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महामारीसंकट और वैज्ञानिकअनुसंधानों का योगदान ! 1-8-2024

                                                                         भूमिका 
      महामारी से संबंधित अनुसंधान हमेंशा चला करते हैं उन पर देशकी जनता के द्वारा टैक्स रूप में दिएगए धन का ही कुछ अंश सरकारें ऐसे अनुसंधानों पर खर्च किया करती हैं |पिछले सैकड़ों वर्षों से चले आ रहे महामारी से संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधानों से जो कुछ मिला वह कोरोना महामारी के संकट के समय सारी दुनियाँ ने देख लिया  है | कुल मिलाकर अब किसी से कुछ छिपा नहीं है | वैश्विक समाज को अब इस बात का पता चल चुका है कि महामारी के विषय में अभी तक किए गए वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा महामारी के विषय में कुछ भी पता लगा पाना संभव  नहीं हो सका है | किसी रोग या महारोग के स्वभाव लक्षणों आदि को जाने समझे बिना न ही ऐसे रोगियों की चिकित्सा की जा सकती है और न ही किसी औषधि का निर्माण किया जा सकता है | 

     यही कारण है कि अभी तक कोविड-19 का कोई इलाज मौजूद नहीं है. जिस इलाज की सलाह डॉक्टर्स मरीजों को दे रहे हैं वो सिर्फ और सिर्फ रिकवरी होने तक स्थिति को कंट्रोल रखने और लक्षणों को रोकने के लिए है | महामारी की संपूर्ण समाप्ति कब होगी इसके विषय में कुछ आशंकाओं अंदाजों अफवाहों को छोड़कर  वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर किसी  वैज्ञानिक के द्वारा  कोई विश्वास करने योग्य कोई वैज्ञानिक उत्तर नहीं दिया जा सका है | 
     कुल मिलाकर महामारी विज्ञान से संबंधित अनुसंधानों के आधार पर यदि महामारी के विषय में कुछ पता नहीं लगाया जा सकता है | भूकंप विज्ञान से संबंधित अनुसंधानों के द्वारा  यदि भूकंपों के विषय में कुछ पता नहीं लगाया जा सकता है और मौसमविज्ञान से संबंधित अनुसंधानों की मदद से यदि मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में कोई सही सटीक पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है तो ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों की जनहित  की दृष्टि से भूमिका क्या है | समाज एवं सरकारों के लिए यह स्वयं में अनुसंधान का विषय है |
     भूकंपों के घटित होने का कारण जिन भूमिगत गैसों के दबाव को या धरती के अंदर लावा पर तैरती प्लेटों के आपस में टकराने को मान लिया गया है वह तब तक केवल कल्पनाप्रसूत कहानी की तरह ही है जब तक कि उसके आधार पर भूकंपों के विषय में अनुमान लगाने में सफलता न मिले | ऐसी कल्पनाओं को वैज्ञानिकअनुसंधानजनित   सिद्ध करने के लिए इन्हें कहीं से तो प्रमाणिकता का बल प्रदान करना ही होगा जो पारदर्शी सर्वग्राह्य एवं तर्कसंगत हो |
      मौसम की भी यही स्थिति है !प्रकृति के स्वभाव को समझे बिना प्राकृतिक घटनाओं के विषय में कोई जानकारी जुटाई जा सकती है !पूर्वज बता गए थे कि छै ऋतुएँ हैं उनमें भी सर्दी गर्मी वर्षा आदि तीन ही अधिक प्रसिद्ध हैं | सर्दी के बाद गर्मी उसके बाद वर्षा उसके बाद फिर सर्दी आदि यही क्रम हम सबको अनादिकाल से पता है |मौसमविज्ञान से संबंधित अनुसंधान सैकड़ों वर्षों से होते चले आ रहे हैं किंतु मौसमसंबंधी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में हमें आज भी केवल उतना ही पता है |उसके अतिरिक्त जो कुछ नया खोज लेने का दावा किया  भी जाता है वह झूठी कल्पनाओं पर आधारित होने के कारण गलत होते देखा जाता है|आज तक मानसून आने जाने की तारीखें सही नहीं निकल सकीं !दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान सही नहीं निकल सके !अल्पावधि मौसम पूर्वानुमान आम लोगों के मौसम संबंधी अंदाजों से मिलते जुलते होते हैं | उपग्रहों रडारों से मौसमसंबंधी प्राकृतिक घटनाओं देखने की सुविधा आम लोगों के पास नहीं होती है बस उतना ही अंतर पड़ते देखा जाता है | इस संपूर्ण प्रक्रिया में प्रकृति के स्वभाव को समझने की कोई विशेष वैज्ञानिक पद्धति होती तब तो उसके आधार पर दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान या मानसून आने जाने की तारीखें भी सच निकल सकती थीं | 
    कुलमिलाकर न जाने कितने लोग भूकंपवैज्ञानिक ,मौसमवैज्ञानिक एवं महामारीवैज्ञानिक के रूप में बड़े बड़े पदों पर प्रतिष्ठित होकर जिस विशेषज्ञता के बल पर सैलरी सम्मान सुख सुविधाएँ आदि साधिकार भोगते रहे उन विषयों से संबंधित आज तक जो भी अनुसंधान किए जाते रहे उनसे जनहित में ऐसा  क्या हासिल हुआ जो उस पद्धति से जुड़े संकटकाल में समाज की मदद कर पाने में सक्षम रहा हो | 
      महामारीविज्ञान से संबंधित अनुसंधानों की उपलब्धियों से कोरोनाकाल में समाज सुपरिचित हो ही  चुका है !भूकंपों से संबंधित   वैज्ञानिकअनुसंधानों  की क्षमता से समाज सुपरिचित है ही | मौसम संबंधी अनुसंधानों की उपलब्धियों का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले दस वर्षों में जितने भी प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ घटित हुई हैं उनमें से अधिकाँश आपदाओं के विषय में कोई पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका है |
      महामारी से  भयभीत समाज को सुख पहुँचाने के लिए सुना जा रहा है कि अब अगली महामारी से निपटने की तैयारियाँ अभी से शुरू  रही हैं किंतु उन तैयारियों के नाम पर किया क्या जाएगा ये किसी  को नहीं पता है | बताया जा रहा है कि चूँकि महामारियों के घटित होने में बनते बिगड़ते मौसम का भी प्रभाव पड़ता है इसलिए अब महामारी से संबंधित अनुसंधान प्रक्रिया में उन्हीं मौसम वैज्ञानिकों को भी सम्मिलित किया जाएगा प्रकृति के स्वभाव की समझ न होने के कारण जो मौसमविशेषज्ञ  मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने में अभी तक असफल होते रहे हैं |उन्हीं की मौसम विशेषज्ञता का लाभ अब महामारियों से संबंधित अनुसंधानों में लिया जाएगा जिनके बल पर भविष्य में आने वाली महामारियों से लड़ने की तैयारियॉँ की जा सकें | 
      वैश्विक सरकारें यदि ऐसी वैज्ञानिक अनुसंधान प्रक्रिया  से संतुष्ट हैं तो ठीक है | इसके अतिरिक्त जिन देशों की सजीव सरकारें ऐसे विषयों में वास्तव में ईमानदारी पूर्वक राजधर्म का निर्वाह करना चाहती हैं और भविष्य के लिए काल के कपाल पर अपने प्रयासों के भी कुछ चिन्ह उकेरना चाहती हैं तो उनके लिए आवश्यक हैं कि सबसे पहले महामारी  मौसम और भूकंप जैसे  विषयों के उस वास्तविक विज्ञान का अनुसंधान करवावें  आधार पर ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में कुछ सार्धक अनुसंधान किए जा सकते हों और उनके आधार पर अनुसंधान पूर्वक भविष्य के लिए जनहित में कोई तैयारी की जा सके | संकटकाल में जनता को मदद पहुँचाने में जिनकी कोई भूमिका भी हो |  

                                                               महामारीसंकट 
                                                                      और 
                                                      वैज्ञानिकअनुसंधानों  का योगदान ! 

      विश्व के महामारीविशेषज्ञों की विशेषज्ञता रखी की रखी रह गई !आज तक किए गए वैज्ञानिकअनुसंधानों  के द्वारा महामारी से जूझती जनता को कितनी मदद पहुँचाई जा सकी !यह आँकड़े देने का नहीं अपितु शांतमन से सोचने का विषय है | इन वैज्ञानिकअनुसंधानों के संचालन पर जिस जनता के खून पसीने की कमाई का पैसा सरकारें खर्च किया करती हैं उसके बदले महामारी से जूझती जनता को वही सरकारें कितनी मदद पहुँचा सकीं !यह सरकारों के लिए न केवल आत्ममंथन का विषय है अपितु भविष्य के लिए इसकी आवश्यकता भी है ताकि भविष्य में आने वाले किसी अन्य महामारी के समय सरकारें अपने वैज्ञानिक अनुसंधानों को इतनासक्षम तो बना ही लें कि महामारी के समय जनता की कुछ मदद करने लायक तो हो सकें ! 
    विशेषज्ञों की विशेषज्ञता महामारी संकट में काम नहीं आ पाई !कोरोनाकाल में महामारी के अधिकाँश विशेषज्ञों के बयान सड़क किनारे फुटपातों पर बैठे  झूठे भविष्यवक्ताओं से अलग नहीं लग रहे थे !उनकी बातों में वैज्ञानिकता कहीं दूर दूर तक नहीं झलक रही थी !अक्सर महामारी के विषय में वे जो बातें जनता को समझाने का प्रयास कर रहे होते थे अक्सर वे स्वयं उन्हें ही पता नहीं होती थीं | महामारी की सभी परिस्थितियों  के विषय में विशेषज्ञ माने जाने वाले लोग समय समय पर संभावित सभीप्रकार की आशंकाएँ व्यक्त कर दिया करते थे |इसके बाद में कुछ तो होना ही होता था इसलिए जो होते देखते थे उसी के लिए कहना शुरू कर देते थे कि इस बात के लिए तो सरकार को मैंने पहले ही चेता दिया था |महामारी की दूसरी लहर के विषय में कुछ आशंकाओं अफवाहों के अतिरिक्त कोई ऐसी वैज्ञानिक भविष्यवाणी  नहीं की जा सकी थी जो विश्वास करने लायक भी हो | 
     हमारे विशेषज्ञों ने दूसरी लहर को आते नहीं देखा था, म्युटेशन के बारे में चेतावनी नहीं दी थी | सच्चाई यह है कि विशेषज्ञों ने महामारीजनित संकटकाल में समाज को निराश किया है | तीसरी लहर के बारे में शोर मचाने वाले विशेषज्ञ अब कह रहे हैं कि यह आएगी जरूर तथा यह बच्चों को विशेष प्रभावित करेगी। ,इसीलिए तीसरी लहर की भविष्यवाणी दूसरी लहर के समाप्त होने से पहले ही कर दी गई है | संभवतः तीसरीलहर की भविष्यवाणी अपना पल्ला झाड़ने के लिए यह  सोचकर कर दी गई है कि यदि तीसरी लहर आई तब तो भविष्यवाणी और न आई तो वैक्सीन का कमाल !विज्ञान के नाम पर महामारी से जूझ रही जनता  के साथ यह व्यवहार ठीक नहीं है |      
    यह स्थिति किसी एक देश की नहीं अपितु विश्व के अधिकाँशदेशों की है | प्रायः वैज्ञानिक इस प्रकार की बौद्धिक त्रासदी से जूझ रहे हैं | यही कारण है कि चिकित्सा की दृष्टि से सबसे अधिक सक्षम माने जाने वाले अमेरिका आदि देश और भारत में दिल्ली मुंबई जैसे शहर भी महामारी के सामने न केवल बेबश दिखाई देते रहे अपितु अपनी अपनी जनता को विश्वासपूर्वक कोई आश्वासन देने में भी असफल रहे कि महामारी कितने दिन बाद कैसा स्वरूप धारण कर सकती है उस समय हम आपको किस प्रकार से कितनी मदद पहुँचा सकेंगे |
      कुल मिलाकर सरकारें वैज्ञानिक और जनता हम जिस किसी भी रूप में हैं हमें इस संकट को पहचानने और इसकी जिम्मेदारी लेने की जरूरत है। महामारीजनित इतने बड़े संकट की आहट आखिर क्यों नहीं लग सकी इसका पता लगाने की आवश्यकता है !इसका कारण विशेषज्ञों की अयोग्यता या अनुसंधानकर्ताओं की लापरवाही या जिस विषय को विज्ञान मानकर उसके द्वारा महामारी जैसे विषयों का पूर्वानुमान लगाने का प्रयास किया जाता है उन विषयों में ऐसी वैज्ञानिक क्षमता ही नहीं है कि जिसके आधार पर महामारियों के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता हो |
    इतनी बड़ी महामारी के विषय में पूर्वानुमान न लगा पाना वैज्ञानिकजगत की सबसे बड़ी असफलता है क्योंकि महामारियाँ हों या प्राकृतिक आपदाएँ इनका पहला प्रहार ही सबसे जोरदार होता है |उसपर अंकुश लगाने के लिए ऐसी प्राकृतिक घटनाओं का आगे से आगे पूर्वानुमान लगाना सबसे अधिक आवश्यक होता है | महामारियों तथा प्राकृतिक आपदाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाए बिना इनके पहले प्रहार से बचने का और दूसरा कोई विकल्प ही नहीं है | 
     चिकित्सा की जहाँ तक बात है तो किसी भी रोग से पीड़ित रोगी की चिकित्सा करनी हो या ऐसे रोगों या महारोगों (महामारियों) को रोकने की औषधियों का निर्माण करना हो तो इसके लिए  सबसे पहले उस रोग के बिषय में ठीक ठीक जानकारी जुटाया जाना आवश्यक होता है |जिस महामारी के विषय में किसी को कुछ पता ही न हो उसकी औषधि  आदि का निर्माण कर लेना केवल कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी है फिर भी जो लोग ऐसा कर लेने का दावा करते हैं यदि उनकी इस बात में आंशिक सच्चाई भी है तो वे न केवल प्रशंसा के पात्र हैं अपितु प्रणम्य भी हैं |
     महामारी से जनता की सुरक्षा के लिए कोई औषधि या वैक्सीन बना लेना जितना महत्वपूर्ण है उतना ही महत्वपूर्ण यह है कि जिस जनता के लिए ऐसी औषधि या वैक्सीन आदि का निर्माण किया गया है जिसने उनकी पर्याप्त खुराक ले भी ली है कम से कम उनसे तो यह कहा ही जा सके कि यदि आपने वैक्सीन ले ली है तो तीसरी लहर से आपका बचाव हो जाएगा !ऐसा करके कम से कम वैक्सीन प्रभाव से उन्हें ही भयमुक्त किया जा सकता है |

                                                         प्राचीनकाल और महामारियाँ 
 
     आधुनिक बिचारधारा की दृष्टि से देखा जाए तो प्राचीनकाल में वर्तमान समय की तरह का अत्याधुनिक विज्ञान नहीं था ,जॉंचसुविधा आक्सीजनसुविधा नहीं थी,उससमय प्रभावी मानी जाने वाली वैक्सीन आदि औषधियाँ एवं  तरह तरह के प्रभावकारी इंजेक्शन आदि उपाय नहीं थे | लॉकडाउन  या मॉस्कधारण जैसे महामारी नियमों की जानकारी नहीं होती होगी  | एक जगह का संदेश दूसरी जगह पहुँचाने की दूर संचारी व्यवस्था नहीं थी आवागमन के तीव्रगति गामी सर्व सुलभ वाहन नहीं थे |प्राकृतिक आपदाएँ और  महामारियाँ तो तब भी आती और जाती रही होंगी | उससमय के लोग महामारियों का सामना कैसे करते रहे होंगे | शंका होनी स्वाभाविक ही है | 
   आधुनिक विज्ञान के उदय से पहले महामारियों का सामना करने के लिए क्या अपने  उन समर्थ पूर्वजों ने कुछ किया ही नहीं होगा जिन्होंने उस युग में सुदूर आकाशस्थ सूर्य चंद्रादि ग्रहणों का हजारों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगाने की वैज्ञानिक अनुसंधान पद्धति विकसित कर ली थी |
     इसलिए प्राचीनभारत में ऐसी कोई न कोई विधा तो अवश्य खोजी जा चुकी होगी जिसके बल पर लोग प्राकृतिक आपदाओं और  महामारियों के संकट कालीन समय में भी अपना  बचाव कर लिया करते रहे होंगे ,तभी तो उनका आस्तित्व भविष्य के लिए सुरक्षित बना रहा जो अभी तक चलता आ रहा है |
     उस युग में प्रकृति और जीवन से संबंधित घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने की अद्भुत क्षमता थी|सुदूर आकाशस्थ सूर्य चंद्रादि ग्रहणों का हजारों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाना इस बात पर्याप्त प्रमाण है |इसलिए हो सकता है उस युग में उसी विधा से महामारियों के आने के विषय में वर्षों पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता हो और महामारी से बचाव के लिए आगे से आगे सतर्कता बरती जाने लगती हो !महामारी से बचाव के लिए आगे से आगे औषधियों का संग्रह करके रख लिया जाता हो !आगे से आगे रोकथाम के लिए उस प्रकार के आचार व्यवहार रहन सहन खान पान डाढ़ना संयम सदाचार एवं रसायन सेवन आदि के द्वारा शरीरों में प्रतिरोधक क्षमता तैयार कर ली जाती हो जिससे महामारियों के समय भी अधिकाँश लोग संक्रमित होने से बचे रहते हों |उन्हें पता ही न चल पाता हो और महामारियाँ आकर चली जाती रहती हों और उन्हें टेस्टिंग आक्सीजन वैक्सीन लॉकडाउन  या मॉस्कधारण जैसे संसाधनों प्रक्रियाओं आदि की आवश्यकता ही न पड़ती रही हो | 
    उस युग में प्राकृतिक घटनाओं की तरह ही जीवन से संबंधित घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने की भी अद्भुत क्षमता थी !जिसके आधार पर संभव है कि इस बात के विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगा लिया जाता रहा हो कि आगामी महामारी में किस व्यक्ति के संक्रमित होने का संकट कितना कम या अधिक है | उसके अनुशार उसे कितना कम या अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है ऐसे लोगों के विषय में दूसरों की अपेक्षा अधिक सतर्कता बरती जाने लगती हो और उन्हें भी इसी प्रकार से महामारी में संक्रमित होने से बचा लिया जाता हो | लगाए 
    कोरोना के कठिन काल में भी ग्रामीणों गरीबों श्रमिकों बनबासियों पर महामारी का दुष्प्रभाव उतना अधिक नहीं रहा | यहाँ तक कि दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों में भी जहाँ महामारी का प्रकोप बहुत अधिक रहा वहाँ रहने वाला भी श्रमिक वर्ग गरीब झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाला वर्ग गली गली घूम कर सब्जी आदि बेचने वाला वर्ग, बड़े लोगों के यहाँ नौकरी करने वाला वह वर्ग जो उन्हें कोरोना काल में भी सब्जी दूध आदि पहुँचाता रहा था |महानगरों में भी गरीबों के बच्चे दिन दिन भर भोजन लेने की लाइनों  में लगे रहे जो जैसे हाथों से खाना दे देता रहा खा लेते रहे !
यही हाल दिल्ली मुंबई से पलायित होने वाले श्रमिकों का रहा !यही हाल घनी बस्तियों में रहने वाले उन परिवारों का रहा जिनमें पारिवारिक सदस्यों की संख्या अधिक रही |यही स्थिति कोरोना के लॉकडाउन समय में लुक छिप कर काम करते रहने वाले उन व्यापारियों का रहा जहाँ सारे काम होते रहे किंतु किसी को कभी मॉस्क लगाते शोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते नहीं देखा गया फिर भी ऐसे लोगों को या तो संक्रमित होते नहीं देखा गया और या फिर संक्रमित होकर स्वस्थ हो जाते रहे | 
     इसी प्रकार से धार्मिक लोगों साधू संतों आदि पर भी कोरोना संक्रमण का प्रभाव अपेक्षाकृत कम पड़ते देखा गया था | यहाँ तक कि दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों के मंदिरों में रहने वाले पंडितों पुजारियों पर भी कोरोना संक्रमण का उतना अधिक दुष्प्रभाव दिखाई नहीं दिया जबकि कोरोना से मृत लोगों के यहाँ धार्मिक क्रिया कर्म कराने ,दान दक्षिणा लेने एवं तेरहवीं में झुंड बनाकर भोजन करने जाते रहे उन परिवारों के द्वारा दिया गया सामान भी लेते रहे | इसके बाद भी उन लोगों में उस प्रकार का संक्रमण दिखाई नहीं पड़ा | ऐसे और भी बहुत सारे उदाहरण हैं | 
       इसका मतलब यह है कि अत्यंत उत्तम स्वास्थ्य बर्द्धक समयानुकूल भोजन न मिल पाने पर भी जाने अनजाने उनके शरीरों में कोई न कोई ऐसी क्षमता विकसित हो गई है जिसके कारण वे उन परिस्थितियों में भी कोरोना संक्रमण से बचे रहे जिनमें उनके संक्रमित होने की संपूर्ण संभावना थी | वह क्षमता क्या थी और ऐसे शरीरों में कैसे विकसित हो जाती है | उस क्षमता से यदि समाज के सभी लोग संपन्न होते तो संभव है कोरोना काल में भी संक्रमित न  होने वाले  उस बहुत  बड़े वर्ग की तरह ही सभी लोगों का बचाव होजाता महामारी आती भी तो थोड़ा बहुत प्रभाव छोड़कर चली जाती और सारा समाज महामारी से मुक्त बना रह जाता |

                              प्राचीन विज्ञान और आधुनिक वैज्ञानिक सोच में अंतर  !

     प्राचीनकाल में समस्या पैदा होने से पहले उसका समाधान खोज लेने पर अनुसंधानों का जोर होता था ताकि समस्या पैदा ही न हो जबकि आधुनिक विज्ञान समस्या पैदा होने के बाद का समाधान खोजता है| प्रकृति और जीवन के सभी क्षेत्रों में ऐसा होते देखा जा रहा है|इसीलिए न केवल महामारियाँ और प्राकृतिक आपदाएँ घटित होती हैं अपितु  प्रकृति और जीवन की सभी दिशाओं में समस्याओं को पैदा होने का एक कारण यह भी है | 
     इसलिए हमें अपने प्राचीन वैज्ञानिकों से प्रेरणा लेकर जीवन या प्रकृति के क्षेत्र में जो घटनाएँ भविष्य में घटित होने की संभावना होती है उनका आगे से आगे पूर्वानुमान लगाना एवं उनसे बचाव के उपाय खोजकर रखना वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा जनता की इतनी मदद तो ही जानी चाहिए | महामारी हो या प्राकृतिक आपदाएँ  जब उनसे संबंधित अनुसंधानों की आवश्यकता जनता को  पड़ती है | उससमय ऐसे अनुसंधानों से जुड़े असफल वैज्ञानिक लोग खुद कुछ न कर पाने का दोष घटनाओं पर मढ़ने लग जाते हैं | कोरोना स्वरूप बदल  रहा है | कोरोना लंग्स में छिप जाता है कोरोना संक्रमण अचानक बढ़ने लगता है अचानक घटने लगता है  मानसून समय से नहीं आया या गया  या समय से पहले आ गया समय से बाद में आया या गया | मौसम चकमा दे गया !चुपके चुपके से चक्रवात आ जाते  हैं आदि आदि और भी बहुत कुछ !वस्तुतः ये सब कुछ अचानक नहीं होता है अपितु ये सब उन उन घटनाओं के स्वभाव में है स्वभाव न समझपाने के कारण हमें उनके स्वरूप बदलने में आश्चर्य होता स्वाभाविक ही है | स्वरूप तो प्रत्येक व्यक्ति वस्तु स्थान घटना समय आदि का बदल रहा होता है किंतु जिस परिवर्तन से हम परिचित होते हैं उससे हमें समस्या नहीं होती है और जिससे हम परिचित नहीं होते वहाँ घटनाओं को दोष देने लग जाते हैं | 
    वैज्ञानिक अनुसंधानों का उद्देश्य ही ऐसी घटनाओं से परिचय बढ़ाना एवं उनके स्वभाव को समझना है किंतु भारतीय मौसमविभाग की स्थापना हुए लगभग डेढ़ सौ वर्ष हो गए किंतु वर्तमान वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा अभी तक मौसम के स्वभाव को  संभव  पाया है | भूकंपों के विषय में कुछ भी पता नहीं लगाया जा सका है | वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण प्राकृतिक है या मनुष्यकृत  अभी तक नहीं खोजा जा सका है | पिछले कई सौ वर्षों से महामारियाँ आते जाते देखी सुनी जाती हैं किंतु महामारियाँ प्राकृतिक है या मनुष्यकृत  अभी तक यह नहीं खोजा जा सका है | जो खोजने के लिए जिन अनुसंधानों  की परिकल्पना की जाती है यदि वही न खोजा जा सके तो ऐसी निरर्थक अनुसंधान पद्धति जनता के किस काम की ?  
     कुल मिलाकर जानकारी के अभाव में सभी प्रकार की समस्याएँ  जब पैदा हो रही या की जा रही होती हैं तब न किसी का उधर ध्यान जा  रहा होता है और न ही उन पर अंकुश लग पाता है |समस्याएँ पैदा होकर जब महामारियों या प्राकृतिक आपदाओं के रूप में घटित होने लगती हैं उस समय मनुष्य के हाथ में करने लायक कुछ रह नहीं जाता है फिर तो कोरोना महामारी की तरह सबकुछ उसी प्रकार भोगना पड़ता है जैसे किसी व्यक्ति को कोई दूसरा व्यक्ति अचानक डंडा लेकर पीटने लगे तो वह पिटने के अतिरिक्त अचानक कर भी क्या सकता है | पीटने वाला व्यक्ति वार करता चला जा रहा हो और पिटने वाला व्यक्ति अपने हाथों पर वह वार सहने का असफल प्रयास करता रहा हो | ऐसी परिस्थिति में चोट यदि हाथों में लगती है तो हाथ भी तो अपने ही होते हैं हाथों  में  लगने से भी पीड़ा तो अपने को ही होती है | 
      
    कोरोना महामारी के समय समाज के हाथ हमारे चिकित्सक थे उनका बहुमूल्य जीवन समाज की समाजके लिए सबसे अधिक महँगी संपदा है समाज ने जिन्हें ईश्वर के दूसरे स्वरूप में स्थान देकर अपनी छाती से लगा रखा है | कोरोना से पीड़ित समाज को आपत्ति काल में समाज की सबसे अधिक कीमती संपदा को दाँव पर लगा देना पड़ा है हमें इसका दुःख है |अब उन चिकित्सकों के परिवारों से कैसे आँखें मिलाई जा सकेंगी जिन्होंने अपने बहुमूल्य जीवन कर्तव्य निष्ठा में न्योछावर कर दिए गए हैं | हमारे अपनों को बचाने के लिए जिन परिजनों ने अपने अत्यंत आत्मीय अपनों को न्योछावर किया है उन्हें मैं विनयावनत प्रणाम करता हूँ एवं उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ | इसके साथ ही यह संकल्प भी लेता हूँ कि यह जीवन मैं इस ऋण को उतारने में ही लगा दूँगा ताकि भविष्य में कभी ऐसी महामारियाँ या प्राकृतिक आपदाएँ घटित हों  तो मनुष्य समाज इतना बेवश और लाचार न रहे और हमारे चिकित्सक इतने निहत्थे न रहें |इस आपदा से हमें सीखने की आवश्यकता है कि निरस्त्र योद्धाओं को युद्ध में भेजना समझदारी नहीं थी |सबको पता था कि कोरोना महामारी से बचाव के लिए हमारे  चिकित्सकों के पास कुछ भी नहीं था !कोरोना से संग्राम में उन्हें खाली हाथ युद्ध में झोंक देना पड़ा !आखिर वे भी तो अपने ही थे | इसलिए बिना किसी किन्तु परंतु के हमें हमारी कमियाँ तुरंतस्वीकार करके उन विषयों में वास्तविक पारदर्शी परिणाम पूर्ण तर्क सांगत एवं मुसीबत में जनता को मदद पहुँचाने लायक अनुसंधान  प्रारंभ कर देने चाहिए | 
     वर्तमानसमय  में भी प्राकृतिक आपदाओं और  महामारियों  से संबंधित अनुसंधानप्रक्रिया में भारतवर्ष के उस प्राचीन विज्ञान  सम्मिलित कर लिया जाए तो इसमें कोई बुराई नहीं है | मानवता की रक्षा जिस किसी विधा से हो सके उसे मानने में संकोच नहीं है होना चाहिए क्योंकि अनुसंधानों का उद्देश्य संकट काल में मानवता की मदद करना ही तो है | महामारी जनित संकट के समय वर्तमान विज्ञान से यदि उतनी मदद नहीं मिल सकी जितनी कि अपेक्षा थी तो वैकल्पिक अनुसंधान पद्धति की भी खोज की जानीचाहिए |  
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28 फरवरी 2021 की रात्रि को इजरायल ने सीरिया पर मिसाइल अटैक किया है सीरियाई एयर डिफेंस पूरी रात एक्टिव रहे!
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12 जुलाई 2021-हैदराबाद यूनिवर्सिटी के प्रो -वाइस-चांसलर रहे श्रीवास्‍तव ने बताया कि 4 जुलाई से कोरोना संक्रमण के नए मामले और मौतें इशारा करते हैं कि देश में तीसरी लहर आ चुकी है।

bbc.comशार्ली हेब्दो का तंज - 33 करोड़ देवी-देवता फिर भी ऑक्सीजन की कमी! - BBC News हिंदी
14 मई 2021 फ़्रांस की व्यंग्यात्मक पत्रिका शार्ली हेब्दो ने भारत के कोविड संकट में व्यवस्था की नाकामी को लेकर तंज कसते हुए एक कार्टून छापा है.
कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में भारत की स्वास्थ्य सेवा बुरी तरह से नाकाम रही है और सरकार भी अपनी लाचारी दिखा रही है.
अस्पतालों में अब भी कोविड मरीज़ मेडिकल ऑक्सीजन की कमी के कारण दम तोड़ रहे हैं. शार्ली हेब्दो ने 28 अप्रैल को एक कार्टून प्रकाशित किया था, जिसमें मेडिकल ऑक्सीजन को ही विषय बनाया है.
शार्ली हेब्दो के कार्टून में तंज है कि भारत में करोड़ों देवी-देवता हैं, लेकिन कोई ऑक्सीजन की कमी पूरी नहीं कर पा रहा.
शरीर पर गाय का गोबर लगाने से मिलेगी कोरोना से सुरक्षा? जानें डॉक्टरों ने क्या कहा
भाषा,अहमदाबाद
Tue, 11 2021 08:10 PM
शरीर पर गाय का गोबर लगाने से मिलेगी कोरोना से सुरक्षा?  दरअसल, लोगों का एक समूह यहां श्री स्वामीनारायण गुरुकुल विश्वविद्या प्रतिष्ठानम (एसजीवीपी) द्वारा संचालित गौशाला में उपचार लेने जा रहा है और उनका मानना है कि इससे कोविड-19 के खिलाफ उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी। एसजीवीपी के पदाधिकारी ने कहा कि इस गौशाला में 200 से ज्यादा गाय हैं। उन्होंने कहा कि बीते एक महीने से करीब 15 लोग हर रविवार यहां शरीर पर गाय के गोबर और गोमूत्र का लेप लगवाने आते हैं। बाद में इसे गाय के दूध से धो दिया जाता है। उन्होंने कहा कि यह उपचार लेने वालों में कुछ अग्रिम पंक्ति के कर्मचारी और दवा की दुकानों पर काम करने वाले लोग हैं। डॉक्टर हालांकि इसे प्रभावी नहीं मानते हैं। 

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मुश्किल है मौसम की सटीक भविष्यवाणी

28 June 2013-मौसम का सही अनुमान घटा सकता है नुकसान !उत्तराखंड में आई आपदा के बाद यह जरूरी हो चला है कि मौसम का सटीक see ... https://hindi.business-standard.com/storypage.php?autono=74073&fbclid=IwAR1lUVXZ5Se2pF1PmlosxjRZPMcLF15g3MwptGf27pwjM_RtIOCeUVsgJXo 09 Aug 2015 - मौसम विभाग ने कहा था सूखा पड़ेगा, अब बारिश बनी मुसीबत !see more... https://www.naidunia.com/madhya-pradesh/indore-was-the-drought-the-rain-made-trouble-now-443720? fbclid=IwAR1M27RhN7beIPbj9rUYDc3IekccbHWF0bInssXxtdnrivIBiZqGAQ8Lciw 11 Apr 2019- मानसून को लेकर आए स्काईमेट के इस पहले पूर्वानुमान पर बहुत अधिक भरोसा नहीं किया जा सकता। स्काईमेट पिछले छह वर्षों मानसून का पूर्वानुमान लगाता रहा है, लेकिन उसका अनुमान सही साबित नहीं होता।see... https://www.drishtiias.com/hindi/daily-updates/daily-news-editorials/problems-in-monsoon-prediction   11-10-2019-    मौसम विभाग को दगा देता रहा मौसम , अधिकांश भविष्यवाणी गलत साबित हुई see .... https://www.bhaskarhindi.com/city/news/meteorological-department-weather-m...

अनुमान लिंक -1008

 Rit-see ....  https://bharatjagrana.blogspot.com/2022/06/rit.html   __________________________________________________  समाज के अनुत्तरित प्रश्न ! भूमिका : https://snvajpayee.blogspot.com/2022/01/blog-post_25.html प्रारंभिक स्वास्थ्य  चेतावनी पूर्व प्रणाली का क्या होगा ? 22 दिसंबर 2020 : पृथ्वी   विज्ञान मंत्रालय   (MoES) एक अद्वितीय   प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली   विकसित कर रहा है जिससे देश में बीमारी के प्रकोप की संभावना का अनुमान लगाया जा सकता है। भारत का  मौसम विज्ञान विभाग   (IMD) भी विकास अध्ययन और प्रक्रिया में शामिल है।see... https://www-drishtiias-com.translate.goog/daily-updates/daily-news-analysis/early-health-warning-system?_x_tr_sl=en&_x_tr_tl=hi&_x_tr_hl=hi&_x_tr_pto=sc    1.  महामारी प्राकृतिक है या मनुष्यकृत !    2.  मौसम और कोरोना    3. तापमान बढ़ने का कोरोना पूर्वानुमान !    4. तापमान बढ़ने से घातक हुआ कोरोना !    5. सर्दी बढ़ने...

मुश्किल है कोरोना की भविष्यवाणी !-1008

  09 May 2020- कोरोना का जवाब विज्ञान है नौटंकीनहीं, महामारी पर गलत साबित हुई केंद्र सरकार see... https://caravanmagazine.in/health/surge-in-covid-cases-proves-centre-wrong-pandemic-response-marked-by-theatrics-not-science-hindi 06 Jun 2020 -गणितीय मॉडल विश्लेषण में खुलासा, मध्य सितंबर के आसपास भारत में कोरोना महामारी हो जाएगी खत्म see...  https://www.amarujala.com/india-news/covid-19-pandemic-may-be-over-in-india-around-mid-september-claims-mathematical-model-based-analysis 18 Jun 2020 - कोविड-19 के लिए केवल गणितीय मॉडल पर नहीं रह सकते निर्भर : Iकोविड-19 महामारी की गंभीरता का अंदाजा लगाने के लिए अपनाए जा रहे बहुत से गणितीय मॉडल भरोसेमंद नहीं हैं।इस तरह के अनुमान के आधार पर नीतिगत फैसले लेना या आगे की योजनाएं बनाना बहुत खतरनाक हो सकता है। इसलिए इनसे बचना चाहिए।यह लेख राजेश भाटिया ने लिखा है। वह डब्ल्यूएचओ के साउथ-ईस्ट एशिया रीजनल ऑफिस में संचारी रोग विभाग के डायरेक्टर रह चुके हैं।इसकी सह लेखिका आइसीएमआर-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी की डायरेक्टर प्रिया अब्राहम हैं। लेख में कह...