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महामारी और समयविज्ञान

                                                          महामारी और समयविज्ञान 

      भारतवर्ष में अनंतकाल से  प्रकृति से लेकर जीवन तक समयकी महत्ता को स्वीकार किया जाता  रहा है जिन घटनाओं को मनुष्य नहीं करता है या घटनाएँ मनुष्य के प्रयासों के विरुद्ध घटित होती हैं | उन्हें समय के प्रभाव से घटित होना मान लिया जाता है | सारी ऋतुएँ समय के अनुशार घटित होती हैं अच्छा समय आने पर अच्छी घटनाएँ  हैं और बुरा समय आने पर जीवन में बुरी घटनाएँ एवं प्रकृति में प्राकृतिक आपदाएँ घटित होती हैं |                    बुरे समय के प्रभाव से  प्राकृतिक वातावरण में महामारियाँ  जब प्रवेश करना प्रारंभ करती हैं तब उनके विषय में किसी को कुछ पता नहीं होता है | महामारियों के प्रभाव से वायुप्रदूषित होती है | जल प्रदूषित होता है |वायु और जल के प्रदूषित होने से सभी पेड़ पौधे  फसलें फल फूल आदि सभी खाने पीने की वस्तुएँ प्रदूषित हो जाया करती हैं | सभी लोग पहले की तरह ही सभी कुछ खाते पीते एक दूसरे के साथ मिलजुलकर सामान्य जीवन बिताते चले आ रहे होते हैं | उन्हें यह नहीं पता होता है कि महामारी का आगमन  हो चुका है | इसलिए महामारी के प्रभाव से बिषैली हो चुकी वही खाने पीने की वस्तुएँ खाई जा रही होती हैं और उसी बिषैली हवा में साँस ली जा रही होती है | कुछ समय तक ऐसा होते रहने पर मनुष्य समेत सभी जीवजंतु संक्रमित होने लगते हैं | 

        ऐसी परिस्थिति में एक जैसा रहन सहन एक जैसा खान पान एवं एक ही वायु मंडल में सांस लेने से महामारी का प्रभाव तो सभी पर एक समान पड़ता है किंतु जिसके जैसे शरीर होते हैं महामारी की बिषाक्तता को वह उतना सह पाते हैं |कुछ लोगों के शरीर बहुत मजबूत होते हैं वे महामारी काल में भी स्वस्थ बने रहते हैं | जिनके शरीर कुछ कमजोर होते हैं वे संक्रमित होकर स्वस्थ होते देखे जाते हैं किंतु जिनके शरीर बहुत अधिक कमजोर  होते हैं उनकी  दुर्भाग्य पूर्ण मृत्यु भी होते देखी जाती है | 

       समयविज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो अच्छे बुरे समय के अनुशार ही प्रकृति और जीवन में बदलाव होते रहते हैं बुरे समय के प्रभाव से प्रकृति में प्राकृतिक आपदाएँ एवं महामारियाँ फैलती हैं किंतु इसमें भी विशेष बात यह है कि जिनके अपने व्यक्तिगत जीवन में भी बुरा समय चल रहा  होता  है ऐसी प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों के समय में भी केवल वही प्रभावित या  संक्रमित होते हैं | जिनका अपना समय अच्छा चल रहा होता है प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों के समय में भी वे प्रायः स्वस्थ बने रहते हैं जिनका समय कुछ अच्छा और कुछ बुरा चल रहा होता है वे अस्वस्थ तो होते हैं किंतु चिकित्सा आदि प्रयासों से स्वस्थ होते  देखे जाते हैं जिनका अपना समय बहुत बुरा चल रहा होता है उन पर समस्त चिकित्सकीय  प्रयास निरर्थक सिद्ध होते हैं | 

     ऐसी परिस्थिति में महामारी प्रारंभ होने का कारण अच्छे और बुरे समय का संचार होता है एवं महामारी से प्रभावित  होना इसका कारण मनुष्य का अपना अच्छा या बुरा समय होता है | महामारी प्रारंभ होने का कारण एवं महामारी से प्रभावित होने न होने या कम ज्यादा होने का कारण समय होता है | 

    समय संबंधी अनुसंधानों  के बिना प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियोंको समझ पाना संभव ही नहीं है इसकेसमय को समझे बिना ऐसी घटनाओं के बिषय में कोई अनुसंधान कैसे किए जा सकते हैं |

      समय वैज्ञानिकों की संख्या बहुत कम हैं सरकारों की तरफ से इस प्रकार के अनुसंधान होते देखे नहीं जाते हैं यही कारण है कि महामारी हो या प्राकृतिक आपदाएँ इनके बिषय में किसी को कुछ पता ही नहीं होता है | मौसम विभाग को स्थापित हुए 145 वर्ष बीत गए आज तक मौसम मानसून आदि किसी की समझ विकसित न होने के कारण ही जलवायुपरिवर्तन जैसे भ्रम होते देखे जा रहे हैं |महामारी से संबंधित अनुसंधान  कितने सफल हुए हैं  ये कोरोना महामारी के समय में सभी ने देखा ही है | 

                                                                 -:निवेदन :-

      किसी चार पहिए वाली किसी गाड़ी का कोई एक पहिया यदि किसी गड्ढे में फँस जाए तो उसका प्रभाव उस गाड़ी के शेष तीनों पहियों पर तो पड़ता ही है  ही उस गाडी का संपूर्ण स्वरूप उससे प्रभावित होता है पहियों के अतिरिक्त जो उसका निचला हिस्सा है वह भी जमीन में फँस  जाता है |इसी प्रकार से किसी एक चारपाई  का एक पैर यदि किसी गड्ढे में रखा हो तो  शेष तीन पैर अव्यवस्थित हो जाते हैं उनका आपसी संतुलन बिगड़ जाता है | 

    इसी प्रकार से कोरोना  जैसी इतनी बड़ी महामारी आ गई चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है प्राकृतिक सहयोग मिले बिना कोई भी महामारी इतना भयानक रूप धारण नहीं कर सकती थी |महामारी को आए इतना समय बीत गया इसका प्रभाव स्वास्थ्य के साथ साथ प्रकृति के अन्य अंगों पर भी तो पड़ा होगा | महामारी के चिन्ह प्राकृतिक वातावरण में प्रकट हुए होंगे | वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा  उन प्राकृतिक परिवर्तनों का भी पता लगाया  जाना चाहिए था |महामारी आवे तो रोगियों की टेस्टिंग करने लगना और भूकंप आवे तो जमीन के अंदर गड्ढे खोदने लगना ये किसी अनुसंधान के लिए सबसे कमजोर प्रक्रिया है |  हमें ये याद रखना चाहिए कि कई बार कुछ घटनाएँ ऐसी घटित हो रही होती हैं कि वे जहाँ घटित होते दिख रही होती हैं उनके घटित होने के कारण  उनसे बहुत दूर होते हैं | ऐसी परिस्थिति में उनका खोज पाना बहुत बड़ी चुनौती होती है | 

     वर्तमान वैज्ञानिकअनुसंधानों की दृष्टि से यदि देखा जाए तो वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर हमसे कुछ बड़ी गलतियाँ होती चली आ रही हैं जिन्हें खोजने एवं उनमें सुधार करने की आवश्यकता है |विज्ञान के नाम पर कुछ आधार विहीन बातों को सही मानकर हम गले लगाए बैठे हैं जबकि उनसे संबंधित अनुसंधान अभी और किए जाने थे | उदाहरण के तौर पर हम समुद्र में घटित होने वाली ज्वार भाटा जैसी घटनाओं का कारण चंद्रमा को मान बैठे हैं | कारण बताने के नाम पर हम केवल इतना बता पा रहे हैं कि चंद्रमा और समुद्र में घटित होने वाली दोनों घटनाएँ चूँकि एक साथ घटित होती हैं इसलिए ज्वारभाटा जैसी घटनाएँ घटित होने का कारण चंद्रमा है |ऐसे ही गुरुत्वाकर्षण जैसी न जाने कितनी तर्क विहीन बातों का बोझ विज्ञान के नाम पर निरर्थक ढोया जा रहा है और जनता के जरूरत की जो बातें हैं उतना ध्यान यदि उस प्रकार के अनुसंधानों पर दिया जाता तो महामारी के समय वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा जनता को कुछ मदद तो पहुँचाई ही जा सकती थी | 

         वैज्ञानिक अनुसंधानों की दृष्टि से अपनायी जाने वाली ऐसी और भी बहुत सारी घटनाएँ हैं विज्ञान के नाम पर जिनकेआधार विहीन मानक हमने मनमाने ढंग से तय कर रखे हैं वे तर्कसंगत तो हैं ही नहीं इसके साथ ही उन प्रतीकों में भी कुछ सच्चाई नहीं है यदि होती तब तो उसका तालमेल प्राकृतिक घटनाओं के साथ कुछ तो बैठना चाहिए था जिनके विषय में वे गढ़े गए हैं | 

        विज्ञान के नाम पर भूकंपों के घटित होने का कारण हमने धरती के अंदर कुछ लावा पर तैरती प्लेटों के आपस में  टकराने  की कल्पनाकर ली है |पृथ्वी के अंदर भरी गैसों के दबाव को कारण मान कर हमने अपने को काल्पनिक रूप से प्रसन्न कर लिया है ये तो ठीक है किंतु ऐसी बातों का संबंध भूकंपों से भी कुछ तो संबंध होना ही चाहिए | वास्तविकता ये है कि यदि ऐसी कल्पनाओं में थोड़ी भी सच्चाई होती तो इसके आधार पर भूकंपों के बिषय  में भी हमारी समझ कुछ तो  विकसित हो सकी होती किसी भूकंप के आने से पहले उस भूकंप के बिषय में कुछ भी तो पूर्वानुमान के रूप में कुछ तो बताया जा सका होता | पहले कुछ न बताकर बाद में उसके बिषय में कथा कहानियाँ गढ़ कर सुनाते  रहना विज्ञान नहीं है |यदि हमारी कल्पनाओं का घटनाओं के साथ तालमेल आवश्यक ही नहीं समझा जा रहा है तब तो कितने भी मानक कैसे भी गढ़े जा सकते हैं और भूकंपों के आने का कारण कुछ भी मान लिया जा सकता है | अनुसंधानों के नाम पर उनके विषय में काल्पनिक कहानियाँ गढ़ ली जाती हैंऔर उन्हीं  कहानियों को वैज्ञानिक अनुसंधान  मान लिया जाता है | उनमें से अधिकाँश कहानियों का उन घटनाओं से कोई मतलब नहीं होता है | 

      ऐसा प्राकृतिक विषयों से संबंधित अनुसंधान के क्षेत्र में लगभग सभी स्थानों  पर होते देखा जा रहा है ऐसी सोच का ही परिणाम है कि कोरोना जैसी महामारी का पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पाया संक्रमितों की संख्या अचानक  अपने आपसे बढ़ने और घटने का कारण क्या है उसे अभी तक नहीं समझा जा सका है ! 

     इसलिए अनुसंधान प्रक्रिया में छूट रही गलतियों की खोज करकेअनुसंधान पूर्वक प्रकृति रहस्यों को सम्यक रूप से समझने का प्रयास किया जाना चाहिए | 

                                                                 भूमिका 

    महामारियों समेत समस्त प्राकृतिक आपदाओं का निर्माण जब प्रकृति के गर्भ में हो रहा होता है तब उसकी पहचान न होने के कारण हम उन लक्षणों को समझ नहीं पाते हैं और जब उस प्रकार की घटनाएँ घटित होने लगती हैं तब हम उनकी वैक्सीन बनाने या उनके उपाय करने निकलते हैं जबकि ऐसी घटनाओं से जो नुक्सान होना  वो पहले झटके में ही हो चुका होता है उसके बाद महामारी हो या अन्य प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ वो हमेंशा तो बनी नहीं रहती हैं शांत तो उन्हें होना ही होता है ऐसी प्राकृतिक घटनाओं की शांति के लिए किसी वैक्सीन आदि औषधि की आवश्यकता नहीं होती है वो तो समय के साथ जुडी होती हैं बुरे समय के साथ प्रारंभ होती हैं और अच्छे समय के साथ समाप्त हो जाती हैं | महामारी समेत सभी प्राकृतिक आपदाओं की यही स्थिति है | 

    विकसित एवं सक्षम माना जाने वाला आधुनिक विज्ञान जब नहीं था उस समय वैक्सीन आदि बनाने की वैज्ञानिक व्यवस्था नहीं थी महामारियाँ तो तब भी आती और जाती रही हैं टिक कर तो तब भी नहीं रही थीं |इसलिए बचाव के उपाय जितने उपाय संभव हों उतने करते रहने चाहिए बाक़ी महामारियाँ तो अपने  चली ही जाती हैं |   वर्तमान वैज्ञानिकअनुसंधान कर्ताओं के उतावलेपन ने महामारियों समेत समस्त प्राकृतिक आपदाओं के भय से समाज को बुरी तरह डरा रखा है अनुसंधानों के नाम पर ऐसी ऐसी अफवाहें फैलाई जाती हैं जिनका कोई सर पैर ही नहीं होता है |

     महामारियों के बिषय में कुछ पता लगाए बिना ही उसकी रोक थाम के लिए वैक्सीन  के सपने देखने लगते हैं |किसी रोग को समझे बिना उससे मुक्ति दिलाने वाली औषधि कैसे बनाई जा सकती है और ऐसे रोगों से पीड़ित रोगियों की चिकित्सा कैसे की जा सकती है | 

     जिन प्राकृतिक घटनाओं को परिभाषित करने के लिए उस प्रकार की कहानियाँ गढ़ी गई होती हैं जब उस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ घटित होने लगती हैं तब उन तथाकथित वैज्ञानिक कहानियों के परीक्षण का अवसर होता है किंतु परीक्षण इसलिए नहीं हो पाता है क्योंकि जो कहानियाँ गढ़ी गई होती हैं वे काल्पनिक एवं निराधार होती हैं वे तभी तक चल पाती हैं जब तक वास्तविक घटनाओं का उनसे सामना नहीं होता है | सामना होते ही उनकी सच्चाई प्रकट हो जाती है और वे कहानियाँ झूठी सिद्ध हो जाती हैं | उस झूठ को छिपाने के लिए हम न जाने कितनी झूठी कहानियाँ  गढ़कर अपने एवं अपनों समझाया करते हैं | अलनीना ला निना ,जलवायुपरिवर्तन जैसी उसी प्रकार की कहानियाँ हैं जो किसी एक कहानी में  बताए गए झूठ को छिपाने के लिए गढ़ी गई  हैं | 

       इससे सबसे बड़ा नुक्सान यह हुआ है कि जबसे वर्तमानविज्ञान आस्तित्व में आया है तब से प्राकृतिक बिषयों के वास्तविक अनुसंधानों की प्रवृत्ति ही समाप्त होती जा रही है हम उस वैज्ञानिक पद्धति से प्राकृतिक घटनाओं का अनुसंधान करने में जी जान लगाए हुए हैं जिसमें प्रकृति के स्वभाव को समझने की कोई प्रक्रिया विशेष नहीं है यदि होती तो मौसमसंबंधी क्रम में असंतुलन का कारण , भूकंप आने का कारण एवं वायुप्रदूषण बढ़ने घटने का कारण  हम अभी तक क्यों नहीं खोज पाए हैं |

     ऐसे ही मानसून आने जाने का कारण एवं समय से पहले या बाद में पहुँचने का कारण, बार बार हिंसक आँधी तूफ़ान या बज्रपात होने का कारण ,किसी वर्ष अधिक वर्षा या किसी वर्ष कम वर्षा होने का कारण कुछ वर्षों में बार बार भूकंप आने एवं कुछ वर्षों में न आने का कारण  आज तक नहीं खोजे जा सके हैं | 

      ऐसी परिस्थिति में जिन घटनाओं के घटित होने का कारण ही नहीं पता है ऐसी घटनाओं के बिषय में जो जानकारी दी जा रही होती है वह कितनी सच है इस पर विश्वास कैसे किया जा सकता है |आज के दस बीस दिन बाद घटित होने वाली प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में जिन मौसम अनुसंधान कर्ताओं के द्वारा सही सही पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका होता है उन्हीं लोगों के द्वारा जलवायु परिवर्तन के नाम पर आज के सौ दो सौ वर्ष बाद की संभावित प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में ऐसी ऐसी डरावनी अफवाहें फैलाई जा रही होती हैं |जिनके बिषय में उनके मन में कुछ आशंकाएँ तो होती हैं किंतु उनका आधार नहीं होता है |             

       उदाहरण के तौर पर मानसून को ही लें इसके आने जाने का समय जिसके कारण निश्चित होता है उस कारण को जाने बिना मानसून के आने जाने की तारीखों के विषय में भविष्यवाणी कैसे की जा सकती है जो की जाती है वो झूठ होने के लिए ही की जाती है और जब झूठ होती है तब हम उसकी तारीखें आगे पीछे करके अपनी झेंप मिटा रहे होते हैं | ऐसा सभी घटनाओं के बिषय में देखा जा रहा होता है | 

    वैज्ञानिकों की भविष्यवाणियाँ या अनुमान गलत निकल जाने पर उनके बिषय में वास्तविक अनुसंधान करने की आवश्यकता होती है ताकि दूसरी बार वैसी गलती न होने पाए किंतु यह न करके हम अपनी भविष्यवाणियों या अनुमानों  के  गलत निकल जाने पर अपनी गलती खोजने की जगह हम अपनी उन गलतियों को उन्हीं घटनाओं पर थोप दिया करते हैं | 

     मानसून धोखा दे गया है मानसून अब आएगा और तब जाएगा समय से आएगा देर से आएगा जल्दी आएगा मानसून चकमा दे गया आदि सबके लिए स्वयं मानसून को ही जिम्मेदार सिद्ध कर दिया जाता है | मानसून स्वयं तो आने जाने से रहा वो जिसके आधीन होता है उसके आने जाने पर ही मौसम का आना जाना संभव है उसे समझे बिना मानसून आने जाने की तारीखें हम किस आधार पर तय कर देते हैं जबकि हमें पता है कि ये तारीखें कभी निश्चित की ही नहीं जा सकती हैं इसलिए तारीखें हम कितनी बार भी बदल लें किंतु उनके सच होने की संभावना बिल्कुल भी नहीं होती है |

        कोरोना महामारी के बिषय में भी कहा जा रहा है कि कोरोना अपना स्वरूप बदल रहा है ,कोरोना छिप कर लंग्स में बैठ जाता है आदि आदि !किंतु कोई महामारी अपना स्वरूप कैसे बदल सकती है वह सजीव नहीं  इसलिए उसे कर्ता नहीं माना जा सकता है | उसके पीछे कोई कोई ऐसी प्रेरक ऊर्जा होती है जिसके प्रभाव से महामारियाँ आती जाती हैं स्वरूप बदली हैं उस ऊर्जा की खोज किए बिना हम महामारियों को कितना भी कोसते रहें उससे क्या होने जाने वाला है | रही बात स्वरूप बदलने की तो यह कोई वायरस कैसे कर सकता है वायरस जिसके आधीन है स्वरूप उसके आधार पर बदलेगा !परिवर्तन का कारण समय होता है समय के साथ साथ संसार के प्रत्येक व्यक्ति वस्तु स्थान आदि में परिवर्तन हमेंशा होते रहते हैं !जिन परिवर्तनों से हम परिचित होते हैं उनसे हमें कोई समस्या नहीं होती जिनसे हम परिचित नहीं होते या जिन परिवर्तनों को समझने की हमारी क्षमता नहीं होती है जो हमारे दिमाग से ऊपर जा रहे होते हैं उन्हीं परिवर्तनों से हमें परेशानी हो रही होती है वो वायरस का स्वरूप बदलना हो या जलवायुपरिवर्तन हो | आवश्यकता तो इस बात की है कि हमें उन परिवर्तनों को समझने का प्रयास करना चाहिए |ऐसे परिवर्तनों को समझे बिना हम किसी अनुसंधान को करने की कल्पना कैसे कर सकते हैं | 

     हमारे अनुसंधानकर्ताओं की स्थिति उस प्रकार की है प्राकृतिक घटनाओं की गुत्थियाँ सुलझाने के लिए वे गलत ढंग अपनाते देखे जा रहे हैं | जो चाभी उनके पास है वो उसी चाभी से ताला खोल लेना चाह रहे हैं जबकि जिस ताले की जो चाभी होती है ताला उसी से खोला जा सकता है | वे इस बात को मानने को ही तैयार नहीं हैं | ताला न खोल पाने के लिए वे ताला स्वरूप बदल रहा है तक कहने को तैयार हैं कुल मिलाकर ताले को ही गलत बताने पर तुले हुए हैं | उसकी सही चाभी खोलने को तैयार नहीं हैं |प्राकृतिक विषयों में सभी जगह इसी प्रकार की रिसर्चशैली अपनाई जा रही है |  सबसे बड़ी समस्या यह है कि प्राकृतिक विषयों में जो ये कहें वो न हो या कुछ दूसरा होने लगे तो जलवायु परिवर्तन जैसी न जाने कितने किस्से कहानियाँ गढ़कर खुद पीछे हो जाते हैं घटनाओं को आगे कर दिया करते हैं जिसका दुष्परिणाम समाज को भोगना पड़ता है | कोरोना महामारी उसी प्रकार की अनुसंधान कमियों को छिपाए रहने का दुष्परिणाम है समाज जिन  वैज्ञानिक अनुसंधानों के सहारे होता है वह ही यदि संकटकाल में काम न आवें तो निराशा होनी  स्वाभाविक ही है क्योंकि प्राकृतिक मुसीबतों के समय समाज अपने वैज्ञानिक अनुसंधानों से मदद की अपेक्षा रखता है कल्पित कहानियाँ सुनने की नहीं |

       इसलिए अनुसंधान पद्धति में सुधार की आवश्यकता है ताकि भविष्य में ऐसी महामारियों के समय विज्ञान ऐसी असहाय अवस्था में न खड़ा रहे जैसा कि कोरोना महामारी के समय सिद्ध हुआ है |    

                                            हमें प्रकृति के विस्तार को समझना होगा ! 

      रोग दो प्रकार के होते हैं एक मनुष्यकृत और दूसरे प्राकृतिक या समयकृत!मनुष्यकृत रोग मनुष्यकृत कर्मों से उत्पन्न होते हैं उनके घटित होने के कारण मनुष्यों को पता भी होते हैं और ऐसे रोगों से स्वस्थ होने के लिए किए गए मनुष्यकृत प्रयास सफल भी हो जाते हैं |

       कुछ रोग प्राकृतिक या समयकृत होते हैं वे अपने आपसे प्रारंभ एवं अपने आपसे ही शांत होते देखे जाते हैं ऐसे रोगों में मनुष्यकृत प्रयासों से अपना कुछ बचाव भले ही हो जाए किंतु ऐसी प्राकृतिक घटनाओं को रोकना या इनके प्रभाव को कम करना मनुष्य के बश की बात नहीं होती है |इसके  बाद भी सभी प्राकृतिक घटनाओं की तरह ही प्राकृतिक रोगों या महामारियों में भी प्राकृतिक रूप से ही कुछ उतार चढ़ाव होते रहते हैं जिनका कारण मनुष्यों का तत्कालीन अपना आचरण आदि नहीं होता है |उनका अपना अच्छा बुरा आचरण उनके अपने स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक होता है |  

     कुल मिलाकर प्राकृतिक घटनाएँ हों या महामारियाँ इनमें सबकुछ प्राकृतिक होता है प्रत्यक्ष तौर पर मनुष्य के बश में विशेष कुछ नहीं होता है जबकि ऐसी घटनाओं के अत्यधिक प्रकुपित होने का कारण अप्रत्यक्षतौर पर मनुष्य भी होता है किंतु ऐसी घटनाओं के घटित होने में प्रधानता प्रकृति की ही  रहती है | इसलिए ऐसी घटनाएँ मूल रूप से प्राकृतिक घटनाओं  की ही श्रेणी में आती हैं |  

     प्राकृतिक घटनाएँ समय से संबंधित होती है और समय के साथ साथ ही घटित होते चलती हैं | ऐसीघटनाएँ दो प्रकार की होती हैं एक अनिश्चित और दूसरी निश्चित |सूर्य चंद्र ग्रहण,आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ महामारी आदि अचानक घटित होने वाली घटनाएँ भी समय के ही आधीन होती हैं इसलिए उनका समय भी निश्चित होता है किंतु वे किस वर्ष महीने या तिथि आदि में ही घटित होंगी ऐसा निश्चित नहीं होता है कुछ विशेष संयोग बनने से ऐसी घटनाएँ घटित होती हैं वे संयोग भी समय के साथ ही बनते हैं जिन वर्षों महीनों दिनों आदि में ऐसी घटनाएँ घटित होती हैं वह भी बहुत पहले से निश्चित होता है जिनका पूर्वानुमान गणितविज्ञान के द्वारा अनुसंधान पूर्वक लगा लिया जाता है| भारत में अनादि काल से यह गणितीय पद्धति प्रचलन में रही है | 

    निश्चित घटनाएँ प्रत्येक वर्ष महीने पक्ष या दिन आदि में घटित हुआ करती हैं | सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ प्रत्येक वर्ष में एक एक बार ही आती जाती हैं |अमावस्या पूर्णिमा महीने में एक एक बार आती है | दिन रात सुबह शाम दोपहर आदि प्रत्येक दिन में एक एक बार आते हैं ऐसे ही और भी बहुत सारी  प्राकृतिक घटनाएँ समय के अनुशार घटित होते देखी जाती हैं | इनका समय निश्चित होता है और इन्हें समझना आसान होता है इसलिए ये सभी को पता होती हैं | 

     इनके बिषय में पूर्वानुमान बहुत पहले खोज लिया गया होगा कि कब क्या घटित होगा !इसके बाद परंपरा से ऐसी घटनाओं के बिषय में सबको पता होता है कि इनमें से कौन सी घटना प्रकृति में कब घटित होगी  क्योंकि सभी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का समय सुनिश्चित होता है ऐसी घटनाएँ प्रारंभ कब होंगी उनकी समाप्ति कब होगी | उसमें उतार चढ़ाव आदि लहरें कब कब कितने कितने अंतराल में आएँगी | ये सब कुछ समय के आधार पर प्राकृतिक रूप से निश्चित होता है | 

    इसीलिए ऐसी सभी प्राकृतिक घटनाओं के पूर्वानुमान पहले से पता होते हैं इसलिए सर्दी  गर्मी वर्षा आदि के डरावने वेग को भी सह लिया जाता है और कुछ उपाय अपना कर सँभाल लिया जाता है | सर्दी में स्वेटर आदि गरम वस्त्रों एवं उस प्रकार की संभावित परिस्थितियों से निपटने की व्यवस्था आगे से आगे कर लिया करते हैं  ऐसा ही गर्मी और वर्षा जैसी ऋतुजन्य समस्याओं से निपटने  के लिए कर लिया करते हैं | खाने पीने की सामग्री का संचय कर लिया करते हैं ऋतुओं के अनुकूल आहार विहार रहन सहन आदि अपनाते हुए अपने को स्वस्थ रख लिया करते हैं | कृषि एवं व्यापार योजना उसी प्रकार की बना लिया करते हैं सरकारें उन्हीं ऋतुओं के अनुशार अपनी कार्य योजनाएँ आगे से आगे तैयार करती रहती हैं |कुल मिलाकर अपना संपूर्ण जीवन समाज व्यापार परिवार सोच सरकारें आदि सब समय के हिसाब से चला करती हैं |  इससे स्वास्थ्य परिवार व्यापार समाज सरकारआदि सब कुछ अत्यंत उत्तम ढंग से चलता आ रहा है इससे किसी को  कठिनाई भी नहीं होते देखी जा  रही है |कृषि कार्यसमेत सभी कार्य एवं मनुष्यों समेत समस्त प्राण धारियों का जीवन  उन्हीं ऋतुओं के हिसाब से ही व्यवस्थित हो गया है |

   कुलमिलाकर सारा समाज सारा काम काज उसी प्रकार के रहन सहन खान पान व्यापार आदि का अभ्यासी हो गया है उसी में तिथि त्यौहार आदि ऋतुओं के प्रभाव के आधार पर व्यवस्थित कर लिए गए हैं इसके अतिरिक्त और भी बहुत सारे ऋतु अनुकूल आचरण  अपनाकर मनुष्य प्रसन्न और सुखी रह लेने लगा है यह निरंतर अभ्यास और पूर्वानुमान पता होने से ही संभव हो पाया है | 

                                                         रोग और महारोग 

     कोई भी रोग महारोग अर्थात महामारी तभी बनता है जब कोई रोग प्राकृतिक रूप से अचानक आकर सामूहिक रूप से बहुत बड़े समुदाय में फैल जाता है ऐसे रोग के प्रत्येक व्यक्ति  में अलग अलग लक्षण उभरते देखे जाते हैं जिनके बिषय में चिकित्सावैज्ञानिकों को कुछ भी पता नहीं होता है आम जनता को तो कुछ पता होता ही नहीं है |इसलिए ऐसे लोगों की चिकित्सा करना लगभग असंभव सा होता है |सिद्धांततः उसे महामारी मान लिया जाता है |उस महामारी की औषधि खोजने से अधिक आवश्यक होता है कि उस महामारी केकारणों की खोज की जाए क्योंकि कारणों का पता लगते आधा रोग तो पथ्य परहेज  एवं स्वास्थ्य के अनुकूल रहन सहन खान पान आदि से ठीक हो जाता है और बिना कारण पता किए ही यदि चिकित्सा प्रारंभ कर दी जाए तो उस प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलना कठिन होता है और यदि मिल भी जाए तो दुबारा अस्वस्थ होने की संभावना बनी रहती है क्योंकि प्राकृतिक वातावरण में उसप्रकार के रोग कारक कारण तो विद्यमान रहते ही हैं | 

      जिस प्रकार से किसी को अचानक उलटी दस्त होने लगे तो स्वास्थ्य विज्ञान की दृष्टि से उसके अनेकों कारण हो सकते हैं कोई जहरीली चीज खा ली गई,बहुत अधिक भय बैठ गया हो अधिक सर्दी लग गई हो या अधिक गर्मी लग गई हो | 

       ऐसी परिस्थिति में गर्मी के महीने में किसी को लू लग गई हो इस कारण उसे उलटी दस्त आदि होने लगे हों उसके कारण पता लगाए बिना चिकित्सा करके यदि उसे रोग मुक्त कर भी लिया जाए तो जैसे ही वह बाहर निकलेगा वैसे ही उसे फिर से उसी गर्मी और उसी लू का सामना करना पड़ेगा और वह पुनः उसीप्रकार के रोग से ग्रस्त हो जाता है रोगी रहते रहते उसका शरीर भी कमजोर होते जाता है ऐसी परिस्थिति में वो जिस प्रकार की औषधियों से पहले स्वस्थ हुआ था अबकी वे औषधियाँ उतना लाभ नहीं कर रही होती हैं इसलिए रोगी और अधिक गंभीर होते जाते है ऐसी परिस्थिति में कहा जा सकता है  कि रोग अपना स्वरूप बदल रहा है |

       सच्चाई ये है कि रोग स्वयं में करता नहीं है इसलिए वो अपना स्वरूप कैसे बदल सकता है रोगी रहने से शरीर दिनोंदिन कमजोर होता जाता है उस पर औषधियों का प्रभाव भी होता है !रोग की संक्रामकता शरीर की सहने की सामर्थ्य और औषधि का प्रभाव एवं औषधि के दुष्प्रभाव आदि से रोग का स्वरूप तो स्वतः बदल जाता है अब वो पहले जैसा नहीं रह जाता है |अचानक किसी को ज्वर होने लगे तो उसकी चिकित्सा करने पर उसका ज्वर तो उतर जाता है किंतु उसके बाद औषधियों की गर्मी या कुछ और कहें उसे भूख लगना बंद हो जाता है पित्त बढ़ जाता है कमजोरी आ जाने के कारण घबड़ाहट होने लगती है हाथ पैर काँपने लगते हैं चक्कर आने लगता है | 

     ऐसी परिस्थिति में देखा जाए तो उसी पुराने ज्वर के दुबारा आ जाने से उसके साथ कुछ चीजें और जुड़ जाती हैं |रोग की वास्तविक पहचान न होने के कारण इस प्रकार के भ्रम होने स्वाभाविक हैं कि ज्वर ने अपना स्वरूप बदल लिया है | ऐसा ही भ्रम महामारियों के समय में भी कई बार होते देखा जाता है जबकि रोगों का स्वरूप बदलने में रोगी पर पड़ने वाला तात्कालिक वातावरण का प्रभाव उस पर पड़ने वाला औषधियों एवं खान पान रहन सहन आदि का प्रभाव उसकी स्वास्थ्य स्थिति उसके शरीर की क्षमता एवं प्रत्येक रोगी के अपने अपने अच्छे  बुरे समय आदि के प्रभाव से रोग का स्वरूप बदलना  स्वाभाविक ही है |          

                      आदिकाल में तो ऋतुएँ भी किसी महामारी से कम नहीं होती रही होंगी !

     वस्तुतः महामारियाँ समय की विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों के संयोग से उत्पन्न होने वाली एक प्रक्रिया है|ऐसे रोग हमेंशा तो होते नहीं हैं इसलिए इनके विषय में विशेष अधिक जानकारी किसी को होती नहीं है|इसलिए इनकी चिकित्सा करना संभव नहीं हो पाता है |जिन जिन रोगों के बिषय में हमारी जानकारियाँ बढ़ती जाती हैं उन उन रोगों के लक्षण कारण आदि हमें पता लगते जाते हैं उसी हिसाब से उनकी चिकित्सा आहार बिहार रहन सहन आदि बचाव के लिए उपाय कर लिए जाते हैं | जब कोई रोग पहले पहले प्रारंभ होता है उस समय ऐसे रोगों के बिषय में कुछ भी पता नहीं होता है तब उस पर अंकुश लग पाना कठिन होता है |कोई भी रोग हो पता न होने के कारण उसका बढ़ जाना स्वाभाविक होता ही है |    

       आदि काल का स्मरण करें तो जब सृष्टि का निर्माण हुआ होगा सर्दी गर्मी वर्षा आदि मौसम संबंधी क्रम तो अनादि काल से चले आ रहे हैं इसलिए ये तो उस समय भी रहे ही होंगे | मनुष्य को जब पहली बार ऋतुओं का सामना करना पड़ा होगा तब अज्ञान के कारण ये सर्दी गर्मी वर्षा आदि प्रमुख ऋतुएँ भी किसी महामारी  से कम डरावनी नहीं होती  रही होंगी |उस समय ऋतुओं के प्रभाव क्रम आदि अंत अवधि आदि के बिषय में कुछ भी पता नहीं रहा होगा | 

     उदाहरण के तौर पर सर्दी के मौसम को ही लें जब मनुष्यों का सबसे पहला सामना  शीतऋतु से हुआ होगा !जानकारी न होने के कारण सर्दी से बचाव कैसे किया जाए लोगों के पास इसकी जानकारी नहीं होगी इसलिए उस  प्रकार के उस प्रकार  बचाव के लिए लोगों के पास  कपडे स्वेटर रजाई गद्दे आदि सर्दी से बचाव के संसाधन नहीं रहे होंगे इसलिए लोग ठंड से व्याकुल होने लगे होंगे सर्दी का प्रकोप क्रमशः दिनोंदिन बढ़ता जा रहा होगा|ठंड से  पीड़ित लोग अचानक अस्वस्थ होने लगे होंगे | उनको गंभीर रोग होने लगे होंगे | 

    ऐसी परिस्थिति में सर्दी जुकाम खाँसी उल्टी दस्त आदि अधिक सर्दी लग जाने से होने वाले रोग घर घर फैलने लगे होंगे |जिनमें प्रतिरोधक क्षमता की कमी होती ऐसे कमजोर लोग उस समय की जानकारी के अनुशार  दवाएँ आदि ले रहे होंगे बचाव के लिए यथा संभव उपाय आदि अपनाते रहे होंगे फिर भी ऐसे रोगों से बहुत बड़ी संख्या में लोगों की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु भी होती रही होगी | ज्वर सर्दी जुकाम खाँसी उल्टी दस्त आदि अधिक सर्दी से होने वाले रोगों से हाहाकार मच  गया होगा |धारे धीरे सर्दी का प्रकोप कम हुआ होगा !रोगों से मुक्ति मिलने लगी होगी | स्वास्थ्य लाभ का कारण उस समय की जानकारी के अनुशार लोगों ने जो उपाय अपनाए होंगे उन्हें मान लिया गया  होगा !अगले वर्ष फिर शीतऋतु आई होगी फिर फिर वही परिस्थिति पैदा हुई होगी इसे उस महामारी की दूसरी लहर मान कर कुछ और बेहतर उपाय करने प्रारंभ कर दिए गए होंगे | उससे लोगों का कुछ अधिक बचाव हो गया होगा तो दूसरी लहर को पहली लहर से कमजोर मान लिया गया होगा | इसीक्रम से दिनोंदिन जानकारी बढ़ती चली गई होगी उसके अनुसार बचाव के उपाय अपनाए जाते रहे होंगे और सुधार होते होते हम क्रमशः वर्तमान परिस्थिति में पहुँच गए होंगे |  

    अधिक सर्दी लगने पर ज्वर  जुकाम खाँसी उल्टी दस्त आदि  रोग होते हैं ये भी एक दूसरे के संपर्क में आने से फैलते हैं एक दूसरे के नाक थूक छींक आदि के अंशों के संपर्क में आने से दूसरे लोग भी रोगी होते देखे जाते हैं | सभी संक्रमित रोगों की तरह ही इससे बचाव के लिए भी वही मॉक्स धारण लॉकडाउन पृथकबास जैसे महामारी नियमों का पालन करने की सलाह दी जाती रही होगी | इससे मुक्ति दिलाने के लिए भी औषधियाँ आदि बनाने के प्रयास किए जाते रहे होंगे जब तक सर्दी का प्रकोप अधिक रहता रहा होगा तब तक उन औषधियों आदि के लिए ट्रायल किए जाते रहे होंगे जब तक सर्दी का प्रकोप अधिक रहता होगा तब तक ट्रायल फेल होते देखे जाते रहे होंगे और सभी प्राकृतिक घटनाओं की तरह ही सर्दी का वेग भी समय के साथ साथ जैसे जैसे घटने लगता होगा वैसे वैसे  सर्दी जनित रोगों से भी मुक्ति मिलती जाती होगी और समय प्रभाव से जैसे जैसे रोगों से मुक्ति मिलती जाती होगी वैसे वैसे औषधियों(वैक्सीनों) आदि के ट्रायल भी सफल मान लिए  जाते होंगे  | 

       ऐसी परिस्थिति में इन्हीं औषधियों  वैक्सीनों आदि को ही भ्रमवश सर्दी जनित महामारी की औषधि(वैक्सीन) आदि मान लिया जाता  होगा | ये भ्रम तब टूटता जब अगले वर्ष फिर सर्दी की ऋतु अचानक आती होगी तब भी सर्दी के बिषय में किसी को कुछ भी पूर्वानुमान पता न होता होगा इसलिए बचाव करने के लिए कोई आवश्यक उपाय भी न किए जा सके होते होंगे  तब भी ज्वर सर्दी जुकाम खाँसी उल्टी दस्त आदि अधिक सर्दी से होने वाले रोगों से  हाहाकार मचा होगा |ऐसे रोगियों पर उन्हीं पिछले वर्ष वाली औषधियों  (वैक्सीनों) आदि का प्रयोग बड़े विश्वास के साथ किया गया होगा किंतु जब तक सर्दी का प्रकोप अधिक रहा होगा तब तक उन सर्दीपीड़ित रोगियों पर औषधियों(वैक्सीनों) आदि का कोई प्रभाव न पड़ पाता होगा और रोगियों  की  संख्या दिनोंदिन बढ़ती चली जाती रही होगी |  

      ऐसी परिस्थिति में इसे नया वेरियंट मानकर  फिर से औषधियाँ  (वैक्सीनें) आदि बनायी जाती रही होंगी  फिर सर्दियों का प्रकोप घटने के साथ समाज रोग मुक्त हो  जाता होगा फिर उसका क्रेडिट उस समय बनायी गयी औषधियों वैक्सीनों आदि को दिया जाता रहा होगा यही क्रम लगातार चला करता होगा |

      इसके बाद जब कभी उससमय की जानकारी के अनुसार किए जाने वाले वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा यह पता लगाया जा सका होगा धरे धीरे जानकारी बढ़ती जा रही होगी और मनुष्यों ने सर्दी से बचाव के लिए उचित उपाय अपनाने प्रारंभ कर दिए होंगे तो शीत जनित महामारी से मुक्ति मिल गई होगी जैसा कि अभी देखा जा रहा है | ऐसा अन्य ऋतुओं में भी ऋतु प्रकोप से होने वाले रोगों के बिषय में देखा जाता रहा होगा | 

       धीरे धीरे जानकारी बढ़ी होगी और पता लगा होगा कि सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ होती हैं ये प्रत्येक वर्ष में  एक एक बार क्रमशः आती हैं इनका समय क्रम और प्रभाव निश्चित होता है | ऐसी ऋतुओं के प्रकोप से किस किस प्रकार के रोग हो सकते हैं उनसे बचाव के लिए प्रभावी उपाय औषधियॉँ खानपान परिधान संसाधन आदि किस प्रकार के आवश्यक होते हैं | 

   इस प्रकार की जानकारी होने के बाद सर्दी गर्मी वर्षा आदि  मुख्य ऋतुएँ आती जाती रही होंगी लोग उसके लिए आवश्यक संसाधन आगे से आगे जुटा कर रख लिया करते होंगे और सावधानी पूर्वक उन्हीं सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं को उचित तैयारियोंके साथ आनंद पूर्वक बिताने लगे होंगे  जैसा कि अब होते देखा जा रहा है किंतु ऐसा तब संभव हो पाया है जबकि ऋतुओं के बिषय में सब कुछ पता लगाया जा चुका है | ऋतुओं आदि के प्रभाव तथा उनके क्रम आदि का पहले से ज्ञान होता है | 

     अब तो सबको पता होता है कि हेमंत शिशिर आदि ऋतुओं की दोपहर भी बहुत गर्म नहीं होती है और बसंत ग्रीष्म आदि ऋतुओं की रात्रि भी बहुत ठंडी नहीं होती है | यह भी सभी को पता है कि सभी ऋतुओं में दोपहर की अपेक्षा सुबह शाम और रात्रि का तापमान काफी कम  होता है |  

      शीतऋतु आने से पहले ही सर्दी के अनुकूल वातावरण का निर्माण हम इसीलिए कर पाते हैं अथवा सर्दी की भयंकर ठिठुरन बिना घबड़ाए हम इसीलिए सह लेते हैं क्योंकि उसके बिषय में हमें पहले से पता होता है कि इस समय सर्दी बढ़नी शुरू होगी और उसके इतने दिन बाद सर्दी समाप्त हो जाएगी | उसके बाद गर्मी आ जाएगी फिर वर्षा ऋतु का आगमन होगा |

     इस प्रकार के ऋतुप्रभाव की जानकारी यदि पहले से न होती और भयंकर सर्दी का समय अचानक आ गया होता तब तो न गर्म कपड़े होते न रजाई गद्दे आदि होते न सर्दी से निपटने लायक अन्य संसाधन ही जुटाए गए होते और न ही इस प्रकार की मानसिक तैयारी होती | सर्दी की ऋतुप्रभाव का सामना बिना संसाधनों के यदि अचानक करना पड़ता तब तो सर्दी की ऋतु भी किसी कोरोना जैसी महामारी से कम नहीं होती |       

      इसीप्रकार से जिससमय ऐसे समयजनित प्राकृतिक रोगों या महारोगों (महामारियों) के बिषय में भी वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा सबकुछ पता लगा लिया जाएगा उससमय महामारियों से भी बचाव करना आसान हो जाएगा !इसलिए तमाम आशंकाओं अफवाहों से ऊपर उठकर महामारियों की भी सच्चाई स्वीकार करनी होगी और ऐसे महारोगों को समझने के लिए गंभीर अनुसंधान किए जाने चाहिए | 

                                                  महामारी और वैज्ञानिक अनुसंधान 

    महामारी संबंधित विज्ञान सक्षम न होने के कारण ऐसे अनुसंधानों की प्रक्रिया में वास्तविक अनुसंधान कम एवं खानापूर्ति अधिक होती  है | यही कारण है कि  प्रकृति में महामारियों का जब बीजारोपण हो रहा होता है तब उनके विषय में किसी को कानों कान भनक नहीं लग पाती है | 

      मनुष्यकृत रोगों या महामारियों में तो औषधि  वैक्सीन आदि प्रभावी होती हैं किंतु समयजनित महामारियाँ  हों या भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ आदि प्राकृतिक घटनाएँ इन पर मनुष्यकृत प्रयासों से अंकुश नहीं लगाया जा सकता है | ऐसी घटनाओं के बिषय में यदि पहले से पूर्वानुमान पता हों तो ऐसी प्राकृतिक घटनाओं से अपने बचाव के लिए यथा संभव प्रयास किए जा  सकते हैं | 

     समय जनित किसी समस्या का समाधान कोई औषधि या  वैक्सीन आदि कभी नहीं हो सकती है यह तो काम चलातू  समय पास करने वाला काम है इसका वास्तविक समाधान तो खोजना होगा कि आखिर ऐसा होता क्यों है और इसका कारण क्या है तथा इसे रोकने के लिए किया क्या जाना चाहिए |  

     यदि कोरोना महामारी की तरह ही सर्दी  गर्मी वर्षा  आदि ऋतुओं के आदि अंत के समय का पूर्वानुमान न होता तो इनके प्रकोप को देखकर भी घबड़ाहट हो सकती थी |अँधेरी रात को देखकर घबड़ाहट हो सकती थी यदि उसके बाद होने वाले सूर्योदय का पूर्वानुमान पता न होता | यही स्थिति कोरोना महामारी की है इसके विषय में पूर्वानुमान लगा पाना तो दूर की बात है किसी को कुछ पता ही नहीं है इसीलिए इससे संबंधित अनुसंधानों के नामपर केवल आशंकाएँ अफवाहें आदि ही देखने सुनने को मिलती हैं |   

      सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं में उतार चढाव तो प्राकृतिक रूप से होते रहते हैं दोपहर में भयंकर धूप होती है उसके बाद धूप घटनी  ही होती  है ऐसे ही रात में यदि भयंकर अँधेला होता हैतो उसके बाद अँधेला छटना ही होता है ऐसे समय धूप और अँधेला घटाने के लिए प्रयास करना निरर्थक है |  

       इसी प्राकृतिक उतार चढ़ाव के क्रम में महामारी जैसी घटनाओं का वेग जब बहुत अधिक बढ़ जाता है तब सारा समाज घबड़ाकर अपने अपने बचाव के लिए कोई न कोई उपाय करने लग जाता है | उपायों के नाम पर विशेषज्ञ लोग कुछविशेष करने लग जाते हैं | चिकित्सक लोग चिकित्सा के क्षेत्र में कुछ अधिक सतर्कता बरतने लग जाते हैं | धार्मिक लोग धर्म सम्मत  यज्ञ अनुष्ठान पूजा पाठ करने में लग जाते हैं उपायों के नाम पर कुछ लोग कुछ अन्य प्रकार के आचार व्यवहार खान पान रहन सहन आदि अपनाने और कुछ छोड़ने लगते हैं |कुलमिलाकर सभी लोग अपने अपने स्तर से  कुछ न कुछ करने लग जाते हैं |ऐसी महामुसीबत के समय में  सरकारें भी जनता के साथ  खड़ी दिखने के लिए वे भी अपने अपने स्तर से सक्रिय हो जाती हैं | महामारी के कल्पित नियमों का कड़ाई से पालन करवाने लग जाती हैं लॉकडाउन लगा देती हैं !चिकित्सकीय संसाधन उपलब्ध करवाने की दृष्टि से कुछ विशेष प्रयास करने में लग जाती हैं | 

     इसी बीच प्राकृतिक रूप से उसके शांत होने का समय आ जाता है और उस महामारी का वेग स्वयं ही शांत होने लग जाता है ऐसे में महामारी के शांत होने का श्रेय वे सभी लोग अपने अपने द्वारा किए जाने वाले प्रयासों को देने लग जाते हैं जबकि उस महामारी से उन  उपायों का कई बार कोई संबंध ही नहीं होता है |ऐसी प्रक्रियाओं को वैज्ञानिक अनुसंधान कैसे माना जा सकता है | 

     ऐसे तथाकथित मनुष्यकृत उपायों से आँधीतूफानों या वर्षाबाढ़ आदि प्राकृतिक घटनाओं के वेग को नियंत्रित करना संभव नहीं हो पाता है तो महामारी के वेग को मनुष्यकृत प्रयासों से कैसे कम किया जा सकता है |

       प्रायः सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं में उतार चढ़ाव तो होता ही है जिनका कारण मनुष्यकृत प्रयास नहीं होते हैं अपितु इनका उतार चढ़ाव आदि सब कुछ प्राकृतिक दृष्टि से सुनिश्चित होता है |समुद्र में ज्वारभाटा जैसी घटनाओं में भी तो पानी का उतार चढ़ाव आदि ही होता है |ऐसी घटनाएँ भी तो प्रत्येक महीने के कुछ दिनों में ही घटित होती हैं उसका समय भी निश्चित होता है | 

                                                       महामारी और विज्ञान  

        भूकंप , भीषण बाढ़ या आँधीतूफ़ान जैसी घटनाओं के एक बार भयंकर रूप धारण करते जो नुक्सान होना होता है वो पहले झटके में ही हो चुका होता है उसके बाद तो उस वेग को स्वयं ही शांत होना होता है | इसलिए वैज्ञानिक अनुसंधानों का लाभ तो तभी मिल सकता है जब ऐसी प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान पहले से पता हो |जिन प्राकृतिक घटनाओं का विज्ञान पहले खोजा जा चुका  होता है उस विज्ञान को परंपरा से सभी समझते हैं उनके बिषय में पूर्वानुमान सबको पता होते हैं कि अँधेरी रात के बाद सुखद सबेरा होगा !दोपहर की गर्मी के बाद सायंकाल भी होगा जब दोपहर की अपेक्षा गर्मी का वेग कुछ कम हो जाएगा | इसी प्रकार से गर्मी की ऋतु के बाद वर्षा ऋतु आएगी वह न केवल ठंढक लाएगी अपितु  सूखे नदियों तालाबों आदि  में पानी भी भर देगी | यदि इस बात का पूर्वानुमान न पता होता कि वर्षाऋतु  इतने समय बाद समाप्त हो जाएगी तो वर्षा की भीषण बाढ़ देखकर घबड़ाहट हो सकती है |इसी प्रकार से भीषण सर्दी में घबड़ाहट हो सकती है यदि यह न पता हो कि इतने समय बाद शीत ऋतु समाप्त हो जाएगी | 

     इसके अतिरिक्त भी ऐसी सभी प्राकृतिक घटनाओं में इस प्रकार से चढ़ाव का क्रम अपने चर्म पर पहुँच जाने के बाद उसके उतार का क्रम तो स्वयं ही प्रारंभ हो  जाता है उसी समय यदि ऐसी घटनाओं के उतार के लिए कुछ प्रयास प्रारंभ कर दिए जाते हैं तो उन प्रयासों के करने का श्रेय प्रयास कर्ताओं को मिल जाता है | जबकि उस  समय ऐसी घटनाओं का प्रभाव कम करने के लिए उपाय करना प्रायः निरर्थक होता है |महामारी के समय उपायों के नाम पर कुछ इसी प्रकार की प्रक्रिया अपनायी जा रही होती है | 

        प्राकृतिक आपदाएँ और महामारियाँ भी तो समय जनित घटनाएँ ही हैं इसलिए जब से सृष्टि निर्माण हुआ है तब से ऐसी घटनाएँ समय के साथ साथ हमेंशा से घटित होती रही हैं | अभी भी ऐसा हो रहा है आगे भी ऐसा होता रहेगा | प्राकृतिक घटनाओं के उतार चढ़ाव को प्रभावित करना मनुष्य के बश की बात नहीं होती है |  ऐसी घटनाओं के प्रारंभ एवं समाप्त होने का समय सुनिश्चित होता है इनके उतार चढ़ाव का समय सुनिश्चित  होता है यदि उस समय का पूर्वानुमान पता लगाया जा सकता हो तो ऐसी घटनाओं से अपने बचाव के लिए प्रयास किए जा सकते हैं उनसे घटनाएँ तो नहीं रुकती हैं किंतु प्रयास करने वालों का कुछ बचाव हो भी जाता है |

        कोरोना महामारी की संक्रामकता से डरा सहमा समाज उससे अधिक उन अफवाहों से परेशान होता है जो कोरोना महामारी के बिषय में वैज्ञानिकों के द्वारा फैलाई जा रही होती हैं | यद्यपि वे अफवाहें उन वैज्ञानिकों की अपनी कल्पना प्रसूत ही हैं उनका कोई वैज्ञानिक आधार है ही नहीं फिर भी वे बातें डरावनी होती थीं और चूँकि वैज्ञानिकों के मुख से सुनी जा रही थीं इसलिए उन पर विश्वास करना जनता की अपनी मजबूरी थी |

    कोरोना महामारी जैसी और भी छोटी बड़ी सामूहिक स्वास्थ्य संबंधी घटनाएँ किसी न किसी रूप में हमेंशा से घटित होती देखी जाती रही हैं |ऐसी घटनाओं के घटित होने के मुख्य रूप से दो कारण होते हैं एक तो मानवीय भूलों लापरवाहियों आदि से घटित होने वाली मनुष्यकृत घटनाएँ होती हैं |कहीं जहरीली गैस का रिसाव हो गया या जहरीले विस्फोट आदि किसी क्षेत्र में किए गए और भी ऐसी मनुष्यकृत घटनाएँ घटित हुआ करती हैं |

       ऐसी घटनाओं से निपटने में भारत समेत समस्त विश्व के वैज्ञानिक सक्षम हैं |विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि ऐसी घटनाएँ क्यों घटित हुई हैं इनके  दुष्प्रभाव से किस प्रकार के रोग हो सकते हैं उससे लोगों में किस प्रकार की परेशानियाँ देखी जा सकती हैं उसकी जाँच की विधि क्या होगी उसके लिए आवश्यक  चिकित्सा व्यवस्था क्या करनी पड़ेगी किस किस प्रकार की औषधियों की आवश्यकता होगी आदि का अनुमान चिकित्सा वैज्ञानिकों के द्वारा लगाकरऐसे रोगों से मुक्ति दिलाने के प्रयास तुरंत प्रारंभ कर दिए जाते हैं औरचिकित्सा वैज्ञानिकों के द्वारा प्रयास पूर्वक ऐसे रोगों को तुरंत नियंत्रित कर लिया जाता है | 

    दूसरी प्राकृतिक महामारियाँ होती हैं जिनका मनुष्यकृत प्रत्यक्षप्रयासों से कोई लेना देना नहीं होता है| ऐसी महामारियाँ समय जनित होती हैं ये गर्मी सर्दी वर्षा जैसी ऋतुओं की तरह अपने समय से आती और समय से ही जाती  हैं | सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं के क्रम को बदला नहीं जा सकता और न ही इनके प्रभाव को मनुष्यकृत प्रयासों से घटाया बढ़ाया ही जा सकता है |इनका आना जाना इनके प्रभाव का घटना बढ़ना आदि सबकुछ प्राकृतिक होने के कारण मनुष्यकृत प्रयासों से इनके किसी अंग को हिलाया नहीं जा सकता है |

    ऐसी ऋतुओं के आने जाने का समय सबको पता है क्रम पता है प्रभाव पता है ऐसी ऋतुओं में किस किस प्रकार के रोगों के होने की संभावना होती है ये भी सबको पता है उसकी तैयारी करके आगे से आगे रख ली जाती है जिससे रोगमुक्ति तुरंत मिल जाती है | पहले से पता होने के कारण इनसे बचाव के लिए आगे से आगे उपाय करके रख लिए जाते हैं | जिससे ऋतु प्रभाव से होने वाले रोगों से बचा जा सकता है |

      कई बार प्राकृतिक रूप से  घटित हो रही उन घटनाओं के साथ वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए जाने वाले तीर तुक्कों का तालमेल  बैठ भी जाता है किंतु तुक्का केवल तुक्का होता है उन तीरतुक्कों का प्राकृतिक महामारी के साथ संयोगवश तालमेल बैठ जाने को विज्ञानजनित  मानकर उन पर विश्वास कर लेना ठीक नहीं है क्योंकि ये उन लोगों के द्वारा कुछ मानक प्रतीकों के आधार पर की गई कल्पनाएँ होती हैं उन कल्पनाओं का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता है |  

     ऐसी प्रकार से ऐसे काल्पनिक उपाय होते हैं घटित होते देखी जा रही किसी प्राकृतिक घटना के प्रभाव को कम या अधिक करने या फिर उसे बिल्कुल रोक  देने का दावा करने वाले लोग उपाय करने के नाम पर कुछ न कुछ आडंबर करना शुरू कर देते हैं उनके ऐसा करने के साथ साथ यदि प्राकृतिक रूप से कुछ वैसा ही हो जाता है जैसा कि वे दावा कर रहे होते हैं तो इसका श्रेय वे अपने प्रयासों को देने लगते हैं |जो विज्ञान सम्मत नहीं है फिर भी ऐसा होते वैज्ञानिकों धार्मिकों एवं परंपराओं में सभी जगह देखा जाता है |

      ऋतुओं की तरह ही कुछ महामारियाँ भी प्राकृतिक होती हैं किंतु इनके आने जाने का समय ,इनका प्रभाव,इनमें होने वाले रोगों के वेग विस्तार अंतरगम्यता आदि के बिषय में किसी को पहले से कुछ पता ही नहीं होता है इसलिए इनके उपायों के बिषय में भी किसी को कुछ पता ही नहीं होता है | लोग अनजाने में जब तक कुछ तीरतुक्के लगाते हैं है जब तक महामारी भयंकर रूप ले लिया करती है |जैसे वर्षा ऋतु में भी वर्षा प्रतिदिन एक जैसी नहीं होती है कुछ दिन कम कुछ दिन अधिक और कुछ दिन नहीं भी होती है |सर्दी और गर्मी संबंधी ऋतुओं में भी ऐसा होते देखा जाता है | इसीप्रकार से महामारियों में भी ऐसा होते देखा जाता है ऐसे उतार चढ़ाव प्राकृतिकघटनाओं में आया जाया करते  हैं जिन्हें महामारियों के बिषय में पहली लहर दूसरी लहर तीसरी लहर आदि कहा जाता है | 

     कोरोना महामारी के समय में भी पूर्वानुमान लगाने से लेकर उपाय करने के नाम पर वैज्ञानिकों के द्वारा ऐसे अवैज्ञानिक एवं निराधार दावे कई बार किए जाते रहे जिन्हें वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर बार बार कोरोना से भयभीत समाज पर थोपा जाता रहा है जबकि उनका कोरोना संक्रमितों की संख्या से बढ़ने घटने का कोई संबंध था या नहीं था यह अंत तक स्पष्ट ही नहीं हो सका है|अमुक समय दूसरी लहर या तीसरी लहर आएगी |इससमय संक्रमण बढ़ेगा या इस समय कम होगा या ऐसा करने से संक्रमण बढ़ेगा वैसा करने से कम होगा| ऐसे अनुमान विज्ञान के किस सिद्धांत के आधार पर किए जाते रहे हैं |यह अंत तक स्पष्ट नहीं हो जा सका है |

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