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मनोरोग और सावधानियाँ

 किसी के शरीर में बाहर से रक्त चढ़ाने की आवश्यकता तब पड़ती है ,जब शरीर में रक्त बनना बंद हो जाता है |ऐसे शरीरों के अंदर रक्त बनना  यदि प्रारंभ न हो  तो बाहरी रक्त चढ़ाकर किसी को लंबे समय तक स्वस्थ नहीं रखा जा सकता है | 

      इसी प्रकार से बेचैनी घबड़ाहट आदि बढ़ती जा रही हो तो बनावटी हँसी खुशी हमें लंबे समय तक प्रसन्न नहीं रख सकते | अपने मन की बेचैनी घबड़ाहट परेशानी की वेदना को समाप्त करने का रास्ता खोजने के बजाय हम अपनी  बेचैनी को दबाने में लगे रहते हैं | ऐसे थोड़ा बहुत तो समय बिताया जा सकता है किंतु बहुत लंबा समय नहीं बिताया जा सकता है | यदि ऐसा  किया जाता है तो यही बेचैनी ब्यभिचारों हत्याओं आत्महत्याओं या अन्य प्रकार के अपराधों के रूप में विस्फोट करती है | लोग कहते सुने जाते हैं कि छोटे छोटे कारणों में बड़ी बड़ी घटनाएँ अपराध आदि घटित होते देखे जा रहे हैं  ,जबकि यह सच नहीं है सच तो यह है कि  लोग बड़ी बड़ी घटनाओं को मनों में दबाए बैठे होते हैं | उसका विस्फोट कब हो जाएगा किसी को पता नहीं होता है | प्राचीन काल   में लोग छोटी छोटी कहासुनी या लड़ाइयाँ आदि लड़कर बड़ी बड़ी घटनाओं को पैदा करने वाली मन की बैचैनी  निकाल दिया करते थे | थोड़े बहुत दिन बोलना बंद कर देते थे | उसके बाद सब कुछ सामान्य हो जाता है | अब वह बेचैनी सीधे विस्फोट करती है तब सबको पता लगता है जब सुधार होने की संभावना ही  नहीं बचती है | 

      वर्तमान समय में भी लोग वह बेचैनी दबाने में लगे रहते हैं | इसके लिए अक्सर पिकनिक मनाने चले जाते हैं | बार बार शहर देश होटल आदि बदल बदल कर में खुश हो लेना चाहते हैं | बाजारू स्त्री पुरुषों से प्रेम नामक संबंध बनाकर खुश हो लेना चाहते हैं | हम हास्य कविसम्मेलन में बनावटी हँसी हँस कर खुश हो लेना चाहते हैं | धर्म के नाम पर  संगीतमय  भागवत या रामायण  की कथा कीर्तन में भाग लेकर खुश हो लेना चाहते हैं |भ्रष्टाचार पूर्वक बहुत धन इकठ्ठा करके खुश हो लेना चाहते हैं,फिर भी यह बेचैनी बढ़ती जाती है और अंत में विस्फोट ही करती है |       गरमी के समय किसी को बहुत प्यास लगी हो और उसे पानी पीने को न मिले तो उसकी प्यास खरा जाती है | ऐसे समय उसे पानी पीने को मिलने पर भी  प्यास नहीं बुझती है | इसके लिए बार बार पानी पीते रहना पड़ता है | ,फिर भी शांति नहीं मिल पाती है | ऐसे ही कुछ लोग मोबाइलों पर घंटों बात किया करते हैं | बार बार बात किया करते हैं फिर भी उन्हें संतुष्टि नहीं मिलती है | कितनी बेचैनी भारी होगी उनके मन में !यदि ये  बार बार बातकरके न निकाली जाए तो विस्फोट कर सकती है | 

          एक पुजारी जी पूजा करके भोजन किया करते थे | एक दिन उन्हें बहुत भूख  लगी थी | ठाकुर जी को भोग लगाने के लिए जैसे ही थाली लाई गई  तो पुजारी जी ने भोग लगाया और पूजा छोड़कर भोजन लगे |इससे पता लगता है कि  पुजारी जी आज बहुत भूखे थे | ऐसे ही बच्चे विद्यार्थी जीवन से ही पढ़ने की जगह प्यार की प्यास बुझाने के लिए भटकने लगते  हैं | विद्यार्थियों में इतनी बासना की बेचैनी जो उन्हें पढ़ने लिखने से भटका देती है | 

प्रकृति समझ में आ जाए तो जीवन समझ में आ जाएगा ! प्रकृति स्वस्थ रहेगी तो जीवन भी स्वस्थ रहता है | प्रकृति परेशान होगी तो जीवन परेशान होगा
   प्रकृति और जीवन दोनों साथ साथ ही स्वस्थ और अस्वस्थ होते रहते हैं | प्रकृति अस्वस्थ होती है तो मनुष्य आदि जीव जंतु भी अस्वस्थ होते हैं | यह निश्चित है किंतु जीवन अस्वस्थ होगा तो प्रकृति अस्वस्थ होगी ही ऐसा निश्चित नहीं है | उसका कारण यह है कि प्रकृति का भोग जीवन करता है किंतु जीवन का भोग प्रकृति नहीं करती है| जिस प्रकार से माँ का दूध पीने वाला कोई शिशु माँ के शरीर में होने वाले रोगों से पीड़ित हो सकता है किंतु शिशु के शरीर में हो रहे रोग माँ के शरीर में होंगे ही ऐसा निश्चित नहीं होता है | 

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