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अंतिम खंड फाइनल n 2 ( प्राकृतिक घटनाओं में कार्य और कारण !)

 

प्रकृति और संगीत !

   मौसम संगीत की तरह होता है ,संगीत तीन प्रकार का होता है -गायन ,बादन  और नर्तन  !(गीतं वाद्यं तथा नृत्यं त्रयं संगीत मुच्यते।) प्राकृतिक संगीत में हवाएँ गीत जाती हैं ,बादल बाद्य बजाते हैं (मेघगर्जन) स्वर अनुकूल देखकर पृथ्वी नृत्य करने लगती है जिसे भूकंप कहा जाता है | भूकंप आने का वास्तविक कारण प्रकुपित वायु होता है जिस प्रकार से  नृत्यकला  में कुशल लोगों के पैर अच्छा गायन सुनते ही स्वतः थिरकने लगते हैं उसी प्रकार से वायु के सहयोग से पृथ्वी स्वतः थिरकने लगती है | इस प्राकृतिक संगीत महोत्सव का संयोजन उस चेतन  तत्व के द्वारा किया जाता है जिसने समस्त सृष्टि का निर्माण किया है | 
    जिस प्रकार से संगीत में अलग अलग स्वर निकालने के लिए अलग अलग प्रकार की प्रक्रिया अपनानी पड़ती है तबले में कहीं धीमे तो कहीं तेज कहीं हथेली का तो कहीं अँगुलियों का अलग अलग प्रकार से प्रयोग करना होता है | उस समय तबला बादक गीत का अनुशरण कर रहा होता है | इसलिए उसका  संपूर्ण ध्यान अच्छा स्वर निकालने पर होता है उसकी अभ्यासी अँगुलियाँ गीत के अनुशार स्वतः थाप देने लग जाती हैं | अलग अलग प्रकार के स्वर निकालने के लिए थाप देने में अलग अलग प्रकार से अँगुलियाँ आदि चलानी होती हैं | इस बारीकी को स्वर विशेषज्ञ लोग ही समझ पाते हैं कि किस स्वर के बाद कौन सा स्वर आएगा उस स्वर को निकालने के लिए किस प्रकार की थाप वाद्य यंत्र पर कहाँ कितने वेग से देनी होगी | 
  कुल मिलाकर गायन ,बादन  और नर्तन में कौन किसके आधीन है यदि विचार किया जाए तो यही लगेगा कि बादन  और नर्तन दोनों ही गायन के आधीन हैं | गायन जैसा होगा बादन  और नर्तन भी वैसा ही होगा |     
     जिस प्रकार से संगीत में  गायन प्रमुख है बादन और नर्तन गायन का ही अनुगामी होता है ! उसी प्रकार से प्राकृतिक संगीत में वायु संचार ही प्रमुख है यही गायन है मेघ गर्जनवर्षा, बाढ़ आदि वादनहैं भूकंप आदि नर्तन है | इसलिए  गायन के आधीन वादन और नर्तन होने के कारण महामारी, भूकंप,आँधी, तूफ़ान, वर्षा, बाढ़  आदि समस्त प्राकृतिक घटनाओं को समझने के लिए वायुसंचार के स्वभाव को समझना परम आवश्यक है | 
     संगीत की तरह ही प्रकृति और जीवन में हमेंशा एक ही प्रकार की घटनाएँ घटित नहीं होती हैं | जिस प्रकार से संगीत में कब कहाँ कैसी थाप देनी पड़ जाए ये गीत  के अनुशार ही निर्धारित होता है उसी प्रकार से प्रकृति और जीवन में कब कैसी घटनाएँ घटित होने लगती हैं ये तो वायुसंचार के अनुशार ही घटित होता है | वायुसंचार के स्वाभाविक परिवर्तनशील स्वाभाविक रहस्य को न समझने वालों को भले लगे कि महामारी, भूकंप,आँधी, तूफ़ान, वर्षा, बाढ़ आदि समस्त प्राकृतिक घटनाएँ एक जैसी न घटित होने का कारण जलवायुपरिवर्तन हो सकता है किंतु प्रकृति के रहस्य को समझने वालों को पता है प्राकृतिक घटनाएँ कभी एक जैसी घटित हो ही नहीं सकती हैं  जिस प्रकार से संगीत में प्रत्येक स्वर साधने के लिए संगीतज्ञ को कब कहाँ कैसी कैसी थापें देकर आवश्यकतानुसार स्वर निकालने पड़ जाऍं ये पता नहीं होता है उसी प्रकार से प्राकृतिक घटनाओं को कब कहाँ कैसा घटित होना पड़ जाए ये पता नहीं होता है | 
    वादक तबले पर अलग अलग प्रकार से हाथों  की अँगुलियाँ आदि अलग अलग स्थानों पर अलग अलग गति से मार कर अपने स्वर साधता है | वहाँ बादक की अँगुलियाँ  तबले पर कब कहाँ कैसी और कितने बार लग रही हैं | ये नहीं ध्यान रखना होता है अपितु उस गीत और संगीत के तारतम्य को समझना होता है | उसी प्रकार से प्रकृति में प्रत्येक क्षण छोटी बड़ी अनेकों प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ घट रही होती हैं उन घटनाओं के स्वरूपों  स्वभावों  एवं आपसी तारतम्य को समझने के लिए वायु संचार को अच्छी प्रकार से समझना होता है | जिसके आधार पर आगे से आगे प्राकृतिक घटनाओं का ज्ञान होता चलता है |   

प्राकृतिक घटनाओं में कार्य और कारण !

    संसार में कोई भी कार्य अकारण नहीं होता है प्रत्येक कार्य करने के पीछे किसी का कोई उद्देश्य इच्छा या आवश्यकता होती है उसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए वह कार्य किया अथवा करवाया जाता है |जिसके उद्देश्य इच्छा आवश्यकता या प्रेरणा से कार्य  को प्रारंभ किया जाता है ,वह उस कार्य का प्रायोजक कारण होता है |जिसके द्वारा वह कार्य किया जा रहा होता है वह उसका निमित्त कारण होता है | ऐसे ही जिस वस्तु से जो कार्य किया जा रहा होता है वह उसका उपादान कारण होता है |
     घड़े के निर्माण कार्य में मिट्टी उपादान कारण होती है | निर्माण करने वाला कुम्हार निमित्त कारण होता है और  निर्माण करवाने वाला अर्थात जिसकी ईच्छा की पूर्ति  के लिए वह निर्माण किया गया होता है वह प्रायोजक कारण होता है | 
    
     घड़ा निर्माण एक कार्य है घड़ा मिट्टी से बनेगा इसलिए मिट्टी ही कारण है क्योंकि घड़ा मिट्टी का ही बदला हुआ स्वरूप होता है इसके साथ ही यह भी याद रखा जाना चाहिए कि कोई भी कारण कार्य रूप में स्वयं परिणत नहीं होता,अर्थात मिट्टी रूपी कारण अपने आप से अपने को बदलकर घड़ा नहीं बन सकता है क्योंकि कारण व्यापार रहित सत्ता है। उसमें कार्य की उत्पत्ति के लिए कोई प्रक्रिया नहीं होती है ।

    मिट्टी से घड़ा बनाना एक कार्य है पहले केवल मिट्टी थी तब कारण तो था किंतु कार्य अर्थात घड़ा नहीं था | घड़ा बनाना एक स्वतंत्र कार्य है इस कार्य की शुरुआत घड़ा बनाने की प्रक्रिया प्रारंभ होने के साथ साथ ही प्रारंभ होती है |

   घड़ा बनाना एक नवीन कार्य है और किसी कर्ता के सहयोग के बिना किसी कार्य का होना संभव नहीं है इसलिए घड़ा निर्माणरूपी कार्य को करने के लिए कर्तारूपी कुम्हार को खोजना पड़ा | कारण नवीन कार्य का आरंभक होता है,इस दृष्टि से घड़े का कारण मिट्टी है किंतु घड़ा निर्माणरूपी नवीन कार्य का कारण कुम्हार है |

     जिस प्रकार से कुम्हार के सहयोग के बिना घड़ा नहीं बन सकता है ,उसी प्रकार से मिट्टी के उपयोग के बिना घड़ा नहीं बन सकता है | कुम्हार किसी भी वस्तु से घड़ा नहीं बना सकता है उसके लिए मिट्टी ही चाहिए क्योंकि घड़ा भी मिट्टी का ही बदला हुआ स्वरूप  होता है |

     जिस प्रकार से तिलों में तेल होता है इसीलिए तिलों से तेल निकाल लिया जाता है | वही लोग उसी प्रक्रिया से तिलों की जगह बालू से तेल नहीं निकाल सकते हैं | यह प्रकृति के नियम से विपरीत होगा।सांख्ययोग का यह सिद्धांत परिणामवाद कहलाता है। इसके अनुसार कारण कार्य के रूप में परिणत होता है, अत: तत्वत: कारण कार्य से पृथक् नहीं है।अर्थात घड़ा बन जाने के बाद भी वह मिट्टी से अलग नहीं है| ऐसे ही तिलों से निकला हुआ तेल तिलों से अलग नहीं होता है |  
   
    घड़ा निर्माण एक कार्य है जो मिट्टी से बनता है इसे बनाने के लिए चाक डंडा धागा आदि चाहिए होता है किंतु ये सारी वस्तुएँ एकत्रित होकर भी तब तक घड़ा नहीं बन सकती हैं जब तक इसमें किसी चेतन अर्थात प्राणी का प्रयास सम्मिलित नहीं होगा | 

(1) उपादान कारण :वह वस्तु जो कार्य के शरीर का निर्माण करती है | मिट्टी घड़े का उपादान कारण होती है और तागा कपड़े का उपादान कारण  होता है | 

(2) असमवायि कारण :-समवायि कारण द्रव्य होता है और असमवायिकारण गुण या क्रिया रूप होता है। तागे का रंग कपड़े का असमवायि कारण कहा जाता है। 

(3) निमित्त कारण समवायि कारण में गति उत्पन्न करता है जिससे कार्य की उत्पत्ति होती है। कुम्हार घड़े का निमित्त है क्योंकि वही उपादान से घड़े का निर्माण करता है।

(4.) प्रयोजक कारण :-जिस उद्देश्य से कार्य का निर्माण होता है वह उद्देश्य भी कार्य का कारण होता है। पानी रखने के लिए घड़े का निर्माण होता है अत: वह उद्देश्य घड़े का प्रयोजक कारण है।

   घड़ा निर्माण कार्य:    इस कार्य में प्रयोजक कारण रूपी चक्रदत्त इसलिए को जल रखने के लिए घड़े की आवश्यकता होती है| चक्रदत्त निमित्त कारण रूपी  कुम्हार से घड़ा बनाने के लिए कहता है | अब निमित्त कारण रूपी  कुम्हार उपादान कारण रूपी मिट्टी को लाकर घड़ा निर्माण करके कार्य पूरा कर देता है | इससे चक्रदत्त की इच्छा की पूर्ति हो जाती है | ,

   जिस मिट्टी से घड़े का  निर्माण किया जाता है और जिन तिलों से तेल निकाला जाता है वह मिट्टी और तिल स्वयं निष्क्रिय रहते हुए भी घड़े और तेल का स्वरूप पा जाते हैं | विशेष बात यह है कि इस प्रक्रिया में मिट्टी और तिलों का घड़ा और तेल बनने में अपना कोई प्रयास नहीं होता है | फिर भी मिट्टी और तिल अपने अपने गुणों के कारण ही दूसरों की मदद से इस अवस्था तक पहुँच पाते हैं |

    विशेष बात यह है कि कुम्हार चाक की सहायता से घड़ा बना अवश्य देता है किंतु इसका मतलब यह कतई नहीं है कि वह किसी भी वस्तु से घड़ा बना देगा|जिस कार्य की आवश्यकता होती है कारण भी उसी प्रकार का ग्रहण करना पड़ता है | तेल निकालने में कोई व्यक्ति कितना भी कुशल क्यों न हो फिर भी वह बालू से तेल नहीं निकल सकता है इसके लिए उसे तिलों की ही आवश्यकता होती है |ऐसे ही  दूध से दही ही बन सकता है इसका मतलब यह नहीं है कि दूध से कुछ भी बनाया जा सकता है |  

   इससे अभिप्राय यह है कि कारण जिस प्रकार का होता है, कार्य भी उसी प्रकार का होता है || कार्य की प्रकृति कारण जैसी होती है।कारण केवल वही कर सकता है जो उसकी कर सकने की सीमा में हो। इसीलिए इस जगत की उत्पत्ति शून्य से नहीं अपितु किसी मूल सत्ता से है। 

_______________________________________________________________________________________                                        घटनाओं में कार्य और कारणों की खोज !

    “वैज्ञानिक दृष्टि से कोई भी कार्य संपन्न होना तभी माना जाता है जब वस्तु पर बल लगाने से वस्तु में विस्थापन या परिवर्तन उत्पन्न हो गया हो।” इससे अभिप्राय यह है कि लक्ष्य को प्राप्त करने की दृष्टि से सफलता प्राप्त हुए बिना केवल प्रयास की प्रक्रिया को ही कार्यपूर्ण हुआ नहीं माना जा सकता है |समुद्र खाली करने के उद्देश्य से सौ पचास बाल्टी पानी समुद्र से बाहर फ़ेंक कर कोई भी व्यक्ति समुद्र को खाली कर देने का दावा कैसे कर सकता है |ऐसे ही हिमालय को खिसकाने के उद्देश्य से यदि कोई व्यक्ति हिमालय में केवल धक्का मार देता है इससे वह हिमालय को खिसका देने का दावा कैसे किया जा सकता है | ऐसी घटनाओं में परिणामशून्य  प्रयास हुआ होता है |इसलिए यह कार्य न होकर अपितु केवल प्रयास ही बना रहता है | 

    इसी प्रकार से महामारी भूकंप आँधी तूफान वर्षा बाढ़ आदि प्रकृतिक घटनाओं से संबंधित अनुसंधान करना भी एक प्रकार का कार्य ही है किंतु ऐसे अनुसंधानों से अपेक्षित सफलता न मिलने के कारण वे अभी तक प्रयासमात्र ही हैं ऐसे अनुसंधानों से अपेक्षित परिणाम अभी आने बाक़ी हैं |

    मौसम,भूकंप या महामारी आदि प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का प्रयोजक कारण कौन है जिसकी इच्छा से ऐसी घटनाएँ घटित होती हैं किस उद्देश्य की पूर्ति के लिए ऐसी घटनाएँ घटित होती हैं | इन घटनाओं का निमित्त कारण कौन है जिसके प्रयास से ऐसी घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं | ऐसी घटनाओं का उपादान कारण कौन है जिससे ऐसी घटनाओं का निर्माण होता है | 

   अनुसंधान रूपी इस महानकार्य को करने का प्रयास वैज्ञानिक विद्वान लोग निरंतर करते चले आ रहे हैं | अभीतक किए गए प्रयासों को सफलता कितनी मिली है | यह चिंतन का विषय है कि महामारी मौसम,भूकंप आदि प्राकृतिक घटनाओं के वास्तविक कारण खोजने में इनका स्वभाव समझने में या इनके विषय में पूर्वानुमान लगाने में ऐसे अनुसंधानों कार्यों से कितनी मदद मिल सकी है |  

     अनुसंधान की दृष्टि से देखा जाए तो ऐसी प्राकृतिक घटनाओं को संपूर्ण रूप से समझने के लिए इनके निमित्तकारण और उपादान कारण खोजने ही पड़ेंगे | इसके बिना अनुसंधानों का सफल होना संभव नहीं है                       

                                    कार्य के आधार पर कारण की खोज !

   कई बार किसी कार्य के लिए प्रयास करने वाला निमित्तकारण प्रत्यक्ष नहीं दिखाई देता है किंतु परिणाम दिखाई दे रहा होता है उस परिणाम के आधार पर उस कार्य के निमित्तकारण के विषय में अनुमान लगा लिया जाता है | 

    उदाहरण स्वरूप में कोई भी अपराध एक घटना होती है और घटना भी कार्य का ही स्वरूप है| वह बुरा कार्य है यह दूसरी बात है किंतु ये कार्य ही तो है | कार्य होने का मतलब इसका निमित्त कारण भी होता है उसी के द्वारा यह अपराध रूपी कार्य संपन्न हुआ होता है | अपराध प्रायः छिपकर किया गया होता है उसका निमित्त कारण खोजना एक बड़ी चुनौती होती है | ऐसी परिस्थिति में अपराध रूपी कार्य के आधार पर ही अनुसंधान प्रारंभ करके कर्ता को खोज लिया जाता है निमित्तकारण रूपी कर्ता के विषय में अनुमान लगा लिया जाता है | कर्ता की खोज होते ही सारी घटना स्पष्ट हो जाती है |  

    कुल मिलाकर कोई भी अनुसंधान करने के लिए शुरुआत में तो कल्पनाएँ ही करनी पड़ती हैं किंतु उन कल्पनाओं के आधार पर घटनाओं के साथ जिस किसी भी प्रकार से उनका संबंध जोड़ा गया हो उसका संबंध तो घटना के साथ सिद्ध होना चाहिए | ऐसा होने पर ही उस अनुसंधान को सफल माना जाता है | ऐसा न करके कई बार दो घटनाओं को एक साथ घटित होते देखकर अनुसंधानों के नाम पर उन घटनाओं का आपस में एक दूसरे से संबंध जोड़  दिया जाता है जो ठीक नहीं है | सूर्य और कमल का संबंध ,समुद्र की लहरों  और चन्द्रमा आदि | 

    चोरी की घटना में चोरी गया सामान बरामद करके यह निश्चय करना होता है कि हमने इस घटना का निमित्त कारण खोजने के लिए जो अनुसंधान किए हैं वे वास्तविक हैं| कार्य और कारण का आपसी संबंध खोजे बिना घटनाओं को समझना एवं उनके विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं होता है| 

   अनुसंधानों में यदि कार्य और कारण का आपसी संबंध खोजने की बाध्यता न रखी गई तब तो उस घटना के लिए किसी पर चोरी करने का आरोप लगाया जा सकता है किंतु उसके पास से चोरी गया हुआ सामान तो नहीं मिल सकेगा |इसलिए इस घटना को प्रमाणित करना कठिन होता है |

    जिस प्रकार से महामारी भूकंप आँधी तूफान वर्षा बाढ़ आदि प्रकृतिक घटनाओं के घटित होने के कारण को चिन्हित करते समय जिसका जो मन आता है वो उसी का नाम उस घटना के निमित्त कारण के रूप में बोल देता है किंतु उस कार्य के साथ उस कारण का संबंध सिद्ध करना असंभव सा बना हुआ है |  अतः अनुसंधानों की सफलता के लिए कार्य कारण का संबंध सिद्ध होना आवश्यक है |  

     इसीप्रकार से महामारी भूकंप मौसम आदि से संबंधित घटनाओं के विषय में जो कल्पनाएँ की जाती हैं और उनके आधार पर जो अनुसंधान किए जाते हैं उनके द्वारा जो अनुमान या पूर्वानुमान आदि लगाए जाते हैं उनसे यदि घटनाओं का सीधा संबंध सिद्ध होता है और उन घटनाओं के विषय में लगाए गए पूर्वानुमान सही घटित होते हैं तो उस अनुसंधान प्रक्रिया को सही मान लिया जाना चाहिए और यदि ऐसा नहीं भी होता है और अनुमान गलत निकल जाते हैं तो ऐसे अनसुलझे अनुसंधानों का कारण जलवायुपरिवर्तन को मानकर उनसे अपना पीछा छुड़ा लेने की प्रक्रिया ठीक नहीं है | 

    'जलवायुपरिवर्तन' को भी यदि एक प्रकार की घटना मान लिया जाए तो इसकी भी कार्य संज्ञा होगी | इस कार्य का निमित्त कारण खोजकर इसे प्रमाणित किया जाना चाहिए उससे यह स्वतः स्पष्ट हो जाएगा कि जलवायुपरिवर्तन निराधार कोरी कल्पना नहीं है | जलवायुपरिवर्तन का निमित्त कारण स्पष्ट हुए बिना ऐसी कल्पनाएँ विश्वसनीय कैसे मानी जा सकती हैं |  

   जलवायुपरिवर्तन भी समय के साथ होने वाले प्रकृति और जीवन में होने वाले अन्य सभी परिवर्तनों की तरह ही है | समय के साथ समस्त व्यक्तियों वस्तुओं तथा प्राकृतिक वातावरण में परिवर्तन होते तो हमेंशा से देखा जाता रहा है उसी प्रकार से जलवायु में भी परिवर्तन होता है किंतु वह जलवायुपरिवर्तन महामारी भूकंप आँधी तूफान वर्षा बाढ़ आदि प्रकृतिक घटनाओं का निमित्तकारण कैसे माना जाता है इसे भी सैद्धांतिक रूप से समझा जाना आवश्यक है | 

                                      घटनाओं में प्रयोजक कारण की भूमिका !

    प्रत्येककार्य के करने या होने के पीछे कोई न कोई प्रयोजक कारण अवश्य होता है | कईबार कर्ता दिखाई पड़ रहा होता है कभी कभी नहीं भी दिखाई पड़ता है | कर्ता न दिखाई पड़ने के बाद भी यदि कार्य होता दिखाई दे तो वह किसी कर्ता के प्रयास का ही परिणाम होता है वह कर्ता और प्रयास यदि प्रत्यक्ष न भी दिखाई दे तो भी उसके परोक्ष योगदान को नकारा नहीं जा सकता है | 

    प्रत्येक वस्तु के निर्माण के लिए कुछ अन्य घटकों (सहयोगियों) की आवश्यकता होती है |जिसप्रकार से घड़ा बनाने के लिए कुम्हार चाक एवं मिट्टी आदि सहयोगियों की आवश्यकता होती है |उसीप्रकार से प्रत्येक कार्य को करने की दृष्टि से कई अन्य सहयोगी तत्व सम्मिलित करने पड़ते हैं| ऐसे सहयोगी तत्वों का प्रबंधन करना प्रबंध कर्ता की जिम्मेदारी होती है |वही प्रयोजक कारण होता है | 

    प्रायः प्रत्येक कार्य को करने की इच्छा आवश्यकता अथवा लक्ष्य किसी प्रबंधकर्ता का होता है वही उस कार्य की योजना बनाता है| उस कार्य को करवाने के लिए उसे कई तत्वों का सहयोग लेना होता है| जिन्हें इकट्ठा करना प्रबंधकर्ता की जिम्मेदारी होती है |इसीलिए  न केवल सहयोगी घटकों को एकत्रित करने काकार्य वह किया करता है अपितु वही उस कार्य को संपन्न करवाता है|

     जिस प्रकार से घर की रसोई में पानी की व्यवस्था करने के उद्देश्य से उस घर का मालिक कोई प्लंबर बुलाता है उसकी सलाह के अनुसार किसी दूसरे को भेजकर दुकान से पाइप टंकी टूंटी आदि सामान मँगवाता है|  वही गृहस्वामी किसी तीसरे से बोरिंग करवाता है | चौथे से मोटर मँगवाता और लगवाता है | पाँचवें से टंकी पाइप आदि की फिटिंग करवाता है रसोई में नल की टूंटी लगवाता है | छठवाँ बिजली वाला मैकेनिक बुलाकर बिजली का कनेक्शन करवा करके मोटर चला लेता है | इसके बाद पानी से टंकी भरती है और टंकी से पाइप के द्वारा रसोई में नलके से पानी आने लगता है | 

     इस घटना में कार्य करने वाले छै लोगों का अलग अलग उपयोग किया गया वे सभी अपने अपने कार्य के कर्ता हैं किंतु दूसरे सहयोगियों से उनका परिचय न है और न ही वे इसकी आवश्यकता समझते हैं | संपूर्ण कार्य होना क्या है? कितना होना है? उनमें से किसी को नहीं पता होता है सब अपने अपने हिस्से का कार्य करके चले जाते हैं | बोरिंग के सामान वाला सामान देकर चला जाता है|बोरिंग वाला बोरिंग कर देता है|मोटर लाने लगाने वाला अपना कार्य कर देता है | टंकी आदि फिटिंग वाला फिटिंग कर देता है|बिजली संबंधी कार्य बिजली वाला कर देता है | 

     इस संपूर्ण कार्यक्रम की श्रंखला में गृहस्वामी की भूमिका प्रत्यक्ष दिखाई नहीं दे रही होती है,किंतु यह संपूर्ण योजना उसी के द्वारा बनाई गई होती है |उसी के अनुसार सभी लोग अपना अपना कार्य कर रहे होते हैं | सारे संसाधन वही जुटा रहा होता है | किसे क्या करना है ,कितना करना है ये वही समझा रहा होता है |ये लक्ष्य इच्छा उद्देश्य आवश्यकता आदि  उसी को होती है| इससे लाभ भी उसी को होना होता है |उसे जल की आवश्यकता थी जल की आपूर्ति का लक्ष्य लेकर ही उसने इतने सारे इंतिजाम किए हैं | 

     ऐसी परिस्थिति में उस जल संबंधी कार्य श्रंखला के विषय में सबसे अधिक जानकारी उसी गृहस्वामी को होती है |सोई की टूंटी में पानी कहाँ कहाँ से होकर आता है मोटर कहाँ लगी है टंकी कहाँ रखी है ये अलग अलग बातें उन अलग अलग काम करने वालों को भी पता नहीं होंगी किंतु गृहस्वामी को अवश्य पता होती हैं | ऐसा उसने क्यों करवाया है ये भी उसी को पता होगा |भविष्य में उसमें कहाँ क्या कितने परिवर्तन करने हैं यह भी उसे ही पता होगा इसलिए इस घटना के विषय में जानकारी देने वाला भी गृहस्वामी से अधिक विशेषज्ञ कोई दूसरा तो नहीं होगा | रसोई से पानी का कनेक्शन और कहाँ कहाँ ले जाना है ये भी उसी को पता होगा |इसलिए इस घटना का अनुमान या पूर्वानुमान लगाने के लिए जितनी अच्छी एवं उपयोगी जानकारी वह दे सकता है उतनी उपयोगी कोई और दूसरा नहीं दे सकता है | 

     प्रबंधकर्ता के अतिरिक्त इतनी मजबूत जानकारी किसी अन्यप्रकार से नहीं मिल सकती है | जिस जगह जो मोटर पाइप टंकी टूंटी बिजली आदि लगी होती है उन्हें देखकर उनका परीक्षण करके पानी आने न आने के विषय में कोई अनुमान या पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है अधिक से अधिक मोटर चलती देखकर कह दिया जाएगा कि अब पानी आ जाएगा और मोटर बंद होने पर पानी के बंद होने की बात कह दी जाएगी किंतु मोटर कब चलेगी कब तक चलेगी ,कब नहीं चलेगी ,ये सबकुछ गृह स्वामी की इच्छा के अनुशार ही होगा | 

     अतएव इस घटना में प्रयोजक कारण गृहस्वामी ही है| इस संपूर्ण प्रकरण को सही सही समझने के लिए उचित माध्यम गृहस्वामी ही होगा उसे और उसकी कार्य योजना को सही सही समझे बिना इस संपूर्ण प्रकरण की वास्तविकता समझ पाना संभव नहीं है |

                                                    मौसम के प्रबंधकर्ता की खोज !

      बादलों को वर्षा करने वाला माना जाता है क्योंकि वर्षा के समय पानी बादलों से झरता हुआ दिखता है किंतु बादल तो किसी नल की टूंटी की तरह होते हैं | जिसप्रकार से केवल नल की टूंटी को देखकर उसके आधार पर बोरिंग मोटर टंकी फिटिंग आदि के संपूर्ण सिस्टम को नहीं समझा जा सकता है उसीप्रकार से वर्षा आदि विषयों में केवल बादलों को देखकर अनुमान या पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं है | 

    इसमें विशेष बात तो यह है कि बादल अपने आप तो कहीं आते जाते नहीं हैं वो तो किसी की गैरिज में  खड़ी गाड़ी की तरह हैं|  जिसका ड्राइवर वायु है | जिसप्रकार से आवश्यकता पड़ने पर ड्राइवर को भेजकर गाड़ी मँगा ली जाती है | उसीप्रकार से वर्षा की आवश्यकता पड़ने पर हवाओं को भेजकर बादलों को मँगा लिया जाता है हवाएँ बादलों को उस जगह के आसमान में ले जाती हैं प्राकृतिक समय सारिणी के अनुसार जहाँ जब पानी बरसने का समय निर्धारित होता है| हवाएँ वहाँ बादलों को तब तक रखती हैं जब तक आवश्यकता होती है उसके बाद फिर कहीं और दूसरी जगह ले जाती हैं |बादलों के पानी का इतना भारी भरकम वजन भी तो हवाएँ ही धारण कर रही होती हैं |ऐसी परिस्थिति में बादलों के आधार पर  वर्षासंबंधी अनुमान या पूर्वानुमान लगाना कैसे संभव है |  

    वर्षा जैसी घटना आकाश में घटित होती है इसलिए आकाशीय तापमान आदि प्राकृतिक वातावरण का भी प्रभाव पड़ेगा | वर्षा का पूर्वानुमान लगाते समय तापमान का भी पूर्वानुमान लगाना होगा | यदि वायु के आधार पर अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के विषय में सोचा जाए तो वायु बादलों को खींचकर इधर उधर ले तो जा सकती है जल भी धारण कर सकती है बादलों को बरसने के लिए प्रेरित भी कर सकती है| इसलिए वायु की संभावित दिशा और गति के विषय में पूर्वानुमान लगाना कैसे संभव है | दूसरी बात वायु बादलों को जल से आपूर्त कैसे कर सकती है | जल तो समुद्र से ही  मिलेगा | इसलिए समुद्र के आधार पर वर्षा से संबंधित पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए | समुद्र भी अपना जल स्वयं तो आकाश में भेज नहीं सकता है वो तो सूर्य के तेज से भाफ बनकर ही जाएगा  इसलिए अनुमान पूर्वानुमान आदि सूर्य के आधार पर ही लगाना संभव है|     

    ऐसी परिस्थिति में संपूर्ण सिस्टम को समझने के लिए वर्षा से संबंधित समस्त घटकों का ध्यान रखना होगा |इसके बाद ही वर्षा आदि प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव है | अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा पाना संभव होगा | 

                                           वर्षाकार्य में प्रयोजक कारण की खोज !

     प्रायः प्रत्येक कार्य को करने का लक्ष्य किसी प्रयोजक कारण(प्रबंधकर्ता) का होता है वही उस कार्य की योजना बनाता है| उस कार्य को करवाने के लिए उसे कई तत्वों का सहयोग लेना होता है| जिन्हें इकट्ठा करना उस प्रबंधकर्ता की जिम्मेदारी होती है |

   प्रत्येक वस्तु के निर्माण के लिए कुछ अन्य घटकों (सहयोगियों) की आवश्यकता होती है |जिसप्रकार से घड़ा बनाने के लिए कुम्हार चाक एवं मिट्टी आदि सहयोगियों की आवश्यकता होती है |इसी प्रकार से महामारी भूकंप आँधी तूफान वर्षा बाढ़ आदि घटनाओं के निर्माणप्रक्रिया में विभिन्न घटक तत्वों को सम्मिलित करना होता है |ऐसे ही प्रत्येक कार्य को करने की दृष्टि से कई अन्य सहयोगी तत्व सम्मिलित करने पड़ते हैं| ऐसे सहयोगी तत्वों का प्रबंधन करना प्रयोजक कारण(प्रबंधकर्ता) की जिम्मेदारी होती है |

     सामान्य रूप से सभी ऋतुएँ सूर्य के संचार से ही निर्मित होती अवश्य हैं इसलिए सूर्य इनके निर्मित होने का कारण अवश्य है किंतु सूर्य इन्हें निर्मित करता नहीं है और न ही उसका ऋतुनिर्माण जैसा कोई उद्देश्य ही है | उसका निरंतर भ्रमण ऋतुओं के निर्माण का लक्ष्य लेकर नहीं होता है |  

    वर्षाऋतु में होने वाले वर्षाकार्य से सूर्य का लाभ ही क्या है उसे वर्षा की आवश्यकता किसलिए है | उस वर्षा का सूर्य के लिए उपयोग ही क्या है | यदि वर्षाऋतु सूर्य का लक्ष्य होता तो सूर्य ऐसा लक्ष्य बनाता ही क्यों ? यदि बनाता भी तो सूर्य को अकेले अपने बलपर ही वर्षा करनी होती वह भाफ बनाने के लिए समुद्र जल की मदद क्यों लेता | दूसरी बात वर्षा का श्रेय यदि केवल सूर्य ही लेना चाहता तो इस विषय में समुद्र उसकी मदद करता भी क्यों ?  समुद्र के सहयोग के बिना सूर्य केवल अपने बलपर ऐसा कर भी नहीं पाता |

    इसीप्रकार से जलतत्व से संबंधित समुद्र की तरह ही वायुतत्व अपनी मदद क्यों देता | उसके लघुत्वाकर्षण विषयक सहयोग के बिना समुद्रीजल भाफ रूप में उड़कर ऊपर कैसे चला जाता !उससे बादल कैसे बनते और इधर उधर कैसे चली जाते | वायु की मदद के बिना उस विशाल जलराशि को आकाश में लादकर इधर उधर कोई क्यों घूमता | कुल मिलाकर जलवृष्टि में वायु उसकी मदद क्यों करता | 

    सूर्य यदि वर्षा का श्रेय स्वयं लेना चाहता तो आकाश इसकी मदद क्यों करता भाफ बनने से लेकर आकाश में बादलों का भ्रमण आदि सब कुछ आकाश में ही तो संभव हो पाता है | 

    बादलों के द्वारा बरसा जाने वाला संपूर्ण जल को पृथ्वी ही न केवल सँभालती है अपितु उसे धारण करती है इधर उधर बहा कर ले जाती है जहाँ तहाँ उसे व्यवस्थित करती है | पृथ्वी के गुरुत्त्वाकर्षण के कारण ही बादलों के द्वारा बरसा हुआ जल पृथ्वी पर आता है |

    जिसप्रकार से मनुष्य के पेट में कीड़े पैदा होते देखे जाते हैं किसी के घाव में कीड़े पैदा हो जाते हैं किंतु ये कीड़े जिनके शरीरों में पैदा होते हैं उन शरीरधारियों का कीड़ा पैदा करने जैसा  कोई लक्ष्य नहीं होता है अपितु शरीरों में स्वतः ऐसे समीकरण बनते हैं कि कीड़े पैदा हो जाते हैं | ऐसे ही नदियाँ बिजली बनाने में मदद करने का लक्ष्य लेकर नहीं बहती हैं फिर भी सरकारों में सम्मिलित लोगों का चेतन मन पानी के बहाव का उपयोग करते हुए बिजली बना लिया करता है |सूर्य की धूप का उपयोग करते हुए बिजली बना ली जाती है किंतु यह सूर्य का लक्ष्य नहीं है |

   इसी प्रकार से वर्षा जैसा कार्य पाँचोंतत्वों के सहयोग से घटित होता है किंतु इनमें से कोई तत्व वर्षा करने का लक्ष्य लेकर अपनी गतिविधियाँ संचालित नहीं कर रहा होता है अपितु प्रत्येक तत्व अपने अपने स्वभाव के अनुशार व्यवहार व्यवहार अवश्य कर रहा होता है | उन्हीं पंचतत्वों के संयुक्त प्रभाव का उपयोग करते हुए कोई चेतन तत्व वर्षा जैसे विशिष्ट कार्य को संपन्न कर लिया करता है | जिससे समस्त चराचर प्रकृति पोषित होते देखी जाती है |

    ऐसी परिस्थिति में वर्षा जैसी घटना के पीछे किसी ऐसे शक्तिशाली चेतनतत्व  का अनुभव होता है जिसे इन पाँचों तत्वों के गुण स्वभाव प्रभाव आदि के विषय में पता है यह भी पता है कि इनके संयुक्त प्रभाव से वर्षा जैसी घटना घटित हो सकती है | उस चेतन तत्व का आदेश सूर्य समुद्र वायु पृथ्वी आदि समस्त सहयोगी घटकों पर उसी प्रकार से चलता है जिसप्रकार से टूंटी से पानी की व्यवस्था करने के लिए कर्तागृहस्वामी का आदेश टूंटी, पाइप,मोटर आदि लाने लगाने वालों पर चलता है | वह आदेश बोरिंग करने वालों के द्वारा भी माना जाता है |

   इसी प्रकार से महामारी भूकंप आँधी तूफान वर्षा बाढ़ आदि समस्त प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के लिए जिम्मेदार चेतन प्रयोजक कारण अवश्य है | गृह संबंधी कार्यों के लिए जिम्मेदार गृहस्वामी की तरह ही वह विराट चेतना समस्त ब्रह्माण्ड को अपनी कार्य योजना के अनुशार संचालित करता चला आ रहा है उसी के संकल्प साधन में समस्त चराचर जगत विवश होकर उपयोग होता चला आ रहा है इसके अतिरिक्त उसके पास कोई विकल्प भी नहीं है | महामारी भूकंप आँधी तूफान वर्षा बाढ़ आदि समस्त प्राकृतिक घटनाएँ उसी विराट चेतना के द्वारा समय रूपी धागे में माला के मानकों की तरह गुथी हुई हैं | समय के संचार के साथ साथ वे सभी घटनाएँ अपने  समय के अनुशार घटित होती चली जाती हैं| 

    ऐसी परिस्थिति में महामारी भूकंप आँधी तूफान वर्षा बाढ़ आदि घटनाओं को किसी एक  घटित होते देखकर   स्थान में घटित होने के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव नहीं है | इसलिए महामारी भूकंप आँधी तूफान वर्षा बाढ़ आदि समस्त प्राकृतिक घटनाओं को सही सही समझने के लिए उसी विराट चेतना के द्वारा समय सूत्र में संग्रंथित कार्ययोजना समय सारिणी आदि का अनुसंधान करके ही अनुमान पूर्वानुमान आदि पता लगाने होंगे |                              

   महामारी भूकंप मौसम आदि प्रकृति और जीवन से संबंधित घटनाओं को समझा जाना बहुत आवश्यक है उससे ज्यादा आवश्यक ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाना है |   इसके बिना ऐसी घटनाओं से आकस्मिक सामना होने पर उन्हें समझना एवं उनके विषय में पूर्वानुमान लगाना लगभग असंभव हो जाता है जिसकी कीमत जनता को बहुत अधिक चुकानी पड़ती है | कोरोना महामारी के समय में भी ऐसा होते देखा ही गया है| 

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