महामारी और प्राकृतिक आपदाओं से बचाव हेतु क्या किया जाना संभव है ?
महामारी का संक्रमण हो या प्राकृतिक आपदाएँ ऐसी दुर्घटनाओं से पीड़ित होकर जिसे जैसी भी रोग दोष चोट चभेट आदि लगती है उनकी चिकित्साहेतु चिकित्सा जगत के पास अद्भुत तैयारियाँ हैं | इसके अतिरिक्त कुछ और भी कर लिया जाता है तो अच्छा ही होगा |
महामारी समेत समस्त प्राकृतिक आपदाओं से सबसे अधिक नुक्सान उनके अचानक घटित होने के कारण कारण होता है इससे सँभलने का समय ही नहीं मिल पाता है और भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात जैसी घटनाएँ घटित होनी प्रारंभ हो जाती हैं | इससे जो भी जनधन की हानि होती है उसके लिए आपदाप्रबंधन जैसी तैयारियाँ सरकारों के पास होती ही हैं | प्राकृतिक आपदाओं के बाद के आपदा प्रबंधनों की तो ये व्यवस्था है किंतु ऐसी प्राकृतिक घटनाओं से बचाव के लिए क्या कोई उपाय संभव है जिससे जनधन हानि से पूरी तरह बचा जा सके |
ऐसा किया जाना तभी संभव है जब प्राकृतिक घटनाओं के विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान पता हों उसी के अनुसार सतर्कता सावधानी वरतकर प्रयत्नपूर्वक अपने को यथासंभव सुरक्षित बचाया जा सकता है | पहले से पूर्वानुमान पता न होने पर ऐसी प्राकृतिक आपदाओं का शिकार बनने के अतिरिक्त जनधन की सुरक्षा की दृष्टि से कुछ भी किया जाना संभव ही नहीं हो पाता है |
प्राकृतिक आपदाओं की तरह ही महामारियाँ भी अचानक ही घटित होती हैं ऐसी परिस्थिति में हमारे अत्यंत सक्षम चिकित्सा वैज्ञानिक भी बचाव की दृष्टि से बहुत कुछ मदद नहीं कर पाते हैं | रोग और रोगी को समझने के लिए कुछ तो समय चाहिए | निदान ठीक होने के बाद ही चिकित्सा पर बिचार संभव है |इतने संक्रामक नए नए रोगों को अच्छी प्रकार से पहचानना तथा उनकी चिकित्सा के विषय में निर्णय लेना उसके बाद उस प्रकार के रोगों से मुक्ति दिलाने वाली औषधियों का निर्माण करना होता है |
इस प्रकार से महामारी जैसी अचानक प्राप्त परिस्थिति का सामना करना बहुत कठिन होता है | ऐसे समय होने वाले रोगों को पहचानना उनकी प्रकृति को समझना उनकी संक्रामकता के कारण खोजना एवं संक्रमण का वेग खोजना इतनी शीघ्र संभव नहीं होता है |त्वरित प्रयत्न किए जाने के बाद भी प्रयास प्रयास में ही बहुत लंबा समय खिंचता चला जाता है कई बार तो महीनों वर्षों का समय यूँ ही बीत जाया करता है| अंदाजे से ही चिकित्सकीय प्रयास किए जाते हैं |
ऐसी परिस्थिति में कोई रोग हमेंशा रहने के लिए तो आता नहीं है उसे साल
दो साल तीन साल में कभी तो जाना ही होता है | इसलिए दवा के नाम पर जो कुछ
भी उतने समय तक दिया जाता रहेगा जब तक रोग रहेगा तो उसी को रोग समाप्ति का
श्रेय मिल जाएगा किंतु यह प्रश्न अंत तक अनुत्तरित बना रहता है कि क्या यह
वास्तव में उस रोग की औषधि है जिस रोग से मुक्ति दिलाने के लिए इसका प्रयोग
किया जाता रहा है |
कुल मिलाकर ऐसे रोगों की प्रकृति, संक्रामकता के कारण, संक्रमण का वेग आदि पता न होने के कारण उनका प्रभाव बचाव की दृष्टि से बहुत अधिक पड़ नहीं पाता है |यही कारण है कि चिकित्सा भी डरते डरते करनी पड़ती है | चिकित्सकीय दृष्टि से आवश्यक समझते हुए आगे बढ़ाए गए कई कदम पीछे खींच लेने पड़ते हैं | प्लाज्मा चढ़ाने का निर्णय अच्छा समझकर ही लिया गया था परिणामतः उसके लाभ भी देखे गए किंतु कुछ दूसरे चिकित्सकों के अनुभव में वैसा नहीं हुआ इसलिए उन्होंने प्लाज्मा प्रयोग को सही नहीं माना |
महामारी के विषय में अनुमान लगाते समय या निर्णय लेते समय कई बार एक ही विषय पर चिकित्सा वैज्ञानिकों के अनुभव एक दूसरे से विपरीत जाते देखे गए | महामारी के प्रभाव के विषय में लगाए गए अनुमानों में भी पर्याप्त भिन्नता देखी गई |
सामान्य रूप से रोगी होने पर लोग चिकित्सालयों की ओर बड़े विश्वास के साथ
भागते हैं कि वहाँ पहुँचकर तो स्वस्थ हो ही जाएँगे किंतु कोरोना महामारी के
समय में यह भरोसा भी टूटा है |
ऐसे अनुमान पूर्वानुमान आदि चिकित्सा के वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित नहीं होते हैं | इसीलिए चिकित्सा वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी के विषय में लगाए गए अनेकों अनुमान पूर्वानुमान आदि गलत होते देखे जाते रहे हैं | उनके द्वारा लिए गए चिकित्सकीय निर्णय इसीलिए कई बार गलत होते रहे हैं |
वैज्ञानिकों के अनुमानों पूर्वानुमानों में इतना बड़ा अंतर !
किसी भी रोग या महारोग की चिकित्सा का आधार ही रोगों का सही सही निदान होता है | यदि निदान ही सही नहीं होगा तो प्रभावी चिकित्सा संभव नहीं हो पाती है | चिकित्सकीय व्यवहार में अक्सर देखा जाता है कि जिन रोगों से रोगी और चिकित्सक दोनों सुपरिचित होते हैं रोगों के भटकाव तथा संभावित परिवर्तनों से भी सुपरिचित होते हैं |उन्हें पता होता है कि किस रोग से पीड़ित रोगी के स्वास्थ्य पर किस प्रकार के मौसम खान पान रहन सहन आदि का प्रभाव कैसा पड़ सकता है | इसलिए उन रोगों एवं रोगियों से संबंधित संभावित परिस्थितियों के विषय में अनुमान लगाना भी चिकित्सकों के लिए आसान होता है | ये रोग बिगड़कर कर किस किस प्रकार का स्वरूप धारण कर सकता है इस बात का भी उन्हें आभाष होता है |इसलिए वे रोगी एवं उसके शुभ चिंतकों को आगे से आगे संभावित परिस्थितियों से सावधान करते रहते हैं |
इस प्रकार से सुपरिचित रोगों
से पीड़ित रोगियों की भी चिकित्सा करते समय तरह तरह की तमाम प्रकार की
जाँचें करवाकर रोग का सम्यक परीक्षण किया जाता है उसके अनुशार चिकित्सा
संबंधित निर्णय लिए जाते हैं ताकि रोगमुक्ति दिलाने हेतु चिकित्सा को और अधिक प्रभावी
बनाया जा सके | ऐसे प्रकरणों में कई बार जाँच रिपोर्ट गलत हो जाती है तो
उसका दुष्प्रभाव चिकित्साकार्य के संभावित परिणामों पर भी पड़ते देखा जाता
है |
ऐसी परिस्थिति में कोरोना महामारी के समय निदान कार्य सबसे ज्यादा कठिन था | महारोग(महामारी)को अच्छी प्रकार से पहचानने के लिए वर्तमान लक्षणों के आधार पर वैज्ञानिकों के द्वारा जो भी अनुमान या पूर्वानुमान लगाए जाते रहे | संपूर्ण कोरोना काल में वे गलत होते देखे जाते रहे | उसके दुष्प्रभाव चिकित्साकार्य पर पड़ते देखे जाते रहे | यही कारण है कि चिकित्सकीय संसाधनों से अत्यंत सक्षम माने जाने वाले देशों में भी सुयोग्य चिकित्सकों की आँखों के सामने सघन चिकित्सा कक्ष में वेंटीलेटर पर पड़े रोगियों को भी मृत्यु को प्राप्त होते देखा जाता रहा है | इसीलिए तो चिकित्सकीय संसाधनों से संपन्न ऐसे देशों को भी महामारीकाल में भारी जनधन हानि को सहना पड़ा है ,तभी तो चिकित्सा जगत के द्वारा महामारी से पीड़ित लोगों की सुरक्षा के लिए कोई विश्वसनीय आश्वासन नहीं दिया जा सका है | उनकी बेचारगी दयनीयता बेबशी आदि और अधिक तनाव पैदा कर रही थी |
कोरोना संक्रमितों पर चिकित्सकों के द्वारा किए जाते रहे संपूर्ण प्रयासों
के विफल होने के एक कारण यह भी था कि किसी को महामारी के किसी भी स्वरूप
से संबंधित कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि पहले से पता नहीं था औरन ही महामारी
की किसी लहर के आनेजाने का कारण अनुमानपूर्वानुमान आदि ही किसी को पता लग
पाया |
कोरोना महामारी क्या है ,इसके पैदा होने का कारण क्या है संक्रमितों की संख्या अचानक बढ़ने या घटने का कारण क्या है | महामारी का विस्तार कितना है प्रसार माध्यम क्या है अंतर्गम्यता कितनी है | महामारी में होने वाले रोग के निश्चित लक्षण का हैं उसमें किस किस प्रकार के परिवर्तनों की संभावना है | ऐसे रोगियों पर मौसम के बदलावों का कैसा प्रभाव पड़ेगा | वायु प्रदूषण बढ़ने का प्रभाव संक्रमितों पर कैसा होगा | संक्रमण से बचने के लिए एवं संक्रमितों की रोगमुक्ति के लिए क्या क्या खाना पीना एवं कैसा रहन सहन उपयुक्त होगा | ऐसे विषय में किसी को कुछ भी पता न होने पर भी उन्हीं संक्रमितों के साथ रहकर चिकित्सा मुक्ति के लिए जो प्रयत्न किए जाते रहे उनके परिणाम कुछ भी रहे हों किंतु प्रयासभावना अच्छी थी |
कोरोना महामारी है या चिकित्सा अनुसंधानों को चुनौती !
चिकित्सा के क्षेत्र में अत्याधुनिक विज्ञान ने एक से एक बड़े कीर्तिमान स्थापित किए हैं इसमें किसी को कोई संशय नहीं है | यही कारण है कि किसी घर में स्वस्थ रहने के लिए चिकित्सा की कोई भी पद्धति क्यों न अपनायी जाती रही हो किंतु रोग बढ़ता देखकर उसे तुरंत अंग्रेजी अस्पतालों में ही ले जाया जाता है | जनता के मन में चिकित्सा पद्धति के प्रति इतना अधिक विश्वास बना हुआ है |
कोरोना महामारी के समय में न जाने क्यों परिस्थितियाँ बिल्कुल बदली बदली सी दिख रही थीं | वही चिकित्सा वैज्ञानिक जो स्वास्थ्य संबंधी एक से एक कठिन परिस्थितियों का समाधान खोज लेते देखे जाते रहे हैं उन्हीं वैज्ञानिकों के द्वारा कोरोना महामारी काल में जो जो कुछ अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया गया वो सबकुछ गलत निकलते देखा जा रहा था |
महामारी के समय शुरुआत में कहा गया कि जो जो संक्रमित हों वे अस्पतालों में भर्ती हो जाएँ |ऐसी परिस्थिति लोग अस्पतालों में भर्ती होने लगे | धन धान्य एवं संसाधनों से संपन्न सक्षम वर्ग के लोग दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों के अस्पतालों में इसलिए पहुँचने लगे कि वहाँ देश के अन्य स्थानों की अपेक्षा चिकित्सा व्यवस्था अधिक अच्छी है | इसीलिए चिकित्सा के लिए दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों में गंभीर रोगियों को लाया जाता है | बहुत अधिक संपन्न लोग,उद्योगपति ,नेता अभिनेता आदि अमेरिका जैसे देशों की ओर रुख करने लगे ,क्योंकि वैश्विक दृष्टि से यदि देखा जाए तो अमेरिका की चिकित्सा व्यवस्था को अधिक उन्नत माना जाता है इसीलिए चिकित्सा के लिए वहाँ जाना लोग अधिक पसंद करते हैं | भारत के भी संपन्न लोग चिकित्सा के लिए ऐसे देशों में जाते देखे जाते हैं |
चिकित्सा संबंधी अनुसंधानों को निरर्थक सिद्ध करने की महामारी ने मुहिम सी छेड़ रखी थी कि अनुसंधानों के नाम पर जो जो कुछ बोला जाएगा उसे गलत करना है | इसीलिए अमेरिका जैसे जिन देशों की चिकित्सा व्यवस्था को अत्यंत सक्षम माना जाता रहा है उन्हीं प्रमुख देशों में कोरोना महामारी का सबसे अधिक रौद्र रूप दिखाई पड़ा है वहीं के अस्पतालों में चिकित्सकों की आँखों के सामने देखते देखते वेंटीलेटर पर पड़े रोगी दम तोड़ते देखे जा रहे थे | ये उन्हीं अमेरिका जैसे देशों का हाल था |
इसी प्रकार से भारतवर्ष के दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों को चिकित्सा व्यवस्था की दृष्टि से अन्य प्रदेशों की अपेक्षा अधिक सक्षम माना जाता है |यह गुरूर तोड़ने के लिए ही मानो महामारी ने सबसे अधिक रौद्र रूप इन्हीं महानगरों में धारण किया था | देश में कोरोना महामारी से पीड़ित होते लोग सबसे अधिक इन्हीं दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों में देखे जाते रहे |
आर्थिक दृष्टि से अत्यंत संपन्न वर्ग के विषय में ऐसा माना जाता है कि ये वर्ग पैसे के बलपर अच्छी से अच्छी चिकित्सा सुविधा का लाभ ले सकने में सक्षम है |इसीलिए इस वर्ग को गर्भ में आने के साथ ही साथ उच्च कोटि की चिकित्सा व्यवस्था का लाभ मिलने लगता है | इसके महँगे से महँगे संपूर्ण टीके समय पर लगाए जाते हैं | यह वर्ग लिए अत्यंत उत्तम स्वास्थ्यकर महँगी से महँगी टॉनिक बिटामिन मेवा फल आदि उत्तमोत्तम आहार व्यवहार अपनाया जाता है | इसके बाद भी महामारी ने सबसे अधिक संक्रमित इसी संपन्न वर्ग को किया है |
वैज्ञानिक अनुसंधान कर्ताओं के द्वारा महामारी से बचाव के लिए
लॉकडाउन,मॉस्कधारण सैनिटाइजेशन आदि कोविड नियमों का पालन करने के लिए बताया
गया था जिसका संपूर्ण रूप से पालन वही वर्ग कर पाया जो धन धान्य से जितना
अधिक सक्षम था यही वर्ग सबसे अधिक चिकित्सा का लाभ लेता रहा | इसके बाद भी
यही वर्ग सबसे अधिक संक्रमित हुआ |
यह सब देख सुनकर कुछ ऐसा लगता है कि यदि काल्पनिक रूप से सोचा जाए कि महामारी को नियंत्रित करने वाली कोई सक्षम शक्ति है जो ऐसे सभी उदाहरणों से मानव मात्र को कोई संदेश देना चाहती थी कि हमारे क्रोध से पैदा हुई महामारी पर मनुष्यकृत प्रयासों से अंकुश नहीं लगाया जा सकता है | धन धान्य एवं चिकित्सकीय उपायों से महामारी पर अंकुश लगाना संभव नहीं है |
वैज्ञानिक चिंतन में ऐसे अदृश्य अव्यक्त प्राकृतिक संकेतों को समझना आवश्यक नहीं माना जाता है इसलिए
वैज्ञानिक समूह जहाँ एक ओर महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए नए नए उपाय
खोजता रहा वैसे वैसे महामारी की बार बार लहरें आती रहीं |महामारी का प्रकोप
जब जब कम होने लगे तो उसका श्रेय मनुष्य अपने प्रयासों को देने लगे मैंने
ऐसा कर दिया इसलिए संक्रमण कम हो रहा हैअथवा इस उपाय से हमने महामारी पर
विजय प्राप्त कर ली ,हमने कोरोना नियमों का पालन करके महामारी को पराजित
कर दिया है | मनुष्य का यह अहंकार तोड़ने के लिए उस चेतन शक्ति को बार बार
क्रोध करना पड़ता रहा और नई लहर आ जाती रही | इससे मनुष्यकृत दावे झूठ होते
देखे जाते रहे | इस प्रकार से मनुष्य अपने वैज्ञानिकअनुसंधानों के बलपर
महामारी पर विजय प्राप्त कर लेने के दावे बार बार करता रहा |उसके अहंकार का
मर्दन करने के लिए महामारी को बार बार रौद्र रूप धारण करना पड़ता रहा | उस
समय मनुष्यकृत अनुसंधान जनित दावे खोखले निकल जाते रहे | मनुष्य अपनी महिमा
मंडित करने के लिए एक से एक नए प्रयोग करके प्रस्तुत करता रहा ताकि किसी
तरह यह कहने लायक हो जाए कि उसने अपने वैज्ञानिक अनुसंधानों के बल पर
महामारी पर विजय प्राप्त की है किंतु महामारी की अधिष्ठात्री शक्ति ने अंत
तक उसे इस लायक नहीं बनने दिया |इसीलिए उसने ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों का
बार बार मान मर्दन किया |
इसी क्रम में वैक्सीन लगाकर महामारी से मुक्ति दिलाने का प्रयोग प्रारंभ होते ही महामारी को एक बार फिर से रौद्र रूप धारण करना पड़ा | ऐसे उपाय जहाँ जिस अनुपात में अपनाए जाते रहे महामारी वहाँ वैसा रौद्र रूप धारण करती चली गई | आखिर महामारी को नियंत्रित करने वाली वह सक्षम शक्ति अपना अपमान कैसे सह जाती |
महामारी से बचाव की दृष्टि से कोविडनियमों की भूमिका !
कोविड नियमों के निर्माण का वैज्ञानिक आधार जो भी रहा हो उनका परीक्षण जिस किसी भी प्रकार से किया गया हो ये आम जनता को नहीं पता किंतु आम जनता ने इतना अवश्य देखा है कि जहाँ एक ओर कोविड नियमों का संपूर्ण रूप से पालन करने वाले अत्यंत सक्षम लोग भी संक्रमित होते रहे उनमें से कुछ मृत्यु को प्राप्त होते भी देखे जाते रहे हैं | वहीं बहुत लोग ऐसे भी रहे जिन्होंने परिस्थितिवशात या किसी अन्य कारण से कोविडनियमों से पूरी दूरी बनाए रखी तथा संपूर्ण कोरोना काल में कोविडनियमों के विरुद्ध आचरण करते रहे | इसके बाद भी उनमें से अधिकाँश लोग महामारी से संक्रमित होने से बचे रहे ,जबकि कोरोना नियमों के अनुसार तो उन्हें संक्रमित होना चाहिए था क्योंकि उन्होंने उन आवश्यक नियमों का पालन नहीं किया है |
कुछ घरों में दस पाँच लोग एक साथ रह रहे थे उनका एक ही साथ रहना सोना जागना खाना पीना आदि होता था | इसी बीच उनमें से किसी एक को ज्वर हुआ तो कुछ दिन घर में ही दवा लेता रहा फिर उसे सर्दी जुकाम हुआ, खाँसी आने लगी तब तक वह सभी के साथ रहता खाता पीता सोता जगाता रहा | इसके बाद स्वस्थ होते न देखकर उसकी जाँच करवाई गई जिसमें वो व्यक्ति कोरोना संक्रमित निकला | ऐसी स्थिति में नियमानुसार तो उसके परिवार के लोगों को भी उससे संक्रमित हो जाना चाहिए था किंतु ऐसा नहीं हुआ अपितु बाकी लोग स्वस्थ बने रहे |
महानगरों में रहने वाले व्यवस्था विहीन लोगों एवं उनके छोटे छोटे बच्चों को जहाँ जिसने जो कुछ जैसे हाथों से दिया वे खाते पीते रहे,दिन दिन भर भोजन की लाइनों में खड़े रहे ,सभी को छूते रहे ,यहाँ तक कि बिना मास्क धारण किए सामान्य दिनों की तरह सभी के साथ घूमते फिरते रहे ,इसके बाद भी संक्रमित नहीं हुए |
दिल्ली मुंबई जैसे
महानगरों में जहाँ कोरोना संक्रमण बहुत अधिक था वहाँ भी जो सब्जी या फल
बेचने वाले पटरी वाले दूकानदार या रेडी पर रख कर गलियों गलियों में घूमते
हुए संपूर्ण कोरोना काल में लुकछिपकर
बेचते रहे | जिस चौक चौराहे पर पहले खड़े होते थे वहाँ उस समय भी खड़े होते
रहे |इसके बाद भी स्वस्थ बने रहे |
महानगरों से मजदूरों का सामूहिक पलायन इसका बड़ा उदाहरण था | संपन्न घरों में घरेलू काम काज के लिए रखे गए कर्मचारी कोरोनाकाल में भी उसी प्रकार से अपनी जिम्मेदारी सँभालते रहे | घरों में सब्जी फल आदि पहुँचाते रहे | यहाँ तक कि उन घरों में संक्रमित होने वाले अर्थ सक्षम लोगों की भी परिचर्या करते रहे इसके बाद भी स्वस्थ बने रहे | ऐसे संपन्न परिवारों में किसी के संक्रमित हो जाने पर उन्हें अस्पतालों तक पहुँचाते रहे फिर भी वे कोरोना मुक्त बने रहे |
दिल्ली मुंबई जैसे नगरों के मंदिरों में रहने वाले पंडितों पुजारियों को आजीविका लोभ से अपने प्रिय यजमानों के यहाँ आते जाते रहना पड़ा | ऐसे पुरोहितों को कोरोना काल में भी संक्रमितों के घर जा जा कर न केवल पूजा पाठ करना पड़ा अपितु संक्रमित होकर किसी के मृत्यु को प्राप्त हो जाने पर उसके लिए गरुड़ पाठ आदि अंतक्रिया भी प्रतीकात्मक रूप से करवानी पड़ी |इसके बाद भी वे पंडित, मजदूर,रेडी पटरी वाले,महानगरों से पलायन करने वाले श्रमिक लोग भी संक्रमित होने से बचे रहे |
ऐसी परिस्थिति में समाज सीधी सी बात समझता है कि किसी भी प्रकार की आपदा
में वैज्ञानिकों के द्वारा जो काम करने से बचाव होने की और न करने से
नुक्सान होने की बात कही जाए ,व्यवहार में ऐसा घटित भी होना चाहिए | जो
व्यक्ति उस नियम का पालन करे उसकी सुरक्षा भी अन्य लोगों की अपेक्षा अधिक
हो और यदि नहीं पालन करता है तो उसका नुक्सान भी अन्य लोगों की अपेक्षा तो
अधिक होना चाहिए | यदि ऐसा नहीं होता है तो ऐसे नियमों पर संशय होना
स्वाभाविक ही है |
चिकित्सकीय अनुमानों के आधार पर बनाए गए कोविडनियमों के अनुशार बताया जाता है किसी संक्रमित व्यक्ति के स्पर्श से या नाक थूक आदि के सूक्ष्म अंशों के संपर्क में आने से कोई दूसरा व्यक्ति कोरोना संक्रमित हो सकता है| इसी के आधार पर यह भी कहा जाता रहा है कि गर्भिणी स्त्री यदि संक्रमित है तो उससे गर्भस्थ शिशु में कोरोना पहुँच सकता है |
ऐसी परिस्थिति में नियमतः तो यदि गर्भिणी संक्रमित न हो तो गर्भस्थ शिशु को भी संक्रमित नहीं होना चाहिए | इसीलिए गर्भिणी के संक्रमित न होने पर भी गर्भस्थ शिशु के संक्रमित होने जैसी तो कल्पना की ही नहीं गई ,किंतु बनारस एवं पुणे जैसे कुछ स्थानों पर ऐसी घटनाएँ भी प्रकाश में आई हैं जिनमें गर्भिणी संक्रमण मुक्त एवं गर्भस्थ शिशु को संक्रमित पाया गया है |
25 मई 2021 की दोपहर बनारस में एक बच्ची का जन्म हुआ । नियमानुसार बच्ची के सैंपल की जांच की गई तो उसकी रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आई है। बच्ची की माँ सुप्रिया प्रजापति ने बताया कि वह कभी कोरोना संक्रमित नहीं रही है और न उसके परिवार में किसी को कभी कोरोना हुआ है। अब बच्ची की रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद वह भी हैरान है। ऐसी स्थिति में उस शिशु तक संक्रमण कैसे पहुँचा उसने तो किसी संक्रमित का स्पर्श नहीं किया |ऐसी परिस्थिति में गर्भस्थ शिशु तक संक्रमण पहुँचने का ऐसा कौन सा माध्यम क्या रहा होगा जो माँ के संपर्क के बिना ही गर्भस्थ शिशु तक पहुँचने में सफल हुआ !
जिस किसी भी माध्यम से गर्भिणी के संक्रमण मुक्त रहते हुए भी गर्भस्थ शिशु तक यदि संक्रमण पहुँच सकता है तो वह संक्रमण फलों फूलों आदि के अंदर क्यों नहीं पहुँच सकता है | तंजानियाँ जैसे कुछ देशों में फलों को काटने पर उसके आतंरिक भाग में कोरोना संक्रमण का प्रभाव पाया गया !वहाँ के राष्ट्रपति ने ऐसी घटनाओं को अधिक गंभीरता से लेते हुए उन फलों की जाँच भिन्न भिन्न मशीनों से कराई | उनमें भी ऐसे फलों का आंतरिक भाग संक्रमित पाया गया |
ऐसी परिस्थिति में फलों और सब्जियों के बाह्यभाग को गर्म पानी से धोकर खाने से कितने लाभ की आशा की जानी चाहिए | ऐसे ही कोरोना महामारी से पशु भी संक्रमित हुए हैं ऐसा होते कई देशों में देखा गया है | ऐसे में तो पशुओं का दूध भी संक्रमित होता होगा | दूध को धोना या सैनिटाइज करना तो संभव होता नहीं है ऐसी परिस्थिति में संक्रमित पशुओं का दूध पीकर भी संक्रमण मुक्त बना रहना कैसे संभव था |पक्षी भी काफी बड़ी संख्या में संक्रमित हुए थे | ऐसे संक्रमित पक्षी उड़कर कहीं भी जाते समय मल मूत्र कर देते हैं जो किसी भी वस्तु आदि पर पड़ सकता है |किसी खाद्य वस्तु पड़ सकता है कई बार तो खाद्यपदार्थों को जूठा करके उड़ जाते हैं | कई जगहों पर चूहे आदि जीव जंतु भी संक्रमित हुए हैं | वे भी घरों में रखे हुए अनाजों से लेकर सभी वस्तुओं का स्पर्श करते हैं उन्हें जूठा करते हैं | ऐसे ही कई नदियों तालाबों के पानी में कोरोना संक्रमण पाया गया |सभी जगह तो ऐसा परीक्षण न किया गया न संभव था | जिन देशों ने ध्यान दिया वह उन्हें पता लगा !कुछ स्थान ऐसे भी होंगे जहाँ इस दृष्टि से देखा ही न गया हो |
ऐसे ही वायु में यदि कोरोना विद्यमान था तो वायु के संपर्क में आने से तो पहनने ओढ़ने के वस्त्र भी संक्रमित हो सकते हैं | वैसे भी वायु में तो सभी लोग साँस लेते हैं इससे बचा कैसे जा सकता है | इसलिए वायु के संपर्क में आने से तो खाने पीने की सभी वस्तुएँ संक्रमित हो सकती हैं |
इसमें ध्यान देने योग्य विशेष बात यह है कि जब फलों एवं शाकसब्जियों के आतंरिक भाग तक संक्रमण पहुँच सकता है जहाँ किसी का प्रवेश या स्पर्श संभव ही नहीं है |गर्भिणी को माध्यम बनाए बिना यदि गर्भस्थ शिशु तक सीधे संक्रमण पहुँच सकता है | ऐसे ही कोरोना पशुओं पक्षियों तक पहुँच सकता है तो मनुष्यों में उसी प्रकार से स्वतः क्यों नहीं पहुँच सकता है | उसे संक्रमित होने का कारण किसी संक्रमित रोगी का स्पर्श ही क्यों आवश्यक बताया जाता है |
कुलमिलाकर संक्रमण से बचने के लिए कोरोना नियमों के
नाम पर जो भी रहन सहन खान पान आदि अपनाने कोबताया जाता रहा है वह अपनाते हुए भी बहुत से स्वस्थ लोगों को संक्रमित होते देखा
गया है जबकि उन्हें बिल्कुल न अपनाने वाले अनेकों लोगों को संक्रमण मुक्त रहते
देखा गया है | ऐसी स्थिति में कोरोना नियमों का पालन करना तर्कसंगत वैज्ञानिक दृष्टि से समाज के लिए कितना आवश्यक था |
महामारी ने वैज्ञानिकों के किसी अनुमान या पूर्वानुमान को सही नहीं होने दिया |
कोरोना वैक्सीन
आयुर्वेद
जैसी महान पारंपरिक चिकित्सा पद्धति में जहाँ किसी भी रोग की चिकित्सा
प्रारंभ करने से पहले उस रोग का सम्यक निदान किया जाना आवश्यक माना जाता है
| इसके बाद ही उन रोगों से पीड़ित रोगियों की चिकित्सा के विषय में निर्णय
लिया जाता है | कोरोना काल में आयुर्वेद चिकित्सासिद्धों के द्वारा नाम पर
जो बनाया बेचा जाता रहा उसका इस महामारी से कोई संबंध था भी या नहीं !रोग
की प्रकृति को समझे बिना औषधि निर्माण कैसे संभव था |
महामारी पैदा कैसे हुई ?
इस बात का अंत तक पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि महामारी से मुक्ति दिलाने की दृष्टि से जिन अनुसंधानों को किसी एक दिशा में जितनी दृढ़ता पूर्वक बढ़ना चाहिए था तथा अनुसंधान के बिषय में जो ठोस निर्णय जिस समय लिए जाना चाहिए था वह उस समय नहीं लिया जा सका ! इसे प्राकृतिक मानकर अनुसंधान प्रारंभ किया जाता तो मनुष्यकृत महामारी होने का संशय बना रहता और मनुष्यकृत माना जाता तो प्राकृतिक होने का संशय होने लगता !
महामारी को यदि मनुष्यकृत मान लिया जाए तो ? महामारी यदि यह मनुष्यकृत थी तो 6 मई 2020 एवं 25 सितंबर 2020 तथा 2 मई 2021 से जब अचानक संक्रमितों की संख्या घटने लगी और स्वस्थ होने वालों की संख्या बढ़ने लगी ऐसा होने का कारण क्या था | यदि यह महामारी किसी देश विशेष के द्वारा मानवनिर्मित थी तब उसके प्रयास से तो एक बार जितना संक्रमण फैलना था वो फैल जाता फिर जब संक्रमण एक बार कम होने लगा था तो उसीक्रम में उसे समाप्त हो जाना चाहिए था | उस देश के द्वारा सभी देशों में बार बार जाकर तो संक्रमण फैलाने के प्रयास किए नहीं जा रहे थे और यदि वह ऐसा करता भी तो सभी देश स्वयं में सतर्क थे ही ,अपने देश में कोई ऐसा करने क्यों देता!इसलिए इस महामारी को यदि मनुष्य कृत माना जाए तो पहली लहर दूसरी लहर आदि पैदा होने का कारण क्या था !इसके लिए भी कोई तर्क मनुष्यकृत कारण खोजना होगा | इस ऊहापोह में ही महामारी एक दिन समाप्त भी हो जाएगी किंतु यह संशय अंत तक बना ही रहेगा कि महामारी पैदा कैसे हुई ?
महामारी का प्रसार कैसे हुआ ?
महामारी का विस्तार एक दूसरे के स्पर्श से हुआ ऐसा कहा जा रहा है !काफी समय बाद बताया गया कि संक्रमितों के नाक या मुख से निकले छींक या थूक के कणों का किसी दूसरे व्यक्ति का स्पर्श होने से उसमें संक्रमण पहुँच जाता है| ऐसी परिस्थिति में इस बात का पता लगाना भी आवश्यक हो जाता है कि जो लोग किसी दूसरे के संक्रमण से संक्रमित हुए हैं उनके संक्रमित होने का कारण तो स्पष्ट हो गया किंतु वह व्यक्ति जिससे संक्रमित हुआ वे किससे संक्रमित हुए होंगे वह भी तो स्पष्ट होना चाहिए इसी क्रम से जो सबसे पहला व्यक्ति संक्रमित हुआ होगा वह कैसे हुआ होगा | उसके संक्रमित होने का भी तो स्पष्ट कारण खोजा जाना चाहिए |संक्रमण विस्तार होने का कारण यदि संक्रमितों का एक दूसरे से स्पर्श होने को माना जाएगा , तब तो इसके समाप्त होने की कल्पना कभी नहीं की जा सकती है क्योंकि यह श्रृंखला आखिर टूटेगी कैसे !
लॉकडाउन जैसी प्रक्रिया से भी स्पर्श एवं वायु विस्तारित कोरोना को कितना नियंत्रित कर लिया जाएगा|खाने पीने वाली सारी चीजें बाहर से आती हैं उन्हें बहुतों के हाथों से होकर गुजरना पड़ता है | उनमें से बहुत ऐसे खाद्य पदार्थ होते हैं जिन्हें धोना संभव नहीं होता बहुत ऐसी वस्तुएँ होती हैं इसके अतिरिक्त भी किताबें कंप्यूटर मोबाईल आदि कुछ भी तो धोया नहीं जा सकता है |रही बात सैनिटाइज करने की तो हर वस्तु को हर कोई सैनिटाइज नहीं कर सकता है |
बहुत बड़ा वर्ग ऐसा भी है जिसके पास भोजन की व्यवस्था नहीं है उसके लिए सैनिटाइजकरना मॉस्क लगाना दोगज दूरी का पालन करना इनके लिए संभव नहीं होता | छोटे छोटे आवासों एवं घनी बस्तियों में रहने वाला जहाँ जो जैसे हाथों से मिला वह खा लेने वाला आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग महामारी का पालन न कर पाने के लिए मजबूर होता है | महामारी का एक दो वर्ष का समय होता है दो चार दिनों की बात तो होती नहीं है |एक दो वर्ष का समय बिताने के लिए सारे संसाधन जुटाकर रखने होते हैं | आर्थिक अभाव से जूझ रहे रोज कमाने और रोज खाने वाले व्यक्ति के लिए ऐसा कर पाना संभव नहीं होता है |
ऐसी परिस्थिति में महामारी का विस्तार यदि स्पर्श जनित है तब तो संक्रमितों का दायरा जितना छोटा था इसे घेर कर रखना उतना ही आसान था | संक्रमितों का दायरा जितना बड़ा होगा इसे घेर कर रखना उतना ही कठिन होगा क्योंकि फिर तो एक दूसरे के स्पर्श से बढ़ता ही जाएगा | महामारी जनित संक्रमण को सीमित दायरे में होने पर यदि कैदकर नहीं रखा जा सका तो इतना बढ़ जाने पर उसे ऐसे महामारी के नियमों का पालन करके रोक कर रखना संभव नहीं होगा | ऐसी परिस्थिति में कोरोना विस्तार के लिए वास्तव में यदि यही कारण जिम्मेदार हैं तब तो संक्रमितों की संख्या कम होने या समाप्त होने की कल्पना कैसे की जा सकती है|इसलिए संक्रमण विस्तार के लिए जिम्मेदार तर्कसंगत वास्तविक एवं विश्वसनीय कारण खोजे जाने की आवश्यकता है |
कोरोना महामारी क्या प्राकृतिक थी?
यदि कोरोना महामारी प्राकृतिक ही थी तो प्रकृति में तापमान का अस्वाभाविक रूप से बढ़ना और कम होना एवं वायु का प्रदूषित होना !ऋतुओं का व्यतिक्रम आदि अध्ययनों के लिए जगह जगह रडार उपग्रह एवं वायुप्रदूषण को नापने वाले यंत्र लगाए गए हैं |कोई भी महामारी सर्व प्रथम प्रकृति के जिस स्वरूप को प्रभावित करती है जिस प्रकार से प्राकृतिक वातावरण में विकार उत्पन्न होते हैं उन विकारों का परीक्षण करने के लिए ऐसे यंत्रों की भी व्यवस्था की जानी चाहिए थी जिससे उस प्रकार के सूक्ष्म परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता और उसके आधार पर पूर्वानुमान लगा लिए जाते !
महामारी समाप्त
कैसे होगी? महामारी आने से पूर्व इस बात का पूर्वानुमान लगा लिया जाना
चाहिए था कि महामारी यदि अपने आपसे आई है तो अपने आपसे ही समाप्त भी होगी
या इसे समाप्त करने में मनुष्यकृत औषधि आदि उपायों का भी कोई प्रभाव पड़ेगा |
6 मई 2020 एवं 25 सितंबर 2020 तथा 2 मई 2021 से भारत में संक्रमितों की
संख्या जब तेजी से गिरने लगी और स्वस्थ होने वालों की दर तेजी से बढ़ने लगी !
इस सुधार प्रक्रिया को यदि मनुष्यकृत किसी प्रयास का परिणाम मान लिया
जाता तो उस समय ऐसे प्रभावी उपाय किए क्या गए थे जिनके प्रभाव से कोरोना के
वेग पर इतना प्रभावी अंकुश लगाने में मदद मिली |
महामारी से संक्रमित होने की संभावना किस किस प्रकार के लोगों को अधिक होगी किसको कम होगी आदि बातों का पूर्वानुमान यदि पहले से लगाया जा सका होता तो सभी प्रकार के रोगियों में कोरोना संक्रमित होने का भ्रम न रहा होता उन्हें सामान्य रूप से चिकित्सा उपलब्ध कराई जाती रहती और केवल संक्रमण होने की संभावना वाले रोगियों को ही संदिग्ध मानकर केवल उन्हीं को उस श्रेणी में रखा जाता !ऐसे जिसे सर्दी जुकाम पेटदर्द आदि भी होता था उन सबको भी संक्रमण की दृष्टि से संदिग्ध मानकर अस्पतालों में आने का आह्वान कर दिया गया | अस्पताल उन्हीं से भर गए जो वास्तविक संक्रमित थे जिन्हें वास्तव में चिकित्सकीय सुविधाओं की आवश्यकता थी उसप्रकार की सुविधाएँ उन्हें उपलब्ध नहीं करवाई जा सकीं | चिकित्सकों को यदि पूर्वानुमान पता होता तो उसी के अनुसार चिकित्सक चिकित्सा की व्यवस्था कर लेते ! सरकारें भी चिकित्सकों एवं जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी और अधिक निभा लेतीं |
कुलमिलाकर वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा महामारी के स्वभाव को समझना अंत
तक संभव नहीं हो पाया इसलिए ऐसी कोई भी जानकारी नहीं जुटाई जा सकी जिससे
महामारी को समझने में समाज को थोड़ी भी मदद पहुँचाई जा सकी होती |
किसी भी महामारी के आने से पहले उससे बचाव के लिए रहन सहन खान पान आचार बिहार आदि कैसा हितकर होगा !किस प्रकार की औषधियों की आवश्यकता हो सकती है आदि बिषयों पर संभावित वैज्ञानिकों एवं सरकारों के प्रमुख पदों पर बैठे हुए लोगों के साथ आपसी बिचार बिमर्श पूर्वक संसाधन जुटा कर रखने होते हैं |यदि ऐसी महामारियों के बिषय में वैज्ञानिकों के द्वारा सरकारों को यदि पहले से पूर्वानुमान उपलब्ध न करवाए जाएँ तो सरकारों को क्या पता कब किस प्रकार के कितने संसाधन जुटाकर रखने होंगे !कितने औषधीय द्रव्य जुटाकर रखने होंगे !कितनी औषधियाँ निर्मित करके रखनी होंगी |बिना प्रयोजन के निर्मित औषधियों का अतिरिक्त भंडारण भी तो नहीं किया जा सकता क्योंकि निर्मित औषधियाँ एक समय सीमा तक ही सुरक्षित रखी जा सकेंगी |
महामारियों
के समय उस प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ भी घटित होती हैं उनके विशेषज्ञों
के साथ परामर्श करके रखना होता है उनका गी क्या करना किस प्रकार के
वैक्सीन के अच्छे बुरे प्रभाव पर संशय !
आम आदमी वैक्सीन के अच्छे या बुरे प्रभाव को कैसे पहचाने यह बड़ा प्रश्न है ! वैक्सीन लगाने के यदि दुष्प्रभाव होने होते तो करोड़ों लोगों ने वैक्सीन लगवाई है उन पर वे दुष्प्रभाव दिखने चाहिए थे किंतु ऐसा कुछ अधिक होते कहीं दिखाई नहीं पड़ा !थोड़ा बहुत हुआ भी हो तो उसका अनुभव चिकित्सा से जुड़े वैज्ञानिक ही कर सकते हैंआम आदमी उन बारीकियों को नहीं समझ सकता है |
वैक्सीन का अच्छा प्रभाव यदि हुआ भी हो तो इसका अनुमान लगाना जनता के लिए संभव नहीं है यदि ऐसा हुआ होता कि वैक्सीन जिनके लगवाई गई है उनमें यदि बाद में संक्रमण न फैला होता तब तो वैक्सीन का अच्छा प्रभाव प्रमाणित हो जाता |इसी प्रकार से जिन्हें वैक्सीन लगाईं गई उनकी यदि मृत्यु न हुई होती तो उससे वैक्सीन का यह अच्छा प्रभाव प्रमाणित हो गया होता !किंतु जिस प्रकार से बिना वैक्सीन लगे लोग संक्रमित होते और मरते रहे हैं उसी प्रकार से जनता की दृष्टि में वैक्सीन लगने के बाद भी ऐसी घटनाएँ घटित होते देखी जाती रही हैं |
इसके बाद जब कोरोना समाप्त होने लगा तब भी सभी संक्रमितों को एक अनुपात में महामारी से मुक्ति मिलते देखी जा रही थी और दिनोंदिन संक्रमितों की संख्या घटती जा रही थी |इसमें भी वैक्सीन लगाने और न लगाने का प्रभाव कोई अलग से पता नहीं लगा |
भविष्य में आने वाली महामारी की तीसरी लहर के
बिषय में वैज्ञानिकों के द्वारा जो अनुमान लगाया गया है उसके बिषय में
भी ऐसा कोई आश्वासन नहीं दिया गया है कि जो वैक्सीन लगा लेगा उसका तीसरी
लहर से बचाव हो जाएगा और वैक्सीन लगा लेने वालों को संक्रमण का कोई भय
नहीं रहेगा |
ऐसी परिस्थिति में जनता की दृष्टि से देखा जाए तो वैक्सीन के प्रभाव की प्रमाणिकता न सिद्ध होने पर भी वैक्सीन को केवल इसलिए स्वीकार करना पड़ रहा है क्योंकि डॉक्टर कह रहे हैं | अपने अनुभव के आधार पर नहीं अपितु चिकित्सकों पर बने अंधविश्वास के आधार पर वैक्सीन लगवाई जा रही है जिसे गलत नहीं कहा जा सकता है किंतु सच्चाई जानना जनता का अधिकार है | ऐसी जिज्ञासा को खारिज नहीं किया जा सकता है |
वैक्सीन निर्माण पर संशय !
आम आदमी को लगता है कि किसी रोग की चिकित्सा के लिए रोग को पहचानना सबसे पहले आवश्यक माना है | उसके बाद औषधि दान आदि के द्वारा उस रोग को नियंत्रित करके इस बात की पहचान की जाती है इस रोग के जिस स्वरूप को मैंने समझा है यह वही रोग है या कुछ और !इसके बाद उनके द्वारा दी हुई दवा से रोग यदि नियंत्रित होने लगता है तो इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि इस रोग की जो पहचान की गई है वह सही है | ऐसे मजबूत अनुभव को आधार बनाकर इन्हीं अनुभवों लक्षणों आदि के आधार पर संबंधित रोग की वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया अभी तक देखी जाती रही है अबकी पहली बार हुआ है जब रोग की प्रकृति को पहचाने बिना चिकित्सा आदि के द्वारा उसका परीक्षण किए बिना ही वैक्सीन बना ली गई है | इसलिए आमजन के मन में वैक्सीन के बिषय में शंका होनी स्वाभाविक ही है |
महामारी में बचाव के लिए किए गए प्रयासों पर संशय !
महामारी के समय में बचाव के लिए जिन नियमों का पालन करने को कहा गया उनका कोई प्रभाव था भी या नहीं !इसका कोई तर्कसंगत ऐसा उत्तर उदाहरण के साथ खोजा जाना चाहिए जिस पर जनता अपनी जानकारी अनुभव आदि के आधार पर विश्वास कर सके | कहा गया कि दो गज दूरी पालन करने से संक्रमण का भय कम होगा !किंतु जो लोग बिल्कुल एकांत में बैठे रहे उन्हें भी कोरोना संक्रमण हुआ | दूसरी ओर घनी बस्तियों में छोटी छोटी जगहों में एक साथ कई कई लोग रहते सोते जागते कहते पीते रहे !महामारी के समय में गरीबों के छोटे छोटे बच्चे संपूर्ण कोरोना काल में खाद्यपदार्थ लेने के लिए भारी भारी संख्या में एक साथ लाइनों में खड़े होकर भोजन लेते और खाते रहे !महानगरों से लाखों मजदूरों का पलायन हुआ !उन्हें भी जहाँ जिसने जैसे हाथों से जो कुछ दिया वो खाते पीते पैदल चलते रहे !उनके साथ छोटे छोटे बच्चे बूढ़े सद्यः प्रसूता स्त्रियाँ उन्हीं परिस्थितियों में चलती रहीं !यहाँ तक कि उन्हीं परिस्थितियों में बिना किसी इंतजाम के कई महिलाओं का रास्ते में ही प्रसव हुआ !जहाँ शुद्धि स्वच्छता आदि संभव ही नहीं थी !इसके अतिरिक्त दिल्ली में किसान लोग आंदोलन पर बैठे रहे कुछ राज्यों में चुनाव हुए उनमें नेताओं की रैलियों में भी भारी भीड़ें जमा रहीं कुलमिलाकर वैज्ञानिकों के द्वारा बताए गए कोरोना बचाव नियमों की दृष्टि से भयंकर लापरवाही हुई इसके बाद भी अलग से कहीं कोई ऐसी विस्फोटक स्थिति बनते नहीं देखी गई जिसके लिए यह कहा जा सके कि ऐसे क्षेत्रों में कोरोना संक्रमण बढ़ने का कारण इस प्रकार की लापरवाहियाँ थीं |यहाँ तक कि गाँवों में भी वैक्सीन लगने से पहले कोरोना का प्रभाव गाँवों में नहीं देखा गया था |
मॉस्क लगाना आवश्यक था या नहीं ?
कोरोना नियमों की दृष्टि से मॉस्क लगाने को आवश्यक बताया गया था फिर डबल मास्क लगाने को बोला गया !उसके बाद जब ब्लैक फंगस के केस आने लगे तब उसके लिए मॉस्कधारण को ही जिम्मेदार बताते सुना गया | ऐसी परिस्थिति में मॉस्कलगाना आवश्यक था या नहीं इस बिषय में अंत तक कोई तर्कपूर्ण वैज्ञानिक उत्तर नहीं दिया जा सका है|
कोरोना नियमों के अनुशार फल सब्जियों को धोना आवश्यक है !
खाने पीने वाली सारी चीजें बाहर से आती हैं उन्हें बहुतों के हाथों से होकर गुजरना पड़ता है | उनमें से बहुत ऐसे खाद्य पदार्थ होते हैं जिन्हें धोना संभव नहीं होता !धोकर भी सारी वस्तुओं को संक्रमण मुक्त कैसे किया जा सकता है | तंजानियाँ जैसे कई देश ऐसे भी हैं जहाँ फलों सब्जियों के अंदर कोरोना संक्रमण का प्रभाव पाया गया था !स्पेन जैसे देशों में नदियों तालाबों में संक्रमण का असर देखा गया था !फलों और सब्जियों के महामारी के संक्रमण से संक्रमित होने प्रमाण भले कुछ देशों में ही मिले हों अन्य देशों में परीक्षण करना संभव न हो सका हो किंतु संपूर्ण प्रकृति में व्याप्त महामारी का असर फलों और सब्जियों नहीं होगा यह भी विश्वास पूर्वक कैसे कहा जा सकता है |
संक्रमित पशुओं का दूध भी तो संक्रमित रहा होगा !
संक्रमित होने के कारण कुछ देशों में भारी संख्या में पशु भी मारे गए थे | ऐसी परिस्थिति में दूध जैसी चीजें जिन पशुओं से मिलती हैं उनमें से बहुत सारे पशु भी तो संक्रमित रहे होंगे उनका दूध भी संक्रमित रहा होगा वो दूध प्रतिदिन दिल्ली जैसे महानगरों में पहुँचा भी होगा क्योंकि लॉकडाउन जैसे कठिन समय में भी दिल्ली जैसे महानगरों में प्रतिदिन पहुँचने वाला दूध कहीं फेंका फैलाया तो गया नहीं !उस दूध का लोगों ने उपयोग भी किया होगा | उसका भी कोरोना संक्रमण बढ़ाने में कितना योगदान रहा होगा !
चूहे और पक्षी भी तो संक्रमित थे !
संक्रमित पक्षी भी तो जहाँ तहाँ उड़ कर चले जाते थे किसी सामान को जूठा कर दिया करते थे पहनने वाले कपड़ों पर खाने पीने के लिए उपयोगी अनाजों एवं फल सब्जियों पर मलमूत्र कर देते रहे होंगे !उसे लोग बाद में उपयोग करते रहे होंगे उससे भी तो कोरोना संक्रमण बढ़ा होगा |
इसी प्रकार से चूहों में भी संक्रमण रहा होगा !इसीलिए कुछ देशों में
भारी संख्या में चूहे मारे भी गए थे !ऐसे संक्रमित चूहे तो घरों गोदामों
आदि के अंदर का अधिकाँश सामान संक्रमित कर देते रहे होंगे उसमें खाने पीने
की आटा दाल चावल आदि वस्तुएँ भी रही होंगी | संक्रमण को बढ़ाने में उसका भी
योगदान रहा होगा |
केवल मनुष्यों पर वैक्सीन के प्रयोग से महामारी पर नियंत्रण कैसे संभव है ?
वैक्सीन केवल मनुष्यों को लगाईं जा सकती है सरकारों के द्वारा चलाए जा रहे उस टीकाकरण अभियान में चूहे ,पशु ,पक्षी आदि तो कहीं सम्मिलित नहीं हैं |ऐसी परिस्थिति में मनुष्यों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाने के बाद भी ऐसे जीव जंतुओं के द्वारा फैलाए जा रहे कोरोना कैसे सकेगा !
महामारीजनित संक्रमण का प्रभाव लोगों के मन पर भी है !
कुछ देशों में आतंरिक कलह कोरोना काल में बहुत बढ़ गया था !आतंकवाद उग्रवाद आंदोलन सामाजिक दंगे आदि बहुत बढ़ गए थे भारत समेत कुछ देशों का पडोसी देशों के साथ तनाव भी काफी अधिक बढ़ गया था !यदि स्थिति ईरान इजरायल म्यांमार आदि कई देशों में देखी गई थी |
महामारीजनित संक्रमण का प्रभाव पृथ्वी में भी पड़ा था !
भारत जैसे देशों में महामारी काल में जितने भूकंप आए उतने भूकंप पहले वर्षों में भी नहीं देखे जाते थे !
लॉकडाउन लगाना आवश्यक था या नहीं ?
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मार्च को 21 दिनों के लिए पूरे देश को लॉकडाउन रहने का आदेश दिया।इस
निर्णय से पहले 22 मार्च को 14 घंटों के जनता कर्फ्यू किया गया था।14
अप्रैल सुबह 10 बजे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित करते
हुए लॉकडाउन की अवधि को आगे बढ़ाकर 3 मई करने का फैसला लिया और कहा कि
अगले एक हफ्ते नियम और सख्त होंगे।साथ ही मोदी जी ने कहा कि जहां नए मामले
सामने नहीं आएंगे वहाँ कुछ छूट दी जाएगी।29 अप्रैल को मौतों का आँकड़ा 1000
के पार पहुँचा !17 मई को गृह मंत्रालय ने लॉकडाउन को 31 मई तक बढ़ाने की
घोषणा की।30 मई को देशभर में लॉकडाउन के पांचवें चरण की घोषणा की गयी।इन
सबके बाबजूद भी एक जून को भारत दुनियाँ का सर्वाधिक संक्रमित देश बना |
भारत में 17 सितंबर 2020 को संक्रमितों की संख्या सर्वाधिक अर्थात 97,894 काउंट की गई |उसके बाद बिना किसी लॉकडाउन आदि कोरोना के विशेष नियमों का पालन किए बिना एवं किसी औषधि वैक्सीन आदि का संक्रमितों पर प्रयोग किए बिना भी
कोरोना संक्रमितों की संख्या दिनोंदिन कम होते चली गई और दिसंबर 2020 और
जनवरी 2021 के आस पास कोरोना संक्रमण प्रायः समाप्त हो गया था | यहॉँ तक कि
सन 2020 की धनतेरस और दीपावली आदि की त्योहारी बाजारों में या साप्ताहिक बाजारों में भीषण भीड़ें उमड़ती रहीं इसके बाद भी उसके बाद भी कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ी नहीं |उस समय तो लॉकडाउन
जैसे नियमों के अनुपालन की कोई गतिविधि देखी नहीं गई थी | इसके बाद भी
कोरोना संक्रमण दिनोंदिन कम होते चला जा रहा था | ऐसी परिस्थिति में संक्रमितों की संख्या नियंत्रित होने में लॉकडाउन की भूमिका कितनी प्रभावी रही इसका कोई वैज्ञानिक तर्कसंगत उत्तर जनता को दिया जाना चाहिए |
वैक्सीन लगने के बाद कोरोनासंक्रमण बढ़ने का कारण क्या है ?
ब्रिटेन में 8 दिसंबर 2020 को वैक्सीन लगाई गई 13 से 16 दिसंबर के बाद महामारी का संक्रमण बढ़ने लगा था इसी प्रकार से देश में कोरोना टीकाकरण का दूसरा फेज 1 मार्च से शुरू हुआ जैसे जैसे टीका लगता गया वैसे वैसे संक्रमण बढ़ता देखा जाने लगा और अप्रैल 2021 जाते जाते कोरोना संक्रमण भयावह रूप लेता जा रहा था |ऐसे में आम आदमी के मन में वैक्सीन के प्रति शंका होनी स्वाभाविक थी |
भारत में कोरोना संक्रमण अधिक तभी बढ़ा है जब वैक्सीन लगानी से शुरू की गई थी | मृतकों
की संख्या भी उसके बाद ही अधिक बढ़ी है | जिन जिन प्रदेशों में जितनी जल्दी
एवं जितनी अधिक मात्रा में वैक्सीन लगाई वहॉं उतना अधिक कोरोना संक्रमण
बढ़ा है |पहली लहर में गाँवों में कोरोना नहीं था किंतु जब गाँव वालों ने भी
वैक्सीन लगवा ली तो गाँवों में भी कोरोना संक्रमण बढ़ाना शुरू हो गया |
वैक्सीन जब तक जैसी लगाई जाती रही तब तक तैसा बढ़ता रहा दो मई के बाद जैसे
ही वैक्सीन का संग्रह समाप्त होने लगा वैसे ही महामारी भी नियंत्रित होने
लगी | हाल ही में फ्रांस के वायरलॉजिस्ट और नोबेल पुरस्कार विजेता ल्यूक
मॉन्टैग्नियर ने कहा था कि कोरोना की वैक्सीन से बनी एंटीबॉडी कोरोना के
नए-नए वेरिएंट को जन्म देगी और इससेमहामारी और खतरनाक रूप धारण कर लेगी.
इससे ऐसी शंकाओं को बल मिलाना स्वाभाविक ही है |
कोरोना महामारी के बिषय में अपनी भूमिका का सफल निर्वाह कर पाने में
विज्ञान संपूर्ण रूप से असफल रहा है न तो कोरोना महामारी के बिषय में
पूर्वानुमान लगाए जा सके न महामारी से संबंधित संक्रमण बढ़ने घटने के कारण
ही खोजे जा सके और न ही इसके बिषय में पूर्वानुमान ही लगाया या जा सका |
कोरोना महामारी से संक्रमितों में दिखने वाले निश्चित लक्षण क्या होते हैं
उसके बिषय में भी अभी तक कोई निश्चित खोज नहीं की जा सकी है | महामारी से
मुक्ति दिलाने लायक कोई प्रभावी औषधि या वैक्सीन आदि नहीं बनाई जा सकी है |
ऐसे में महामारी में विज्ञान की कोई भूमिका है भी या नहीं विज्ञान के
द्वारा इस बात के बिषय में निश्चय किया जाना अभी तक बाकी है |
इनमें विज्ञान की मुख्य भूमिका यह होती है विज्ञान के द्वारा ऐसे अनुसंधान किए जाएँ जिनसे सबसे अधिक यह होती है कि से बचाव की तैयारियाँ तो ऐसी घटनाएँ घटित होने के पहले ही की जा सकती हैं बाद में तो
महामारी और तैयारियों का अभाव !
सभी रोगों की तरह ही महामारियों से निपटने के लिए भी आगे से आगे तैयारियाँ करके रखनी होती हैं यदि ऐसा किया जा सका होता तब तो महामारी जनित संक्रमण पर कुछ अंकुश लयाया जाना संभव भी था किंतु ऐसा नहीं किया जा सका था इसका कारण यह कतई नहीं था कि तैयारियाँ की क्यों नहीं गईं अपितु इसका कारण यह था कि महामारी से निपटने के लिए तैयारियॉँ करनी क्या क्या हैं ?उसके लिए किस बिषय में करना क्या होगा !इसकी जानकारी किसी के पास नहीं थी |
महामारी और प्राकृतिक आपदाओं पहला आक्रमण ही सबसे अधिक भयानक होता है उसी में जो नुक्सान होना होता है वो हो चुका होता है उसके बाद तो बस आफ्टरशॉक्स अर्थात आपदा के बाद के दिनों में उसी प्रकार के छोटे छोटे झटके होते हैं जो बाद तक आया करते हैं | इसलिए पहले आक्रमण में ही महामारी और प्राकृतिक आपदाओंके वेग से अपना बचाव करना होता है | इसके लिए महामारी और प्राकृतिक आपदाओं के आने से पहले ही इनसे अपने बचाव के लिए यथा संभव संपूर्ण तैयारियाँ करके रखनी होती हैं पहले करके रखी गई कौन सी तैयारी न जाने कब कहाँ किस काम आ जाए |
महामारी और प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए पहले तैयारियाँ करना भी तो इतना आसान नहीं होता है क्योंकि ऐसा तभी किया जा सकता है जब किसी महामारी या प्राकृतिक आपदा के आने के बिषय में पहले से पता हो !इसके लिए ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगाकर रखना होता है उसी के अनुशार तैयारियाँ करके रखनी होती हैं |
पूर्वानुमान केवल इसीलिए नहीं कि महामारी आने वाली है अपितु इस बात के भी पूर्वानुमान लगाए जाने चाहिए महामारी के संभावित लक्षण किस प्रकार के हो सकते हैं आने वाली महामारी लगभग कितने समय तक रह सकती है | उस हिसाब से लोग अर्थ संचय एवं खाने पीने की आवश्यक वस्तुओं का संग्रह कर सकते हैं | व्यावसायिक कार्यों को उस हिसाब से उतने समय के लिए व्यवस्थित करके चला जा सकता है | गरीबलोग मजदूर लोग भी उतने समय के लिए व्यवस्थित तरीके से खाने पीने की व्यवस्था करके रख सकते हैं| उनमें जो अधिक असमर्थ वर्ग होता है सरकारें उसी समय उनकी मदद कर सकती हैं | महामारी के समय हर कोई सरकारों की ओर ही देखता है किंतु सरकारों की भी सीमा है इसलिए सरकारों को भी सारी व्यवस्था करके चलना होता है |चिकित्सकों की अपनी सीमाएँ होती हैं उनके पास कितनी किस प्रकार की व्यवस्थाएँ हैं कितनी और करके रखनी पड़ेंगी | उसके लिए उन्हें सरकार से मदद माँगनी होती है निर्मित औषधियों का संग्रह करके रखना होता है औषधीय द्रव्यों का संग्रह करके चलना होता है |रक्षातंत्र की भी समीक्षा करनी होती है उन्हें भी तैयारियों के लिए समय चाहिए होता है | सेनाएँ देश की सीमाओं की रक्षा के लिए एक से एक दुर्गम इलाकों में तैनात होती हैं | शरीर स्वस्थ रहे बिना वे देश की सुरक्षा कैसे कर सकती हैं | कई बार कोई महामारी किसी एक देश तक ही सीमित रहती है | मुसीबत में फँसे देश को देखकर शत्रु देश हमला कर सकते हैं उसकी भी तैयारियाँ करके चलनी होती है |
पूर्वानुमान पता न होने के कारण ऐसी तैयारियों के अभाव में ही तो लॉकडाउन लगाना पड़ा अन्यथा लोगों ने आवश्यक वस्तुओं का संग्रह पहले से कर रखा होता तो लोग स्वाभाविक रूप से स्वेच्छया संयमित हो जाते | उस परिस्थिति में भी व्यापार संयमित ढंग से चलाए जा सकते थे |महानगरों से श्रमिकों के पलायन को रोका जा सकता था |पूर्वानुमानों की जानकारी के अभाव में पता न होने के कारण ऐसी और भी बहुत सारी गड़बड़ियाँ हुई हैं उनसे बचा जा सकता था !जिसके लिए न जनता दोषी है न चिकित्सक दोषी हैं और न ही सरकारों को दोष दिया जा सकता है चिकित्सक अपने संसाधनों के अनुशार ही चिकित्सा कर सकते थे जितना संभव था जनता भी उतनी ही अपनी आवश्यकताएँ रोक सकती थी और सरकारों की भी अपनी सीमा होती है उसी में रहकर वो प्रजापालन कर सकती थीं | सामान्य रूप से लोग उतने ही साधन जुटा कर रखते हैं जितने की आवश्यकता होती है अतिरिक्त साधन प्रायः कोई नहीं रखता |
किसी घर में चार सदस्य होते हैं तो लोग दो तीन लेट्रीन बाथरूम बना कर रख लिए जाते हैं | उसी से उनका काम चला करता है | कई बार ऐसी भी परिस्थिति आ जाती है कि घर में कुछ मेहमान आ जाते हैं सभी सामूहिक रूप से भोजन करते हैं वह भोजन एक साथ नुक्सान कर गया होता और सबको एक साथ ही उलटी दस्त होने लगते हैं | ऐसी परिस्थिति में संसाधन तो कम पड़ेंगे ही जिनके लिए किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है और उनसे प्रेरणा ऐसी भी नहीं ली जा सकती है कि उस घटना के बाद पूरे घर में लेट्रीन बाथरूम ही बना डाले जाएँ |
कुलमिलाकर मुसीबतें आती ही मनुष्यों के धैर्य की परीक्षा लेने के लिए हैं
इसीलिए हैं ऐसे समय में पारस्परिक आरोप प्रत्यारोप से बचा जाना चाहिए
क्योंकि उस समय परेशान हजार कोई होता है हरकोई अपने अपने अनुशार कुछ न कुछ
अच्छा कर रहा होता है जो नहीं भी कर रहा होता है ऐसे महत्वपूर्ण समय में
उसकी चर्चा ही क्यों करनी चाहिए |
उचित तो यही है कि सभी लोगों को मिलजुल कर इस बात का बिचार करना चाहिए कि भविष्य में ऐसा क्या किया जाए ताकि इस प्रकार की परिस्थिति भविष्य में फिर कभी पैदा न हो | समय के प्रवाह से महामारियाँ आवें भी तो उन्हें रोकना संभव तो नहीं होगा कि ऐसा कुछ अवश्य हो कि उससे जनधन की हानि कम से कम हो |
इसके लिए आवश्यक है कि ऐसी महामारियों समेत समस्त प्राकृतिक आपदाओं के बिषय में पूर्वानुमान लगाने की मजबूत व्यवस्था की जाए इसके बिना महामारियों के प्रकोप से बचाव संभव नहीं है |
महामारियों से बचाव के लिए उनका पूर्वानुमान सबसे अधिक आवश्यक होता है !
महामारी का सामना बिना तैयारी के कैसे किया जा सकता है जिस समय कोरोना महामारी समूचे विश्व की चिकित्सा व्यवस्थाओं को ललकार हुए रौंदती जा रही थी | उस समय चिकित्साव्यवस्था की दृष्टि से सक्षम माने जाने वाले बड़े बड़े अत्यंत सक्षम देशों का भी यह साहस नहीं पड़ा कि महामारी की चुनौती को स्वीकार करके चीन से चले महामारी के काफिले को अपनी इच्छा के अनुशार कहीं रोक लेते और अपने देश को जनधन हानि होने से बचा लेते | महामारी एकवर्ष से अधिक रहते हैं समस्त विश्व की स्वास्थ्य व्यवस्था का लगातार मानमर्दन करती रही जो देश महामारी के छोटे से छोटे अंश को भी समझने में असफल बने रहे ऐसे देश भी अपने स्वास्थ्य व्यवस्थापकों को महामारी योद्धा बताते रहे एवं महामारी को पराजित करने की बड़ी बड़ी बातें करते रहे | जिन देशों में एक ओर तो महामारी पर विजय प्राप्त करने के सुखप्रद सपने दिखाए जा रहे थे उन्हीं देशों की चिकित्सा व्यवस्था महामारी के आगे ऐसे दम तोड़ रही थी कि रोगियों की चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवाना तो बड़ी बात थी ऐसे देशों में संक्रमितों की संख्या की सही सही गणना करन भी संभव नहीं हो पाया | मृतकों की निश्चित संख्या नहीं पता लगाई जा सकी !
महामारी बीतने के बाद भी यह घमंड पालकर बैठना भविष्य के लिए अत्यंत घातक सिद्ध होगा कि विश्व के महामारी से मुक्ति दिलाने में उनके प्रयासों की भी कोई भूमिका रही है जिन्हें इस बात का घमंड हो उन्हें दर्पण दिखाने के लिए मेरे पास बहुत कुछ है जिसे नाकारा जाना संभव नहीं होगा |
ऐसी परिस्थिति में हमेंशा की तरह ही यह संतोष कर लेना ठीक नहीं होगा कि मैंने वैक्सीन आदि प्रयासों के बल पर विश्व को महामारी से मुक्त कर लिया है |इसलिए महामारी से पीड़ित विश्व को भविष्य के लिए चिंतन अभी से करना चाहिए कि ऐसा क्या किया जाए जिससे भविष्य में ऐसी परिस्थिति फिर कभी न बने |
महामारी पर विजय प्राप्त करना तो संभव था ही नहीं किंतु महामारी सपनाबचाव कर लिया जाता वो भी बड़ी बात होती वह भी संभव नहीं हो पाया महामारी के प्रकोप से जितना जो कुछ होना था वह सब कुछ हुआ उसे रोका नहीं जा सका | महामारी पर विजय प्राप्त करने की बड़ी बड़ी बातें करने वाले देशों को इस बात का चिंतन करना चाहिए कि महामारी पर विजय प्राप्त करने लायक हमारी तैयारियाँ क्या थीं |
महामारी प्रारंभ होने के बाद तो कुछ बिशेष किसी के बश में रह नहीं जाता है
फिर तो जो होना है वही होता है इसलिए तैयारियाँ तो महामारी आने से पहले ही
करनी होती हैं उस समय इसलायक हमारी कोई तैयारी
ही नहीं थी महामारियों का प्रकोप प्रारंभ होने से पहले तो हमें इस बात की
कोई आशंका ही नहीं थी कि हम महामारी की इतनी बड़ी आपदा से जूझने जा रहे हैं
हवा में विद्यमान विषाणुओं ने साँस के साथ सभी लोगों के शरीरों में प्रवेश
करना प्रारंभ किया उस समय जिनका अपना समय अच्छा था समय के प्रभाव से उनकी
प्रतिरोधक क्षमता अच्छी थी इसलिए उनके शरीरों पर उसका प्रभाव उस तरीके का
नहीं पड़ा जैसा कि उन पर पड़ा जिनका अपना समय ख़राब चल रहा था इसलिए समय के
प्रभाव से प्रतिरोधक क्षमता अत्यंत कमजोर थी | इसका मतलब यह कतई नहीं है कि
महामारी में संक्रमित होने से कोई वातावरण का कोई अंश बचा रह गया है | संक्रमित तो सभी हुए हैं आंशिक रूप से स्वास्थ्य संबंधी गड़बड़ियाँ भी सभी शरीरों में हुई हैं फिर भी प्रतिरोधक
क्षमता जिन शरीरों में जैसी थी महामारी के लक्षण उन शरीरों में वैसे ही
दिखाई पड़ते रहे |ऐसी परिस्थिति में हमारे पास ऐसे संसाधन होने चाहिए थे
जिसके आधार पर हम लोगों की प्रतिरोधक क्षमता का पूर्वानुमान लगा पाते जिनकी
प्रतिरोधक क्षमता जितनी अधिक कमजोर होती उन्हें स्वास्थ्य सुविधाओं की
दृष्टि से उतनी अधिक प्राथमिकता देकर बचाया जा सकता था |
पूर्वानुमान लगाने की क्षमता के अभाव में इस बात का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका कि महामारी का विस्तार इस वातावरण में कहाँ तक होगा ! इसका प्रसार माध्यम क्या होगा अर्थात ये फैलेगा कैसे !इसकी अंतरगम्यता कितनी होगी!अर्थात इसका प्रवेश मनुष्य शरीरों की तरह ही फलों सब्जियों आदि खाद्य पदार्थों में भी हो सकता है क्या !होगा क्यों नहीं मनुष्यों की तरह वे भी तो इसी प्राकृतिक वातावरण में ही पैदा होते हैं ?यही मिटटी यही वायु यही जल तो उनके जीवन का भी आधार है | महामारी के बिषाणुओं से कोई वस्तु बच कैसे सकती है |
ऐसे पूर्वानुमानों के अभाव में जिन फलों सब्जियों को हम गर्म पानी से धो धोकर खाते रहे वे सब की सब संक्रमित थीं कुछ देशों में फलों का परीक्षण बार बार करने पर उनके अंदर बिषाणुओं की उपस्थिति पाई भी गई | नदियों तालाबों कुओं समुद्रों आदि सभी स्थलों पर महामारी पैदा करने वाले बिषाणुओं का प्रवेश हो चुका था | उसके बाद उससे मुक्ति दिलाने के लिए किए जाने वाले प्रयास निरर्थक होने ही थे | यहाँ पूर्वानुमान पहले से पता होते तभी बात बन सकती थी !इसके अतिरिक्त बचाव के लिए और कोई विकल्प अवशेष था ही नहीं |
महामारी प्रारंभ होने से पहले इस बात का पूर्वानुमान लगा लिया जाना चाहिए था कि संभावित महामारी पर तापमान के बढ़ने घटने का क्या प्रभाव पड़ेगा !वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ने घटने का महामारी जनित संक्रमण पर कैसा प्रभाव पड़ेगा |किस मौसम का कैसा प्रभाव पड़ेगा !किंतु महामारी प्रारंभ होने से पूर्व इस प्रकार की कोई जुटाई जा सकी !महामारी जब अधिकाँश विश्व को अपनी चपेट में ले चुकी थी उस समय तक अधिकाँश देशों की सरकारों में स्वास्थ्य सेवाओं को सँभाल रहे स्वास्थ्य मंत्री जैसे लोगों के पास भी कोई वैज्ञानिक अनुसंधान आधारित जानकारी नहीं थी यही कारण है वे गर्मी में कोरोना संक्रमण कम होने का अंदाजा लगाते थे वो बढ़ते देखा जाता था | उनके द्वारा सर्दी में कोरोना संक्रमण बढ़ने का अंदाजा लगाया जाता था उस समय कोरोना संक्रमण समाप्त होते देखा जाता था | वायु प्रदूषण बढ़ने पर कोरोना संक्रमण बढ़ने का अंदाजा लगाया जाता था संक्रमण उसी समय कम होने लगता था महामारी आने से पूर्व उनके बिषय में जानकारी के अभाव में ऐसी घटनाएँ घटित हुई हैं |
महामारी से पीड़ित होने वाले लोगों में किस किस प्रकार के लक्षण प्रकट होंगे उनमें कितने कितने समय बाद किस किस प्रकार के बदलाव आने की संभावना है | इनके बिषय में कोई निश्चित पूर्वानुमान पता न होने के कारण संक्रमण के स्वरूप के बिषय में जो भी आज बोला जाता था कुछ दिन बाद उन लक्षणों की जगह दूसरे लक्षण प्रकट होने लगते थे | महामारी के स्थायी लक्षणों के बिषय में कोई पूर्वानुमान पता न होने के कारण लक्षण बदलते जब दिखाई पड़ते थे तब उन लोगों को बड़ा आश्चर्य होता था जिनपर उनसे निपटने की जिम्मेदारी थी |
महामारी से
संक्रमित लोगों को संक्रमण से मुक्ति दिलाने के लिए क्या कोई औषधि बनाई जा
सकती है | उस औषधि या वैक्सीन आदि का महामारी से संक्रमितों पर क्या कोई
प्रभाव पड़ेगा !ऐसे बिषयों का पहले से पूर्वानुमान न होने के कारण जो भ्रम
पैदा होते हैं वे भविष्य के लिए अहितकर होते हैं | जब से महामारी प्रारंभ
होती है तब से चिकित्सावैज्ञानिक महामारी जनित संक्रमण से मुक्ति दिलाने की
औषधियाँ बनानी प्रारंभ कर देते हैं| समय प्रभाव से जब संक्रमण कम होने
लगता था उसका श्रेय वे अपनी औषधियों को दे लेते थे जब फिर अचानक संक्रमितों
की संख्या समय प्रभाव से बढ़ने लगती थी तो वे उसे म्यूटेशन बदलने की बात
मानकर किसी नए प्रयोग में लग जाया करते थे | समयप्रभाव के कारण जिस
प्रकार से महामारी का संक्रमण बहुत कम होते देखा गया उसी प्रकार से
महामारी एक दिन संपूर्ण रूप से भी समाप्त हो जाएगी !उस दिन महामारी के
समाप्त होने का कारण भी किसी दवा या वैक्सीन आदि को मान लिया जाएगा | जो न
तो सच होगा और न ही भविष्य के लिए हितकर होगा | अनुसंधान करने में लगे लोग
यह सोचकर संतुष्ट हो जाते हैं कि उनकी खोजी गई दवा से महामारी को जीत लिया
गया है यही कारण है कि उसके बाद उस प्रकार के अनुसंधानों में कुछ शिथिलता
आ जाती है |
महामारी प्रारंभ होने से पहले इस बात का भी पूर्वानुमान लगाया जाना जरूरी था कि महामारी से बचाव के लिए क्या कुछ उपाय करने होंगे जिससे महामारी जनित संक्रमण कम से कम लोगों पर प्रभावी हो !इसके बिषय में कोई सही सटीक पूर्वानुमान न होने के कारण महामारी की उस महा मुसीबत में उपायों के नाम पर जिसे जो समझ में आता रहा वह उसका पालन करते करवाते रहे !घबड़ाहट में देश को दो गज दूरी,एकांतवास, मॉस्क धारण एवं लॉकडाउन जैसे कई कठोर व्रत लेने पड़े ! ऐसे उपायों के द्वारा महामारी से बचाव की दृष्टि कोई लाभ हुआ भी है या नहीं !इसके कोई प्रमाण नहीं हैं कई लोगों को बिल्कुल एकांत में रहकर पथ्य परहेजक का संपूर्ण पालन करने पर भी कोरोना हुआ कई लोग खुला स्वतंत्र संक्रमितों के बीच भी घूमते रहते देखे गए !फिर भी वे संक्रमित होने से बचे रहे |
महामारी संक्रमितों पर चिकित्सा के दुष्प्रभाव
महामारी के समय चिकित्सकों पर अयोग्यता या लापरवाही के आरोप लगाने वाले लोगों को लगता है कि चिकित्सा में हुई लापरवाही के कारण महामारी को रोका नहीं जा सका !चिकित्सकों के द्वारा की गई चिकित्सा के दुष्प्रभाव महामारी से संक्रमित हुए लोगों पर देखे गए हैं ब्लैकफंगस हार्टअटैक एवं और तरह तरह के चिकित्सा जनित दुष्प्रभाव संक्रमितों पर देखे गए हैं इसके लिए चिकित्सकों की अयोग्यता या गैरजिम्मेदारी ही कारण है |
इसी प्रकार से कुछ लोगों को सरकारों की सतर्कता में कमी दिखाई पड़ती है उन्हें लगता है कि उचित एवं उपयोगी औषधियॉँ समय पर नहीं उपलब्ध करवाई जा सकीं !आक्सीजन सिलेंडर नहीं दिए जा सके !अस्पतालों में बेड पर्याप्त नहीं थे कई औषधियाँ इंजेक्शन आदि नहीं मिल सके या ब्लैक में मिलते रहे | लॉकडाउन गलत लगाया गया या समय पर नहीं लगाया गया मॉस्क नहीं लगाया जाना चाहिए था या उसके न लगाने पर अधिक जुर्माना नहीं लगाया जाना चाहिए था | कोरोना काल में कुछ प्रदेशों में किए गए विधान सभा चुनाव टाले जाने चाहिए थे आदि आदि और भी बहुत सारे आरोप सरकारों पर लगाए जा सकते हैं और उनमें से बहुत सारे सच भी हैं गलतियाँ भी हुई होंगी हो सकता है कि कुछ स्तरों पर लापरवाही भी देखी गई है किंतु ऐसी सभी गलतियों के लिए केवल वर्तमान सरकार को ही दोषी नहीं ठहराया जा सकता है अपितु इसके लिए वे सभी सरकारें दोषी हैं जो आज तक किसी न किसी रूप में शासन या सत्ता में रही हैं |
समाज के प्रत्येक वर्ग को यह ध्यान रखना चाहिए कि सरकारों में बैठे लोग
और चिकित्सक भी इसी समाज के अंग हैं मनुष्य होने के नाते गलतियाँ उनसे भी
हो ही सकती हैं किंतु इसके लिए सरकारों में सम्मिलित एवं चिकित्सा की
जिम्मेदारी सँभाल रहे केवल वर्तमान लोगों को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा
सकता है | चिकित्सकों और सरकारों पर जिस जगह गैर जिम्मेदारी के आरोप लग रहे
हैं समस्या केवल उतनी ही नहीं है अपितु समस्या तो यह है महामारी के बिषय
में अच्छी प्रकार से समझने के लिए महामारी प्रारंभ होने से पूर्व महामारी
के बिषय में पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए था उसके बिना महामारी के बिषय
में किसी नीति का निर्माण करना संभव नहीं है इसलिए जो पिछली सरकारें रही
हैं महामारी जैसे बिषयों पर पूर्वानुमान लगाने के लिए आवश्यक वैज्ञानिक
अनुसंधानों पर उन्हें भी ध्यान देना चाहिए था वर्तमान सरकारों का भी यही
पवित्र कर्तव्य था |
महामारियों का पूर्वानुमान किए बिना महामारी से बचाव करना किसी के लिए भी बहुत कठिन होता है | जिस प्रकार से कोई रोड काफी ऊँचाई पर बना हो वो बीच में कहीं टूटा हो जिससे रोड पर अचानक काफी गहरा गड्ढा हो गया हो जिसके बिषय में किसी गाड़ी चालक को कोई जानकारी अर्थात पूर्वानुमान न हो और वह उसी पर तेजी से गाड़ी भगाए चला जा रहा हो उस गड्ढे के पास आ जाने पर सामने अचानक गड्ढा दिखाई पड़े तो उस गाड़ी चालक के पास चार विकल्प होते हैं पहला ब्रैक मारकर गाड़ी रोक दे किंतु गति अधिक होने पर यह संभव नहीं होता है | अब तीन विकल्प बचते हैं सामने के गड्ढे में गाड़ी को जाने दे या दाहिने अथवा बाएँ गाडी को मोड़ दे | ऐसी परिस्थिति में सामने गड्ढा है ही दाहिने और बाएँ इसलिए गहरा है क्योंकि रोड काफी ऊँचाई पर बना है ऐसी परिस्थिति में चालक कितना भी सतर्क क्यों न हो गाड़ी किसी भी तरफ मोड़े दुर्घटना टाल पाना उसके बश में नहीं होता है जिधर भी मोड़ेगा दुर्घटना घटित होना लगभग निश्चित होता है | चिकित्सक की सतर्कता से संभव है कुछ बचाव हो भी जाए किंतु बचाव की अधिक गुंजाइश नहीं रहती है |
महामारी का संक्रमण एक बार बढ़ जाने के बाद बचाव के लिए प्रयास करने के लिए देर हो चुकी होती है इसलिए संक्रमण कब बढ़ने वाला है उसके बिषय में पूर्वानुमान यदि पहले से पता हो जिसके आधार पर पहले से सावधानी बरती जाए तब तो प्रयास पूर्वक अपना बचाव करते हुए संक्रमण विस्तार को नियंत्रित किया जा सकता है किंतु पहले से पूर्वानुमान पता न होने पर तो जब लोग बड़ी संख्या में संक्रमित हो जाते हैं तब अचानक जो समझ में आते हैं वे उपाय बताए जाते हैं उन उपायों का महामारीजनित संक्रमण पर कोई प्रभाव पड़ता भी है या नहीं इसका परीक्षण करने का समय उतनी जल्दी में कहाँ मिल पाता है और न ही औषधियों के परीक्षण का ही समय मिल पाता है संक्रमण का स्वभाव समझने के लिए भी समय नहीं मिल पाता है संक्रमितों में किस प्रकार के लक्षण उभरते हैं इसका अंदाजा भी नहीं लग पाता है |
मौसमवैज्ञानिकों की तरह महामारी जनित संक्रमण में जैसे जैसे लक्षण दिखाई पड़ते जाते हैं वैसी वैसी भविष्यवाणियाँ कर दी जाती हैं धूप दिखी तो धूप निकलने का और वर्षा होने लगी तो वर्षा होने का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है अगर बदलाव हुआ तो मौसम पूर्वानुमान भी बदल दिए जाते हैं | इस प्रकार की कला मौसम संबंधी घटनाओं में इसलिए चल जाती है क्योंकि उससे किसी का व्यक्तिगत हानि लाभ नहीं जुड़ा होता है इसलिए लोगों का ध्यान उधर नहीं जाता है | प्राकृतिक आपदाएँ मौसम संबंधी ऐसे तीर तुक्कों की पोलखोल देती हैं और सारे पूर्वानुमान धराशायी हो जाते हैं |
मौसम हो या महामारी ये प्राकृतिक घटनाएँ हैं इनका जन्म ही समय के गर्भ से
होता है इसीलिए समय बीतने के साथ साथ इनके लक्षण भी बदलते रहते हैं |
इसीलिए केवल लक्षणों को देखकर जो मौसम पूर्वानुमान लगाया जाता है न तो वह
सही घटित होता है और न ही महामारियों के बिषय में केवल लक्षणों के आधार पर
लगाए गए अनुमान या पूर्वानुमान सही घटित होते हैं क्योंकि जिन लक्षणों को
देखकर किसी औषधि का निर्माण प्रारंभ होता है जबतक औषधि बनकर तैयार होती है
तब तक वो समय बीतने के साथ साथ महामारी के लक्षण भी बदल जाते हैं | रोग के
लक्षण बदलते ही बनाई गई औषधि बेकार हो जाती है |जिसका कारण म्यूटेशन या नए
वेरियंट को बता दिया जाता है | यह जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ना है | म्यूटेशन
तो सभी प्राकृतिक घटनाओं में होता है सभी रोगों में होता है तो उनसे बचाव
के उपाय पहले से सोचकर चलने पड़ते हैं इसीलिए तो महामारी के बिषय में
अनुसंधान आवश्यक होते हैं | वैज्ञानिक अनुसंधानों का लक्ष्य केवल इतना नहीं
होता है कि आँधी तूफानों बादलों आदि को उपग्रहों रडारों की मदद से एकस्थान
पर देखकर उनकी गति और दिशा के हिसाब से दूसरे स्थान पर पहुँचने का अंदाजा
लगाकर भविष्यवाणी कर दी जाती है किंतु इस प्रक्रिया में विज्ञान कहाँ है ये
तो बादलों की जासूसी मात्र है | उपग्रहों रडारों से भूकंपों की जासूसी
संभव नहीं है इसलिए कह दिया गया कि भूकंपों के बिषय में पूर्वानुमान लगाना
संभव नहीं है | यदि केवल कैमरे चेक कर कर के ही बताना है महामारियों के समय
रोग के वर्तमान लक्षण देख देख कर ही बताना है तो वैज्ञानिक अनुसंधानों की
आवश्यकता ही क्या है |
इसलिए मौसम या महामारियों के स्वभाव को समझने के लिए ठीक ठीक अनुसंधान करवाए जाने की आवश्यकता है यह जिम्मेदारी भी केवल उन्हीं वैज्ञानिकों के द्वारा निर्वाह की जा सकती है जिनमें मौसम और महामारियों के स्वभाव को समझने की योग्यता हो | स्वभाव प्रायः बदलता नहीं है आग की लव का स्वभाव ऊपर की ओर चलना है और पानी का स्वभाव नीचे की ओर जाना है इसीलिए किन्हीं भी परिस्थितियों में आग जलेगी तो उसकी लव ऊपर की ओर ही जाएगी और पानी छूटेगा तो नीचे की ओर ही बहेगा |
इसी प्रकार से प्राकृतिक आपदाओं या महामारियों का स्वभाव समझने का विज्ञान जिस दिन खोज लिया जाएगा उस दिन वायरस के म्यूटेशन या नए वेरियंट का भय ही नहीं रहेगा क्योंकि उन बदलावों के बिषय में पहले से ही पता होगा कि किसी भी महामारी की शुरुआत होने की संभावना कब है | वह कितने समय तक समाज को पीड़ित करती रहेगी | संक्रमण का वेग बढ़ने और कम होने के आसार कब कब होंगे |
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