विश्व के सबसे प्राचीन गणितविज्ञान की ऐसी सक्षम विधा सनातनधर्मियों के पास है| जिसके द्वारा प्रकृति और जीवन में घटित होने वाली घटनाओं के न केवल कारणों को गणित के आधार पर समझा जाता रहा है,प्रत्युत उनके विषय में पूर्वानुमान भी लगा लिया जाता रहा है| सनातनधर्मियों को यह विज्ञान परंपरा से प्राप्त हुआ है| इसके आधार पर अभी भी समाज में घटित होने वाली घटनाओं को तो समझा जा ही सकता है | उसके साथ ही साथ समस्त प्राकृतिक वातावरण में समय समय पर होते रहने वाले परिवर्तनों को भी समझा जा सकता है और उनके विषय में महीनों वर्षों पहले पूर्वानुमान भी लगाया जा सकता है |
सनातन धर्म के प्राचीन वैज्ञानिकऋषि मुनि इसीविज्ञान के द्वारा भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ चक्रवात बज्रपात जैसी घटनाओं के विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगा लिया करते थे |ऐसा वर्णन सनातन धर्म के अनेकों ग्रंथों में अभी भी मिलता है |उसी प्राचीन ज्ञान विज्ञान के आधार पर मैं पिछले चार दशकों से अनुसंधान करता आ रहा हूँ | उससे आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ चक्रवात जैसी घटनाओं के विषय में मेरे द्वारा महीनों पहले लगाए गए पूर्वानुमान सही निकलते रहे हैं | उसी प्राचीन गणित विज्ञान के द्वारा मैंने महामारी के विषय में भी जितने भी पूर्वानुमान लगाए थे | वे प्रायः सही निकलते रहे हैं |
प्रकृति की भाषा गणित है| इसलिए प्रकृति एवं जीवन में घटित होने वाली प्राकृतिक घटनाओं को गणित के द्वारा ही समझा जा सकता है| इसी गणितविज्ञान के द्वारा ही रेलवे समय सारिणी की तरह ही प्राकृतिक समयसारिणी भी अनुसंधान पूर्वक खोजी जा सकती है |जिसप्रकार से आज के सैकड़ों वर्ष बाद घटित होने वाली खगोलीय घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | उसीप्रकार से भूगोलीय घटनाओं के विषय में भी बहुत पहले ही पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |
जिसगणित के द्वारा सुदूर आकाश में घटित होने वाली सूर्य चंद्र ग्रहण जैसी घटनाओं के विषय में या अन्य ग्रहों के संचार के विषय में सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है|उसी गणित के द्वारा भूकंप आँधी तूफ़ान ,चक्रवात बज्रपात वर्षा बाढ़ जैसी घटनाओं के विषय में अनुसंधान पूर्वकबहुत पहले पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | उसी गणित के आधार पर गणितज्ञों के द्वारा किसी महामारी के आने के विषय में भी सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगाया जाना संभव है |
किस महामारी या प्राकृतिक आपदा से जनधन का नुक्सान कितना हो सकता है तथा उससे किस व्यक्ति के पीड़ित होने की संभावना कितनी है |इसका आगे से आगे पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |मौसम संबंधी घटनाओं तथा महामारियों के विषय में इसी प्रक्रिया से पूर्वानुमान लगाया जाता है | इसी प्रक्रिया से कोरोना महामारी एवं उसकी लहरों के विषय में मैंने जो जो पूर्वानुमान लगाए हैं वे सही निकलते रहे हैं |
भूमिका
वर्तमान समय में विज्ञान के इतना उन्नत होने पर भी कोरोना महामारी से जनता को सीधे स्वयं जूझना पड़ा है | | वैश्विक दृष्टि से देखा जाए तो करोड़ों में लोग संक्रमित हुए एवं करोड़ों लोग मृत्यु को प्राप्त हुए हैं |महामारी जैसी इतनी बड़ी आपदा से समाज को सुरक्षित बचाने में अनुसंधानों की ऐसी क्या भूमिका रही जो अनुसंधानों के बिना संभव न थी |महामारी के बिषय में वैज्ञानिकों ने यदि अभी तक अनुसंधान न किए होते तो महामारी से क्या इससे भी अधिक जनधन का नुक्सान हो सकता था | प्रत्येक अनुसंधान को जनता की आवश्यकता और आपूर्ति की कसौटी पर कसा जाना चाहिए |
वैज्ञानिकों ने अनुसंधान पूर्वक समाज के जीवन की कठिनाइयों को कम करके यदि सुख सुविधा पहुँचाने के साधन जुटा भी लिए हैं तो उनका होगा क्या ?जिस जनता की सुरक्षा के लिए वे सारी सुख सुविधाएँ जुटाई गई हैं | महामारी जैसी आपदाओं से जनता को सुरक्षित बचाने के लिए यदि कोई मजबूत प्रयत्न नहीं किए जा सके तो यह कैसे कहा जा सकता है कि ऐसी आपदाओं से जो सुरक्षित बच जाएँगे | वैज्ञानिकों की खोजी गई सुख सुविधाओं का उपभोग वे करेंगे | वस्तुतः ऐसी महामारियों से कोई सुरक्षित बचेगा भी या नहीं यह भी महामारियों की ही दया पर निर्भर करेगा | यदि इतनी बड़ी संख्या में लोग संक्रमित हुए या मृत्यु को प्राप्त हुए अनुसंधानों के द्वारा यदि उन्हें सुरक्षित नहीं बचाया जा सका तो इससे भी अधिक या सभी लोग यदि महामारी की चपेट में आ जाते तो उन्हें भी सुरक्षित बचाया जाना संभव न था |
कोरोना काल में हैरान परेशान आवारा पशुओं के आक्रामक व्यवहार से किसान परेशान थे | दुनियाभर में कोरोना काल में जानवरों के नए रूप अधिक आक्रमक देखने को मिल रहे थे।ऐसा पहले नहीं होता था | महामारीजनित प्रभाव से जीव जंतुओं का स्वभाव आहार विहार आदि काफी बदल गया था | पशुओंपक्षियों टिड्डियों तथा चूहों आदि प्राणियों को कोरोना काल में बहुत बेचैन देखा जा रहा था | उनकी बेचैनी का महामारी से कोई संबंध था या नहीं | इसके लिए वैदिक प्राणीवैज्ञानिकों की आवश्यकता थी | जो जीव जंतुओं के बदलते व्यवहार को समझ पाते | प्राणियों से प्राप्त संकेतों के आधार पर महामारी को समझ पाते |
कोरोना काल में अनेकों देश एक दूसरे से युद्ध लड़ते देखे जा रहे थे| कई देशों के अंदर अंतर्कलह से बड़ी संख्या में लोग हिंसा की भेंट चढ़ते जा रहे थे |कुछ देशों के अंदर हिंसक घटनाएँ,दंगे,आतंकी घटनाएँ हिंसक विस्फोट एवं हिंसक आंदोलन आदि होते देखे जा रहे थे | कुछ असहिष्णु लोग छोटी छोटी बातों पर दूसरे की हत्या करते देखे जा रहे थे |भारत की दिल्ली समेत समस्त उत्तर भारत में एवं मणिपुर आदि स्थानों पर हिंसक दंगे ,पड़ोसी म्यांमार में हिंसक दंगे होते देखे जा रहे थे | इस प्रकार से कोरोनाकाल में मनुष्यों में बेचैनी काफी अधिक बढ़ गई थी | मनुष्यों की इस बेचैनी का महामारी से कोई संबंध था या नहीं ये समझने में सक्षम वैदिक मनोवैज्ञानिकों का अभाव था |
ऐसी सभी घटनाओं का भी महामारी पर प्रभाव पड़ता है | कोरोना महामारी प्रारंभ होने के कुछ वर्ष पहले से प्राकृतिक वातावरण बहुत तेजी से बदलने लगा था |आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात बाढ़ जैसी हिंसक घटनाएँ बार बार घटित होते देखी जा रही थीं |महामारी पैदा होने या संक्रमण बढ़ने के लिए मौसम संबंधी घटनाओं को जिम्मेदार ठहराया गया था ,किंतु ऐसा ही था या कुछ और इसे पता लगाने के लिए वैदिक मौसम वैज्ञानिकों की आवश्यकता थी | उनके बिना अंत तक यह पता ही नहीं लगाया जा सका कि महामारी पर मौसम का कोई प्रभाव पड़ता भी है या नहीं |
इसी प्रकार से जिस जलवायुपरिवर्तन को सभी प्राकृतिक घटनाओं के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है | उस ,जलवायु परिवर्तन को समझने एवं उसके बिषय में पूर्वानुमान लगाने वाले वैज्ञानिक कहाँ हैं | इसके बिना उन प्राकृतिक घटनाओं आपदाओं महामारियों को समझना कैसे संभव है | जिन घटनाओं के लिए जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार ठहराया जाता है| जो घटनाएँ या आपदाएँ महामारियाँ आदि घटित होकर चली जाएँ उनसे जो नुक्सान होना हो वो हो जाए वैज्ञानिक उन्हें न समझ पावें और न ही पहले से उनके बिषय में पूर्वानुमान लगा पाए हों | बाद में उस घटना के घटित होने का कारण यदि वे जलवायुपरिवर्तन को बतावें तो ये आधार विहीन काल्पनिक कहानी है | जिस पर वैज्ञानिक अनुसंधानों की दृष्टि से विश्वास किया जाना उचित नहीं है | इससे ये पता ही नहीं लग पाता है कि जलवायुपरिवर्तनका प्रभाव महामारी पर पड़ता है या नहीं |
ऐसे ही वायुप्रदूषण बढ़ने से महामारी बढ़ती है | यह कहा तो अक्सर जाता रहा है किंतु वैदिक पर्यावरण वैज्ञानिकों के अभाव में आज तक यह पता नहीं लगाया जा सका कि महामारी पर वायुप्रदूषण का प्रभाव पड़ता है या नहीं और न ही यह पता लगाया जा सका कि वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार कारण क्या हैं |
इसी प्रकार से सन 2014 के बाद दिनोंदिन भूकंप की आवृत्तियाँ बढ़ती जा रही थीं | कोरोना काल में बहुत बड़ी संख्या में भूकंप आते रहे | ऐसे भूकंपों का कोरोना महामारी से कोई संबंध था या नहीं था | इसके लिए जिन वैदिक वैज्ञानिकों की आवश्यकता है | उनके अभाव में जो लोग ऐसे अनुसंधानों का दायित्व सँभाल रहे हैं | वे केवल भूकंप की तीव्रता नाप पाते हैं | उनसे ये अपेक्षा कैसे की जाती है कि वे महामारी पर भूकंपों के प्रभाव को समझ लेंगे | यदि भूकंप ही नहीं समझे जा सके तो भूकंपों का महामारी पर प्रभाव कैसे समझा जा सकेगा |
कुलमिलाकर वैदिकवैज्ञानिकों के बिना किसी भी प्राकृतिक घटना को महामारी को न तो समझा जाना संभव है और न ही उनके बिषय में पूर्वानुमान ही लगाया जाना संभव है |
केवल इतना ही नहीं है कि सक्षम महामारी वैज्ञानिकों के अभाव में महामारी इतना भयंकर स्वरूप धारण करती चली गई कि उसे नियंत्रित नहीं किया जा सका | इसके कई और भी कारण थे | इसके लिए भी जितने सक्षम वैज्ञानिको की आवश्यकता थी |प्रकृति की भाषा समझने वाले ऐसे सक्षम वैज्ञानिकों को खोजा जाना संभव न था |
कोरोना महामारी आने के कुछ वर्ष पहले से भूकंप बार बार घटित होने लगे थे | उनका महामारी के आने से कोई संबंध था या नहीं था | ये पता लगाने के लिए न विज्ञान है और न ही वैज्ञानिक | किसी भूकंप की तीव्रता कितनी थी | केंद्र कहाँ है इसके विषय में जो कुछ काल्पनिक रूप से बताया जाता है | भूकंप विज्ञान के नाम पर बस उतना ही है | इससे ये पता लगाया जाना संभव ही नहीं है कि महामारी काल में इतने अधिक भूकंपों के आने का महामारी से कोई संबंध था या नहीं था |
कुलमिलाकर महामारीकाल में मौसम में इतने बड़े बड़े बदलाव होने लगे थे कि प्राकृतिक घटनाओं का काल,क्रम ,अनुपात आदि सबकुछ तेजी से बिगड़ने लगा था | भूकंप आँधी तूफान वर्षा बाढ़ चक्रवात बज्रपात वायु प्रदूषण तापमान आदि बार बार घटित होते देखे जा रहे थे |प्रकृति का संतुलन दिनोंदिन बिगड़ता जा रहा था | इससे महामारी जैसी स्वास्थ्यविरोधी बड़ी दुर्घटनाओं का घटित होना स्वाभाविक ही था |जिसे समय से समझा नहीं जा सका |
ब्यवहार में भी देखा जाता है कि किसी विमान का पायलट जब देखता है कि विमान संचालन में कुछ घटनाएँ उसके अनुमान से अलग हटकर घटित होते दिखाई दे रही हैं या अनुमान के विरुद्ध घटित हो रही हैं तो पायलट इसकी सूचना कंट्रोलरूम को तुरंत इस आशंका के साथ देता है कि कुछ गड़बड़ होने वाला है |ऐसे ही मौसम संबंधी अनुसंधानों में लगे वैज्ञानिकों को लीक से हटकर घटित हो रहे प्राकृतिक परिवर्तनों को समझना चाहिए था | प्राकृतिक घटनाओं को असंतुलित होते देखकर इतनी बड़ी महामारी के विषय में समाज और सरकारों को तुरंत सतर्क कर दिया जाना चाहिए था कि कोई बड़ा स्वास्थ्य संकट उपस्थित होने वाला है | विज्ञान एवं वैज्ञानिकों के अभाव में ऐसा किया जाना संभव नहीं हो पाया | ऐसे समय जनसुरक्षा की दृष्टि से वैदिकविज्ञानबहुत सहायक हो सकता है |
विनम्र निवेदन
अनुसंधानों का उद्देश्य जनता का हित साधन करना होता है | महामारी जैसे संकटों के बिषय में पहले से सही पूर्वानुमान लगाकर उनसे सुरक्षा की अग्रिम तैयारी करके रखना अनुसंधानों का उद्देश्य होता है | संकटों के बिषय में सही सही अनुमान लगाकर उन्हीं के आधार पर जनता की सुरक्षा संबंधी उपायों के बिषय में निर्णय लेना भी अनुसंधानों का उद्देश्य होता है| इसके अतिरिक्त मनुष्यजीवन की कठिनाइयाँ कम करके उन्हें सुख सुविधा के संसाधन खोजने के लिए अनुसंधान किए जाते हैं| महामारी मौसम एवं भूकंप जैसी घटनाओं के बिषय में अभी तक किए गए अनुसंधानों के द्वारा इस उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो पा रही है |
भारत को पडोसी देशों के साथ जो तीन युद्ध लड़ने पड़े उन तीनों में मिलाकर जितने लोगोंकी मृत्यु हुई उससे कई गुणा अधिक लोग केवल कोरोना महामारी के समय ही काल के गाल में समा गए | इतना उन्नत विज्ञान एवं इतने बड़े बड़े अत्याधुनिक अनुसंधान होने के बाद भी उस जनता को सुरक्षित नहीं बचाया जा सका | जो ऐसे अनुसंधानों पर किया जाने वाला भारी भरकम व्यय वाहन करती है | अनुसंधान संबंधी ऐसी कमजोरियाँ जनहित की दृष्टि से संतोषजनक नहीं हैं |
इनमें से केवल सुख सुविधा के साधन जुटाने के क्षेत्र में अनुसंधानों की प्रगति यदि अच्छी है,किंतु उन्हें जिस जनता के लिए खोजा गया है | महामारी और प्राकृतिक आपदाओं से यदि उस जनता को ही सुरक्षित नहीं बचाया जा सका तो वे उन्नत वैज्ञानिक उपलब्धियाँ किसके काम आ सकेंगी |
इसलिए जिन अनुसंधानों का कोई वैज्ञानिक आधार होता है और जिस प्रक्रिया को वैज्ञानिक तर्कों से समझा या समझाया जा सकता है | जिसके आधार पर लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान यदि सही निकलें तो उन्हीं पर विश्वास किया जाना चाहिए | वैदिक विज्ञान या किसी भी परंपरा से प्राप्त कोई भी वैज्ञानिक अनुसंधान पद्धति हो यदि वह महामारी और प्राकृतिक आपदाओं के बिषय में उसकेआधार पर लगाए हुए अनुमान पूर्वानुमान यदि उपयोगी सिद्ध होते हैं तो जनहित में उनका उपयोग किया जाना चाहिए |
महामारी के बिषय में विश्व वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए न तो अनुमान सही निकले और न ही पूर्वानुमान ! एक एक वैज्ञानिक ने किसी एक ही लहर के बिषय में कई कई पूर्वानुमान बदले हैं | विभिन्न वैज्ञानिकों के द्वारा किसी एक ही लहर के बिषय में भिन्न भिन्न प्रकार के अनुमान पूर्वानुमान आदि बताए गए | एक ही वैज्ञानिक अनुसंधान पद्धति के आधार पर लगाए जाते रहे अनुमान पूर्वानुमान आदि वेएक दूसरे के अनुमानों पूर्वानुमानों से मेल नहीं खाते थे | उनमें से कुछ तो कुछ वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए अनुमानों पूर्वानुमानों के बिपरीत तक होते थे | जिन्हें सुन समझकर जनता अपनी सुरक्षा के लिए कोई राय नहीं बना सकती थी | जनसुरक्षा की अग्रिम तैयारियाँ करने के लिए भी ये अनुमान पूर्वानुमान आदि उपयोगी नहीं थे | किसी रोगी या रोगियों की चिकित्सा के लिए पहले रोग का पहचाना जाना एवं रोग होने का कारण खोजा जाना आवश्यक होता है | उसी के आधार पर चिकित्सा की जाती है |यदि कारण ही नहीं पता होंगे तो निवारण के बिषय में कैसे सोचा जाएगा |
मेरे पास महामारी बिषयक विश्व वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए जाते रहे मीडिया के विभिन्न माध्यमों में प्रकाशित या प्रदर्शित अधिकतम अनुमानों पूर्वानुमानों का संग्रह है | इस बिषय में मेरे द्वारा सूचना के अधिकार के तहत जिम्मेदार विभागों से माँगी गई जानकारी भी है | उनमें भी महामारी संबंधी अनुमानों पूर्वानुमानों के बिषय में स्पष्टरूप से कहीं कुछ नहीं कहा गया है | इसका मतलब वैज्ञानिकों ने जिस भी वैज्ञानिक विधा को आधार मानकर ये पूर्वानुमान लगाए थे | उस विधा के आधार पर महामारी के बिषय में पूर्वानुमान लगाया जाना संभव नहीं था |
कुलमिलाकर सक्षम वैदिक वैज्ञानिकों के अभाव में महामारी को समझना संभव नहीं हो पाया और उसे समझे बिना महामारी के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका |पूर्वानुमानों के बिना तुरंत की तैयारियों के बल पर महामारी के इतने बड़े वेग आक्रामकता आदि को सँभाल पाना या महामारी को नियंत्रित किया जाना संभव ही नहीं था | जो कुछ किया जाता रहा उससे महामारी पीड़ितों को मदद नहीं पहुँचाई जा सकी | किसी नदी में भीषण बाढ़ के समय जिस प्रकार से तटबंध किया जाना संभव नहीं होता है | उसीप्रकार से महामारी के भीषण प्रकोप के समय लोगों को सुरक्षित बचाया जाना संभव नहीं होता है |
घड़ी तभी तक उपयोगी रहती है, जब तक वो समय के अनुसार चलती रहती है | उससे आगे पीछे होते ही उस घड़ी को बिगड़ी हुई मान कर उसमें दिखाए गए समय पर भरोसा नहीं किया जाता है |
ऐसे ही ऋतुएँ जब तक अपने समय सीमा में सीमित रहती हैं | उनका वेग भी ऋतुस्वभाव के अनुकूल रहता है तब तक सबकुछ अच्छा चलता है | ऋतुप्रभाव अमर्यादित होते ही प्राकृतिक आपदाएँ घटित होने लगती हैं |ऐसी परिस्थिति में न तो ऋतुएँ विश्वसनीय रह पाती हैं और न ही उनका प्रभाव ही विश्वास करने योग्य रह पाता है |
इसीप्रकार से मनुष्यजीवन में जब तक समयानुरूप मर्यादाओं का पालन होता रहता है तब तक शरीर स्वस्थ एवं मन प्रसन्न रहता है | इस संतुलन के बिगड़ते ही वह रोगी रहने लगता है | स्वानुशासन से प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण होता है | मनुष्य शरीरों को स्वस्थ रखने में इसकी बहुत बड़ी भूमिका होती है | स्वस्थ रहने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को सोना जागना खाना पीना पढ़ना लिखना आदि कार्य समय के अनुसार करते हुए अपने शरीर को स्वस्थ रखने का प्रयास करते रहना चाहिए |
विगत कुछ सौ वर्षों से प्रति सौ वर्ष बाद महामारी आते देखी जा रही है | महामारी आने का कारण यदि मनुष्यकृत माना जाए तो हर सौ वर्ष बाद कुछ वर्षों के लिए मनुष्य ऐसा क्या विशेष करने लगते हैं कि महामारी पैदा हो जाती है| उस विशेष को खोजे बिना महामारी के रहस्य को समझना संभव नहीं है |
महामारी को यदि प्राकृतिक माना जाए तो यह पता लगाया जाना आवश्यक है कि सौ वर्षों बाद प्रकृति में ऐसा क्या विशेष परिवर्तन होते हैं | जो महामारी पैदा होने के लिए जिम्मेदार कारण होते हैं | दूसरी बात ऐसी परिवर्तन सौ वर्ष बाद ही क्यों होते हैं | इनका समय से क्या संबंध है ?यदि है तो उसे भी पता लगाया जाना चाहिए |
महामारी का प्राकृतिक घटनाओं से क्या संबंध है | इसका निराकरण तभी हो पाएगा
कुशल रसोइया भोजन बनाते समय अनेकों तेल मशालों को उचित अनुपात में डालकर एक से एक स्वादिष्ट ब्यंजन तैयार करते देखे जाते हैं |उसी ब्यंजन में सारे मशाले डाले जाएँ किंतु उनका अनुपात बिगड़ जाए तो वह ब्यंजन स्वादिष्ट नहीं बनेगा | यह अनुपात जितना बिगड़ता है भोजन का स्वाद भी उतना ही बिगड़ जाता है |विशेष बात यह है कि मशालों का अनुपात बिगड़ते ही रसोइए को अनुमान लग जाता है कि ब्यंजन का स्वाद बिगड़ जाएगा !उसमें इस मशाले की कमी या बढ़ोत्तरी दिखाई देगी !उसके सुधार के लिए वह उस अनुपात को संतुलित करने के प्रयास भी उसी समय करता है जिसमें कई बार वह सफल भी होता है यही उस रसोइए का विशेष गुण होता है |
मौसम भी उसी ब्यंजन की तरह ही होता है | जिसमें सर्दी गर्मी वर्षा आदि जब तक उचित अनुपात में होती रहती है | तब तक प्रकृति और जीवन दोनों ही स्वस्थ बने रहते हैं | ये अनुपात बिगड़ते ही दोनों का स्वस्थ्य बिगड़ने लगता है | ऐसे ही किसी औषधि के निर्माण में घटक द्रव्यों का अनुपात यदि बिगड़ जाए तो निर्मितऔषधि लाभ की जगह नुक्सान भी पहुँचा सकती है |जिसका अनुमान कुशल चिकित्सक पहले ही लगा लिया करते हैं | ऐसे ही मौसम वैज्ञानिकों से लेकर चिकित्सा वैज्ञानिकों तक की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे प्रतिपल होते प्राकृतिक परिवर्तनों को न केवल देखते समझते रहें अपितु उनके अभिप्राय तथा उनसे प्राप्त भविष्य संबंधी संकेतों को भी समझते रहें तभी उनके द्वारा किए गए अनुसंधान समाज के लिए उपयोगी हो सकते हैं ,अन्यथा ऐसे अनुसंधानों को करने का प्रयोजन ही क्या बचता है |
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महामारी एक खोज !
महामारी का बहुत बड़ा अंश बीत चुका है ,थोड़ा बहुत जो बचा है | वह भी
बीत जाएगा ,किंतु महामारी है क्या !इसका प्रसार माध्यम क्या है इसका
विस्तार कितना है | इसमें अंतर्गम्यता कितनी है | इसपर वर्षा कम या अधिक
होने का प्रभाव पड़ता है या नहीं ! तापमान कम या अधिक होने का प्रभाव पड़ता
है या नहीं | वायुप्रदूषण कम या अधिक होने का प्रभाव पड़ता है या
नहीं|संक्रमितों के छूने या न छूने का प्रभाव पड़ता है या नहीं |महामारी
प्राकृतिक है या मनुष्यकृत ! महामारी
के बिषय में पूर्वानुमान लगाया जाना संभव है या नहीं | महामारी से बचाव की
कोई प्रक्रिया है या नहीं |महामारी संक्रमितों को चिकित्सा के द्वारा रोग
मुक्ति दिलाई जानी संभव है या नहीं | ऐसे आवश्यक प्रश्नों के उत्तर खोजे
जाने आवश्यक हैं |वर्तमान समय में अत्यंत उन्नत विज्ञान और अत्यंत समृद्ध
अनुसंधान प्रक्रिया है|उससे संबंधित विद्वान तो अपने कर्तव्यपालन में लगे
ही होंगे | वैदिकमहामारी विज्ञान के आधार पर महामारी के रहस्य को जितना
सुलझाया जाना संभव है | उसके लिए मैं विनम्र प्रयत्न कर रहा हूँ |मैं पिछले
35 वर्षों से प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में ही अनुसंधान करता आ रहा हूँ |
ऐसा देखा गया कि महामारी के समय बहुत लोग अस्वस्थ हुए किंतु लोगों के
अस्वस्थ होने का कारण क्या था | इसका कारण यदि महामारी होती तो महामारी का
समय
बीत जाने के बाद लोगों का रोगी होना बंद हो जाना चाहिए था | उसके बाद कोई
रोगी न होता किंतु ऐसा होता नहीं है | महामारियाँ जब नहीं होती हैं लोग तो
तब भी रोगी हो रहे होते हैं | प्राणियों को हमेंशा रोगी होते देखा जाता
है|चिकित्सालयों में रोगियों की भीड़ हमेंशा लगी रहती है,किंतु महामारियाँ तो हमेंशा नहीं रहती
हैं | लोगों के रोगी होने का कारण कुछ ऐसा हो सकता है |जो महामारी के समय
एवं महामारियों के समय बिना भी समान रूप से विद्यमान रहता हो |
इसका मतलब महामारी का समय जब नहीं होता है |उस समय जो लोग जिन कारणों से रोगी
होते हैं और महामारी जब नहीं होती है | उस जो लोग जिन कारणों से रोगी होते
हैं वे दोनों कारण एक ही हो सकते हैं | जो महामारी के समय और जब महामारी
नहीं होती है दोनों समय एक समान प्रभाव डालते हैं | संभव है महामारी के
समय में भी लोगों के रोगी होने के कारण वही हों |
महामारी का यदि ऐसा कोई बिषैलापन होता तो उसके बिषाणु संपूर्ण वातावरण में विद्यमान होते | बिषाणुओं से तो सभी
प्राणी समान रूप से प्रभावित हो रहे होते पड़ रहा होता तो उससे सभी लोग एक
समान रोगी हो रहे होते | कुछ के रोगी होने और कुछ के रोगी न होने से यह
कारण तर्कसंगत नहीं लगता है | उससे तो सभी
प्राणी समान रूप से प्रभावित होते हैं ,फिर कुछ का संक्रमित होना और कुछ का
संक्रमित न होना कैसे संभव हो सकता है |
महामारी संक्रमण बढ़ने का कारण यदि तापमान कम होने को माना जाए तो बढ़े
तापमान के समय ही भारत में तीन लहरें आई थीं, जबकि घटे हुए तापमान में केवल
तीसरी लहर ही आई थी | ऐसी स्थिति में वैज्ञानिकों का वह मत सही नहीं निकला
जिसमें तापमान कम होने को महामारी बढ़ने के लिए जिम्मेदार बताया गया था |
वायु प्रदूषण बढ़ने से महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने की बात वैज्ञानिकों
के द्वारा कही गई थी,किंतु सन 2020 के अक्टूबर नवंबर में वायुप्रदूषण दिनों
दिन बढ़ता जा रहा था | महामारी संबंधी संक्रमण दिनोंदिन घटता जा रहा था |
ऐसे ही सन
2021 के मार्च अप्रैल में वायुप्रदूषण दिनोंदिन कम होता जा रहा था किंतु
महामारी की सबसे भयानक लहर भारत में इसी समय आई थी | ऐसी स्थिति में
वैज्ञानिकों का यह मत भी स्थापित नहीं हो सका |
संक्रमितों के या एक दूसरे के स्पर्श से महामारीजनित संक्रमण बढ़ता है
| वैज्ञानिकों ने यह मत व्यक्त किया था किंतु दिल्ली मुंबई सूरत से पलायित
श्रमिकों ने सबको छुआ !सबका छुआ खाया !बिहार बंगाल की चुनावी रैलियों में
भारी भीड़ हुई | महानगरों में छोटे छोटे बच्चे भोजन की लाइनों में दिन दिन
भर लगे रहे | ऐसे सभी कार्यों में सभी लोग सबको छूते रहे फिर भी संक्रमित
नहीं हुए | इसलिए स्पर्श जनित संक्रमण बढ़ने की आशंका भी प्रमाणित नहीं हो
सकी |
इसके लिए प्रतिरोधक क्षमता को कारण बताया गया कि जिनकी प्रतिरोधक
क्षमता अच्छी है वे संक्रमित नहीं हुए जिनकी कमजोर है वे संक्रमित होते
हैं | ऐसी स्थिति में यदि अच्छा खाने पीने रहन सहन आदि से प्रतिरोधक क्षमता
मजबूत होती है तो सभी साधनों से संपन्न वर्ग को स्वस्थ बना रहना चाहिए
था और गरीबों की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होनी चाहिए थी |उन्हें अधिक संक्रमित होना चाहिए था किंतु ऐसा नहीं हुआ | विशेषज्ञों के द्वारा दिया गया यह वक्तव्य भी प्रमाणित नहीं हो सका |
इसप्रकार से विशेषज्ञों के द्वारा जितने भी अनुमान पूर्वानुमान आदि
लगाए जाते रहे | उनमें से किसी का सही न निकलना ये अत्यंत चिंता का बिषय
है|महामारी को समझना यदि बाद में भी संभव हो पाता तो भविष्य के लिए भरोसा
होता कि ऐसी कोई महामारी भविष्य में आएगी तो इन अनुभवों से लाभ मिलेगा |
ऐसा नहीं हो सका इसलिए वैदिक विज्ञान के आधार पर इस बिषय में जो भी जानकारी
जुटाई जा सकती है | वो करने का मैं प्रयत्न कर रहा हूँ |
मेलें इसलिए
ग्रहगणित और महामारी
महामारियाँ तथा प्राकृतिक आपदाएँ समय के साथ ही घटित होती चली आ रही हैं | ये तो प्राचीन काल में भी घटित होती रही होंगी | उस समय जनसंख्या भी बहुत कम रही होगी | उस युग में ऐसी आपदाओं से यदि इतनी ही जनहानि होती रही होती,तब तो सृष्टिक्रम आगे बढ़ना संभव ही नहीं हो पाता | ऐसा होने के बाद भी लोगों का सुरक्षित बचा रहना इस बात के संकेत देता है कि प्राचीनकाल में महामारियों एवं प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा के लिए कोई न कोई ऐसी प्रभावी व्यवस्था अवश्य रही होगी | जिससे मनुष्यों की सुरक्षा होती रही होगी | संभव है कि प्राचीन भविष्य वैज्ञानिकों ने महामारी आदि घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने में प्राचीन काल में ही सफलता प्राप्त कर ली हो | जिसके सहारे सृष्टिक्रम सुरक्षित रूप से चलता आ रहा है |
प्राचीन वैज्ञानिकों की इस क्षमता पर विश्वास इसलिए भी किया जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने उस युग में ही ग्रहों के संचार एवं सूर्य चंद्र ग्रहणों के विषय में पूर्वानुमान लगाने में सफलता प्राप्त कर ली थी| ये अत्यंत कठिन कार्य था | उस युग के वैज्ञानिकों की अनुसंधान भावना कितनी उन्नत रही होगी | इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है | भरोसा इसलिए भी किया जाना चाहिए कि भारत का प्राचीनविज्ञान प्रकृति और जीवन को समझने एवं इनसे संबंधित घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने में अधिक सक्षम रहा होगा |उस युग में न तो प्राकृतिक आपदाएँ अचानक घटित होती रही होंगी और न ही महामारियाँ !
कुलमिलाकर प्राचीनवैज्ञानिक प्राकृतिकआपदाओं एवं महामारियों के विषय में भी अत्यंत सतर्कता बरतते देखे जाते थे|प्राकृतिक आपदाओं तथा महामारियों से सुरक्षा की दृष्टि से पूर्वानुमान लगाना सबसे आवश्यक होता था ,क्योंकि पूर्वानुमान लगाए बिना प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से मनुष्यों की सुरक्षा कैसे की जा सकती है |
आयुर्वेद के चरक संहिता जैसे प्राचीन ग्रंथों में इसी गणितीयपद्धति से महामारियों के विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगाने की विधि बताई गई है | इसकी झलक आयुर्वेद के शीर्ष ग्रंथ 'चरकसंहिता' में भी मिलती है |वहाँ महामारी पैदा होने से पहले भगवान पुनर्वसु महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाते हुए अपने शिष्यों से कहते हैं कि देखो अश्वनी भरणी आदि नक्षत्र ग्रह सूर्य चंद्र अग्नि(पित्त) वायु आदि महामारी आने की सूचना दे रहे हैं | इसलिए महामारी से बचाव के लिए अभी से तैयारियाँ शुरू कर देनी चाहिए |
ग्रह नक्षत्रों के आधार पर ही भगवान पुनर्वसु ने महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाया था | इससे ये स्पष्ट है कि प्राचीनकाल में महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाया जाता रहा है |
उस युग में महामारियों से सुरक्षा के लिए सबसे पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता था कि कब कैसी महामारी आने वाली है | जिस प्रकार की महामारी जब आने वाली होती थी | उस महामारी में किस किस प्रकार के रोग होंगे | उस समय किस किस प्रकार की औषधियों से लाभ मिल सकता है | ये महामारी आने से पहले ही न केवल पता लगा लिया जाता था,प्रत्युत महामारी से मुक्ति दिलाने में सक्षम औषधीय द्रव्यों बनस्पतियों आदि का संग्रह कर लिया जाता था | उसी पूर्वानुमान के आधार पर महामारी प्रारंभ होने से पहले ही महामारी से मुक्ति दिलाने वाली औषधियों का निर्माण करके रख लिया जाता था | इतनी सारी तैयारियाँ कर लेने के बाद महामारी आती थी | शुरू से ही चिकित्सा शुरू कर देने से लोगों को सुरक्षित बचाने में मदद मिल जाती थी |
"आयुर्वेद के शीर्ष ग्रंथ 'चरकसंहिता' में महामारी पैदा होने से पहले भगवान पुनर्वसु महामारी के विषय में अपने शिष्यों से कहते हैं कि देखो अश्वनी भरणी आदि नक्षत्र ग्रह सूर्य चंद्र अग्नि(पित्त) वायु आदि के संचार में कुछ ऐसे बदलाव आते देखे जा रहे हैं जो हमेंशा नहीं आते हैं | इससे प्राकृतिक वातावरण में ऐसे बिकार पैदा हो रहे हैं |ये सब महामारी आने की सूचना दे रहे हैं |इसलिए महामारी का पैदा होना अब निश्चित है |
प्राकृतिक वातावरण में महामारी का प्रभाव बढ़ने के कारण पृथ्वी भी औषधियों में रस वीर्य विपाक और प्रभाव आदि अभी की तरह उस समय पैदा नहीं करेगी | उस प्रभाव में कमी आएगी |इसलिए महामारी से बचाव के लिए अभी से तैयारियाँ शुरू कर देनी चाहिए | पृथ्वी रस रहित हो उससे औषधियों का रस वीर्य विपाक प्रभाव आदि नष्ट हो उससे पहले औषधियों का संग्रह करके रख लो | जिससे जनपदों को बिनाश होने से बचाया जा सके | महामारी आने पर उनके रस वीर्य विपाक प्रभाव आदि का प्रयोग करके महामारी के समय समाज की सुरक्षा कर ली जाएगी | "
इस प्रकार से महामारियों के विषय में पूर्वानुमान तो लगाया ही जाता था |उसके आधार पर महामारी से बचाव के लिए सुरक्षा की तैयारियाँ करके पहले सेरख ली जाती थीं| यहाँ तक कि महामारी से बचाव के लिए आवश्यक औषधियों का निर्माण करके भी पहले से रख लिया जाता था | ऐसी मजबूत तैयारियाँ पहले से कर लेने के बलपर ही ही महामारियों से सुरक्षा की जानी संभव हो पाती थी |
प्राकृतिक संकेतों के आधार पर महामारी की पहचान !
महामारी और प्राकृतिक संकेत !
महामारी प्रारंभ होने के लगभग 12 वर्ष पहले से मनुष्यादि समस्त प्राणियों में बेचैनी बढ़ने लगती है |उस बेचैनी को कम करने के लिए मनुष्य मनोरंजन के साधन अपनाने लगते हैं |कोरोना महामारी के 12 वर्ष पहले से लोग अपनी बेचैनी घटने के लिए हास्यव्यंग का सहारा लेने लगे थे ! इसीलिए ऐसी फिल्मों सीरीरियलों आदि के प्रति लोगों का झुकाव बढ़ता जा रहा था |
महामारी भी एक प्रकार का परिवर्तन ही था | ऐसी घटनाएँ हर वर्ष तो नहीं घटित हुआ करती थीं | इसी वर्ष ऐसा आकस्मिक बदलाव क्यों हुआ ! ऐसे परिवर्तन संपूर्ण प्रकृति में हो रहे थे | पाँचों तत्व आंदोलित होते देखे जा रहे थे |
महामारी आने के 12 वर्ष पहले से ही वर्षा कहीं बहुत कम तो कहीं बहुत अधिक होने लगती है | कई बार वर्षा ऋतु के बिना भी बहुत बारिश होते देखी जाती है | किसी एक ऋतु में दूसरी ऋतुओं के लक्षण दिखाई पड़ने लगते हैं | कभी कभी वर्षा न होने या अधिक होने से अकाल पड़ जाता है |
19-1-2020- ऑस्ट्रेलिया मूसलाधार बारिश और बाढ़ झेल रहा है।मौसम विभाग के मुताबिक यह 100 साल में सबसे अधिक होने वाली बारिश है | पूर्वी ऑस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन और क्वींसलैंड में भारी तबाही हुई है।
भारत में भी असम केरल कश्मीर बिहार महाराष्ट्र आदि प्रदेशों में समय समय पर घटित होती देखी जाती रही हैं | सन 2013 के मई जून में असम आदि पूर्वोत्तर भी भीषण वर्षा और बाढ़ के दृश्य देखे जा रहे थे | अगस्त 2018 में केरल में भीषण बाढ़ आई ! 2020 के अप्रैल में इतनी बारिश हुई जितनी पहले कभी नहीं हुई थी। मई की बारिश ने भी चौका दिया है।गरमी की ऋतु में मई जून तक वर्षा होती रही |ऐसी बहुत सारी घटनाएँ घटित होती रही हैं | ऐसी घटनाएँ इतनी अधिकता में पहले तो नहीं घटित होती थीं | ऐसा होने का कारण आगे आने वाली कोरोना महामारी ही तो नहीं थी |
भारत में लगातार वर्षा होते रहने के कारण अप्रैल 2020 सबसे ठंडा बीत रहा था,अप्रैल 2020 में कोरोना, सूखा और तूफान से अमेरिका की हालत दिनोंदिन बिगड़ रहे थे | में बारिश-बाढ़ और भूकंप आदि प्राकृतिक घटनाओं से चीन का बुरा हाल हुआ जा रहा था !मॉनसून की विदाई देर से हुई थी | जो पहले 1 सितंबर से होनी शुरू हो जाती थी, वो 17 सितंबर के करीब विदा हुआ था |
महामारी आने से लगभग 12 वर्ष पहले से ही मौसमसंबंधी प्राकृतिक घटनाएँ असंतुलित रूप से घटित होने लगी थीं |ऋतुओं की मर्यादा शिथिल पड़ने लगी थी | 2019 तक पहुँचते पहुँचते धीरे धीरे यह असंतुलन बढ़ता जा रहा था |
पश्चिमी यूरोप में भारी बारिश हो रही थी कहा जा रहा था कि एक सदी में पहली बार ऐसी बाढ़ आई है| बेल्जियम, जर्मनी, लक्जमबर्ग और नीदरलैंड्स में14और15जुलाई 2020 को इतनी अधिक बारिश हो गई है जितनी दो माह में होती थी |
महामारी के समय आंदोलित था पृथ्वी तत्व !
कोरोना महामारी के समय पृथ्वी तत्व काफी अधिक आंदोलित था | जो भूकंप पहले कभी कभी आते देखे सुने जाते थे | सन 2014 के बाद वही भूकंप बार बार घटित होते देखे जा रहे थे |इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कोरोनाकाल के एक वर्ष में वैश्विक स्तर पर 38,816 बार भूकंप आ चुके थे | डेढ़ वर्ष में केवल भारत में ही 1000 से अधिक भूकंप आए थे | मार्च -अप्रैल 2020 के मात्र डेढ़ महीने में दिल्ली-एनसीआर में 10 बार भूकंप आए थे | 23 नवंबर 2020 को पूरी दुनिया में कुल 95 स्थानों पर भूकंप आए थे | एक सप्ताह में 700 जगहों पर भूकंप आये। एक महीने में 3105 भूकंप पूरी दुनिया में आये।भूकंपों की इतनी अधिकता पहले तो नहीं देखी जा रही थी | इसी समय ऐसा क्यों हुआ ?
17\18जुलाई 2020 को अनेकों स्थानों पर काफी अधिक संख्या में भूकंप आए हैं |इनके बाद 19 जुलाई 2020 से भारत में कोरोना का कम्युनिटी स्प्रेड शुरू हो गया था !
क्या इन भूकंपों से महामारी का भी कोई संबंध होता है | यदि ऐसा नहीं है तो इसी समय इतने अधिक भूकंपों के आने का कारण क्या है |इस संबंध को खोजना अनुसंधानों की जिम्मेदारी है |
महामारी आने से पहले अग्नि का आतंक
महामारी प्रारंभ होने से कुछ वर्ष पहले से अग्नितत्व अमर्यादित होने लगता है |बिना अग्नि और बिना ईंधन के भी आग लगते देखी जाती है |
सन 2016 में वातावरण में ज्वलनशीलता इतनी अधिक थी कि बिना ईंधन और बिना कारण के जगह जगह आग लगते देखी जा रही थी | उत्तराखंड के जंगलों में तो 2 फरवरी 2016 से ही आग लगने की घटनाएँ प्रारंभ हो गई थी जो क्रमशः धीरे धीरे बढ़ती चली जा रही थीं |उत्तरप्रदेश बिहार मध्यप्रदेश राजस्थान एवं महाराष्ट्र जैसे प्रदेशों में आग लगने की बहुत घटनाएँ घटित होते देखी जा रही थीं | 10 अप्रैल 2016 से इसका स्वरूप और अधिक बिकराल हो गया था | आग लगने की घटनाओं से हैरान परेशान होकर 28 अप्रैल 2016 को बिहार सरकार के राज्य आपदा प्रबंधन विभाग ने ग्रामीण इलाकों में सुबह नौ बजे से शाम छह बजे तक खाना न पकाने की सलाह दी थी . इतना ही नहीं अपितु इस बाबत जारी एडवाइजरी में इस दौरान हवन करने, गेहूँ का भूसा और डंठल जलाने पर भी पूरी तरह रोक लगा दी गई थी |
2016 में ही जमीन के अंदर का जलस्तर तेजी से नीचे जाने लगा था, बहुत इलाके पीने के पानी के लिए तरसने लगे | पानी की कमी के कारण ही पहली बार पानी भरकर दिल्ली से लातूर एक ट्रेन भेजी गई थी |प्राकृतिक वातावरण में बहुत अधिक ज्वलन शीलता बढ़गई थी | ऐसा होने के पीछे का कारण किसी को समझ में नहीं आ रहा था |इस वर्ष आग लगने की घटनाएँ इतनी अधिक घटित हो रही थीं | ये अनुसंधान का विषय होना चाहिए था कि क्या ऐसी घटनाओं का भी महामारी से कोई संबंध था !
अमेरिका ऑस्ट्रेलिया जैसे अनेकों देशों में आग लगने की भयंकर घटनाएँ घटित होते देखी जाती रहीं ,जो लंबे समय तक चलती रही हैं |कुछ अन्य देशों में भी ऐसी घटनाएँ देखने को मिलती रही हैं |
तापमान अधिक हो गया था !
2 फरवरी 2016 को उत्तराखंड के जंगलों में आग लगनी शुरू हुई थी | ये दिनोंदिन बढ़ती चली जा रही थी | इतिहास में पहली बार अप्रैल 2016 में दिल्ली से लातूर ट्रेन में पानी भरकर भेजा गया था | बिहार आपदा प्रबंधन विभाग ने प्रातः 9 बजे से सायं 6 बजे के बीच चूल्हा जलाने पर रोक लगाई थी | उस वर्ष बिहार राजस्थान उत्तर प्रदेश आदि में आग लगने की बहुत अधिक घटनाएँ घटित हुई थीं |
2020 की जनवरी इतिहास की सबसे गर्म जनवरी बताई जा रही थी !अप्रैल 2020 में ब्रिटेन में लू चल रही थी !बताया जाता है कि ब्रिटेन में गर्मी ने पिछले 361 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है.|सितंबर 2020,21,22 में दिल्ली बासियों को मई-जून जैसी तपिश झेलनी पड़ रही थी ।
यूरोप में 2020 जनवरी का तापमान औसत से 3 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया , जबकि पूर्वोत्तर यूरोप के कई हिस्सों में औसत से 6 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया !जनवरी माह का वैश्विक तापमान अपने चरम पर पहुँच गया था।
नॉर्थ यूरोप में गर्मी से हालात बिगड़ते जा रहे थे | फिनलैंड जहाँ गर्मी कभी नहीं पड़ती थी , वहाँ भी गर्मी पड़ रही थी | देश के कई हिस्सों में तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से भी ज्यादा हो गया था | रूस में साइबेरिया का तापमान इतना बढ़ गया था कि216 ये ज्यादा जंगलों में आग लगी हुई थी | वहीं पश्चिमी-उत्तरी अमेरिका में अत्यधिक गर्मी ने हालात खराब कर दिए थे | कैलिफोर्निया, उटा और पश्चिमी कनाडा में सर्वाधिक तापमान रिकॉर्ड किया गया था | कैलिफोर्निया की डेथ वैली में पिछले दिनों ट्रेम्प्रेचर 54.4 डिग्री सेंटीग्रेट तक पहुँच गया था | इसी तरह से एशिया के कई देशों जैसे कि चीन, भारत और इंडोनेशिया के कुछ हिस्सों में बाढ़ की स्थिति थी | इसीप्रकार की और बहुत सारी घटनाएँ ऋतुओं की सीमाएँ लाँघकर घटित होते देखी जा रही थीं |
महामारी आने से पहले वायुतत्व का आतंक
22 अप्रैल 2015 को नेपाल में भीषण तूफ़ान आया था !इसमें नेपाल और भारत के बहुत लोग मृत्यु को प्राप्त हुए थे | 2018 के अप्रैल और मई में पूर्वोत्तर भारत में हिंसक आँधी तूफान आए थे | 2 मई 2018 की रात्रि में आए तूफ़ान से काफी जन धन हानि हुई थी | 2 मई 2018 को राजस्थान में भी हिंसक तूफ़ान आया था | इसके बाद आँधी तूफानों की घटनाएँ बार बार घटित होती रही थीं | आँधी तूफानों कीऐसीहिंसक घटनाएँ बार बार घटित होते देखी जा रही थीं |इसी समय आँधीतूफानों के कारण ऐसी ही कई और हिंसक घटनाएँ घटित हुई थीं |ऐसी आँधी तूफानों की घटनाएँ बार बार घटित हो रही थीं |ऐसी वायु तत्व संबंधी असंतुलित घटनाएँ क्या भावी महामारी की सूचना दे रही थीं |
19 जून 2020 ऑस्ट्रेलिया में 100 साल का सबसे भीषण तूफान आया है |इस प्रकार के हिंसक आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि पिछले कुछ वर्षों से विश्व के अनेकों देशों में घटित होते देखे जाते रहे हैं | विशेषरूप से भारत में भी ऐसी आपदाएँ अक्सर घटित होते देखी जाती रही हैं |
वायु प्रदूषण बढ़ने का आतंक
महामारी प्रारंभ होने के कुछ वर्ष पहले से बिना किसी कारण से वायु प्रदूषण बढ़ना शुरू हो जाता है |यथाहि -
अनैशानि तमांसि स्युर्बिना पांशु च !
धूमश्चानग्निजो यत्र तत्र विद्यानमहाभयं ||
आकाश तत्व
26 Apr 2020-वैज्ञानिकों का दावा: अपने आप ठीक हुआ ओजोन परत पर बना सबसे बड़ा छेद ! दुनिया इस समय कोविड-19 महामारी से लड़ रही है। वहीं एक अच्छी खबर यह है कि पृथ्वी के बाहरी वातावरण की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार ओजोन परत पर बना सबसे बड़ा छेद स्वत: ही ठीक हो गया है। वैज्ञानिकों ने पुष्टि है कि आर्कटिक के ऊपर बना दस लाख वर्ग किलोमीटर की परिधि वाला छेद बंद हो गया है। इसके बारे में वैज्ञानिकों को अप्रैल महीने की शुरुआत में पता चला था। ऐसे और भी बदलाव वातावरण में आए थे |
जीवों के व्यवहार में बदलाव से महामारी की पहचान !
महामारी आने से पहले बेचैन होने लगे थे मनुष्यादि जीव जंतु !
कोरोना महामारी के समय भारत के कई प्रदेशों में किसानों को आवारा पशुओं के क्रोध का शिकार होना पड़ रहा था | सारी खेती चौपट होती जा रही थी | इन्हीं कुछ वर्षों में पशु अचानक इतने अधिक बढ़ गए थे | पशुओं के स्वभाव में ऐसा बदलाव हुआ था कि वे अपने स्वभाव से अलग आचरण करते देखे जा रहे थे | ये बुरे समय का प्रभाव था |
मूषकांशलभान दृष्टवा प्रभूतं रुजभयं भवेत् ||
महामारी प्रारंभ होने के 12 वर्ष पहले से समस्त प्राणियों का प्रजनन बढ़ जाता है | विशेषकर मूषकों अर्थात चूहों की एवं शलभों अर्थात टिड्डियों का प्रजनन बहुत अधिक बढ़ जाता है |चूहों से संक्रमण और बीमारियां तेजी से फैलती हैं
चूहों का आतंक
कोरोना प्रारंभ होने से पहले ही चूहों का आतंक बढ़ गया था |
8-6-2020 को प्रकाशित : कोरोना वायरस: क्या लॉकडाउन ने चूहों को भी गुस्सैल बना दिया है?
28-5-2021चूहों जन्मदर बढ़ी - 29 -5 -2021 ऑस्ट्रेलिया में चूहों से हाहाकार, खेतों को किया बर्बाद अब घर में लगा रहे आग, भारत को 5 हजार लीटर जहर का ऑर्डर !आस्ट्रेलिया चूहों से बहुत ज्यादा परेशान है. फैक्ट्री और खेतों से निकलने वाले इन चूहों की संख्या लाखों में है, जिन्होंने ऑस्ट्रेलिया के लोगों को न सिर्फ परेशान कर दिया है बल्कि वहां लोग चूहों से डरे हुए हैं.| ऑस्ट्रेलिया के कृषि मंत्री एडम मार्शल ने कहा है कि 'अगर हम वसंत तक चूहों की संख्या को कम नहीं कर पाते हैं तो ग्रामीण और क्षेत्रीय साउथ वेल्स में आर्थिक और सामाजिक संकट का सामना करना पड़ सकता है।' । लाखों की तादाद में चूहों ने किसानों और फैक्ट्री मालिकों को परेशान कर रखा है। लाखों चूहें ऑस्ट्रेलिया के अलग अलग फैक्ट्री और खेतों से निकल रहे हैं |
24-10- 2021यूपी के कानपुर में चूहों ने करीब 40 करोड़ की पुल को कुतर दिया है. कानपुर में 4 साल पहले राज्य सेतु निगम की ओर से खपरा मोहाल रेलवे ओवरब्रिज बनाया गया था. चूहों की वजह से पुल का एक हिस्सा भरभरा कर गिर गया है |
16-12-2021-चूहे मारने पर लाखों खर्च कर चुका है रेलवे, फिर भी कम नहीं हो रहा आतंक !
चूहों से होने वाले नुकसान की खबरें अक्सर सामने आती रहती हैं. रेलवे स्टेशन !कोई भी हो हर जगह मोटे-मोटे चूहे आपको आसानी से दिख जाएंगे. झांसी से लेकर नागपुर तक इन चूहों को मारने के लिए रेलवे द्वारा बड़ी रकम खर्च की जा चुकी है. लेकिन चूहों के आतंक (Rat's Terror) से Indian Railways को मुक्ति नहीं मिल सकी है |
20-1-2022-हांगकांग में चूहे भी हो रहे कोरोना पॉजिटिव, 2000 से ज्यादा चूहों को मारने का आदेश !22 दिसंबर से पालतू जानवरों की दुकानों से चूहे खरीदने वालों को भी अनिवार्य रूप से कोविड-19 की जांच करानी होगी
विशेष :भारत में भी मध्य प्रदेश, दिल्ली, पंजाब और राजस्थान समेत कई राज्यों से चूहों के आतंक और करोड़ों के माल की नुकसान की खबरें मिली हैं, हालांकि हमारे यहाँ के चूहे ब्रिटेन के चूहे जितने बड़े नहीं हैं।
21-2-2022कोरोना महामारी के बाद ब्रिटेन में फैला चूहों का आतंक, टॉयलेट के रास्ते घरों में घुस रहे बिल्ली के आकार के चूहे !कोरोना के कारण चूहों की संख्या में हर साल 25% की वृद्धि ब्रिटेन में चूहों की संख्या में हुए विस्फोट से अफरातफरी मची हुई है। एक अनुमान के अनुसार उनकी संख्या 150 मिलियन तक पहुंच गई है, जो की अब तक की सबसे अधिक है। हेलैंड्स ने कहा कि कोविड महामारी के कारण इसमें हर साल 25% की वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि लोग काफी डरे हुए हैं और ये स्वभाविक है। ब्रिटेन में पहले से कहीं अधिक चूहें हैं और वे लगातार हावी हो रहे हैं। मैंने कुछ बिल्लियों के आकार के चूहे भी देखे हैं।ब्रिटेन के चूहों की मुंह से लेकर पूंछ तक की लंबाई करीब 18 से 20 इंच तक देखी गई है।
सन 2020 में प्रकाशित -यूके में लॉकडाउन में डेढ़ फुट लम्बे गुस्सैल चूहों का आतंक; भूख ऐसी कि एक-दूसरे को खा रहे, इन पर जहर भी बेअसर हो रहा है | लॉकडाउन में चूहे खाने और रहने के नए ठिकाने ढूंढ़ने में लगे हैं |बताया जाता है कि चूहों से 55 तरह की बीमारियां फैलती है | दुनियाभर में लॉकडाउन के दौरान जानवरों के नए रूप देखने को मिले हैं। लेकिन, ब्रिटेनवासी कोरोना के साथ-साथ बड़े चूहों से बेहद परेशान और खौफ में हैं। 18 इंच तक लम्बे इन चूहों को जाइंट रेट कहा जाता है और लॉकडाउन के दौरान इन्होंने अपने व्यवहार को अधिक आक्रामक बना लिया है | बीते दो महीनों से ये सीवर-अंडरग्राउंड नालियों से निकल कर रहवासी इलाकों में घुस रहे हैं। बंद शहरों से दूर ये उपनगरीय कस्बों की ओर बढ़ रहे हैं। पता चला है कि ये इतने भूखे हैं कि अब एक-दूसरे को खाने लगे हैं। इन पर रेट पॉयजन का भी असर नहीं हो रहा है।
ब्रिटिश पेस्ट कंट्रोल एसोसिएशन के एक सर्वे से पता चला है कि ब्रिटेन में बड़े चूहों के उपद्रव की घटनाओं में 50 फीसदी का इजाफा हुआ है। द सन अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक देशभर में चूहे पकड़ने वालों ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा है कि उनका काम बढ़ गया है। एसोसिएशन की टेक्निकल ऑफिसर नताली बुंगे के मुताबिक: "हमारे पास अब तक ये रिपोर्ट आती थी कि चूहे खाली इमारतों में ठिकाने बना रहे हैं लेकिन,अब ऐसा लगता है कि उनके रहवास का पैटर्न भी बदल रहा है |
मैनचेस्टर के रैट कैचर मार्टिन किर्कब्राइड ने टेलीग्राफ को बताया कि, ब्रिटेन में चूहे इतने बढ़ गए हैं जितने कि 200 साल पहले की औद्योगिक क्रांति के दौरान भी नहीं थे। वैज्ञानिकों ने लॉकडाउन के शुरू होने के बाद से ही यहां के उपनगरों में बड़े चूहों की आबादी में बढ़ोतरी देखी है। कुतरने वाले जीवों पर पीएचडी करने वाले अर्बन रोडेन्टोलॉजिस्ट बॉबी कोरिगन कहते हैं कि:हमने मानव जाति के इतिहास में देखा है, जिसमें लोग जमीन पर कब्जा करने की कोशिश करते हैं। वे पूरी सेना के साथ धावा बोलते हैं और जमीन हथियाने के लिए आखिरी सांस तक लड़ते हैं। और, चूहे भी अब ऐसा ही कर रहे हैं।ब्रिटेन ही नहीं, दुनिया के अन्य देश भी लॉकडाउन के दौरान चूहों के आतंक का सामना कर रहे हैं। अमेरिका में, सेंटरफॉर डिसीज कंट्रोल ने चूहों के आक्रामक हो रहे व्यवहार के बारे में लोगों को सचेत किया है।दिलचस्प बात यह है कि चीनी कैलेंडर के हिसाब से कोरोनावायरस की भेंट चढ़ा साल 2020 चूहों का साल माना गया है।
टिड्डियों का आतंक -
28-5-2020- टिड्डियों दिसंबर 2019 से आरंभ हुआ है। टिड्डियों ने सबसे पहले गुजरात तबाही मचाई। अनुमान के तौर पर सिर्फ दो जिलों के 25 हजार हेक्टेयर की फसल तबाह होने का आंकड़ा राज्य सरकार ने पेश किया है।भारत में टिड्डों से प्रभावित राज्य,राजस्थान,पंजाब,मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश इन टिड्डियों से प्रभावित है।
विज्ञान की भाषा में इसे ऐसे समझाया जाता है : विज्ञान की भाषा में प्रत्यक्ष घटनाओं संकेतों को जोड़कर एक कल्पित कहानी तैयार की जाती है | ऐसे -
टिड्डी दल ओमान के रेगिस्तानों में भारी बारिश के बाद तैयार होते हैं। हिंद महासागर में भी साइक्लोन आने से रेगिस्तान में बारिश होने लगी है, इस वजह से भी टिड्डियां पैदा होती हैं। भारत में अप्रैल महीने के बीच टिड्डियों ने राजस्थान में एंट्री की थी। तब से वे पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र तक फैल चुकी हैं।
2018 में आए साइक्लोन की वजह से ओमान के रेगिस्तान में टिड्डियों के लिए परफेक्ट ब्रीडिंग ग्राउंड बना। इसके बाद, टिड्डी दल यमन की ओर बढ़ा फिर सोमालिया और बाकी ईस्ट अफ्रीकी देश पहुँचा। दूसरी तरफ, ईरान, सऊदी अरब और यमन से एक और झुंड निकला। यही दल पाकिस्तान और भारत में घुसा है।
वर्ष 2019 में मानसून पश्चिमी भारत में समय से पहले (जुलाई के पहले सप्ताह से छह सप्ताह पहले) शुरू हुआ, विशेषकर टिड्डियों से प्रभावित क्षेत्रों में। यह सामान्य रूप से सितंबर/अक्टूबर माह के बजाय एक माह आगे नवंबर तक सक्रिय रहा। विस्तारित मानसून के कारण टिड्डी दल के लिये उत्कृष्ट प्रजनन की स्थितियाँ पैदा हुई। इसके साथ ही प्राकृतिक वनस्पति का भी उत्पादन हुआ, जिससे वे लंबे समय तक भोजन के लिये आश्रित रह सकती थीं।रेगिस्तानी टिड्डे आमतौर पर अफ्रीका के निकट, पूर्वी और दक्षिण-पश्चिम एशिया के अर्ध-शुष्क और शुष्क रेगिस्तान तक सीमित होते हैं, जो वार्षिक रूप से 200 मिमी से कम बारिश प्राप्त करते हैं।सामान्य जलवायुवीय परिस्थितियों में, टिड्डियों की संख्या प्राकृतिक मृत्यु दर या प्रवासन के माध्यम से घट जाती है।कुछ मौसम विज्ञानियों का मानना है कि टिड्डियों का इस प्रकार प्रजनन, जो कृषि कार्यों के लिये चिंता का विषय है, हिंद महासागर के गर्म होने का एक अप्रत्यक्ष परिणाम है।
पश्चिमी हिंद महासागर में सकारात्मक हिंद महासागर द्विध्रुव या अपेक्षाकृत अधिक तापमान पाया गया परिणामस्वरूप भारत समेत पूर्वी अफ्रीका में घनघोर वर्षा हुई।
वर्षा के कारण नम हुए अफ्रीकी रेगिस्तानों ने टिड्डियों के प्रजनन को बढ़ावा दिया और वर्षा की अनुकूल हवाओं द्वारा इन्हें भारत की ओर बढ़ने में सहायता मिली।
पशु पक्षियों फलों जलों में कोरोना
05 मई 2020-राष्ट्रपति ने कहा-टेस्ट किट सही नहींकोरोना वायरस के ये सैंपल बकरी भेड़ से लिए गए थे। सैंपल को जांच के लिए तंजानिया की लैब में भेजा गया, जहां बकरी और फल कोरोना पॉजिटिव निकले।
17-7-2020 कोरोना वायरस: स्पेन में एक लाख ऊदबिलाव को मारने का आदेश !उत्तर-पूर्वी स्पेन के एक फ़ार्म में कई ऊदबिलाव कोरोना वायरस संक्रमित पाए गए हैं जिसके बाद यह फ़ैसला किया गया है| 30 जून 2020-चरवाहे को हुआ कोरोना वायरस, बकरियों और भेड़ों को सांस लेने में दिक्कत!
विशेष बात :विश्व के कई देशों प्रदेशों में पक्षियों के मरने की घटनाएँ सुनाई देती रही हैं | भारत के कई प्रदेशों मेंबड़ी संख्या में कौवों के मरने की घटनाएँ दिखाई सुनाई देती रहीं | मई 2020 में गोरखपुर बरेली बिहार मध्यप्रदेश आदि में कोरोना काल में बहुत बड़ी संख्या में मरे हुए चमगादड़ पाए गए हैं। एक साथ इतनी बड़ी संख्या में चमगादड़ों की मौत से ग्रामीणों में अज्ञात सा डर फैल गया है। लंपी रोग से बड़ी संख्या में गायों को मरते देखा जा रहा है |
20 Apr 2020-अमेरिका में एक बाघ में कोरोना पाया गया. वहीं कई जगहों में कुत्तों में भी कोरोना के निशान मिले. अब फ्रांस की राजधानी पेरिस में पानी में कोविड पाया गया है |
28जुलाई 2020,ब्रिटेन में बिल्ली कोरोना पॉजिटिव, पालतू जानवर में कोविड-19 के मामले मिले |
13अगस्त 2020-चीन से आई चौंकाने वाली खबर, चिकन में भी कोरोना वायरस!चीन ने फ्रोजन चिकनके पंख में भी कोविड-19 के होने की पुष्टि की है.|
समय प्रकृति और महामारी
कोरोना लाल के कुछ वर्ष पहले से ही शिशिर(सर्दी) की ऋतु में सर्दी कम होने लगी और ग्रीष्म (गर्मी) की ऋतु में गर्मी कम होने लगी !कुछ दूसरी ऋतुओं में ग्रीष्मऋतु की तरह तापमान बढ़ने लगा | वर्षा के अतिरिक्त कुछ दूसरी ऋतुओं में अति वर्षा और बाढ़ के दृश्य दिखाई देने लगे | सन 2020 में तो मार्च अप्रैल तक वर्षा होती रही |सूखा वर्षा बाढ़ जैसी भयानक हिंसक घटनाएँ पिछले कुछ वर्षों से विश्व के अनेकों देशों प्रदेशों में घटित होते देखी जा रही थीं |
कुल मिलाकर दुनिया के कई देशों में मौसम के बदलते मिजाज को देखा जा रहा था | .कोरोना काल में एशिया, यूरोप, अफ्रीका, अमेरिका, चीन और रूस आदि में मौसम का प्रचंड रूप देखा जा रहा था | यूरोप से लेकर एशिया और नॉर्थ अमेरिका से लेकर रूस तक कहीं बाढ़थी , कहीं गर्म हवाएँ थीं तो कहीं पर सूखे की स्थिति थी | यूरोप के देश , नॉर्थ अमेरिका, एशिया और अफ्रीका में कहीं बाढ़, कहीं तूफान, कहीं हीट वेव, कहीं जंगलों में लगी आग तो कहीं सूखे की स्थिति थी | रूस, चीन, अमेरिका और न्यूजीलैंड में लोग गर्मी, बाढ़ और जंगलों में लगी आग से परेशान थे | महामारी प्रारंभ होते समय आकाश समुद्र और पर्वतों के रंग में कालिमा बढ़ने लगी थी | सूर्य मंडल में श्यामलता बढ़ने लगी थी |
भूकंप आँधी तूफान जैसी घटनाएँ संपूर्ण विश्व में बार बार घटित होते देखी जा रही थीं | जिन प्राकृतिक घटनाओं के लिए पंचतत्वों को दोषी माना जाता है | जल एवं वायु परिवर्तन को दोषी बताया जाता है | वे पंचतत्व भी तो समय के ही आधीन होते हैं | समय के परिवर्तन के साथ साथ उन्हें भी परिवर्तित होना पड़ता है|प्रकृति के संचालन में उन पंचतत्वों की बड़ी भूमिका होती है और पंचतत्वों के संचालन में समय की बड़ी भूमिका होती है | प्रातः काल जलतत्व प्रबल होता है, मध्यान्ह काल में अग्नि तत्व प्रबल रहता है और अपराह्न काल में वायुतत्व प्रबल रहता है |सूर्यास्त के समय सुषुम्ना प्रवाह में आकाशतत्व का प्राबल्य रहता है| इसी प्रकार से रात्रि में या भिन्न भिन्न ऋतुओं में पंचतत्वों के प्रभाव में समय के अनुशार परिवर्तन होते देखे जाते हैं |जब जैसा समय होता है तब तैसे बदलाव होते देखे जाते हैं |
बुरे समय के प्रभाव से जब अचानक पंचतत्वों में कुछ ऐसे बदलाव होने लगते हैं |जो लंबे समय से चले आ रहे प्रकृति क्रम से अलग हटकर घटित होते हैं |पंचतत्व उसप्रकार के परिवर्तन को सहने के अभ्यासी नहीं रहे होते हैं |जिन परिवर्तनों को उन्हें अचानक सहने के लिए बाध्य होना पड़ता है | ऐसे समय में पंचतत्व स्वयं आंदोलित होने लगते हैं | जिनकी बेचैनी उनसे संबंधित प्राकृतिक घटनाओं के माध्यम से देखी एवं अनुभव की जा सकती है | महामारी के समय केवल वायु ही प्रदूषित नहीं होती है उसके साथ साथ पृथ्वी जल अग्नि आकाश आदि सभी विकारों से युक्त असंतुलित होने लगते हैं |सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं के समय प्रभाव आदि में ऐसे बदलाव होने लगते हैं ,जो हमेंशा होते नहीं देखे जाते हैं| शिशिर(सर्दी)ऋतु में सर्दी का बहुत अधिक या बहुत कम होना या सर्दी की अवधि का घट - बढ़ जाना | ऐसा ही ग्रीष्मऋतु में गर्मी का बहुत अधिक या बहुत कम होना या ग्रीष्मऋतु की अवधि का घट - बढ़ जाना ! ऐसा ही असंतुलन वर्षाऋतु में देखा जाता है !
इस प्रकार से भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं के बार बार घटित होने जैसे लक्षण जितने कम या अधिक होते हैं उतने ही बड़े रोग या महारोग के पैदा होने का संकेत दे रहे होते हैं | ऐसी घटनाओं के आगे या पीछे घटित होने वाली छोटी बड़ी प्राकृतिक घटनाएँ भी उन संकेतों के बारे में ही कुछ सूचित कर रही होती हैं | ऐसी सभी प्राकृतिक घटनाएँ जिस समय घटित होती हैं उस समय का भी महत्त्व होता है |कोरोना महामारी के समय प्राकृतिक वातावरण में ऐसा असंतुलन होते बार बार देखा गया था |
कुल मिलाकर प्रकृति और जीवन के स्वस्थ रहने में समय और समय के प्रभाव की बहुत भूमिका होती है | कोरोना महामारी आने के लगभग एक दशक पहले से ऋतुएँ अपनी समय सीमा लाँघने लगी थीं |सर्दी और गरमी से संबंधित ऋतुओं में काफी अधिक वर्षा होते देखी जा रही थी जबकि वर्षाऋतु के समय में उतनी अधिक वर्षा नहीं होती थी | सितंबर के महीने में जून जैसी गरमी होने लगती थी | जनवरी फरवरी से ही तापमान बढ़ने लगता था | सन 2020 में भी अप्रैल मई तक वर्षा होते देखी जा रही थी |
भूकंप आते बार बारदेखे जा रहे थे | ऋतुओं का व्यवहार समय के अनुरूप नहीं रह गया था |ऋतुओं का प्रभाव कभी बहुत अधिक तो कभी बहुत कम दिखाई पड़ने लगा था|
इसी प्रकार से कहीं बहुत अधिक वर्षा बाढ़ जैसे दृश्य तो कहीं सूखा पड़ते देखा जाता रहा था | बार बार चक्रवात बज्रपात जैसी घटनाएँ घटित होते देखी जा रही थीं | ऐसी प्राकृतिक उथलपुथल संपूर्ण विश्व में घटित होते देखी जा रही थी | इस प्रकार के प्राकृतिक असंतुलन से भविष्य में महामारी जैसी किसी बड़ी घटना के घटित होने के संकेत मिल रहे थे | जिन्हें समय रहते पहचाना नहीं जा सका था |
प्राकृतिक परिवर्तनों की स्थिति इतनी बिगड़ती जा रही थी कि ऋतुएँ अपनी मर्यादा छोड़ती जा रही थीं | जनवरी फरवरी में तापमान का अस्वाभाविक रूप से बढ़ गया था | अप्रैल मई तक वर्षा होती रही थी !सितंबर में जून की तरह गर्मी होने लगी थी | प्राकृतिक दृष्टि से देखा जाए तो ये मानवता पर काफी बड़ा प्राकृतिक संकट था | ऋतुओं के असंतुलन से आनाज शाक सब्जियों फूलों फलोंके गुणधर्म बदलने लगे थे |जिन वृक्षों के लिए कहा जाता है कि कितना भी खाद पानी दो किंतु ये अपने समय से पहले फूलते फलते नहीं हैं | उन वृक्षों को बिना ऋतु आए भी फूलते फलते देखा जा रहा था |कुछ फलों का आकार प्रकार रंग रूप स्वाद आदि बदला बदला सा लग रहा था | लीचियों के आकार अपेक्षाकृत छोटे होने लगे थे |
जिस प्रकार से सब्जी बनाते समय जिस मसाले को जिस अनुपात में डालने से स्वादिष्ट होता है | उससे कम या अधिक डाला जाए तो सब्जी का स्वाद बिगड़ जाता है | उसीप्रकार से किसी औषधि के निर्माण के लिए जिस घटकद्रव्य को जितनी मात्रा में डाला जाना है | उनमें से कुछ घटक द्रव्य यदि बहुत अधिक डाल दिए जाएँ और कुछ यदि बहुत कम डाले जाएँ तो उस औषधि के गुणों में बदलाव हो जाएगा | कभी कभी तो हानिकारक होते भी देखी जाती है | इसी प्रकार से प्राकृतिक वातावरण में जितनी सर्दी गर्मी वर्षा आदि के ऋतु प्रभाव की आवश्यकता होती है | ऋतु प्रभाव उससे कम या अधिक हो रोग कारक और यदि यह बहुत कम या अधिक हो और लंबे समय तक ऐसा ही होता रहे तो महामारी जैसे महारोगों को जन्म देने वाला होता है | ऐसा असंतुलित ऋतु प्रभाव हो जाने से प्राकृतिक वातावरण स्वास्थ्य के लिए हानिकर हो जाता है|ऐसे वातावरण में साँस लेते रहने से शरीरों की प्रतिरोधक क्षमता समाप्त होने लगती है|ऐसे वातावरण के प्रभाव में पैदा होने वाले फल फूल अनाज शाक सब्जियाँ बृक्ष बनस्पतियाँ आदि अपने गुणों से रहित होकर स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले हो जाते हैं | इन्हें खाने पीने से बड़े बड़े रोग पैदा होने लगते हैं | यदि यह प्रभाव बहुत अधिक बढ़ जाए तो महामारी जैसी घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं | ऐसे रोगों से मुक्ति दिलाने वाली औषधियाँ जिन बनस्पतियों से बनती हैं| वे औषधीय बनस्पतियाँ भी ऐसे ही प्रदूषित वातावरण में पली बढ़ी होती हैं | जिसके प्रभाव से उन औषधियों में वे गुण नहीं रह जाते हैं|जिस प्रभाव के लिए वे जानी जाती हैं| इसलिए ऐसे प्राकृतिक रोगों में उन औषधियों के प्रयोग से उन रोगों से मुक्ति दिलाने में कोई मदद नहीं मिल पाती है | ऐसी परिस्थिति में जिस वातावरण में साँस लेने से प्रतिरोधक क्षमता नष्ट होती जा रही हो,ऐसे वातावरण में पैदा हुए फल फूल अनाज शाक सब्जियाँ आदि खाने से रोग पैदा हो रहे हों,उसी प्रदूषित वातावरण में पली बढ़ी गुण हीन हो चुकी बनस्पतियों से निर्मित प्रभावविहीन औषधियाँ रोगों से मुक्ति दिलाने में सक्षम न हो पा रही हों और रोग दिनों दिन बढ़ते जा रहे हों तो इसी अवस्था को महामारी मान लिया जाना स्वाभाविक ही है |
ऐसे कठिन समय में जब अधिकाँश लोग रोगी होते देखे जा रहे हों,औषधियों से लाभ न मिल पा रहा हो बहुत लोगों की मृत्यु होते देखी जा रही हो |ऐसे महारोगों से मनुष्यों की सुरक्षा कैसे की जा सकती है |
मौसम में जब इतने बड़े बड़े बदलाव होने लगते हैं,तो उसका प्रभाव भी उसीप्रकार का होगा यह स्वाभाविक ही है | कोरोना महामारी के समय भी प्राकृतिक घटनाओं का काल,क्रम ,अनुपात आदि सबकुछ तेजी से बिगड़ने लगा था | भूकंप आँधी तूफान वर्षा बाढ़ चक्रवात बज्रपात वायु प्रदूषण तापमान आदि बार बार घटित होते देखे जा रहे थे |प्राकृतिक घटनाओं का संतुलन दिनोंदिन बिगड़ता जा रहा था | इससे महामारी जैसी स्वास्थ्यविरोधी बड़ी दुर्घटनाओं का घटित होना स्वाभाविक ही था |जिसे समय से समझा नहीं जा सका था |ब्यवहार में भी देखा जाता है कि किसी विमान का पायलट जब देखता है कि विमान संचालन में कुछ घटनाएँ उसके अनुमान से अलग हटकर घटित होते दिखाई दे रही हैं या अनुमान के विरुद्ध घटित हो रही हैं तो पायलट इसकी सूचना कंट्रोलरूम को तुरंत इस आशंका के साथ देता है कि कुछ गड़बड़ होने वाला है |ऐसे ही मौसम संबंधी अनुसंधानों में लगे वैज्ञानिकों को लीक से हटकर घटित हो रहे प्राकृतिक परिवर्तनों को समझना चाहिए था | प्राकृतिक घटनाओं को असंतुलित होते देखकर इतनी बड़ी महामारी के विषय में समाज को तुरंत सतर्क कर दिया जाना चाहिए था | कुशल रसोइया भोजन बनाते समय अनेकों तेल मशालों को उचित अनुपात में डालकर एक से एक स्वादिष्ट ब्यंजन तैयार करते देखे जाते हैं |उसी ब्यंजन में सारे मशाले डाले जाएँ किंतु उनका अनुपात बिगड़ जाए तो वह ब्यंजन स्वादिष्ट नहीं बनेगा | यह अनुपात जितना बिगड़ता है भोजन का स्वाद भी उतना ही बिगड़ जाता है |विशेष बात यह है कि मशालों का अनुपात बिगड़ते ही रसोइए को अनुमान लग जाता है कि ब्यंजन का स्वाद बिगड़ जाएगा !उसमें इस मशाले की कमी या बढ़ोत्तरी दिखाई देगी !उसके सुधार के लिए वह उस अनुपात को संतुलित करने के प्रयास भी उसी समय करता है जिसमें कई बार वह सफल भी होता है यही उस रसोइए का विशेष गुण होता है | मौसम भी उसी ब्यंजन की तरह ही होता है | जिसमें सर्दी गर्मी वर्षा आदि जब तक उचित अनुपात में होती रहती है | तब तक प्रकृति और जीवन दोनों ही स्वस्थ बने रहते हैं | ये अनुपात बिगड़ते ही दोनों का स्वस्थ्य बिगड़ने लगता है | ऐसे ही किसी औषधि के निर्माण में घटक द्रव्यों का अनुपात यदि बिगड़ जाए तो निर्मितऔषधि लाभ की जगह नुक्सान भी पहुँचा सकती है |जिसका अनुमान कुशल चिकित्सक पहले ही लगा लिया करते हैं | ऐसे ही मौसम वैज्ञानिकों से लेकर चिकित्सा वैज्ञानिकों तक की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे प्रतिपल होते प्राकृतिक परिवर्तनों को न केवल देखते समझते रहें अपितु उनके अभिप्राय तथा उनसे प्राप्त भविष्य संबंधी संकेतों को भी समझते रहें तभी उनके द्वारा किए गए अनुसंधान समाज के लिए उपयोगी हो सकते हैं ,अन्यथा ऐसे अनुसंधानों को करने का प्रयोजन ही क्या बचता है |
ऋतुध्वंस या जलवायुपरिवर्तन !
जल और वायु भी तो पंचतत्वों में ही सम्मिलित हैं| परिवर्तन होगा तो पाँचोंतत्वों में एक साथ होगा !किसी एक तत्व में परिवर्तन शुरू होते ही दूसरे तत्व भी उससे प्रभावित होने लगते हैं|किसी गाड़ी के चार पहियों में से कोई एक पहिया भी यदि खाँचे में चला जाए तो शेष तीनों पहियों की भी गति बाधित हो जाती है |ऐसी स्थिति में यह कैसे संभव है कि जलवायु परिवर्तन हो किंतु बाक़ी तीन तत्वों में कोई परिवर्तन ही न हो | तापमान बढ़ने के बाद सर्दी को कम करना नहीं पड़ता है अपितु सर्दी स्वतः कम हो जाती है|
हमारे कहने का अभिप्राय जलवायुपरिवर्तन का मतलब केवल जल और वायु तत्व में ही परिवर्तन न होकर प्रत्युत पाँचों तत्वों में होने वाला परिवर्तन है | अचानक तापमान बढ़ने लगे या सर्दी अधिक बढ़ने लगे, बार बार तूफ़ान आने लगें ! हिंसक महामारी आ जाए !लीक से हटकर घटित होने वाली ऐसी सभी घटनाओं के घटित होने के लिए जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार माना जाता है ,किंतु ऐसा कैसे हो सकता है | तापमान बढ़ने का कारण जल और वायु में होने वाले परिवर्तन न होकर प्रत्युत अग्नि तत्व में होने वाला परिवर्तन है | भूकंप जैसी घटनाएँ पृथ्वी अग्नि एवं वायुतत्व के संयोग से घटित होती हैं |तूफ़ान जैसी घटनाएँ अग्नि एवं वायु के संयोग से घटित होती हैं | इसलिए सभीप्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के लिए केवल जलवायुपरिवर्तन को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है | चिकित्साशास्त्र में भी प्रकृति एवं जीवन को प्रभावित करने वाले जिन वातपित्तकफ के असंतुलन चर्चा की जाती है वह भी जलवायुपरिवर्तन ही तो है | उसमें अग्नि तत्व को भी सम्मिलित किया गया है जिसके बिना केवल जलवायुपरिवर्तन प्रकृति एवं जीवन को प्रभावित करने में सक्षम नहीं है |वातपित्तकफ के असंतुलन से संपूर्ण प्रकृति एवं जीवन पर बिपरीत प्रभाव पड़ता है |त्रितत्वों के वैषम्य से संपूर्ण प्रकृति प्रभावित होती है | खाने पीने की चीजें प्रभावित होती हैं |उन्हें खाने पीने से स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है |ऐसी हवा में साँस लेने से रोग पैदा होते हैं | वर्षा आदि होने न होने तथा कम या अधिक होने का कारण केवल जलवायुपरिवर्तन ही नहीं अपितु पंचतत्वों का वैषम्य होता है |ऐसी बिषमता का कारण समय में होने वाले परिवर्तन होते हैं | समय के संचार में होने वाले परिवर्तनों को समझे बिना पंचतत्वों के वैषम्य को समझना या इनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना कठिन होता है |इसके बिना भूकंप आँधी तूफ़ान आदि किसी भी प्राकृतिक घटना को समझना केवल कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी है | विभिन्न प्राकृतिकघटनाओं के लिए केवल जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा देने मात्र से अनुसंधानों का उद्देश्य पूरा नहीं हो जाता है |लक्ष्य तो प्राकृतिक आपदाओं के कारणों एवं उनके समाधानों को खोजना होता है | ऐसी घटनाएँ यदि जलवायुपरिवर्तन के कारण घटित होती हैं,तो जलवायुपरिवर्तन होने का कारण खोजना होगा | उसके विषय में अनुमान पूर्वानुमान लगाना होता है |तभी ऐसे अनुसंधानों से लक्ष्य साधन हो सकता है | पंचतत्वों के संतुलन से ही जीवधारियों के रहने लायक वातावरण का निर्माण हो पाता है | समस्त जीवधारियों को इसीप्रकार के वातावरण में रहने की आदत सी पड़ी हुई है | इस वातावरण में जितना परिवर्तन होता है उतना ही जीवन के लिए असहनीय होता जाता है| जिसे सहने का जीवन को अभ्यास ही नहीं है |इसीलिए रोग महारोग आदि पैदा होने लगते हैं | ऐसे समय मनुष्यों से लेकर पशु पक्षियों समेत समस्त जीवधारियों में बेचैनी घबड़ाहट आदि बढ़ने लगती है |ऐसी बेचैनी घबड़ाहट आदि बढ़ने के लिए वो अपने खान पान रहन सहन आहार बिहार आदि को जिम्मेदार मान लेते हैं| कुछ लोग अपने सुख साधनों का सहारा लेकर मन की ऐसी बेचैनी घटाने का प्रयत्न करते हैं |कुछ लोग इसके लिए मनोरंजक साधनों का सहारा लेते हैं | इसीलिए हास्यकविसम्मेलनों ने कोरोना महामारी आने से पहले काफी जोर पकड़ा था | ऐसी बातों से मनुष्यों का ध्यान दूसरी ओर भटक जाता है !जिससे उन्हें प्राकृतिक परिवर्तनों का अनुभव नहीं हो पाता है | इसी बेचैनी को न सह पाने के कारण अपराध उन्माद हिंसात्मकप्रवृत्ति आंदोलन भावना आदि दिनों दिन बढ़ते जा रहे होते हैं | इसलिए जलवायु परिवर्तन का मतलब केवल उतना ही नहीं होता है,प्रत्युत जलवायु परिवर्तन का मतलब प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों के पैदा होने का पूर्व संकेत होता है |
जिसप्रकार की घटनाएँ जबघटित होती दिखाई दें तब उस प्रकार का समय चल रहा होता है |अच्छी बुरी प्राकृतिक घटनाओं को देखकर अच्छे बुरे समय की पहचान की जाती है | समय के अनुसार वृक्षों बनस्पतियों में बदलाव होने लगते हैं | समय के अनुसार बीजों में अंकुरण होता है |समय से अनाज बोए जाते हैं हैं और समय से ही पक जाते हैं | ऐसे ही मार्च अप्रैल में खेतों में झड़ गए बीज मिट्टी और पानी में यूँ ही छै महीने तक पड़े रहते हैं |लेकिन अंकुरित समय आने पर ही होते हैं | ऐसे ही बारहों महीने बाग़ बगीचों में खड़े हरे भरे आम जामुन आदि फूल फलदार वृक्षों में समय आने पर ही फूल फल लगते देखे जाते हैं| समय से कमल खिलते हैं | समय से ही समुद्र में ज्वार भाटा जैसी घटनाएँ घटित होती हैं |
समय की पहचान जितनी पेड़ पौधों को होती है|उतनी ही प्राकृतिक वातावरण में रहने वाले पशु पक्षियों समेत समस्त प्राणियों को होती है |ऐसे परिवर्तनों के प्रभाव से उनके व्यवहार में बदलाव होने लगते हैं| सुनामी भूकंप आदि आने से पहले जंगलों में रहने वाले आदि वासी लोगों को उन स्थानों को छोड़कर कहीं और जाते देखा जाता है |ऐसे स्थानों से पशु पक्षियों को भी कहीं दूर चले जाते देखा जाता है |समय संबंधी परिवर्तनों की पहचान समस्त जीव जंतुओं को होती है|बसंत आते ही कोयलें कूकने लगती हैं| वर्षाऋतु में मेढक टर्राने लगते हैं |प्रातः काल मुर्गे बोलने लगते हैं |ऐसे ही बहुत मनुष्यों को समय के परिवर्तनों का अनुभव आगे से आगे हो जाता है|
ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने से पहले उनसे संबंधित छोटे छोटे चिन्ह प्रकृति के सभी अंगों में उभरने लगते हैं |ऐसे छोटे से छोटे परिवर्तनों पर ध्यान देना होता है | वे संभावित घटनाओं की सूचना दे रहे होते हैं | प्रकृति के सभी अंगों में होने वाले समय के परिवर्तनों का अनुभव करने का सबसे अच्छा माध्यम प्राकृतिक वातावरण में रहकर प्राकृतिक जीवन जीना होता है |
समय संबंधी प्राकृतिक परिवर्तनों को प्राकृतिकवातावरण में रहकर ही सबसे अच्छा अनुभव किया जा सकता है| इसीलिए प्राचीनकाल में ऋषियोंमुनियों को जंगलों में रहकर अनुभव करते देखा जाता था | उनके रहने खाने पीने आदि की सुख सुविधाएँ उन्हें भी राजदरवारों में मिल सकती थीं | तपस्या वो वहाँ भी रहकर कर सकते थे किंतु प्राकृतिक परिवर्तनों का अनुभव करने के लिए उन्हें जंगलों में ही रहना पड़ता था | उनसे उनके अनुभव प्राप्त करने के लिए राजा लोग प्रायः जंगलों में जाया करते थे |कभी कभी कुछ आकस्मिक संकेत प्राप्त होने पर ऋषियोंमुनियों को भी राजदरवारों में आते देखा जाता था | वहाँ उनका बहुत आदर सत्कार होता था | इसमें विशेष बात यह भी है कि जंगलों में हिंसक जीव जतुओं का भय रहता है | भोजन आदि की कठिनाई होती है | इससे बचाव के लिए ऋषि चाहते तो जंगलों में भी समूहों में रहकर एक दूसरे के सहायक बन सकते थे | इससे कठिनाइयाँ कुछ कम हो सकती थीं किंतु उन्हें भिन्न भिन्न स्थानों की प्रकृति का अनुभव करना होता था |इसलिए ऋषियों के आश्रम एक दूसरे से काफी दूर होते देखे जाते थे |
ऐसी परिस्थिति में समाज को स्वस्थ और प्रसन्न रखने के लिए प्राकृतिक वातावरण में हो रहे परिवर्तनों एवं वायुप्रवाह का सतत परीक्षण करते रहना चाहिए | प्राचीन काल में ऋषि मुनि महात्मा आदि इसी प्राकृतिक वातावरण का अनुभव अध्ययन आदि करने के लिए जंगलों में आश्रम बनाकर रहा करते थे | त्रिकाल संध्या करते थे | संध्या का प्राण प्राणायाम होता है | प्राणायाम करते समय स्वरोदय विज्ञान के आधार पर इड़ा पिंगला सुषुम्णा के साथ साथ पंचतत्वों के प्रवाह का निरंतर निरीक्षण करते रहते थे |चैत्र शुक्ल प्रतिपदा प्रातः काल से ही यह प्रक्रिया प्रारंभ करके निरंतर अभ्यास करना होता था |वायु प्रवाह बिगड़ना जैसे ही प्रारंभ होता था | उसी समय से उसे नियंत्रित करने की दृष्टि से प्रभावी प्रयत्न प्रारंभ कर दिए जाते थे |यहीं से प्राकृतिक वातावरण सुधरने लगता था | जिससे अन्न फूल फल शाक सब्जियाँ आदि प्रदूषित होने से बच जाया करती थीं | इससे महामारी जैसे रोग प्रारंभ में ही नियंत्रित होने लग जाते थे | महामारी प्रारंभ होने से पहले जिन बनौषधियों का संग्रह करके रख लिया जाता था | उनसे निर्मित औषधियाँ अत्यंत प्रभावी होती थीं | महामारी के विषाणुओं से कुछ लोग यदि संक्रमित हो भी गए तो उन औषधियों से उन्हें तुरंत रोगमुक्त कर लिया जाता था | इस प्रक्रिया से प्राचीन काल में महामारियाँ उतनी अनियंत्रित नहीं हो पाती थीं |
गणितविज्ञान के द्वारा भी अच्छे बुरे समय की पहचान कर ली जाती है |भविष्य के अच्छे बुरे समय के विषय में भी गणित के द्वारा पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए|उसी के अनुसार प्राकृतिक घटनाओं आपदाओं एवं कोरोना जैसी महामारियों के विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगाया जा सकता है|
इसमें गणितविज्ञान के द्वारा समय संबंधी जो जानकारी मिलती है | उसके आधार पर अच्छे बुरे समय के विषय में सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | अच्छे बुरे समय के विषय में पूर्वानुमान लगते ही समय के प्रभाव से घटित होने वाली प्राकृतिक घटनाओं के विषय में भी सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगाना संभव हो पाएगा |
वर्तमान समय में ऐसीघटनाओं के विषय में समय आधारित अनुसंधानों की परंपरा ही विलुप्त होती जा रही है | इसी कारण प्रकृति एवं जीवन से संबंधित घटनाएँ अचानक घटित होते दिखाई दे रही हैं |आवश्यकता ऐसी घटनाओं के घटित होने के निश्चित समय को खोजे जाने की है |
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