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प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली *******

     रोगों महारोगों के विषय में अनुसंधान हमेंशा से होते चले आ रहे हैं यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि अभी तक किए गए उन अनुसंधानों से आखिर ऐसा क्या मिला जिससे महामारी से जूझती जनता को कुछ राहत पहुँचाई जा सकी हो | डेढ़ वर्ष से अधिक का समय बीत चुका है किंतु अभी तक कोरोना महामारी के विषय में कोई ऐसी जानकारी नहीं जुटाई जा सकी जिसके बल पर  भविष्य   कोरोना महामारी के विषय में  आने वाली महामारियों के विषय में कोई पूर्वानुमान लगाया जा सके या किसी अन्य प्रकार से महामारी को समझने में कोई मदद मिल सके जिसके बल पर समाज को भरोसा दिया जा सके कि अबकी जो हुआ सो हुआ दुर्भाग्यवश भविष्य में यदि ऐसी कोई महामारी घटित होती है तो इस महामारी की अपेक्षा कुछ और अच्छे ढंग से उस  महामारी से निपटा जाएगा और समाज को संक्रमित होने से मरने से एवं भयभीत होने से बचा लिया जाएगा | 

      महामारी के विषय में जिसे जो जानकारी थी जिसके द्वारा अनुसंधान संबंधी जितने भी प्रयास किए जा सकते थे वे किए गए हैं किंतु आज तक महामारी रहस्य बनी हुई है | अब मैंने सूना है कि मौसम के आधार पर भी महामारी के विषय में अनुसंधान किया जाएगा | 

    यद्यपि यह बहुत प्रसन्नता की बात है कि इसी बहाने प्राकृतिक परिस्थितियों का अध्ययन करने का सुअवसर मिलेगा और संभव है कि मौसम के आधार पर महामारी के विषय में जो अनुसंधान किया जाएगा वो महामारी के रहस्य को सुलझाने में सक्षम हो सकता है | आवश्यकता इस बात को समझने की है कि प्रकृति के परिवर्तनों परिस्थितियों  को समझने वाले मौसम वैज्ञानिक हैं कहाँ !मौसम पूर्वानुमान लगाने के नाम पर उपग्रहों रडारों के द्वारा बादलों की जासूसी करने वाले वैज्ञानिकों के बश की बात  प्रकृति के स्वभाव एवं परिवर्तनों को समझना नहीं है यदि मौसम को समझना उनके बश का होता तो महामारी का रहस्य अब तक न जाने कब उद्घाटित होचुका होता | मौसम का पूर्वानुमान लगाना ही जिनके लिए संभव नहीं है वे मौसम के आधार पर महामारी का पूर्वानुमान लगाने में या महामारी को समझने में कैसे सफल हो सकते हैं |    


                                          प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली 

      "पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय  द्वारा एक ऐसी विशिष्ट प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली विकसित की जा रही है, जिससे देश में किसी भी रोग के प्रकोप की संभावना का अनुमान लगाया जा सकेगा।इस योजना की एक सबसे बड़ी विशेषता यह है कि भारतीय  मौसम विज्ञान विभाग भी इस विशिष्ट प्रणाली की विकास अध्ययन और प्रक्रिया में शामिल है।पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा विकसित किया जा रहा मॉडल मौसम में आने वाले परिवर्तन और रोग की घटनाओं के बीच संबंध पर आधारित है।बताया जा रहा है कि ऐसे कई रोग हैं, जिनमें मौसम की स्थिति अहम भूमिका निभाती है।मलेरिया  जैसे रोग जिसमें विशेष तापमान और वर्षा पैटर्न के माध्यम से इसके प्रकोप के बारे में आसानी से पता लगाया जा सकता है।विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली एक ऐसी निगरानी प्रणाली है, जो त्वरित सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप को संभव बनाने के लिये ऐसे रोगों से संबंधित सूचना एकत्र करती है, जो भविष्य में महामारी का रूप ले सकते हैं | विश्लेषण के मुताबिक, मौसम में अस्थायी और स्थानिक परिवर्तन, उदाहरण के लिये अल-नीनो के प्रभाव के रूप में तापमान और वर्षा में अल्पकालिक वृद्धि, मलेरिया के प्रकोप का कारण बन सकता है।जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनलने अपने एक अध्ययन में कहा था कि जलवायु परिवर्तन के कारण डायरिया संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। जलवायु परिवर्तन, जो कि बाढ़ और सूखे जैसी चरम घटनाओं में वृद्धि के लिये उत्तरदायी है, विकासशील देशों में अत्यधिक चिंता का विषय है।यद्यपि कोरोना वायरस महामारी के प्रसार को प्रभावित करने वाले मौसम के पैटर्न पर कई अध्ययन और विश्लेषण किये गए हैं, किंतु अभी तक शोधकर्त्ता कोरोना वायरस महामारी और मौसम के बीच एक निश्चित संबंध स्थापित करने में सफल नहीं हो पाए हैं।                                                                                                                                                                                                                                       - प्रकाशित 22 -12-2020 

     यदि सरकार ऐसी कोई प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली बनाने जा ही है तो यह सरकार के द्वारा सही दिशा में देर से उठाया गया एक कदम हो सकता है क्योंकि महामारी जैसे प्राकृतिक रोग मौसमसंबंधी घटनाओं से प्रभावित हो सकते  हैं | इस अनुसंधान की सबसे बड़ी अच्छाई यह है कि इसमें मौसमविज्ञानविभाग  के वैज्ञानिकों को भी सम्मिलित किया जाएगा | इसलिए  सरकार के द्वारा यदि इस प्रकार की कोई योजना बनाई जा रही है तो भविष्य में यदि कोई महामारी आती है तो संभव है उस समय महामारी के विषय में वैज्ञानिक इतने खाली हाथ न रहें |
     मुझे लगता है कि इसप्रकार की स्वास्थ्य योजना में मौसमसंबंधी अनुसंधानों की बड़ी भूमिका होने जा  रही है | इस योजना का मुख्यआधार  मौसमसंबंधी अनुसंधान होंगे | इसलिए इसमें उपग्रहों रडारों की मदद से आँधी तूफानों एवं बादलों की जासूसी करने वाले प्रकृति के स्वभाव को समझने वाले वास्तविक मौसम वैज्ञानिक चाहिए  जो प्रकृति का स्वभाव  प्रकृतिक लक्षणों का  करके मौसम संबंधी घटनाओं के चिन्ह किसी भी रूप में प्रकट होने से पूर्व वर्षा आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान लगाने में सक्षम हों ऐसे स्वास्थ्य संबंधी अध्ययनों में प्रकृति के स्वभाव को समझने वाले वैज्ञानिक महत्त्वपूर्ण भूमिका  अदा सकते हैं | इसके अतिरिक्त उपग्रहों रडारों से बादलों या आँधी तूफ़ानों  को एक स्थान पर देखकर उनकी दिशा और गति के हिसाब से उनके दूसरे स्थान पर पहुँचने  का अंदाजा लगाने वाले  वैज्ञानिकों की ऐसे अध्ययनों  में कोई भूमिका इस लिए नहीं है क्योंकि उपग्रहों रडारों के माध्यम से बादलों या आँधी तूफ़ानों  की जासूसी करने में विज्ञान है ही कहाँ यह तो आकाशस्थ कैमरों के आधार पर लगाए जाने वाले तीर तुक्के मात्र हैं | 
   | इसलिए ऐसी स्वास्थ्य प्रणाली को सफल बनाने के लिए  सरकार को कुछ वास्तविक मौसम वैज्ञानिक खोजने होंगे |जो प्रकृति के स्वभाव को समझने में सक्षम हों अन्यथा  यदि प्रकृति के स्वभाव को समझना इतना ही आसान होता तो इस प्रकार की परिस्थितियाँ पैदा ही न हुई होतीं  और अब तक महामारी के बिषय में पूर्वानुमान लगा लिया गया होता |   
   महामारी के बिषय में पूर्वानुमान लगाने से पहले मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं का सही सही पूर्वानुमान लगाना आवश्यक है उन्हीं मौसमी घटनाओं  के आधार पर भावी  महामारियों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |  

मौसम और महामारी 

    प्रारंभिक स्वास्थ चेतावनी प्रणाली में मौसमसंबंधी वैज्ञानिकों को सम्मिलित किए जाने का मतलब महामारी प्रारंभ होने पर या इससे संबंधित संक्रमण बढ़ने घटने पर मौसम का प्रभाव पड़ता है ऐसी परिस्थिति में महामारी से संबंधित पूर्वानुमान लगाने के लिए मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में सही सही मौसम पूर्वानुमान लगाना आवश्यक है |उसके लिए सर्वप्रथम प्रकृति के स्वभाव को समझा जाना आवश्यक है |मौसम के क्षेत्र में प्रकृति के स्वभाव को समझने के लिए क्या किया जा रहा है इसकी जानकारी मुझे नहीं है इतनी अवश्य है कि उपग्रहों रडारों से जो दिखाई पड़ता है उसकी भविष्यवाणी कर दी जाती है और उन कैमरों से भूकंप नहीं दिखाई पड़ते तो भूकंप संबंधी पूर्वानुमान लगाने को असंभव बता दिया गया है | उन्हीं कैमरों से बादलों आँधी तूफानों को देख लिया जाता है वे जब जिस दिशा में जितनी गति से आगे बढ़ रहे होते हैं उसी के अनुशार गुणागणित लगाकर अंदाजा  लगा लिया जाता है कि ये कितने दिनों घंटों आदि में किस देश प्रदेश शहर आदि में पहुँच सकते हैं | यह तो बिल्कुल उस प्रकार का अंदाजा है जैसे किसी नहर में पानी छोड़ा जाता है वह कब कहाँ पहुँचेगा इसका अंदाजा उसी समय लगा लिया जाता है ट्रेन फ्लाइट आदि की भी यही स्थिति है | उपग्रहों रडारों के माध्यम से बादलों या आँधी तूफ़ानों  की जासूसी करने में विज्ञान है ही कहाँ यह तो आकाशस्थ कैमरों के आधार पर लगाए जाने वाले तीर तुक्के मात्र होते हैं |

     मौसम संबंधी अनुसंधानों की इस विधा में विज्ञान का तो कोई विशेष उपयोग लगता नहीं है जिसमें प्रकृति के स्वाभाविक परिवर्तनों का अध्ययन करके भूकंपों या मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में कोई पूर्वानुमान लगाया गया हो |जहाँ तक बात अलनीनों लानिना जैसी काल्पनिक कहानियों की है तो उनके प्रभाव को अभी तक प्रमाणित नहीं किया जा सका है क्योंकि उसके आधार पर लगाए गए दीर्घावधि पूर्वानुमान प्रायः गलत निकलने के लिए ही बताए जाते हैं |वे सही निकालें तब तो ऐसी कहानियों का सच्चाई से कोई संबंध प्रमाणित हो |

      प्रकृति के स्वाभाविक परिवर्तनों के प्रभाव से भूकंप वर्षा बज्रपात एवं आँधीतूफ़ान जैसी घटनाएँ घटित होती हैं उन्हीं प्राकृतिक परिवर्तनों के प्रभाव से रोग या महारोग (महामारियाँ) आदि जन्म लेते हैं | प्रकृति के स्वाभाविक परिवर्तनों का अनुसंधान किए बिना न तो मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है और न ही महामारियों के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | 

     महामारियों से संबंधित अनुसंधानों कुछ वास्तविक मौसम वैज्ञानिक खोजने होंगे |जो प्रकृति के स्वभाव को समझने में सक्षम हों अन्यथा  यदि प्रकृति के स्वभाव को समझना इतना ही आसान होता तो इस प्रकार की परिस्थितियाँ पैदा ही न हुई होतीं  और अब तक महामारी के बिषय में पूर्वानुमान लगा लिया गया होता | महामारी के बिषय में पूर्वानुमान लगाने से पहले मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं का सही सही पूर्वानुमान लगाना आवश्यक है उन्हीं मौसमी घटनाओं  के आधार पर भावी  महामारियों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |

   मौसम संबंधी अनुसंधानों के अभाव में नहीं लगाए जा सके महामारियों के विषय में पूर्वानुमान !
     महामारियों से संबंधित अनुसंधानों के क्षेत्र में यदि कुछ भी प्रगति हुई होती तो वह दिखाई भी पड़ती क्योंकि अनुसंधान तो हमेंशा चलते हैं निकलता उनसे क्या है ये उन्हीं को पता होगा जो महामारियों से संबंधित अनुसंधानों की जिम्मेदारी सँभालते हैं | जनता को भी अब लगने लगा है कि वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ताओं को महामारियों के बिषय में अनुसंधान करने के लिए चार सौ वर्ष तो दिए जा चुके आखिर कितना समय और दिया जाना चाहिए तब वे महामारियों के बिषय में किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुँच सकेंगे |
    महामारी सन् 1720, फिर 1820, इसके बाद 1920 और अब 2020 में आई है | कुलमिलाकर पिछले चार सौ वर्षों से यह देखा जा रहा है कि महामारी हर  सौ वर्ष बाद आती रही है किंतु महामारियों का पूर्वानुमान लगाने की दृष्टि से जितने हम सन् 1720 में असमर्थ थे उतने ही असमर्थ 2020 में भी हैं | आखिर इन चार सौ वर्षों से जितने भी अनुसंधान  किए गए इससे उस जनता को क्या मिला जिससे टैक्स लेकर सरकारें ऐसे अनुसंधानों पर धन खर्च किया करती हैं |सच्चाई यही है कि सन् 1720 में महामारी से जनता अकेले जूझी होगी आज भी जनता ही जूझ रही है उसे ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों से कोई मदद नहीं मिली जो पिछले चार सौ वर्षों से निरर्थक ही चलाए जाते रहे हैं | महामारी से संबंधित पूर्वानुमानों के अनुसंधान कितने कारगर हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है |       

वास्तविक मौसम वैज्ञानिकों के अभाव में ही नहीं लगाए जा सके थे इन घटनाओं के पूर्वानुमान !

      2005 में मुंबई में भीषण बाढ़ आई थी !16 जून 2013 को केदारनाथ जी में भयंकरसैलाव आया उसमें हजारों लोग मारे गए !16 जून, 2013 को उत्तराखंड में आई भीषण जलप्रलय की। लाखों श्रद्धालुओं की आस्था के प्रतीक तीर्थस्थल केदारनाथ और इसके आसपास भारी बारिश, बाढ़ और पहाड़ टूटने से सबकुछ तबाह हो गया और हजारों लोग मौत के आगोश में समा गए थे।इनमें से किसी घटना के बिषय में मौसमवैज्ञानिकों के द्वारा कोई पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था |
       नवंबर सन्‌ 2015 में चैन्नई में भीषण बाढ़  आई थी !
सितंबर 2014 में मूसलाधार मानसूनी वर्षा के कारण भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर ने अर्ध शताब्दी की सबसे भयानक बाढ़ आई। यह केवल जम्मू और कश्मीर तक ही सीमित नहीं थी अपितु पाकिस्तान नियंत्रण वाले आज़ाद कश्मीर, गिलगित-बल्तिस्तान व पंजाब प्रान्तों में भी इसका व्यापक असर दिखा। 8 सितंबर 2014 तक, भारत में लगभग 200 लोगों तथा पाकिस्तान में 190 लोगों की मृत्यु हो चुकी है।450 गाँव जल समाधि ले चुके थे ।इनमें से किसी भी बाढ़ के बिषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था |

      सितंबर 2019 में बिहार में आई भीषण बाढ़ के बिषय में कोई पूर्वानुमान बताने में मौसम विभाग असफल रहा था !मौसम पूर्वानुमान बताने वाले लोग कुछ बता ही नहीं पा  रहे थे और जो बता रहे थे वो गलत होता जा रहा था तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने पत्रकारों से बात करते हुए स्वीकार किया कि मौसम विभाग वाले लोग कुछ बता ही नहीं पा  रहे हैं वर्षा के बिषय में वे सुबह कुछ कहते हैं दोपहर में कुछ दूसरा कहते हैं और शाम होते होते कुछ और कहने लगते हैं | पत्रकारों ने पूछा तो इस बाढ़ के बिषय में आप जनता से क्या कहना चाहेंगे तो नीतीश जी ने कहा कि मेरा मानना है कि हथिया नक्षत्र के कारण यह अधिक बारिश हो रही है |स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे जी ने भी पत्रकारों के पूछने पर यही कहा कि हथिया नक्षत्र के कारण ही  अधिक बारिश हो रही है | 

       28 जून 2015 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी की वाराणसी में सभा होने वाली थी किंतु भीषण वर्षा के कारण उस सभा को रद्द करना पड़ा | इसके बाद मौसम विभाग से पूर्वानुमान पूछकर 16 जुलाई 2015 को वही सभा वर्षा से निपटने की अधिक तैयारियों के साथ निश्चित की गई सरकारी मौसम भविष्य वक्ताओं से भी सलाह ली गई थी उन्होंने कहा था  कि 16 जुलाई को वर्षा की संभावना नहीं है  किंतु मौसम विभाग की भविष्यवाणी गलत हुई और उस दिन इतनी भयंकर बारिश हुई कि प्रधान मंत्री जी की वह सभा भी रद्द हुई !दोनों सभाओं के आयोजन पर खर्च की गई भारी भरकम धनराशि मौसम विभाग की भविष्यवाणी गलत होने के कारण निरर्थक चली गई |

        इसी समय में 13 अप्रैल 2016 से असम आदि पूर्वोत्तरीय प्रदेशों में भीषण वर्षा और बाढ़ का भयावह दृश्य था त्राहि त्राहि मची हुई थी |यह वर्षा और बाढ़ का तांडव 60 दिनों से अधिक समय तक लगातार चलता रहा था |

    सन 2016 के अप्रैल मई में घटित हुई परस्पर विरोधी इन दोनों घटनाओं के बिषय में वैज्ञानिकों से पत्रकारों ने पूछा कि इन दोनों घटनाओं के बिषय में पहले से कोई पूर्वानुमान क्यों नहीं बताया जा सका था | इस पर वैज्ञानिकों ने कहा कि असम आदि पूर्वोत्तरीय प्रदेशों में हो रही भीषण वर्षा और बाढ़ का कारण जलवायु परिवर्तन है तथा बिहार उत्तर प्रदेश राजस्थान मध्यप्रदेश महाराष्ट्र आदि में अधिक गर्मी एवं आग लगने की अधिक घटनाओं का कारण ग्लोबल वार्मिंग है | जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण घटित होने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता | 

      2018 के अप्रैल मई में हिंसक आँधी तूफानों की घटनाएँ बार बार घटित हो रही थीं 2 मई 2018 की रात्रि में आए तूफ़ान से काफी जन धन हानि हुई थी | ऐसे तूफानों के बिषय में किसी को कुछ पता ही नहीं था मौसम वैज्ञानिकों को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि ऐसे बिषयों में क्या बोला जाए !इनके बिषय में कभी कोई पूर्वानुमान बताया ही नहीं जा पा रहा था वैज्ञानिक लोगों ने भविष्यवाणियाँ करने के लिए कुछ तीर तुक्के लगाए भी किंतु वे पूरी तरह से गलत निकलते चले गए !यहाँ तक कि 7 और 8 मई 2018 को उन्होंने दिल्ली और उसके आस पास भीषण तूफ़ान की भविष्यवाणी बड़े जोर शोर से कर दी यह सुन कर कुछ प्रदेशों की भयभीत सरकारों ने अपने अपने प्रदेशों में स्कूल कालेज बंद कर दिए किंतु उन दो दिनों में हवा का एक झोंका भी नहीं आया !बताया जाता है कि इस बिषय को बाद में पीएमओ ने संज्ञान भी लिया था | इसी घटना के बिषय में एक निजी टीवी चैनल के साथ परिचर्चा में मौसम विज्ञान विभाग के निदेशक महोदय डॉ.के जे रमेश जी से एक पत्रकार महोदय ने प्रश्न कर दिया कि क्या कारण है कि आपका विभाग इतने भयंकर आँधी तूफानों के बिषय में कोई पूर्वानुमान नहीं लगा सका और जो लगाए भी गए वे गलत निकलते चले गए !इस पर डॉ.के जे रमेश जी ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण ऐसे तूफ़ान आ रहे हैं इसीलिए इनके बिषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पा रहा है और अचानक आ जा रहे हैं आँधी तूफ़ान पता ही नहीं लग पा रहा है | अगले दिन कई अखवारों में हेडिंग छपी थी -"चुपके चुपके से आते हैं चक्रवात !"

       केरल में जब भीषण बाढ़ आई तो उसमें भी मौसम विज्ञान विभाग की ऐसी ही ढुलमुल भूमिका रही !3 अगस्त 2018 को मौसम विज्ञान विभाग की ओर से जो प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई उसमें भविष्यवाणी की गई थी कि अगस्त और सितंबर महीने में दक्षिण भारत में सामान्य वर्षा की संभावना है !जबकि 5 अगस्त से ही भीषण बारिश प्रारंभ हो गई थी जिससे केरल कर्नाटक आदि दक्षिण भारत में त्राहि त्राहि माही हुई थी | जिसके बिषय में केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री जी ने स्वीकार भी किया कि यदि मौसम विभाग की भविष्यवाणी झूठी न निकली होती तो बाढ़ से जनता इतनी अधिक पीड़ित न हुई होती | इसके बिषय में मौसम निदेशक डॉ.के. जे. रमेश से एक टीवी चैनल ने पूछा तो उन्होंने कहा कि केरल की बारिश अप्रत्याशित थी इसलिए इसके बिषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था | इसका कारण जलवायु परिवर्तन है जबकि दक्षिण भारत में 2018 के अगस्त महीने में हुई इसी भीषण वर्षा के बिषय में 2018 के अगस्त महीने का मौसम पूर्वानुमान मैंने मौसम विभाग के निदेशक डॉ.के जे रमेश जी की मेल पर 29 जुलाई 2018 को ही भेज दिया था !उसमें लिखा है कि अगस्त की एक से ग्यारह तारीख के बीच इतनी भीषण वर्षा दक्षिण भारत में होगी कि बीते कुछ दशकों का रिकार्ड टूटेगा !वर्षा का स्वरूप इतना अधिक डरावना होगा !"यह हमारी मेल पर अभी भी पड़ा है जिसे उन्होंने स्वीकार भी किया था कि मेरा वर्षा पूर्वानुमान सही निकला है |

      भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुए लगभग 145 वर्ष बीत चुके हैं अभी तक सही एवं सटीक निकलने वाली मानसून आने और जाने की तारीखें नहीं तय की जा सकी हैं जो तय की भी गई थीं वे अधिकाँश वर्षों में  हो जाती रही हैं |इसीलिए मानसून आने और जाने के बिषय में सही पूर्वानुमान लगाने की वास्तविक वैज्ञानिक प्रक्रिया खोजने की बजाए अब मानसून आने और जाने की तारीखों में ही बदलाव किया जा रहा है | इस बदलाव का कोई मजबूत वैज्ञानिक आधार नहीं है इसलिए ये तारीखें भी गलत होंगी ही कुछ समय तक ये तारीखें भी गलत निकलती रहेंगी तब तारीखें ही फिर बदल दी जाएँगी | मौसम विज्ञान के क्षेत्र में यह या तो अनुसंधान की क्षमता का अभाव है या फिर विज्ञान भावना के साथ यह खुला खिलवाड़ है | 

   वर्षा ऋतु के चार महीनों में से किस महीने में वर्षा कैसी होगी कृषि कार्यों के लिए यह बहुत उपयोगी एवं आवश्यक होता है किंतु इसी उद्देश्य से की गई भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना को लगभग 145 वर्ष बीत चुके हैं किंतु बीते 145 वर्षों में सही सही दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान किसानों को उपलब्ध नहीं करवाया जा सका है | ये चिंता की बात होनी चाहिए | किसान मार्च अप्रैल के महीने में एक फसल पूरी हो जाने के बाद जुलाई अगस्त में बोई जाने वाली दूसरी फसल के बिषय में योजना बनाते हैं | वर्षाऋतु में जिसप्रकार की वर्षा होने की संभावना होती है उसी के अनुसार फसलों का चयन किया जाता है उसी के हिसाब से ऊँचे नीचे आदि खेतों के हिसाब से इस वर्ष में किस प्रकार की फसल बोना हितकर होगा |इसके साथ ही वर्षाऋतु में जिसप्रकार की वर्षा होने की संभावना होती है उसी के अनुसार ही वे एक वर्ष के लिए आनाज भूसा आदि का संरक्षण करते हैं बाक़ी मार्च अप्रैल के महीने में ही फसल पूरी हो जाने पर खर्चे के लिए बेच लिया करते हैं | कृषिक्षेत्र के अतिरिक्त सैन्य आदि अन्य क्षेत्रों में भी दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है | 

          अल्पावधि मौसम पूर्वानुमान की यह स्थिति है कि इसमें वैज्ञानिक अनुसंधान भावना का कोई विशेष योगदान नहीं होता है इसमें तो रडारों एवं उपग्रहों के सहयोग सेजो घटना एक जगह घटित होते देख ली जाती है उसकी गति और दिशा के हिसाब से अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये इतने दिन में उस देश प्रदेश या जिले आदि में पहुँच सकती है | बीच में हवाओं का रुख बदल जाने से लगाया हुआ अंदाजा गलत हो जाता है | वैसे भी जो बादल जिधर जिधर जाते हैं सभी जगह तो नहीं बरसते हैं कुछ जगहों पर बरसकर वापस लौट जाते हैं | तूफानों चक्रवातों में ऐसे कैमरों से मिली तस्बीरें कई बार काम आ जाती हैं जिनसे कुछ तीर तुक्के सही फिट भी हो जाते हैं इस कैमरा जुगाड़ से कई बार निकट भविष्य में होने वाली जनधन की हानि से बचाव हो जाता है ,क्योंकि इनमें बादलों की तरह बिना बरसे लौटने की गुंजाइस बहुत कम रहती है ये जहाँ पहुँचते हैं वहाँ नुक्सान करते ही हैं | 

     हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह मात्र एक जुगाड़ है इसमें कोई विज्ञान नहीं है जो महामारियों से संबंधित अनुसंधानों में किसी सहयोग लायक हो | जुगाड़ तो केवल जुगाड़ ही होता है | किसी गाँव के एक छोर पर एक जंगल था उस जंगल से निकलकर हाथियों का झुण्ड कई बार गाँव में घुस आता था और काफी नुक्सान कर जाया करता था इससे परेशान होकर गाँव वालों ने कैमरे लगाने का जुगाड़ सोचा गाँव के जिस ओर जंगल था उस ओर कैमरे लगा दिए फिर जब हाथियों का झुण्ड गाँव की ओर आता दिखाई पड़ता था तो गाँव वाले इकट्ठे होकर हाथियों को जंगल में ही खदेड़ आते थे जिससे गाँव वालों का हाथियों से होने वाले नुक्सान से बचाव हो जाता था यह सह है किंतु यह एक जुगाड़ मात्र है इसे हाथीविज्ञान नहीं कहा जा सकता है | 

     वर्षा संबंधी अल्पावधि भविष्यवाणियाँ भी गलत होती हैं ऐसा होने पर नुक्सान भी होता है कई बार कहीं वर्षा होना जब शुरू हो जाता है उसके साथ मौसम भविष्य वक्ता लोग भी शुरू हो जाते हैं जैसे जैसे वर्षा होती चली जाती है वैसे वैसे  वे भी दो दो दिन बढ़ाते चले जाते हैं अभी दो दिन और बरसेगा लोग समझते हैं दो दिन बाद बंद हो जाएगा फिर कह दिया जाता है अभी तीन दिन और बरसेगा लोग सोचते हैं कि चलो तीन दिन और बरसेगा काम चला लेते हैं तो घर में पानी भर जाने के बाद भी लोग छत पर काम चलाने के लिए रह जाते हैं उसके बाद भी पानी बरसते रहता है तो ये कहते हैं तीन दिन और बरसेगा तब तक पानी छत के करीब आ चुका होता है ऐसी परिस्थिति में तब लोग घर छोड़कर कहीं जाने लायक भी नहीं रह जाते हैं और न छत पर ही रहने की परिस्थिति रह पाती है ! लोगों का सामान भी सड़ जाता है और खुद भी हादसे के शिकार होते हैं ! ऐसे तीरतुक्कों को मौसम पूर्वानुमान कैसे कहा जा सकता है और इसमें विज्ञान कहाँ होता  है ! 2015 के नवंबर महीने में मद्रास में हुई भीषण बारिश और बाढ़ का कारण कुछ ऐसा ही होना था | प्रशांत महासागर से चली बादलों की श्रंखला जिस और जिस गति से जाती है उस गति से उस दिशा के हिसाब से अनुमान लगा लिया जाता है किंतु तब तक जितने बादल दिखाई पड़ रहे होते हैं उतने के बिषय में ही अंदाजा लगाया जा सकता है तीन दिन बाद भी यदि बादलों की श्रृंखला टूटती नहीं है तो तीन दिन और बरसेगा उसके बाद भी बादल दिखाई पड़ते रहें तो तीन दिन और बरसेगा ऐसे अंदाजे लगाए जाते रहते हैं | ऐसे अनुमान यदि मौसम विज्ञान के आधार पर लगाए जा रहे होते तो बिना बादलों को देखे ही पहले से पता होता कि बादल कितने दिनों तक बरस सकते हैं | ऐसा विज्ञान महामारियों से संबंधित अनुसंधानों में मदद कर सकता है किंतु ऐसा करने की योग्यता रखने वाले मौसम वैज्ञानिक हैं कहाँ जिन की योग्यता पर भरोसा करके महामारी से संबंधित अनुसंधान प्रारंभ किए जा सकते हैं |

   मौसम पूर्वानुमान सही नहीं होते और आगे भी नहीं होंगे !-मौसम वैज्ञानिक 

     सन 2019 \2020 की सर्दियों के बिषय में  मौसम विभाग की पुणे इकाई ने सामान्य से कम सर्दी का अनुमान व्यक्त किया था लेकिन सर्दी ने तो सौ साल के रिकार्ड तोड़ दिये। इस पर पत्रकारों ने मौसम विभाग की उत्तर क्षेत्रीय पूर्वानुमान इकाई के प्रमुख डॉ. कुलदीप श्रीवास्तव से पूछा कि सर्दी की दस्तक से पहले मौसम विभाग ने कहा था कि इस साल सर्दी सामान्य से कम रहेगी,लेकिन सर्दी ने तो सौ साल के रिकार्ड तोड़ दिये। पहले मानसून और अब सर्दी का पूर्वानुमान भी गलत साबित हुआ क्यों ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि कड़ाके की ठंड मौसम की चरम गतिविधि का नतीजा है  जिसका सटीक पूर्वानुमान लगाना संभव ही नहीं है |मौसम के इस तरह के अनपेक्षित और अप्रत्याशित रुझान का सटीक पूर्वानुमान लगाने की तकनीक दुनिया में कहीं भी नहीं है।सर्दी ही नहीं, अतिवृष्टि और भीषण गर्मी जैसी मौसम की चरम गतिविधियों का दीर्घकालिक अनुमान संभव ही नहीं है।मौसम की चरम गतिविधियों के दौरान, मौसम का मिजाज तेजी से बदलने की प्रवृत्ति प्रभावी होने के कारण अल्पकालिक अनुमान भी मुश्किल से ही सटीक साबित होता है| मौसम के तेजी से बदलते मिजाज को देखते हुये चरम गतिविधियों का दौर भविष्य में और अधिक तेजी से देखने को मिल सकता है। इनकी आवृत्ति में भी तेजी देखी जा सकती है। ऐसे में बारिश के अनुकूल परिस्थिति बनने पर मूसलाधार बारिश होना या गर्मी का वातावरण तैयार होने पर अचानक तापमान में उछाल या गिरावट जैसी घटनायें भविष्य में बढ़ सकती हैं। मौसम संबंधी शोध और अनुभव से स्पष्ट है कि इस तरह की घटनाओं का समय रहते पूर्वानुमान लगाना भी मुश्किल है। ऐसे में पूर्वानुमान के गलत साबित होने की संभावना भी रहेगी। 

    इसके बाद एक बार फिर गलत हुई मौसम वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी !2020-21 में  लानीना का प्रभाव बताकर शीतऋतु में अधिक सर्दी होने की भविष्यवाणी की गई थी किंतु अबकी  बार तो जनवरी से ही तापमान बढ़ने लग गया था ऐसा होने के पीछे का कारण जब उन भविष्यवक्ताओं से पूछा गया तब उन्होंने वही जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिंग को कारण बता दिया था |

                                                              तापमान 

   महामारी के पैदा होने और समाप्त होने में या संक्रमितों की संख्या बढ़ने और कम होने में तापमान के बढ़ने और कम होने की भी बड़ी भूमिका बताई जाती रही है | 

    अप्रैल मई जून आदि के महीनों में गर्मी तो हर वर्ष होती है किंतु  2016 के अप्रैल मई में आधे भारत में गरमी से संबंधित अचानक अलग प्रकार की घटनाएँ घटित होने लगीं ! जमीन के अंदर का जलस्तर तेजी से नीचे जाने लगा बहुत इलाके पीने के पानी के लिए तरसने लगे | पानी की कमी के कारण ही पहली बार पानी भरकर लातूर में एक ट्रेन भेजी गई थी |गर्मी का असर केवल जमीन के अंदर ही नहीं था अपितु वातावरण में इतनी अधिक ज्वलन शीलता विद्यमान थी कि आग लगने की घटनाएँ बहुत अधिक घट रही थीं यह स्थिति उत्तराखंड के जंगलों में तो 2 फरवरी 2016 से ही प्रारंभ हो गई थी क्रमशः धीरे धीरे बढ़ती चली जा रही थी 10 अप्रैल 2016 के बाद ऐसी घटनाओं में बहुत तेजी आ गई थी ! ऐसा होने के पीछे का कारण किसी को समझ में नहीं आ रहा था |इस वर्ष आग लगने की घटनाएँ इतनी अधिक घटित हो रही थीं इस बिषय में संबंधित वैज्ञानिक कुछ कहने की स्थिति में नहीं थे उन्हें खुद कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था | अंत में आग लगने की घटनाओं से हैरान परेशान होकर 28 अप्रैल 2016 को बिहार सरकार के राज्य आपदा प्रबंधन विभाग ने ग्रामीण इलाकों में सुबह नौ बजे से शाम छह बजे तक खाना न पकाने की सलाह दी थी . इतना ही नहीं अपितु इस बाबत जारी एडवाइजरी में इस दौरान पूजा करने, हवन करने, गेहूँ  का भूसा और डंठल जलाने पर भी पूरी तरह रोक लगा दी गई थी | इस बिषय में जब वैज्ञानिकों से पूछा गया कि इस वर्ष ऐसा क्यों हो रहा है और यदि ऐसा होना ही था तो इसका पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाया जा सका ?तो उन्होंने कहा कि इस बिषय में हमें स्वयं ही कुछ नहीं पता है कि इस वर्षा ऐसा क्यों हुआ !ये तो रिसर्च का बिषय है इसलिए ऐसे बिषयों पर अनुसंधान की आवश्यकता है |

     सन 2019 \2020 की सर्दियों के बिषय में  मौसम विभाग की पुणे इकाई ने सामान्य से कम सर्दी का अनुमान व्यक्त किया था लेकिन सर्दी ने तो सौ साल के रिकार्ड तोड़ दिये। इसके बाद एक बार फिर गलत हुई मौसम वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी !2020-21 में  लानीना का प्रभाव बताकर शीतऋतु में अधिक सर्दी होने की भविष्यवाणी की गई थी किंतु अबकी  बार तो जनवरी से ही तापमान बढ़ने लग गया था ऐसा होने के पीछे का कारण जब उन भविष्यवक्ताओं से पूछा गया तब उन्होंने वही जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिंग को कारण बता दिया था | 

   21अप्रैल 2020 - कोरोना ने बदला मौसम का मिजाज़! भारत में सबसे ठंडा अप्रैल, ब्रिटेन में चल रही लू ! कोरोना महामारी के बीच ब्रिटेन में गर्मी ने पिछले 361 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. वहां अप्रैल में भीषण गर्मी और लू चल रही है.|

30  मई 2020- भारत में इस साल  मई के महीने में भी गर्मी नहीं है मार्च और अप्रैल के बाद मई के महीने में भी तेज़ हवाएं चलीं और रुक-रुक कर बारिश होती रही !

19 सितंबर 2020-जिस सितंबर में मौसम करवट लेने लगता है और जाड़े की सुगबुगाहट होने लगती है, इस बारउमस भरी गर्मीहो रही है  तेज धूप की चुभन और उमस पसीना पोंछने पर मजबूर कर रही है, तापमान कम होने का नाम नहीं ले रहा।

    वायु प्रदूषण -

महामारी को जन्म देने एवं इसके समाप्त होने में तथा संक्रमितों की संख्या कम और अधिक होने में वायु प्रदूषण की बड़ी भूमिका बताई जा रही है ऐसी परिस्थिति में महामारी से संबंधित पूर्वानुमान लगाने के लिए सबसे पहले वायुप्रदूषण पैदा होने और उसके घटने बढ़ने का कारण खोजना आवश्यक है उसी के आधार पर उससे संबंधित महामारी जैसी किसी घटना के विषय में कोई पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | अभी तो वायु प्रदूषण बढ़ता क्यों है इसका कारण खोजने में ही सबसे बड़ी समस्या पैदा हो रही है | 

     भारतवर्ष  में दशहरे पर्व में रावण का पुतला जलाने की परंपरा है तो उस समय यदि वायु प्रदूषण बढ़ने लगता है तब तो उसका कारण रावण के पुतला जलाए जाने को बता दिया जाता है | 

     इसी प्रकार भारतवर्ष  में दीपावली पर्व पर पटाखे फोड़ते और साँप की टिक्की जलाते हैं उस समय यदि वायु प्रदूषण बढ़ने लगता है तब तो उसका कारण पटाखे फोड़ते और साँप की टिक्की जलाने को बता दिया जाता है |

   यदि वायु प्रदूषण धान काटने के समय यदि वायु प्रदूषण  बढ़ने लगता है तो उसका कारण पराली जलाने को मान लिया जाता है |

     यदि वायु प्रदूषण सर्दी की ऋतु में बढ़ने लगता है तो सर्दी में तापमान कम होने से हवा की गति धीमी हो जाती है जिससे प्रदूषकतत्वों का विखराव अच्छे से नहीं होता है इसलिए वायुप्रदूषण बढ़ने का कारण उसे बता दिया जाता है | 

    यदि वायु प्रदूषण गर्मी की ऋतु में बढ़ने लगता है तो उसका कारण तापमान अधिक होने से हवा में घुल रही गैस और हवा में तैरने वाले प्रदूषित कणों को जिम्मेदार बता दिया जाता है | 

  दिल्ली में कई बार भलस्वा लैंडफिल  साइट को वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण मान लिया जाता है | 

वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार जब कोई कारण समझ में नहीं आते हैं उस समय कुछ ऐसे कारणों की कल्पना कर ली जाती है जो हमेंशा विद्यमान रहते हैं | वाहनों से निकलता धुआँ,उद्योगों से निकलता धुआँ,ईंट भट्ठों से निकलता धुआँ,हुक्का पीने से निकलता धुआँ,निर्माण कार्यों से उठती धूल आदि को वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है | दूसरे देशों में आई आँधी को भारत में वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है !चीन के वैज्ञानिकों ने तो हेयर स्प्रे,परफ्यूम और एयर रिफ्रेसर के प्रयोग को वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार बताया है |        

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अपर निदेशक दीपांकर शाह कहते हैं कि यह स्मॉग नहीं अपितु फॉग है | उन्होंने कहा पराली जलाने से दिल्ली में वायुप्रदूषण नहीं बढ़ता है अपितु दिल्ली की भौगोलिक स्थिति के कारण  दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ता है |  

    कुछ रिसर्चरों का मत है कि  वायु प्रदूषण क्यों बढ़ता है ये किसी को पता ही नहीं है |    

11 अप्रैल 2021-फ्रेंच पोलर इंस्टीट्यूट के सहयोग से यूनिवर्सिटी ऑफ पेरिस-सैकेल और प्राकृतिक इतिहास के राष्ट्रीय संग्रहालय के वैज्ञानिकों ने करीब 20 वर्षों तक किए गए एक अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम के जरिए किया निर्धारित है कि हर साल धूमकेतु और क्षुद्रग्रहों से हमारे ग्रह पृथ्वी पर धूल आती है। इस तरह करीब पांच हजार दो सौ टन धूल पृथ्वी पर आती है।जर्नल अर्थ एंड प्लेनेटरी साइंस लेटर्स में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि धरती पर हमेंशा से ही सूक्ष्म उल्कापिंड गिरते रहे हैं।

    इसप्रकार से वायुप्रदूषण क्यों बढ़ता है इसका वास्तविक निश्चित कारण किसी को पता ही नहीं है जिसका उपचार किया जाए वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर केवल काल्पनिक तीर तुक्के लगाए जाते रहते हैं | 

   15 अक्टूबर 2018 को भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 'एयरक्वालिटीअर्लीवार्निंगसिस्टम' विकसित किया गया है |बताया जाता है कि इसके द्वारा वायुप्रदूषण बढ़ने के तीन दिन पहले ही वायु प्रदूषण बढ़ने का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | ऐसे दावे पहले भी किए जाते रहे हैं इतना ही नहीं अपितु समय समय पर वायु प्रदूषण बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान भी बताए जाते रहे हैं वे सही नहीं होते हैं ये और बात है | 

    इसमें सबसे विशेष बात यह है कि वैज्ञानिक अनुसंधान हमेंशा चला करते हैं किंतु उनके द्वारा अभी तक इस बात का पता नहीं लगाया जा सका है कि वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण क्या है ?वायु प्रदूषण के बढ़ने का पूर्वानुमान लगाने के लिए अभी तक कोई ऐसी प्रक्रिया प्रमाणित रूप से विकसित नहीं हो पाई है | जिसके द्वारा वायुप्रदूषण  बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान  लगाया जा सके | 

  ऐसी परिस्थिति में जिस वायुप्रदूषण के विषय में अभी तक कुछ पता ही नहीं लगाया जा सका है महामारी के पैदा होने या समाप्त होने में  उसकी कोई भूमिका है भी या नहीं इसका अंदाजा कैसे लगाया जा सकता है | दूसरी बात जब वायुप्रदूषण के ही बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पाया है तब उसकेआधार पर यदि महामारी पैदाभी हुई हो या उसके आधार पर संक्रमण बढ़ता भी हो तो उसका पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है |     

जलवायु परिवर्तन और महामारी !

    महामारी के पैदा होने और समाप्त होने में जलवायु परिवर्तन की भी अहम् भूमिका बताई जाती रही है |दिसंबर 2020 को जिनेवा: विश्व स्वास्थ्यसंगठन (WHO) के प्रमुख टेड्रोस अधानोम घेब्रेयेससने कोरोना वायरस महामारी को लेकर बड़ा दावा किया था | एक महत्वपूर्ण घोषणा करते हुए  WHO चीफ ने कहा था कि कोरोना वायरस दुनिया के लिए अंतिम महामारी संकट नहीं है. टेड्रोस ने कहा कि अगर हम जलवायु परिवर्तन और पशु कल्याण काे लेकर हल नहीं ढूंढ पाते, तो मानव स्वास्थ्य को बेहतर करने वाले हमारे सभी प्रयास व्यर्थ साबित होंगे | 

   ऐसी परिस्थिति में यदि इस बात को मान भी लिया जाए कि महामारी पैदा होने या समाप्त होने में या संक्रमितों  की संख्या  बढ़ने  या कम  होने में  जलवायु परिवर्तन की भूमिका हो सकती है |  तो जलवायु परिवर्तन होने का कारण क्या  हो सकता है | यह प्राकृतिक है या मनुष्यकृत  ! इसमें किस प्रकार के बदलाव आने पर महामारी जैसी परिस्थितियाँ पैदा होती हैं | इसका पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है आदि का पता किए बिना महामारी पर  जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पड़ता है  या नहीं किस प्रकार पड़ता है आदि बातों का पता लगाए बिना महामारी इसके प्रभाव को कैसे समझा जा सकता है | 

     जलवायु परिवर्तन एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, किन्तु मानवीय गतिविधियों द्वारा जलवायु परिवर्तन की दर में आई वृद्धि चिंता का विषय है। प्राकृतिक कारणों से होने वाले जलवायुपरिवर्तन से पर्यावरण प्रभावित होता है तथा मानवीय गतिविधियों द्वारा पर्यावरण प्रदूषित होने से जलवायु प्रभावित होती है।कुलमिलाकर जलवायु की दशाओं में यह बदलाव प्राकृतिक भी हो सकता है और मानव के क्रियाकलापों का परिणाम भी। ग्रीनहाउस प्रभाव और वैश्विक तापन को मनुष्य की क्रियाओं का परिणाम माना जा रहा है जो औद्योगिक क्रांति के बाद मनुष्य द्वारा उद्योगों से निःसृत कार्बन डाई आक्साइड आदि गैसों के वायुमण्डल में अधिक मात्रा में बढ़ जाने का परिणाम बताया जा रहा  है।

    20 Jul 2021-भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान’ (आईआईएसईआर) भोपाल के वैज्ञानिकों ने एक सांख्यिकीय मॉडल विकसित किया है जो गर्मियों में तापमान और भारत में विस्तृत जलवायु विसंगतियों का पूर्वानुमान व्यक्त कर सकता है। यह मॉडल पिछली सर्दी के मौसम के आंकड़ों का इस्तेमाल कर पूर्वानुमान बताता है।मॉडल विकास और भविष्यवाणी अध्ययन के परिणाम हाल ही में ‘इंटरनेशनल जर्नल ऑफ क्लाइमेटोलॉजी’ में प्रकाशित हुए हैं।यह मॉडल गर्मियों के तापमान का पूर्वानुमान व्यक्त करने के अलावा विभिन्न मौसमी पैमानों में संबंध और बीते 69 सालों में गतिशील रूप में उन्होंने कैसे विकास किया इसे समझने में भी मदद करता है।

   वैज्ञानिक अनुसंधानों के क्षेत्र में ऐसे दावे कोई नई बात नहीं है किंतु जब तक परीक्षण  सही न घटित हों तब तक इन पर विश्वास करके महामारी के विषय में कोई निर्णय लेना उचित नहीं होगा | 

      मानव निर्मित है  जलवायु परिवर्तन : 5 मई 2020 : दुनिया के प्रमुख वैज्ञानिक इस बात से सहमत हैं कि जलवायु परिवर्तन मानव-प्रेरित है और चेतावनी देता है कि तापमान में प्राकृतिक उतार-चढ़ाव मानव गतिविधि द्वारा बढ़ाए जा रहे हैं। इसे जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग के रूप में जाना जाता है। मानव गतिविधियों ने कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में वृद्धि की है, जिससे तापमान बढ़ रहा है। चरम मौसम और पिघलने वाली ध्रुवीय बर्फ संभावित प्रभावों में से हैं।जलवायु में प्राकृतिक उतार-चढ़ाव आते हैं | 

    जलवायु परिवर्तन :             

21अप्रैल 2020 - कोरोना ने बदला मौसम का मिजाज़! भारत में सबसे ठंडा अप्रैल, ब्रिटेन में चल रही लू ! कोरोना महामारी के बीच ब्रिटेन में गर्मी ने पिछले 361 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. वहां अप्रैल में भीषण गर्मी और लू चल रही है.| 
 22 अप्रैल 2020 - कोरोना, सूखा और तूफान से अमेरिका खस्ताहाल ! ट्रंप पर बड़ी आफत !अमेरिका ने हाल ही में 1200 साल का सबसे भयावह सूखा देखा है. ये सूखा 18 साल तक चला. यानी साल 2000 से 2018 तक. सूखे से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ दक्षिण-पश्चिमी अमेरिका  हुआ है |
30  मई 2020- भारत में 
जलवायु परिवर्तन का मजाक :

29 दिसंबर  2017  ट्रंप ने ग्‍लोबल वार्मिंग का बनाया मजाक, कहा- बर्फीली हवाओं से दिलाएगा राहतदुनिया
अमेरिका का पूर्वी क्षेत्र इन दिनों कड़ाके की सर्दी से गुजर रहा है। सर्द हवाओं ने आम जनजीवन को पूरी तरह अस्‍त-व्‍यस्‍त कर दिया है, पर अमेरिका के राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप ने इस मौके का इस्‍तेमाल ग्‍लोबल वार्मिंग पर तंज कसने के लिए किया। उन्‍होंने मजाकिया लहजे में कहा कि धरती के बढ़ते तापमान से शायद कड़ाके की सर्दी से निपटने में मदद मिल सके।

29 जनवरी 2019 को शाम में भयानक ठंड का शिकार हुए मिडवेस्ट रीजन का हवाला देते हुए ट्रंप ने ग्लोबल वार्मिंग को ताना मारते हुए उसे तेजी से वापस आने के लिए कहा है।ट्रंप ने ट्वीट किया कि, 'खूबसूरत मिडवेस्ट में ठंडी हवाओं के चलते तापमान माइनस 60 डिग्री तक पहुंच गया है। ठंड ने रिकॉर्ड तोड़ दिया है। आने वाले दिनों में और भी ठंडा होने की उम्मीद है। लोग एक मिनट के लिए भी बाहर नहीं आ पा रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग के साथ क्या हो रहा है? कृपया तेजी से वापस आएं, हमें आपकी आवश्यकता है!'

22 मई 2020 - कोरोना को लेकर अपने देश के वैज्ञानिकों पर भड़के ट्रंप, कही ये बातडोनाल्ड ट्रंप ने हफ्ते में दो बार कहा कि हमारे देश के वैज्ञानिकों की बात बेसिर पैर की है. उनकी बातों में कोई सबूत नहीं है|देश के कई बड़े वैज्ञानिकों और डॉक्टरों की सलाह को खारिज करते हुए ट्रंप लॉकडाउन हटाना चाहते थे | 
        जलवायु परिवर्तन है क्या ?
        वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के नाम पर बहुत बड़ा झूठ बोला  जा रहा है | जहाँ एक ओर आज के चार दिन बाद कहाँ क्या होगा इस बात के विषय में कोई पूर्वानुमान बताना हो तो सौ तीर तुक्के लगाए जाते हैं फिर भी गलत निकल जाते हैं उन्हीं वैज्ञानिकों से यदि यह पूछ दिया जाए कि आज के दो सौ वर्ष बाद जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक क्षेत्र में कितना बदलाव आ सकता है तो हमारे वैज्ञानिकों को सबकुछ पता होता है सूखा पड़ेगा बाढ़ आएगी आँधी तूफ़ान आएँगे बार बार भूकंप आएँगे ग्लेशियर तेजी से पिघलेंगे उससे समुद्रों का जल बढ़ जाएगा भविष्य को लेकर न जाने कितनी अफवाहें फैलाई जाती हैं जबकि विज्ञान का उद्देश्य अफवाहें फैलाना  तो नहीं है |
    वैसे भी दस पाँच दिन पहले की प्राकृतिक घटनाओं के विषय में हमारे वैज्ञानिकों को भले कुछ पता न हो किंतु दस बीस वर्ष या दस बीस हजार वर्ष पहले या बाद की जानकारी वे अत्यंत आत्म विश्वास के साथ बोल रहे होते हैं उसका कारण न मैं तब था और न मैं आगे रहूँगा वर्तमान में ऐसा बोलने से यदि अपनी वैज्ञानिकता सुरक्षित रहती है तो बुराई भी क्या है ?

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