जलवायु परिवर्तन का भ्रम और प्रकृति का संदेश
प्राकृतिक घटनाएँ दो प्रकार की होती हैं निश्चित दूसरी अनिश्चित !जो घटनाएँ घटित होनी निश्चित होती हैं उनके विषय में तो गणितीय पद्धति के द्वारा ग्रहणों की तरह हजारों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |कुछ घटनाएँ अनिश्चितहोती और ये अचानक कभी भी घटित होने लगती हैं ये प्रकृति का आकस्मिक आदेश होता है | ये सभी पूर्वानुमानों को गलत सिद्ध करता हुआ स्वयं घटित हो जाता है जिससे मौसम वैज्ञानिकों के ये सारे तीर तुक्के गलत सिद्ध हो जाते हैं और उन्हें जलवायुपरिवर्तन का भ्रम होने लगता है | हिमाचल में एक बार बहुत अधिक वर्षा बाढ़ का वातावरण बना हुआ था उसी समय अचानक जो भूकंप आया उसी समय वर्षा बंद हो गई | प्रकृति के आकस्मिक आदेश का पालन तो होना ही था ,इस प्रकार से जलवायु परिवर्तन गुरुत्वाकर्षण उत्प्लावन बल ज्वार भाँटा चक्रवात जैसी न जाने कितनी ऐसी अनसुलझी प्राकृतिक गुत्थियाँ हैं जिनका आगामी हजारों वर्षों तक सुलझ पाना संभव नहीं दिखता हैं | वर्तमान वैज्ञानिक अनुसंधानों की वैज्ञानिक क्षमता गति दशा दिशा आदि के आधार पर यह विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है |ऐसे विषयों पर मैं एक अलग से किताब लिख रहा हूँ जिसमें प्राकृतिक सूचनाओं के विषय में विस्तारपूर्वक वर्णन किया जा रहा है |
संसार में कोई भी स्त्री पुरुष पशु पक्षी जीव जंतु पेड़ पौधे समेत प्रकृति में स्थित कोई छोटा से छोटा कण बेकार नहीं है सबकी इस सृष्टि संचालन में कोई न कोई भूमिका अवश्य होती है | जिसके गुण दोष हानि लाभ या उपयोग आदि के विषय में हम कुछ जानने लगते हैं उसका प्रचार प्रसार उस रूप में हो जाता है |जिसके विषय में हम नहीं जानते हैं उसे निरर्थक मान लेते हैं |यह ठीक नहीं है | इसी क्रम में सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ तथा भूकंप आँधी तूफान वर्षा बाढ़ आदि प्राकृतिक घटनाएँ भी इस सृष्टि संचालन में अपनी अपनी भूमिका अदा कर रही हैं जिनके उपयोग को न समझ पाने के कारण ही इन्हें प्राकृतिक आपदाओं की श्रेणी में मान लिया गया है | जीवन में घटित होने वाली सुखदुख हानि लाभ जीवन मरण आदि परिस्थितियाँ निरर्थक नहीं हैं अपितु मानव जीवन को व्यवस्थित और सुदृढ़ करने में इनकी भी कोई न कोई भूमिका अवश्य होती है जिसकी उपयोगिता बड़े बड़े ज्ञानी गुणवान लोग समझते हैं | किसी के किसी के साथ किसी भी प्रकार के संबंध बनने या बिगड़ने की जीवन में कोई न कोई भूमिका अवश्य होती है कई बार वह भूमिका दिखाई पड़ रही होती है और कई बार प्रत्यक्ष नहीं भी दिखाई पड़ती है किंतु होती अवश्य है |
इसलिए कभी किसी व्यक्ति वस्तु या घटना को निरर्थक नहीं माना जाना चाहिए हर किसी के होने या घटित होने का कुछ न कुछ प्रयोजन अवश्य होता है | उसे प्रयोजन को खोजने का प्रयत्न किया जाना चाहिए |
जिस प्रकार से कोई सरकार या संस्था जब कोई आवश्यक सूचना समाज के प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचाना चाहती है तो वो जिस किसी भी विज्ञापन माध्यम को अपनाकर अपनी बात प्रसारित करती है | उस विज्ञापन में जो मुख्यविषय होता है उसे अलग अलग रंगों आकृतियों कथनशैली आदि के द्वारा अधिक उभारा जाता है ताकि वो देखने में बाकी विषय से कुछ अलग हटकर आकर्षक लगे जिससे सभी का ध्यान आसानी से उधर चला जाए और लोगों तक वह सूचना पहुँच जाए |
इसीप्रकार से प्रकृति भी जब जिस क्षेत्र के लोगों को कोई सूचना देना चाहती है वहाँ भी मुख्यविषय को उभारने के लिए प्रकृति में कुछ घटनाएँ ऐसी घटित होनी प्रारंभ हो जाती हैं जो लीक से अलग हटकर होती हैं अर्थात जैसा हमेंशा नहीं हो रहा होता है कुछ समय के लिए वैसा होते दिखाई पड़ने लगता है तो लोगों का ध्यान उधर आसानी से चला जाता है |प्रकृति के संकेतों का महत्त्व न समझ पाने वाले लोगों के लिए तो ये एक जलवायु परिवर्तन की घटना मात्र होती है घटित हुई और समाप्त हो गई जबकि प्रकृति की भाषा समझने में सक्षम समय वैज्ञानिकों के लिए ऐसी घटनाएँ संदेश वाहक होती हैं जो प्रकृति के द्वारा भेजे गए संदेशों को प्राणियों तक पहुँचाया करती हैं यह विशेष प्रकार का संदेश होता है जिसके माध्यम से प्रकृति भविष्य की किसी न किसी घटना के विषय में कोई आवश्यक सूचना दे रही होती है प्रकृति की भाषा न समझने वाले लोग ऐसी घटनाओं को प्रकृति का पागलपन या फिर जलवायुपरिवर्तन कहते सुने जाते हैं |
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