कोरोना रोग है या महारोग
किसी रोग का प्रकोप कुछ समय पहले की अपेक्षा बहुत अधिक होता तो उसे महामारी कहते हैं।महामारी किसी एक स्थान पर सीमित नहीं होती है। किन्तु यदि यह दूसरे देशों और दूसरे महाद्वीपों में भी पसर जाए तो उसे 'विश्वमारी' या 'सार्वदेशिक रोग' कहते हैं।
वस्तुतः रोग कोई छोटा या बड़ा नहीं होता अपितु जिस रोग को हम अच्छी प्रकार से जानते समझते हैं उसके लक्षणों स्वभाव आदि से परिचित होते हैं उसके शुरू और समाप्त होने का कारण पता होता है उसके घटने और बढ़ने का कारण पता होता है उसके विषय में पूर्वानुमान पता होता है तथा उससे बचाव के लिए हमारे पास प्रभावी उपाय और औषधियाँ होती हैं |
ऐसे रोगों के प्रारंभ होते समय सतर्कता बरत कर हम अपने को बचा लेते हैं और यदि रोग हो भी जाते हैं किंतु यदि औषधियों के उपयोग से अपने को स्वस्थ रखने में हम सफल हो जाते हैं तो इसे रोग कहा जा सकता है ऐसा न हो तो यही महारोग अर्थात महामारी होती है |
ऐसी परिस्थिति में सामान्य रोग और महामारियों में सामान्यतः यही अंतर
होता है कि रोगों के विषय में पहले से सबकुछ पता हो तो रोग और यदि किसी
हिंसक रोग के विषय में चिकित्सा वैज्ञानिकों के द्वारा कुछ भी पता न
लगाया जा सके तो रोग बढ़ेगा ही और वह कितना भी बढ़ सकता है ऐसी परिस्थिति
में वह रोग महामारी का स्वरूप धारण कर लेता है |
अग्नि,शत्रु,सर्प और रोग ये कभी छोटे होते नहीं हैं इनके प्रभाव को प्रयत्न पूर्वक कम करने में कई बार सफलता मिल जाती है तो हम उसे छोटा समझने की भूल करने लगते हैं और यदि ऐसा नहीं होता है तो वही रोग बड़ा हो जाता है |
जिस प्रकार से कहीं आग लगती है तो उसका स्वरूप शुरू में भले छोटा दिखाई दे किंतु वह सहयोगियों साथ सम्मिलित होकर बड़ा स्वरूप धारण कर सकता है इसके लिए वहाँ बड़ी आग की आवश्यकता नहीं होती है अपितु वह छोटी आग ही ज्वलनशील ईंधन का सहयोग पाकर बड़ा स्वरूप धारण कर लिया करती है उसे जैसे जैसे ईंधन मिलता जाएगा वैसे वैसे आग बढ़ती चली जाएगी |
आग एक बार लग जाने के बाद उसे वापस तो किया नहीं जा सकता है | उपायों के विषय में हमें यह पता होना चाहिए कि आग की पहुँच में ऐसी कौन कौन सी वस्तुएँ हैं जिन्हें पकड़ कर आग विकराल रूप धारण कर सकती है उन ज्वलन शील पदार्थों को आग से जितना दूर कर लिया जाए आग उतनी ही सीमित होती चली जाएगी | इसके बाद जल आदि डाल कर उस आग को शांत किया जा सकता है | यदि ऐसा न किया जाए तो आग बढ़कर महाआग का स्वरूप धारण कर सकती है |
इस प्रकरण में ऐसा हम तभी कर सकते हैं जब हमें पहले से पता हो कि किन किन वस्तुओं के संयोग से आग बढ़ सकती है दूसरा किस उपाय से आग शांत हो सकती है यह पता हो तभी हम आग को बढ़ने से रोक सकते हैं तभी हम आग को शांत कर सकते हैं |कुल मिलाकर आग के बढ़ने न बढ़ने में मुख्य भूमिका ईंधन अर्थात ज्वलन में सहयोगी तत्वों की होती है |
इसीप्रकार से किसी रोग के शुरू होने के विषय में यदि पहले से पता हो कि
रोग प्रारंभ कब हुआ था? कहाँ हुआ था | इसके पैदा होने का कारण क्या है |
इसके निश्चित लक्षण क्या हैं इसका विस्तार कितना है इसका प्रसार माध्यम
क्या है इसकी अंतर्गम्यता कितनी है इसका मौसम के साथ संबंध क्या है !इस
वायु प्रदूषण का प्रभाव क्या पड़ता है इस पर तापमान के बढ़ने और घटने का
प्रभाव क्या पड़ता है | संक्रमितों को क्या खाने से लाभ और क्या खाने से
नुक्सान होता है !संक्रमितों को कैसे रहना चाहिए कैसे नहीं रहना चाहिए
!इससे मुक्ति दिलाने की औषधि क्या हो सकती है !कोरोना महामारी से
संक्रमितों की संख्या अचानक बढ़ने और अचानक कम होने का
कारण क्या है | महामारी का प्रकोप कब तक और रहेगा आदि
बातों का समय रहते पता लगाना संभव न हो तो उसकी चिकित्सा करना बहुत कठिन
होता है | रोग के लक्षण न पता हों उससे बचाव के उपाय न पता हों उससे
मुक्ति दिलाने की औषधि न पता हो तो रोग पर विजय पाने की आशा कैसे की जा
सकती है | आवश्यक है कि रोग के विषय में पूर्वानुमान लगाया जाए
उसके लक्षण पहचाने जाऍं उससे बचाव के लिए उपाय अपनाएँ जाएँ उस पर सफल सफल औषधि का प्रयोग करते हुए विजय प्राप्त की जाए |
ऐसी परिस्थिति में कोई भी रोग रुककर हमारे अनुसंधान का इंतजार तो नहीं करेगा |रोग पैदा हुआ है तो बढ़ेगा भी क्योंकि बढ़ने के लिए ही पैदा हुआ है | रोग है तो नुक्सान भी करेगा ही वो नुक्सान बड़ा भी हो सकता है जिस रोग से नुक्सान होने लगे वह रोग यदि छोटा हो तो भी बड़ा लगने लगता है |
इसप्रकार से कोरोना महामारी के नाम से प्रसिद्ध हुए रोग का यदि समय से पूर्वानुमान लगाया गया होता और उसी समय औषधि निर्माण कर लिया गया होता | उसी समय बचाव के नियम निर्धारित कर लिए गए होते जिन्हें जनता पालन करके अपना बचाव कर सकती थी फिर भी कुछ लोग यदि संक्रमित हो ही जाते तो औषधि सेवन से उन्हें स्वस्थ किया जा सकता था किंतु अंततक कोरोना रोग का कोई भी पक्ष खोजा नहीं जा सका | इसलिए दवा भी नहीं बनाई जा सकी प्रभावी बचाव के उपाय नहीं किए जा सके |
ऐसी परिस्थिति में कोरोना नाम से प्रसिद्ध रोग वास्तव में रोग है या महारोग (महामारी) यह समझा जाना आवश्यक है | इस रोग के कारण लक्षण स्वभाव संक्रामकता आदि का यदि किसी भी स्तर पर अनुमान लगाया जा सका होता और वह आंशिक रूप से भी सही निकलता उसके बाद यदि प्रयत्नपूर्वक चिकित्सा करके रोग पर आंशिक रूप से भी अंकुश लगाया जा सका होता तब तो महामारी इसलिए माननी पड़ती क्योंकि उसके विषय में जो अनुमान लगाया गया होता वो कुछ तो सही निकलता | उसके अनुशार जो औषधि दी जाती उसके प्रभाव की सच्चाई कुछ तो प्रमाणित निकलती उसके बाद भी रोग पर अंकुश न लगे और वह दिनों दिन बढ़ता चला जाए तब तो महामारी किंतु जिस विषय में कुछ पता ही न लगाया जा सका हो | किसी प्रमाणित औषधि से कोई अंकुश ही न लगाया जा सका हो तो प्रथम दृष्टया यह अनुसंधानों की कमजोरी लगती है क्योंकि महामारी के विषय में लगाए गए अनुमान कुछ प्रतिशत तो सही घटित हुए ही होते |
अपरिचित रोग ही लगता है महारोग
महामारी से या प्राकृतिक आपदाओं से भय लगने का सबसे बड़े कारण यह है कि ऐसी
घटनाएँ घटित होनी अचानक प्रारंभ हो जाती हैं |उनके विषय में पहले से कुछ पता नहीं होता
है और बाद में इतना समय नहीं मिल पाता है कि उनसे बचाव के लिए कुछ प्रभावी
परिणामप्रद प्रयत्न किए जा सकें |जानकारी के अभाव में हम कोई भी काम करें
या किसी भी परिस्थिति का सामना करें उससे नुक्सान तो हो ही सकता है |
जिस प्रकार से युद्ध में सम्मुख उपस्थित होकर युद्ध करने वाले योद्धा की अपेक्षा छिपकर वार करने वाला शत्रु अधिक बलवान प्रतीत होता है क्योंकि उसकी शक्ति का अंदाजा लगाकर उससे अपना बचाव करना बहुत कठिन होता है | इसलिए कोरोना नामक रोग इतना शक्तिशाली था इसलिए इतने जनधन का नुक्सान हुआ या फिर इस रोग को वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा पहचाना नहीं जा सका इसलिए इसका इतना अधिक दुष्प्रभाव दिखाई पड़ा है |
कल्पना करके देखा जाए तो आदिकाल में जब हम सर्दी गरमी वर्षा आदि ऋतुओं एवं उसके प्रभाव से अपरिचित रहे होंगे उस समय जब पहली बार सर्दी की ऋतु आई होगी तब पहले से कोई तैयारी नहीं रही होगी और सर्दी दिनोंदिन बढ़ती जा रही होगी तब बहुत लोग तो यह सोचकर इस घबड़ाहट में मृत्यु को प्राप्त हो गए होंगे कि जब अभी इतने दिनों में सर्दी इतनी बढ़ गई है तो आगे इसी क्रम में न जाने कितने दिनों में कितनी बढ़ जाए | उस समय बहुत लोग सर्दी के वेग से होने वाले रोगों से पीड़ित होकर मृत्यु को प्राप्त हो गए होंगे |ऐसे में यही सामान्य सी दिखने वाली सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ भी किसी महामारी से कम दुखद नहीं होती रही होंगी | अब जब इनके विषय में अच्छी प्रकार से हम जानने लगे इनके स्वभाव प्रभाव दुष्प्रभाव आदि को पहचानने लगे इनके आने जाने का समय पता हो गया इनका पीक कब आएगा उसका ज्ञान हो गया | सर्दी से बचाव के लिए हमें किस प्रकार के प्रयत्न करने चाहिए !ये सब पता हो जाने के बाद अब इनका पूर्वानुमान पता होता है इसलिए इनके विषय में आगे से आगे तैयारी करके रख लेने लगे तो अब वही ऋतुएँ आसानी से पार होते देखी जाती हैं |
इसी प्रकार से महामारी और प्राकृतिक आपदाओं से अधिक नुक्सान होने का एक कारण यह भी होता है कि उसके विषय में पहले से किसी को कुछ पता नहीं होता है | महामारी के समय अचानक प्राप्त हुए ऐसे किसीअपरिचित महारोग से जूझना पड़ता है जिसका स्वभाव संक्रामकता मारकक्षमता आदि के विषय में पहले से कोई अनुमान नहीं होता है | उस समय महामारी का वेग इतना अधिक होता है कि रोगियों की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ते देर नहीं लगती है |अस्पताल से स्मशान तक सारी जगहें भर जाती हैं |अचानक प्राप्त हुए ऐसे महारोगों से अपरिचित चिकित्सा व्यवस्था बिना किसी विशेष तैयारी के इतनी बड़ी महामारी का सामना कैसे करे |
इसीलिए शुरुआती दिनों में ही चिकित्सा व्यवस्था असफल होने लगती है | उस समय महामारी पर किसी का कोई बश नहीं चल रहा होता है और प्रत्येक व्यक्ति बेबश लाचार सा दिखाई पड़ रहा होता है | इनके विषय में तुरंत सही सही अंदाजा लगाना बहुत कठिन होता है |
जिस प्रकार से किसी नदी में यदि अचानक
बाढ़ आ जाती है और उसका पानी गाँवों में भरने लगता है जब उस पानी से घर
डूबने लगते हैं उस समय तुरंत उससे बचाव के लिए किए गए प्रयत्न उतने सफल
नहीं होते जितनी कि अपेक्षा होती है |
भूकंप आने पर पृथ्वी तो हिलेगी ही उसके साथ और भी सबकुछ हिलेगा ही !घर भी हिलेंगे ही स्वाभाविक है | भूकंप जिस क्षेत्र में आते हैं उस क्षेत्र के सभी मकान हिलते हैं उनमें से कुछ मकान गिर भी जाते हैं | जिसमें जनधन की हानि भी होती है | अचानक आए भूकंपों से बचाव के लिए कोई सार्थक उपाय किया जाना संभव नहीं हो पाता है क्योंकि जो कुछ होना होता है वो प्रायः पहले झटके में ही हो जाता है |
किसी भवन की दीवारें कच्ची बनी हैं तो वर्षा ऋतु में वर्षा के वेग से वे गिर जाती हैं इसमें बहुत लोग दब कर मर जाया करते हैं बहुत लोग घायल हो जाते हैं | ऐसी घटनाओं को सोचकर उनसे मन सिहर हो उठता है |
ऐसी परिस्थिति में महामारी हो या भीषण बाढ़ हो अथवा भूकंप आँधी तूफ़ान आदि हो या अधिक समय चलने वाली वेगवती वर्षा ही क्यों न हो |ऐसी घटनाओं से डर इसीलिए लगता है क्योंकि इनके अचानक घटित होने से बहुत लोगों का जीवन संकट में पड़ते देखा जाता है लोग घायल हो जाते हैं और उनसे बचाव के लिए उस समय अचानक कुछ विशेष किया जाना संभव नहीं हो पाता है |
जिस प्रकार से सर्प को देखकर लोगों को डर नहीं लगता है अपितु सर्प के काट लेने पर उसके बिष से जो जीवन संबंधी नुक्सान होता है उस नुक्सान को सोचकर लोग सर्प से लोग डरा करते हैं | इसी प्रकार से महामारी और प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले संभावित नुकसान के कारण ऐसी दुर्घटनाओं से डर लगना स्वाभाविक ही है |
महामारी के एक बार प्रारंभ होते ही उससे जनता तुरंत संक्रमित होने लगती है| ऐसे समय में महामारी को पहचानने में ,उसमें होने वाले रोगों के परीक्षण करने में ,महामारी की प्रवृत्ति समझने में इतना अधिक समय लग जाता है कि तब तक महामारीकाल ही समाप्त हो जाता है इसके बाद भी महामारी समझ में नहीं आ पाती है और लोग स्वतः स्वस्थ होने लग जाते हैं |
उस समय तक महामारी के विषय में जितना जो कुछ समझा जा सका होता है जो औषधियॉँ टीके आदि बनाए गए होते हैं उनका प्रयोग चल ही रहा होता है महामारी से उनका कोई संबंध हो या न हो फिर भी उन्हें ही महामारी के लक्षण औषधियाँ टीके आदि इसलिए मान लिया जाता है क्योंकि उनके प्रयोग काल में ही महामारी समाप्त हो रही होती हैं | जिन्होंने टीके लगवाए होते हैं महामारी उनकी तो समाप्त हो ही रही होती है जिन्होंने टीके नहीं भी लगवाए होते हैं उनकी भी समाप्त हो जाती है | इससे टीकों के प्रभाव का परीक्षण करना आसान नहीं होता है इसीलिए महामारी का सच कभी सामने नहीं आ पाता है और न ही वैज्ञानिक दृष्टि से महामारी को पहचानना और उसकी औषधि बनाना आदि संभव हो पाता है इसी प्रकार से प्राकृतिक आपदाओं के समय में भी अँधेरे में ही तीर तुक्के चलाए जा रहे होते हैं | इसलिए महामारी और प्राकृतिक आपदाओं से भयभीत होना स्वाभाविक है |
इसलिए महामारी और प्राकृतिक आपदाओं के विषय में और कुछ करने से पहले इनके घटित होने के कारण खोजकर इनके विषय में पूर्वानुमान लगाए जाने चाहिए |
Comments
Post a Comment