जलवायु परिवर्तन !
वर्तमान समय में वैज्ञानिकों के द्वारा प्रायः सभीप्रकार के प्राकृतिक परिवर्तनों को जोड़कर देखा जा रहा है| मानसिक रोग हों या शारीरिक रोग या कोरोना जैसी महामारी ही क्यों न हो !ऐसे सभी रोगों के घटित होने का कारण जलवायु परिवर्तन को बताया जा रहा है |
ऐसे ही भूकंप आँधी तूफान चक्रवात बज्रपात सूखा वर्षा बाढ़ तथा तापमान के अस्वाभाविक रूप से बढ़ने घटने जैसी सभी प्रकार की हिंसक प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का कारण जलवायु परिवर्तन को बताया जा रहा है | यहाँ तक कि वायु प्रदूषण बढ़ने को भी उसी से जोड़ कर देखा जा रहा है |
वैज्ञानिकों के द्वारा ऐसी घटनाओं के विषय में बताया जाता है कि वर्तमान समय प्रकृति में जिस प्रकार के बदलाव अचानक आए हैं, वह जलवायुपरिवर्तन का ही परिणाम हैं |तूफ़ानों की संख्या बढ़ गई है,भूकंपों की आवृत्ति बढ़ गई है,नदियों में बाढ़ का विकराल स्वरूप आदि घटनाएँ पहले से कहीं अधिक बढ़ गई हैं | हाल ही में चीन, जर्मनी,बेल्जियम और नीदरलैंड्स में आई बाढ़ इसी का नतीजा है |ईरान में पानी के लिए कोहराम मचा हुआ है | ऑस्ट्रेलिया में ग्रेट बैरियर रीफ़ जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़े समुद्री तापमान की वजह से पहले ही अपने आधे कोरल खो चुकी है | जंगलों में लगने वाली आग की संख्या भी बीते सालों में बढ़ी है. गर्म और शुष्क मौसम के कारण आग तेज़ी से फैलती है और इनके बार-बार लगने की आशंका भी बढ़ जाती है |जिसका सीधा असर जीवन और जीवित रहने के माध्यमों पर पड़ रहा है !भीषण गर्मी वाले दिन दोगुने हो गए हैं | हमारे लिये यह चिंता का विषय है कि हिमालय क्षेत्र के हिमनद विश्व के अन्य क्षेत्रों के हिमनदों से अधिक तेजी से पिघल रहे हैं। धरती के तापमान में वद्धि के कारण हिमनद और ध्रुवीय प्रदेशों की बर्फ पिघलने की रफ्तार बढ़ गई है जिसके परिणामस्वरूप महासागरों का जल स्तर औसतन 27 सेंटीमीटर ऊपर उठ चुका है।कई विकासशील देशों में खेती और फसलों को पहले से ही बहुत गर्म जलवायु का सामना करना पड़ रहा है |
इस प्रकार की घटनाएँ उद्धृत करके वैज्ञानिक लोग यह बताना चाह रहे हैं कि ऐसी सभी घटनाएँ घटित होने का कारण जलवायुपरिवर्तन ही है |
वैज्ञानिकों के द्वारा जलवायुपरिवर्तन के विषय में की जाने वाली भविष्यवाणियाँ -
तापमान बढ़ते रहने के कारण भविष्य में कुछ क्षेत्र निर्जन हो सकते हैं और खेत रेगिस्तान में तब्दील हो सकते हैं.| ऐसे ही तापमान बढ़ने के परिणाम विपरीत भी हो सकते हैं. इससे भारी बारिश एवं बाढ़ जैसी घटनाएँ भी घटित हो सकती हैं |जलवायु परिवर्तन के कारण ही इस सदी में कम से कम 550 प्रजातियाँ विलुप्त हो सकती हैं | दुनियाँ के हर क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन का अलग असर होगा | कुछ स्थानों पर तापमान बढ़ने से सूखे की मार झेलनी होगी तो कुछ जगहों पर भारी बारिश होगी और बाढ़ आएगी |महासागर और इसके जीवतंत्र पर भी ख़तरा मंडरा रहा है.| तापमान वृद्धि का एक बुरा असर यह भी होगा कि साइबेरियाई क्षेत्रों में जमी बर्फ़ भी पिघलेगी जिससे सदियों से अवशोषित ग्रीनहाउस गैसें भी मुक्त हो जाएँगी, जिसका बुरा असर होगा | तापमान बढ़ने के कारण जीवों के लिए भोजन और पानी का संकट बढ़ जाएगा |तापमान बढ़ने से ध्रुवीय भालू मर सकते हैं | ग्लेश्यिर बड़ी मात्रा में पिघल सकते हैं, जिससे समुद्र का जलस्तर बढ़ सकता है | अत्यधिक बारिश के कारण यूरोप और ब्रिटेन आदि बाढ़ की चपेट में आ सकते हैं. मध्य पूर्व के देशों में भयानक गर्मी पड़ सकती है और खेत रगिस्तान में बदल सकते हैं| प्रशांत क्षेत्र में स्थित द्वीप डूब सकते हैं | कई अफ्रीक्री देशों में सूखा पड़ सकता है जिससे भुखमरी पनप सकती है | पश्चिमी अमेरिका में सूखा पड़ सकता है बल्कि दूसरे कई इलाक़ों में तूफ़ान की आवृतियाँ बढ़ सकती हैं | ऑस्ट्रेलिया भीषण गर्मी और सूखे की मार झेल सकता है | इस सदी के अन्त तक एल्प्स पर्वत शृंखला के लगभग 80 प्रतिशत हिमनद (ग्लेशियर) पिघल जाएँगे। हिमनद और ध्रुवीय इलाकों की बर्फ पिघलने की रफ्तार बढ़ने से सागर तटीय इलाकों के डूबने का खतरा बढ़ जाएगा और महासागरों का बढ़ता जलस्तर मालदीव जैसे हजारों द्वीपों को डूबा देगा।
जलवायुपरिवर्तन के प्रभाव के विषय में वैज्ञानिकों के द्वारा इसप्रकार की संभावित घटनाओं के विषय में वैज्ञानिकों के द्वारा भविष्यवाणियाँ की जा रही हैं |
उपाय :
वैज्ञानिकों का मानना है कि भविष्य में इस इस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ घटित हो सकती हैं इसलिए ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए अधिक धन की आवश्यकता बताई जा रही है |इसीलिए कहा जा रहा है कि तापमान वृद्धि का सबसे बुरा असर ग़रीब देशों पर होगा क्योंकि उनके पास जलवायु परिवर्तन को अनुकूल बनाने के लिए पैसे नहीं हैं ,आदि आदि और भी बहुत कुछ कहा जा रहा है |जलवायुपरिवर्तन के प्रभाव को कम करने और नए हालात के हिसाब से ढालने के उपायों में पेड़ लगाने, जंगलों का दायरा बढ़ाने और काटे गए जंगलों को फिर से लगाने के लिए प्रेरित किया जाता है | ऐसे ही और भी तरह तरह के उपाय बताए जा रहे हैं |
जलवायु परिवर्तन की अवधारणा कितनी तर्कसंगत है !
विज्ञान तर्कसंगत तथ्यों पर आधारित होता है जिसमें किसी भी अवधारणा को स्थापित करने के लिए पारदर्शिता परीक्षण एवं प्रमाणिकता की घोर आवश्यकता होती है| इसके बिना जलवायुपरिवर्तन जैसे काल्पनिक बिचारों को कोई स्थान नहीं होना चाहिए |
भूकंप आँधी तूफान चक्रवात बज्रपात सूखा वर्षा बाढ़ तथा तापमान के अस्वाभाविक रूप से बढ़ने घटने का कारण यदि जलवायुपरिवर्तन होने को मान भी लिया जाए तो ये घटनाएँ तो प्राकृतिक हैं और हर युग में घटित होती रही हैं | इनमें ऐसा नया क्या होता है जिस कारण ऐसी घटनाओं को जलवायु परिवर्तन जनित मानना वैज्ञानिकों की मज़बूरी हो |
जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक है या मनुष्यकृत !यदि प्राकृतिक है तो मनुष्यकृत प्रयासों से इसे रोका कैसे जा सकता है और यदि मनुष्यकृत है तो उससे प्राकृतिक घटनाओं का संबंध तथा कथित जलवायु परिवर्तन से कैसे जोड़ा जा सकता है | प्राकृतिक घटनाओं का प्रभाव मनुष्यजीवन पर तो पड़ ही सकता है किंतु मनुष्यकृत लौकिक प्रयासों से प्रकृति को कैसे प्रभावित किया जा सकता है |
जलवायु परिवर्तन को यदि तर्कसंगत ढंग से स्थापित करना है तो वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा यह पता किया जाना आवश्यक हो जाता है कि मनुष्यकृत किस प्रकार के आचरणों से किस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ घटित होने की संभावना रहती है | समस्त भूमंडल को उस उस प्रकार के आचरणों में वर्गीकृत किया जाए उसके बाद यह देखा जाए कि मनुष्यों के उस उस प्रकार के आचरणों के प्रभाव से उन उन क्षेत्रों में क्या उस उस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ अन्य स्थानों अपेक्षा अधिक घटित होती हैं |
ऐसा किया जाना इसलिए आवश्यक है कि जलवायु परिवर्तन होने के लिए जिन मनुष्यकृत कार्यों को जिम्मेदार बताया जा रहा है वे कारण जब बिल्कुल नहीं थे | जिस समय धुवाँ फेंकने वाले उद्योग नहीं थे ऐसे वाहन नहीं थे भूकंप आँधी तूफान चक्रवात बज्रपात सूखा वर्षा बाढ़ तथा तापमान केअस्वाभाविक रूप से बढ़ने घटने जैसी घटनाएँ तो तब भी घटित हुआ करती थीं महामारियाँ तब भी घटित होती थीं | उस समय जलवायु परिवर्तन होने का कारण क्या था |
इसके अतिरिक्त सबसे बड़ी सोचने की बात यह भी है कि जलवायु परिवर्तन जनित घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है या नहीं | यदि लगाया जा सकता है तो भूकंप आँधी तूफान चक्रवात बज्रपात सूखा वर्षा बाढ़ तथा तापमान के अस्वाभाविक रूप से बढ़ने घटने के विषय में पूर्वानुमान लगाना अभी तक संभव क्यों नहीं हो पा रहा है और यदि संभव नहीं हैं तो ऐसे विषयों में बार बार पूर्वानुमान बताए क्यों जाते हैं जिनके सही होने की संभावना बिल्कुल नहीं होती है |
जलवायु परिवर्तन के बारे में पूर्वानुमान लगाने की अभी तक कोई वैज्ञानिक विधा विकसित ही नहीं की जा सकी है|ऐसी परिस्थिति में जलवायु परिवर्तन के संभावित प्रभावों के विषय में यह बताने का तर्कपूर्ण वैज्ञानिक आधार क्या है | यदि ऐसी आशंकाओं का कोई आधार ही नहीं है तो भविष्य को लेकर बताई जाने वाली ऐसी बातों को निराधार अफवाहों की श्रेणीं रखकर इनसे दूर रहने का ही प्रयत्न क्यों न किया जाए | अनुसंधानों के नाम पर ऐसा निराधार भविष्य भाषण जिससे मन में भय उत्पन्न होता हो उस पर अंकुश क्यों नहीं लगाया जाना चाहिए !यदि ऐसा नहीं भी हो तो भी भविष्य के लिए ऐसी भयप्रद बातों का बोला जाना जनहित में कैसे कहा जा सकता है |
जलवायु परिवर्तन को सही सिद्ध करने के लिए दिए जाने वाले तर्क पर्याप्त नहीं हैं !
किसी वर्ष भूकंप आँधी तूफान चक्रवात बज्रपात सूखा वर्षा बाढ़ तथा तापमान के अस्वाभाविक रूप से बढ़ने घटने का कारण जलवायु परिवर्तन को मान लिया जाना विज्ञान भावना के अनुरूप नहीं है | ये तो स्वाभाविक ही है कि प्रकृति हमेंशा नापतौल कर न कुछ देती है और न ही कुछ करती है | इसीलिए ऐसी प्राकृतिक घटनाएँ किसी वर्ष बहुत अधिक मात्रा में घटित होती हैं और किसी वर्ष बहुत कम !इसी प्रकार से यह भी कहा जाना उचित नहीं है कि किसी स्थान पर बहुत अधिक घटित होती हैं और किसी स्थान पर बहुत कम !प्रकृति इसके लिए स्वतंत्र व्यवहार करती है | प्राकृतिक घटनाओं में असंतुलन तो हमेंशा ही देखने को मिलता रहा है |ये कोई नहरों में छोड़े जाने वाले पानी की तरह परतंत्र नहीं होती हैं कि जब जहाँ जितना चाहो घटा बढ़ा लो |
समानता एवं समता विहीन परिस्थितियों का कारण यदि जलवायु परिवर्तन को मान लिया गया तो मौसम वैज्ञानिकों की ही तरह सरकार के अन्य विभागों में भी काम करने के प्रति जिम्मेदारियाँ समाप्त होते चली जाएँगी !मौसमविज्ञान की तरह ही उन विभागों में भी काम होने न होने एवं काम बनने बिगड़ने के लिए वे भी अपना अपना जलवायु परिवर्तन तैयार कर लेंगे | इसी प्रकार से समाज एवं जीवन में भी लोग अपनी अपनी सुविधानुशार अपनी जिम्मेदारी न निभा पाने पर या उसमें गलती हो जाने पर वे भी परिस्थितियों की असमानता को सामने खड़ा करके वे भी अपने अपने दायित्वों से संबंधित जलवायुपरिवर्तन का लाभ लेने लगेंगे | कुल मिलाकर सभी क्षेत्रों में जिम्मेदारियाँ एवं जवाबदेही समाप्त होती चली जाएगी |
प्रकृति एवं मौसम वैज्ञानिकों का यह पवित्र कर्तव्य बनता है कि वे यह स्पष्ट करें कि मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में वे पूर्वानुमान लगा सकते हैं या नहीं !यदि लगा सकते हैं और उन्हें विश्वास है कि वे ऐसा करने में सक्षम हैं तभी उन्हें इस काम में लगना चाहिए अन्यथा पूर्वानुमान लगाने वाले प्रकरण से दूर ही रहना चाहिए | ये तीर तुक्का विज्ञान ठीक नहीं है कि किसी भी प्राकृतिक घटना के विषय में पहले कोई भी भविष्यवाणी कर दी जाए और बाद में जब वह गलत निकल जाए तो उसके गलत होने का कारण जलवायुपरिवर्तन को बता दिया जाए !
मेरे बिचार से जो भी प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती हैं जनता उसके विषय में यही जानना चाहती है कि इसका अनुमान पूर्वानुमान आदि क्या है | जनता आखिर यह कैसे पता लगाए कि किस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ जलवायुपरिवर्तन जनित मानी जाएँगी और किस प्रकार की नहीं मानी जाएँगी | जो जलवायु परिवर्तन जनित नहीं होंगी वैज्ञानिक लोग केवल उन्हीं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि बता पाएँगे | अन्य प्रकार की घटनाओं के लिए जनता अपने वैज्ञानिकों से आशा ही नहीं करेगी | घटनाओं के घटित होने के बाद पीड़ितों के पीड़ित हो जाने के बाद वैज्ञानिकों के द्वारा ऐसी घटनाओं को जलवायु परिवर्तन जनित बताना उचित नहीं है |
वस्तुतः यह जलवायुपरिवर्तन न होकर अपितु जिम्मेदारियों से बचने की कला मात्र है |यह सोचने वाली बात है कि पूर्वानुमान लगाने के लिए जब कोई विज्ञान ही नहीं है तब भूकंप आँधी तूफान चक्रवात बज्रपात सूखा वर्षा बाढ़ तथा तापमान आदि के अस्वाभाविक रूप से बढ़ने घटने के विषय में पूर्वानुमान लगाया कैसे जा सकता है |
जलवायुपरिवर्तन की अवधारणा कितनी सही कितनी गलत !
भूकंप एवं महामारी की तरह ही जलवायु परिवर्तन क्या है इसके लक्षण क्या हैं इसके नियम क्या क्या हैं | इसके पैदा होने का क्या कोई निश्चित समय है या कभी भी पैदा हो जाता है ! इसके पैदा होने का यदि कोई निश्चित समय है तो क्या ? इसके पैदा होने का कारण मनुष्यकृत है या प्राकृतिक !यदि प्राकृतिक है तो उसके लक्षण क्या हैं प्रकृति में किस किस प्रकार के लक्षण प्रकट होने से ये पता लगता है कि अब जलवायु परिवर्तन होने वाला है|या हो रहा है और यदि जलवायु परिवर्तन होने का कारण मनुष्यकृत है तो मनुष्य के किन किन आचरणों के प्रभाव से ऐसी घटनाएँ घटित होती हैं |
कुछ क्षेत्रों में अधिक वर्षा होने या कुछ क्षेत्रों में सूखा पड़ने जैसी घटनाएँ हमेंशा से घटित होती रही हैं | बार बार भूकंप आने ,आँधी तूफ़ान आने ,उल्कापात एवं बज्रपात होने जैसी घटनाएँ भी हर युग में घटित होती रही हैं | कुछ वर्षों में कुछ कम तो कुछ वर्षों में कुछ अधिक घटित होती रही हैं |बादलों के फटने एवं ग्लेशियरों के बनने पिघलने जैसी घटनाएँ भी हमेंशा से ही घटित होती रही हैं | वायु प्रदूषण एवं तापमान का बढ़ना घटना हर युग में समय समय पर होता रहता है |
ऐसी सभी घटनाएँ उस कालखंड में भी घटित होते देखी जाती रही हैं जब उद्योग धंधों से निकलने वाले वायु प्रदूषण की मात्रा इतनी अधिक नहीं थी !उस समय ऐसी मशीनें नहीं थीं | धुआँ फेंकने वाले वाहन एवं ईंट भट्ठे नहीं थे | वर्तमान समय में जिस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती हैं वही घटनाएँ उस अति प्राचीन काल में घटित होती रही हैं जब आधुनिक विज्ञान का दूर दूर तक कहीं नाम निशान भी नहीं था |
प्रकृति का स्वभाव भी मनुष्यों की तरह ही है जिस प्रकार से मनुष्य को कभी कभी क्रोध आता है उसी प्रकार से प्रकृति को भी क्रोध आता है | उसी के परिणाम स्वरूप प्राकृतिक आपदाएँ घटित होती हैं | मनुष्य के स्वभाव से परिचित होने के कारण ही तो हम मनुष्य का क्रोध प्रकट होने से पहले ही उसके हाव भाव मुखाकृति आदि को देख कर समझ लेते हैं कि इसे क्रोध आ रहा है इसीप्रकार से प्रकृति के स्वभाव और स्वरूप से यदि हम परिचित होते तो प्रकृति के क्रोध करने से पहले ही हम पहचान सकते थे कि अब प्रकृति को क्रोध आ रहा है | इसलिए कुछ प्राकृतिक घटनाएँ घटित हो सकती हैं | मनुष्य के स्वभाव और स्वरूप से यदि हम परिचित न होते तो मनुष्य के क्रोध के विषय में भी मुझे पहले से पता न लग पाता और जब उसे क्रोध आ जाता और वह क्रोधावेश में तरह तरह के उपद्रव करने लगता तो उसे देखकर भी मुझे मनुष्य के विषय में जलवायु परिवर्तन का भ्रम होनेलगता |
कुल मिलाकर जलवायु परिवर्तन हो रहा या नहीं हो रहा है | यह तो जलवायु एवं मौसम के विषय मेंअध्ययन या अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिक ही जानें |समाज तो केवल इतना समझता है कि सभी वैज्ञानिक या सरकारों के विभाग यदि अपने अपने हिस्से की संपूर्ण जिम्मेदारी स्वयं उठाते हैं और हर परिस्थिति का सामना स्वयं करते हुए समाज की अपेक्षाओं पर खरा उतरने का हर संभव प्रयत्न करते हैं |परिस्थितियाँ तो हर जगह हर क्षेत्र में बनती बिगड़ती रहती हैं फिर भी कर्तव्यनिष्ठ चिकित्सक चिकित्सा की सैनिक सुरक्षा की स्वयं संपूर्ण जिम्मेदारी निभाते देखे जाते हैं |उसमें उन्हें किन किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है ये जनता को बताना इसलिए आवश्यक नहीं समझते हैं क्योंकि जब जनता ने उन्हें ऐसा करने की जिम्मेदारी सौंपी थी तभी उन्हें ऐसी संभावित कठिनाइयों के विषय में सोच बिचार कर लेना चाहिए था | मौसम विज्ञान भूकंप विज्ञान पर्यावरण विज्ञान महामारी विज्ञान जैसे विषयों से संबंधित वैज्ञानिकोंका भी यही कर्तव्य बनता है | जलवायु परिवर्तन जैसी कोई घटना यदि घटित भी हो रही है तो उसके लिए समाज क्या करे उसके विषय में भी रास्ता तो उन्हें ही खोजना होगा अन्यथा वे वैज्ञानिक किस बात के और जिसमें वैज्ञानिकता ही न हो वह विज्ञान कैसा !मौसम विज्ञान भूकंप विज्ञान पर्यावरण विज्ञान महामारी विज्ञान जैसे विषयों विज्ञान के द्वारा कितना समझा जा सका है इसकी वैज्ञानिकता प्रमाणित होनी अभी तक बाक़ी है |मेरा विश्वास है कि वैज्ञानिकता प्रमाणित होते ही प्राकृतिक घटनाओं की सच्चाई सामने आ जाएगी और जलवायु परिवर्तन होने का भ्रम स्वतः समाप्त हो जाएगा |
मौसम संबंधी अनुसंधानों की भी जवाबदेही सुनिश्चित की जाए !
टैक्स रूप में प्राप्त जनता के खून पसीने की कमाई से प्राप्त धनराशि को सरकारें जिन जिन क्षेत्रों में खर्चकिया करती हैं उन उन क्षेत्रों से ये अपेक्षा होती ही है कि वे अपनी अपनी जिम्मेदारी एवं जवाबदेही का सम्यक रूप से निर्वहन करें !सरकारें ऐसा करने करवाने का प्रयत्न भी किया करती हैं |
इसी प्रकार की सतर्कता प्रकृति संबंधी अनुसंधानों में भी बरती जानी चाहिए और वहाँ भी जवाबदेही सुनिश्चित होनी चाहिए | जो मौसम संबंधी पूर्वानुमानों में या उनके कारण खोजने में नहीं दिखाई पड़ती है | महामारी के विषय में भी यही हुआ है जिसकी कीमत जनता को जान देकर चुकानी पड़ी है|हमेंशा चलाए जाने वाले वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा जनता को महामारी के विषय में पहले से कुछ भी बताया ही नहीं जा सका है और जो जो कुछ बताया भी गया है वो सही नहीं निकला है | ऐसा होने के बाद भी दूसरी भविष्यवाणी कर दी जाती रही है | उसके भी गलत निकल जाने के बाद तीसरी भविष्यवाणी कर दी जाती रही है | वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी के विषय में लगाए जाते रहे सभी अनुमान पूर्वानुमान आदि ध्वस्त होते रहे | इनका कारण भी जलवायु परिवर्तन बताने के बजाए महामारी का स्वरूप परिवर्तन बता दिया गया | कुल मिलाकर जलवायु परिवर्तन की सुविधा यदि वैज्ञानिकों को दी जाती है तो सभी चाहते हैं कि ऐसी सुविधाका लाभ हमें भी मिले |
बिचार करने का विषय है कि जो सैनिक देश की सीमाओं पर तैनात किए जाते हैं | युद्ध के मैदान में पल पल पर परिस्थितियाँ बदलती देखी जाती हैं उन्हें प्रत्येक परिस्थिति को समझ बूझकर स्वयं ही तुरंत निर्णय लेना होता है |ऐसी परिस्थिति में यदि थोड़ी भी चूक हो जाए तो उसकी कीमत उन्हें जान देकर चुकानी पड़ती है | वे यह कहकर नहीं बच सकते कि पहले इस प्रकार से युद्ध लड़े जाते थे किंतु अबकी बार शत्रु ने उस प्रकार से नहीं अचानक दूसरी प्रकार से रणनीति बदलकर युद्ध लड़ना प्रारंभ कर दिया !इसलिए हम पराजित हुए | पराजित सैनिक के द्वारा दिए जाने वाले इस प्रकार के तर्कों को कौन स्वीकार कर लेगा |
कोई भी देश अपनी सीमा पर या युद्ध क्षेत्र में ऐसे कुशल सैनिक तैनात करता है जो शत्रु की प्रत्येक चाल समझने में सक्षम हों एवं शत्रु के द्वारा रची जाने वाली भ्रमित करने की प्रत्येक चाल को समझते हुए उसी समय उसी परिस्थिति में तुरंत निर्णय लेते हुए शत्रु को पराजित करने में सक्षम हों यही तो उनकी कुशलता है |उनकी इसी विशेषज्ञता पर विश्वास करके ही तो उन्हें इतना बड़ा दायित्व दिया जाता है | जिस पर प्रत्येक सैनिक को हर हाल में खरा उतरना ही होता है |
टैक्स रूप में सरकारों को प्राप्त जनता के द्वारा दी गई धनराशि सरकारें यदि सैनिकों पर खर्च करती हैं तो वहाँ इतनी बड़ी जिम्मेदारी का निर्वाह किया जा रहा होता है अन्य जिन जिन क्षेत्रों में खर्चकिया करती हैं उन उन क्षेत्रों से भी यही अपेक्षा होती है कि वे अपनी अपनी जिम्मेदारी एवं जवाबदेही का सम्यक रूप से निर्वहन करें !सरकारें ऐसा करने करवाने का प्रयत्न भी किया करती हैं |यही धन तो मौसम विज्ञान संबंधी अनुसंधानों पर भी खर्च होता है वहाँ इस प्रकार की जिम्मेदारी जवाबदेही आदि क्यों नहीं दिखती है | जलवायुपरिवर्तन के नाम पर सभी प्रकार की जिम्मेदारियों से बच जाया जाता है |
जलवायु परिवर्तन को समझने का विज्ञान कहाँ है ?
आधुनिक विज्ञान की सबसे बड़ी समस्या यही है कि प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने का कोई विज्ञान नहीं है | आखिर जलवायु परिवर्तित होते हुए किसने देखा है इसके साथ ही वह विज्ञान कहाँ है जिसके द्वारा जलवायु परिवर्तन होने का अनुभव किया जाता है | बिना किसी तर्क संगत वैज्ञानिक अनुसंधान के इस निष्कर्ष पर कैसे पहुँचा गया कि जलवायुपरिवर्तन हो रहा है |अभी भी समय है इसकी सच्चाई तक पहुँचा जाना चाहिए और प्रयत्न पूर्वक जलवायु परिवर्तन की अवधारणा का व्यूह भेदन करना चाहिए | यह वैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए चुनौती है जिसे स्वीकार किए बिना वैज्ञानिक अनुसंधानों की सार्थकता सिद्ध होना असंभव है | मौसम संबंधी प्राकृतिक कारणों से यदि जनधन की हानि होती ही रहती है तो ऐसे अनुसंधानों के होने और न होने की आवश्यकता ही क्या रह जाएगी |
आधुनिक विज्ञान को पैदा हुए ही अभी कुछ सौ वर्ष हुए हैं इतने कम समय में हजारों लाखों वर्षों के प्राकृतिक क्रम को समझ पाना कैसे संभव है | प्रकृति में सबकुछ एक जैसा तो कभी होता नहीं है उदाहरण स्वरूप किसी एक वर्ष को सामने रखकर सोचा जाए तो कभी सर्दियाँ आती हैं उस समय तापमान बहुत अधिक गिर जाता है तो कभी गर्मियाँ आती हैं उस समय तापमान बहुत अधिक बढ़ जाता है|नदियाँ तालाब आदि सूख जाते हैं तो वही सब वर्षा ऋतु में पुनः भर जाते हैं | ऐसे ही सर्दी गर्मी जैसी ऋतुओं में भी कभी कभी वर्षा होते देखी जाती है |
इसीप्रकार से प्रत्येक दिन एक जैसा नहीं होता है दिन में प्रकाश और रात्रि में अँधेला होता है दिन में तापमान अधिक एवं रात्रि में तापमान कम होता है | दोपहर की अपेक्षा सुबह शाम में तापमान कम होता है | कई बार दोपहर में वर्षा होने लगती है इसलिए तापमान अधिक गिर जाता है | कई बार भीषण ग्रीष्म(गर्मी)ऋतु में भी आकाश में बादल छा जाते हैं और घनघोर अँधेरा हो जाता है ओले गिरने लगते हैं |
इसलिए ऐसा भी संभव हो सकता है कि जिस प्रकार से प्रत्येक वर्ष में और प्रत्येक दिन में भिन्न भिन्न प्रकार के प्राकृतिक परिवर्तन होते देखे जाते हैं | उसी प्रकार से जलवायुपरिवर्तन जैसी घटना भी किसी बड़े कालखंड में घटित होने वाले बदलावों हों | जो आकस्मिक न होकर अपितु प्रकृति कर्म में सम्मिलित हो और उसी क्रम के अनुसार ही घटित हो रही हो | जिन्हें हम अपने अज्ञान के कारण समझ ही नहीं पा रहे हों | प्रकृति के स्वभाव को समझने लायक हमारे पास कोई सक्षम विज्ञान ही नहीं है |
अभी सौ दो सौ वर्ष पुराने मौसम विज्ञान संबंधी वैज्ञानिक अनुसंधान इतने लंबे कालखंड के परिवर्तनों को समझने में कैसे सफल हो सकते हैं | जो अभी तक मौसम को ही नहीं समझ सके हैं | जो दो चार दिन पहले की मौसम संबंधी घटनाओं का सही सही पूर्वानुमान नहीं लगा सकते हैं उनके द्वारा जलवायुपरिवर्तन जनित घटनाओं के विषय में अफवाहें फैलाई जा रही हैं कि जलवायुपरिवर्तन के कारण आज के सौ दो सौ वर्ष बाद इस इस प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ घटित होंगी |
ऐसे लोगों को यह स्पष्ट करना चाहिए कि मौसम संबंधी अनुसंधान कर्ताओं के पास बाईट सौ दो सौ वर्षों का मौसम संबंधी डेटा ही संग्रहीत नहीं है जिसके आधार पर कुछ सौ वर्ष अध्ययन अनुसंधान आदि करके इस निश्चय पर पहुँचा गया हो कि जलवायुपरिवर्तन हो रहा है | इसके बाद सौ दो सौ वर्षों तक उसका परीक्षण किया गया हो जो हमारा अनुमान है वो कितना सही घटित हो रहा है | यदि उस परीक्षण में ऐसे कोई प्रमाण मिलते तो उन्हें सामने रखकर यह कहना उचित होता कि वास्तव में जलवायुपरिवर्तन हो रहा है |
मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान न लगा पाने या उनके द्वारा लगाए गए पूर्वानुमान के गलत हो जाने मात्र से यह समझ लेना कि जलवायुपरिवर्तन हो रहा है |यह अवैज्ञानिक तर्कहीन है | इसकी पुष्टि के लिए पर्याप्त प्रमाणों का अभाव होने से यह विश्वास करने योग्य कैसे हो सकता है |
ऐसी परिस्थिति में जब प्रकृति में कुछ स्थिर है ही नहीं हर जगह हर परिस्थिति में बदलाव होते देखे जाते हैं | जब सब कुछ अस्थिर है तो हम प्रकृति से ऐसी अपेक्षा क्यों रखते हैं कि प्राकृतिक सभी घटनाएँ प्रत्येक वर्ष में प्रत्येक स्थान पर एक जैसी एवं संतुलित मात्रा में घटित हों | यदि ऐसा नहीं होता है तो हम जलवायुपरिवर्तन कहने लगते हैं |जिसे जलवायुपरिवर्तन कहा जाने लगा है उनके निश्चित लक्षण उन्हें भी नहीं पता हैं जो जलवायुपरिवर्तन का विलाप कर रहे हैं |
मौसम पूर्वानुमान गलत निकलने का कारण जलवायु परिवर्तन बताना ठीक नहीं !
जलवायु परिवर्तन प्रकृति के स्वभाव को न समझने के कारण पैदा हुआ भ्रम मात्र है | इसके कुछ उदाहरण प्रस्तुत करता हूँ |
मैं भारत के प्राचीन गणित विज्ञान के आधार पर पिछले लगभग तीस वर्षों से मौसम एवं महामारी जैसे विषयों में अनुसंधान कार्य करता आ रहा हूँ |जो लगभग सत्तर अस्सी प्रतिशत तक सही निकलते देखे जाते रहे हैं | लोगों ने प्रेरित किया कि मुझे मौसम विज्ञान विभाग में संपर्क करना चाहिए !यह देखते हुए मेरे निवेदन पर भारत सरकार के एक मंत्री जी के निजी सहायक ने मेरी मुलाक़ात मौसम विभाग के निदेशक श्रीमान के जे रमेश जी से मई 2018 में करवाई | निदेशक साहब ने हमारे द्वारा पहले लगाए गए मौसम पूर्वानुमान देखे और कहा कि अब आप कोई भी महीना प्रारंभ होने से पहले अगले महीने के विषय में मौसम पूर्वानुमान लिखकर हमारी मेल पर भेजा करो !यदि सही निकले तो मैं इनको सम्मिलित करने के विषय में बिचार करूँगा | उनकी बात पर विश्वास करते हुए मैंने मई महीने के अंत में जून 2018 के विषय में मौसम पूर्वानुमान भेजे जो सही निकले | इसके लिए उन्होंने फोन पर प्रशंसा भी की | इसके बाद जून महीने के अंत में जुलाई 2018 के विषय में मौसम पूर्वानुमान उन्हें भेजे वे भी सही निकले | इसके बाद 29 जुलाई को अगस्त 2018 के विषय में उन्हें मौसम पूर्वानुमान उनकी मेल पर भेजे जिसमें 1 से 11 अगस्त में दक्षिण पूर्वी भारत में भीषण बारिश होने की भविष्यवाणी की गई है | आप स्वयं देखिए -
"अगस्त के संपूर्ण महीने में अत्यंत अधिक वर्षा होगी | जिसमें 1 से 11 अगस्त तक ही वर्षा की मात्रा इतनी अधिक होगी कि पिछले कुछ दशकों में इतनी अधिक वर्षा न हुई हो | केवल भारत ही नहीं अपितु विश्व के अनेकों देश वर्षा के इस विशाल वेग को सँभाल पाने में असमर्थ होंगे | बचाव के लिए सरकारों के द्वारा किए जाने वाले अधिकतम प्रयास भी इन दिनों में होने वाली वर्षा के प्रचंड वेग में होने वाली जनधन की हानि को रोक पाने में असफल रहेंगे
को सँभाल पाने में असमर्थ होंगे | वर्षा का स्वरूप इतना अधिक डरावना होगा ! वर्षा का अधिकतम प्रभाव दक्षिण पूर्वी देशों प्रदेशों में होगा | |"
समाचार :"2018 में केरल में असामान्य रूप से भारी बारिश हुई, जिसके कारण विनाशकारी बाढ़ आई, जिसमें आजीविकाओं और संपत्ति की छोड़िये, लगभग 500 लोगों की जान चली गई। यह सदी की सबसे भीषण बाढ़ बन गई, क्योंकि 1924 से इतनी भारी बाढ़ दर्ज नहीं की गई थी।"
विशेष बात यह है कि इसी समय के विषय में 3 अगस्त 2018 को भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने अपना पूर्वानुमान प्रस्तुत करते हुए अगस्त सितंबर में सामान्य वर्षा की भविष्यवाणी की थी !जो गलत निकली |
जिसके विषय में उन्हीं निदेशक महोदय ने एक प्रेस वार्ता में कहा था कि जलवायु परिवर्तन के कारण अप्रत्याशित बारिश हुई थी | इसलिए पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था |
विशेष बात यह है कि मैंने जो पूर्वानुमान लगाया वह सही निकला इसका मतलब यह अधिक वर्षा अचानक नहीं हुई अपितु प्रकृति के सुनियोजित कर्म के अनुशार ही हुई थी किंतु मौसम विज्ञान विभाग के द्वारा लगाया गया पूर्वानुमान यदि गलत हो गया तो यह उनकी गलती थी न की जलवायु परिवर्तन !
पूर्वानुमानों के अभाव में आपदा प्रबंधनों के लिए बचाव करना संभव नहीं है !
वस्तुतः आपदा प्रबंधनों का उद्देश्य आगे से आगे आपदाओं की संभावनाओं को पहचानना एवं उससे जन धन हानि को कम से कम होने देना होता है| प्रभावी आपदाप्रबंधनों के लिए आवश्यक होता है कि उन्हें संभावित प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान उपलब्ध करवाए जाएँ ताकि वे बचाव कार्यों के लिए आवश्यक तैयारियाँ आगे से आगे करके रख सकें |
घटना घटित होते ही उनमें जो नफा नुकसान होना होता है वो तो हो ही चुका होता है उसके बाद तो घायलों को अस्पताल पहुँचाने एवं शवों को निकालने के अलावा और कोई कार्य बचता ही नहीं है |ये कार्य तो घटना घटित होने के समय ही आस पास उपस्थित जनता स्वयं भी करने लगती है | कई बार ऐसी घटनाएँ घटित होते देखी और सुनी जाती हैं जहाँ घटना घटित होने के तुरंत बाद आसपास के लोग ही लग कर वो काम कर दिया करते हैं जिनके लिए आपदा प्रबंधनों की आवश्यकता होती है |
ऐसी परिस्थिति में आपदा प्रबंधनों का जनहित में सही सही उपयोग करने के लिए ऐसी संभावित घटनाओं के विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगाकर आपदा प्रबंधनों को समय से उपलब्ध कराना होता है |
प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने वाले वैज्ञानिक यदि नहीं हैं तो आपदा प्रबंधनों की जनहित में ऐसी विशेष उपयोगिता ही आखिर क्या बचती है | कोई विज्ञान नहीं है जिसके आधार
पूर्वानुमान लगाने या भविष्यवाणी करने के लिए कोई विज्ञान ही नहीं है !
आधुनिक विज्ञान का मानना है -"पूर्वानुमान अतीत और वर्तमान के आंकड़ों के आधार पर रुझानों के विश्लेषण के आधार पर भविष्यवाणियाँ करने की प्रक्रिया है।"
जिस प्रकार से किसी नहर में छोड़े गए पानी या किसी नहीं में आई बाढ़ के पानी को देखकर यह अंदाजा लगाया जाता है कि ये पानी कब किस शहर में पहुँच सकता है उसी प्रकार से कहीं घटित हो रही प्राकृतिक घटनाओं को उपग्रहों रडारों से देखकर अंदाजा लगा लिया जाता है कि इसके बाद ये घटनाएँ किधर को अपना रुख कर सकती हैं | इसके अतिरिक्त ऐसा कोई विज्ञान नहीं है जिसके द्वारा प्राकृतिक घटनाओं को समझना संभव हो |
आश्चर्य की बात यह है कि प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाना जिस विज्ञान के द्वारा संभव हो यदि अभी तक ऐसा कोई विज्ञान ही नहीं खोजा जा सका है तो ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने या भविष्यवाणी करने की खाना पूर्ति उनके द्वारा आखिर की क्यों जाती है |उनकी भविष्यवाणियोंके आधार आखिर क्या हैं और उनमें तर्कसंगत वैज्ञानिकता कितनी है और वे सच कितने होते हैं |
किसानों ने हजारों वर्ष पहले यह खोज लिया था कि जितनी उँचाई से देखा जाता है उतनी दूर तक के दृश्य दिखाई पड़ते हैं | इसीलिए गाँवों में मक्का आदि के खेतों में चुपचाप घुस कर कौवे शुक आदि नुक्सान किया करते हैं मक्का के पौधे बड़े होते हैं इसलिए उसमें बैठे पक्षी दिखाई नहीं देते उनसे बचाव के लिए किसान लोग खेतों में मचान बनाकर बैठते हैं जिससे पक्षी दूर से दिखाई पड़ने लगते हैं | किसान उन्हें देखकर आसानी से भगा देते हैं |
इसी प्रकार का वैज्ञानिकों के द्वारा अपनायी जाने वाली पद्धति है जिसके द्वारा अत्यंत उँचाई से बादलों आँधी तूफानों चक्रवातों आदि को देख लिया जाता है उनकी गति दिशा आदि के विषय में पता कर लिया जाता है कि ये किस दिशा में कितनी गति से बढ़ रहे हैं |उसी के अनुशार अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये बादल आँधी तूफान चक्रवात आदि कितने दिनों में किस देश या प्रदेश में पहुँच सकेंगे !उसी के अनुशार वर्षा आँधी तूफान आदि के विषय में भविष्यवाणी कर दी जाती हैं | यदि हवाओं में अचानक कोई बदलाव नहीं हुए तो कई बार ये अंदाजे सही भी निकल जाते हैं यदि हवाओं का रुख बदलते ही ये अंदाजे बदल जाते हैं | वैज्ञानिकों के द्वारा मौसम विज्ञान के नाम पर ऐसे ही लगाए गए तीर तुक्के गलत अक्सर निकलते देखे जाते हैं |
कुलमिलाकर वे उड़ते हुए बादल तथा आँधी तूफ़ान आदि घटनाएँ जिन हवाओं के आधीन होती हैं उन हवाओं का रुख कब किधर को बदल जाएगा इसके विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं है |इसके बिना वर्षा एवं आँधी तूफ़ान आदि घटनाओं के विषय में की जाने वाली कुछ भविष्यवाणियाँ यदि सही भी हो जाएँ तो भी इन पर भरोसा इसलिए नहीं किया जा सकता क्योंकि इनका आधार कोई तर्कसंगत विज्ञान नहीं है |ऐसी भविष्यवाणियों का आधार गणित विज्ञान भी नहीं है | जिन पूर्वानुमानों का कोई आधार ही नहीं है वे सही या गलत कुछ भी निकल सकते हैं |
वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए ऐसे अंदाजे यदि कभी कदाचित यदि सही निकल भी जाएँ तो भी विश्वसनीय न होने के कारण उनको आधार बनाकर कृषिकार्य या व्यापार संबंधी भविष्य की योजनाएँ नहीं बनाई जा सकती हैं |
आकाश में बिचरते बादल तथा आँधी तूफ़ान आदि घटनाएँ दो चार दिन तक ही आकाश में ठहरती हैं इसलिए उपग्रहों रडारों की मदद से इन्हें देखा भी दो चार दिन पहले ही जा सकता है उनका भी कहीं आना जाना उन हवाओं के आधीन होता है जिनके विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव ही नहीं है | इसलिए ऐसी घटनाओं के विषय में दो चार दिन पहले लगाया गया अंदाजा भी सही होगा ही यह विश्वास पूर्वक नहीं कहा जा सकता है | वैसे भी इस प्रक्रिया में विज्ञान जैसा कुछ भी नहीं है | यह तो एक जुगाड़ मात्र है |
इसके अतिरिक्त मौसम विज्ञान नाम का कोई विज्ञान नहीं है जो ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने में सहायक सिद्ध हो सके | वैज्ञानिकों के द्वारा जो मध्यावधि या दीर्घावधि मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ की जाती हैं वे उनका न तो कोई तर्कसंगत वैज्ञानिक आधार होता है और न ही गणितीय आधार होता है और उपग्रहों रडारों से उतने दिन पहले की घटनाएँ दिखाई पड़ना भी संभव नहीं हैं |
अलनीनो लानिना जैसी समुद्री घटनाओं का संबंध जो मौसम के साथ जोड़ा जा रहा है वो कल्पना मात्र है | उसके आधार पर की गई कोई भी भविष्यवाणी सही नहीं निकल सकी है | यही कारण है कि वैज्ञानिकों के द्वारा मानसून आने और जाने की तारीखों के विषय में आजतक जो भी भविष्यवाणियाँ की भी गई हैं वे प्रायः गलत निकलती रही हैं |
भूकंप एवं महामारी के विषय में भविष्यवाणी क्यों नहीं की जा सकती है ?
वस्तुतः आधुनिक वैज्ञानिकों के पास पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई विज्ञान नहीं है !वैज्ञानिकों के पास पूर्वानुमान लगाने के लिए जो उपग्रहों रडारों की सुविधा है जिससे बादल आँधी तूफ़ान एक दो दिन पहले दिख भी जाते हैं इसलिए उन विषयों में भविष्य को लेकर कुछ तीर तुक्के लगा लिए जाते हैं |
भूकंप या महामारी जैसी घटनाओं को उपग्रहों रडारों की मदद से न देखा जा सकता है और न ही अनुभव करना संभव है | इसलिए ऐसी घटनाओं के विषय में वैज्ञानिकों ने बहुत पहले से हाथ खड़े कर रखे हैं कि इनके विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है |
भूकंपों के घटित होने के कारण पता करने के लिए जो भी वैज्ञानिक विधा अपनाई जाती हो किंतु उसके आधार भूकंपों के विषय में लगाए गए से पूर्वानुमान तो सही नहीं घटित हुए | ऐसा हुए बिना वैज्ञानिकों की इस कहानी को स्वीकार करना उचित नहीं होगा कि पृथ्वी के अंदर लावा पर तैरती प्लेटों के आपस में टकराने से भूकंप आते हैं अथवा भूमिगत गैसों के दबाव के कारण भूकंप आते हैं |
ऐसी घटनाओं को न देखा जाना संभव है और न ही किसी अन्य अनुसंधान विधा से इनकी प्रमाणिकता का परीक्षण ही हो सकता है |अभी तक यह एक कल्पना मात्र है जो उन भूकंप वैज्ञानिकों के द्वारा की गई है जिनके द्वारा भूकंपों के विषय में अभी तक कोई ऐसी खोज नहीं की जा सकी है जिसके द्वारा उनकी भूकंपवैज्ञानिकता का प्रामाणिक परीक्षण किया जा सके |
कोरोना जैसी महामारियों को समझने के लिए अभी तक कोई ऐसा विज्ञान ही नहीं है जिसके द्वारा यह समझा जा सके महामारी के आने की संभावना कब है और जाएगी कब ! महामारी की लहरें कितनी आएँगी !कौन लहर कितने दिन रुकेगी !महामारी के आने का कारण प्राकृतिक है या मनुष्यकृत !इसके समाप्त होने के लिए वैक्सीन लगाने जैसा कोई मनुष्यकृत प्रयत्न करना होगा या ये अपने से ही समाप्त होगी | इसी प्रकार से महामारी की लहरें बार बार आने और जाने के लिए कोई मनुष्यकृत कार्य जिम्मेदार है या फिर उनका आना जाना प्राकृतिक ही है | ऐसी लहरों का आना मनुष्यकृत किसी प्रयास से रोका जा सकता है क्या ? कोरोना महामारी का विस्तार कितना है प्रसार माध्यम क्या है इसमें अंतर्गम्यता कितनी है !महामारी पर मौसम ,वायु प्रदूषण एवं तापमान के बढ़ने घटने का कितना प्रभाव पड़ता है या नहीं पड़ता है|महामारी या उसकी लहरों के आने के विषय में कोई पूर्वानुमान लगाया जा सकता है या नहीं !
इस प्रकार के अत्यंत आवश्यक प्रश्नों के उत्तर जो महामारी वैज्ञानिकों के द्वारा समाज को मिलने चाहिए थे वो नहीं दिए जा सके | इसके अतिरिक्त महामारी के विषय में वैज्ञानिकों के द्वारा जितने प्रकार की भी जो जो बातें बताई गईं वे सारी दुविधा पूर्ण थीं |
कुल मिलाकर विभिन्न महामारी वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी के विषय में लगाए गए सभी अनुमान पूर्वानुमान गलत निकलते चले गए | इसके बाद भी कहते रहे कि महामारी के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए कोई विज्ञान ही नहीं है |यदि वास्तव में ऐसा ही है तो समय समय पर वैज्ञानिकों के द्वारा अनुमान पूर्वानुमान आदि व्यक्त क्यों किए जाते रहे !
वस्तुतः भूकंप एवं महामारियों को समझने के लिए वैज्ञानिकों के द्वारा आजतक कोई विज्ञान विकसित ही नहीं किया जा सका है ! यदि किया गया होता तो भूकंप एवं महामारियों के विषय में कोई तो सटीक अनुमान पूर्वानुमान आदि दिया जा सका होता |
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