान या परोक्षविज्ञान     

    प्रायः सभी प्राकृतिक घटनाओं में  'समय' 'प्रकृति' और 'प्राणी' तीन कारण होते हैं | 'समय' बीतने के साथ साथ उसमें अच्छे बुरे सभी प्रकार के परिवर्तन होते चलते हैं |जो परिवर्तन समय में होते हैं उसीप्रकार के परिवर्तन प्रकृति और प्राणियों में होते देखे जाते हैं |  समय में होने वाले बदलाव प्रत्यक्ष रूप से भले न दिखाई पड़ते हों किंतु परोक्ष रूप में अवश्य  अनुभव किए जाते हैं |इसकेअतिरिक्त समय में होने वाले परिवर्तनों का अनुभव प्रकृति और प्राणियों में समय समय पर होने वाले परिवर्तनों को देखकर किया जाता है |समय पहले बदलता है उसका प्रभाव प्रकृति और प्राणियों पर समान रूप से पड़ता है इसलिए इन दोनों में साथ साथ बदलाव आते दिखाई देते हैं |

      परिवर्तनों में समय की प्रमुख भूमिका होते हुए भी प्रत्यक्ष दिखाई न पड़ने के कारण लोग समय को भूलकर प्रकृति और प्राणियों को साथ जोड़कर अनुभव करने लगते हैं | जैसे प्रातःकाल के समय का प्रभाव सूर्य और कमल पुष्प पर पड़ते ही सूर्य उग आता है और कमल खिल जाते हैं | समय का प्रभाव दोनों पर एक साथ एक समान रूप से पड़ रहा होता है | समय प्रभाव से उन दोनों में परिवर्तन भी एक साथ होते हैं | प्रातः काल संबंधित समय के प्रभाव से ही सूर्य उग जाता है और उसी समय के प्रभाव से ही कमलपुष्प खिल जाते हैं  |

    ऐसी घटनाओं में समय तो प्रत्यक्ष रूप में दिखाई नहीं पड़ रहा होता है सूर्य और कमलपुष्प ही दिख रहे होते हैं इसलिए इन दोनों घटनाओं का संबंध एक दूसरी घटना के साथ जोड़ दिया जाता है | हमें लगता है कि कमलपुष्प तो बहुत छोटा होता है इसलिए इसके प्रभाव से तो सूर्य का उगना संभव नहीं है जबकि सूर्य बहुत बड़ा है उसी का प्रभाव   कमल पुष्प पर  पड़कर कमल खिल गया होगा | ऐसा सोचकर हमने भ्रमवश निश्चय कर लिया कि सूर्य के उगने के प्रभाव से कमलपुष्प खिल जाता है किंतु सूर्य भी तो किसी के प्रभाव से उगता होगा जो प्रत्यक्ष भले न दिखाई देता हो किंतु परोक्ष कुछ न कुछ कारण तो होंगे जिनके प्रभाव से सूर्य उगता है उन्हें भी अनुसंधान पूर्वक खोजा जाना आवश्यक था |जिसकी हमने आवश्यकता ही नहीं समझी | ऐसी घटनाओं में सूर्य और कमलपुष्प दोनों में एक साथ होते परिवर्तनों को देखकर भ्रम वश हम इन दोनों को एक साथ जोड़ कर देखने लगते हैं |

    ऐसे ही समय प्रभाव से घटित होने वाली दो पृथक पृथक प्राकृतिक घटनाएँ केवल इसलिए एक साथ जोड़कर देखी जाने लगती हैं क्योंकि वे दोनों एक ही समय में घटित हो रही होती हैं |इसी दृष्टि से पूर्णिमा के पूर्णचंद्र और समुद्र की उठती हुई लहरों को भ्रमवश आपस में जोड़ लिया गया है और यह निश्चय कर लिया गया है कि पूर्ण चंद्र के आकर्षण प्रभाव से समुद्र में ऊँची लहरें उठती हैं | यह प्रभाव यदि चंद्र आकर्षण जनित होता तब तो चंद्र का आकर्षण केवल समुद्री जल के प्रति न होकर अपितु समस्त छोटे बड़े जल संस्थानों पर पड़ता जिससे केवल समुद्रों में ही क्यों अपितु नदियों नालों तालाबों घरों में भी संचित जल उछलने लगता ,यहाँ तक कि मनुष्यों के द्वारा पिया गया पानी भी पूर्णचंद्र के आकर्षण से पेट में उछल रहा होता | पूर्णिमा के पूर्णचंद्र के समय यदि वर्षा होने का संयोग कभी बनता तो वर्षा की बूँदें पृथ्वी पर गिरती ही नहीं ,समुद्रजल की अपेक्षा ये तो हल्की होती हैं इसलिए इन्हें तो आकर्षित करके पूर्णचंद्र ऊपर ऊपर ही बड़ी आसानी से खींच ले जाता तब तो पूर्णिमा के दिन धरती पर होने वाली बारिश चंद्रमा पर ही हुआ करती | लाखों टन पानी लिए घूमने वाले बादलों को चंद्र आकर्षित कर लेता |

      परोक्ष विज्ञान की समझ के अभाव में हमने इस घटना में समय की भूमिका का बिचार किए बिना ही अपने कल्पित भ्रम को सच मान लिया है |किसी निश्चित समय में समुद्र में घटित होने वाली घटना को पूर्णचंद्र के साथ जोड़ना तर्कसंगत नहीं है |

                                  प्रकृति या जीवन से संबंधित समयसारिणी

     जिस प्रकार से रेलगाड़ी का टाइम टेबल निर्धारित करने वाली सरकारें ट्रेन चलाने या रोकने नहीं जाती हैं |वहाँ तो नियम निर्धारित होते हैं कौन ट्रेन कितने बजे चलेगी किस रूट से जाएगी कितने स्टापेज होंगे कितने बजे किस स्टेशन पर पहुँचना है कितने बजे वहाँ से चलना है ये सब कुछ सरकारें सुनिश्चित करके एक नियमावली बना देती हैं वह ट्रैन उसी प्रकार से चलती रुकती चली जाती है |ट्रैन किस रूट से जाएगी कहाँ रुकेगी कहाँ नहीं कहाँ कितने बजे पहुँचेगी इसकी जानकारी के लिए किसी ट्रेन के चालक से पूछने नहीं जाना पड़ता है अपितु सरकार द्वारा निर्धारित सारिणी पढ़नी पड़ती है उसी से पता लग जाता है कि ट्रेन किस प्रकार से चलेगी |यदि किसी ट्रेन को किसी स्टेशन पर प्रातः पाँच बजे पहुँचना है तो ये ट्रेन चालक को ध्यान रखना है कि इतने बजे वहाँ पहुँचना है | इसकी जिम्मेदारी समय की नहीं होती है कि जब ट्रेन वहाँ पहुँचेगी तब पाँच बजेंगे |

    इसी प्रकार से समस्त प्राकृतिक या जीवन संबंधी घटनाओं की भी समय सारिणी होती है सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं को उस समय सारिणी का पालन करना ही होता है और जिसके घटित होने का जो समय निर्धारित होता है उस घटना को उस समय घटित होना ही होता है उसके लिए मनुष्य प्रयत्न करे या न करे |

    समय किसी के आधीन नहीं है अपितु समय के आधीन संपूर्ण प्रकृति एवं जीव जंतु आदि हैं |यहाँ तक कि समय सूर्य आदि  ग्रहों के भी आधीन नहीं है अपितु सूर्यादि ग्रह समय के आधीन होकर समय बीतने की सूचना उसी प्रकार से दिया करते हैं जिस प्रकार से घर में दीवार पर लगी घड़ी समय बीतने की सूचना दिया करती है | उस घड़ी में एक सुई घंटे की और दूसरी मिनट की होती है घंटे की सुई धीमें और मिनट की तेज चलती है उसीप्रकार से ब्रह्मांड घड़ी में सूर्य धीमे और चंद्र की गति तेज होती है ये दोनों ब्रह्मांड घड़ी में सुइयों की तरह हैं | सूर्य के उगने से सबेरा नहीं होता अपितु पूर्व निर्धारित प्रातः काल का समय आने पर सूर्य उगता है | सूर्य इतने बजकर इतने मिनट पर उगेगा यह समय कृत आदेश होता है समय प्रेरित सूर्य को उतने ही समय पर उगना पड़ता है | यही चंद्रादि ग्रहों की स्थिति है सभी समय के आदेश का पालन कर रहे हैं | कौन कितने बजे उदित होगा कितने बजे अस्त तथा कितने बजकर कितने मिनट पर किस ग्रह को कहाँ पहुँचना होगा |कब कहाँ पहुँचकर किस ग्रह को किस गति से चलना है वो ग्रह वहाँ पहुँचकर उसी गति से गमन करने लगता है |

     इसी प्रकार से सूर्य उगने का समय निश्चित होता है न कि सूर्य जब उगता है तब वह समय आता है |जब सूर्य चंद्रादि ग्रहों के विषय में उनकी समयसारिणी में जो लिखा होता है उन्हें निर्धारित समय पर वही सबकुछ करना पड़ता है | समय सारिणी का अतिक्रमण करने की क्षमता जबउन इतने बड़े बड़े ग्रहों में नहीं है तो बेचारी प्राकृतिक घटनाएँ आपदाएँ महामारियाँ आदि समय सारिणी का अतिक्रमण कैसे कर सकती हैं उन्हें भी उतने ही बजे उस घटना को घटित होना होता है जितने बजे उनकी समय सारिणी में लिखा होता है | रेल के विषय में जानने  के लिए रेल की समय सारिणी पढ़नी होती है उसी प्रकार से भूकंप के विषय में जानने के लिए भूकंप की समय समय सारिणी देखनी होती है | प्रकृति का कुछ अंश दिखाई पड़ता है और कुछ नहीं,जबकि प्राणी संपूर्ण रूप से दिखाई पड़ते हैं |

   समय पिता है, प्रकृति माता है और प्राणी ही संतानें हैं | जिस प्रकार से बच्चे अपनी अधिकाँश इच्छाओं आवश्यकताओं को अपनी माता से बताते हैं माता उन्हें पिता से पूरी करवाया करती है | उसी प्रकार से प्रकृति प्राणियों की इच्छाओं की पूर्ति समय का सहयोग लेकर करवाया करती है | पिता जब अपने बच्चों पर क्रोधित होते हैं तब पिता का रुख सबसे पहले माता को पता लग जाता है |

    माता अपने बच्चों को अच्छे रास्ते पर चलाने के लिए बार बार  पिता का भय दिखाया करती है !पिता जी आ जाएँगे,पिता जी देख लेंगे, पिता जी गुस्सा हो जाएँगे आदि आदि | इसीप्रकार से पिता जब अपने बच्चों पर क्रोधित  होते हैं उससे पिता के द्वारा बच्चे दंडित किए जा सकते हैं | ऐसे समय बच्चों को दंडित  होने से बचाने के लिए माता संकेतों( इशारों)से अपने बच्चों को सावधान किया करती है ताकि बच्चे दंडित होने से बच जाऍं | समझदार बच्चे माँ  संकेत   समझकर सुधर जाते हैं  नहीं सुधरते वे पिता के द्वारा दंडित किए जाते हैं |  प्रकृति रूपी माता के  द्वारा किए गए कुछ इशारे देख कर समझ लिए जाते हैं कुछ सुनकर समझे जा सकते हैं ऐसे ही कुछ सूँघकर, कुछ स्वाद लेकर समझे जा सकते हैं कुछ छूने से पता लगते हैं |

    इनमें से कुछ दिखाई पड़ते हैं और जो दिखाई पड़ा करते हैं उनके दृश्यों में सूक्ष्म परिवर्तन होते देखे जाते हैं | कुछ सुनाई पड़ते है वे व्यक्त और अव्यक्त दो प्रकार के होते हैं समय के साथ दोनों में बदलाव होते देखे जाते हैं | कुछ न दिखाई पड़ते न सुनाई पड़ते  केवल स्पर्श करते हैं | ऐसी हवाओं के स्पर्श में समय के साथ बदलाव होते देखे जाते हैं | कुछ न दिखाई पड़ते न सुनाई पड़ते और न ही स्पर्श करते हैं ऐसी सुगंध में बदलाव समय के साथ साथ हुआ करते हैं | कुछ स्वाद के आधार पर पहचाने जाते हैं |खाद्य पदार्थों के स्वाद में समय के साथ साथ बदलाव होते अनुभव किया जाता है |

     इसप्रकार से प्रकृति का जो अंश दिखाई पड़ता है उसे देखकर, जो सुनाई पड़ता है उसे सुनकर,जिसे छुआ जा सकता है उसे छूकर ,जिसे खाया जा सकता है उसे खाकर और जिसे सूँघा जा सकता है उसे सूँघकर इससे अनुभव किए गए संकेतों के आधार पर प्रकृति में समय समय पर होने वाले ऐसे परिवर्तनों का अनुभव किया जा सकता है जिनके आधार पर अनुसंधान पूर्वक भविष्य में घटित  होने वाली संभावित प्राकृतिक घटनाओं आपदाओं एवं महामारियोंआदि  का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |

   मनुष्यों में लोग भिन्न भिन्न विशेषताओं से युक्त होते हैं |देखने सुनने सूँघने छूने एवं खाने के स्वाद के आधार पर परिवर्तनों को परखने की अलग अलग क्षमता  कुछ कुछ लोगों में होती है किंतु उनकी इस प्रकार पहचान करना कठिन होता है कि उनमें से किसमें  किस प्रकार के विशेष गुण हैं |

   पशु पक्षियों में ऐसा नहीं है उनमें से जो जीव जिन विशेषताओं के लिए जाने जाते हैं उस क्षेत्र में उनके अनुभवों को प्रमाण माना जाता है | जैसे हंस स्वाद के आधार पर दूध और जल को अलग अलग कर लेता है | गीध की दृष्टि अच्छी होती है कोयलों में स्वर की विशेषता मानी जाती है ऐसे ही अनेकों जीवों में भिन्न भिन्न प्रकार की विशेषताएँ देखी जाती हैं | ऐसे पशु पक्षियों पेड़पौधों जीव जंतुओं आदि संपूर्ण प्रकृति में जो बदलाव होते उनसे अलग हटकर व्यवहार होता देखने से संकट संभावित होता है |
                                ऊर्जा और यंत्र की भाँति चलता रहता है जीवन !

     ऊर्जा (बिजली)  से अभिप्राय है समय और यंत्र से अभिप्राय है शरीर | हमारे कहने का मतलब समय ही ऊर्जा हैऔर शरीर ही  यंत्र है | कुछ यांत्रिक घटनाएँ ऊर्जा (बिजली) के अनुशार घटित होती हैं जबकि कुछ अन्य घटनाएँ यंत्रों के अनुशार घटित होती हैं | समय ही बिजली की ऊर्जा है और मनुष्य आदि जीव ही उससे अपने अपने अनुशार चलने वाले यंत्रों की तरह होते हैं |

    एक ही ऊर्जा भिन्न भिन्न प्रकार के यंत्रों में पहुँचकर अलग अलग परिणाम प्रदान करती है | इस भिन्नता में कई बार इतना तक अंतर होते देखा जाता है कि कई बार ऐसे यंत्रों से प्राप्त होने वाले परिणाम एक दूसरे के विरुद्ध तक निकलते देखे जाते हैं | कुल मिलाकर बिजली देकर यंत्र चलाए तो जा सकते हैं किंतु उनसे निकलने वाले परिणाम यंत्रों के अपने स्वभाव के  अनुशार ही होंगे बिजली के अनुशार नहीं | जिस बिजली का साथ पाकर फ्रिज बर्फ जमाने लगता है उसी बिजली के संयोग से गीजर पानी गर्म करने लगता है हीटर गरमी देने लगता है |

    जिस प्रकार से बिजली की ऊर्जा जिस प्रकार के उपकरण में पहुँचती है वैसे परिणाम देने लगती है | इसी प्रकार से समय भी एक प्रकार की ऊर्जा है उससे भिन्न भिन्न प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती हैं | समय की ऊर्जा  पाकर वायु जल तथा पृथ्वी आदि में परिवर्तन होने लगते हैं | एक समय में गरम गरम हवाएँ चल रही होती हैं भीषण गरमी पड़ रही होती है उससे नदी तालाब आदि सूख जाते हैं दूसरे समय में वर्षा होने लगती है उससे भीषण बाढ़ घटित होते देखी जाती है | कभी भीषण सर्दी पड़ने लगती है |समय के प्रभाव से एक समय आसमान साफ होता है दूसरे समय आकाश में बादलों का जमावड़ा लगा होता है तीसरे समय आँधी तूफ़ान आ रहे होते हैं  तो कभी पाला कोहरा बर्फबारी आदि घटनाएँ घटित होते दिखाई पड़ रही होती हैं | ऐसी समस्त परस्पर विरोधी प्राकृतिक परिस्थितियाँ बनने का कारण समय रूपी ऊर्जा ही तो होती है |

       कुल मिलाकर ऐसी दोनों प्रकार की परस्पर विरोधी घटनाओं के घटित होने में बाकी सब कुछ तो वही बना रहता है केवल समय ही तो बदला रहता है समय के साथ साथ दृश्य भाव स्वाद रंग रूप अवस्था आकार प्रकार आदि सब कुछ बदलता रहता है इसके अतिरिक्त तो और कोई दूसरा बदलाव हुआ नहीं होता है जिसे उन परस्पर विरोधी घटनाओं के घटित होने का कारण माना जा सके | इसके लिए मनुष्यकृत कोई प्रयास तो जिम्मेदार नहीं होता है |   

     सामान्य ऊर्जा के लिए भोजन का उदाहरण लिया जा सकता है | भोजनरूपी ऊर्जा से प्रत्येक व्यक्ति शक्तिशाली बनता है किंतु पाचन शक्ति बिगड़ने के कारण जिसका भोजन पचता न हो उसे वही भोजन नुक्सान करने लग जाता है | घी चीनी मैदा आदि खाद्य पदार्थों से प्राप्त ऊर्जा मनुष्यादि शरीरों को बलवान बना देती है | इन्हीं पदार्थों से प्राप्त यही ऊर्जा शर्करा (शुगर) ,हृदय और यकृत (लीवर) से संबंधित रोगियों के शरीरों में पहुँचकर रोगों को बढ़ा दिया करते हैं जिससे शरीर पौष्टिक न होकर अपितु दुर्बल होने लगते हैं |

      ऐसे पौष्टिक पदार्थों  का सेवन कर लेने से कुछ लोग यदि रोगियों का रोग यदि बढ़ जाता है तो इससे यह तात्पर्य तो नहीं ही निकाला जाना चाहिए कि ये पदार्थ बिषैले या इस प्रकार के रोगों को बढ़ाने होते हैं |इसलिए सभी लोगों को ऐसे पौष्टिक पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए |मास्कधारण लोकडाउन जैसी सावधानियों का पालन प्रत्येक व्यक्ति से करवाए जाने का मतलब तो यही है |
  
                                                    समयविज्ञान और महामारी !

      प्रकृति और जीवन में समय की बहुत बड़ी भूमिका है |प्रकृति हमेशा समय के अनुशार नियमबद्ध अनुशासित आचरण करते देखी जाती है | 'समयविज्ञान' भारत  की वह प्राचीनवैज्ञानिक विधा है जिसके द्वारा 'समय' 'प्रकृति' और 'प्राणियों' में एक समान रूप से प्रतिपल परिवर्तित हो रही परिस्थितियों का संयुक्त अध्ययन करना होता है |    
 उसके अनुशार भविष्य में घटित होने वाली 'प्रकृति' और 'प्राणियों' से संबंधित घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाना होता है एवं उन घटनाओं के घटित होने का  अनुमानित कारण खोजना  होता है |इन्हीं तीन विंदुओं में संतुलन बैठाकर कुछ ऐसे अनुभव जुटाने होते हैं जो सभी प्रकार की भविष्य संबंधी परिस्थितियों को समझने में मदद कर सकें |  'समय' बिल्कुल  दिखाई नहीं पड़ता है इसके विषय में केवल अनुभव ही करना होता है |समय का प्रभाव प्रकृति एवं प्राणियों पर समान रूप से पड़ता है |
     किसी किसी वर्ष इसी ग्रीष्मऋतु नामक समयखंड में  अशुभ समय के प्रभाव से यदि अक्सर  वर्षा होती रहे और उत्तर पूरब की ओर से स्वभाव विपरीत शीतल हवाएँ चलने लगती हैं तो उन हवाओं में मधुरता न होने के कारण आम इमली खरबूजा तरबूज आदि के पकने पर भी वह मधुरता नहीं रह जाती है जिससे शर्करा रोगियों की शुगर उतनी अधिक भले न बढ़े किंतु इससे स्वस्थ वातावरण के लिए आवश्यक  मधुरता की मात्रा कम हो जाने के कारण कुछ दूसरे प्रकार के रोगों के पैदा होने की संभावना  बनते देखी जाती है | इसका दुष्प्रभाव भावी प्राकृतिक घटनाओं पर भी पड़ता है |
      जिसप्रकार से बिजली के तारों में प्रवहित बिजली प्रत्यक्ष तो नहीं दिखाई पड़ रही होती है किंतु किसी कारखाने में लगे बिजली के उपकरण जब बिजली के आने जाने से अचानक चलते और बंद होते दिखाई पड़ते हैं उससे बिजली के न दिखाई पड़ने के बाद भी बिजली आने जाने का परोक्ष अनुमान लगा लिया जाता है |इसी प्रकार से समय का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से दिखाई भले न पड़े किंतु उसे नकारा नहीं जा सकता है | अच्छे बुरे समय की पहचान परोक्ष विज्ञान से तो संभव है इसके अतिरिक्त समय प्रभाव से प्रकृति और प्राणियों में होने वाले परिवर्तनों कोदेखकर समय संबंधी ऊर्जा का अनुभव किया जा सकता है |                                   
 
  समय का प्रभाव प्राणियों में -
    प्राणियों को भी समय (प्रकृति) के अनुशार आहार व्यवहार आदि अपनाना पड़ता है जो ऐसा नहीं करते हैं वे रोगी ,तनावग्रस्त,दुखीदरिद्र , परेशान एवं विपरीत परिस्थितियों का सामना करने लगते हैं | बुरे समय की व्याकुलता मनुष्यों के साथ पशु पक्षियों में भी होती है उस लिए उनमें भी अस्वाभाविक बदलाव होते देखे जाते हैं | जिन्हें शकुन अपशकुन के रूप में जाना जाता है |  समय प्रभाव से सभी प्राणी नियंत्रित होते हैं |पशु पक्षियों समेत समस्त जीव जंतुओं में समय की अद्भुत पहचान होती है |
      मेढक वर्षात में,कोयल बसंत में बोलते देखे जाते हैं मुर्गा प्रातः काल बोलता है | ऐसे ही अन्य जीवों में भी समय और परिस्थिति को पहचानने की क्षमता देखी जाती है |अच्छे और बुरे समय भी आभास आगे से आगे होता रहता है | बताया जाता है कि 2004 दिसंबर में आई सुनामी आने से पहले पशु पक्षियों के द्वारा दिए गए संकेतों को समझकर ही अंडमान की एक ख़ास प्रजाति ने वह क्षेत्र छोड़ दिया था जिससे उनकी जान बच गई थी |
      कुलमिलाकर अच्छे बुरे समय की पहचान ही जीव जंतुओं को बहुत अधिक होती है जिनके आधार पर वे उन प्राकृतिक परिवर्तनों की पहचान करके संभावित खतरों को भाँप लिया करते हैं और उसीप्रकार का परिवर्तन अपने रहन सहन आहार व्यवहार बोली भाषा आदि में करने लगते हैं | बंदर कुत्ते,कौवे आदि खतरों को भाँप कर जो बोली बोलते हैं उससे उनके समुदाय के जीवों की भीड़ लग जाती है | एक जीव यदि संकट के संकेत दे रहा होता है तो उसपर कोई संकट निजी तौर पर होता है किंतु जब बहुत सारे जीव उसीप्रकार का व्यवहार करते देखे जाते हैं तो वहाँ कुछ अप्रिय घटित होने जा रहा होता है | बिल्ली किसी एक घर में रोती है तो उस घर में संकट होता है जब बहुत बिल्लियाँ पूरे गाँव में रोती हैं तब पूरे गाँव पर कोई आपदा घटित होने वाली होती है|
       प्रसन्नता के समय पशुपक्षियों का जिस प्रकार का व्यवहार होता है दुःख के समय बिल्कुल बदल जाता है |ऐसा बहुत जीवों में देखा जाता है |ऐसे जीवों में प्रत्यक्ष खतरा देखकर जिस प्रकार के परिवर्तन आते हैं उसी प्रकार के बदलाव परोक्ष खतरों को देखकर आने लगते हैं इसी प्रकार से कुछ जानवर तूफ़ान या भूकंप आदि आने से पहले अपने स्वभाव से अलग हटकर व्यवहार करने लगते हैं | कुल मिलाकर सभी पशु पक्षियों की अपनी अपनी भाषा होती है जो प्रत्यक्ष या परोक्ष संकटों की संभावना देखकर कर बोलते एवं उसी प्रकार का व्यवहार करते देखे जाते हैं |
     समय का प्रभाव प्रकृति में -
 
     समय के प्रभाव से प्रकृति भी नियंत्रित होती है | पेड़ पौधों में भी जंगलों में खड़े पेड़ अपनी अपनी ऋतु  आने पर फूलते फलते देखे जाते हैं उसके ऋतु के बिना कितनी भी खाद पानी क्यों न दिया जाए फिर भी वे नहीं फूलते फलते हैं |ऐसे ही ग्रीष्मऋतु में खेतों में झड़ गए बीज वर्षात के महीनों  में भी जमीन में पड़े पड़े न  सड़ते हैं और न ही उगते हैं | वर्षात के बाद अपनी ऋतु आने पर अपने आपसे ही अंकुरित होते देखे जाते हैं | कमल प्रातःकाल खिलता और सूर्यास्त के समयबंद हो जाता है |
 
   कई बार तो समय ही विपरीत गति धारण कर  लेता है इसका हानिकर प्रभाव प्रकृति और जीवन पर पड़ने लगता है तो उस अशुभ समय के प्रभाव से प्रकृति और जीवन अपना अपना स्वभाव छोड़कर उस प्रकार का व्यवहार करने लग जाते हैं जैसा अच्छा या बुरा समय चल रहा होता है | प्रकृति में भी समय की पहचान होती है | 
          प्राचीन समय आधारित वैज्ञानिक अनुसंधान पद्धति 
 प्राचीन काल में शकुन अपशकुन के नाम में 'समय' 'प्रकृति' और 'प्राणियों' में समान रूप से होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता  रहा है| प्रकृति या जीवन में कब क्या किस प्रकार का घटित होने जा रहा है | यह जानने के लिए समय प्रेरित जड़ प्रकृति में उस समय प्रकट होने वाले चिन्हों का अध्ययन तो किया ही जाता है,इसके साथ ही साथ पशु पक्षियों के स्वभाव,बोली एवं व्यवहार में होने वाले परिवर्तनों का भी अनुसंधान किया जाता है |
    जिस समय के प्रभाव से प्रकृति या जीवन में जो अच्छी या बुरी घटनाएँ या प्राकृतिक आपदाएँ घटित होने जा रही होती हैं उस समय उसी अनुपात में समय का प्रभाव प्रकृति पर भी पड़ता है जिससे प्रकृति में कुछ उस प्रकार के परिवर्तन होने लगते हैं  | इसी अनुपात में उस समय का प्रभाव पशु पक्षियों पर भी पड़ता है उससे उसी प्रकार के बदलाव उनमें भी होते देखे जाते हैं | भूकंप आने से पहले कई देशों समूहों के द्वारा पशु पक्षी आदि प्राणियों में इस प्रकार के बदलाव अनुभव भी किए जाते रहे हैं | समय का यही अच्छा या बुरा प्रभाव उन मनुष्यों पर या उनके सगे संबंधियों पर पड़ता है जिन्हें ऐसी प्राकृतिक घटनाओं से प्रभावित होना होता है उन्हें व्यक्तिगत रूप से अपने आसपास शकुन अपशकुन आदि दिखाई देने लगते हैं | जो घटनाएँ घटित होने के बाद अनुभव किए जाते हैं | 
    विशेष बात यह है कि अपशकुन होने से किसी का नुक्सान नहीं होता है अपितु किसी का नुक्सान होता है तब अपशकुन होते हैं | ऐसे ही बिल्ली के रास्ता काट जाने से किसी का नुक्सान नहीं होता है अपितु नुक्सान होने की संभावना होने पर समय प्रेरित बिल्ली किसी का रास्ता काट जाती है | उसने ऐसा क्यों किया यह बिल्ली को भी नहीं पता होता है और न ही जानबूझकर वह ऐसा करती है | 
    जिस समय के प्रभाव से जो नुक्सान हो रहा होता है उसी समय का प्रभाव उन जीवों पर भी पड़ रहा होता है जिससे वे उस प्रकार के आचरण करने के लिए स्वाभाविक रूप से प्रेरित हो जाते हैं जिसका उन्हें स्वयं पता नहीं होता है कि उनके स्वभाव बोली व्यवहार आदि में ऐसा परिवर्तन क्यों आ रहा है | वस्तुतः ये समयकृत सूचनाएँ हैं जिनका आदान प्रदान प्रकृति और प्राणियों के माध्यम से हो रहा होता है |
    प्राचीनकाल से ही ऐसे पशु पक्षियों जीव जंतुओं पेड़पौधों आदि से प्राप्त संकेतों का परीक्षण करके अच्छे बुरे समय की पहचान की जा सकती है उसी के अनुशार संभावित अच्छी बुरी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | वर्तमान समय में यंत्रों के द्वारा जिन प्राकृतिक घटनाओं को समझने का प्रयत्न किया जाता है |  उन यंत्रों में कभी खराबी आ भी सकती है जिसके कारण उनके द्वारा किए जा रहे अनुसंधान प्रभावित हो सकते हैं किंतु पेड़ों पौधों वृक्षों बनस्पतियों एवं जीव जंतुओं आदि से प्राप्त अनुभव उनके स्वभाव से संबद्ध होते हैं इसलिए उनका गलत होना बहुत कठिन होता है क्योंकि आयु पूर्ण होने से पहले किसी का स्वभाव बदलना आसान नहीं होता है | 
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                                     महामारी के समय  होने वाले प्राकृतिक बदलाव !
 
        महामारियों के समय अशुभ समय के प्रभाव से जहाँ एक ओर महामारी फैल रही होती है | उसी अशुभ समय का प्रभाव उसी अनुपात में प्रकृति पर भी पड़ रहा होता है इसलिए प्रकृति भी प्रदूषित होने लगती है उससे जल वायु फसलें आनाज शाक सब्जियाँ फल फूल वृक्ष बनस्पतियाँ आदि के स्वाद स्वभाव गुणों आदि में अस्वाभाविक बदलाव होने के कारण उनके उन गुणों में विकार आ जाते हैं जिनके  प्रसिद्ध होते हैं | औषधियों आदि के गुणों में अस्वाभाविक बदलाव आ जाने  के कारण औषधियों में भी विकार आ जाते हैं | जिससे वे  उस प्रकार का लाभ करने लायक नहीं रह जाती हैं जिन रोगों पर वे प्रभावी मानी जाया करती थीं |उनमें समयकृत विकार आ जाने के कारण कई बार उन्हें अपने गुणों के विपरीत व्यवहार करते भी देखा जाता है |

    विपरीत समय के प्रभाव से एक ओर महामारी फैलती है उसी समय के प्रभाव से खाद्य पदार्थ एवं औषधियाँ आदि प्रदूषित हो जाती हैं | ऐसी परिस्थिति में चिकित्सकों के लिए यह निर्णय करना कठिन हो जाता है कि व्यक्ति को किन खाद्यपदार्थों एवं औषधियों के सेवन की सलाह दी जाए उनमें विकार आ जाने के कारण उनका प्रभाव मनुष्य शरीरों पर न जाने कैसा पड़े | इसी प्रकार की परिस्थितियों के कारण सघन चिकित्सा कक्ष में विद्वान चिकित्सकों की अत्युत्तम देख रेख में चिकित्सा का लाभ ले रहे रोगी चिकित्सकों के देखते देखते मृत्यु को प्राप्त होते देखे जाते हैं चिकित्सकों का कोई बश नहीं चल पाता है |

      इसीलिए महामारी के समय प्रत्यक्ष दिखाई देने  वाले अधिकाँश मानक अनुभव अध्ययन अनुसंधान आदि प्रभाव विहीन होते  देखे जाते हैं | ऐसे समय में परोक्ष(समय) विज्ञान के आधार पर महामारियों को समझने एवं उनमें प्रभावी कदम उठाने में काफी मदद मिलते देखी जाती है | समय समय पर होते रहने वाले समय ,प्रकृति और जीवन से संबंधित परिवर्तनों के अध्ययन से प्रकृति एवं जीवन में होने वाले  परिवर्तनों प्राकृतिक घटनाओं रोगों महारोगों आदि का अनुसंधान पूर्वक पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |

                   समय की सच्ची पहचान होना ही समयविज्ञान है |
     प्राचीनकाल में ऋषिमुनि ध्यान चिंतन मनन आदि तो महानगरों में एक से एक सुविधा संपन्न परिवारों में रहकर भी कर सकते थे ईश्वर तो वहाँ भी होता है भगवद्भक्ति वहाँ भी की जा सकती थी फिर भी ऋषिमुनि लोग ध्यान चिंतन मनन आदि के लिए जंगलों में ही अपने आश्रम इसीलिए बनाया करते थे |  

    वस्तुतः जब जैसा समय आता है तब तैसे परिवर्तन समस्त प्राकृतिक वातावरण में प्रकट होने लगते हैं |आकाश से लेकर पाताल तक जल थल वृक्षों बनस्पतियों कृषिक्षेत्रों एवं जीव जंतुओं में उस प्रकार के बदलाव होते देखे जाते हैं | पशु पक्षियों समेत समस्त जीव जंतुओं में उनके खानपान बोली व्यवहार आदि में किसी एक ही प्रकार के बदलाव होने लगते हैं | फलों का स्वाद फूलों की सुगंध में सूक्ष्म परिवर्तन होते देखे जाते हैं | ऐसे सूक्ष्म परिवर्तनों का  अनुभव करने के लिए उसी वातावरण में रहना आवश्यक होता था | प्राकृतिक वातावरण में प्रकट होने वाले सूक्ष्म परिवर्तनों को पहचानना तभी संभव है जब प्रतिदिन उन्हें देखा सुना जाता रहा हो |  

    राजालोग ऋषियों मुनियों के लिए कुछ भी करने को तैयार रहा करते थे ऐसी परिस्थिति में जंगलों में भी ऋषि मुनियों के रहने के लिए सब सुख सुविधा संपन्न एक से एक दिव्य आश्रम बनाए जा सकते थे किंतु इससे उन्हें पशु पक्षी आदि जीव जंतुओं समेत समस्त प्राकृतिक वातावरण से कुछ दूरी बनाकर रहना पड़ता |जिससे उनमें होने वाले वाले सूक्ष्म परिवर्तनों का अनुभव करने में व्यवधान होता |

    राजाओं के द्वारा की जाने वाली व्यवस्था के तहत जंगलों में तरह तरह के मेवामिष्ठान्न पूड़ी पकवान आदि उपलब्ध करवाए जा सकते थे किंतु इससे तत्कालीन प्राकृतिक परिवर्तनों का अनुभव किया जाना संभव न था !ऐसे तुरंत के लिए हुए ताजे कंद मूल फल आदि लाकर कच्चे ही खाने से उनके आदि में होते सूक्ष्म परिवर्तनों का अनुभव किया जाना स्वाभाविक था|पूजा के लिए प्रतिदिन ताजे पत्र पुष्प आदि लेने होते थे | इनके विषय में प्रतिदिन की पहचान होने के कारण उनमें उभरने वाले सूक्ष्म परिवर्तनों का भी अनुभव किया जाना संभव था | समुद्रों नदियों तालाबों के समीप रहने से उन्हीं जलों का नित्य उपयोग करने से जल में होने वाले सूक्ष्म परिवर्तनों का अनुभव किया जा  सकता है |

   प्राचीनकाल में ऐसे अनुसंधानों को करने के लिए ऋषिमुनियों को संपूर्ण रूप से बनाश्रित व्रती अत्यंत तपस्वी जीवन जीना पड़ता था तब प्रकृति एवं प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों को समझना संभव हो पाता था | जिनसे राजाओं समेत समस्त समाज को आगे से आगे सचेत कर दिया जाता था |

   जिस प्रकार से पानी में उतरे बिना तैरना सीखना संभव नहीं होता है उसी प्रकार से प्रकृति के सन्निकट रहे बिना प्रकृति एवं प्राकृतिक घटनाओं को समझना संभव नहीं है | ऋषि मुनि महात्मा तो वर्तमान समय में भी हैं किंतु प्रकृति की पहचान वही कर पाते हैं जो जितने प्रकृति के समीप रहते हैं |महानगरों में सुख सुविधा पूर्ण जीवन जीते हुए न तो प्रकृति को समझना संभव है और न ही प्राकृतिक परिवर्तनों को समझ पाना संभव है और न ही मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगा पाना ही संभव है |

     कुल मिलाकर प्रकृति से दूर रहकर मौसम आदि प्राकृतिक घटनाओं के विषय में जो पूर्वानुमान लगाए जाते हैं उनका सही न निकलना स्वाभाविक है | इसके लिए कोई जलवायुपरिवर्तन ग्लोबलवार्मिंग आदि काल्पनिक आशंकाओं को जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं है |

       प्राचीन प्रकृति वैज्ञानिक लोग उन प्राकृतिक परिवर्तनों के अभिप्राय को समझने के लिए समय समय पर होने वाले परिवर्तनों का परीक्षण करके अच्छे बुरे समय की पहचान किया करते थे | पेड़ों पौधों बनौषधियों जीव जंतुओं आदि में होने वाले सूक्ष्म परिवर्तनों का अत्यंत गंभीर अध्ययन अनुसंधानादि किया करते थे | इसके आधार पर भविष्य में घटित होने वाली प्रकृति तथा जीवन से संबंधित घटनाओं के विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगा लिया करते थे |

    ऐसे प्राकृतिक अनुसंधानों को करने के लिए अच्छे बुरे समय की पहचान पहले गणित योग आदि पद्धतियों के द्वारा की जाती थी फिर उनका मिलान प्राकृतिक लक्षणों एवं जीव जंतुओं में स्वभाव में होने वाले सूक्ष्म परिवर्तनों के साथ मिलान करके अच्छे बुरे समय की पहचान कर लिया करते थे |

                                      प्रकृति से अलग होते ही रोगी होने लगते हैं शरीर !

     समय के परिवर्तन क्रम में कई बार सामयिक ऊर्जा के स्तर में परिवर्तन होता है यह प्रकृति क्रम है इन परिवर्तनों को वही शरीर सह पाते हैं जो ऐसी भिन्न भिन्न प्रकार की सामयिक परिवर्तित परिस्थितियों को सहते रहने के अभ्यासी होते हैं | जो नहीं सह पाते हैं वे रोगी होने लग जाते हैं |

     वास्तव में तो इसका अर्थ यह निकाला जाना चाहिए कि वे शरीर ही इतने दुर्बल रहे हैं जो समय के परिवर्तन को पचा नहीं पाए इसीलिए रोगी हो गए हैं | यदि ऐसा न होता और वास्तव में महामारी जैसी कोई ऐसी  बिषैली चीज होती जिससे संक्रमित होकर लोग रोगी हुए होते तो उसका दुष्प्रभाव कुछ लोगों पर ही क्यों पड़ता वह तो सभी प्रकार के व्यक्तियों पर पड़ना चाहिए उससे कुछ लोग ही क्यों संक्रमित होते |  

    जिस प्रकार से हमेंशा वातानुकूलित भवनों में रहने वाले लोग अचानक यदि सर्दी या गरमी के खुले वातावरण में बाहर निकल जाएँ तो वे उस प्रकार की सर्दी गरमी लू आदि को पचा नहीं पाते हैं और रोगी होते देखे जाते हैं यदि उनके शरीर ऐसे वातावरण के निरंतर अभ्यासी होते तो उन्हें ऐसे वातावरण में निकलने से कोई परेशानी नहीं होती | किसानों गरीबों ग्रामीणों बनबासियों या श्रमिक वर्ग के लोगों को इसीलिए ऐसी परिवर्तित परिस्थिति जन्य समस्याओं से कम जूझना पड़ता है | उन्हें करना जैसी महामारी से भी बहुत कम जूझना पड़ा है क्योंकि वे ऐसी वैसी सामयिक ऊर्जा पचाने के निरंतर अभ्यासी बने रहते रहे हैं |

     प्रकृति  प्रभाव को क्रमशः सहना पड़ता है | सर्दी या गरमी की ऋतु के प्रारंभ  पहले से  व्यक्ति खुले प्राकृतिक वातावरण में रहना प्रारंभ करदे तो जैसे जैसे सर्दी या गर्मी बढ़ती जाएगी वैसे वैसे उस तापमान को  अशरीर अभ्यासी होता चला जाएगा और उस प्रकार के वातावरण में भी उन्हें कोई परेशानी नहीं  यही कारण है कि भीषण सर्दी में भी लोग गंगा आदि पवित्र नदियों में स्नान करते रहते हैं उन्हें कोई शारीरिक परेशानी नहीं होती है किंतु उसी समय कोई अभ्यासी व्यक्ति गंगा जी में डुबकी लगावे तो उसे कई रोग होने की  है इसका आशाय यह तो  निकाला जाना चाहिए कि गंगाजल से स्नान करने से रोग होते हैं |

     जो लोग शारीरिक श्रम व्यायाम आदि करते हैं  उनके अंगों में लचक बनी रहती है इसलिए उनके हाथ पैर यदि अचानक थोड़े बहुत मुड़ भी जाएँ तो ऐसे लोग सह जाते हैं उनके अंगों को नुक्सान नहीं पहुँचता है | दूसरे जो ऐसा नहीं करते हैं उनके साथ वैसा होने पर उन्हें झटका लग जाता है जो कई दिन तक दर्द करता है | ये दोष हमारे अभ्यास छोड़ देने का है |

    जिस प्रकार से किसी ट्रेन पर कोई यात्री बैठ जाए उसके बाद ट्रेन की गति धीरे धीरे बढ़ती जाती है तो वह यात्री उसमें बैठा चला जाता है ट्रेन कितनी भी तेज क्यों न चलने लगे ,किंतु यदि कोई व्यक्ति  एक बार ट्रेन पर चढ़ चल दे जैसे ही गति बढ़ने लगे तो वह उससे कूद जाए | इसके बाद दौड़कर यदि उसी तीव्रगतिगामिनी ट्रेन को पकड़   कर चढ़ना चाहे तो उसे चोट लगने की पूरी संभावना रहती है |

    इसीप्रकार से ऋतुएँ बदलती हैं उसी समय खुले वातावरण में रहना प्रारंभ कर दिया जाए तो  हमारा शरीर खुला प्राकृतिक वातावरण सहने का आदी हो जाता है किंतु यदि उससे एक बार अलग हो जाता है और पुनः उसी में सम्मिलित होना चाहता है तो शरीर के रोगी होने की पूरी संभावना रहती है |

    ऐसी परिस्थिति में प्राकृतिक वातावरण की सभी परिस्थितियों में यदि हम रहने के अभ्यासी हो जाएँ तो वातावरण में बदलाव आने पर भी हम स्वस्थ बने रह सकते हैं |

                                        हमारी स्वास्थ्य समस्या हम स्वयं ही हैं !     

     पाठ्यक्रम की पुस्तकों में अक्सर देखा जाता है कि विद्यार्थियों को सीखने के लिए कुछ सवाल हल किए हुए मिलते हैं उसके बाद कुछ ऐसे सवाल दिए जाते हैं जो अपने को हल करके दिखाने होते हैं | वे सवाल जितने प्रतिशत सही निकलते हैं वही उस विद्यार्थी की योग्यता होती है |उस विद्यार्थी को उतने प्रतिशतअपने लक्ष्य के साधन में सफल मान लिया जाता है |

    नारी जीवन भी उसी प्रकार का होता है वह जिस परिवार में पैदा होती हैउसे माता पिता भाई बहन बंधु बांधव आदि स्नेहपूर्ण संबंध मिलते हैं इसके आधार पर ससुराल रूपी परीक्षा हाल में ससुरालीजनों के रूप में जो प्रश्नपत्र मिलता है उन लोगों को अपना बनाने की बड़ी जिम्मेदारी का निर्वाह करना ही उनकी परीक्षा होती है |ससुराल के संबंधों को सँभालकर चलने में वे जितने प्रतिशत सफल हो जाती हैं वही उनकी वास्तविक योग्यता होती है इसी के आधार पर ससुरालीजनों के बीच उनकी योग्यता इतनी अधिक बढ़ जाती है वे उस परिवार की आफीसर बन जाती हैं अर्थात पूरा परिवार छोटे बड़े का भेदभाव भूलकर उनकी सलाह के बिना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ता है |

  शुरू में तो संघर्ष सभी जगह करना पड़ता है बड़े बड़े डॉक्टर इंजीनियर आदि बनने के लिए या प्रशासनिक अधिकारी आदि बनने के लिए क्या कम संघर्ष करना पड़ता है क्या वहाँ परीक्षाएँ आसान होती हैं क्या वहाँ प्रश्नपत्र अपनी इच्छा के अनुशार मिल जाता है |वहाँ तो प्रश्नपत्र बनाने वाले लोग एक से एक कठिन टेढ़े मेढ़े भ्रमित कर देने वाले  अत्यंत कठिन प्रश्न पत्रों का निर्माण करते हैं |यही उनकी सफलता होती है | उन्हें समझकर जो छात्र उत्तर लिखकर उत्तीर्ण हो जाता है यही तो उसकी योग्यता होती है | यदि परीक्षा इतनी कठिन न होती तो उसका महत्त्व ही  उतना नहीं होता |  

    जो विद्यार्थी कम पढ़े लिखे होते हैं उन्हें अपनी शैक्षणिक कमजोरी के कारण प्रश्नपत्र ही समझ में नहीं आता है ऐसे लोग अपने ससुराल में निर्वाह न कर पाने का दोष वहाँ के सदस्यों को देने वाली स्त्रियों की तरह अपनी अयोग्यता पर ध्यान न देते हुए प्रश्न पत्र में दिए गए प्रश्नों में ही कमियाँ निकालने लगते हैं | प्रश्न बहुत कठिन हैं कई बार तो घबड़ाकर तलाक लेने वाले स्त्री पुरुषों की तरह परीक्षा ही छोड़कर भाग खड़े होते हैं |

   कई बार अपने द्वारा सही समझकर लगाया गया सवाल भी गलत निकल जाता है | कई बार उसकी लिखावट आदि बिगड़ जाने से परीक्षक उसके भी नंबर काट लेता है | ऐसे समय परीक्षक का व्यवहार बुरा अवश्य लगता है किंतु यह उसका विशेषाधिकार होता है | पठनशील विद्यार्थी ही एक दिन अधिकारी बनते हैं वे भी वही करते हैं जो  उनके साथ किया जा रहा  होता है | ऐसे ही बहुएँ भी सास बनकर वही करती हैं |

    ऐसे ही ससुराली जन कई बार नव विवाहिता बधुओं के द्वारा किए गए अच्छे कार्यों का श्रेय भी उन्हें नहीं देते हैं अपितु उसमें भी कमियाँ निकालकर उन्हें दोषीसिद्ध करते हैं किंतु जिस प्रकार से  द्वारा काटे हुए नंबरों पर क्रोध न करके उसे चुनौती समझकर अगली बार वह कमी भी ठीक कर लेने का निर्णय करके अगली बार अधिक नंबरों से पास होते देखे जाते हैं | जिसका उन्हें अतिरिक्त सम्मान मिलता है |  इसी प्रकार से जो स्त्रियाँ ससुराली जनों के द्वारा निकली गई कमियों को सुधार लेती हैं वह उनकी अतिरिक्त योग्यता में सम्मिलित हो जाता है |

विवाह के बाद कन्या ससुराल जाती है वह घर उसके लिए पराया होता है वहाँ के लोग पराए होते हैं |उन्हें अपना बनाने की विशाल जिम्मेदारी उन पर होती है उन्हीं की सहनशीलता एवं  

अपने घर में अत्यंत दुलार प्यार में पली बढ़ी कन्या जब ससुराल जाती है तो उसे बहुत कुछ सहना पड़ता है सुख दुःख स्वस्थ अस्वस्थ आदि सभी अपनी पीड़ाओं को सहकर दूसरों की सेवा सुश्रूषा आदि करनी पड़ती है |उसके बदले  में उलाहने ताने आरोप प्रत्यारोप अपने माता  पिता भाई बहन आदि अत्यंत प्राणप्रिय पारिवारिक जनों की  बुराइयाँ सुन सहकर भी उन परायों को अपना बनाने का प्रयत्न किया करती है |अपने माता पिता आदि प्रिय परिवार से दूर वह अकेली कन्या अपनी इच्छाओं को दबाकर वहाँ का सबकुछ सहती है | विवाह के दिन से ही ससुराल के रीति रिवाज रहन सहन खान पानआदि को अपनाने लगती है उस घर की बुराइयों में भी अच्छाइयाँ खोजने लगती है प्रतिकूलता में भी अनुकूलता खोजकर अपने को प्रसन्न रखने का प्रयास करने लगती है | अपनी ईमानदारी सेवाभावना परिश्रमशीलता आदि से वालों के रहन सहन आहार व्यवहार आदि अपनाकर धीरे धीरे उस परिवार को इतना अधिक अपना बना लिया करती है कि उस घर में उसे इतना अधिक अच्छा लगने लगता है कि उतना कहीं और दूसरी जगह अच्छा नहीं लगता है |धीरे धीरे  वहाँ सभी लोगों से अपनापन मिलने लगता है | वहाँ वह बहुत अधिक सुखी रहने लगती है | उसी परिवार के सभी सदस्य अपने लगने लगते हैं |

   ऐसी परिस्थिति में यदि उस कन्या ने उस परिवार के स्वाभाविक वातावरण से पूरी तरह समझौता करके वहाँ रहना स्वीकार न किया होता तो उस परिवार में उसका निर्वाह होना  अत्यंत कठिन हो जाता | यदि वह कन्या ससुराल के पारिवारिकजनों  से अलग हटकर अपने लिए कुछ अच्छा अच्छा रहन सहन खान पान आदि का इंतिजाम कर लिया होता और अपने को प्रसन्नता देने वाले लोगों से मिलना जुलना उनके साथ घूमना फिरना आदि स्वतंत्र रूप से अपना लिया होता तो कन्या को उस घर में दुखी होकर कलहपूर्वक जीवन जीना पड़ता |ससुराल का स्वाभाविक वातावरण न सह पाने के कारण ही कई बार तो विवाह विच्छेद जैसी दुखद परिस्थितियों का भी सामना करना पड़ता है |

    कन्या की ससुराल की तरह ही प्रत्येक प्राणी को इस संसार में आना पड़ता है और उसका जिस जगह जन्म  होता है वहाँ के प्राकृतिक वातावरण को धैर्यपूर्वक सहना पड़ता है|जिस प्रकार से कन्या को ससुराल की सभी परिस्थितियों को सहना पड़ता है उसी प्रकार से प्राकृतिक वातावरण में कभी अधिक तीव्र सर्दी गरमी वर्षा आदि प्राकृतिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है | ये प्रतिकूलताएँ कई बार बहुत अधिक बिचलित कर दिया करती हैं फिर भी इन्हें स्वीकार कर लेने में ही भलाई होती है | ऐसी परिस्थितियों से घबड़ाकर कई बार सुख भोग की भावना से सर्दी से बचाव के लिए हीटर गीजर आदि प्रयोग करके एवं गर्मी से बचाव के लिए वातानुकूलित भवनों में रहकर तत्काल तो सुखी हो लिया करते हैं किंतु वास्तविकता यह है कि ऐसे बचाव कार्यों से हम प्राकृतिक वातावरण से अपने को अलग कर लिया करते हैं इससे प्रकृति हमसे उसी प्रकार से प्रकुपित होने लगती है जिस प्रकार से ससुराल में रहती हुई कन्या उस परिवार में रहती हुई वहाँ की परिस्थितियों से अलग हटकर अपने लिए अलग से सुख सुविधाओं का इंतिजाम कर लेने पर ससुराली लोगों के क्रोध का कारण बनती है |

                                                         प्रकृति और जीवन

   ग्रीष्म ऋतु में जहाँ एक ओर गर्म गर्म हवाएँ चल रही होती हैं पेड़ पौधे समेत समस्त प्राकृतिक वातावरण  गर्मी से झुलस रहा होता है समस्त जीव जंतु गर्मी से व्याकुल हो रहे होते हैं | गर्मी से कष्ट तो उन सभी को हो रहा होता है किंतु वे अत्यंत धैर्य के साथ गर्मी को सहते हैं उनसे प्रकृति उसी प्रकार से प्रेम करने लगती  है जिस प्रकार से कोई कन्या सुख सुविधापूर्ण मायका होने पर भी अपनी ससुराल वालों के कठिन समय में या मुसीबत में पड़ जाने पर  मायके की शरण न लेकर ससुराल के लोगों के साथ धैर्य के साथ डटी रहकर उनका साथ देती है | वह ससुराल में सभी को प्यारी लगने लगती है और वहाँ के सभी लोग उससे स्नेह करने लगते हैं | इसी प्रकार से प्रकृति की दुखप्रद लगने वाली परिस्थितियों को सहकर भी जो प्राणी बिचलित न होकर उसे ही स्वीकार करते हैं और उसी से समझौता करके उसी में जीवनयापन करते हैं उनके शरीरों में प्रतिरोधक क्षमता एवं प्राकृतिक प्रकोपों को सहने की सामर्थ्य अधिक होती है | उन पर प्राकृतिक रोगों का प्रभाव भी उतना अधिक नहीं पड़ता है | ऋतु परिवर्तन होने पर या अचानक मौसम बदलने पर अथवा महामारी के आने पर प्रकृति ऐसे लोगों का साथ अधिक देकर इन लोगों का रोगों से अधिक बचाव अधिक करती है |  जो लोग प्रतिकूल परिस्थितियों में प्रकृति का साथ छोड़कर उनसे अलग हटकर हीटर गीजर ए सी आदि से संपन्न सुख सुविधा पूर्ण जीवन जीने लगते हैं | उस प्रकार की परिस्थितियाँ पैदा होने पर प्रकृति भी उनका साथ उतना अधिक नहीं दे पाती है और वे लोग आसानी से रोगी होते जाते हैं | प्राकृतिक कठिनाइयों से घबराकर जो जितने प्रतिशत उससे अलग हटकर जीवन जीने का अभ्यासी हो जाता है वह उतने प्रतिशत कमजोर हो जाता है इसलिए उसे उतने प्रतिशत रोगों का खतरा अधिक रहता है | सुख दुःख हर स्थान पर प्रत्येक परिस्थिति में प्रत्येक समय उपस्थित रहते हैं | हमें उन दोनों के साथ जीना पड़ता है | जिस गाड़ी पर चलने का आनंद हम लेते हैं उसके धचके भी तो हमें ही सहने पड़ेंगे |  

     इसलिए हमें अपने शरीरों को प्रकृति की प्रत्येक परिस्थिति में जीने का अभ्यासी बनाना चाहिए| इससे हम निरंतर प्रकृतिमित्र बने रह सकते हैं | इससे विपरीत यदि ग्रीष्म(गर्मी) ऋतु आने पर वातानुकूलित ठंडे वातावरण में रहकर और ठंडा पानी पीकर अपने को तत्कालीन प्राकृतिक वातावरण से अलग कर लेते हैं | इसके बाद घर बाहर निकलते ही हमें पुनः उसी मुक्त प्राकृतिक वातावरण में निकलना पड़ता है | गंतव्य पर पहुँचकर हम फिर  वातानुकूलित ठंडे वातावरण में बैठते और ठंडा पानी पीते हैं | इस प्रकार से फिर प्राकृतिक वातावरण से अलग हो जाते हैं |

     जिस प्रकार से बिजली के बल्व को बार बार जलाने बुझाने से बल्ब खराब होने का डर रहता है | ऐसे ही चलती हुई ट्रेन में बार बार चढ़ने उतरने से चोट लगने का डर बना रहता है | ठीक इसी प्रकार से प्राकृतिक वातावरण में बार बार सम्मिलित होने और बार बार उससे अलग हटने से शरीर के रोगी होने की पूरी संभावना बनी रहती है

     ऐसी परिस्थिति में बल्ब के बार बार जलने बुझने के लिए हम बिजली को दोषी नहीं ठहरा सकते हैं | चलती  हुई ट्रेन में बार चढ़ने उतरने वाला यदि गिर कर घायल जाए तो इसके लिए ट्रेन को दोषी कैसे कहा  सकता है | मानसून आने और जाने की तारीखों का पूर्वानुमान यदि हम नहीं लगा सके तो इसके लिए मानसूनका क्या दोष ?प्राकृतिक आपदाओं को पूर्वानुमान हम नहीं लगा सके तो दोषी हम हैं इसमें जलवायु परिवर्तन कहाँ से आ गया ?
                                                                            
                                    समयविज्ञान !
     जीवन संबंधित घटनाओं में समय की भूमिका

      समय की परोक्ष भूमिका को समझे बिना स्वास्थ्य ,सम्मान,संपत्ति ,सुख दुःख एवं पद प्रतिष्ठा का घटना बढ़ना ,मित्रों शत्रुओं की संख्या घटना बढ़ना ,मित्रों शत्रुओं में मित्रता एवं शत्रुता की भावना का घटना बढ़ना आदि समय के प्रभाव से घटित होने वाली घटनाओं के लिए हम कुछ वस्तुओं, परिस्थितियों ,व्यक्तियों एवं उनके अच्छे बुरे व्यहार को जिम्मेदार मानकर उनसे ईर्ष्या द्वेष आदि करने लगते हैं जबकि उनका वास्तविक कारण समय होता है |

     स्वास्थ्य पर चिकित्सा का प्रभाव न पड़ना ,पतिपत्नी के स्वस्थ होने के बाद भी संतान न होना आदि | प्रयत्न करने के बाद भी कार्य क्षेत्र में सफल न होना आदि |

     किसी रोगी की चिकित्सा के लिए अत्यंत उन्नत तकनीक, उत्तम औषधियों एवं योग्य चिकित्सकों की मदद के बाद भी कई बार रोगी के स्वस्थ न होने का कारण समय का प्रतिकूल प्रभाव होता है | इसी प्रकार से जंगलों के सुदूर गाँवों में जहाँ न उन्नत तकनीक ,न उत्तम औषधियाँ न योग्य चिकित्सक होते हैं  इसके बाद भी समय के सहयोग से वहाँ के रोगी  भी होते देखे जा रहे होते हैं | कोरोनामहामारी के समय अच्छी प्रकार से कोरोना नियमों का पालन करते हुए उत्तम चिकित्सा व्यवस्था से संपन्न होने पर भी समय के असहयोग के कारण कई लोग संक्रमित होते देखे जा रहे होते हैं| इनके अतिरिक्त कुछ दूसरे जिन्होंने कोरोना नियमों का पालन बिल्कुल नहीं किया कोई सावधानी नहीं बरती चिकित्सा की भी अच्छी व्यवस्था नहीं रही ,बचपन से खानपान भी पौष्टिक नहीं रहा ,इसके  बाद भी समय के सहयोग से स्वस्थ बने रहे |

     सम्मान,संपत्ति ,पद प्रतिष्ठा एवं व्यवसाय आदि के लिए कार्यक्षेत्र में कुछ लोग समर्पित भावना से बहुत प्रयास करके भी समय का सहयोग न मिलने के कारण सफल नहीं हो पाते हैं जबकि कुछ दूसरे लोग बहुत कम प्रयास करके भी समय का सहयोग पाकर सफल होते देखे जाते हैं |

     समय के सहयोग से मित्रों की संख्या बढ़ती है मित्रों में मित्रता की भावना बढ़ती है इसलिए ऐसे समय में जिनसे शत्रुता चली आ रही होती है वे भी मित्र भावना से भावित होने लगते हैं |समय के प्रभाव से कुछ ऐसे लोग जिनसे बहुत पहले संबंध छूट चुके होते हैं वे पुनः आकर मिलने लगते हैं !संबंध विच्छेद करके वर्षों से अलग अलग रह रहे पतिपत्नी आदि भी ऐसे समय पुरानी बातें भूलकर एक साथ प्रेम पूर्वक रहने लग जाते हैं |

     इसी प्रकार से समय का सहयोग न मिलने पर अकारण शत्रुओं की संख्या बढ़ने लगती है |इसी के साथ ही ऐसे समय शत्रुओं में शत्रुभावना अधिक तेजी से बढ़ते  देखी जाती है |

      इसीप्रकार से जीवन में और भी बहुत सारी  ऐसी घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं जिनके घटित होने का कारण समय होता है जो प्रत्यक्ष रूप से दिखाई नहीं पड़ रहा होता है|इसलिए वास्तविक कारण केअभाव में उसके आस पास की चीजों को ही हम वास्तविक कारण मान लिया करते हैं|उन्हीं कल्पित कारणों को आधार बनाकर अनुसंधान किया करते हैं | ऐसी भूलें अक्सर हुआ करती हैं जिससे हम वास्तविक कारण तक नहीं पहुँच पाते हैं |

     समय शक्ति से अनजान लोग कई बार ऐसा कहते सुने जाते हैं कि लक्ष्य कितना भी बड़ा क्यों न हो यदि सच्चे मन से उसके लिए प्रयत्न किया जाए तो सफलता अवश्य मिलती है ऐसी बातों पर विश्वास करके बहुत लोग अपने लक्ष्य को पाने के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर देते हैं फिर भी समय का सहयोग न मिलने के कारण वे सफल नहीं हो पाते हैं |असफलता के कारण तनाव के शिकार होकर कई बार नशा या अन्य प्रकार के अपराध आदि में संलिप्त होते देखे जाते हैं | कर्म पर विश्वास करके किसी प्रेमिका को पाने के लिए सभी प्रकार के प्रयत्न करके थक हार चुका कोई असफल व्यक्ति उस लड़की को चोट पहुँचाने के प्रयत्न में लग जाता है | इसमें उस लड़की का कोई दोष नहीं किंतु उस अपराध का शिकार वो होती है | वस्तुतः इस प्रयास में सफलता न मिलने का कारण  समय का साथ न देना ही था | उस कार्य में उसके प्रवृत्त होने का कारण ये कहावत थी -"सच्चे मन से प्रयत्न किया जाए तो सफलता अवश्य मिलती है|"

      एक कहावत ऐसी भी सुनी जाती है कि किसी पत्थर को तोड़ने की क्रिया में सौवीं चोट में पत्थर टूटे इसका मतलब यह नहीं कि निन्यानबे चोटें ब्यर्थ चली गई हैं उनका भी इस कार्य में योगदान रहा होता है |

    समय वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो इस प्रक्रिया में उन चोटों का यही योगदान माना जा सकता है कि किस प्रहार या प्रयास को समय का समर्थन प्राप्त होगा यह पता न होने के कारण लगातार चोट करना ही होगा ताकि इस पत्थर के टूटने का समय आने पर पत्थर टूट जाएगा उस समय यह बहाना नहीं बनेगा कि पत्थर टूटने का समय आने पर चोट नहीं मारी जा सकी |

        कुलमिलाकर प्रत्येक घटना में प्रयत्न का महत्त्व अवश्य होता है किंतु प्रयत्न सफल वही होते देखे जाते हैं जिनमें समय का सहयोग मिलता है |

                                      घटनाओं  के घटित होने के कारण का महत्त्व !

     महामारी,भूकंप, सुनामी, आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात एवं बादलों के फटने,ओलेगिरने,तापमान अचानक अधिक बढ़ने-घटने तथा अतिवृष्टि और अनावृष्टि जैसी प्राकृतिक घटनाओं के लिए जिम्मेदार कुछ प्रत्यक्ष कारण दिखाई पड़ते हैं कुछ परोक्ष कारण ऐसे होते हैं जिनके सहयोग से इसप्रकार की घटनाएँ घटित हो रही होती हैं किंतु वे दिखाई नहीं पड़ रहे होते हैं |

    जिसप्रकार से किसी कारखाने में बड़ी बड़ी विशालकाय मशीनें चल रही होती हैं | उन मशीनों  में लगे छोटे छोटे पुर्जे भिन्न भिन्न प्रकार की भूमिका अदा कर होते हैं |ऐसी मशीनों के चलने के कारण जो शोर हो रहा होता है | उस शोर को बंद करने के लिए मशीनों का बंद होना आवश्यक लगता है |

     कारखाने में प्रत्यक्ष तो मशीनें ही चलते दिखाई पड़ रही होती हैं किंतु मशीनें कब तक चलेंगी इसका पूर्वानुमान नहीं पता होता है और मशीनों को पकड़ कर तो बंद नहीं किया जा सकता है |ऐसी परिस्थिति में मशीनों को बंद किया जाना उसीप्रकार से असंभव सा लगता है जिसप्रकार से महामारी,भूकंप, सुनामी, आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात एवं बादलों के फटने,ओलेगिरने,तापमान अचानक अधिक बढ़ने-घटने तथा अतिवृष्टि और अनावृष्टि जैसी प्राकृतिक घटनाओं को रोकना असंभव माना जाता है |

      मशीनों को चलने की ताकत देने वाली ऊर्जा जिस पावर हाउस से आ रही होती है |वह कितना भी दूर क्यों न हो वहीं बैठे बैठे  कारखाने में आने वाली बिजली की सप्लाई बंद करके यहाँ चल रही मशीनों को रोका जा सकता है |इस प्रकार से मशीनों को बार बार चलाया और बंद किया जा सकता है |

    जिसप्रकार से ऊर्जा को पावरहाउस से मशीनों तक आते जाते कोई नहीं देख पाता है उसी प्रकार से महामारी,भूकंप, सुनामी, आँधीतूफ़ान चक्रवात बज्रपात जैसी बड़ी प्राकृतिक घटनाओं को मिलने वाली ऊर्जा को को भी देख पाना असंभव होता है |महामारी,भूकंप, सुनामी, आँधीतूफ़ान चक्रवात बज्रपात जैसी इतनी बड़ी बड़ी प्राकृतिक घटनाओं को घटित होने के लिए बहुत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है | वह ऊर्जा कहीं न कहीं से तो मिल ही रही होती है और जहाँ कहीं भी इस ऊर्जा का पावरहाउस है यदि उसे यदि खोज लिया जाए तो उसके आधार पर ऐसी घटनाओं एवं उनके वेग के विषय में पूर्वानुमान लगाना आसान हो सकता है |   

   कुल मिलाकर किसी मशीन को चलाने के लिए ऊर्जा कहाँ से मिलती है उस ऊर्जास्रोत को खोजना होगा उसकेबाद  ऊर्जा स्रोत को रोकने की प्रक्रिया खोजनी होगी यदि ऊर्जा  स्रोत रोकना संभव न भी हो तो भी उस ऊर्जा के  आवागमन के आधार पर इस बात का पूर्वानुमान लगाना आसान हो जाएगा कि मशीनों से निकलने वाला शोर बंद कब होगा |  

    इसीप्रकार से महामारी, भूकंप, सुनामी, आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात एवं बादलों के फटने,ओलेगिरने,तापमान अचानक बढ़ने-घटने तथा अतिवृष्टि और अनावृष्टि जैसी प्राकृतिक घटनाओं को घटित होने के लिए आवश्यक  ऊर्जा की आपूर्ति कहाँ से होती है उस ऊर्जा स्रोत को खोजकर ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |प्राकृतिक घटनाओं को घटित होने की ताकत देने वाली वास्तविक ऊर्जा समय है | जिस प्रकार से जब तक ऊर्जा मिलती रहती है तब तक मशीनें चलती रहती हैं उसी प्रकार से जब तक समय का साथ मिलता रहता है तब तक प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती रहती हैं और समय का साथ मिलना बंद होते ही सभीप्रकार की प्राकृतिक घटनाओं की गति रुक जाया करती है |

                               समय ही होता है प्राकृतिक घटनाओं के लिए ऊर्जा स्रोत !  

    जिस प्रकार से मशीनों के चलने न चलने के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान  लगाने के लिए ऊर्जास्रोत के विषय में जानकारी होनी आवश्यक होती है उसीप्रकार से महामारी, भूकंप, सुनामी, आँधीतूफ़ान चक्रवात आदि प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान लगाने के लिए समय संबंधी जानकारी होना आवश्यक होती है | समय के संचार को समझने  के लिए सूर्य के  संचार को समझना अत्यंत आवश्यक है और सूर्य के संचार को समझने के लिए पूर्वजों ने गणितीय अनुसंधान प्रक्रिया खोज रखी है जिसके आधार पर सूर्य चंद्र आदि ग्रहों एवं ग्रहणों से संबंधित विषयों में पूर्वानुमान लगा लिए जाते हैं | उसी गणितीय अनुसंधान प्रक्रिया के आधार पर महामारी, भूकंप, सुनामी, आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात एवं बादलों के फटने,ओलेगिरने,तापमान अचानक बढ़ने-घटने तथा अतिवृष्टि और अनावृष्टि जैसी प्राकृतिक घटनाओं  के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |

      महामारी, भूकंप, सुनामी आदि समस्त प्राकृतिक घटनाओं का निर्माण समय की गति से निबद्ध है वह लाखों वर्ष पहले निर्धारित प्राकृतिक प्रक्रिया का अंग है |ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए परोक्षविज्ञान की समझ होनी आवश्यक होती है |इसके अभाव में जिसप्रकार से किसी कारखाने की चलती हुई मशीनों को देखकर हम उनके विषय में न तो यह अनुमान लगा सकते हैं कि इनके चलने का कारण क्या है अथवा इन्हें चलने  ऊर्जा कहाँ से मिल रही है और न ही यह जान सकते हैं कि ये मशीनें कब तक चलेंगी | इस प्रकार का कोई भी अनुमान नहीं लगा सकते हैं |

      ऐसी परिस्थिति में केवल बादलों को एवं आँधीतूफानों को उपग्रहों रडारों की मदद से देखकर उनके विषय में कोई अनुमान या पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है |  सच्चाई ये है कि प्रकृति और जीवन से संबंधित घटनाओं  का वास्तविक कारण खोजने या पूर्वानुमान पता लगाने के लिए अभी तक कोई वैज्ञानिक विधा विकसित नहीं है | जिस परोक्ष विज्ञान के द्वारा ऐसी घटनाओं को समझना एवं इनके विषय में अनुसंधान पूर्वक पूर्वानुमान लगाना संभव है उस परोक्षविज्ञान के वैज्ञानिकों का अभाव है जिसके कारण महामारी समेत समस्त प्राकृतिक घटनाओं के वास्तविक कारण को खोजना एवं उसके विषय में पूर्वानुमान लगाना अभी तक असंभव ही बना हुआ है |   

                  घटनाओं के घटित होने के लिए जिम्मेदार कारणों की पहचान

        डेंगू जैसे रोग का प्रसार जिन मच्छरों से होता बताया जाता है वे मच्छर साफ पानी में होते हैं ऐसा भी कहा जाता है | इससे बचाव के लिए कूलर गमलों आदि में संचित पानी हटाने की सलाह दी जाती है | ऐसी परिस्थिति में नियमतः तो  इस प्रकार का पानी समाप्त होने से पहले डेंगू जैसे रोगों से मिलने की आशा की जानी चाहिए किंतु होता ऐसा नहीं है पानी भी बना रहता है और मच्छरों की उपस्थिति में ही डेंगू समाप्त होने लगता है  | इस प्रकार से जिस वर्ष जब जब डेंगू जोर पकड़ता है तब तक इस प्रकार की साफपानी वाले मच्छरों की बातें की जाती हैं किंतु डेंगू  समाप्त होते ही मान लिया जाता होगा कि अब न तो उसप्रकार के मच्छर बचे होंगे और न ही उस प्रकार का साफ पानी ही बचा  होगा तभी तो डेंगू समाप्त हुआ होगा |

     ऐसी परिस्थिति में यदि डेंगू के लिए साफ पानी वाले मच्छरों को जिम्मेदार माना गया तो तर्कों के आधार पर यह प्रमाणित भी होना चाहिए !

      इसीप्रकार से महामारी, भूकंप, सुनामी, आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात बादलों का फटना ओले गिरने , अचानक तापमान बढ़ने या घटने ,अतिवृष्टि एवं अनावृष्टि के जैसी अधिकाँश प्राकृतिक आपदाओं के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार बताया जाता है | जलवायु परिवर्तन होने के लिए जीवाश्म ईंधन (जैसे, कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस) को जलाने के कारण पृथ्वी के वातावरण में तेजी से बढ़ती ग्रीनहाउस गैसों को जिम्मेदार बताया जाता है ।ग्रीनहाउस प्रभाव और वैश्विक तापन को मनुष्य की क्रियाओं का परिणाम माना जा रहा है जो औद्योगिक क्रांति के बाद मनुष्य द्वारा उद्योगों से निःसृत कार्बन डाई आक्साइड आदि गैसों के वायुमण्डल में अधिक मात्रा में बढ़ जाने का परिणाम बताया जा रहा है ।

       ऐसी परिस्थिति में जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार जो मनुष्यकृत कारण बताए जाते हैं नियमतः तो जब उस प्रकार का औद्योगिक विकास नहीं हुआ था | उस समय ऐसी घटनाएँ नहीं घटित होनी चाहिए थीं किंतु ऐसी घटनाएँ तो हमेंशा से घटित होती रही हैं | दूसरी बात ऐसी प्राकृतिक आपदाएँ यदि जलवायु परिवर्तन के कारण घटित होती हैं | तो जलवायु परिवर्तन तो औसत मौसमी दशाओं के पैटर्न में ऐतिहासिक रूप से बदलाव आने को कहते हैं। सामान्यतः इन बदलावों का अध्ययन पृथ्वी के इतिहास को दीर्घ अवधियों में बाँट कर किया जाता है।

     इस दीर्घावधि का मतलब ये दीर्घकालीन बदलाव है ये ऐसा नहीं कि किसी वर्ष होगा और किसी वर्ष नहीं होगा किंतु व्यवहार में ऐसा देखा जाता है कि कई बार कुछ वर्षों तक ऐसी घटनाएँ घटित होती दिखाई देती हैं कई बार दशकों तक नहीं घटित होती हैं महामारी की आवृत्तियाँ तो सौ वर्ष में होती बताई जाती हैं |

     विशेष बात है कि ऐसी दुर्घटनाओं का कारण यदि मनुष्यकृत कर्मों से उत्पन्न जलवायु परिवर्तन को माना जाए तब मनुष्यकृत  औद्योगिक क्रांति कभी रुकती तो है नहीं वह तो दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है इसका मतलब तो यह हुआ कि ऐसी प्राकृतिक दुर्घटनाओं को हमेंशा बढ़ते ही जाना चाहिए किंतु ऐसा होते हमेंशा तो देखा नहीं जाता है | दूसरी बात ऐसी दुर्घटनाएँ तो हजारों वर्ष पहले भी घटित हुआ करती थीं तब मनुष्यकृत ऐसे औद्योगिककारण तो बिल्कुल नहीं थे | उस समय ऐसी दुर्घटनाओं के घटित होने का कारण क्या रहा होगा |

      इसी प्रकार से महामारी से संक्रमितों की संख्या बढ़ने का कारण शोशल डिस्टेंसिंग,सैनिटाइजिंग,छुआछूत ,भोजन में साफ सफाई ,मॉस्क धारण लॉक डाउन जैसे कोविड नियमों का पालन न होना बता दिया जाता था और कोरोना  संक्रमितों की संख्या घटने का कारण कोविड नियमों का पालन मान लिया जाता था | परिस्थिति यहाँ तक पहुँच गई कि ऐसे कल्पित कोविड नियमों का पालन इस प्रकार से किया कराया जाने लगा जैसे ये सामान्य अनुमानित कोविड नियम न होकर अपितु कोरोना संक्रमण से मुक्ति दिलाने में सक्षम ये स्वयं कोई अमोघ औषधि ही हैं | ऐसे कोरोना नियमों के पालन के परिणामों का परीक्षण हुए बिना ही इनके बल पर महामारी को जीत लेने या उस पर विजय प्राप्त करलेने या उसे पराजित कर देने जैसी गर्वोक्तियाँ बोली जाने लगीं जिनके प्रभाव का प्रमाणित होना अभी तक अवशेष था |

      ऐसी परिस्थिति में कोरोना नियमों के पालन पर इतने बड़े विश्वास का वैज्ञानिक आधार क्या था जिसे महामारी से जूझती जनता के लिए अनिवार्य बताया जाता रहा है |दूसरी बात यदि किसी के महामारीमुक्त  रहने का कारण कोरोना नियमों का पालन ही माना जाता था तो जिन साधन विहीन लोगों ने परिस्थिति बशात कोरोना नियमों का पालन बिल्कुल नहीं किया धनहीनता के कारण उनका खानपान रहन सहन आदि भी प्रतिरोधक क्षमता तैयार करने लायक नहीं था इसके बाद भी यदि वे स्वस्थ बने रहे तो उनके महामारीमुक्त रहने का वैज्ञानिक कारण क्या रहा होगा ?

    कुल मिलाकर हम जिस प्रकार से प्रत्येक प्राकृतिकआपदा के लिए जिम्मेदार आधार भूत कारण मनुष्यकृत कर्मों को मान लिया करते हैं ऐसा मानने के पीछे वैज्ञानिक अनुसंधान आधारित वे तर्क क्या हैं जिनसे प्रभावित होकर हमें लगता है कि सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के लिए मनुष्य स्वयं ही जिम्मेदार है | उन प्राकृतिक घटनाओं का वास्तविक कारण एवं उनके विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई सुदृढ़ वैज्ञानिक अनुसंधान प्रक्रिया खोजने की जगह हम मनुष्यों के आवश्यक कार्यों में रोड़ा लगाने लग जाते हैं | मनुष्य ऐसा करना बंद कर दे तो ये प्राकृतिक घटना घटित होनी बंद हो जाएगी वैसा करना बंद कर दे तो वो प्राकृतिक घटना घटित होनी बंद हो जाएगी | ऐसा कहने के पीछे यदि यह विश्वास नहीं है कि मनुष्य ऐसा करना छोड़ ही नहीं सकता तो इतने बड़े विश्वास का तर्कपूर्ण वैज्ञानिक आधार और दूसरा क्या हो सकता है ?

    वस्तुतः  वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर महामारी के दुष्प्रभाव को रोकने में सक्षम यदि कोई कोविड नियम जैसी प्रभावी प्रक्रिया थी तो महामारी जिस किसी भी कारण से जहाँ कहीं पैदा हुई उस समय जिस किसी एक देश में दिखाई पड़ी तो इसका पता लगते ही बाकी देशों प्रदेशों को संयम का परिचय देते हुए कोविड नियमों का कठोरता पूर्वक पालन करते हुए अपने अपने देश वासियों को महामारी संक्रमण से बचाना उनका पहला कर्तव्य बनता था |ऐसा क्यों नहीं किया जा सका यह चिंतन का विषय अवश्य है |

     महामारी सबसे पहले जिस देश में पैदा हुई या पता लगी इसकी जानकारी समस्त विश्व को हुई उन उन देशों के शासकों प्रशासकों ने सभी प्रकार से महामारी पर अंकुश लगाने के प्रभावी प्रयास किए इसके बाद भी महामारी की गति रोकी नहीं जा सकी और धीरे धीरे संपूर्ण विश्व में फैलती चली गई | सभी देश बेचारे विवश होकर महामारी का यह तांडव सहते रहे | महामारी रोकने के लिए किए गए सभी वैज्ञानिक प्रयास निरर्थक होते चले गए |

                      घटनाओं के कारणों की खोज में भ्रम एवं निवारण  के उपायों में संशय !

    कुल मिलाकर प्रत्येक प्राकृतिक घटना देखने में भले अचानक घटित हुई लगे या उसके घटित होने के लिए भ्रमवश कोई न कोई जिम्मेदार कारण दिखाई दे किंतु प्राकृतिक घटनाएँ कभी किसी कारण से नहीं घटित हुआ करती हैं ऐसी घटनाओं को पूर्व निर्धारित निश्चित समय पर घटित होना होता है जिनका टाला जाना संभव नहीं होता है |प्रकृति की  प्रत्येक घटना घटित होने का परोक्ष कारण समय होता है जिसे केवल समय वेत्ता ही समझ पाते हैं | प्राकृतिक घटनाओं के परोक्ष कारण को समझने में असमर्थ लोग वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर प्रत्यक्ष कारणों की कल्पना कर लिया करते हैं और उसी कल्पित प्रत्यक्ष कारण को प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के लिए जिम्मेदार मान लिया करते हैं | उन्हें लगता है कि यदि ऐसा न हुआ होता तो वो प्राकृतिक घटना नहीं घटित हुई होती जबकि उस घटना के लिए जिसको  कारण  समझकर जिस घटना के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है उस प्रकार के कारण तो अक्सर देखे जाते हैं किंतु हर बार उस प्रकार की घटनाएँ तो नहीं घटित हुआ करती हैं |  इससे  यह स्पष्ट हो जाता है कि वह घटना घटित होनी निश्चित थी उसके लिए परोक्ष को न समझपाने की असमर्थता से हम प्रत्यक्ष को कारण मान लिया करते हैं |

     प्रत्येक व्यक्ति की मृत्यु उसकी आयु पूरी होने के कारण होती है जबकि उसके लिए भी कोई न कोई कारण मान लिया जाता है |जो व्यक्ति जहाँ कहीं जिस किसी भी परिस्थिति में होता है जो कुछ भी खाया पिया होता है जो कुछ भी कर रहा होता है आयु का क्षण पूरा  होते ही उसकी मृत्यु हो जाती है | आयु का क्षण पूरा होते समय यदि वह प्रत्यक्ष रूप से किसी दुर्घटना का शिकार  होता है तब तो उसकी मृत्यु का कारण उसी दुर्घटना को मान लिया जाता है अन्यथा उसके आस पास जो जो कुछ हुआ या होता दिखता है जो कुछ खाया पिया पता लगता है उसी को उस व्यक्ति मृत्यु का कारण मान लिया जाता है जबकि ये सही नहीं होता है | तेल की समाप्ति हो जाने से यदि कोई दीपक बुझ जाता है | पेट्रोल  समाप्त होने से यदि कोई गाड़ी रास्ते में रुक जाती है तो इसके लिए किसी दूसरे प्रत्यक्ष कारण की कल्पना करने की आवश्यकता नहीं होती | जीवन में आयु भी तो ईंधन ही है आयु  समाप्त होते जीवन को समाप्त होना ही है |

      किसी भूकंप महामारी या मार्ग दुर्घटना की चपेट में आकर हुई किसी की मृत्यु के लिए उस दुर्घटना को इसलिए जिम्मेदार नहीं जा सकता है क्योंकि उसी परिस्थिति में फँसे कुछ अन्यलोग जीवित भी तो बचे होते हैं दुर्घटना तो उनके साथ भी घटित हुई किंतु उनकी आयु अवशेष थी इसलिए दुर्घटना से प्रभावित होकर भी वे जीवित बच गए जिनकी मृत्यु हुई उनकी आयु ही पूरी हो चुकी थी | इसका मतलब मृत्यु तो आयु पूरी होने के कारण हुई है दुर्घटना तो मात्र एक बहाना बनती है जो प्रत्यक्ष दिखने के कारण भ्रम हो रहा होता है |परोक्ष कारण को पहचानने की क्षमता होती तो प्रत्यक्ष कारण का भ्रम नहीं होता |

     बहुत ऐसे मनीषी महर्षि तपोनिष्ठ लोग हुए हैं जो अपनी आयु समाप्त होने पर आसन लगाकर सहज भाव से ईश्वर का चिंतन करते हुए निर्धारित मृत्यु का समय उपस्थित होने पर अपने शरीर का बिसर्जन कर दिया करते हैं उस समय मृत्यु का परोक्ष कारण प्रत्यक्ष रूप से दिखाई  पड़ रहा होता है | परोक्ष कारण कारण  न   होता तो वहाँ भी कोई न कोई प्रत्यक्ष कारण खोज लिया गया होता |

   काशी में कोई व्यक्ति प्रतिदिन बिना नागा 40 वर्ष से गंगा नहाने जा रहे थे | जिस समय उसकी आयु पूरी हुई उस समय भी  गंगा नहा रहे थे | सर्दी का समय था | उसी समय उनकी पूर्व निर्धारित मृत्यु तो होनी ही थी इसलिए हो गई | उसके मृत्यु को प्राप्त हो जाने के बाद लोग प्रत्यक्ष कारण खोजने लगे गंगा नहाने थे ठंड लग गई होगी | डुबकी लगाने से साँस फँस गई होगी | ऐसा जानते कि तो गंगा नहाने न जाते घर में गर्म पानी करके नहला दिया जाता आदि आदि जाने प्रत्यक्ष कारणों की  कहानियाँ गढ़ ली गईं और वास्तविक कारण की  जानकारी के अभाव में सर्दी में गंगा नहाने से लगी ठंड को मृत्यु का कारण मान लिया गया |

     प्रकृति से लेकर जीवन तक ऐसी असंख्य घटनाएँ घटित हुआ करती हैं जिनके घटित होने के लिए जिम्मेदार जो वास्तविक कारण होते हैं वे केवल परोक्ष विज्ञान से ही समझे जा सकते हैं परोक्ष विज्ञान से अनभिज्ञ लोग प्रत्येक घटना का कोई न कोई प्रत्यक्ष कारण खोजकर अज्ञानवश उस घटना को टालने के  सपने  देखने लगते हैं |उदाहरण के तौर पर प्रयास पूर्वक जलवायु परिवर्तन पर अंकुश लगाया जा सकता है और ऐसा होते ही सभी प्रकार की प्राकृतिक दुर्घटनाएँ घटित होनी कम हो सकती हैं | मच्छरों को समाप्त करके डेंगू से मुक्ति पा लेने के सपने देखे जाते हैं | भ्रमवश  कोविड नियमों का पालन करके महामारी से बच लेना चाहते हैं क्योंकि अज्ञान वश हमने ऐसा  भ्रम पाल लिया है कि महामारी पैदा होने का कारण एक दूसरे के संपर्क में आने से होने वाली छुआ छूत  है किंतु सभी के संपर्क में बड़ी  बड़ी भीड़ में हम हमेंशा से रहते रहे महामारी  तो अभी आई है | इसलिए महामारी का कारण छुआ छूत न होकर अपितु इसका वास्तविक कारण कुछ और है जिसे केवल परोक्ष विज्ञान से समझा जा सकता है उसके अभाव में ही ऐसे भ्रम पाल लिए जाते हैं |

  समय के प्रभाव को समझे बिना होता है जलवायुपरिवर्तन का भ्रम !

      वर्षाऋतु एक स्वतंत्र समय खंड है जो प्रत्येक वर्ष एक निश्चित समय के लिए अपने समय पर आते जाते दिखाई देता है यह एक स्वतंत्र घटना है | अलनीनो ला-निना जैसी स्वतंत्र समुद्री घटना है | इन दोनों को एक साथ जोड़कर देखने का औचित्य ही क्या है और इनका आपस में संबंध कैसे सिद्ध होता है | इसीलिए इसके आधार पर वर्षा संबंधी दीर्घावधि पूर्वानुमान तथा मानसून आने जाने संबंधी भविष्यवाणियाँ एवं तापमान बढ़ने घटने के विषय में बताए गए पूर्वानुमान प्रायः गलत निकलते रहे हैं |

      घटनाओं के घटित होने में समय की भूमिका को समझे बिना कई बड़े संशय पैदा हो जाते हैं |मई जून के अधिक गर्मी वाले दिनों की अपेक्षा क्रमशः तापमान कम होता चला जाता है और दिसंबर आदि महीनों में तापमान बहुत कम हो जाता है | इसका यह मतलब तो नहीं है कि इसी अनुपात में तापमान घटता ही चला जाएगा इसी क्रम में आगे के कुछ महीनों वर्षों में तो और अधिक घटता ही चला जाएगा | इस प्रकरण में समय के संचार को समझने के कारण ही तो हमें पता है समय क्रम में कितने महीनों तक तापमान कम होता चला जाएगा और उसके बाद बढ़ना प्रारंभ होगा शिखर पर पहुँच कर फिर कम होना प्रारंभ हो जाएगा | तापमान के घटने बढ़ने की यह प्रक्रिया प्रत्येक वर्ष में दोबार प्रत्येक महीने में महीने में चार बार और प्रत्येक दिन में दो बार घटित होती है |ये उसका अपना क्रम है |

     मौसम संबंधी दीर्घावधि गतिविधियों को देखा जाए तो कुछ दशकों में वर्षा बहुत हुई होती है कुछ दशकोंमें सामान्य तो कुछ दशकों में कम होती है | किसी एक दशक को लिया जाए तो कुछ वर्षों में अधिक वर्षा हुई होती है कुछ में सामान्य और कुछ में कम होती है | प्रत्येक वर्ष के बारिश संबंधी महीनों के कुछ सप्ताहों और उनके कुछ दिनों में इसी प्रकार का क्रम घटित होते देखा जाता है | यही क्रम सभी प्रकार की मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में घटित होते देखा जाता है | प्राकृतिक घटनाओं का वेग कम और अधिक होना तो उनके संचार क्रम में सम्मिलित ही है | इसलिए ऐसा होते रहना स्वाभाविक ही है |इसी प्रकार प्रत्येक महीने में कुछ दिनों तक चंद्रमंडल का  घटते जाना उसके बाद बढ़ने लगना एक निश्चित समय के बाद फिर कम होना प्रारंभ होता है | ग्लोबलवार्मिंग जैसी दीर्घावधि प्राकृतिक अवस्था भी इसी प्राकृतिक क्रम का ही तो अंश है | इसीलिए एक निश्चित अवधि तक बढ़ना एवं उसके बाद कम होना प्रारंभ होता जाएगा | यही तो समय प्रेरित प्रकृति क्रम है |

       समय के परोक्ष प्रभाव की समझ के अभाव में जलवायुपरिवर्तन जैसा भ्रम कल्पित बेचैनी बढ़ा रहा है ऐसी मिथ्या धारणा पालकर लोग स्वयं भी डर रहे हैं दूसरों को भी डरवाते देखे जा रहे हैं | आज के सौ वर्ष बाद ऐसा होगा दो सौ वर्ष बाद वैसा होगा |उससे तापमान बढ़ जाएगा सूखा पड़ेगा अकाल पड़ेगा आँधी तूफ़ान आएँगे ऐसा वो लोग करते हैं जो चार दिन पहले के मौसम संबंधी पूर्वानुमान सही नहीं बता पाते हैं | जिनकी बताई गई मानसून संबंधी तारीखें प्रतिवर्ष गलत होती हैं वे आज के सौ दो सौ वर्ष बाद जलवायुपरिवर्तन के कारण घटित होने वाली घटनाओं के विषय में किस आधार पर ऐसी बातें बोल रहे होते हैं | ये उस प्रकार की अज्ञानजनित परिकल्पना है कि सूर्योदय होते समय जितना तापमान था उसके छै घंटे बाद यदि इतना बढ़ गया तो उसके बारह घंटे बाद न जाने कितना बढ़ जाएगा  आदि आदि | हमें याद रखना चाहिए कि समय के प्रभाव के बिना प्रकृति में इतना बड़ा बदलावहो ही नहीं सकता है | वैसे भी जिस समय के प्रभाव से जलवायुपरिवर्तन जैसा इतना बड़ा बदलाव प्रकृति में हो जाएगा उस समय का प्रभाव उसी अनुपात में जीवन पर भी तो पड़ेगा | अतएव समय प्रभाव से होने वाले जलवायुपरिवर्तन जनित घटनाओं को सहने की क्षमता समय उसी अनुपात में प्राणियों को भी देगा | इसी क्रम से सृष्टि का संचालन हमेंशा से होता चला आ रहा है | उसे समझने की आवश्यकता है |

     समय के स्वभाव के अनुशार यह उतार चढ़ाव प्रकृति से लेकर जीवन तक सभी प्रकरणों में दिखाई पड़ता है |प्रत्येक महीने में चंद्रमा पंद्रह दिन बढ़ता और पंद्रह दिन घटता है | समय के प्रभाव से यही क्रम प्रकृति से लेकर जीवन तक हमेंशा से चला आ रहा है | जीवन में स्वास्थ्य ,सम्मान,संपत्ति ,सुख दुःख एवं पद प्रतिष्ठा का घटना बढ़ना इसी के उदाहरण हैं | मित्रों शत्रुओं की संख्या घटना बढ़ना ,मित्रों शत्रुओं में मित्रता एवं शत्रुता की भावना का घटना बढ़ना आदि इसी के उदाहरण हैं | पति पत्नीआदि संबंधों में प्रेम भावना का घटना बढ़ना भी इसी समय प्रभाव की देन  है | समय के स्वभाव में बदलाव लाकर हम इस घटने बढ़ने की प्रक्रिया को अपनी सुविधा  के अनुसार किसी एक विंदु पर रोककर अपनी इच्छा से उसका संचालन करना  चाहते हैं |        

     इसीलिए हमारे चिंतन में बैठे जलवायु परिवर्तन जैसे भय से हम केवल प्राकृतिक घटनाओं के विषय में ही नहीं यह सोच सोच कर भयभीत हैं कि आज के सौ दो सौ वर्ष बाद प्रकृति में कैसी कैसी भयावह घटनाएँ जलवायु परिवर्तन के कारण घटित हो सकती हैं अपितु समय की समझ के अभाव में यह विपरीत चिंतन हमारे जीवन को स्वस्थ शांत एवं सहनशील नहीं बनने दे रहा है |हम निरंतर भय के वातावरण में जीवन जीने के लिए विवश हैं |  

    इसी जीवन संबंधी जलवायु परिवर्तन के कारण स्वास्थ्य ,सम्मान,संपत्ति ,सुख दुःख एवं पद प्रतिष्ठा का घटना बढ़ना हम सह नहीं पा रहे हैं | मित्रों शत्रुओं की संख्या घटना बढ़ना ,मित्रों शत्रुओं में मित्रता एवं शत्रुता की भावना का घटना बढ़ना आदि हम से सहा नहीं जा रहा है |हम जीवन संबंधी सारी परिस्थितियाँ प्राकृतिक वातावरण अपने अनुकूल रखना चाहते हैं | हमें दिन पसंद है तो हम रात नहीं होने देना चाहते हैं दिन ही रखना चाहते हैं | इसी विपरीत चिंतन के कारण आशंकाओं में हम अनगिनत एक से एक बड़े अपराध करते देखे जा रहे हैं समाज अपराधी होता जा रहा है किंतु हम जीवन संबंधी जलवायु परिवर्तनका भय भूलने को तैयार ही नहीं हैं | इसी आशंका से हम जीवन संबंधी किसी  एक अपने से विपरीत परिस्थिति से इतना अधिक उत्तेजित हो जाते हैं कि समय क्रम से आने वाले उसी परिस्थिति के दूसरे सुखद पहलू की प्रतीक्षा किए बिना उतावलेपन में कोई न कोई अपराध कर बैठते हैं कि यदि अभी इतना बुरा है तो भविष्य में और अधिक बुरा हो सकता है | जिस मित्र सगे संबंधी मित्र पत्नी आदि से कभी बहुत अधिक स्नेह मिला करता था | जिस समय प्रवाह के साथ आज वह कम हुआ है उसी के साथ कल फिर परिवर्तन होगा उसके साथ भावनाएँ फिर बदलेंगी फिर आपस में अधिक स्नेह स्थापित होगा | ऐसा सोचने और प्रतीक्षा करने के बजाय हम भविष्य भय से आशंकित होने के कारण तुरंत वाद विवाद लड़ाई झगड़ा करते हुए संबंध विच्छेद करने लगते हैं | जिससे कभी स्नेह रह चुका होता है उसे ही चोट पहुँचाने के विषय में सोचने लगते हैं | ऐसा जीवन संबंधी स्वास्थ्य ,सम्मान,संपत्ति ,सुख दुःख एवं पद प्रतिष्ठा आदि प्रत्येक परिस्थिति के विषय में सोचना चाहिए |

    इसलिए हमें प्रकृति और जीवन से संबंधित विपरीत परिस्थितियों के प्रति भी सकारात्मिका सोच रखनी चाहिए | वे परोक्ष रूप से हमारे प्रकृति एवं जीवन के लिए सहायक समझकर ही समय के द्वारा कुछ कठोर निर्णय लिए जा रहे होते हैं जिनके परिणाम स्वरूप हमें प्रकृति और जीवन में कुछ सुखशांति प्रद परिस्थितियाँ मिल जाती हैं |ग्लोबल वार्मिंग और जलवायुपरिवर्तन जैसी घटनाओंको भी इसी दृष्टि से देखा जाना चाहिए |

                                                     'समय'शास्त्र का महत्त्व

     समय की परोक्ष भूमिका को समझे बिना प्रत्यक्ष के आधार पर मौसम संबंधी जो भी वैज्ञानिक अनुसंधान किए जाते हैं या पूर्वानुमान लगाए जाते हैं उनका सही निकलना संभव इसलिए नहीं होता है क्योंकि प्राकृतिक घटनाएँ समय के अनुशार घटित होती हैं |समय की गति कब कैसी रहेगी यदि हमें यही नहीं पता होगा तो उसके आधार पर घटित होने वाली प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकेगा |

    वैज्ञानिक अनुसंधानों के इसी अधूरेपन का दंड कोरोना महामारी के  समय जनता ने खूब भोगा है | महामारी संबंधित अध्ययनों अनुसंधानों में हमने प्रत्यक्ष कारण तो ग्रहण किए किंतु परोक्ष कारण भूलते रहे जबकि महामारी में सबसे अधिक भूमिका ही उनकी थी |

    इसी अज्ञान के कारण इतनी उन्नत वैज्ञानिक उपलब्धियों का सहयोग पाकर भी तीन वर्ष तक समस्त विश्व को रौंदती रही महामारी के विषय में कुछ भी पता न तो लगाया जा सका है और न ही लगाया जा सकेगा | महामारी समाप्त होने पर महामारी पैदा होने एवं संक्रमितों की संख्या बढ़ने घटने के कुछ कल्पित कारण मान लिए जाते हैं एवं उस समय जो औषधियाँ  चलाई जा रही होती हैं उनका महामारी समाप्त होने से कोई संबंध न होने पर भी उन्हें  महामारी की औषधि होने का भ्रम पालकर उसे लेने के  बाध्य होना पड़ता है |

   अभी तक महामारी को समझने के लिए जो वैज्ञानिक प्रक्रिया अपनायी जा रही है वह उस ताले की चाभी ही नहीं है जिसे खोलने का प्रयास किया जा रहा है | उस  प्रक्रिया से महामारी सहित सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं को समझना संभव ही नहीं है | यही कारण है कि भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुए लगभग डेढ़ सौ वर्ष होने जा रहे हैं उसके द्वारा अभीतक महामारी से लेकर भूकंप मौसम आँधी तूफ़ान जैसी सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का न तो सही कारण खोजा  जा सका है और न ही पूर्वानुमान बताया जा सका है |

     इन्हीं अधूरे अनुसंधानों का प्रतिफल है कि भूकंपों के घटित होने का कारण खोजने के लिए हम धरती के अंदर गहरे गड्ढे खोदा बंद किया करते हैं | हमें लगता है कि भूकंप में धरती काँपती है चूँकि ये रोग धरती का है तो इसके कारण भी धरती में ही होंगे | इसके परोक्ष कारणों पर अगर ध्यान दिया जाता तो यह भी सोचा जा सकता था कि किसी भय से या सर्दी में ठंडी हवाएँ लगने जैसे बाह्य कारणों से भी लोगों के शरीरों में कंपन होते देखा जाता है | ऐसे कंपन को समझने के लिए उसके पेट में छेद न करके अपितु परोक्ष विज्ञान का प्रयोग करते हुए इस बात का अनुमान लगा लिया जाता है कि उस व्यक्ति के काँपने का कारण क्या हो सकता है|भूकंपन में भी परोक्षवैज्ञानिक अनुसंधानों से मदद मिल सकती है |

      संसार में प्रकृति और जीवन में घटित होने वाली बहुत सारी घटनाओं के सूत्रधार समय का अनुगमन करने वाले बहुत सारे वे प्राकृतिक अंग हैं जिन्हें देखकर उनके आधार पर भावी घटनानाओं  विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |कुलमिलाकर सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं को देखकर ऐसा लगता है कि सभीप्रकार की घटनाओं के घटित होने का कोई न कोई निर्धारित समय अवश्य होता होगा जो एक निश्चित अवधि के बाद आता है उस समय उस प्रकार की घटनाएँ घटित होने लगती हैं | आम जैसे सभी वृक्ष प्रत्येक वर्ष तो नहीं बोने पड़ते हैं ये तो पुराने पुराने वृक्ष जंगलों, बागों एवं खेतों में खड़े होते हैं | समय आने पर पतझड़ होकर नई नई कोपलें फूटने लगती हैं समय के आने पर ये वृक्ष स्वतः फूलने फलने लगते हैं |पेड़ बारहों महीने खड़े खड़े अपनी अपनी ऋतुओं का इंतजार कर रहे होते हैं |

     इस  प्रक्रिया में मनुष्य का हस्तक्षेप दूर दूर तक नहीं दिखाई पड़ रहा होता है | इनकी निर्धारित ऋतुओं के अतिरिक्त किसी दूसरे समय में खाद पानी आदि देकर भी मनुष्य यदि प्रयास भी करे तो भी इनमें फूल फल लगते नहीं देखे जाते हैं |

    प्राकृतिक घटनाओं की विशेष पहचान यह होती है कि एक ही समय में उस प्रकार की अनेकों घटनाएँ अनेकों स्थानों पर  घटित होने लगती हैं | कई बार एक ही समय में स्वदेश से लेकर  विदेश तक कई जगहों पर आग लगने की घटनाएँ घटित होती हैं | कई जगह हिंसक दुर्घटनाएँ घटित होती हैं ,कई जगह विमान दुर्घनाएँ देखी जाती हैं | भूकंप आने लगते हैं कई देशों स्थानों समुदायों वर्गों व्यक्तियों में आपसी तनाव बढ़ने लग जाता है |

  महामारी और समयविज्ञान

        महामारी से व्याकुल समाज को देखकर सभी देशों प्रदेशों वर्गों व्यक्तियों ने अपने अपने अनुशार समाज की सेवा करने का प्रयास किया है | उससे कौन कितना लाभान्वित हुआ है कौन नहीं यह और बात है |इसीक्रम में स्वदेश से लेकर विदेशों तक चिकित्सा की प्रचलित सभी पद्धतियों ने अपने अपने स्तर से समर्पित प्रयास किए हैं इसमें कोई संशय नहीं है | इसीक्रम में समयविज्ञान से संबंधित अनुसंधानों के द्वारा मैं  भी लगभग तीस वर्षों से प्रयासरत हूँ अनुसंधान जनित मेरे भी कुछ अनुभव रहे हैं जिनका मैंने महामारी से संबंधित  उपयोग किया है |  

      इसी प्रकार से प्राकृतिक रोग महारोग आदि होते हैं जिनमें मनुष्यकृतचिकित्सकीय उपायों का बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ पाता है | एक ही समय में कई  देशों प्रदेशों में महामारियाँ पैदा होने लग जाती हैं | विश्व के अनेकों देशों प्रदेशों में महामारी जनित संक्रमितों की संख्या लगभग एक ही साथ बढ़ते या कम होते देखी  जाती है |

       उपायों की दृष्टि से देखा जाए तो कुछ देशों  प्रदेशों में कोविड नियमों का पालन किया गया होता है कुछ में नहीं भी किया गया होता है | वैक्सीन आदि टीकों का सेवन सभी देशों ने अपने अपने यहाँ अपनी अपनी सुविधा के अनुशार किया होता है कुछ देशों ने नहीं भी किया होता है किंतु समय जनित महामारियों की लहरें अधिकाँश देशों प्रदेशों में एक साथ बढ़ते और एक साथ ही कम होते देखी जाती हैं |

     कुलमिलाकर महामारी बढ़ने के समय मनुष्यकृत लापरवाहियों का कोई योगदान होता हो ऐसा प्रमाणित नहीं होता है इसी प्रकार से महामारी से संक्रमितों की संख्या घटने में मनुष्यकृत उपायों का कुछ बहुत अधिक असर नहीं दिखाई देता है  |  

       प्राकृतिक घटनाओं को अपने समय पर घटित होना ही होता है | महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं के पैदा और समाप्त होने में मनुष्यकृत कार्य अधिक प्रभावी होते नहीं देखे जाते हैं इसीलिए प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के लिए मनुष्यों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है |

      प्रकृति के स्वभाव को न समझ पाना ये वैज्ञानिक अनुसंधानों की असफलता है और उन वैज्ञानिक असफलताओं को ढकने के लिए ऐसी घटनाओं के घटित होने के लिए जनता को जिम्मेदार ठहराया जाना ठीक नहीं है और न ही इसे रोकने के लिए जनता का  उत्पीड़न ही किया जाना चाहिए |

       वायु प्रदूषण बढ़े तो उसके बढ़ने और घटने का कारण क्या है यह निश्चित रूप से पता लग जाने के बाद उसे रोके जाने के लिए वैज्ञानिकअनुसंधानों से प्राप्त ऐसे उपाय किए  या करवाए जाने चाहिए जिन  उपायों का परिणाम जनता को भी ऐसा दिखाई पड़ना चाहिए कि इस वर्ष हमने उपाय किए तो इस वर्ष वायु प्रदूषण नहीं बढ़ा | इसकी प्रसन्नता जनता को भी होगी |

                           महामामारी मुक्त समाज का लक्ष्य और समय विज्ञान

     महामारी को वैश्विक दृष्टि से देखें तो कुलजनसंख्या के दस प्रतिशत से भी कम लोग महामारी से संक्रमित हुए हैं |  कल्पना करके देखा जाए तो यदि वे दस प्रतिशत लोग भी संक्रमित न हुए होते अर्थात उन्हें भी संक्रमित होने से बचाया जा सका होता तो महामारी मुक्त समाज की परिकल्पना सार्थक हो जाती | ऐसा होने से एक बार महामारी फैल जाने पर भी मनुष्य समाज को संक्रमित होने से सुरक्षित बचाकर रखा जा सकता था |संभव है कि कोरोना जैसी महामारी का समय आकर चला भी जाता और  किसी को पता भी न लग पाता |

     कोरोना महामारी को ही लिया जाए इसके पैदा होने के विषय में वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा यदि कोई पूर्वानुमान बताया जा सका होता तो वैज्ञानिकों की बातों पर जनता को स्वाभाविक भरोसा होता और उन्होंने  परेशानी उठाकर भी कोविड नियमों का पालन अवश्य किया होता | कोविडनियमों का पालन न करने के कारण जनता पर जुर्माना नहीं लगाना पड़ता |

       कुल महामारी भूकंप आँधी तूफ़ान जैसी सभी  प्रकार की प्राकृतिकआपदाओं  के घटित होने के लिए जिम्मेदार तर्क संगत कारण अभी तक नहीं खोजे  जा सके हैं और उन  कारणों को जाने बिना ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पाया है और इसके बिना  ऐसी घटनाओं से  बचाव के  लिए प्रभावी उपाय नहीं खोजे जा सके हैं ऐसी आधी अधूरी तैयारियों  बल पर महामारियों का  सामना किया जाना संभव नहीं हो  पा रहा है | ऐसे विषयों पर  जहाँ एक ओर  वैज्ञानिक अनुसंधान चला ही करते हैं वहीं दूसरी ओर महामारी भूकंप आँधी तूफ़ान जैसी सभी  प्रकार की प्राकृतिकआपदाएँ घटित होने  लगती हैं जिनके विषय में जनता को कुछ पता  ही  नहीं लग पाता है कि ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों  के नाम पर हुआ क्या करता है |

      महामारी एक प्राकृतिक घटना है और प्राकृतिक घटनाएँ हमेंशा  अपने निर्धारित समय पर ही घटित  होती हैं |इसीलिए जिस प्रकार से बसंत आदि ऋतुएँ अपने समय  से आती हैं तो जाती भी अपने निर्धारित समय से ही हैं |इसी प्रकार सूर्योदय अपने निश्चित समय पर होता है तो सूर्यास्त भी अपने निर्धारित समय  पर ही होता है |ऋतुओं और दिनों की तरह ही महामारी भी समय से ही संबंधित घटना है इसीलिए यह भी समय के साथ पैदा होकर समय के साथ ही समाप्त होती है |    समय से संबंधित घटनाओं को रोका नहीं जा सकता है जिस प्रकार से आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं को रोका नहीं जा सकता है उसी प्रकार से महामारियों को  भी रोकना संभव नहीं है | महामारी जनित संक्रमण घटने बढ़ने का क्रम भी समय जनित ही होता है | कुलमिलाकर प्रकृति और जीवन से संबंधित अधिकाँश ऐसी घटनाएँ समय से संबंधित होती हैं जिनके परिवर्तन में  मनुष्य का कोई बश नहीं  चलता है | इन पर केवल  समय का ही प्रभाव रहता है |

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 पूर्व निर्धारित प्राकृतिकघटनाओं को घटित होने से रोका नहीं जा सकता है !

    समय चक्र के साथ संगुंफित पूर्वनिर्धारित प्राकृतिक घटनाओं को घटित होने से पूरी तरह से रोक कर  नहीं रखा जा सकता | काल्पनिक रूप से यदि ऐसा करना संभव हो भी जाए तो उसके भी दुष्प्रभाव झेलने को उसी प्रकार से तैयार रहना चाहिए जिस प्रकार से शरीर के वेगों को रोक लेने से शरीर रोगी हो जाता है और मन के वेगों को रोक लेने से मन रोगी हो जाता हैं उसी प्रकार से प्रकृति के वेगों को रोक लेने से उसके दुष्प्रभाव भी सहने के लिए तैयार रहना चाहिए | इससे बचाव का एक मात्र रास्ता है कि प्रकृति को छेड़े बिना प्रकृति वेगों से अपनी सुरक्षा कर ली जाए | 

   हम प्रकृति को प्राकृतिक अनुसंधानों के द्वारा यदि समझने में सफल नहीं सके तो इसमें प्रकृति का क्या दोष और किस बात का जलवायु परिवर्तन | प्रकृति के स्वभाव को समझे बिना उपग्रहों रडारों के द्वारा प्राकृतिक घटनाओं की जासूसी करके प्रकृति के स्वभाव को कैसे समझा जा सकता है और उसके आधार पर प्राकृतिक घटनाओं का  पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है | 

    प्रकृति ही हमारी भविष्यवाणियों के अनुशार चलने लगे ऐसा आग्रह क्यों ?"मौसम धोखा दे गया " "मानसून समय पर नहीं आया " "तूफ़ान अचानक आ गया" "चुपके चुपके से आते हैं चक्रवात !"तूफानों को ढोल बजाते आना  चाहिए क्या !" "अप्रत्याशित बारिश होने के कारण पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका " 

 यदि नहीं चलेगी तो जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बताबताकर आखिर कब तक हम अपने को असफल सिद्ध करते रहेंगे | इस जलवायु परिवर्तन को मनुष्यकृत कर्मों का प्रभाव बताकर कब तक मनुष्य समाज को दोषी ठहराते रहेंगे |इस  बहाने से कब तक समाज के आवश्यक कार्यों में अवरोध उत्पन्न करते रहेंगे | इसलिए समाज को दोष देने के  बजाय हमें अपने प्राकृतिक अनुसंधानों को और अधिक प्रभावी बनाने की आवश्यकता है |

     सूर्य चंद्र ग्रहण जैसी कुछ प्राकृतिक घटनाएँ ऐसी भी होती हैं जो ऋतु जैसी वार्षिक घटनाओं एवं सूर्योदय -सूर्यास्त तथा दिन-रात जैसी दैनिक घटनाओं की तरह प्राकृतिक प्रकार से ही घटित होती हैं उनके घटित होने का समय भी निश्चित होता है वे घटनाएँ भी अपने निश्चित समय से ही घटित हो रही होती हैं | यदि ऐसा न होता तो इनके विषय में गणित के द्वारा पूर्वानुमान लगाना संभव न होता जबकि इनके विषय में पूर्वानुमान हजारों वर्ष पहले लगा लिया जाता है | प्रत्यक्ष रूप से देखने पर लगता है कि कोई दो या दो से अधिक ग्रहण पूरी तरह एक जैसे घटित नहीं होते हैं इनका आपसी अंतराल भी एक जैसा नहीं होता है और इनका प्रकार भी एक जैसा नहीं होता इसके बाद भी कब कौन ग्रहण कितने बजे से कितने बजे तक पड़ेगा वो कहाँ कहाँ दिखाई देगा आदि बातों का सही सही पूर्वानुमान लगा लिया जाता है किंतु ऐसा तब संभव हो पाया है जब पूर्वजों ने इस ग्रहण क्रम को समझने का विज्ञान विकसित कर लिया है यदि ऐसा न हुआ होता तब तो हमें महामारी भूकंप आदि प्राकृतिक घटनाओं की तरह ही ग्रहण जैसी घटनाएँ भी अचानक और भिन्न भिन्न प्रकार से घटित होने के कारण ये भी जलवायुपरिवर्तनजनित लगतीं !

    इस युग में तो जो प्राकृतिक घटना एक क्रम और एक समयांतराल से एवं एक प्रकार से नहीं घटित होती है उसका कारण जलवायु परिवर्तन को मान लिया जाता है इसी प्रकार से सूर्य चंद्र ग्रहण जैसी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का कारण भी यदि जलवायुपरिवर्तन को ही मान लिया जाता तो आश्चर्य की बात नहीं होती | वर्तमान समय में वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर बिना कुछ किए धरे ही प्राकृतिक घटनाओं के विषय में हम यहाँ तक एक रूपता खोजने के आदी होते जा रहे हैं कि प्रतिवर्ष मानसून निश्चित तारीख पर आना और निश्चित तारीख पर जाना चाहिए | प्रत्येक वर्ष के प्रत्येक महीने के प्रत्येक सप्ताह में प्रत्येक स्थान पर संतुलित मात्रा में एक जैसी जल वृष्टि होनी चाहिए और सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतु प्रभाव की तरह ही प्रतिवर्ष सब कुछ एक जैसा होना चाहिए | जिससे ऋतुओं की तरह यह भी निश्चित हो कि किस वर्ष किस महीने किस सप्ताह और किस दिन किस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ घटित हो सकती हैं | ऐसा न हो तो उसके लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है क्योंकि ऐसी घटनाओं में एक रूपता नहीं है | 

    इसी प्रकार से महामारी, भूकंप, सुनामी, आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात बादलों का फटने, ओलेगिरने, अचानक तापमान बढ़ने या घटने , अतिवृष्टि एवं अनावृष्टि जैसी प्राकृतिक घटनाएँ भी कभी भी कहीं भी घटित होने लगती हैं | इसलिए इसका कारण भी जलवायु परिवर्तन को ही मान लिया जाता है | वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर प्रकृति से ऐसे आग्रह पाल रखे गए हैं यदि प्रकृति उस आग्रह के अनुशार व्यवहार नहीं करती  है इसका मतलब जलवायु परिवर्तन को बता दिया जाता है | 

    जिस प्रकार से सूर्य चंद्र ग्रहणों के लिए प्रत्येकवर्ष की कोई निश्चित तारीख और निश्चित समय घोषित नहीं किया जा सकता है उसी प्रकार से महामारी, भूकंप, सुनामी, आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात एवं बादलों के  फटने,ओलेगिरने,तापमान अचानक अधिक बढ़ने -घटने तथा अतिवृष्टि और अनावृष्टि जैसी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के लिए कुछ वर्ष महीनों  तारीखों  और समयों  को निश्चित नहीं किया जा सकता है | ऐसी घटनाओं के घटित होने के प्रकार में अनिश्चय का  कारण जलवायुपरिवर्तन को मानना इसलिए उचित नहीं होगा क्योंकि अनिश्चित सी अचानक घटित होती लगने वाली ऐसी प्राकृतिक घटनाएँ भी सूर्य चंद्र ग्रहणों की तरह ही निश्चित होती हैं और अपने अपने निश्चित समय पर घटित हो रही होती हैं | 

    जिस प्रकार से सर्दी गर्मी आदि होने की ऋतुएँ निश्चित होती हैं तो भविष्यवाणी करने में आसानी रहती है | सर्दी की ऋतु  आने से पहले  सर्दी होने की एवं ग्रीष्मऋतु आने से पहले गर्मी होने की भविष्यवाणी करना आसान होता है क्योंकि सर्दियों के समय सर्दियाँ ही होगी थोड़ी कम या अधिक हो सकती है इसी  प्रकार से गर्मियों में गर्मी ही होगी और वर्षात में वर्षा ही होगी |  इसलिए ऐसे विषयों पर तो आसानी से भविष्यवाणी की जा सकती है और  सूर्य चंद्र ग्रहणों की गणितीय भविष्यवाणी प्रक्रिया पूर्वजों ने खोज ली है इसलिए ग्रहणों से संबंधित घटनाओं की भी भविष्यवाणी करना भी गणित के द्वारा आसान हो गया है किंतु महामारी, भूकंप, सुनामी, आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात एवं बादलों के  फटने,ओलेगिरने,तापमान अचानक अधिक बढ़ने -घटने तथा अतिवृष्टि और अनावृष्टि जैसी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का समय न तो प्रत्यक्ष रूप से किसी निश्चित क्रम में दिखाई पड़ता है और न ही ग्रहणों की तरह गणीतीय विधा से इनके घटित होने का कोई क्रम निश्चित किया जा सका है | उस वैज्ञानिक रहस्य को खोजे जाने की आवश्यकता है जिसके द्वारा ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | इसमें जलवायुपरिवर्तन नामक ताला लगाकर इस अनुसंधान प्रक्रिया को रोक देना उचित नहीं होगा | 

     प्रकृति एक प्रकार का  संगीत है जिस प्रकार से  तबला ढोलक बजाते समय प्रत्येकथाप में एक रूपता  नहीं होती है सबमें कुछ न कुछ अंतर अवश्य  होता है इस  अनिश्चितता को देखकर किसी को इसकी तारतम्यता में संशय भले  लगे किंतु इससे निकलने वाले स्वर से प्रत्येक थाप की सार्थकता सिद्ध हो रही होती है| इस प्रकार से स्वरों के विशेषज्ञ लोग उन थापों को तो समझ ही रहे होते हैं उनके विषय में संगीत विशेषज्ञों को पूर्वानुमान भी पता होता है कि किस गाने के किस शब्द के लिए किस किस स्थान पर किस किस प्रकार से थाप लगाईं जाएगी | 

भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात तथा महामारी आदि का भी तो निश्चित घटनाएँ ही हैं इसलिए ये भी घटित तो होंगी ही उसका पारस्परिक समायांतराल कुछ भी क्यों न हो | यह आवश्यक नहीं है कि उनका आपसी समायांतराल एक जैसा हो, उसमें असमानता होने पर भी वह उसी सुनिश्चित प्राकृतिकक्रम का ही हिस्सा ठीक उसी प्रकार से होता है जिस प्रकार से सूर्य चंद्र आदि ग्रहण अपने सुनिश्चित समय से घटित होते हैं किंतु ऐसी घटनाएँ एक दूसरे से बिल्कुल अलग अलग समय पर अलग प्रकार से घटित होती हैं इनका समय और प्रकार भी भी एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न भिन्न होता है | प्राकृतिक घटनाओं में समय और समयांतराल भिन्न भिन्न होने के बाद भी ग्रहणों का पूर्वानुमान लगाने की विधि जिस गणित विज्ञान के द्वारा खोज ली गई है इसीलिए तो ग्रहणों के विषय में हजारों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | उसी गणितीय प्रक्रिया के द्वारा भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात तथा महामारी आदि सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के विषय में भी अनुसंधान पूर्वक पूर्वानुमान लगाना संभव है |

         नहीं रोकी जा सकती हैं समय के अनुशारघटित होने वाली पूर्व निर्धारित प्राकृतिकघटनाएँ !
   
       समय चक्र के साथ संगुंफित पूर्वनिर्धारित प्राकृतिक घटनाओं को घटित होने से पूरी तरह से रोक कर  नहीं रखा जा सकता | काल्पनिक रूप से यदि ऐसा करना संभव हो भी जाए तो उसके भी दुष्प्रभाव झेलने को उसी प्रकार से तैयार रहना चाहिए जिस प्रकार से शरीर के वेगों को रोक लेने से शरीर रोगी हो जाता है और मन के वेगों को रोक लेने से मन रोगी हो जाता है |  उसी प्रकार से प्रकृति के वेगों को रोक लेने से उसके दुष्प्रभाव भी सहने के लिए तैयार रहना चाहिए | इससे बचाव का एक मात्र रास्ता है कि प्रकृति को छेड़े बिना प्रकृति वेगों से अपनी सुरक्षा कर ली जाए | 

   हम प्रकृति को प्राकृतिक अनुसंधानों के द्वारा यदि समझने में सफल नहीं सके तो इसमें प्रकृति का क्या दोष और किस बात का जलवायु परिवर्तन | प्रकृति के स्वभाव को समझे बिना उपग्रहों रडारों के द्वारा प्राकृतिक घटनाओं की जासूसी करके प्रकृति के स्वभाव को कैसे समझा जा सकता है और उसके आधार पर प्राकृतिक घटनाओं का  पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है | 

    प्रकृति ही हमारी भविष्यवाणियों के अनुशार चलने लगे ऐसा आग्रह क्यों ?"मौसम धोखा दे गया " "मानसून समय पर नहीं आया " "तूफ़ान अचानक आ गया" "चुपके चुपके से आते हैं चक्रवात !"तूफानों को ढोल बजाते आना  चाहिए क्या !" "अप्रत्याशित बारिश होने के कारण पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका " 

    मौसम संबंधी पूर्वानुमानों के गलत निकलने का कारण जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बता बताकर आखिर कब तक हम अपने को सफल सिद्ध करते रहेंगे | इस जलवायु परिवर्तन को मनुष्यकृत कर्मों का प्रभाव बताकर कब तक मनुष्य समाज को दोषी ठहराते रहेंगे |इस  बहाने से कब तक समाज के आवश्यक कार्यों में अवरोध उत्पन्न करते रहेंगे | इसलिए समाज को दोष देने के  बजाय हमें अपने प्राकृतिक अनुसंधानों को और अधिक प्रभावी बनाने की आवश्यकता है |

     सूर्य चंद्र ग्रहण जैसी कुछ प्राकृतिक घटनाएँ ऐसी भी होती हैं जो ऋतु जैसी वार्षिक घटनाओं एवं सूर्योदय -सूर्यास्त तथा दिन-रात जैसी दैनिक घटनाओं की तरह प्राकृतिक प्रकार से ही घटित होती हैं उनके घटित होने का समय भी निश्चित होता है वे घटनाएँ भी अपने निश्चित समय से ही घटित हो रही होती हैं | यदि ऐसा न होता तो इनके विषय में गणित के द्वारा पूर्वानुमान लगाना संभव न होता जबकि इनके विषय में पूर्वानुमान हजारों वर्ष पहले लगा लिया जाता है | प्रत्यक्ष रूप से देखने पर लगता है कि कोई दो या दो से अधिक ग्रहण पूरी तरह एक जैसे घटित नहीं होते हैं इनका आपसी अंतराल भी एक जैसा नहीं होता है और इनका प्रकार भी एक जैसा नहीं होता इसके बाद भी कब कौन ग्रहण कितने बजे से कितने बजे तक पड़ेगा वो कहाँ कहाँ दिखाई देगा आदि बातों का सही सही पूर्वानुमान लगा लिया जाता है किंतु ऐसा तब संभव हो पाया है जब पूर्वजों ने इस ग्रहण क्रम को समझने का विज्ञान विकसित कर लिया है यदि ऐसा न हुआ होता तब तो हमें महामारी भूकंप आदि प्राकृतिक घटनाओं की तरह ही ग्रहण जैसी घटनाएँ भी अचानक और भिन्न भिन्न प्रकार से घटित होने के कारण ये भी जलवायुपरिवर्तनजनित लगतीं !

    इस युग में तो जो प्राकृतिक घटना एक क्रम और एक समयांतराल से एवं एक प्रकार से घटित नहीं होती हैं तो उसका कारण जलवायु परिवर्तन को मान लिया जाता है | इसी प्रकार से सूर्य चंद्र ग्रहण जैसी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का कारण भी यदि जलवायुपरिवर्तन को ही मान लिया जाता तो आश्चर्य की बात नहीं होती | वर्तमान समय में वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर बिना कुछ किए धरे ही प्राकृतिक घटनाओं के विषय में हम यहाँ तक एक रूपता खोजने के आदी होते जा रहे हैं कि प्रतिवर्ष मानसून निश्चित तारीख पर आना और निश्चित तारीख पर जाना चाहिए | प्रत्येक वर्ष के प्रत्येक महीने के प्रत्येक सप्ताह में प्रत्येक स्थान पर संतुलित मात्रा में एक जैसी जल वृष्टि होनी चाहिए और सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतु प्रभाव की तरह ही प्रतिवर्ष सब कुछ एक जैसा होना चाहिए | जिससे ऋतुओं की तरह यह भी निश्चित हो कि किस वर्ष किस महीने किस सप्ताह और किस दिन किस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ घटित हो सकती हैं | ऐसा न हो तो उसके लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है क्योंकि ऐसी घटनाओं में एक रूपता नहीं है | पिछले साल या पिछले कुछ सालों में जैसा होता रहा है वैसा अबकी बार नहीं होने का कारण जलवायु परिवर्तन है | 

    इसी प्रकार से महामारी, भूकंप, सुनामी, आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात बादलों के फटने, ओलेगिरने, अचानक तापमान बढ़ने या घटने , अतिवृष्टि एवं अनावृष्टि जैसी प्राकृतिक घटनाएँ भी कभी भी कहीं भी घटित होने लगती हैं | इसलिए इसका कारण भी जलवायु परिवर्तन को ही मान लिया जाता है | वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर प्रकृति से ऐसे आग्रह पाल रखे गए हैं यदि प्रकृति उस आग्रह के अनुशार व्यवहार नहीं करती  है इसका मतलब जलवायु परिवर्तन को बता दिया जाता है | 

    जिस प्रकार से सूर्य चंद्र ग्रहणों के लिए प्रत्येकवर्ष की कोई निश्चित तारीख और निश्चित समय घोषित नहीं किया जा सकता है उसी प्रकार से महामारी, भूकंप, सुनामी, आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात एवं बादलों के  फटने,ओलेगिरने,तापमान अचानक अधिक बढ़ने -घटने तथा अतिवृष्टि और अनावृष्टि जैसी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के लिए कुछ वर्ष महीनों  तारीखों  और समयों  को निश्चित नहीं किया जा सकता है | ऐसी घटनाओं के घटित होने के प्रकार में अनिश्चय का  कारण जलवायुपरिवर्तन को मानना इसलिए उचित नहीं होगा क्योंकि अनिश्चित सी अचानक घटित होती लगने वाली ऐसी प्राकृतिक घटनाएँ भी सूर्य चंद्र ग्रहणों की तरह ही निश्चित होती हैं और अपने अपने निश्चित समय पर घटित हो रही होती हैं | 

    जिस प्रकार से सर्दी गर्मी आदि होने की ऋतुएँ निश्चित होती हैं तो भविष्यवाणी करने में आसानी रहती है | सर्दी की ऋतु  आने से पहले  सर्दी होने की एवं ग्रीष्मऋतु आने से पहले गर्मी होने की भविष्यवाणी करना आसान होता है क्योंकि सर्दियों के समय सर्दियाँ ही होगी थोड़ी कम या अधिक हो सकती है इसी  प्रकार से गर्मियों में गर्मी ही होगी और वर्षात में वर्षा ही होगी |  इसलिए ऐसे विषयों पर तो आसानी से भविष्यवाणी की जा सकती है और  सूर्य चंद्र ग्रहणों की गणितीय भविष्यवाणी प्रक्रिया पूर्वजों ने खोज ली है इसलिए ग्रहणों से संबंधित घटनाओं की भी भविष्यवाणी करना भी गणित के द्वारा आसान हो गया है किंतु महामारी, भूकंप, सुनामी, आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात एवं बादलों के  फटने,ओलेगिरने,तापमान अचानक अधिक बढ़ने -घटने तथा अतिवृष्टि और अनावृष्टि जैसी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का समय न तो प्रत्यक्ष रूप से किसी निश्चित क्रम में दिखाई पड़ता है और न ही ग्रहणों की तरह गणीतीय विधा से इनके घटित होने का कोई क्रम निश्चित किया जा सका है | उस वैज्ञानिक रहस्य को खोजे जाने की आवश्यकता है जिसके द्वारा ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | इसमें जलवायुपरिवर्तन नामक ताला लगाकर इस अनुसंधान प्रक्रिया को रोक देना उचित नहीं होगा | 

     प्रकृति एक प्रकार का  संगीत है जिस प्रकार से  तबला ढोलक बजाते समय प्रत्येकथाप में एक रूपता  नहीं होती है सबमें कुछ न कुछ अंतर अवश्य  होता है इस  अनिश्चितता को देखकर किसी को इसकी तारतम्यता में संशय भले  लगे किंतु इससे निकलने वाले स्वर से प्रत्येक थाप की सार्थकता सिद्ध हो रही होती है| इस प्रकार से स्वरों के विशेषज्ञ लोग उन थापों को तो समझ ही रहे होते हैं उनके विषय में संगीत विशेषज्ञों को पूर्वानुमान भी पता होता है कि किस गाने के किस शब्द के लिए किस किस स्थान पर किस किस प्रकार से थाप लगाईं जाएगी | 

भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात तथा महामारी आदि का भी तो निश्चित घटनाएँ ही हैं इसलिए ये भी घटित तो होंगी ही उसका पारस्परिक समायांतराल कुछ भी क्यों न हो | यह आवश्यक नहीं है कि उनका आपसी समायांतराल एक जैसा हो, उसमें असमानता होने पर भी वह उसी सुनिश्चित प्राकृतिकक्रम का ही हिस्सा ठीक उसी प्रकार से होता है जिस प्रकार से सूर्य चंद्र आदि ग्रहण अपने सुनिश्चित समय से घटित होते हैं किंतु ऐसी घटनाएँ एक दूसरे से बिल्कुल अलग अलग समय पर अलग प्रकार से घटित होती हैं इनका समय और प्रकार भी भी एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न भिन्न होता है | प्राकृतिक घटनाओं में समय और समयांतराल भिन्न भिन्न होने के बाद भी ग्रहणों का पूर्वानुमान लगाने की विधि जिस गणित विज्ञान के द्वारा खोज ली गई है इसीलिए तो ग्रहणों के विषय में हजारों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | उसी गणितीय प्रक्रिया के द्वारा भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात तथा महामारी आदि सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के विषय में भी अनुसंधान पूर्वक पूर्वानुमान लगाना संभव है |
                                                                                                                                                                                                            प्राकृतिक आपदाओं से बचाव !

   महामारी एवं अन्य भूकंप जैसी सभीप्रकार की प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के दो प्रमुख विकल्प हो सकते हैं एक तो ऐसी प्राकृतिक दुर्घटनाओं  का घटित होना बंद किया जा सके और दूसरा इनसे बचाव के लिए कोई मार्ग खोजा जाए | जहाँ तक ऐसी दुर्घटनाओं के रोकने की बात है उधर वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत कुछ कहा सुना जा रहा है बहुत कुछ करने की योजनाएँ भी बनाई जा रही हैं किंतु उनका कार्यान्वयन क्यों नहीं हो पा रहा है ये उन्हें ही पता होगा जो लोग ऐसे प्रयासों में लगे हुए हैं |हमारी समझ में ऐसी प्राकृतिक दुर्घटनाओं को रोकने के लिए जो उपाय बताए जाते हैं उनका किया जाना प्रायः असंभव सा होता है | संभवतः वे बताए ही इसीलिए जाते हैं ताकि वे पूरे न हों और उनके पूरे हुए बिना कोई यह नहीं कह सकता है कि उपाय तो हो गए किंतु दुर्घटनाएँ अभी समाप्त नहीं हुईं | इस तकनीक से वैज्ञानिक अनुसंधानों की क्षमता एवं उपयोगिता पर कभी प्रश्न नहीं उठाया जा सकेगा | 

    प्राकृतिक घटनाओं से अपने बचाव के लिए प्रयत्न करने की अपेक्षा हम उन प्राकृतिक घटनाओं को घटित होने से उन्हें रोकने या उनके घटित होने का कारण खोजने के नाम पर कल्पित कहानियाँ गढ़ने में लग जाते हैं ,जबकि  प्राकृतिक घटनाओं को रोक पाना किसी के बश की बात नहीं है | प्राकृतिक घटनाओं का घटित होना सुनिश्चित है उनके घटित होने का समय सुनिश्चित होता है इसलिए उन्हें तो अपने समय से घटित होना ही होता है और उन्हें जितने वेग से घटित होना है वे तो उतने वेग से ही घटित होंगी |इसमें किसी को संशय नहीं होना चाहिए | इन्हें रोकना या इनके प्रभाव को घटाना बढ़ाना आसान काम नहीं है इसकी मनुष्यों को आवश्यकता भी नहीं है | मनुष्य के बश में केवल इतना है कि वो ऐसी घटनाओं के दुष्प्रभावों से यथा संभव अपना बचाव कर ले | वर्षा होने की संभावना देखकर जिस प्रकार से छतरी आदि की व्यवस्था कर ली जाती है उसी प्रकार से सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं से अपना बचाव करना मनुष्य का कर्तव्य है |
      प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर आखिर हम कब तक अपने को धोखा देते रहेंगे ये  हमें सोचना है | कई बार तो अभीष्ट विषयों पर संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ताओं की बातें सुनकर ऐसा भ्रम होता है कि शायद हमें अभी तक यही नहीं पता है कि करना आखिर क्या है और कर क्या रहे हैं जनता ऐसे अनुसंधानों से अपेक्षा क्या रखे कि कब तक इनसे कुछ प्रभावी परिणाम प्राप्त होंगे |  
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    समय चक्र के साथ संगुंफित पूर्वनिर्धारित प्राकृतिक घटनाओं को घटित होने से पूरी तरह से रोक कर  नहीं रखा जा सकता | काल्पनिक रूप से यदि ऐसा करना संभव हो भी जाए तो उसके भी दुष्प्रभाव झेलने को उसी प्रकार से तैयार रहना चाहिए जिस प्रकार से शरीर के वेगों को रोक लेने से शरीर रोगी हो जाता है और मन के वेगों को रोक लेने से मन रोगी हो जाता हैं उसी प्रकार से प्रकृति के वेगों को रोक लेने से उसके दुष्प्रभाव भी सहने के लिए तैयार रहना चाहिए | इससे बचाव का एक मात्र रास्ता है कि प्रकृति को छेड़े बिना प्रकृति वेगों से अपनी सुरक्षा कर ली जाए | 

   हम प्रकृति को प्राकृतिक अनुसंधानों के द्वारा यदि समझने में सफल नहीं सके तो इसमें प्रकृति का क्या दोष और किस बात का जलवायु परिवर्तन | प्रकृति के स्वभाव को समझे बिना उपग्रहों रडारों के द्वारा प्राकृतिक घटनाओं की जासूसी करके प्रकृति के स्वभाव को कैसे समझा जा सकता है और उसके आधार पर प्राकृतिक घटनाओं का  पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है | 

    प्रकृति ही हमारी भविष्यवाणियों के अनुशार चलने लगे ऐसा आग्रह क्यों ?"मौसम धोखा दे गया " "मानसून समय पर नहीं आया " "तूफ़ान अचानक आ गया" "चुपके चुपके से आते हैं चक्रवात !"तूफानों को ढोल बजाते आना  चाहिए क्या !" "अप्रत्याशित बारिश होने के कारण पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका " 

 यदि नहीं चलेगी तो जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बताबताकर आखिर कब तक हम अपने को असफल सिद्ध करते रहेंगे | इस जलवायु परिवर्तन को मनुष्यकृत कर्मों का प्रभाव बताकर कब तक मनुष्य समाज को दोषी ठहराते रहेंगे |इस  बहाने से कब तक समाज के आवश्यक कार्यों में अवरोध उत्पन्न करते रहेंगे | इसलिए समाज को दोष देने के  बजाय हमें अपने प्राकृतिक अनुसंधानों को और अधिक प्रभावी बनाने की आवश्यकता है |

     सूर्य चंद्र ग्रहण जैसी कुछ प्राकृतिक घटनाएँ ऐसी भी होती हैं जो ऋतु जैसी वार्षिक घटनाओं एवं सूर्योदय -सूर्यास्त तथा दिन-रात जैसी दैनिक घटनाओं की तरह प्राकृतिक प्रकार से ही घटित होती हैं उनके घटित होने का समय भी निश्चित होता है वे घटनाएँ भी अपने निश्चित समय से ही घटित हो रही होती हैं | यदि ऐसा न होता तो इनके विषय में गणित के द्वारा पूर्वानुमान लगाना संभव न होता जबकि इनके विषय में पूर्वानुमान हजारों वर्ष पहले लगा लिया जाता है | प्रत्यक्ष रूप से देखने पर लगता है कि कोई दो या दो से अधिक ग्रहण पूरी तरह एक जैसे घटित नहीं होते हैं इनका आपसी अंतराल भी एक जैसा नहीं होता है और इनका प्रकार भी एक जैसा नहीं होता इसके बाद भी कब कौन ग्रहण कितने बजे से कितने बजे तक पड़ेगा वो कहाँ कहाँ दिखाई देगा आदि बातों का सही सही पूर्वानुमान लगा लिया जाता है किंतु ऐसा तब संभव हो पाया है जब पूर्वजों ने इस ग्रहण क्रम को समझने का विज्ञान विकसित कर लिया है यदि ऐसा न हुआ होता तब तो हमें महामारी भूकंप आदि प्राकृतिक घटनाओं की तरह ही ग्रहण जैसी घटनाएँ भी अचानक और भिन्न भिन्न प्रकार से घटित होने के कारण ये भी जलवायुपरिवर्तनजनित लगतीं !

    इस युग में तो जो प्राकृतिक घटना एक क्रम और एक समयांतराल से एवं एक प्रकार से नहीं घटित होती है उसका कारण जलवायु परिवर्तन को मान लिया जाता है इसी प्रकार से सूर्य चंद्र ग्रहण जैसी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का कारण भी यदि जलवायुपरिवर्तन को ही मान लिया जाता तो आश्चर्य की बात नहीं होती | वर्तमान समय में वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर बिना कुछ किए धरे ही प्राकृतिक घटनाओं के विषय में हम यहाँ तक एक रूपता खोजने के आदी होते जा रहे हैं कि प्रतिवर्ष मानसून निश्चित तारीख पर आना और निश्चित तारीख पर जाना चाहिए | प्रत्येक वर्ष के प्रत्येक महीने के प्रत्येक सप्ताह में प्रत्येक स्थान पर संतुलित मात्रा में एक जैसी जल वृष्टि होनी चाहिए और सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतु प्रभाव की तरह ही प्रतिवर्ष सब कुछ एक जैसा होना चाहिए | जिससे ऋतुओं की तरह यह भी निश्चित हो कि किस वर्ष किस महीने किस सप्ताह और किस दिन किस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ घटित हो सकती हैं | ऐसा न हो तो उसके लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है क्योंकि ऐसी घटनाओं में एक रूपता नहीं है | 

    इसी प्रकार से महामारी, भूकंप, सुनामी, आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात बादलों का फटने, ओलेगिरने, अचानक तापमान बढ़ने या घटने , अतिवृष्टि एवं अनावृष्टि जैसी प्राकृतिक घटनाएँ भी कभी भी कहीं भी घटित होने लगती हैं | इसलिए इसका कारण भी जलवायु परिवर्तन को ही मान लिया जाता है | वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर प्रकृति से ऐसे आग्रह पाल रखे गए हैं यदि प्रकृति उस आग्रह के अनुशार व्यवहार नहीं करती  है इसका मतलब जलवायु परिवर्तन को बता दिया जाता है | 

    जिस प्रकार से सूर्य चंद्र ग्रहणों के लिए प्रत्येकवर्ष की कोई निश्चित तारीख और निश्चित समय घोषित नहीं किया जा सकता है उसी प्रकार से महामारी, भूकंप, सुनामी, आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात एवं बादलों के  फटने,ओलेगिरने,तापमान अचानक अधिक बढ़ने -घटने तथा अतिवृष्टि और अनावृष्टि जैसी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के लिए कुछ वर्ष महीनों  तारीखों  और समयों  को निश्चित नहीं किया जा सकता है | ऐसी घटनाओं के घटित होने के प्रकार में अनिश्चय का  कारण जलवायुपरिवर्तन को मानना इसलिए उचित नहीं होगा क्योंकि अनिश्चित सी अचानक घटित होती लगने वाली ऐसी प्राकृतिक घटनाएँ भी सूर्य चंद्र ग्रहणों की तरह ही निश्चित होती हैं और अपने अपने निश्चित समय पर घटित हो रही होती हैं | 

    जिस प्रकार से सर्दी गर्मी आदि होने की ऋतुएँ निश्चित होती हैं तो भविष्यवाणी करने में आसानी रहती है | सर्दी की ऋतु  आने से पहले  सर्दी होने की एवं ग्रीष्मऋतु आने से पहले गर्मी होने की भविष्यवाणी करना आसान होता है क्योंकि सर्दियों के समय सर्दियाँ ही होगी थोड़ी कम या अधिक हो सकती है इसी  प्रकार से गर्मियों में गर्मी ही होगी और वर्षात में वर्षा ही होगी |  इसलिए ऐसे विषयों पर तो आसानी से भविष्यवाणी की जा सकती है और  सूर्य चंद्र ग्रहणों की गणितीय भविष्यवाणी प्रक्रिया पूर्वजों ने खोज ली है इसलिए ग्रहणों से संबंधित घटनाओं की भी भविष्यवाणी करना भी गणित के द्वारा आसान हो गया है किंतु महामारी, भूकंप, सुनामी, आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात एवं बादलों के  फटने,ओलेगिरने,तापमान अचानक अधिक बढ़ने -घटने तथा अतिवृष्टि और अनावृष्टि जैसी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का समय न तो प्रत्यक्ष रूप से किसी निश्चित क्रम में दिखाई पड़ता है और न ही ग्रहणों की तरह गणीतीय विधा से इनके घटित होने का कोई क्रम निश्चित किया जा सका है | उस वैज्ञानिक रहस्य को खोजे जाने की आवश्यकता है जिसके द्वारा ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | इसमें जलवायुपरिवर्तन नामक ताला लगाकर इस अनुसंधान प्रक्रिया को रोक देना उचित नहीं होगा | 

     प्रकृति एक प्रकार का  संगीत है जिस प्रकार से  तबला ढोलक बजाते समय प्रत्येकथाप में एक रूपता  नहीं होती है सबमें कुछ न कुछ अंतर अवश्य  होता है इस  अनिश्चितता को देखकर किसी को इसकी तारतम्यता में संशय भले  लगे किंतु इससे निकलने वाले स्वर से प्रत्येक थाप की सार्थकता सिद्ध हो रही होती है| इस प्रकार से स्वरों के विशेषज्ञ लोग उन थापों को तो समझ ही रहे होते हैं उनके विषय में संगीत विशेषज्ञों को पूर्वानुमान भी पता होता है कि किस गाने के किस शब्द के लिए किस किस स्थान पर किस किस प्रकार से थाप लगाईं जाएगी | 

भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात तथा महामारी आदि का भी तो निश्चित घटनाएँ ही हैं इसलिए ये भी घटित तो होंगी ही उसका पारस्परिक समायांतराल कुछ भी क्यों न हो | यह आवश्यक नहीं है कि उनका आपसी समायांतराल एक जैसा हो, उसमें असमानता होने पर भी वह उसी सुनिश्चित प्राकृतिकक्रम का ही हिस्सा ठीक उसी प्रकार से होता है जिस प्रकार से सूर्य चंद्र आदि ग्रहण अपने सुनिश्चित समय से घटित होते हैं किंतु ऐसी घटनाएँ एक दूसरे से बिल्कुल अलग अलग समय पर अलग प्रकार से घटित होती हैं इनका समय और प्रकार भी भी एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न भिन्न होता है | प्राकृतिक घटनाओं में समय और समयांतराल भिन्न भिन्न होने के बाद भी ग्रहणों का पूर्वानुमान लगाने की विधि जिस गणित विज्ञान के द्वारा खोज ली गई है इसीलिए तो ग्रहणों के विषय में हजारों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | उसी गणितीय प्रक्रिया के द्वारा भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात तथा महामारी आदि सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के विषय में भी अनुसंधान पूर्वक पूर्वानुमान लगाना संभव है |

    

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   महामारी एवं अन्य भूकंप जैसी सभीप्रकार की प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के दो प्रमुख विकल्प हो सकते हैं एक तो ऐसी प्राकृतिक दुर्घटनाओं  का घटित होना बंद किया जा सके और दूसरा इनसे बचाव के लिए कोई मार्ग खोजा जाए | जहाँ तक ऐसी दुर्घटनाओं के रोकने की बात है उधर वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत कुछ कहा सुना जा रहा है बहुत कुछ करने की योजनाएँ भी बनाई जा रही हैं किंतु उनका कार्यान्वयन क्यों नहीं हो पा रहा है ये उन्हें ही पता होगा जो लोग ऐसे प्रयासों में लगे हुए हैं |हमारी समझ में ऐसी प्राकृतिक दुर्घटनाओं को रोकने के लिए जो उपाय बताए जाते हैं उनका किया जाना प्रायः असंभव सा होता है | संभवतः वे बताए ही इसीलिए जाते हैं ताकि वे पूरे न हों और उनके पूरे हुए बिना कोई यह नहीं कह सकता है कि उपाय तो हो गए किंतु दुर्घटनाएँ अभी समाप्त नहीं हुईं |   

 प्राकृतिक घटनाओं से अपने बचाव के लिए प्रयत्न करने की अपेक्षा हम उन प्राकृतिक घटनाओं को घटित होने से उन्हें रोकने या उनके घटित होने का कारण खोजने के नाम पर कल्पित कहानियाँ गढ़ने में लग जाते हैं ,जबकि  प्राकृतिक घटनाओं को रोक पाना किसी के बश की बात नहीं है | प्राकृतिक घटनाओं का घटित होना सुनिश्चित है उनके घटित होने का समय सुनिश्चित होता है इसलिए उन्हें तो अपने समय से घटित होना ही होता है और उन्हें जितने वेग से घटित होना है वे तो उतने वेग से ही घटित होंगी |इसमें किसी को संशय नहीं होना चाहिए | इन्हें रोकना या इनके प्रभाव को घटाना बढ़ाना आसान काम नहीं है इसकी मनुष्यों को आवश्यकता भी नहीं है | मनुष्य के बश में केवल इतना है कि वो ऐसी घटनाओं के दुष्प्रभावों से यथा संभव अपना बचाव कर ले | वर्षा होने की संभावना देखकर जिस प्रकार से छतरी आदि की व्यवस्था कर ली जाती है उसी प्रकार से सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं से अपना बचाव करना मनुष्य का कर्तव्य है |
      प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर आखिर हम कब तक अपने को धोखा देते रहेंगे ये    हमें सोचना है | कई बार तो अभीष्ट विषयों पर संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ताओं की बातें सुनकर ऐसा भ्रम होता है कि शायद हमें अभी तक यही नहीं पता है कि करना आखिर क्या है और कर क्या रहे हैं जनता ऐसे अनुसंधानों से अपेक्षा क्या रखे कि कब तक इनसे कुछ प्रभावी परिणाम प्राप्त होंगे |
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महामारी से भय क्यों लगता है !
  
      प्राकृतिक घटनाओं से बचाव के लिए प्रतिरोधक प्रयास पहले से ही ही करने होते हैं उसके लिए ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान पता होना आवश्यक होता है उसी के अनुशार पहले किए गए अनुसंधानों से प्राप्त अनुभवों का उपयोग करते हुए बचाव किया जाता है | इसके अतिरिक्त जब ऐसी घटनाएँ घटित होने ही लगती हैं उस समय इतनी बड़ी घटनाओं  से बचाव के लिए बहुत विकल्प बचते नहीं हैं | यदि बिना पूर्वानुमान पता हुए ही ऐसी दुर्घटनाओं से बचाव करना है तो उसके लिए हमेशा अच्छे से अच्छे उपाय आचरण में लाए जाते हैं | 
        महामारी से या प्राकृतिक आपदाओं से भय लगने का सबसे बड़े कारण यह है कि ऐसी घटनाएँ घटित होनी प्रारंभ हो जाती हैं  हैं |उनके विषय में पहले से कुछ पता नहीं होता है |   कल्पना करके देखा जाए तो आदिकाल में जब पहली बार सर्दी की ऋतु आई होगी तब पहले से कोई तैयारी नहीं रही होगी और सर्दी दिनोंदिन बढ़ती जा रही होगी तब बहुत लोग तो यह सोचकर इस घबड़ाहट में मृत्यु को प्राप्त हो गए होंगे कि जब अभी इतने दिनों में सर्दी इतनी बढ़ गई है तो आगे इसी क्रम में न जाने कितने दिनों में कितनी बढ़ जाए | उस समय बहुत लोग सर्दी के वेग से होने वाले रोगों से पीड़ित होकर मृत्यु को प्राप्त हो गए होंगे |ऐसे में यही सामान्य सी दिखने वाली सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ भी किसी महामारी से कम दुखद नहीं होती रही होंगी | अब जब इनके विषय में अच्छी प्रकार से हम जानने लगे इनके स्वभाव प्रभाव दुष्प्रभाव आदि को पहचानने लगे इनके आने जाने का समय पता हो गया इनका पीक कब आएगा उसका ज्ञान हो गया | सर्दी से बचाव के लिए हमें किस प्रकार के प्रयत्न करने चाहिए !ये सब पता हो जाने के बाद अब इनका पूर्वानुमान पता होता है इसलिए इनके विषय में आगे से आगे तैयारी करके रख लेने लगे तो अब वही ऋतुएँ आसानी से पार होते देखी जाती हैं |  
     जिस प्रकार से किसी नदी में यदि अचानक बाढ़ आ जाती है और उसका पानी गाँवों में भरने लगता है जब उस पानी से घर डूबने लगते हैं उस समय तुरंत उससे बचाव के लिए किए गए प्रयत्न उतने सफल नहीं होते जितनी कि अपेक्षा होती है |उस समय प्रयासपूर्वक जीवन बचाने को प्राथमिकता दी जाती है न कि ऐसे समय बाढ़ के विषय में रिसर्च करने बैठ जाया  जाता है  यदि ऐसा किया भी जाए तो भी उस समय ऐसे तुरंत किए जाने वाले मनुष्यकृत प्रयासों से नदी में बाढ़ आना नहीं रोका जा सकता है इसलिए ऐसे अनुसंधानों के द्वारा  बाढ़ से निपटने में तत्काल कोई विशेष मदद नहीं  मिल पाती है |भविष्य के लिए ऐसे गाँवों को ऊँचे पर बसा कर अथवा गाँव के चारों ओर दीवार आदि बनाकर भविष्य में बाढ़ आने पर उन गाँवों को डूबने से बचाकर  उस क्षेत्र को बाढ़मुक्त बनाया जा सकता है | इसमें विशेष अनुसंधान  इस बात के लिए किया जाना आवश्यक होता है कि नदी में बाढ़ आने के कारण गाँव डूबा है या गाँव जहाँ बसा है वो जगह नीची है इसलिए नदी का पानी गाँव में भर गया है | इसके लिए नदी के किनारे बसे अन्य गाँवों को भी देखना होगा यदि उनमें से अधिकाँश गाँवों में पानी भर गया है इसका मतलब बाढ़ का वेग अधिक है | यदि कुछ गाँवों में ही पानी भरा है इसका मतलब ऐसे गाँव ही नीचे पर बसे हैं इस कारण उनमें पानी भर गया है | 

    अचानक आए भूकंपों से बचाव के लिए कोई सार्थक उपाय किया जाना संभव नहीं हो पाता है घर छोड़कर तुरंत भागना भी आसान नहीं होता है|उससे कुछ भला भी नहीं होता है ,क्योंकि जो कुछ नुक्सान होना होता है वो प्रायः पहले झटके में ही हो जाता है | भूकंप जिस क्षेत्र में आते हैं उस क्षेत्र के सभी मकान एक जैसे हिलते हैं किंतु गिरते उनमें से कुछ घर  ही हैं | बाकी घर वैसे ही मजबूती से खड़े होते हैं उनमें खरोंच भी नहीं आती है | इसलिए भूकंपों के समय में होने वाले भवनों के नुक्सान के लिए भूकंपों को उतना जिम्मेदार नहीं माना जाना चाहिए जितना कि भवनों के निर्माण में बरती गई लापरवाही जिम्मेदार होती है |
    जनहानि प्रायः उन्हीं मकानों में होती है जो गिरते हैं और गिरते प्रायः वही मकान हैं जो कमजोर बने होते हैं | यदि गिरने वाले मकानों की संख्या पाँच प्रतिशत से भी कम है इसका मतलब भूकंप बहुत अधिक तेज नहीं था अपितु मकान ही कमजोर बने हुए थे जो सामान्य भूकंप का भी झटका झेल नहीं सके इसलिए गिर गए हैं | किसी का घर कमजोर बना है इसलिए भूकंप में गिर जाता है इसके लिए भूकंप जिम्मेदार नहीं है | यदि भूकंप के समय सुरक्षित बचे रहे बहुसंख्य भवनों की तरह हीभूकंप में गिर गए मकान भी मजबूत बने होते तो वे भी नहीं गिरते फिर भूकंप आते जाते रहते उनसे भय कैसा !     
     ऐसी परिस्थिति में भूकंपों को आने से रोका ही नहीं जा सकता है उनके द्वारा होने वाले संभावित नुक्सान को प्रयास पूर्वक कम किया जा सकता है | इसलिए भूकंपों को कोसने से अच्छा है कि इनसे प्रेरणा ली जाए |नदियों में जहाँ तक बाढ़  संभावना रहती है उनसे दूर हटकर निर्माण कार्य करना श्रेयस्कर है | ऐसे ही भूकंप एक प्राकृतिक घटना है वह अपने समय पर घटित होगी ही उसे रोका जाना संभव नहीं है |भूकंपों की अधिकतम तीव्रता को ध्यान में रखकर भवनों का  निर्माण किया जाना चाहिए | घरों को ही सुदृढ़ बना लिया जाए तब तो भूकंप आते जाते रहें उन भवनों पर कोई असर ही न पड़े |ऐसे प्रयास करके भूकंपों से होने वाले नुक्सान से अपनी सुरक्षा करते हुए भूकंपों के आने पर भी ऐसे क्षेत्रों को प्रयासपूर्वक भूकंप मुक्त क्षेत्र घोषित किया जा सकता है |   
   किसी भवन की दीवारें कच्ची बनी हैं तो वर्षा ऋतु में वर्षा के वेग से वे गिर जाती हैं इसमें बहुत लोग दब कर मर जाया करते हैं बहुत लोग घायल हो जाते हैं | ऐसी घटनाओं को सोचकर उनसे मन सिहर हो उठता है |  ऐसी परिस्थिति में महामारी हो या भीषण बाढ़ हो अथवा भूकंप हो या अधिक समय चलने वाली वेगवती वर्षा ही क्यों न हो |ऐसी घटनाओं से डर इसीलिए लगता है क्योंकि इनके अचानक घटित होने से बहुत लोग ऐसी घटनाओं का शिकार हो जाते हैं |  उनसे बचाव के लिए उस समय अचानक कुछ विशेष किया जाना संभव नहीं होता है |
   ऐसे ही सर्प को देखकर लोगों को डर नहीं लगता है अपितु सर्प के काट लेने पर उसके बिष से जो जीवन संबंधी नुक्सान होता है उस नुक्सान को सोचकर लोग सर्प से डरा करते हैं | इसी प्रकार से महामारी और प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले संभावित नुकसान  के कारण ऐसी दुर्घटनाओं  से डर लगना स्वाभाविक ही है |
    इसलिए वर्षा ऋतु पानी बरसना तो बंद नहीं कर देगी |घरों की दीवारें मजबूत बनाकर संभावित वर्षा से अपना बचाव करके हमें चलना होगा | ऐसे ही आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात तथा महामारी आदि को भी समझना चाहिए कि ये घटनाएँ तो प्रकृति की अंग स्वरूपा हैं ये तो अपने समय से घटित होंगी ही इनसे हम पीड़ित न हों, या कम से कम पीड़ित हों ,हमेंउसके लिए प्रयत्न करना चाहिए| अभी तक किए जा रहे वैज्ञानिक अनुसंधानों से ऐसी कठिनाइयाँ कितने प्रतिशत कम हुई हैं हमारे द्वारा किए गए अनुसंधान भी उतने प्रतिशत ही सफल माने जानेचाहिए |
     कुलमिलाकर महामारी और प्राकृतिक आपदाओं से अधिक नुक्सान होने का एक कारण यह भी होता है कि उसके विषय में पहले से कुछ पता नहीं होता है और बाद में इतना समय नहीं मिल पाता है कि उनसे बचाव के लिए कुछ प्रभावी परिणामप्रद प्रयत्न किए जा सकें |जानकारी के अभाव में हम कोई भी काम करें या किसी भी परिस्थिति का सामना करें उससे नुक्सान तो हो ही सकता है | 
    से  समय में महामारी  को पहचानने में ,उसमें होने वाले रोगों के परीक्षण करने में ,महामारी की प्रवृत्ति समझने में इतना अधिक समय लग जाता है कि तब तक महामारीकाल ही समाप्त हो जाता है इसके बाद भी महामारी समझ में नहीं आ पाती है और लोग स्वतः स्वस्थ होने लग जाते हैं |    
     महामारी के समय अचानक प्राप्त हुए ऐसे किसी अपरिचित महारोग से जूझने की चुनौती होती है जिसका स्वभाव संक्रामकता  मारकक्षमता आदि के विषय में पहले से किसी को कुछ पता नहीं होता है | महामारी के प्रारंभ होते ही उससे जनता तुरंत संक्रमित होने लगती है| उस समय महामारी का वेग इतना अधिक होता है कि रोगियों की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ते देर नहीं लगती है | अस्पताल से स्मशान तक सारी जगहें भर जाती हैं |इसीलिए शुरुआती दिनों में ही चिकित्सा व्यवस्था असफल होने लगती है | उस समय महामारी पर किसी का कोई बश नहीं चल रहा होता है और  प्रत्येक व्यक्ति बेबश लाचार सा दिखाई पड़ रहा होता है | इनके विषय में तुरंत सही सही अंदाजा लगाना बहुत कठिन होता है |अचानक प्राप्त हुए ऐसे महारोगों से अपरिचित चिकित्सा व्यवस्था बिना किसी विशेष तैयारी के इतनी बड़ी महामारी का सामना कैसे करे | 
      महामारी आ जाने पर उसके विषय में तुरंत किए गए अनुसंधानों से लाभान्वित नहीं हुआ जा सकता है क्योंकि महामारियाँ हमेशा बड़े वेग से हमला किया करती हैं इसलिए  उस समय सँभलने के लिए तुरंत मौका नहीं मिल पाता है |महामारी के विषय में यदि पहले से कभी कोई सार्थक अनुसंधान किए गए हों तो उनके द्वारा प्राप्त अनुभवों से आई हुई महामारी से बचाव की दृष्टि से लाभ मिल सकता है यदि ऐसा न हो तो तुरंत बचाव होना बड़ा कठिन होता है बचाव की दृष्टि से किए जाने वाले परिणाम शून्य प्रयास प्रायः प्रदर्शन ही होकर  रह जाते हैं |
      उस समय तक महामारी के विषय में जितना जो कुछ समझा जा सका होता है जो औषधियॉँ टीके आदि बनाए गए होते हैं उनका प्रयोग चल ही रहा होता है महामारी से उनका कोई संबंध हो या न हो फिर भी उन्हें ही महामारी के लक्षण औषधियाँ टीके आदि इसलिए मान लिया जाता है क्योंकि उनके प्रयोग काल में ही महामारी समाप्त हो रही होती है | जिन्होंने टीके लगवाए जा रहे होते हैं उनकी तो समाप्त हो ही रही होती है जिन्होंने टीके नहीं भी लगवाए होते हैं उनकी भी समाप्त हो रही होती है | इससे न तो महामारी का सच कभी सामने आ पाता है और न ही  वैज्ञानिक दृष्टि से महामारी को  पहचानना और उसकी औषधि  बनाना आदि संभव हो पाता है इसी प्रकार से प्राकृतिक आपदाओं के  समय में भी अँधेरे में ही तीर तुक्के चलाए जा रहे होते हैं | इसलिए महामारी और प्राकृतिक आपदाओं से भयभीत होना स्वाभाविक है |
      इसलिए महामारी और प्राकृतिक आपदाओं के विषय में और कुछ करने से पहले इनके घटित होने के कारण खोजकर इनके विषय में पूर्वानुमान लगाए जाने चाहिए और भविष्य  में महामारी मुक्त समाज निर्माण के लिए परिणामप्रद प्रयास किए जाने चाहिए  | 
      पूर्वानुमान पता होता तो प्राकृतिक आपदाओं से भी भय नहीं होता !

     समयक्रम को हमने भली भाँति जान लिया है कि प्रत्येक दिन में पहले सूर्योदय होगा फिर मध्यान्ह होगा उसके बाद सायंकाल होगा उसके बाद रात्रि होगी | दिन में प्रकाश और रात्रि में अंधकार होता है | रात्रि की अपेक्षा दिन का तापमान अधिक होता है | सुबह शाम की अपेक्षा दोपहर का तापमान अधिक होता है | शिशिरऋतु के समय में ठंडा वातावरण होता है और दिन रात के क्रम में रातें ठंडी होती हैं ऐसी परिस्थिति में अनुमान लगा लिया जाता है कि शिशिरऋतु के समय की रातें सबसे अधिक ठंडी होती हैं |

     इसी प्रकार से ग्रीष्मऋतु का मध्यान्ह सबसे गर्म होता है |ये सब ऋतु क्रम दिन रात आदि का क्रम प्रभाव आदि जान समझकर ही उसी हिसाब से हमने अपने सोने जागने खाने पीने काम काज करने आदि की दिनचर्या व्यवस्थित कर रखी है | यहाँ तक कि पशु पक्षी आदि सभी जीव भी इसी प्रकृति क्रम का पालन करते देखे जाते हैं | 
    किस ऋतु में किस प्रकार की लापरवाही से कौन कौन रोग हो सकते हैं | उनसे बचाव के लिए क्या उपाय करना चाहिए | इससे बचाव के लिए किस ऋतु के किस समय में किसप्रकार की सावधानियाँ बरतनी होती हैं |ये सब कुछ हमें इसीलिए पता होता है क्योंकि इस प्रकृतिक्रम से हम सुपरिचित होते हैं |इसीलिए इसकी आगे से आगे तैयारियाँ करके उनका अनुपालन करते हुए हम निरोगी रह पाते हैं | 
   प्रकृति की परिवर्तित अवस्थाओं के विषय में हमें पूर्वानुमान पता होता है इसीलिए इनके हिसाब से हम अपने को आगे से आगे तैयार कर लिया करते हैं यही कारण है कि इनसे हमें डर नहीं लगता है |हम सब कुछ सह लिया करते हैं | प्रकृति की परिवर्तित अवस्थाओंके विषय में यदि हमें पहले से पता न होता तो हमें इनका भी भय होता | 
      सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं से एवं प्रत्येक दिन के सूर्योदय ,मध्यान्ह ,सूर्यास्त रात्रि आदि की प्रक्रिया अवधि एवं उसके प्रभाव से परिचित होने के कारण हमें अब उसमें कुछ नया नहीं लगता है और न ही कोई भय लगता है क्योंकि ये निश्चित प्राकृतिक घटनाएँ हैं जिनसे हम परिचित हो गए हैं | इनके विषय में न केवल पूर्वानुमान लगा लिया करते हैं अपितु उसी हिसाब से हमने अपने जीवन को व्यवस्थित कर रखा है कि आगे आने वाली किस ऋतु में हमें किस प्रकार की तैयारी करके पहले से रखनी है |
    यदि इस प्रकृति प्रक्रिया से परिचित न होते तब तो दिन के भयंकर प्रकाश के बाद में रात्रि का भयंकर अंधकार देखकर घबड़ा जाते ,इसीप्रकार से ग्रीष्मऋतु में भयंकर गर्मी और ऋतु में भयंकर सर्दी ,ऐसे ही गर्मी की ऋतु में नदियों तालाबों का सूख जाना एवं उसी के कुछ समय बाद वर्षाऋतु में भीषण बाढ़ आ जाना आदि देखकर घबड़ाहट स्वाभाविक थी | अब तक ऐसी घटनाओं के घटित होने का कारण भी जलवायु परिवर्तन को ही मान लिया जाता ! इसी प्रकार से भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात तथा महामारी आदि का भी क्रम स्वभाव प्रभाव दुष्प्रभाव आदि को हम जिस दिन समझने लग जाएँगे पूर्वानुमान आदि पता लगाने में उसी दिन सक्षम हो जाएँगे तब इनसे भी न तो इतनी अधिक परेशानी होगी और न ही इतना नुक्सान ही होगा | उस समय ऐसी भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात तथा महामारी आदि प्राकृतिक घटनाओं को देखकर भी हमें जलवायुपरिवर्तन का भ्रम नहीं होगा |
        इस प्रकार से प्रकृति क्रम स्वभाव आदि से सभी लोग परिचित हो गए हैं कि किस ऋतु में वर्षा होगी तथा किस ऋतु में कितना तापमान रहेगा !उन ऋतुओं का प्रभाव जीवन पर कैसा पड़ेगा | उससे बचाव के लिए हमें किस किस प्रकार की तैयारियाँ आगे से आगे करके रखनी होंगी इसका पूर्वानुमान लगाकर आगे से आगे तैयारियाँ करके रख ली जाती हैं | सर्दी से बचाव के लिए आगे से आगे गर्म कपड़े तैयार करके रख लिए जाते हैं ऐसे ही गर्मी वर्षा आदि के आने से पहले इनसे संबंधित तैयारियाँ करके रख ली जाती हैं | किस ऋतु में कौन फसल बोनी है किस ऋतु में कौन फसल तैयार होगी आदि | 
     विशेष बात यह है कि ऋतुओं से संबंधित घटनाओं से हम सब परिचित होते हैं इसलिए उस समय अधिक कठिनाई होते नहीं देखी जाती है किंतु अचानक आने वाली महामारी से लोग परिचित नहीं होते हैं सबसे अधिक नुक्सान इसलिए भी महामारियों के समय में होता है |जिस दिन ऐसा हो जाएगा उसी दिन ऐसी प्राकृतिक घटनाओं से डर लगना बिल्कुल बंद हो जाएगा और इन्हें प्राकृतिक आपदा कहना भी बंद कर दिया जाएगा |
                         स्वास्थ्य पर पड़ता है समय और प्राकृतिक घटनाओं का प्रभाव !

    बारहों महीनों में घटित होने वाली ऋतुओं एवं अहोरात्र के आठों प्रहरों के हिसाब से हमारे शरीर व्यवस्थित हो चुके हैं |ऋतुओं के स्वभाव के अनुशार उनमें वात ,पित्त,कफ आदि का प्रभाव बढ़ा रहता है |  इसी प्रकार प्रत्येक दिनमान के तीन भाग किए जाएँ तो क्रमशः कफ पित्त और वात का प्राबल्य रहता है | इसी प्रकार से रात्रिमान के भी तीनभाग किए जाएँ तो उनमें भी क्रमशः कफ पित्त और वात का प्राबल्य रहता है |ऐसा हमेंशा से होता चला आ रहा है |इसलिए मनुष्य समेत समस्त जीवों के शरीर इसी पद्धति के आदी हो चुके हैं  इसलिए  इसी वातावरण में स्वस्थ रह  लिया करते हैं | इस प्रक्रिया के परिवर्तित होते ही प्राकृतिक वातावरण बदल जाता है उससे शरीर रोगी होने लगते हैं | 
       हमारे पूर्वजों ने हमें ऋतु क्रम एवं ऋतु प्रभाव से परिचित करवाया तो हमें उतना क्रम पता है कि शिशिर ऋतु आने पर सर्दी होगी और ग्रीष्मऋतु आने पर गर्मी होगी वर्षा ऋतु आने वर्षा होगी | इनका समय निश्चित कर दिया कि सर्दी गर्मी वर्षा आदि का प्रभाव लगभग 120 दिन प्रत्येक का होता है |ऋतुओं के प्रभाव के विषय में भी पूर्वजों ने मध्यम प्रभाव को ध्यान में रखकर स्वस्थ रहने की परिकल्पना की है | इससे अभिप्राय है कि सर्दी की ऋतु 120 दिन होगी और सर्दी का प्रभाव मध्यम अर्थात न बहुत अधिक और न ही बहुत कम होगा | ऐसा ही ग्रीष्म और वर्षा ऋतु में भी होगा तो मनुष्य समेत सभी जीवजंतु स्वस्थ बने रह पाएँगे | 
 ऋतुओं के प्रभाव की अवधि 120 दिन होगी और प्रत्येक ऋतु का प्रभाव मध्यम होगा तब तो मनुष्य समेत सभी जीवजंतु स्वस्थ बने रह पाएँगे !यह सिद्धांत पूर्वजों के द्वारा हमें दिया गया था | यह अवधि और प्रभाव प्रत्येक वर्ष एक जैसा रहता नहीं है कम अधिक होता रहता है | इसलिए उसी पूर्वजों के द्वारा दिए गए सिद्धांत के आधार पर अनुसंधान पूर्वक इस बात की खोज करना हमारी जिम्मेदारी थी कि यदि यह अवधि 120 दिन से कम या अधिक होगी और उसका प्रभाव मध्यम न होकर कम या अधिक होगा तो उसका जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?इसके साथ ही किस ऋतु की अवधि के दिन एवं उसका प्रभाव कितना बढ़ने और कम होने पर उससे जीवन कितना और किस प्रकार से प्रभावित होगा ,अर्थात यह अंतर कितना आने से किस प्रकार के रोग होने की संभावना होगी | ऐसा संतुलन कितने वर्ष बिगड़ने से स्वास्थ्य पर कितना अधिक दुष्प्रभाव पड़ेगा ?यदि इस अनुसंधान को सफलता पूर्वक कर पाने में हम सफल हुए होते तो महामारियों का पूर्वानुमान लगाना हमारे लिए चुनौती न बना हुआ होता |

हमें याद रखना चाहिए कि सर्दी के 120 दिनों में से यदि 30 दिन सर्दी कम पड़ती है और उसी समय तापमान बढ़ जाता है | इससे सर्दी के तीस दिन कम होकर 90 दिन ही रह जाते हैं जबकि जिन 30 दिनों में तापमान बढ़ गया होता है वे दिन गर्मी वाले 120 दिनों में जुड़ कर गर्मी के 150 बन जाते हैं | इससे अन्य ऋतुओं का भी संतुलन बिगड़ता है | जिससे प्राकृतिक वातावरण बिगड़ता है इस प्रकार से प्रकृतिक्रम बिगड़ने से इसका दुष्प्रभाव वृक्षों बनस्पतियों फसलों आदि समस्त खाद्य पदार्थों में पड़ता हुआ उसी अनुपात में प्राणियों के स्वास्थ्य पर पड़ता है |
जिससे जहाँ एक ओर रोग या महा रोग पैदा होने लगते हैं वहीं दूसरी ओर प्रकृतिक्रम बिगड़ने से प्रदूषित हो चुके खाद्य पदार्थ औषधियाँ आदि उन रोगों को बढ़ाने में सहायक होने लगते हैं प्राकृतिक क्रम के दुष्प्रभाव से प्रभावित औषधियाँ भी रोगों का साथ देने लग जाती हैं | प्रकृति की ऐसी अवस्था को महामारी के नाम से जाना जाता है | इसी प्रकृति क्रम और स्वभाव को समझते हुए इसी के आधार पर महामारियों के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |
      
        ग्रहगणना के द्वारा संभव है  अच्छे बुरे समय का ज्ञान !

  प्रायः सभी प्रकार की प्राकृतिकघटनाओं के घटित होने का कारण सूर्य ही है और सूर्य का संचार अनिश्चित नहीं है अपितु निश्चित है | इसीलिए प्रत्येक वर्ष में बसंतादि छहों  ऋतुओं के आने जाने का क्रम ,समय और प्रभाव निश्चित है | प्रत्येक वर्ष के प्रत्येक महीने के प्रत्येक दिन में सूर्योदय सूर्यास्त आदि होने का समय नित्य निर्धारित है जो हमेंशा अपने समय से ही घटित होता है |

     सूर्य का संचार हमेंशा अपने सुपरिचित सिद्धांत के आधार पर ही चलता है वह क्रम कभी भंग नहीं होता है | इसलिए ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान आगे से आगे सबको पता होता है | सूर्य चंद्र आदि ग्रहणों से संबंधी घटनाएँ उनका क्रम उनकी आवृत्तियाँ उनके आकार प्रकार आदि एक दूसरे से  जुलते न होने पर भी उनके विषय में गणित विज्ञान के द्वारा पूर्वानुमान इसलिए लगा लिया जाता है क्योंकि इनका प्रमुख पक्ष सूर्य है और सूर्य का सब कुछ सुनिश्चित है | 

  ऐसी परिस्थिति में महामारी, भूकंप, सुनामी, आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात बादलों का फटने,ओलेगिरने,अचानक तापमान बढ़ने या घटने ,अतिवृष्टि एवं अनावृष्टि जैसी प्राकृतिक घटनाएँ भी सूर्य के साहचर्य से ही घटित होती हैं | इसलिए सूर्य का संचार रोके बिना ऐसी घटनाओं का रोका जाना कैसे संभव हो सकता है और सूर्य के संचार को परिवर्तित करना या रोकना कैसे  संभव है और उसके बिना प्राकृतिक घटनाओं को घटित होने से कैसे रोका जा सकता है | 

     सबसे  महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जिन प्राकृतिक घटनाओं को रोका जाना संभव नहीं है फिर भी जलवायु परिवर्तन  पर अंकुश लगाकर प्राकृतिक घटनाओं को रोक लेने की कल्पना की जा रही है और जो किया जा सकता है उधर ध्यान नहीं दिया जा रहा है | 

    जिस सूर्य के संचार से ऋतुओं का निर्माण होता है उसी सूर्यसंचार के आधार पर  ऋतुओं के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है कौन ऋतु कितने महीने या दिन बाद आएगी उस समय का प्राकृतिक वातावरण कैसा रहेगा !तापमान कैसा होगा आदि | उसी सूर्य संचार के आधार पर अहोरात्र के प्रत्येक प्रहर के विषय में पूर्वानुमान  लगा लिया जाता है कितने घंटे बाद सूर्योदय या सूर्यास्त होगा |दिन या रात्रि कितने घंटे बाद होगी ?अहोरात्र के किस  प्रहर में लगभग कितना तापमान रह सकता है आदि बातों का पूर्वानुमान सूर्य संचार के  आधार पर लगा लिया जाता है | इसी प्रकार से ग्रहण संबंधी घटना में सूर्य चंद्र पृथ्वी की भूमिका होती है इसमें प्रधानता सूर्य की  ही होती है | इसलिए सूर्य संचार के आधार पर सूर्य चंद्रादि ग्रहणों का सटीक पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | 

     ऐसी परिस्थिति में मौसम संबंधी समस्त प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का भी तो मुख्यकारण सूर्य ही है | उस सूर्य के संचार के आधार पर भूकंप, सुनामी, आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात बादलों के फटने,ओलेगिरने,अचानक तापमान बढ़ने और घटने ,मानसून आने जाने के विषय में तथा अतिवृष्टि और अनावृष्टि जैसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय  में भी तो पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | ऐसी घटनाओं के घटित होने का कारण भी तो सूर्य ही है | तापमान बढ़ने घटने का कारण सूर्य है | तापमान का घटना बढ़ना ही तो मौसमसंबंधी घटनाओं के घटित होने का कारण है | आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि की घटनाओं के घटित होने का कारण भी तो तापमान ही है ग्लोबल वार्मिंग भी तो तापमान ही है | भूकंप आने का कारण  भूगर्भ गत लावा पर तैरती हुई जिन प्लेटों के आपस में टकराने को माना जाता है |  वो लावा भी तो तापमान  बढ़ने से तैयार होता है | जहाँ कहीं तापमान बढ़ता है उसका कारण सूर्य ही होता है क्योंकि उष्णता सूर्य के ही आधीन है | यहाँ तक कि चंद्रमा में पाई जाने वाली शीतलता भी सूर्य के ही आधीन  है क्योंकि सूर्य का प्रभाव घटेगा तभी गर्मी घटेगी और जैसे जैसे गरमी कम होती जाएगी वैसे वैसे शीतलता बढ़ती जाएगी | सूर्य के प्रभाव को चुनौती देने लायक चंद्र का आस्तित्व ही नहीं है | इसी प्रकार से प्रकाश तो सूर्य के आधीन है ही अंधकार भी सूर्य के ही आधीन है सूर्य का तेज घटेगा तभी अंधकार बढ़ना संभव है | कुल मिलाकर समस्त प्राकृतिक घटनाओं का कारक सूर्य ही तो है |इसलिए मौसमसंबंधी सभीप्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ भी सूर्य  के ही आधीन हैं | सभी प्रकार के प्राकृतिक रोग महारोग आदि प्राकृतिक घटनाएँ भी बनते बिगड़ते मौसम के ही आधीन हैं | 

   ऐसी परिस्थिति में  मौसम और महामारियाँ दोनों ही यदि सूर्यसंचार  के आधीन हैं तो सूर्य संचार के आधार पर मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में भी पूर्वानुमान लगाया जा सकता है क्योंकि सूर्य संचार के  विषय में पूर्वानुमान लगाने की गणितीय विधि पूर्वजों के कृपा प्रसाद से अभी भी सुलभ है |

      इसी गणितीय विधि के द्वारा मैं पिछले लगभग तीस वर्षों से मौसम संबंधी  सभी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाता आ रहा हूँ और वे सही होते देखी जा रही हैं |इसी आधार पर मैंने महामारी के विषय में जो पूर्वानुमान लगाए एवं संक्रमितों की संख्या घटने बढ़ने के विषय में जो पूर्वानुमान लगाए  हमेशा सही घटित होते रहे हैं | इसी आधार पर मुझे लगता है कि यह विधा वैज्ञानिक अनुसंधानों के साथ साथ संपूर्ण वैश्विक समाज की सुरक्षा में  भी सहायक हो सकती हैं |  

प्रत्येक वर्ष में बसंतादि छै ऋतुएँ बारी बारी से आती हैं अपने अपने निर्धारित समय तक रहती हैं फिर चली जाती हैं |यही क्रम हमेंशा से चला आ रहा है और प्रत्येक वर्ष में घटित होता है | इसी प्रकार से प्रत्येक दिन में सूर्योदय-सूर्यास्त,दिन-रात आदि घटनाएँ प्रत्येक दिन में घटित होती हैं | ऐसी घटनाओं के घटित होने का क्रम और समय दोनों निश्चित है | ये बात सबको आगे से आगे पता होती है | इन घटनाओं के घटित होने के कारण और समय निर्धारण का आधार सूर्य है |

    इसी प्रकार से सूर्य चंद्र ग्रहण जैसी प्राकृतिक घटनाएँ लगभग प्रत्येक वर्ष में घटित होती हैं किंतु प्रत्येक वर्ष में ग्रहणों की आवृत्तियाँ एक जैसी नहीं होती हैं उनके घटित होने के महीने दिन समय आकार प्रकार समयांतराल आदि हमेंशा बदलते देखे जाते हैं | इनके घटित होने का प्रमुख कारण सूर्य है | 

    ऐसे ही किस तारीख को वर्षा होना है और किस तारीख को वर्षा नहीं होना है ,किस स्थान पर कब वर्षा होना और किस पर नहीं होना है | वर्षा कब कितनी होना और कितनी नहीं होना है ,मानसून किस तारीख को आना और किस तारीख को वापस चला जाना जाना है | किस वर्ष में सर्दी या गर्मी किस अनुपात में कम घटित होनी है | ऐसी मौसम संबंधी सभी घटनाओं के घटित होने का मुख्य आधार सूर्य है |  

     महामारी, भूकंप, सुनामी, आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात बादलों के फटने,ओलेगिरने,अचानक तापमान बढ़ने या घटने ,अतिवृष्टि एवं अनावृष्टि होने जैसी अधिकाँश प्राकृतिक घटनाएँ घटित होने का भी मुख्य कारण सूर्य ही है |सूर्य के प्रभाव को अलग करके सोचने से ऐसी घटनाओं के विषय में परिकल्पना भी नहीं की जा सकती है |  
_______________________________________________________________________     

हमारे द्वारा किए गए अनुसंधान 1008 see ....https://drsnvajpayee1965.blogspot.com/2022/09/blog-post_17.html 


                                 

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