रोगों महारोगों के विषय में अनुसंधान हमेंशा से होते चले आ रहे हैं यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि अभी तक किए गए उन अनुसंधानों से आखिर ऐसा क्या मिला जिससे महामारी से जूझती जनता को कुछ राहत पहुँचाई जा सकी हो | डेढ़ वर्ष से अधिक का समय बीत चुका है किंतु अभी तक कोरोना महामारी के विषय में कोई ऐसी जानकारी नहीं जुटाई जा सकी जिसके बल पर भविष्य कोरोना महामारी के विषय में आने वाली महामारियों के विषय में कोई पूर्वानुमान लगाया जा सके या किसी अन्य प्रकार से महामारी को समझने में कोई मदद मिल सके जिसके बल पर समाज को भरोसा दिया जा सके कि अबकी जो हुआ सो हुआ दुर्भाग्यवश भविष्य में यदि ऐसी कोई महामारी घटित होती है तो इस महामारी की अपेक्षा कुछ और अच्छे ढंग से उस महामारी से निपटा जाएगा और समाज को संक्रमित होने से मरने से एवं भयभीत होने से बचा लिया जाएगा |
महामारी के विषय में जिसे जो जानकारी थी जिसके द्वारा अनुसंधान संबंधी जितने भी प्रयास किए जा सकते थे वे किए गए हैं किंतु आज तक महामारी रहस्य बनी हुई है | अब मैंने सूना है कि मौसम के आधार पर भी महामारी के विषय में अनुसंधान किया जाएगा |
यद्यपि यह बहुत प्रसन्नता की बात है कि इसी बहाने प्राकृतिक परिस्थितियों का अध्ययन करने का सुअवसर मिलेगा और संभव है कि मौसम के आधार पर महामारी के विषय में जो अनुसंधान किया जाएगा वो महामारी के रहस्य को सुलझाने में सक्षम हो सकता है | आवश्यकता इस बात को समझने की है कि प्रकृति के परिवर्तनों परिस्थितियों को समझने वाले मौसम वैज्ञानिक हैं कहाँ !मौसम पूर्वानुमान लगाने के नाम पर उपग्रहों रडारों के द्वारा बादलों की जासूसी करने वाले वैज्ञानिकों के बश की बात प्रकृति के स्वभाव एवं परिवर्तनों को समझना नहीं है यदि मौसम को समझना उनके बश का होता तो महामारी का रहस्य अब तक न जाने कब उद्घाटित होचुका होता | मौसम का पूर्वानुमान लगाना ही जिनके लिए संभव नहीं है वे मौसम के आधार पर महामारी का पूर्वानुमान लगाने में या महामारी को समझने में कैसे सफल हो सकते हैं |
प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली
"पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा एक ऐसी विशिष्ट प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली विकसित की जा रही है, जिससे देश में किसी भी रोग के प्रकोप की संभावना का अनुमान लगाया जा सकेगा।इस योजना की एक सबसे बड़ी विशेषता यह है कि भारतीय मौसम विज्ञान विभाग भी इस विशिष्ट प्रणाली की विकास अध्ययन और प्रक्रिया में शामिल है।पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा विकसित किया जा रहा मॉडल मौसम में आने वाले परिवर्तन और रोग की घटनाओं के बीच संबंध पर आधारित है।बताया जा रहा है कि ऐसे कई रोग हैं, जिनमें मौसम की स्थिति अहम भूमिका निभाती है।मलेरिया जैसे रोग जिसमें विशेष तापमान और वर्षा पैटर्न के माध्यम से इसके प्रकोप के बारे में आसानी से पता लगाया जा सकता है।विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली एक ऐसी निगरानी प्रणाली है, जो त्वरित सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप को संभव बनाने के लिये ऐसे रोगों से संबंधित सूचना एकत्र करती है, जो भविष्य में महामारी का रूप ले सकते हैं | विश्लेषण के मुताबिक, मौसम में अस्थायी और स्थानिक परिवर्तन, उदाहरण के लिये अल-नीनो के प्रभाव के रूप में तापमान और वर्षा में अल्पकालिक वृद्धि, मलेरिया के प्रकोप का कारण बन सकता है।जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनलने अपने एक अध्ययन में कहा था कि जलवायु परिवर्तन के कारण डायरिया संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। जलवायु परिवर्तन, जो कि बाढ़ और सूखे जैसी चरम घटनाओं में वृद्धि के लिये उत्तरदायी है, विकासशील देशों में अत्यधिक चिंता का विषय है।यद्यपि कोरोना वायरस महामारी के प्रसार को प्रभावित करने वाले मौसम के पैटर्न पर कई अध्ययन और विश्लेषण किये गए हैं, किंतु अभी तक शोधकर्त्ता कोरोना वायरस महामारी और मौसम के बीच एक निश्चित संबंध स्थापित करने में सफल नहीं हो पाए हैं। - प्रकाशित 22 -12-2020
मौसम और महामारी
प्रारंभिक स्वास्थ चेतावनी प्रणाली में मौसमसंबंधी वैज्ञानिकों को सम्मिलित किए जाने का मतलब महामारी प्रारंभ होने पर या इससे संबंधित संक्रमण बढ़ने घटने पर मौसम का प्रभाव पड़ता है ऐसी परिस्थिति में महामारी से संबंधित पूर्वानुमान लगाने के लिए मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में सही सही मौसम पूर्वानुमान लगाना आवश्यक है |उसके लिए सर्वप्रथम प्रकृति के स्वभाव को समझा जाना आवश्यक है |मौसम के क्षेत्र में प्रकृति के स्वभाव को समझने के लिए क्या किया जा रहा है इसकी जानकारी मुझे नहीं है इतनी अवश्य है कि उपग्रहों रडारों से जो दिखाई पड़ता है उसकी भविष्यवाणी कर दी जाती है और उन कैमरों से भूकंप नहीं दिखाई पड़ते तो भूकंप संबंधी पूर्वानुमान लगाने को असंभव बता दिया गया है | उन्हीं कैमरों से बादलों आँधी तूफानों को देख लिया जाता है वे जब जिस दिशा में जितनी गति से आगे बढ़ रहे होते हैं उसी के अनुशार गुणागणित लगाकर अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये कितने दिनों घंटों आदि में किस देश प्रदेश शहर आदि में पहुँच सकते हैं | यह तो बिल्कुल उस प्रकार का अंदाजा है जैसे किसी नहर में पानी छोड़ा जाता है वह कब कहाँ पहुँचेगा इसका अंदाजा उसी समय लगा लिया जाता है ट्रेन फ्लाइट आदि की भी यही स्थिति है | उपग्रहों रडारों के माध्यम से बादलों या आँधी तूफ़ानों की जासूसी करने में विज्ञान है ही कहाँ यह तो आकाशस्थ कैमरों के आधार पर लगाए जाने वाले तीर तुक्के मात्र होते हैं |
मौसम संबंधी अनुसंधानों की इस विधा में विज्ञान का तो कोई विशेष उपयोग
लगता नहीं है जिसमें प्रकृति के स्वाभाविक परिवर्तनों का अध्ययन करके
भूकंपों या मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में कोई पूर्वानुमान लगाया गया हो
|जहाँ तक बात अलनीनों लानिना जैसी काल्पनिक कहानियों की है तो उनके प्रभाव
को अभी तक प्रमाणित नहीं किया जा सका है क्योंकि उसके आधार पर लगाए गए
दीर्घावधि पूर्वानुमान प्रायः गलत निकलने के लिए ही बताए जाते हैं |वे सही
निकालें तब तो ऐसी कहानियों का सच्चाई से कोई संबंध प्रमाणित हो |
प्रकृति के स्वाभाविक परिवर्तनों के प्रभाव से भूकंप वर्षा बज्रपात एवं आँधीतूफ़ान जैसी घटनाएँ घटित होती हैं उन्हीं प्राकृतिक परिवर्तनों के प्रभाव से रोग या महारोग (महामारियाँ) आदि जन्म लेते हैं | प्रकृति के स्वाभाविक परिवर्तनों का अनुसंधान किए बिना न तो मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है और न ही महामारियों के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |
महामारियों
से संबंधित अनुसंधानों कुछ वास्तविक मौसम वैज्ञानिक खोजने होंगे |जो
प्रकृति के स्वभाव को समझने में सक्षम हों अन्यथा यदि प्रकृति के स्वभाव
को समझना इतना ही आसान होता तो इस प्रकार की परिस्थितियाँ पैदा ही न हुई
होतीं और अब तक महामारी के बिषय में पूर्वानुमान लगा लिया गया होता | महामारी
के बिषय में पूर्वानुमान लगाने से पहले मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं का
सही सही पूर्वानुमान लगाना आवश्यक है उन्हीं मौसमी घटनाओं के आधार पर
भावी महामारियों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |
वास्तविक मौसम वैज्ञानिकों के अभाव में ही नहीं लगाए जा सके थे इन घटनाओं के पूर्वानुमान !
2005 में मुंबई में भीषण बाढ़ आई थी !16 जून 2013 को केदारनाथ जी में भयंकरसैलाव आया उसमें हजारों लोग मारे गए !16 जून, 2013 को उत्तराखंड में आई भीषण जलप्रलय की। लाखों श्रद्धालुओं की आस्था के प्रतीक तीर्थस्थल केदारनाथ और इसके आसपास भारी बारिश, बाढ़ और पहाड़ टूटने से सबकुछ तबाह हो गया और हजारों लोग मौत के आगोश में समा गए थे।इनमें से किसी घटना के बिषय में मौसमवैज्ञानिकों के द्वारा कोई पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था |
नवंबर सन् 2015 में चैन्नई में भीषण बाढ़ आई थी !सितंबर 2014 में मूसलाधार मानसूनी वर्षा के कारण भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर ने अर्ध शताब्दी की सबसे भयानक बाढ़ आई। यह केवल जम्मू और कश्मीर तक ही सीमित नहीं थी अपितु पाकिस्तान नियंत्रण वाले आज़ाद कश्मीर, गिलगित-बल्तिस्तान व पंजाब प्रान्तों में भी इसका व्यापक असर दिखा। 8 सितंबर 2014 तक, भारत में लगभग 200 लोगों तथा पाकिस्तान में 190 लोगों की मृत्यु हो चुकी है।450 गाँव जल समाधि ले चुके थे ।इनमें से किसी भी बाढ़ के बिषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था |
सितंबर 2019 में बिहार में आई भीषण बाढ़ के बिषय में कोई पूर्वानुमान बताने में मौसम विभाग असफल रहा था !मौसम पूर्वानुमान बताने वाले लोग कुछ बता ही नहीं पा रहे थे और जो बता रहे थे वो गलत होता जा रहा था तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने पत्रकारों से बात करते हुए स्वीकार किया कि मौसम विभाग वाले लोग कुछ बता ही नहीं पा रहे हैं वर्षा के बिषय में वे सुबह कुछ कहते हैं दोपहर में कुछ दूसरा कहते हैं और शाम होते होते कुछ और कहने लगते हैं | पत्रकारों ने पूछा तो इस बाढ़ के बिषय में आप जनता से क्या कहना चाहेंगे तो नीतीश जी ने कहा कि मेरा मानना है कि हथिया नक्षत्र के कारण यह अधिक बारिश हो रही है |स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे जी ने भी पत्रकारों के पूछने पर यही कहा कि हथिया नक्षत्र के कारण ही अधिक बारिश हो रही है |
28 जून 2015 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी की वाराणसी में सभा होने वाली थी किंतु भीषण वर्षा के कारण उस सभा को रद्द करना पड़ा | इसके बाद मौसम विभाग से पूर्वानुमान पूछकर 16 जुलाई 2015 को वही सभा वर्षा से निपटने की अधिक तैयारियों के साथ निश्चित की गई सरकारी मौसम भविष्य वक्ताओं से भी सलाह ली गई थी उन्होंने कहा था कि 16 जुलाई को वर्षा की संभावना नहीं है किंतु मौसम विभाग की भविष्यवाणी गलत हुई और उस दिन इतनी भयंकर बारिश हुई कि प्रधान मंत्री जी की वह सभा भी रद्द हुई !दोनों सभाओं के आयोजन पर खर्च की गई भारी भरकम धनराशि मौसम विभाग की भविष्यवाणी गलत होने के कारण निरर्थक चली गई |
इसी समय में 13 अप्रैल 2016 से असम आदि पूर्वोत्तरीय प्रदेशों में भीषण वर्षा और बाढ़ का भयावह दृश्य था त्राहि त्राहि मची हुई थी |यह वर्षा और बाढ़ का तांडव 60 दिनों से अधिक समय तक लगातार चलता रहा था |
सन 2016 के अप्रैल मई में घटित हुई परस्पर विरोधी इन दोनों घटनाओं के बिषय में वैज्ञानिकों से पत्रकारों ने पूछा कि इन दोनों घटनाओं के बिषय में पहले से कोई पूर्वानुमान क्यों नहीं बताया जा सका था | इस पर वैज्ञानिकों ने कहा कि असम आदि पूर्वोत्तरीय प्रदेशों में हो रही भीषण वर्षा और बाढ़ का कारण जलवायु परिवर्तन है तथा बिहार उत्तर प्रदेश राजस्थान मध्यप्रदेश महाराष्ट्र आदि में अधिक गर्मी एवं आग लगने की अधिक घटनाओं का कारण ग्लोबल वार्मिंग है | जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण घटित होने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता |
2018 के अप्रैल मई में हिंसक आँधी तूफानों की घटनाएँ बार बार घटित हो रही थीं 2 मई 2018 की रात्रि में आए तूफ़ान से काफी जन धन हानि हुई थी | ऐसे तूफानों के बिषय में किसी को कुछ पता ही नहीं था मौसम वैज्ञानिकों को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि ऐसे बिषयों में क्या बोला जाए !इनके बिषय में कभी कोई पूर्वानुमान बताया ही नहीं जा पा रहा था वैज्ञानिक लोगों ने भविष्यवाणियाँ करने के लिए कुछ तीर तुक्के लगाए भी किंतु वे पूरी तरह से गलत निकलते चले गए !यहाँ तक कि 7 और 8 मई 2018 को उन्होंने दिल्ली और उसके आस पास भीषण तूफ़ान की भविष्यवाणी बड़े जोर शोर से कर दी यह सुन कर कुछ प्रदेशों की भयभीत सरकारों ने अपने अपने प्रदेशों में स्कूल कालेज बंद कर दिए किंतु उन दो दिनों में हवा का एक झोंका भी नहीं आया !बताया जाता है कि इस बिषय को बाद में पीएमओ ने संज्ञान भी लिया था | इसी घटना के बिषय में एक निजी टीवी चैनल के साथ परिचर्चा में मौसम विज्ञान विभाग के निदेशक महोदय डॉ.के जे रमेश जी से एक पत्रकार महोदय ने प्रश्न कर दिया कि क्या कारण है कि आपका विभाग इतने भयंकर आँधी तूफानों के बिषय में कोई पूर्वानुमान नहीं लगा सका और जो लगाए भी गए वे गलत निकलते चले गए !इस पर डॉ.के जे रमेश जी ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण ऐसे तूफ़ान आ रहे हैं इसीलिए इनके बिषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पा रहा है और अचानक आ जा रहे हैं आँधी तूफ़ान पता ही नहीं लग पा रहा है | अगले दिन कई अखवारों में हेडिंग छपी थी -"चुपके चुपके से आते हैं चक्रवात !"
केरल में जब भीषण बाढ़ आई तो उसमें भी मौसम विज्ञान विभाग की ऐसी ही ढुलमुल भूमिका रही !3 अगस्त 2018 को मौसम विज्ञान विभाग की ओर से जो प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई उसमें भविष्यवाणी की गई थी कि अगस्त और सितंबर महीने में दक्षिण भारत में सामान्य वर्षा की संभावना है !जबकि 5 अगस्त से ही भीषण बारिश प्रारंभ हो गई थी जिससे केरल कर्नाटक आदि दक्षिण भारत में त्राहि त्राहि माही हुई थी | जिसके बिषय में केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री जी ने स्वीकार भी किया कि यदि मौसम विभाग की भविष्यवाणी झूठी न निकली होती तो बाढ़ से जनता इतनी अधिक पीड़ित न हुई होती | इसके बिषय में मौसम निदेशक डॉ.के. जे. रमेश से एक टीवी चैनल ने पूछा तो उन्होंने कहा कि केरल की बारिश अप्रत्याशित थी इसलिए इसके बिषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था | इसका कारण जलवायु परिवर्तन है जबकि दक्षिण भारत में 2018 के अगस्त महीने में हुई इसी भीषण वर्षा के बिषय में 2018 के अगस्त महीने का मौसम पूर्वानुमान मैंने मौसम विभाग के निदेशक डॉ.के जे रमेश जी की मेल पर 29 जुलाई 2018 को ही भेज दिया था !उसमें लिखा है कि अगस्त की एक से ग्यारह तारीख के बीच इतनी भीषण वर्षा दक्षिण भारत में होगी कि बीते कुछ दशकों का रिकार्ड टूटेगा !वर्षा का स्वरूप इतना अधिक डरावना होगा !"यह हमारी मेल पर अभी भी पड़ा है जिसे उन्होंने स्वीकार भी किया था कि मेरा वर्षा पूर्वानुमान सही निकला है |
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुए लगभग 145 वर्ष बीत चुके हैं अभी तक सही एवं सटीक निकलने वाली मानसून आने और जाने की तारीखें नहीं तय की जा सकी हैं जो तय की भी गई थीं वे अधिकाँश वर्षों में हो जाती रही हैं |इसीलिए मानसून आने और जाने के बिषय में सही पूर्वानुमान लगाने की वास्तविक वैज्ञानिक प्रक्रिया खोजने की बजाए अब मानसून आने और जाने की तारीखों में ही बदलाव किया जा रहा है | इस बदलाव का कोई मजबूत वैज्ञानिक आधार नहीं है इसलिए ये तारीखें भी गलत होंगी ही कुछ समय तक ये तारीखें भी गलत निकलती रहेंगी तब तारीखें ही फिर बदल दी जाएँगी | मौसम विज्ञान के क्षेत्र में यह या तो अनुसंधान की क्षमता का अभाव है या फिर विज्ञान भावना के साथ यह खुला खिलवाड़ है |
वर्षा ऋतु के चार महीनों में से किस महीने में वर्षा कैसी होगी कृषि कार्यों के लिए यह बहुत उपयोगी एवं आवश्यक होता है किंतु इसी उद्देश्य से की गई भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना को लगभग 145 वर्ष बीत चुके हैं किंतु बीते 145 वर्षों में सही सही दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान किसानों को उपलब्ध नहीं करवाया जा सका है | ये चिंता की बात होनी चाहिए | किसान मार्च अप्रैल के महीने में एक फसल पूरी हो जाने के बाद जुलाई अगस्त में बोई जाने वाली दूसरी फसल के बिषय में योजना बनाते हैं | वर्षाऋतु में जिसप्रकार की वर्षा होने की संभावना होती है उसी के अनुसार फसलों का चयन किया जाता है उसी के हिसाब से ऊँचे नीचे आदि खेतों के हिसाब से इस वर्ष में किस प्रकार की फसल बोना हितकर होगा |इसके साथ ही वर्षाऋतु में जिसप्रकार की वर्षा होने की संभावना होती है उसी के अनुसार ही वे एक वर्ष के लिए आनाज भूसा आदि का संरक्षण करते हैं बाक़ी मार्च अप्रैल के महीने में ही फसल पूरी हो जाने पर खर्चे के लिए बेच लिया करते हैं | कृषिक्षेत्र के अतिरिक्त सैन्य आदि अन्य क्षेत्रों में भी दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है |
अल्पावधि मौसम पूर्वानुमान की यह स्थिति है कि इसमें वैज्ञानिक अनुसंधान भावना का कोई विशेष योगदान नहीं होता है इसमें तो रडारों एवं उपग्रहों के सहयोग सेजो घटना एक जगह घटित होते देख ली जाती है उसकी गति और दिशा के हिसाब से अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये इतने दिन में उस देश प्रदेश या जिले आदि में पहुँच सकती है | बीच में हवाओं का रुख बदल जाने से लगाया हुआ अंदाजा गलत हो जाता है | वैसे भी जो बादल जिधर जिधर जाते हैं सभी जगह तो नहीं बरसते हैं कुछ जगहों पर बरसकर वापस लौट जाते हैं | तूफानों चक्रवातों में ऐसे कैमरों से मिली तस्बीरें कई बार काम आ जाती हैं जिनसे कुछ तीर तुक्के सही फिट भी हो जाते हैं इस कैमरा जुगाड़ से कई बार निकट भविष्य में होने वाली जनधन की हानि से बचाव हो जाता है ,क्योंकि इनमें बादलों की तरह बिना बरसे लौटने की गुंजाइस बहुत कम रहती है ये जहाँ पहुँचते हैं वहाँ नुक्सान करते ही हैं |
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह मात्र एक जुगाड़ है इसमें कोई विज्ञान नहीं है जो महामारियों से संबंधित अनुसंधानों में किसी सहयोग लायक हो | जुगाड़ तो केवल जुगाड़ ही होता है | किसी गाँव के एक छोर पर एक जंगल था उस जंगल से निकलकर हाथियों का झुण्ड कई बार गाँव में घुस आता था और काफी नुक्सान कर जाया करता था इससे परेशान होकर गाँव वालों ने कैमरे लगाने का जुगाड़ सोचा गाँव के जिस ओर जंगल था उस ओर कैमरे लगा दिए फिर जब हाथियों का झुण्ड गाँव की ओर आता दिखाई पड़ता था तो गाँव वाले इकट्ठे होकर हाथियों को जंगल में ही खदेड़ आते थे जिससे गाँव वालों का हाथियों से होने वाले नुक्सान से बचाव हो जाता था यह सह है किंतु यह एक जुगाड़ मात्र है इसे हाथीविज्ञान नहीं कहा जा सकता है |
वर्षा संबंधी अल्पावधि भविष्यवाणियाँ भी गलत होती हैं ऐसा होने पर नुक्सान भी होता है |