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अनुमान और पूर्वानुमान

 अनुमान और पूर्वानुमान 

     किसी भी विषय में लगाए जाने वाले अनुमान या पूर्वानुमान दो प्रकार के होते हैं एक प्रत्यक्ष पूर्वानुमान और दूसरे परोक्ष पूर्वानुमान | परोक्ष का आशय जो प्रत्यक्ष दिखाई न दे एवं नाक कान त्वचा जिह्वा आदि के द्वारा भी अनुभव न किया जा सकता हो वही परोक्ष होता है | 

      प्रत्यक्ष कहने का आशय केवल आँखों से दिखाई पड़ने वाला सच ही नहीं होता है अपितु कुछ कारण ऐसे भी  होते हैं जिनमें आँख कान नाक त्वचा जीभ आदि से प्राप्त किए जाने वाले अनुभव भी प्रत्यक्ष प्रमाण ही माने जाते हैं|कई बार नाक से सूँघ कर,कान से सुनकर,जीभ से स्वाद लेकर,त्वचा से स्पर्श करके और आँख से देखकर भी कई प्रकार के अनुभव लिए जाते हैं | जिनके आधार पर कई प्रकृति और जीवन से संबंधित घटनाओं के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | भले ही वह बाद में सच न निकले |   

    अच्छी बुरी गंध तो सूँघने से ही पता लगती है वो आँख से तो दिखाई नहीं पड़ती | कुछ पशु पक्षियों में भी सूँघने की शक्ति विशेष अच्छी होती है ऐसे विषयों में इस प्रकार के पशु पक्षियों की घ्राणविशेषज्ञता प्रमाण मानी जाती है | सूँघने की तरह ही सुनने एवं स्पर्श जनित अनुभवों को  आधार बनाकर या स्वाद के आधार पर कई घटनाओं  प्रत्यक्ष समझने का प्रयास किया जाता है | 

      देखने  सुनने सूँघने स्वाद लेने एवं स्पर्श आदि के विशेषज्ञ पशु पक्षियों को उन उन विषयों में प्रत्यक्ष प्रमाण मान लिया जाता है |ऐसे ही  फूलों फलों आदि की सुगंध या स्वाद आदि में समय के साथ होने वाले परिवर्तनों का अनुभव करते रहने वाले विशेषज्ञ लोग इसे भी प्रत्यक्ष प्रमाण ही मानते हैं | कई बार भूकंप जैसी कुछ बड़ी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने से पहले कई पेड़ों पौधों वृक्षों बनस्पतियों एवं पशु पक्षियों आदि के व्यवहारों में भी बदलाव आते देखे जाते हैं|उन जीवों के व्यवहार में होने वाले परिवर्तनों के आधार पर प्रकृति एवं जीवन से संबंधित घटनाओं को समझने में सुविधा होते देखी जाती है |

      कुल मिलाकर किसी भी घटना का अनुमान या पूर्वानुमान लगाने में प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों प्रकार के ही अनुभवों का उपयोग किया जाता है | प्रत्यक्ष पूर्वानुमान में किसी एक घटना को किसी एक जगह पर घटित होता देखकर उसके किसी दूसरे स्थान पर घटित होने के विषय में अंदाजा लगाकर यथासंभव पता लगा लिया जाता है |इसमें सब कुछ प्रत्यक्ष के आधार पर होता है | इसमें विज्ञान की किसी भी विधा का उपयोग नहीं होता है |  इस अंदाजे को भी कुछ लोग पूर्वानुमान कहते हैं | ऐसे अंदाजे अक्सर दैनिक जीवन से संबंधित घटनाओं के विषय में लगाए जाते रहते हैं |दिल्ली से चली कोई ट्रेन किस स्टेशन पर कब पहुँचेगी इसका पूर्वानुमान लगाने के लिए दो प्रकार होते हैं |

                                             पूर्वानुमानों के दो प्रकार !

1.प्रत्यक्ष पूर्वानुमान 

2.परोक्ष पूर्वानुमान                                  

                        प्रत्यक्ष के आधार पर लगाए गए अनुमान कितने सही !

     एक तो ट्रेन जिस रास्ते पर जा रही हो जितनी गति से जा रही हो उसके आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि कौन ट्रेन किन किन स्टेशनों पर कितने कितने बजे पहुँच सकती है | यह अनुमान ट्रेन की वर्तमान गति और दिशा (रूट) के हिसाब से लगाया जाता है |जिसमें किसी मजबूत आधार का अभाव  होता है | 

     इसी प्रकार से सरकारी विभागों के द्वारा नहरों में जब पानी छोड़ा जाता है पानी वह किस दिन कहाँ पहुँचेगा | ऐसे ही नदियों में किसी एक स्थान पर पहुँच चुके बाढ़ के पानी के आधार पर यह अंदाजा लगा लिया जाता है कि यह कब कहाँ पहुँचेगा ?

    ऐसे ही वर्षा बादलों आँधी तूफानों आदि को उपग्रहों रडारों की मदद से किसी भी स्थान पर घटित होता देखकर उसके किसी दूसरे स्थान पर पहुँचने के विषय में अंदाजा लगा लिया जाता है,किंतु इस आधार पर केवल उन्हीं घटनाओं के विषय में पता लग पाता है जो उपग्रहों रडारों आदि की मदद से देखी सकती हैं |इसके अतिरिक्त प्रतिवर्ष मानसून आने जाने की तारीखों ,दीर्घावधिमौसमीघटनाओं ,भूकंपों  और कोरोना जैसी महामारियों के विषय में अंदाजा लगाना संभव नहीं हो पाता है | 

     वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में जो चीजें प्रत्यक्ष या यंत्रों के माध्यम से दिखाई सुनाई पड़ती हैं उनके आधार पर कई विषयों में कुछ ऐसी राय बना ली जाती है |जिसका सच्चाई से कोई संबंध हो ही ऐसा आवश्यक नहीं होता है |मौसम के विषय में अलनीनो ला-निना जैसी समुद्री घटनाओं के विषय में मानसून के संबंध में  की जाने वाली भविष्यवाणियाँ आदि |आँधीतूफ़ान को वायु विकार एवं भूकंप घटित होने का कारण पृथ्वी की आंतरिक बनती बिगड़ती परिस्थिति को माना जाता है|प्रत्यक्ष दिखाई पड़ने के आधार पर तो इसीप्रकार से संबंध जोड़ लिए जाते हैं|जिनका सच होना आवश्यक नहीं होता है | 

      प्रत्येक घटना के घटित होने का कारण जो दिखाई पड़ रहा होता है वही सच हो यह आवश्यक नहीं होता है |कई बार कारण कुछ दूर होता है कई बार कारण इतनी दूर होता है कि उसका एक दूसरे के साथ संबंध जोड़ पाना बहुत कठिन होता है प्राकृतिक क्षेत्र में तो ऐसा प्रायः देखा सुना जाता है | कभी कभी कारण बिल्कुल अप्रत्यक्ष होता है अर्थात दिखाई पड़ने योग्य ही नहीं होता है | 

     जिसप्रकार से जंगल में कोई व्यक्ति किसी दुर्घटना का शिकार होकर मृत्यु को प्राप्त हो जाए | उसका शरीर क्षत विक्षत होकर यदि वहीं पड़ा रहे | उसके आस पास कहीं सिंह की माँद भी हो भले उसमें सिंह न रहता हो किंतु आशंका यही होती है कि सिंह ने ही  हमला करके इसे घायल कर दिया होगा | ऐसे ही किसी एकांत स्थान में कोई मृत व्यक्ति पड़ा हो उसके आस पास कहीं सर्प की केंचुली तक दिखाई दे जाए तो उसकी मृत्यु का संबंध सर्प के काटने से जोड़ लिया जाता है जबकि इन दोनों घटनाओं के घटित होने के कारण कुछ और भी हो सकते हैं | 

     ऐसी परिस्थिति में प्रत्यक्ष दिखाई पड़ने के आधार पर यदि कर्ता का निश्चय किया जाने लगेगा तब तो रसोई घर में जल रहे गैसचूल्हे में गैस तो दिखाई नहीं पड़ती | इसलिए कर्ता गैस चूल्हे को ही मानना पड़ेगा | रसोई में पानी देने वाली नल की टूंटी को ही जल उपलब्ध कराने वाला सर्वेसर्वा मान लेना पड़ेगा | प्रकाश देने का कर्ता बल्व को मान लेना पड़ेगा | दूर संचार का कर्ता उस मोबाइल को मान लेना होगा | इसके अतिरिक्त वहाँ आस पास ऐसा कुछ भी दिखाई ही नहीं पड़ रहा होता है जबकि इसके पीछे बहुत बड़ा ऐसा तंत्र काम कर रहा होता है जो प्रत्यक्ष रूप से दिखाई ही नहीं पड़ रहा होता है |                                   

  घटनाओं में चेतनतत्व की भूमिका

      प्रत्यक्ष को ही विज्ञान मानने वाले लोग प्रकृति को चेतना विहीन समझकर अनुसंधान करते देखे जाते हैं | ऐसे प्रत्यक्ष प्रेमी वैज्ञानिक लोगों को प्रकृति में या जीवन में जब कुछ ऐसी घटनाएँ घटित होते दिखाई पड़ती हैं जिनपर मनुष्य का कोई बश नहीं चलते देखा जाता है ऐसी घटनाओं को देखकर वैज्ञानिक लोग इसे नेचर कुदरत प्रकृति आदि कहते सुने जाते हैं | वैज्ञानिक चेतना के अभाव में कई बार ऐसी घटनाओं को जलवायु परिवर्तनजनित मान लिया जाता है |

    समय विज्ञान की दृष्टि में सभी प्रकार की घटनाओं के घटित होने के पीछे कोई न कोई चेतन तत्व संपूर्ण संयोजन सँभाले होता है जिसके द्वारा रचित पटकथा के आधार पर संपूर्ण घटना घटित हो रही होती है | इनमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी न किसी चेतन तत्व की मुख्य भूमिका होती है | व्यवहार में भी ऐसा ही स्वीकार किया जाता है |शरीर के जिस अंग से जो कार्य किया गया होता है श्रेय उस अंग को न मिलकर अपितु उस चेतना संपन्न व्यक्ति को मिलता है | 

    इसी प्रकार से कोई भी अपराध जिस अंग से किया गया होता है दोषी केवल उस अंग को न मानकर अपितु उस व्यक्ति को मान लिया जाता है और सजा भी उस व्यक्ति को ही दी जाती है |इससे यह स्पष्ट होता है कि चेतन तत्व के सम्मिलित हुए बिना किसी भी घटना का घटित होना संभव ही नहीं होता है | 

    तलवार में प्राण न होने के कारण ही तो तलवार से हुए अपराध के लिए भी तलवार को दोषी नहीं माना जाता है  जबकि घायल व्यक्ति को चोट तलवार ने मारी गई होती है तलवार की चोट से घायल हुए व्यक्ति को तलवार धारी व्यक्ति ने तो छुआ भी नहीं होता है | उस तलवार को उसने पकड़ रखा होता है जिससे हमला हुआ होता है | 

   बंदूक से मारी गई गोली जिस व्यक्ति को लगती है  उस गोली का सीधा संबंध लगते समय उस बंदूख से नहीं होता है जिसे दोषी व्यक्ति ने अपने हाथ में धारण कर रखा होता है | घटना जहाँ घटित हुई होती है प्रत्यक्षतौर पर देखा जाए तो वहाँ पर न तो दोषी व्यक्ति होता है और न ही उसके हाथ में पकड़ी हुई बंदूख !इसके बाद भी दूरस्थ परोक्ष परिस्थितियों का अनुसंधान करके दोषी उस व्यक्ति को ही माना जाता है जिसके हाथ में बंदूख पकड़ी गई होती है क्योंकि गोली बंदूख या तलवार आदि को निर्जीव समझकर कर इन्हें कुछ करने लायक माना ही नहीं जाता है |कुछ करने के लिए चेतना की आवश्यकता होती है | यही कारण है कि दण्डित भी वो व्यक्ति किया जाता है जिसके हाथ में तलवार या बंदूख आदि होते हैं |ऐसे व्यक्ति को दोषी मानकर दण्डित तभी तक किया जाता है जबतक वह चेतना संपन्न अर्थात जीवित रहता है बड़े बड़े अपराधियों के द्वारा किए जाने वाले अपराधों के लिए भी  दोषियों के निष्प्राण अर्थात निर्जीव शरीर को दण्डित नहीं किया जाता है | दोषियों की जिस किसी भी प्रकार से मृत्यु होते ही उनके शरीर को दंड देना बंद कर दिया जाता है |

     ऐसी परिस्थिति में प्रत्यक्ष को यदि साक्ष्य माना जाए तब तो दोषी शरीर ही सिद्ध होगा तो उसके निर्जीव होने के बाद भी उसके दोषी  शरीर को तो दंड मिलना चाहिए था किंतु शरीर को तो दंडित नहीं किया जाता है |इससे यह सिद्ध होता है कि दोषी उस आत्मा को माना जाता है जो घटना घटित होने के समय उस शरीर में उपस्थित थी |वह आत्मा जैसे ही शरीर छोड़ देती है वैसे ही समस्त दंड विधान रोक दिया जाता है जबकि शरीर तो वहीं पड़ा होता है| 

   ऐसी परिस्थिति में दोषी जीवात्मा ही होती है उसे दोषी मानकर उसके शरीर को दंडित  किया जा रहा होता है वस्तुतः दोषी यदि जीवात्मा होती  है तो कार्यवाही भी उसी के विरुद्ध की जानी चाहिए किंतु प्रत्यक्ष साक्ष्यों के आधार पर आत्मा को दोषी सिद्ध करने का आधार क्या माना जाएगा क्योंकि प्रत्यक्ष रूप से  उस आत्मा को अपराध करते किसी ने देखा नहीं होता है | आत्मा को देखना संभव नहीं है |प्रत्यक्ष साक्ष्य के अभाव में उस आत्मा को दोषी सिद्ध करना संभव ही नहीं है और यदि हो भी तो दंडित उसे कैसे किया जा सकता है |

    इस अवस्था में न्यायविधान का पालन करने हेतु इतनी बड़ी घटना के लिए दोषी किसे माना जाए | जिन प्रत्यक्ष कारणों को जोड़कर उस घटना के लिए अधिकतम रूप से केवल दोषी के शरीर तक ही पहुँचा जा सकता है शरीर को दंड देना यदि अभिप्राय है तो उसके मृत शरीर को भी दंड दिया जाना चाहिए और यदि दोषी जीवात्मा को माना जाता है तो उस शरीर को दंडित क्यों किया जाता है और साक्ष्य के अभाव में आत्मा दोषी सिद्ध नहीं हो सकी तो दंड का विधान शरीर और आत्मा दोनों में से किसके लिए किया जाए | ऐसी परिस्थिति में प्रत्यक्ष और परोक्ष साक्ष्यों की कड़ियाँ जोड़ते हुए उस आत्मवान शरीर तक पहुँचकर सजीव शरीर को दंडित किया जाता है | 

    कड़ियाँ जोड़ने का क्रम यह होता है कि जिस गोली के लगने के मृत्यु हुई होती है वह गोली मृत शरीर में मिल भी जाती है तो भी उसे दोषी नहीं माना जाता है | उस बंदूख से गोली निकलते किसी ने देखा नहीं होता है फिर भी परोक्ष अनुभवों को आधार मानकर गोली बंदूख से निकली है यह सिद्ध हो भी जाता है तब भी बंदूख को दोषी नहीं मान लिया जाता है | जिस हाथ से बंदूख चली होती है उसे भी दोषी नहीं माना जाता है वह हाथ  जिस शरीर का अंग होता है उसे भी दोषी नहीं माना गया होता है अन्यथा मृत शरीर को भी दण्डित किया जाता | आत्मवान शरीर को दोषी इसलिए माना जाता है क्योंकि कोई भी कार्य करने की क्षमता सजीव शरीर में ही हो सकती है इसलिए कर्ता वही हो सकता है |      

     ऐसी परिस्थिति में प्रकृति और जीवन में घटित होने वाली घटनाओं के लिए भी चेतनतत्व को ही मुख्य सूत्रधार माना जाता है | चेतन शक्ति के सहयोग के बिना कोई घटना कैसे घटित  हो सकती है |

     परोक्ष पूर्वानुमान-

  परोक्ष पूर्वानुमान वह होता है जिसके आधार पर भविष्य में संभावित किसी भी प्राकृतिक घटना को आँख कान नाक जीभ त्वचा आदि अंगों के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से देखा सुना या अनुभव न किया जा पा रहा हो | इसीप्रकार से उपग्रह रडार आदि किसी भी यंत्र की मदद से घटना के किसी भी स्वरूप को देखना सुनना आदि संभव न हो ! ऐसी परिस्थिति में उस घटना से असंबंधित किसी अन्य तथ्य को आधार बनाकर  घटना के विषय में महीनों वर्षों पहले पता लगा लेना ही परोक्ष पूर्वानुमान है | 

     प्रत्यक्ष पूर्वानुमान में ट्रेन को जाते देखकर उसके विषय में अनुमान लगाया जाता है कि ये कब कहाँ पहुँचेगी और परोक्ष पूर्वानुमान प्रक्रिया में रेलवे की समय सारिणी देखकर ट्रेन के जाने  के दिन से कुछ दिन सप्ताह महीने आदि पहले भी ट्रेनों के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है कि किस ट्रेन को किस दिन किस स्टेशन पर कितने बजे पहुँचना होगा |इस प्रक्रिया में तो ट्रेन उस समय सारिणी का पालन करने के लिए बाध्य होती है| इस ट्रेन के कितने बजे किस स्टेशन पर पहुँचने का समय है उस आधार पर ट्रेन को चलाया जाना होता है |  यह पूर्वानुमान ट्रेन की समयसारिणी के अनुशार लगाया गया होता है | 

     प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रक्रिया में यह अंतर पड़ता है कि कोई भी ट्रेन हमेंशा चलती ही तो नहीं रहती है और उसके स्टॉपेज भी होते हैं प्रत्येकस्टेशन के हिसाब से उनके रुकने का समय भी अलग अलग होता है | कौन स्टॉपेज कितनी देर का है |इस सारे समय का हिसाब किताब लगाकर ही  समयसारिणी का निर्माण किया जाता है| इसलिए यह पूर्वानुमान नियमों से निबद्ध मजबूत आधार पर आधारित होता है जबकि प्रत्यक्ष प्रक्रिया में इतनी बारीकी से अनुमान लगाना संभव नहीं होता है |

     इसीप्रकार से महामारी भूकंप आँधीतूफ़ान वर्षा आदि प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया में भी  परोक्षविज्ञान ही सर्वाधिक सटीक बैठता है | इसी परोक्षविज्ञान के आधार पर सूर्य चंद्र आदि ग्रहणों के विषय में महीनों वर्षों पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | इन घटनाओं से संबंधित समयसारिणी पूर्वजों के द्वारा युगों पहले खोज ली गई थीं |महामारी भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा आदि प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए भी परोक्षविज्ञान संबंधी अनुसंधानों की आवश्यकता है | इसके द्वारा जिस दिन ऐसी घटनाओं से संबंधित समय सारिणी खोज  ली जाएगी उस दिन उनके विषय में भी अनुमान लगाना आसान  हो जाएगा | 

                                             घटनाओं के कर्ता की खोज 

       प्राकृतिक घटनाओं में अक्सर कर्ता प्रत्यक्ष न होकर अपितु परोक्ष होता है इसके कारण दिखाई नहीं पड़ रहा होता है |इसलिए प्रत्यक्षविज्ञान उन घटनाओं के घटित होने का कारण नेचर प्रकृति जलवायु परिवर्तन आदि कुछ भी मानकर प्रायः भूल जाता है या फिर कुछ ऐसे अलनीनो लानिना जैसे निराधार कारणों की कल्पना कर लिया करता है जिनका वास्तविक घटनाओं से कोई संबंध ही नहीं होता है | इसीलिए वे प्रायः सच नहीं निकलते देखे जाते हैं |    
     वस्तुतः ऐसी घटनाओं का कर्ता भी चेतनतत्व ही होता है जो अदृष्ट होने के कारण दिखाई भले न पड़ता हो किंतु इसका प्रभाव पूरा होता है | बिजली का आना जाना दिखाई भले न पड़ता हो किंतु उसके आने और जाने का प्रभाव जिन बिजली के उपकरणों पर पड़ता है ऊर्जा के प्रभाव से उनमें परिवर्तन दिखने लगते हैं | 
    इसी प्रकार से महामारी भूकंप आँधी तूफान आदि घटनाएँ उन्हीं बिजली के उपकरणों की तरह ही हैं | इन्हें भी अदृष्ट ऊर्जा का साथ मिलते ही ऐसी घटनाएँ घटित होने लगती हैं | इन घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान यदि इन्हीं घटनाओं को एक जगह घटित होते देखकर दूसरी जगह के विषय में लगाया जाता है तब तो ट्रेन को जाती हुई देखकर उसके गंतव्य पर पहुँचने के विषय में लगाए जाने वाले पूर्वानुमान की तरह है| जिन घटनाओं का पूर्वानुमान उस चेतनऊर्जा के आधार पर लगाया जाता है वह उस रेलवे की समय सारिणी के द्वारा ट्रेन के विषय में लगाए गए पूर्वानुमान की तरह होता है जो सच ही निकलता है | वह समय सारिणी उस अप्रत्यक्ष सर्कार के द्वारा बनायी गई होती है जो उस समय वहाँ विद्यमान नहीं होती है दूसरी बात ऐसी समय सारिणी का मतलब यह सरकार का आदेश होता है कि इस ट्रेन को इतने बजे वहाँ पहुँचना ही होगा | इसी प्रकार से महामारी भूकंप आँधी तूफान आदि प्राकृतिक घटनाओं की भी प्राकृतिक चेतन ऊर्जा से निर्मित समय सारिणी होती है जो ऐसी घटनाओं के विषय में प्रकृति प्रदत्त आदेश होता है कि किन किन घटनाओं को कब कब घटित होना ही होगा | ऐसी घटनाओं को घटित होने का आदेश देने वाला चेतनासंपन्न कर्ता ही होगा जिसके आदेश से ऐसी घटनाएँ घटित होती हैं | 

    सूर्य एक ग्रह  है उस पर प्रकाश और गर्मी के रूप में ऊर्जा प्रदान करने की जिम्मेदारी उसी चेतन तत्व के द्वारा डाली गई है सूर्य उसी कार्य में निरंतर  लगा हुआ है। जिससे वर्ष की विभिन्न जलवायु परिस्थितियों, महासागरीय धाराओं और ऋतुओं का उत्पादन होते देखा जाता है | प्रत्यक्षरूप से देखने पर ये सब सूर्यकृत लगता है किंतु ऐसा करने में सूर्य का अपना कोई स्वार्थ ही नहीं है और बिना स्वार्थ के कोई कुछ भी नहीं करता है |इसलिए सूर्य तो अपने कर्तव्य का निर्वहन करता जा रहा है उसके प्रभाव से उसके साथ साथ ऐसी घटनाएँ घटित होती चली जा रही हैं |जिसका अनुमान उस चेतन तत्व को अवश्य रहा होगा जिसकी प्रेरणा से ऐसी घटनाएँ घटित होती हैं उस चेतन तत्व ने सूर्य के ऐसे प्रभाव को ध्यान में रखते हुए ही सूर्य के संचार का निर्धारण किया होगा |

    जिस प्रकार से रात्रि के अँधेरे में कोई चीज खो जाए तो टार्च को जलाकर उस चीज को खोज लिया जाता है किंतु कर्ता के द्वारा  जलाई जाने वाली टार्च को अपने जलने का उद्देश्य प्रभाव आदि पता ही नहीं होता है और न ही पता होता है कि हमारे जलने से किसे क्या लाभ पहुँच रहा है |यह सबकुछ तो टार्च जलाने वाले को पता होता है कि इसके जलने से किसे क्या और कितना लाभ पहुँचेगा | इसीप्रकार से सूर्य के संचार से क्या किसे कितना लाभ हो सकता है यह सोचकर ही चेतन ऊर्जा के द्वारा सूर्य के संचार को व्यवस्थित किया  गया है | 

    इसी प्रकार से हरकार्य के लिए एक नेटवर्क बना हुआ है | उसका चेतना संपन्न प्रबंधकर्ता ही वास्तविक कर्ता होता है |यही कारण है कि ग्लोबलवार्मिंग या जलवायु परिवर्तन जैसी निर्जीव घटनाएँ महामारी भूकंप आँधी तूफान आदि प्राकृतिक घटनाओं को जन्म देने में सक्षम नहीं हैं | वे तो स्वयं चेतना के प्रभाव से प्रभावित होकर घटित हो  रही होती हैं | 

  इसीलिए रात्रि बीतने के बाद के बाद दिन होता है दिन में प्रकाश होता है और धूप निकलती है तथा गर्मी बढ़ती है इसका कर्ता सूर्य को मान लिया जाता है किंतु सूर्य जिसकी प्रेरणा से प्रतिदिन उगता और अस्त होता है वही मूल कर्ता होता है | कुम्हार जिस चाक पर मिट्टी रखकर घड़ा बनाता है तो उस घड़े का कर्ता चाक को न मानते हुए कुम्हार को ही माना जाता है |इसी प्रकार से सूर्य जिससे प्रेरित होकर अपने दायित्व का निर्वाह करता है वही तो कर्ता होता है |

     बादल किसी से प्रेरित होकर आते और बरसते हैं फिर चले जाते हैं | जिससे प्रेरित होकर बरसते हैं कर्ता तो वही होता है | इसी प्रकार से अच्छी बुरी समस्त घटनाओं का कोई न कोई कर्ता अवश्य होता है |  कोई काम शुरू कब होगा और समाप्त कब होगा !कम और अधिक कब कब होगा यह तो उसे ही पता होगा जो उस कार्य को कर रहा होता है उसके बिना कोई दूसरा व्यक्ति यह कैसे बता सकता है कि यह कार्य शुरू और संपन्न कब होगा ?   कोरोना महामारी एक कार्य है इसका कर्ता कौन है यह खोजना होगा |

      प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के लिए जिम्मेदार कोई न कोई कारण अवश्य होता है |मनुष्यकृत  घटनाओं का कारण प्रत्यक्ष दिखाई पड़ रहा होता है जबकि प्राकृतिक घटनाओं का कारण प्रत्यक्ष न होकर अपितु परोक्ष होता है जिसे खोजना अत्यंत कठिन कार्य होता है | कारण पता लगते ही उसका निवारण खोजना आसान हो जाता है | पंखा चलने का सहयोगीकारण यदि बिजली की ऊर्जा है तो स्विच बंद करके पंखे से बिजली के संबंध को अलग करके पंखे को बंद किया जा सकता है |पंखे के चलने का कारण बिजली थी या नहीं यह प्रमाणित तभी हो पाता है जब स्विच से पंखे को चलाया अथवा स्विच से बंद करके प्रमाणित किया जा सके |ऐसे कारण प्रायः मनुष्यकृत प्रत्यक्ष घटनाओं में दिखाई पड़ा करते हैं | 

     प्राकृतिक घटनाओं में कारणों की कल्पना करनी होती है जिन्हें रोका नहीं जा सकता तर्कों के द्वारा समझा अवश्य जा सकता है | जिसप्रकार से नदी में बाढ़ आने का कारण अधिक वर्षा होना माना  जा सकता है किंतु नदी में बाढ़ आने का कारण अधिकवर्षा होने को प्रमाणित तभी माना जा सकता है जब बर्षा बंद होने पर बाढ़ समाप्त हो एवं दुबारा फिर कभी अधिक वर्षा होने पर बाढ़ जैसी घटना तब भी घटे | इसके अतिरिक्त केवल कारण की कल्पना करके उसे प्रमाणित नहीं माना जा सकता है | 

   नदी की बाढ़ से पीड़ित समाज यदि बाढ़ से अपना बचाव करने के लिए नदी में बाढ़ कब आएगी और कब समाप्त होगी केवल इतना जानना चाहता है | यदि किसी अनुसंधान से उस समाज को इतना पता लग जाता है और उससे वह बाढ़ से अपना बचाव करने में सफल हो जाता है तो बाढ़ पीड़ित समाज का संकट कम करने का उद्देश्य पूरा हो जाता है |   


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