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राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान का लक्ष्य -

                     महामारी  विज्ञान की खोज ! 
     
                                  महामारी है या विज्ञान को चुनौती ?

    कोरोना महामारी के समय जहाँ एक ओर महामारी एक देश से दूसरे देश दूसरे से तीसरे चौथे पाँचवें आदि देशों को संक्रमित करती चली जा रही थी | समाज संक्रमित होता चला जा रहा था | महामारी लोगों को मारती जा रही थी लोग मरते जा रहे थे |  अस्पताल से श्मशान तक सभी भरे हुए  थे | गंगा जी में लाशें तैर रही थीं तो कहीं बिखरी पड़ी थीं | बोरों की तरह शव उठा  उठा कर फेंके जा रहे थे |अपने स्वजन संक्रमितों को लोग छूने से बचते देखे जा रहे थे | लोग एक दूसरे को छूने में डर रहे थे | चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था |वह समय कितना डरावना था | 
    ऐसे दुखद समय में लोगों ने घर से निकलना मिलना जुलना कहीं आना जाना सब कुछ बिल्कुल बंद कर रखा था | लॉकडाउन लगा दिया गया था बाजार बंद कर दिए  गए थे |दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों से मजदूरों का पलायन हो रहा था | ऐसे आपत्काल में बच्चों बूढ़ों रोगियों तथा आसन्न प्रसूता महिलाओं के साथ हजारों किलोमीटर पैदल गाँवों की ओर निकलना सामान्य घटना तो नहीं ही थी |
    महामारी से संक्रमित होने और मरने की परवाह न करते हुए महानगरों में गरीबों के बच्चे बूढ़े स्त्री पुरुष दिन दिन भर भोजन और राशन की लाइनों में लगे देखे जाते रहे | समाज में चारों ओर त्राहि त्राहि मची हुई थी | 
    कुल मिलाकर महामारी में दुनियाँ बहुत कुछ खो चुकी है इस कठिन समय में समाज ने बहुत बड़ी त्रासदी झेली है | ऐसी आपदा से जूझती जनता को वैज्ञानिक अनुसंधानों से कोई मदद मिली हो ऐसा लगता तो नहीं है | वैज्ञानिकों के आँकड़े क्या कह रहे हैं ये तो वही जानें | क्रिकेट जैसे खेलों में खेलते समय  जो खिलाड़ी जैसा जैसा करता जाता है वहाँ खड़ा उद्घोषक वही वही सब कुछ वर्णन करता जाता है | महामारी के समय वैज्ञानिक जगत की कुछ वही भूमिका रही है समाज जिस त्रासदी से जूझ रहा था वैज्ञानिक उसे बताते जा रहे थे | महामारी अब स्वरूप बदल रही है | संक्रमितों की संख्या बढ़ने लगने पर महामारी की लहर आने की सूचना दे दिया करते थे | संक्रमितों की संख्या घटने पर हहर के समाप्त होने का समाचार बचन कर दिया करते थे | इसी प्रकार से और भी जो जो कुछ देखते जाते थे उसी के अनुशार कुछ भविष्य संबंधी अंदाजे लगा लिया करते थे जिन्हें कभी सही होते नहीं देखा गया | वैसे भी वे सब बहुत दुविधापूर्ण एवं भ्रामक हुआ करते थे | 
     रोग क्या है रोग के लक्षण क्या हैं इसका प्रभाव कितना है इसका प्रसारमाध्यम क्या है इसका विस्तार कितना है इसमें अंतरर्गम्यता कितनी है इस पर मौसम का प्रभाव पड़ता है या नहीं इस पर ताप मान के बढ़ने घटने का प्रभाव पड़ता है या नहीं इस पर वायु प्रदूषण बढ़ने का कितना प्रभाव पड़ता है | ऐसी महत्वपूर्ण जानकारी जो महामारी संबंधी अनुसंधानों के लिए आवश्यक थी जिसके बिना महामारी के विषय में अनुसंधान किया जाना संभव ही नहीं था ,फिर भी ऐसी जानकारी को अंत तक नहीं जुटाया जा सका है |ये महामारी के विषय में हुए अभी तक के अनुसंधानों  की गंभीरता को दर्शाता है |  
     कोई भी रोग या महारोग(महामारी) होने के कारण खोजकर ही अध्ययन अनुसंधान आदि किया जाना संभव होता है इसके अलावा महामारी को समझने या उसके विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई और विकल्प भी नहीं है |यदि होता तब तो वैज्ञानिकों ने अब तक उस विकल्प को अपनाकर  समझने में सफलता पा ही ली गई होती | आखिर प्रयत्न तो वैज्ञानिक लोग भी करते आ ही रहे थे किंतु उन्हें यदि सफलता नहीं मिली इसके  कारण तो उनसे ही पूछे जाने चाहिए  ये स्वयं में अनुसंधान का विषय है | 
     मुझे यह कहने में कोई संशय नहीं है कि प्राकृतिक अध्ययनों की उपेक्षा करके महामारी संबंधित अध्ययनों की कल्पना की जाती रही जो सफल होना संभव ही नहीं था |यदि हो सकता होता तो अब तक हो ही गया होता अभी तक अनुसंधान किए तो जा रहे थे उनके द्वारा महामारियों के आने या उनके समाप्त होने के विषय में क्या कुछ अनुभव जुटाए जा सके | उन अनुसंधानों के द्वारा  कोरोना महामारी के आने से पहले उसके विषय में  कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं लगाया जा सका | महामारी जाएगी कब इसके विषय में भी अभी तक कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं लगाया जा सका है | 
      पिछले कुछ सौ वर्षों से महामारी प्रत्येक सौ वर्ष में आती देखी जा रही है |उन्हें जितनी जन धन हानि करनी होती है वो करके जाती हैं | आज तक उन्हें वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सका है | 
      वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा अभी तक महामारी संबंधित जो भी अध्ययन अनुसंधान आदि किए जाते रहे उनसे यदि कोई कारगर भी अनुभव आदि जुटाए जा सके होते तो कोरोना महामारी से जूझती जनता को उससे कुछ तो मदद पहुँचाई जा सकी होती | महामारी से बचाव के लिए यदि पहले से कभी कुछ तैयारियॉँ करके रखी गई होतीं तो वे तैयारियाँ एवं उस समय किए गए अनुभव महामारी के समय कुछ तो काम आते | 

   ये दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि मध्यमस्तरीय युद्धों में शायद ही इतने लोग मारे जाते रहे हों जितने लोग महामारी में अकारण मृत्यु को प्राप्त हो गए | युद्धों में शत्रु दिखाई तो पड़ता है उससे अपने बचाव के प्रयत्न तो किए जाते हैं किंतु महामारी के नाम पर विश्व को एक ऐसी लड़ाई लड़नी पड़ी जिसमें शत्रु सामने न होने के बाद भी नुक्सान पूरा किए जा रहा था | वैज्ञानिक जगत बेबश था | संभावित इतने बड़े नुक्सान का कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं लगाया जा सका है |
    इतनी बड़ी जनधन हानि होने के बाद इस घटना को ऐसे तो नहीं ही भुलाया जा सकता कि "बीत गई बात गई" |ये मानवता के हित  में भी नहीं हीं होगा | ऐसे परिणाम विहीन वैज्ञानिक अनुसंधानों के सहारे इतनी बड़ी घटना को छोड़कर इसे यूँ ही नहीं भुलाया जा सकता है | 
     समाज एवं सरकारों का ये कर्तव्य बनता है कि यह समझने का प्रयत्न किया जाए कि महामारी को समझने में चूक आखिर कहाँ हुई पिछले कुछ सौ वर्षों से आ रही महामारियों के समय किए गए अध्ययनों अनुसंधानों से प्राप्त अनुभवों का उपयोग कोरोना महामारी को समझने के लिए क्यों नहीं किया जा सका | 
 वैज्ञानिक अनुसंधान कर्ताओं का भी ये कर्तव्य बनता है कि महामारी की सफलता एवं महामारी के विषय में अभी तक किए गए अनुसंधानों की असफलता के वास्तविक कारण अवश्य खोजे जाने चाहिए | 
 
                          महामारी का सामना करने लायक  वैज्ञानिक तैयारियाँ आखिर क्या हैं ? 
  
   कोरोना काल में महामारी को जीत लेने की या महामारी पर विजय प्राप्त कर लेने की या महामारी को पराजित कर देने की न जाने कितने दावे किए जाते रहे किंतु यह बताने को कोई तैयार नहीं था कि आखिर महामारी का सामना करने लायक हमारे पास ऐसा है जिसके बल पर हम महामारी को पराजित कर देने के सपने देख रहे हैं | 

महामारी को समझने के लिए हमारे पास ऐसी क्या वैज्ञानिक तैयारियाँहैं  जो महामारी का सामना करने में सहायक हो सकती हों |  यदि हमारे द्वारा पहले से ऐसी कोई तैयारियाँ करके रखी गईं जो महामारी के समय काम नहीं आ सकीं या धोखा दे गईं तब तो उनके विषय में पुनर्मंथन किया जा सकता है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ और कमी कहाँ रह गई | जिसमें सुधार पूर्वक उसकी तैयारियाँ भविष्य में संभावित महामारियों के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए की जा सकती हैं | पहले से यदि ऐसी कोई तैयारियाँ करके ही नहीं रखी गई हैं तब तो ये विशेष चिंता की बात है कि अनुसंधानों के नाम पर आखिर होता क्या रहा है यदि इतने महत्वपूर्ण विषय पर पहले से कोई तैयारी करके ही नहीं रखी गई थी | यदि ऐसा हुआ तो क्यों इसके कारण भी सार्वजनिक किए जाने चाहिए | 
     प्राकृतिक आपदा हो या महामारी ये तो अचानक आती हैं और जनधन हानि करने लगती हैं जब तक समाज सँभलता या समझ पाता है तब तक उसका नुक्सान जो होना होता है वो लगभग हो ही चुका होता है | महामारी को ही देखा जाए तो जिन्हें संक्रमित होना होता है वे संक्रमित हो ही चुके होते हैं और जिन्हें मृत्यु को प्राप्त करना है वे मृत्यु के किनारे पहुँच चुके होते हैं | इसके बाद महामारी या प्राकृतिक आपदाओं को जानकार भी क्या किया जा सकता है|इसलिए ऐसी घटनाओं से समाज का बचाव करना तो तभी संभव है जब इनके विषय में पहले से कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सके |
    इसीलिए बिचार यह किया जाना चाहिए कि महामारी आने से पहले उसके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए हमने क्या कोई ऐसी वैज्ञानिक तकनीक हासिल कर ली थी जिसके द्वारा महामारी  आने के विषय में पहले से पूर्वानुमान लगाया जा सकता था ?यदि ऐसा किया जाना संभव था तो ऐसा किया क्यों नहीं जा सका | 
   वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा यदि किसी भी प्रकार से महामारी पर अंकुश लगाने की कोई तकनीक विकसित कर ली गई थी तो अक्टूबर नवंबर 2019 में ही चीन में महामारी चिन्हित कर ली गई थी उसके बाद सभी देशों ने वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा अपने अपने देश को सुरक्षित बचाए रखने के लिए क्या कुछ वैज्ञानिक प्रयत्न किए और वे कितने सफल हुए |
  विशेषकर भारत में 20 साल की युवती 25 जनवरी 2020 को चीन के वुहान शहर से लौटी थी.सबसे पहले वही संक्रमित हुई थी इस प्रकार से कोरोना वायरस से संक्रमण का मामला 30 जनवरी 2020 को दक्षिण भारत के केरल में सामने आया था | चीन में महामारी पैदा से लेकर भारत पहुँचने के बीच जो कुछ महीनों का अंतराल पड़ा क्या उसका वैज्ञानिक उपयोग करके क्या ऐसा कुछ किया जा सकता था जिससे महामारी  को चीन में ही कैद करकेरखा जा सकता था अर्थात भारत में प्रवेश ही नहीं होने दिया जाता !
     महामारी से कौन संक्रमित होगा कौन नहीं होगा या किसे कितने प्रतिशत संक्रमित होने की संभावना है यदि इसी विषय में कोई विश्वसनीय वैज्ञानिक तकनीक विकसित की जा सकी होती तो जैसे ही महामारी फैलने लगी थी वैसे ही लोग अपनी अपनी जाँच करवा कर यह पता लगा लेते कि संक्रमित होने का खतरा उन्हें कितने प्रतिशत है | उसी हिसाब से वे अपने अपने व्यवहार रोजी रोजगार आदि का चयन करते | लॉकडाउन लगाना ही नहीं  पड़ता प्रत्येक व्यक्ति को यह पता होता कि उसे संक्रमित होने का खतरा कितने प्रतिशत है | जिसे संक्रमित होने की संभावना जितनी कम होती वह कोविड  नियमों का पालन करते हुए अपने अपने रोजी रोजगार दूकान फैक्ट्री आदि को चलाते रहते तो सारा काम काज ठप्प नहीं पड़ता और समाज में तरह तरह का डरावना वातावरण नहीं बनने पाता | महानगरों से श्रमिक वर्ग को पलायन नहीं करना पड़ता | यदि ऐसा होता तो उन चिकित्सकों के बहुमूल्य जीवन बचाए जा सकते थे जो महामारी काल में चिकित्सकीय सेवाएँ देते देते काल कवलित हुए | चिकित्सकों की पहले ही जाँच करवा ली जाती जिन्हें संक्रमित होने की संभावना कम से कम होती उन्हें ही चिकित्सकीय सेवाओं में लगाया जाता | 
   महामारी से किसे कितना खतरा है यदि वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा इसका पूर्वानुमान लगा लिया जाता तो चिकित्सकों का बहुमूल्य समय वे लोग क्यों बर्बाद करते जिन्हें कोरोना के अतिरिक्त कोई दूसरे तीसरे रोग थे | ऐसे सक्षम अनुसंधानों के अभाव में  नहीं लगाया जा सका कि कौन महामारी से बीमार है और कौन किसी अन्य रोग से पीड़ित है |सभी रोगी लोग अपने को कोरोना संक्रमित समझते रहे और अस्पतालों में जा जाकर भीड़ बढ़ाते रहे जिससे अस्पतालों के वे संसाधन उन्हीं लोगों ने कब्ज़ा कर लिए जिनकी उन्हें आवश्यकता ही नहीं थी जबकि बहुत ऐसे लोग जिन्हें ऐसे संसाधन मिल जाते तो उनकी जान बचाई जा सकती थी उन तक वे संसाधन पहुँच ही नहीं पाए |  सुनने को तो यहाँ तक भी मिला कि धनवान लोगों ने धन के बल पर अस्पतालों में कमरे बेड तक इस आशंका में आरक्षित करवा लिए थे कि उनके यहाँ कोई संक्रमित न हो जाए | कई ऐसे लोगों के यहाँ कोई संक्रमित हुआ ही नहीं किंतु अस्पतालों में आरक्षित उनके कमरे  बेड आदि जरूरत मंदों को नहीं मिल सके | महामारी से किसे कितना खतरा है यदि इस बात का अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सका होता तो संभव है अस्प्तालाओं में इस प्रकार की भीड़ें नहीं बढ़तीं उन्हीं संसाधनों से कुछ अन्य संक्रमितों की भी जान बचाई जा सकती थी | 
    इसी प्रकार से महामारियाँ पिछले कुछ सौ वर्षों से आती देखी ही जा रही थीं | किसी भी देश की चिकित्सा व्यवस्थाएँ कितनी भी सक्षम क्यों न हों किंतु महामारी के समय सभी लोगों को अचानक आवश्यक चिकित्सकीय सेवाएँ उपलब्ध किया जाना संभव नहीं हो पाता है | जिससे बहुत बड़ी संख्या में संक्रमित लोग चिकित्सा के अभाव में मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं | इसलिए वैज्ञानिक अनुसंधान करते कराते समय ऐसी परिस्थितियों का भी ध्यान रखा जाना चाहिए था | ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए किसी टीके आदि का निर्माण किया जाना चाहिए था जैसे बच्चों को इतने टीके लगते हैं वैसे एक दो टीके और लग जाते | इससे कोरोना काल में भी शरीर कुछ दिन तो महामारी को सहने लायक बने रहते | 
    किसी देश में यदि प्राकृतिक रोगों या महारोगों के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने की व्यवस्था नहीं है तब तो बड़ी संख्या में लोग जब संक्रमित होने  या मृत्यु को प्राप्त होने लगते हैं तभी वैज्ञानिकों को पता लग पता है कि महामारी आ गई है जाते हैं समझा जाता है कि महामारी आ गई है | उस समय वो अचानक महामारी का सामना कैसे कर सकते हैं इतने संसाधन कैसे जुटा सकते हैं |महामारी से बचाव के लिए इतनी बड़ी संख्या में चिकित्सकीय व्यवस्थाएँ तुरंत कैसे जुटाई जा सकती हैं |इतने काम समय में महामारी को पहचाने के लिए न अनुसंधान किए जा सकते हैं और न ही औषधि निर्माण किया जा सकता है | अचानक प्राप्त परिस्थिति में यथा संभव सामान्य प्रयास किए जाते रहते हैं और समय बीतता रहता है | जिसे संक्रमित होना होता है वह संक्रमित होता ही है जिसे मृत्यु को प्राप्त होना होता है वह मरता ही है और महामारी को जब समाप्त होना होता है तभी समाप्त होती है | एक ओर इतना सब होता रहता है वहीं दूसरी और चिकित्सा भी चला करती है | 
                                         विज्ञान वैज्ञानिक और प्राकृतिक घटनाओं के पूर्वानुमान  
    महामारी वैज्ञानिक कहते हैं कि महामारी के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान आदि नहीं लगाए जा सकते हैं इतने कम समय में महामारी को समझना संभव नहीं है क्योंकि इस विषय में अनुसंधान करने के लिए  कोई विज्ञान ही नहीं है |यदि विज्ञान ही नहीं है तो वैज्ञानिक किस बात के !संपूर्ण महामारी काल में तरह तरह के अनुमान पूर्वानुमान आदि व्यक्त करते रहने वाले कौन थे उन्हें रोका क्यों नहीं गया !यदि वे वास्तव में  महामारी वैज्ञानिक ही थे  उनके द्वारा की जाती रही  भविष्यवाणियों का  वैज्ञानिक आधार आखिर क्या था ?
      इसी प्रकार से भूकंप वैज्ञानिक कहते हैं कि वे भूकंपों के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं लगा सकते हैं | ऐसा करने के लिए कोई विज्ञान नहीं है | यदि भूकंपों को समझने के लिए कोई विज्ञान ही नहीं है तो जिस विषय का विज्ञान ही नहीं है उसके वैज्ञानिक कैसे हो सकते हैं | दूसरी बात यदि भूकंपों को समझने के लिए कोई विज्ञान ही नहीं है तो भूकंपों के घटित होने के लिए भूमिगत जिन प्लेटों के आपस में टकराने के कारण भूकंप आने की बात कही जाती है या भूमिगत गैसों का  दबाव बढ़ने के कारण भूकंपों के आने की बात कही जाती है | ऐसी बातों का वैज्ञानिक आधार ही क्या होता है | यदि इनका कोई मजबूत वैज्ञानिक  आधार है भी तो उसका अनुभव तो तभी संभव है जब इसके आधार पर संभावित भूकंपों के विषय में सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सके  अन्यथा उस विज्ञान की प्रासंगिकता ही क्या है ?
 
   ऐसे ही मौसम के विषय में वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए पूर्वानुमान प्रायः गलत होते देखे जाते हैं  |मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा प्रतिवर्ष मानसून आने जाने की जो भविष्यवाणी की जाती हैं वे आधे से अधिक बार पूरी तरह गलत निकलती रही हैं |वर्षा होने या न होने के विषय में जो भविष्यवाणियाँ की जाती हैं वे भी प्रायः गलत निकलते देखी जाती हैं |आँधीतूफ़ान आने के विषय की गई भविष्यवाणियाँ आधे से अधिक बार गलत होती हैं | तापमान कब  कैसा बढ़ेगा या घटेगा | किस वर्ष सर्दी अधिक पड़ेगी और किस वर्ष कम या अधिक पड़ेगी इसके विषय में की जाने वाली भविष्यवाणियाँ गलत निकलती रहती हैं |मौसम संबंधी बहुत  घटनाएँ या प्राकृतिक आपदाएँ ऐसी घटित होती हैं जिनके विषय में पूर्वानुमान बताया ही नहीं गया होता है जबकि वे घटनाएँ घटित हो रही होती हैं |सूखा बाढ़ बज्रपात एवं हिंसक तूफानों जैसी जितनी भी घटनाएँ घटित  होती हैं | उनके पूर्वानुमान नहीं पता लगाए जा सके होते हैं | मौसम संबंधी ऐसी सभी घटनाओं के पूर्वानुमान न बताए जा पाने या गलत निकल जाने का कारण पूछने पर वैज्ञानिक लोग कहते हैं कि मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई विज्ञान ही नहीं है | यदि मौसम  का कोई विज्ञान ही  नहीं है तो मौसम वैज्ञानिक किस बात के !मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा मौसम पूर्वानुमान के नाम पर जो  जो कुछ बताया जाता है उसका वैज्ञानिक आधार क्या होता है ?यदि वैज्ञानिक आधार नहीं होता है  बताने की मजबूरी  क्या है ?
     वायु प्रदूषण  बढ़ने घटने की भी यही स्थिति है उसके घटने बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान तो बार बार बताया जाता है तरह तरह की आशंकाएँ व्यक्त की जाती हैं किंतु कहा यह भी जाता है कि इसका पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई विज्ञान नहीं है | यदि विज्ञान नहीं है तो कोई वैज्ञानिक ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान कैसे लगा सकता है | विज्ञान के अतिरिक्त उसका और दूसरा वैज्ञानिक आधार होता क्या है ?
 
                                                ऐसे  अनुसंधानों की आवश्यकता ही क्या है ?

     किसी के पैर में कोई चोट लग जाए ,घाव हो जाए या किसी अन्य कारण से दर्द होने लगे तो उस पीड़ा की निवृत्ति के लिए चिकित्सक के पास जाने का उद्देश्य यही होता है कि वह पैर स्वस्थ हो जाए ताकि उस पीड़ा से आराम मिल जाए |इसके लिए कुशल चिकित्सक को सबसे पहले रोग समझना होता है रोग के कारण तक जाना होता है इसके बाद चिकित्सा शुरू की जाती है और स्वास्थ्य लाभ हो जाता है |
    कोई अनुभव विहीन चिकित्सक चाह ले तो उस रोग को समझने एवं उसके कारण को खोजने की आवश्यकता ही न समझे और चूँकि पैर में दर्द हो रहा है इसलिए पैर ही काटकर मलहम पट्टी कर दे | धीरे धीरे दर्द तो चला जाएगा किंतु ऐसी चिकित्सा का लाभ ही क्या जिसमें किसी विशेष कारण के बिना पैर ही काट दिया जाए ! 
     ऐसा ही कुछ कोरोना महामारी के समय होते देखा गया |पहले कहा गया कि यह रोग संक्रमितों को छूने से होता है | ऐसी परिस्थिति में संक्रमितों के स्पर्श आदि से बचने की बात थी तो प्रयत्न पूर्वक ऐसा करने से बचा जाना चाहिए था फिर भी  यदि कभी किसी से किसी का स्पर्श सावधानी बरतने के बाद भी हो ही जाएतो उसके लिए वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा किसी ऐसी रोग प्रतिबंधक औषधि पथ्य परहेज आदि को  खोजे जाने की आवश्यकता थी जिसका सेवन या अनुपालन करते हुए लोगों की दिनचर्या व्यवस्थित बनाए रखी जानी चाहिए थी |इसके बाद  भी जो संक्रमित होता वो चिकित्सा के साथ साथ एकांतवास अपना लिया करता |इससे सारे रोजी रोजगार पहले की तरह ही चलते रहते !महामारी से संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधानों की कमजोरियों के  कारण सारे रोजी रोजगार आदि बंद करके समाज में लॉकडाउन लगा देना पड़ा | इससे रोगी होने की संभावनाएँ ही समाप्त कर दी गईं | वैज्ञानिक अनुसंधानों की सफलता तो तब थी जब लॉकडाउन जैसे कठिन प्रतिबंध  लगाए बिना ही महारोग को नियंत्रित कर लिया जाता | ऐसा किया जाना रोग नियंत्रण की दृष्टि से उठाया गया एक अच्छा कदम हो सकता है किंतु यातायात से लेकर रोजी रोजगार तक सब कुछ अव्यवस्थित हो गया | वैज्ञानिक अनुसंधानों का यह उद्देश्य नहीं हो सकता है | 
     इसी प्रकार से वायु प्रदूषण बढ़ता है तो वैज्ञानिक अनुसंधानों की जिम्मेदारी है कि वे कोई ऐसा विकल्प खोजते जिससे लोगों की दिनचर्या  बाधित किए बिना ही वायु प्रदूषण को नियंत्रित किया जाता |
      वैज्ञानिक अनुसंधानों  के द्वारा ऐसा कोई सहयोग तो मिला नहीं बल्कि वायु प्रदूषण बढ़ने पर यातायात नियंत्रित कर दिया जाता है |धुआँ फेंकने वाले  उद्योगधंधे रोकवा  दिए जाते हैं | कृषि कार्यों को बाधित किया जाता है |कुल मिलाकर धुआँ धूल फेंकने वाले सभी कार्य व्यापार बंद करवा दिए जाते हैं | 
     ऐसी स्थिति में धुआँ धूल फेंकने वाले यदि सारे कार्यों को यदि बंद ही कर देना है तब तो वायु प्रदूषण स्वयं ही नियंत्रित हो जाएगा फिर ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों की आवश्यकता ही क्या रह जाती है | ऐसे अनुसंधानों की उपयोगिता तो तब है जब उनके द्वारा किसी ऐसी प्रक्रिया को खोजा जा सके से जिससे वायु प्रदूषण पर तो नियंत्रण तो हो ही जाए इसके साथ ही साथ बाकी सारे व्यापारिक आदि कार्यों को भी सकुशल चलते रहने दिया जाए | 
     कुछ दिनों में किन्हीं क्षेत्रों में यदि कुछ अधिक वर्षा हो जाए और बाढ़ जैसी स्थिति बन जाए तो  आवश्यकता वर्षा के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान लगा लेने की होती है जिससे यह पता लग सके कि वर्षा कब तक होते रह सकती है |वर्षा बढ़ते देखकर उस संकट काल में गाँव के गाँव खाली करा देने में वैज्ञानिक अनुसंधानों का योगदान क्या है | 
    28 अप्रैल 2016 को  मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देश पर बिहार सरकार ने सुबह  9 बजे से अपराह्न 6 बजे तक खाना पकाने,पूजा करने, हवन करने,गेहूँ का भूसा और डंठल जलाने पर भी पूरी तरह रोक लगा दी थी| बिहार में आए दिन आग लगने की घटनाओं से परेशान होकर ऐसा किया गया था |यह तो उस प्रकार का उपाय हुआ जब वैज्ञानिक अनुसंधान करने की वैज्ञानिक प्रक्रिया प्रचलन में नहीं थी | वर्तमान समय जब विज्ञान शिखर पर पहुँचा हुआ है उस समय इस प्रकार के उपाय वैज्ञानिक अनुसंधानों को शर्मसार कर देने वाले हैं आखिर उनकी उपयोगिता ही क्या बचती है | अनुसंधान कर्ताओं का कर्तव्य था कि ऐसी घटनाओं के विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगाकर समाज को  प्रेरित करना चाहिए था कि इस वर्ष इस कारण से इतने दिनों तक आग लगाने की घटनाएँ अधिक घटित हो सकती हैं किंतु वैज्ञानिकों के द्वारा ऐसा नहीं किया जा सका | 
    2019 सितंबर में बिहार में भीषण बारिश और बाढ़ की घटना घटी थी जिसका वैज्ञानिकों ने कभी कोई पूर्वानुमान नहीं बताया था | जब बाढ़ बढ़ती चली  थी तब भी वह ऐसा कुछ भी नहीं बता पा रहे थे कि यह वर्षा कब तक होगी | मौसम वैज्ञानिकों की यह जिम्मेदारी थी कि वे सही सटीक पूर्वानुमान उपलब्ध करवाते किंतु वे ऐसा नहीं कर सके जो वे बता भी रहे थे वह बार बार गलत होता जा रहा था | इससे हैरान परेशान  होकर वैज्ञानिकों की बातों की परवाह न करते हुए मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने मीडिया कहा था कि जब तक हथिया नक्षत्र के कारण अधिक वर्षा हो रही है जब तक हथिया नक्षत्र रहेगा तब तक अधिक वर्षा होगी उसके बाद शांत जाएगी | 
    ऐसी परिस्थिति में ऐसे विषयों से संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधानों की उपयोगिता ही क्या है ?जब आवश्यकता पड़ने पर उनसे कोई लाभ नहीं मिल पाता है |  
                             महामारी  या मौसम वैज्ञानिकों का   कर्तव्य !
    किसी गाँव की सुरक्षा के लिए रखे जाने वाले चौकीदार या किसी देश की सीमा पर तैनात किए जाने वाले सैनिकों से यह अपेक्षा नहीं होती कि वे केवल खाना पूर्ति करते हुए अपना समय बिताते रहें अपितु उनकी तैनाती  का उद्देश्य सुरक्षा सुनिश्चित करना होता है |यह करने पर ही उनकी सार्थकता संभव है | ऐसी स्थिति में चौकीदार या सैनिक यदि सुरक्षा में तैनात बने रहें किंतु जब जब कोई अप्रिय घटना घटित हो तब तब वे उस घटना को रोकने के लिए कुछ न कर पावें | ऐसा न कर  पाने के लिए वे कोई न कोई कारण बता दें कि इसके कारण हम उस घटना के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगा सके और उसे को घटित होने से तो इससे उस लक्ष्य की पूर्ति होना कैसे संभव है | जिसके लिए उन्हें विश्वास  पूर्वक  नियुक्त किया गया है | 
     किसी क्षेत्र में चोरियाँ यदि अक्सर हो जाया करती हों उन्हें रोकने के लिए चौकीदार रखा गया उससे भी चोरियाँ न रुक पा रही हों | जब चोरी की घटनाएँ घटित हो रही हों चौकीदार उनसे बचाव करने की जगह उनके विषय में वर्णन करने में रुचि ले रहा हो यथा -अब चोरलोग एक घर में लूट पाट करके  घर से बाहर निकले हैं लग रहा है किसी दूसरे घर में भी चोरी करेंगे | ऐसा लगता है इन्होने कुछ हथियार भी ले रखे हैं इनसे बच के रहना चाहिए ये फायर भी कर सकते हैं  आदि आदि !मौसम या महामारी वैज्ञानिक इसी प्रकार से तो संबंधित घटनाओं का वर्णन किया करते हैं | 
    कुल मिलाकर प्राकृतिक घटनाओं का आँखों देखा हाल बताने के लिए मौसम या महामारी विज्ञान की कल्पना नहीं की गई है | उन्हें तो पूर्वानुमान लगाने की जिम्मेदारी दी गई है यदि वे ऐसी घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं लगा पाते हैं | उससे भटक कर वे मौसम या महामारी विषयक वर्तमान स्थिति का ही आँखों देखा हाल बताने लगते हैं उसी के आधार  पर भविष्यसंबंधी कुछ तीर तुक्के लगाकर मौसम और महामारी से संबंधित भविष्य को लेकर कुछ अंदाजे लगाने लगते हैं तो यह विश्वसनीय  वैज्ञानिकता नहीं  है | 
     इसीलिए चौकीदार और सैनिक लोग सभी बिपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए अपने अपने दायित्वों का निर्वाह सफलता पूर्वक किया करते हैं| वे अपने कार्य की पवित्रता बनाए और बचाए रखने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं | सैनिक  जिस किसी मज़बूरी के कारण सुरक्षा में चूक जाएँ और कोई अप्रिय वारदात घटित हो जाए तो क्या वे अपनी जिम्मेदारी से बच जाएँगे | क्या उनकी इस प्रकार की दलीलें मान ली जाएँगी कि चोरों या घुसपैठियों ने अपना स्वरूप परिवर्तन कर लिया था वे साधुओं के वेष में अचानक आ गए थे  या उन्होंने काली चादर ओढ़ रखी थी या वे लँगड़ा कर चल रहे थे जिससे हम उन्हें पहचान नहीं पाए |  इसलिए हमसे चूक हो गई | ऐसी कोई अन्य मज़बूरी बताने लगें तो भी क्या उन्हें निर्दोष मान लिया जाएगा | 
     ऐसी स्थिति में कोरोना महामारी को या उसके बार बार होने वाले स्वरूप परिवर्तनों को यदि महामारी के विषय में निरंतर अनुसंधान करते रहने वाले वैज्ञानिक नहीं पहचान पाए और उसके आने के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं लगा पाए तो इसमें उस जनता का दोष क्या है जिसे महामारी से सुरक्षा का आश्वासन देकर ऐसे वैज्ञानिकों को जिम्मेदारी सौंपी गई है | आखिर उनके द्वारा जनता को यह बताने का अभिप्राय क्या समझा जाए  कि कोरोना स्वरूप बदल रहा है या महामारी का स्वरूप परिवर्तन हो रहा है | 
    जिस प्रकार से चौकीदारों या सैनिकों को चोरों या घुस पैठियों से यह उम्मींद नहीं रखनी चाहिए कि वे किसी बारदात को अंजाम देने के लिए  चौकीदारों या सैनिकों को प्रत्यक्ष रूप से नाम पता बताकर कहीं बारदात करेंगे |वे तो हर संभव अपने को छिपाना ही चाहेंगे उसके लिए भले स्वरूप परिवर्तन भी क्यों न करना पड़े | ऐसा होने पर भी उन्हें समय रहते पहचानना ही तो चौकीदारों सैनिकों आदि की कुशलता होती है |उसी के आधार पर उन्हें भविष्य में संभावित घटनाओं के विषय में अनुमान आदि लगाने होते हैं |  
मौसम परिवर्तन को कारण मानकर सुरक्षा से समझौता नहीं किया जा सकता !
     गाँवों में चोर और देश की सीमाओं पर आतंकी घुस पैठिए आदि अक्सर ऐसे मौसम की तलाश में रहते हैं जब लोगों का ध्यान उधर भटक जाए और वे उपद्रवी किसी अप्रिय बारदात को अंजाम देने में सफल हो जाएँ | गाँवों में कोई शादी विवाह आदि उत्सव हो उस समय पूरा गाँव उसी मस्ती में डूब जाता है | ऐसे समय की ताक में बैठे लोग किसी बारदात को अंजाम दे देते हैं |
    इसीप्रकार से देश में  स्वतंत्रतादिवस गणतंत्र दिवस होली दीवाली आदि बड़े त्योहारों के समय समाज उन्हें मनाने में व्यस्त हो जाता  है |आतंकी घुसपैठिए ऐसे समय की तलाश में हमेंशा बने रहते हैं | ऐसे अवसरों का लाभ उठाकर आतंकी लोग बारदात को अंजाम दे दिया करते हैं |
      ऐसे समय में कोई अप्रिय घटना घटित हो जाने पर चौकी दार की यह दलील कोई नहीं मानता है कि आज मौसम परिवर्तन हो गया था | इसीलिए चोर ऐसी बारदात करने में सफल  हो गए | ऐसे ही कोई यह दलील भी नहीं मानेगा कि देश में किसी पर्व का समय था सभी लोग उसी मस्ती में मस्त थे | उसका फायदा उठाकर आतंकीलोग घुस पैठ करके किसी अप्रिय वारदात को अंजाम देने में सफल हो गए | ऐसी घटनाओं के लिए उन चौकीदारों एवं सैनिकों को जिम्मेदार माना जाएगा  जिन्हें सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई थी | 
     व्यवहार में ऐसा देखा भी जाता है कि राष्ट्रीय त्योहारी उत्सवों के समय या सर्दी के सीजन में अधिक वर्षा बर्फबारी आदि होने पर सैनिकों को इस बात का अंदेशा रहता है कि ऐसे समय आतंकी लोग घुस पैठ कर सकते हैं इसलिए  सैनिक लोग अपनी जिम्मेदारी समझते हुए ऐसे अवसरों पर अतिरिक्त  सतर्कता बरतनी प्रारंभ कर देते हैं और अपने देश समाज की सुरक्षा सुनिश्चित कर लिया करते हैं |
 ऐसा तभी संभव हो पाता है जब ऐसी घटनाओं से सतर्क सरकारें और सुरक्षा में तैनात सैनिक अतीत के अनुभवों को आधार  बनाते हुए ऐसे अवसरों पर अधिक सतर्कता बरतते हैं |ताकि उस प्रकार की घटना न घटित हो |
    सैनिकों की ओर से यदि थोड़ी भी लापरवाही हो जाए तो आतंकवादी उग्रवादी आदि असमाजिक तत्व किसी अप्रिय बारदात को अंजाम दे सकते हैं | जिसका कारण सेना भी राष्ट्रीय पर्वों एवं मौसम परिवर्तन को बताकर अपनी गैर जिम्मेदारी को महिमा मंडित कर सकते हैं किंतु वे ऐसा नहीं करते हैं तभी देश की सीमाएँ सुरक्षित हैं तभी समाज  सुव्यवस्थित है | 
  प्रकृतिविज्ञान संबंधी अनुसंधानों के क्षेत्र में ऐसे ही समाज के प्रति समर्पित वैज्ञानिकों की आवश्यकता है जो समस्याओं के विषय में काल्पनिक कहानियाँ सुनाने की अपेक्षा समस्याओं को पहचानें और उनके समाधान खोजें | 
            महामारी का स्वरूप परिवर्तन हो या जलवायु परिवर्तन जनता का इससे क्या लेना देना !      
    ये काम वैज्ञानिकों का है कि वे भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ जैसी प्राकृतिक घटनाओं एवं महामारी जैसी संभावित स्वास्थ्य समस्याओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमानआगे से आगे उपलब्ध करवावें | ये उनकी जिम्मेदारी है वे वैज्ञानिक हैं जैसे चाहें वैसे करें |महामारी का स्वरूप परिवर्तन हो या जलवायु परिवर्तन जैसी घटनाएँ घटित हो भी रही हों तो वैज्ञानिक समझें !आखिर जनता इसके लिए क्या करे !
    जनता चाहती है कि जिस प्रकार से अन्य विषयों से संबंधित वैज्ञानिक जो जिम्मेदारी सँभालते हैं वो अपने बल पर पूरी करते हैं |उसमें जो जो ब्यवधान आते हैं उनसे अपने बल पर निपटते हैं उन चिंताओं में जनता को सम्मिलित नहीं करते हैं | देश की सीमाओं पर सुरक्षा की जिम्मेदारी सँभाल रहे सैनिक हर हाल में सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं | चिकित्सा की जिम्मेदारी सँभाल रहे चिकित्सक अपनी जिम्मेदारी संपूर्ण मनोयोग के साथ निभाते हैं | ऐसी स्थिति में महामारी  और मौसम संबंधी विषयों पर अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिकों की "महामारी के स्वरूप परिवर्तन" या "जलवायुपरिवर्तन" जैसी दलीलें जनता क्यों सुने | जनता महामारी और मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में वैज्ञानिकों से सही अनुमान पूर्वानुमान आदि  चाहती है उसे वही बताए जाएँ और यदि महामारी के स्वरूप परिवर्तन" या "जलवायुपरिवर्तन" जैसी घटनाएँ घटित होती भी हैं तो उन्हें वैज्ञानिक स्वयं समझें उसी के अनुसार अनुमान पूर्वानुमान आदि लगावें !अनुसंधान का मतलब ही यही है उसकी संपूर्ण जिम्मेदारी अपने बल पर सँभाल कर उन घटनाओं के स्वभाव को समझ कर अनुमान पूर्वानुमान लगाना ही तो उनकी वैज्ञानिक विशेषता है | इसीलिए तो उन्हें ऐसी जिम्मेदारी सौंपी गई है | 
    देश की सीमाओं पर घुस पैठ करने के लिए शत्रुओं के द्वारा प्रतिदिन नए नए षड्यंत्र रचे जाते हैं |एक से एक नए और घातक होते हैं जिनसे देश की सीमाओं की  सुरक्षा में तैनात सैनिकों को जूझना पड़ता है |यह इतनी कठिन जिम्मेदारी होती है कि निभाते हुए देशभक्त सैनिकों को अपने प्राणों का भी बलिदान कर देना पड़ता है | 
     वे देश भक्त सैनिक अपने कर्तव्य का पालन करते समय प्रतिदिन अनेकों प्रकार की बिपरीत परिस्थितियों का सामना किया करते हैं शत्रुओं के द्वारा रचे जाने वाले अनेकों षड्यंत्रों का सामना करते हैं किंतु देशवासियों को अपनी मजबूरियाँ बताने नहीं आते हैं कि शत्रु ने "रणनीतिपरिवर्तन" कर लिया है | इसलिए शत्रु का सामना करना कठिन है फिर मौसम वाले अनुमान पूर्वानुमान की जगह जलवायु परिवर्तन जैसी बातें जनता  को क्यों बताते हैं | 
    प्रकृति और जीवन संबंधी प्रत्येक परिस्थिति में होने वाले या किए जाने वाले संभावित परिवर्तनों के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान लगाना आसान नहीं होता है उन विषयों के विशेषज्ञ लोग ही विशिष्ट वैज्ञानिक प्रक्रिया का अनुशरण करते हुए ऐसे परिवर्तनों का अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लिया करते हैं |उसी के आधार पर वे भी अपनी रणनीति में परिवर्तन पूर्वक उन परिस्थितियों का सामना करते हुए अपना बचाव कर लिया करते हैं |ऐसा प्रायः सभी क्षेत्रों में होता है | 
    गंभीर रोगियों की चिकित्सा या आपरेशन आदि करते समय रोगियों में कई बार ऐसे बिपरीत बदलाव आते देखे जाते हैं जिनके विषय में उन्हें कोई जानकारी ही नहीं होती है उन विषयों में ऐसा कुछ पता ही नहीं होता है कि इस इस प्रकार के परिवर्तन हो सकते हैं किंतु होते हैं जो रोगी और चिकित्सक दोनों के प्रयासों के विरुद्ध होते हैं किंतु कुशल चिकित्सक ऐसी परिस्थितियों का सामना करते हुए अपने रोगी को मौत के मुख से बाहर निकालकर लाते देखे जाते हैं | यही तो उनका वैशिष्ट्य होता है | 
    विभिन्न वैज्ञानिक अनुसंधानों में ऐसा होते देखा जाता है बार बार प्रयत्नों के विरुद्ध परिणाम आते देखे जाते हैं किंतु वैज्ञानिक लोग हिम्मत नहीं हारते हैं और सभी परिवर्तित परिस्थितियों का सामना करते हुए एक न एक दिन सफल होते देखे जाते हैं | प्रकृति और जीवन के अनेकों क्षेत्रों से संबंधित अनुसंधान कार्यों में मिली सफलता इस बात का प्रमाण है कि उन्हें भी अपने अपने क्षेत्रों में होने वाले परिवर्तनों से बार बार जूझना पड़ा है जिनका सामना करते हुए उन विषयों से संबंधित वैज्ञानिकों ने अपने अपने क्षेत्रों में सफलता हासिल की है |किसी क्षेत्र के वैज्ञानिकों ने  अपनी अपनी मजबूरियाँ कभी जनता के साथ साझा नहीं की हैं वे स्वयं  जूझते हुए उनसे होने वाले लाभ को जनता तक पहुँचाते रहे हैं | इससे जनता के जीवन की कठिनाइयाँ कम होकर जीवन आसान हो जाता रहा है | 
    मौसम एवं महामारी जैसे विषयों में अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिकों का भी यह कर्तव्य बनता है कि इस जिम्मेदारी का वे संपूर्ण मनोयोग के साथ निर्वहन करें |महामारी का स्वरूप परिवर्तन हो या जलवायु परिवर्तन इससे वे स्वयं निपटें ये उनका विषय है इस विषय का विशेषज्ञ समझकर ही उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी गई है | यदि वे ऐसी परिस्थितियों को समझने में सक्षम हैं तो सार्थक अनुसंधानों को आगे बढ़ावें अन्यथा मना कर दें | 
     अभी तक मौसम या महामारी जैसे क्षेत्रों में अनुमान पूर्वानुमान लगाने जैसी सफलता मिलते तो नहीं ही देखी गई है किंतु अनुसंधानों के नाम पर महामारी के स्वरूप परिवर्तन या जलवायु परिवर्तन की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया जाता रहा है |आखिर इन्हीं क्षेत्रों में ऐसी परिस्थितियाँ क्यों पैदा हो रही हैं जहाँ अपनी असफलताओं को चुनौती के रूप में नहीं लिया जा रहा है | ये गंभीरता से सोचने का विषय है | इन क्षेत्रों में  अनुसंधानों के नाम पर इतने वर्षों में ऐसा हुआ क्या जो  अनुसंधान न हो रहे होते तो नहीं हो पाता ?जनता उस लाभ से बंचित रह जाती | यह स्वयं में अनुसंधान का विषय है | 
                     
महामारी के  स्वरूप परिवर्तन और जलवायु परिवर्तन की सच्चाई क्या है ?
    समाज का बहुत बड़ा वर्ग ऐसी प्राकृतिक घटनाओं की संभावित परिस्थितियों के विषय में सोचकर सिहर उठता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण आज के सौ दो सौ वर्ष बाद कैसी कैसी प्राकृतिक घटनाएँ घटित हो सकती हैं | इस विषय में जितनी डरावनी बातें वैज्ञानिकों के द्वारा बताई जा रही हैं उनमें सच्चाई कितनी है और उनका वैज्ञानिक आधार कितना मजबूत है | पहले तो इसी पर अनुसंधान हो जाना चाहिए कि जलवायु परिवर्तन होने जैसी बातों का पता वैज्ञानिकों को आखिर कैसे लगा !
   कल्पना करके देखा जाए कि जिन मौसमसंबंधी प्राकृतिकघटनाओं के विषय में वैज्ञानिक लोग अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लेने का दावा तो करते हैं किंतु लगा नहीं पाते हैं और जो लगाते भी हैं वे गलत निकल जाते हैं जलवायुपरिवर्तन होने जैसी बातों का वैज्ञानिक आधार यदि यही है तो वैज्ञानिक भावना के अनुरूप नहीं है 
     जिस आधुनिक विज्ञान के आधार पर जलवायु परिवर्तन जैसी संभावित घटनाओं के विषय में कल्पना करके भयभीत हुआ जा रहा है ऐसे दीर्घकालिक विषयों को समझने के लिए उस विज्ञान का अपना आस्तित्व ही क्या है |जलवायु परिवर्तन जैसी घटनाओं के प्रभाव से सैकड़ों वर्ष बाद घटित होने वाली घटनाएँ बताई जा रही हैं | इनका अध्ययन करने का समय कब और कितना मिला जिसमें इस प्रकार के अनुसंधानों का किया जाना  संभव था | ईस्वी 1901 मौसम संबंधी डेटा संग्रह प्रारंभ हुआ| भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुए ही अभी लगभग डेढ़ सौ वर्ष हो रहे हैं | इतने कम समय के अध्ययनों अनुभवों से जलवायु परिवर्तन जैसे सैकड़ों वर्षों में होने वाले परिवर्तनों को समझना कैसे संभव है | किसी घटना को बार बार देखे समझे बिना उसके अतीत के स्वरूप और वर्तमान स्वरूप का बार बार मिलान किए बिना "जलवायुपरिवर्तन" जैसे  किसी निश्चित निष्कर्ष पर कैसे पहुँचा जा सकता है | बिना किसी निश्चित वैज्ञानिक आधार के ये मान लेना कहाँ तक उचित है कि जलवायुपरिवर्तन हो रहा है |  
    ऐसी संदिग्ध परिस्थिति में अनुसंधान का विषय यह भी हो सकता है कि आधुनिक विज्ञान का इतिहास भले कुछ सौ वर्षों का हो किंतु भारत के प्राचीन वैदिकविज्ञान का इतिहास तो लाखों वर्ष पुराना है और वैदिकविज्ञान संबंधी ग्रंथों में ऐसे प्राकृतिक विषयों का वर्णन  भी अत्यंत प्रचुर मात्रा में मिलता है |जिसके आधार पर गणित विज्ञान के द्वारा सुदूर आकाश में घटित होने वाले सूर्य चंद्र ग्रहणों के विषय में हजारों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है जो एक एक मिनट सेकेंड  तक सही घटित होता है | उस गणितविज्ञान के आधार पर  मौसमसंबंधी घटनाओं के विषय में भी अनुमानपूर्वानुमान आदि लगाने का प्रयत्न किया जाना चाहिए | 
    संभव है कि उसके द्वारा ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के स्वभाव को समझा जा सके !उनके विषय में सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सके | यदि ऐसा करने में सफलता मिलती है तो जलवायु परिवर्तन जैसा संशय स्वतः समाप्त हो जाएगा | 
     इससे एक और बड़ा लाभ यह हो सकता है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण आज के सौ दो सौ वर्ष बाद घटित होने वाली जिन संभावित घटनाओं की आशंका वैज्ञानिकों के द्वारा व्यक्त  रही है उसकी भी वास्तविक स्थिति का अनुमान पूर्वानुमान आदि उसी गणित विज्ञान के द्वारा लगाया जा सकता है |जिससे सूर्य चंद्र ग्रहणों का हजारों वर्ष पहले लगा लिया जाता है | उस गणित विज्ञान के लिए सौ दो सौ वर्षों की गणना ही क्या है | 
     वैदिकविज्ञान से यह  विषय और अधिक स्पष्ट इसलिए भी हो सकता है क्योंकि जिन प्राकृतिक  घटनाओं की आशंका बार बार की जा रही है वे तो अत्यंत प्राचीनकाल से ही घटित होती आ रही हैं |जब प्रदूषण फैलाने वाले वाहन उद्योग आदि नहीं थे | यदि ऐसी घटनाओं के घटित होने का कारण जलवायु परिवर्तन होता तो उस समय ऐसी घटनाओं के घटित होने का कारण क्या था ?  सूखा बाढ़ आँधी तूफान भूकंप आदि घटनाएँ तो अनादि काल से घटित होती चली आ रही हैं | 
   यह हमेंशा याद रखा जाना चाहिए कि प्रकृति और जीवन के सभी क्षेत्रों में परिस्थितियाँ एक जैसी कभी नहीं रहा करती हैं उनके स्वभाव प्रभाव आदि में अंतर होना स्वाभाविक ही है |इसीलिए बदलाव तो  हमेंशा ही होते रहते हैं उनमें से कुछ बदलाव अच्छे और कुछ बुरे होते हैं|उनमें भी कुछ बदलाव पुराने होते हैं और कुछ नए अर्थात पहली बार घटित हो रहे होते हैं | ऐसे बदलावों को समझने में तथा उनके समाधान खोजने में कठिनाइयाँ तो होती ही हैं  क्योंकि वे पहली बार हो रहे होते हैं  उनसे अपरिचित होना स्वाभाविक ही है | 
     वैज्ञानिकों का यह आग्रह ठीक नहीं है कि प्रकृति और जीवन से संबंधित घटनाएँ हमेंशा एक जैसी ही घटित होती रहें | यदि ऐसा नहीं होगा तो उसे जलवायु परिवर्तन मान लिया जाएगा | ऐसी घटनाओं को रोकना तो मनुष्य के बश की बात नहीं है | उन्हें अपने अनुशार घटित होने देना भी मनुष्य के बस की बात नहीं है | वे पहले जैसी घटित होती रही हैं अब भी वैसी ही घटित होती रहें , प्रकृति से ऐसा आग्रह भी नहीं रखा जा सकता है | प्रकृति पर अपनी इच्छा नहीं थोपी जा सकती है | प्रकृति में जो जो कुछ हो रहा है उसे गलत नहीं सिद्ध किया जा सकता है अपितु उसी के आधार पर भावी घटनाओं के विषय में  अध्ययन  अनुसंधान आदि किया जाता है | 
    ऐसी समस्याओं के समाधान खोजने में कठिनाइयाँ  भी होती हैं| इन्हीं  कठिनाइयों को समझना और उनके समाधान खोजना आसान नहीं होता है |इसीलिए ऐसी समस्याओं को समझने के लिए विशेषज्ञ वैज्ञानिक लोग ही लगाए जाते हैं | 
 यदि चोरी की घटना घटित होने  के बाद उसके विषय में चौकीदार को तब पता लगे जब गाँव वाले लोग चोरी होने की सूचना स्वयं  जाकर चौकीदार को दें | ऐसी स्थिति में  चौकीदार यदि पहरा देता ही रहे चोरियाँ होती ही रहीं | तो चौकी दार रखने का फायदा ही क्या है | 
     चौकीदार हों या देश की सीमाओं पर तैनात सैनिक उनकी सार्थकता इसी में है कि जो जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई हो उसे पूरा करें | किसी वारदात के घटित होने से पहले उन्हें उसका पूर्वानुमान पता लग जाए ताकि उससे अपना बचाव किया जा सके | सतर्कता या खुपियातंत्र इतना अधिक प्रभावी हो ताकि किसी घटना के घटित होने से पहले उसके  विषय की जानकारी उन सुरक्षा में तैनात लोगों को हो जानी चाहिए  ताकि समय पर उसका निवारण किया जा सके | 
     किसी किसी दिन यदि अधिक सर्दी गर्मी वर्षा आदि होने लगे या आँधी तूफ़ान आदि मौसम संबंधी कोई बड़ा बदलाव आ जाए उसी मौसम परिवर्तन का फायदा उठाते हुए यदि चोरी की कोई घटना घटित हो जाए या देश की सीमा पर घुसपैठ हो जाए तो क्या सुरक्षा की जिम्मेदारी सँभाल रहे लोग अपनी गैर जिम्मेदारी से बच जाएँगे | 
 
    कोरोना महामारी के समय वैज्ञानिक अनुसंधान कितने सहयोगी सिद्ध हुए | स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं  से सुरक्षा देना उन वैज्ञानिकों का कर्तव्य है जिन्हें ऐसे रोगों महारोगों के विषय में अनुसंधान पूर्वक अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है|इसके लिए सरकारें उन पर और उनके द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों पर भारी भरकम  धनराशि खर्च किया करती हैं |उन सरकारों का भी ऐसे विषयों पर वैज्ञानिक अनुसंधानों के करने कराने का लक्ष्य यही होता है कि रोगों महारोगों आदि से समाज की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके |   
  दुर्भाग्य से विश्व पर कोरोना महामारी जैसी इतनी बड़ी विपत्ति आई जिसमें बहुत बड़ी संख्या में लोग अचानक संक्रमित होने ,मरने लगे भयभीत समाज जब त्राहि त्राहि करने लगा तब वैज्ञानिकों को पता लगा कि महामारी जैसा कुछ आया लगता है | ध्यान रहे कि वैज्ञानिकों को महामारी आने की जो सूचना मिली वह महामारी पीड़ित समाज से ही मिली है | उसमें उनके द्वारा किए जाने वाले वैज्ञानिक अनुसंधानों की कोई भूमिका नहीं थी |   
   ये न केवल अत्यंत दुखद है अपितु गंभीर चिंता की बात है कि महामारी अचानक आई और समाज को कुचलने लगी  तब तक उन वैज्ञानिकों को महामारी के विषय में कुछ पता ही नहीं था जिन्हें ऐसे संकटों से समाज को बचाने की न केवल जिम्मेदारी  सौंपी गई है अपितु उसका सम्मान जनक पारिश्रमिक भी उन्हें सरकारों के द्वारा प्रदान किया जाता है | 
    यदि  रोग महारोग आदि फैल जाएँ जिससे समाज में हाहाकार मच जाए तब वैज्ञानिकों को महामारी आने का एहसास हो !ये अनुसंधानों के लिए कितने दुर्भाग्य की बात है कि महामारी आने के विषय में महामारी आने संबंधी कोई भी पूर्वानुमान वैज्ञानिकों के द्वारा नहीं लगाया जा सका | 
    महामारी आने के बाद जब समाज स्वयं संक्रमित हो ही गया लोग मरने ही लगे तो उसके बाद वैज्ञानिक अनुसंधानों को करने के लिए बचा ही क्या था और जो खानापूर्ति की भी गई उसका प्रभाव परिणाम आदि उन्हें ही पता होगा जो ऐसे प्रयत्न करने में लगे थे | उससे बचाव हुआ कितना ?यह सोचने वाली बात है | 
      चिंता इस बात की भी होनी चाहिए कि जिस वैश्विक समाज के पास इतना समृद्ध विज्ञान हो गर्व करने लायक वैज्ञानिक समुदाय हो उस समाज में महामारी से जनता को सीधे स्वयं  जूझना पड़ा !महामारी से बचने का विज्ञान समाज को पता नहीं था जिन विशेषज्ञों को पता होगा वो कोई योगदान नहीं दे सके !
      इतना सक्षम विज्ञान एवं वैज्ञानिक अनुसंधान होने के बाद भी विश्व वैज्ञानिक समुदाय महामारी को उसी देश में घेर कर रखने में असफल हुआ जिससे महामारी की शुरुआत हुई थी !यदि विश्व वैज्ञानिक समुदाय ऐसा भी करने में सफल हो जाता तो महामारी उसी देश तक सीमित रह जाती बाकी विश्व को महामारी से सुरक्षित बचा लिया जाता !ये समाज पर वैज्ञानिकों का बहुत बड़ा उपकार होता !किंतु वैज्ञानिकों के द्वारा ऐसा नहीं किया जा सका !
    अतएव भविष्य के लिए ऐसा कुछ नीति निर्धारण हो ऐसे कुछ कार्यक्रम चलाए जाएँ ऐसे कुछ वैज्ञानिक अनुसन्धान किए कराए जाएँ जो ऐसे संकटकाल में महामारी के लिए सहायक सिद्ध हो सकें और मनुष्य महामारी के समय इतना मजबूर न रहे जितना कोरोना महामारी के समय रहा है | 



महामारी विज्ञान और वैज्ञानिक अनुसंधान ! 
 विनम्र निवेदन : महामारी के विषय में वैज्ञानिकअनुसंधान एक तो वे हो  रहे होंगे जिनके सही गलत परिणामों  केवल उनसे संबंधित वैज्ञानिक ही  समझते हैं दूसरे वे अनुसंधान होते हैं जिन्हें वो  जनता अनुभव करती है जिसके लिए ऐसे अनुसंधान किए जाते हैं | मैं यहाँ केवल जनता के पक्ष पर ही अनुसंधान कर रहा हूँ कि ऐसे अनुसंधानों से महामारी या प्राकृतिक आपदाओं के समय जनता को आखिरकितनी मदद मिल पाती है |  
     जनता की आवश्यकताओं की आपूर्ति करने करवाने को आसान बनाना एवं जनजीवन की कठिनाइयाँ कम करना ही तो वैज्ञानिक अनुसंधानों का उद्देश्य है | इसके साथ साथ महामारी तथा प्राकृतिक आपदाओं के समय जनता को कम से कम प्रभावित होने देना भी वैज्ञानिक अनुसंधानों का उद्देश्य होता है | ऐसा करने के लिए प्राकृतिक घटनाओं के विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगाना आवश्यक माना जाता है जिसके बिना वैज्ञानिक अनुसंधानों का उद्देश्य पूरा होना संभव नहीं है |प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई न कोई वैज्ञानिक पद्धति अपनानी पड़ती है | 
     मौसम विज्ञान के अभाव में मौसमपूर्वानुमान लगाना संभव नहीं है | बीसवीं शती के उत्तरार्ध में जब कंप्यूटर का प्रचलन प्रारंभ हुआ तब से कुछ जोड़ तोड़ करके मौसम संबंधी तत्कालीन घटनाओं को देख देखकर कुछ भविष्य संबंधी अंदाजे लगाए जाने लगे !जिनके सही या गलत निकलने की सामान संभावना हमेंशा ही रहती है | इसी लिए उपग्रहों रडारों कंप्यूटरों सुपरकंप्यूटरों जैसे इतने भारी भरकम तामझाम के बाद भी मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पाया है |  मौसम विज्ञान के अध्ययन के नाम पर पृथ्वी के वायुमण्डल के ताप, हवा के दाब, जल वाष्प या आर्द्रता आदि को ध्यान में रखकर कुछ तीरतुक्के लगाए जाते हैं किंतु इससे मौसम की तत्कालीन परिस्थितियाँ ही तो पता लग पाती हैं इनके आधार पर भविष्य संबंधी मौसम पूर्वानुमान कैसे लगाए जा सकते हैं | ऐसे ही उपग्रहों रडारों दे बादलों आँधी तूफानों को एक स्थान पर देखकर उनकी गति और दिशा के अनुशार उनके दूसरे स्थान पर पहुँचने के विषय में अंदाजा लगाया जाता है जो सही गलत दोनों हो सकता है | वैसे भी उपग्रहों रडारों से प्राकृतिक घटनाओं की जासूसी करना कोई विज्ञान नहीं हो सकता | ये काम चलौ जुगाड़ है जो कभी कभी काम आ जाता है | सच यही है कि आधुनिक विज्ञान में मौसम पूर्वानुमान लगाने के लिए न कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया है और न ही ऐसा कोई विज्ञान है | 
     ऐसी परिस्थितिमें प्राकृतिक घटनाओं के विषय में जो अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए जाते हैं वे मात्र तीर तुक्के होते हैं जो किसी वैज्ञानिक अनुसंधान से नहीं प्राप्त हुए होते हैं केवल एक प्रकार का अंदाजा होता है | जो सही और गलत दोनों निकलता  रहता है |सही की जगह उनके गलत निकलने की संभावना अधिक रहती है |  उनमें जो जो अंदाजे सही निकल जाते हैं उन्हें अनुमान पूर्वानुमान आदि मान लिया जाता है और जितने गलत निकल  जाते हैं उनका कारण जलवायुपरिवर्तन को बताकर उनकी जवाबदेही से अपने को बचा लिया जाता है |ऐसी स्थिति में जो अनुमान पूर्वानुमान आदि सही निकलते हैं उनका श्रेय तो वैज्ञानिक स्वयं ले लेते हैं किंतु जो गलत निकल जाते हैं उनकी जिम्मेदारी कोई नहीं लेता है |ऐसी परिस्थितियों के लिए ही तो जलवायुपरिवर्तन जैसी निराधार परिकल्पनाएँ की गई हैं | 
    मौसम का काम तो इस जुगाड़ से चला लिया जाता है किंतु वैज्ञानिकों के द्वारा  कोरोना महामारी पैदा होने या संक्रमितों की संख्या घटने बढ़ने का कारण जब मौसमसंबंधी घटनाओं को बताया जाने लगा तब असली मौसम विज्ञान संबंधी अनुसंधानों की आवश्यकता पड़ी जिससे निकट भविष्य में तापमान या वायु प्रदूषण बढ़ने घटने तथा वर्षा होने न होने जैसी मौसम संबंधी घटनाओं के पूर्वानुमान लगाने की आवश्यकता पड़ी जो असली मौसम विज्ञान के बिना संभव न था | उस समय कई मौसम वैज्ञानिकों ने स्वयं कहना शुरू कर दिया कि मौसम संबंधी घटनाओं के पूर्वानुमान लगाना संभव ही नहीं है | मौसम संबंधी विज्ञान के अचानक धोखा दे जाने से  कोरोना महामारी के पैदा होने या संक्रमितों की संख्या बढ़ने घटने के विषय में कोई पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका !जो लगाए भी गए वे भी गलत निकलते चले गए | ऐसा करने के लिए प्रकृति के स्वभाव को समझने वाले असली  मौसम विज्ञान की आवश्यकता थी | जिसके आभाव में समाज को कोरोना महामारी जैसी इतनी बड़ी पीड़ा सहनी पड़ी | 
     कुल मिलाकर  महामारी को ठीक ठीक समझने के लिए प्रकृति के परिवर्तन शील स्वभाव को समझना नितांत आवश्यक होता है| इसीलिए महामारी के विषय में ठीक ठीक अनुमान पूर्वानुमान लगाने के लिए मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि पहले से पता होने चाहिए थे | 
     ऐसी परिस्थिति में कोरोना महामारी से जनहित में  इतना सबक तो लिया ही जाना  चाहिए कि  भविष्य संबंधी महामारियों के समय जनता को समय से सही अनुमान पूर्वानुमान तो उपलब्ध कराए जा सकें !जिससे सरकार भी समय से सतर्क और सक्रिय माहमारी समय के लिए आवश्यक संसाधन जुटा सकें | चिकित्सा से जुड़े लोगी ऐसी अग्रिम तैयारियाँ करके रख सके जिनसे महामारी काल में समाज की संकट से सुरक्षा की जा सके | समाज भी आगे से आगे सुपथ्य आहार विहार साधना संयम सदाचार आदि अपनाकर महामारी प्रारंभ होने से पहले आत्म रक्षा की प्रक्रिया प्रारंभ कर सके | 
    इसके लिए मौसमसंबंधी घटनाओं को ठीक ठीक समझना एवं उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना जो विज्ञान के द्वारा अभी तक संभव नहीं हो पाया है उसे अत्यंत शीघ्र सुधारा जा सके |इसी प्रकार से महामारी संबंधी अनुमान पूर्वानुमान आदि सही सही लगाने की प्रक्रिया सुधारी जा सके | 
                                                                         भूमिका 

 "महामारी से जनता को सीधे जूझना पड़ा !आखिर किस काम आए महामारी संबंधी वैज्ञानिक अनुसंधान!और क्या है महामारी विज्ञान !"

  लोकतांत्रिक जीवन पद्धति में जनता को ही जनार्दन बताया जाता है | जनता सरकारें बनाती बिगाड़ती है इसीलिए |जनता को अपने पक्ष में प्रभावित करने के लिए राजनेता लोग जनसेवा के लिए तरह तरह के लोक लुभावने संकल्प लिया करते हैं |जनता को पाई पाई पल पल का हिसाब देने जैसी बातें करते सुने जाते हैं | 
       जनता के द्वारा अपने खून पसीने की कमाई में से दिए गए टैक्स के पैसों से सरकारें विभिन्न विकास कार्य करवाती हैं जिससे जनता के जीवन की  कठिनाइयाँ कम होकर उसका जीवन आसान होता है |जनता के द्वारा टैक्स रूप में दिया गया धन  अन्य विकास कार्यों में लगता है | इसीक्रम में जनता के द्वारा दिए गए टैक्स के पैसों से वैज्ञानिक अनुसंधान भी संचालित होते हैं|उन अनुसंधानों से जो कुछ प्राप्त होता है वह जनता के हित  साधन के काम आता है | अनुसंधान संबंधी ऐसे कार्यक्रम इसी उद्देश्य से चलाए भी जाते हैं कि मुसीबत के समय जनता के काम आएँगे | 
      महामारी जैसी आपदाओं से बचाव के लिए वैज्ञानिकों और जनता के मध्य की कड़ी सरकारें होती हैं !वैज्ञानिकों का काम यदि ऐसी आपदाओं के विषय में अनुसंधान करना होता है तो जनता का कार्य उन अनुसंधानों के लिए आवश्यक धनराशि उपलब्ध करना होता है | यदि समय से टैक्स जमा करके जनता अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन निरंतर करती चली आ रही है और टैक्स जमा करते समय जनता यदि थोड़ा भी चूक जाती है तो सरकारें  जिस किसी भी प्रकार से  टैक्स तो वसूल ही लेती हैं | 
     निष्पक्ष सरकारों को इसीप्रकार के दायित्व का निर्वहन प्रकृति विषयक वैज्ञानिक अनुसंधानों के विषय में भी करना चाहिए |महामारियों एवं प्राकृतिक आपदाओं से जूझते समय जनता भी अपने उन वैज्ञानिक अनुसंधानों से मदद की कुछ तो अपेक्षा रखती ही है जिन पर उसकी भी कमाई का कुछ न कुछ अंश तो लगता ही है | इसलिए वैज्ञानिकों के  द्वारा जनता को कुछ न कुछ मदद तो मिलनी ही चाहिए |वैज्ञानिकों को अपने अनुसंधानों के द्वारा आगे से आगे ऐसी तैयारी करके रखनी चाहिए जिससे महामारी तथा मौसम संबंधी प्राकृतिक आपदाओं से जनता का बचाव अधिक से अधिक किया जा सके ताकि जनता को ऐसे प्राकृतिक संकटों से कम से कम जूझना पड़े |महामारी जैसी आपदा में आवश्यकता पड़ने पर जनता से यह कह देना कि महामारी स्वरूप बदल रही है इसलिए हम इसे समझ नहीं पाए  !प्राकृतिक आपदाओं के समय आवश्यकता पड़ने पर जनता से यह कह देना कि जलवायु परिवर्तन हो रहा है !इसका अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव नहीं है | अवसर पड़ने पर काम न आवें ऐसे अनुसंधान उपयोगी कैसे हो सकते हैं | इसलिए ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों का अनुसंधान होना चाहिए जो महामारी या प्राकृतिक आपदाओं से जूझती जनता को  ऐसी घटनाओं के विषय में आगे से आगेअनुमान पूर्वानुमान आदि उपलब्ध करवा सकें | 

       महामारी एवं मौसम के विषय में जनहित के उद्देश्य से जो भी अनुसंधान आदि किए जाते हैं  उससे  समाज लाभान्वित हो ऐसी अपेक्षा रहती है |आपदा प्रबंधन का विषय भी मौसम संबंधी अनुसंधानों के ही आधीन है | ऐसी प्राकृतिक घटनाओं का रोका जाना या इनमें बदलाव कर पाना मनुष्यों के बश की बात नहीं है |इनसे अपना या अपने समाज का बचाव ही प्रयत्न पूर्वक किया जा सकता है | इसके लिए आवश्यक है कि महामारी या भूकंप,आँधी तूफ़ान,सूखा ,वर्षा, बाढ़, बज्रपात जैसी घटनाओं के विषय में सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि पहले सेपता लग सकें | यदि ऐसा करने में सफलता मिलती है तभी आपदा प्रबंधन भी अच्छे ढंग से हो सकता है | 
     वस्तुतः महामारी जैसी स्वास्थ्य  एवं प्राकृतिक आपदाओं जैसी मौसमसंबंधी जो भी घटनाएँ घटित होती हैं उससे जो भी जन धन की  हानि होनी होती  है वो तो घटना के घटित होते ही तुरंत हो जाती है |उसके तुरंत बाद आपदा प्रबंधन वाले लोग अपनी अपनी जिम्मेदारी सँभाल लेते हैं |उसके पहले जो नफा नुक्सान होना होता है वो हो ही चुका होता है !ऐसी परिस्थिति में महामारी एवं प्राकृतिक आपदाओं के समय में  वैज्ञानिक अनुसंधानों की भूमिका ही क्या बचती है | 
     अतः बचाव कार्यों के लिए तो घटना घटित होने से पहले ही सतर्कता वरती जानी आवश्यक होती है | ऐसा किया जाना तभी संभव है जब इस प्रकार की घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि पहले से पता हों |  वैज्ञानिक अनुसंधान कर्ताओं को ऐसी घटनाओं के विषय में आगे से आगे अनुमान पूर्वानुमान आदि उपलब्ध करवाना चाहिए ताकि बचाव कार्यों का सही सही उपयोग किया जा सके | 
    प्राकृतिक आपदाओं या महामारियों से जूझते अत्यंत भयभीत समाज को अपने वैज्ञानिक अनुसंधान कर्ताओं से बहुत बड़ी आशा अपेक्षा आदि रहती है | उन पर खरे उतरने की आवश्यकता है ताकि वे अनुसंधान केवल खानापूर्ति न होकर अपितु  उनका लाभ भी समाज को मिल सके | 
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कोरोना महामारी ही भयावह है या उसे समझने का विज्ञान नहीं है ? 
 
     महामारी का स्वरूप ही इतना भयावह था कि उसे समझना या उसके विषय में कोई भी जानकारी जुटाना या अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव ही नहीं था या फिर किए जा रहे वैज्ञानिक अनुसंधानों में ये क्षमता ही नहीं थी कि वे महामारी को समझ पाते|इसलिए महामारी उतनी भयावह नहीं थी जितना कि महामारी से संबंधित सार्थक अनुसंधानों का अभाव था|हमारे पास ऐसी कोई वैज्ञानिक अनुसंधान विधा ही नहीं थी जिसके  द्वारा महामारी के विषय में कोई भी जानकारी जुटाना संभव होता|
     कोरोना काल में यह सभी ने देखा था कि वैज्ञानिकों को महामारीविज्ञान के विषय में जो जानकारी थी उसके अनुसार वे प्रयत्न पूर्वक महामारी के विषय में जो भी अनुमान या पूर्वानुमान लगाते जा रहे थे वे सबके सब गलत निकलते जा रहे थे | बार बार ऐसा क्यों हो रहा है इसका वैज्ञानिकों के पास कोई संतोषजनक उत्तर नहीं था | जिसके द्वारा समाज का भय कुछ कम किया जाता |महामारी संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधानों की कमजोरी के कारण वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी के विषय में समय समय पर दिए जाते रहे वक्तव्य जब जब गलत निकलते रहे तब तब इसका कारण वैज्ञानिक अनुसंधानों की कमजोरी बताने के बजाए महामारी के स्वरूप को और अधिक भयावह बता दिया जाता रहा | इससे जनता का भय और अधिक बढ़ता जा रहा था | 
     महामारी की भयावहता को तो तभी दोषी माना जा सकता है जब यह पता लगे कि महामारी विज्ञान के विषय में हमारी जानकारी कितनी थी |परीक्षा का प्रश्न पत्र कठिन था यह कहने का अधिकार उस विद्यार्थी को ही होता है जिसने पाठ्यक्रम में  गए अपने विषय को ठीक से पढ़ा हो|किसी चाभी से कोई ताला न खुले इसका मतलब यही  नहीं होता है कि ताला में खराबी है अपितु इसका मतलब यह भी होता है कि हो सकता है जिस चाभी से ताले को खोलने का प्रयास किया जा रहा है इस ताले की वह चाभी ही न हो |यदि कोई दूसरा आकर किसी अन्य चाभी से उस ताले को खोलते  बंद करते देखा जा रहा हो तब तो यह संशय और मजबूत हो जाता है कि जिस चाभी से वह ताला खोलने का प्रयास किया जा रहा है वह चाभी उस ताले की है ही नहीं |
   इसके लिए यह तर्क देना उचित नहीं है कि मैं कई दिन से चाभी खोजने की रिसर्च चल रही थी उस रिसर्च से जो चाभी मिली है चूँकि रिसर्च से प्राप्त हुई है इसलिए ताले को उसी चाभी से खुल जाना चाहिए | जिसका उस ताले से कोई संबंध ही नहीं है | 
     ऐसी परिस्थिति में तमाम चाभियाँ बदल बदल कर बार बार ताला खोलने का प्रयास करने पर भी ताले के न खुलने का मतलब यह नहीं कि ताला और अधिक खतरनाक होता जा रहा है या ताले का कोई  वेरियंट बदल रहा है |हजारों चाभियों के द्वारा जो ताला नहीं खुला वो उसके बाद भी अपनी चाभी से उसी प्रकार आसानी से खुल जाता है जैसा हजारों चाभियों से प्रयत्न करने के पहले अपनी चाभी से खुल सकता है क्योंकि समस्या ताले के खतरनाक होने या वेरियंट बदलने की नहीं थी अपितु उस ताले को उसकी अपनी चाभी से नहीं खोला गया था |     
    यदि हर किसी चाभी से ताला खुलने लग  जाता तो उस ताले का तालापन ही समाप्त हो जाता |इसी प्रकार से यदि सामान्य तीर तुक्कों से महामारी संक्रमित लोगों को रोग मुक्ति दिलाना संभव ही होता तो महामारी किस बात की ,फिर तो सामान्य रोगों की श्रेणी में महामारी जनित रोग भी होते | 
     ऐसा कहने के पीछे हमारे पास आधारभूत कुछ ऐसे प्रमाण हैं जिनसे ऐसा लगता है कि महामारी को ठीक ठीक समझना एवं उसके विषय में सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव है |जिन अनुसंधानों से महामारी का कोई संबंध ही नहीं है उनसे महामारी को समझा जाना कैसे संभव है |महामारी के विषय में जो भी अनुसंधान किए गए उनकी सार्थकता  तभी है जब उनके आधार पर महामारी के विषय में जुटाई गई जानकारी या लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि सही सिद्ध हों  |
    वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी के विषय में बताए जाने वाले अनुमान पूर्वानुमान आदि बार बार गलत होते जा रहे थे जिससे वैज्ञानिकों की बातों से समाज का विश्वास भी धीरे धीरे उठता जा रहा था | इसका प्रभाव वैक्सीन लगाते समय समाज में दिखाई भी पड़ा कि लोग वैक्सीन पर विश्वास ही करने को तैयार नहीं थे |समाज को लगता था कि जिन वैज्ञानिकों के द्वारा रोग को ही नहीं समझा जा सका वे उसकी औषधि टीका आदि का निर्माण कैसे कर सकते हैं जबकि चिकित्सा सिद्धांत के अनुसार किसी भी रोग से बचाव या मुक्ति दिलाने के लिए किसी औषधि का निर्माण करना तभी संभव है जब उस रोग की प्रकृति को भली प्रकार समझा जा चुका हो |
     इसीलिए वेक्सिनेशन के प्रारंभिककाल में वैक्सीन लगवाने की दृष्टि से  जनता में वैसा उत्साह नहीं दिखा जैसा कि महामारी से पीड़ित समाज में होना चाहिए था | धीरे धीरे लोगों का रुझान बढ़ा और वेक्सीन लगवाई गई !इसके बाद बड़ा धक्का तब लगा जब दो दो बार वेक्सीन लगवाए लोग भी संक्रमित होने लगे क्योंकि वेक्सीन लगवाने के पीछे जनता का  उद्देश्य ही यही था कि इसके बाद महामारी से राहत मिलेगी |यदि ऐसा न हो तो चिंता तो होती ही है |            
ऐसे वैज्ञानिक  अनुसंधान आखिर किस काम आएँगे ?  
    अनुसंधान एक तरफ चला ही करते हैं घटनाएँ घटित हुआ ही करती हैं उनसे जो नुक्सान होना होता है वो हुआ  है ऐसे अनुसंधानों का उद्देश्य आखिर क्या होता है| सभी महामारियों की तरह ही कोरोना महामारी के समय भी समाज ने  भारी जनधन की हानि सही है|स्वास्थ्य से लेकर व्यापार तक सब कुछ अव्यवस्थित  हो गया है |संपूर्ण समाज कैदियों जैसा जीवन जीने पर विवश हो गया है | चारों ओर भय का वातावरण है |  किसी के जीवन के साथ कब क्या हो जाएगा  किसी को पता नहीं है | किसका कौन स्वजन कब साथ छोड़ देगा पता नहीं है |
        महानगरों में गरीबों के बच्चे भोजन की लाइनों में खड़े हैं !दिल्ली मुंबई सूरत जैसे शहरों से श्रमिक वर्ग अपने घर के बच्चे बूढ़े महिलाएँ साथ लिए जान हथेली पर लेकर अपने अपने गाँवों के लिए पैदल  निकल पड़ा है!यहाँ तक कि रोगी लोग और गर्भिणी स्त्रियाँ भी  पैदल चलने को विवश हैं | आसन्न प्रसवा या प्रसूताओं को भी हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ी है कई  के तो मार्ग में ही प्रसव भी हुए हैं | कई कई सप्ताह तक भूखे प्यासे पैदल चले लोगों की पीड़ा पर यदि चिंतन किया जाए और उन श्रमिकों की जगह खुद को रखकर सोचा जाए तो यह सफर कितना कठिन एवं भावुक कर देने वाला रहा होगा सहज ही अनुभव किया जा सकता है | 
   इस संकट काल में महामारियों पर अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य सुरक्षा प्रदान करने वाले चिकित्सकों की आवश्यकता सबसे अधिक है इस समय वे भी अचानक हाथ खड़े कर चुके हैं |उस महामारी के स्वभाव प्रभाव संक्रामकता आक्रमकता अनुमान पूर्वानुमान आदि के विषय में उन्हें खुद समझ में नहीं आ रहा है कि वे महामारी के विषय में क्या कहें !उनमें से जो वैज्ञानिक महामारी के विषय में कुछ तीर तुक्के दौड़ा भी रहे हैं वह भी गलत होता जा रहा है |उनके द्वारा लगाए जाने वाले अंदाजे सच नहीं निकल रहे हैं | समाज ऐसा दुविधापूर्ण जीवन जीने पर विवश है | 
        प्रत्येक स्त्री पुरुष को दूसरे को छूने में  डरने लगा है | किसी का छुआ कुछ खाने पीने पहनने ओढ़ने से लोग बचते दिखाई दे रहे हैं | सारी सड़कें बीरान पड़ी हैं | बाजार बंद हैं | अस्पतालों से शमशानों तक सब भरे पड़े हैं कहीं जगह नहीं बची  है | गंगा जी में शव बिखरे पड़े हैं |बोरों की तरह शवों को घसीटते हुए देखा जा रहा है| ऐसे कठिन समय में  चिकित्सा व्यवस्था का ध्वस्त हो जाना या वैज्ञानिक अनुसंधान कर्ताओं का हाथ खड़े कर देना भविष्य के लिए अत्यंत चिंताजनक है | ऐसी व्यवस्थाओं के सहारे हम जी रहे हैं जिनकी हमारे संकट काल में कोई भूमिका ही नहीं है | उन अनुसंधानों पर पैसे पानी की तरह बहाए जा रहे हैं | आखिर किस लिए ?दुःख में काम न आए तो सुख में ऐसे अनुसंधानों की आवश्यकता ही क्या है ? 
    विज्ञान तरक्की कर रहा है यह  कहने सुनने में बहुत अच्छा लगता है | विभिन्न क्षेत्रों में विज्ञान नित नूतन उँचाइयाँ छू भी रहा है | मनुष्य विज्ञान के बल पर ही अंतरिक्ष में प्रवेश कर सका है अन्य ग्रहों पर भी जीवन की संभावनाएँ तलाशी जा रही हैं|दूर संचार क्रांति ,यातायात के साधन चिकित्सा संबंधी अनुसंधान आदि जीवनोपयोगी बातें हमारे लिए गर्व का विषय हैं |ऐसे आविष्कारों ने मनुष्य जीवन की जटिलताओं कम किया है | जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में बड़ी मदद मिली है | इसमें कोई संशय नहीं है किंतु ऐसी सुख सुविधाएँ मनुष्य तभी भोग पाएगा जब वह जीवित रहेगा | वैज्ञानिकों के द्वारा अभी तक किए गए आविष्कारों के प्रशंसक भी  आज यह सोचने पर  विवश हैं कि महामारी काल में जनता की अपेक्षाओं पर विज्ञान खरा नहीं उतर सका है |
      आधुनिक विज्ञान का जब जन्म नहीं हुआ था तब भी इसी प्रकार की परिस्थितियाँ पैदा होती थीं | वर्तमान समय में  वैज्ञानिक अनुसंधानों के इतने शिखर पर होने के बाद भी यदि वही परिस्थिति बानी रही तो वैज्ञानिक अनुसंधानों के शिखर पर पहुँचने का लाभ समाज को क्या मिला | जिसे संक्रमित होना है वो ऐसी हो ही रहा है जिसे मरना है वो मर ही रहा है | ऐसी स्थिति में यदि अनुसंधान न हुए होते तो इससे अधिक और क्या नुकसान होने की कल्पना  सकती है |महामारी ने वैज्ञानिकों को एक नहीं बार बार अवसर दिए कि तुम्हारे अनुसंधानों में सच्चाई है तो हमारी लहरों का पूर्वानुमान लगाकर दिखाओ और संक्रमितों की संख्या बार बार बढ़ने पर अंकुश लगाकर दिखाओ | 
      पहली लहर आकर ही महामारी यदि समाप्त हो गई होती तब तो उसका श्रेय लिया जा सकता था कि महामारी  हमने वैज्ञानिक प्रयासों से नियंत्रित कर लिया किंतु चार चार लहरें आने के बाद भी यदि कोई वैज्ञानिक महामारी  पर अंकुश लगा लेने के दावे करता है तो वे विश्वास करने योग्य नहीं हैं | आखिर महामारी को कभी तो समाप्त होना ही है | वैज्ञानिक अनुसंधानों में यदि ऐसी ही क्षमता थी तो पहली के बाद दूसरी लहर को ही सतर्कता पूर्वक नियंत्रित कर लिया जाता !उस लहर की भयानकता पर ही अंकुश लगाया जा सका होता | कुल मिलाकर महामारी के समय वैज्ञानिक अनुसंधानों से ऐसी कोई प्रभावी मदद नहीं मिल सकी है |यही सच्चाई है बाकी सारी बातें बेकार की हैं | 
   महामारी संबंधी अत्यंत कठिन समय में स्वास्थ्य संकट से जूझ रहे समाज की वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा आखिर क्या और कितनी मदद की जा सकी है !यह चिंता और चिंतन दोनों का विषय है कि समाज को हमसे क्या अपेक्षा थी और उस पर हम कितने खरे उतर पाए | इसके लिए हमें ऐसा और क्या करना चाहिए जिसके बल पर महामारी जैसे कठिन समय में वैज्ञानिक भी  अपने दायित्वों का कुछ तो निर्वहन कर सकें | 
     ऐसा तो है नहीं कि महामारियाँ पहली बार आई हों और उनके विषय में वैज्ञानिकों को कुछ पता ही नहीं था | इसलिए वैज्ञानिक बेचारे महामारी के दारुण प्रकोप से समाज को सुरक्षित बचाए रखने के लिए पहले से कोई तैयारी करके नहीं रख सके | ऐसी परिस्थिति में  महामारी आ जाने पर वे क्या करते | 
     महामारियाँ तो हमेंशा से ही आती रही हैं ,पिछले कुछ सौ वर्षों से तो हर सौ वर्षों के बाद आती सुनी जा रही हैं | जब आती हैं तब मनुष्य समाज को इसी प्रकार से कुचल कर चली जाती हैं हर बार महामारियों से जनधन की भारी हानि होते देखी जाती है | इसी से बचाव के लिए तो विज्ञान एवं वैज्ञानिक अनुसंधानों की परिकल्पना की गई थी | 
     ऐसी परिस्थिति में पिछली महामारियों से सबक लेते हुए कुछ तो अग्रिम तैयारियाँ करके रखी ही जानी चाहिए थीं | महामारी से संबंधित जिन वैज्ञानिक अनुसंधानों को करने के लिए भारी भरकम धन राशि व्यय की जाती है महामारी के विषय में उनसे कुछ तो पता लगता !उनकी कुछ तो उपयोगिता सिद्ध होती किंतु ऐसा न हो सका | 
   ऐसी परिस्थिति में  सरकारों एवं अनुसंधान कर्ताओं को जनता के हित में ईमानदारी पूर्वक इतना चिंतन अवश्य करना चाहिए कि महामारी से जूझती जनता को ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों से क्या लाभ मिल सका है |जो महामारी जैसी इतनी बड़ी मुसीबत से  बचाव के लिए मददगार सिद्ध हुआ हो |  इस प्रकार के अनुसंधान न भी चलाए जा रहे होते तो जनता का इससे अधिक और क्या नुक्सान हो सकता था |जिसे अनुसंधानों की मदद से वैज्ञानिकों ने बचा  लिया है | ये जिम्मेदारी पूर्वक चिंतन का विषय है |                         
                                   महामारियाँ और उनसे निपटने की वैज्ञानिक तैयारियाँ क्या हैं ?
     कई बार लगता है कि हमारे पास ऐसी वैज्ञानिक तैयारियाँ क्या हैं जिनके बल पर हम महामारियों को ललकारते रहते हैं या महामारियों पर विजय प्राप्त कर लेने की या महामारियों को पराजित कर देनेके सपने देखने लगते हैं| लगातार चलने वाले वैज्ञानिक अनुसंधानों से महामारी के विषय में कुछ भी तो पता नहीं लगाया जा सका है |ये चिंता की बात है | 
     पिछली कुछ सदियों से महामारियाँ हर सौ वर्षों के बाद आते देखी जाती हैं |महामारियों को समझने के लिए चार पाँच सौ वर्ष कोई कम तो नहीं होते हैं उन्हें वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा समझा जाना चाहिए था कि एक निश्चित समय के बाद हर वर्ष ऐसा क्यों होते चला आ  रहा  है |ऐसा होने के आधारभूत वैज्ञानिक कारण क्या हैं ,किंतु ऐसा कुछ पता नहीं लगाया जा सका है | 
    वैज्ञानिकों ने प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले जितने भी प्रयास किए उन्हें लेने वाले भी स्वस्थ हुए और न लेने वाले भी स्वस्थ हुए ! इसी प्रकार से उन औषधियों को  न लेने वाले यदि संक्रमित हुए तो उन्हें लेने वाले भी संक्रमित होने  नहीं सके  हैं और न ही उन्हें विश्वास पूर्वक ऐसा कोई आश्वासन ही दिया जा सका है कि  इस औषधि का सेवन करने के बाद तुम्हें संक्रमित होने  का भय नहीं रहेगा |
     ऐसी स्थिति में कोरोना से मुक्ति दिलाने वाली औषधियों के नाम पर जो जो कुछ सेवन किया या कराया गया !उनका जनता के द्वारा प्रत्यक्षपरीक्षण किया जाना तो संभव न था जबकि उन औषधियों के विषय में जनता का अनुभव ही प्रमाण माना जा सकता है |ऐसी औषधियों के सेवन के बाद भी जनता को ऐसा कोई आश्वासन दिया नहीं  जा सका कि ये औषधियाँ लेने वाले लोग अब महामारी से संक्रमित नहीं होंगे |
     ऐसे ही सभी समस्याओं से मुक्ति दिलाने का दावा तो पंडित पुजारी बाबा बैरागी तांत्रिक मुल्ला मौलवी आदि भी किया करते हैं | समस्याओं से मुक्ति मिलती है तो अपने प्रयासों का फल बता देते हैं और नहीं मिली तो उसका अपना भाग्य का दोष दे देते  हैं | उनमें तथा वैज्ञानिकों के दावों में क्या अंतर है !फिर इसे विज्ञान और उसे अंधविश्वास किस तर्क के आधार पर माना जाए | ये प्रत्यक्ष प्रयास करते हैं वे परोक्ष प्रयास करने का दावा करते हैं जो दिखाई नहीं पड़ते | आत्मा भी दिखाई नहीं पड़ती और उपाय भी दिखाई नहीं पड़ते फिर उन उपायों को अंधविश्वास मानने का तर्कपूर्ण औचित्य क्या है ?    
     महामारी के विषय में वैज्ञानिक अनुसंधानों की विश्वसनीयता इसलिए भी संदिग्ध रही क्योंकि उनके द्वारा महामारी आने के विषय में पहले से कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया ही नहीं जा सका है !इसका कारण वैज्ञानिक लोगों का महामारी के विषय में पहले से पता न लगा पाना था या उन्हें पता था लेकिन उन्होंने बताया नहीं या फिर वे जिस वैज्ञानिक पद्धति से महामारी के विषय में अनुसंधान करते हैं उसमें ये क्षमता ही नहीं है कि उसके द्वारा महामारी के विषय में कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव हो |  
                          महामारी और उसके कारणों का  अनुसंधान आवश्यक है 
     वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी का स्वभाव प्रभाव आदि नहीं समझा जा सका | महामारी के आने के निश्चित कारण क्या थे वे अभी तक नहीं खोजे जा सके | महामारी के विस्तार का पता नहीं लगाया जा सका !महामारी का प्रसार माध्यम क्या है ?इसका विस्तार कितना है ये भी पता लगाना संभव न हो पाया !महामारी में अंतर्गम्यता कितनी थी अर्थात पदार्थों के आतंरिक मंडल में महामारियों का प्रवेश हो गया था या नहीं !इसका परीक्षण किया जाना संभव न हो पाया ! कुछ देशों ने ऐसे परीक्षण करवाए भी तो पपीते जैसे फलों के अंदर भी महामारी के विषाणुओं का प्रवेश पाया गया है  फिर भी वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा निश्चित तौर पर ऐसा कुछ कहा जाना संभव नहीं हुआ कि महामारीसंबंधित विषाणुओं का प्रवेश पदार्थों के अंदर होना संभव है या नहीं | ऐसे ही महामारी पर मौसम का प्रभाव  पड़ता है या नहीं !तापमान या वायु प्रदूषण बढ़ने घटने का प्रभाव पड़ता है या नहीं !महामारी हवा में विद्यमान है या नहीं आदि बातों का वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा पता नहीं लगाया जा सका है | 
    ऐसे विषयों में वैज्ञानिकों  के द्वारा भिन्न भिन्न प्रकार के निराधार तर्क दिए जा रहे हैं |  वैज्ञानिकों का एक बड़ा वर्ग महामारी के जन्म का कारण किसी देश की लैब से निकले हुए वायरस को  बताता है तो दूसरा वर्ग इससे सहमत नहीं है | जो किसी देश की लैब की लापरवाही को जिम्मेदार मानते हैं उन्हें  यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पिछले चार छै सौ वर्षों से आती रही महामारियों के समय में भी क्या ऐसा ही होता रहा है !आखिर उस समय प्रारंभ हुई महामारियों के वायरस किन किन लैबों  से निकले थे | उन महामारियों के पैदा होने के क्या कारण थे ? उन्हें भी सामने रखकर तर्कपूर्ण ढंग से ऐसे परीक्षण किए जाने चाहिए | आखिर वे सौ सौ वर्षों के बाद ही क्यों आती रही हैं | उस क्रम से भी क्या  कोरोना महामारी का कोई संबंध है | 
   वैज्ञानिकों का एक बड़ा वर्ग  महामारी पैदा होने के लिए या संक्रमितों की संख्या बढ़ने घटने के लिए मौसमसंबंधी बदलावों को जिम्मेदार मानता है|ऐसे ही उन्हीं के द्वारा तापमान एवं वायुप्रदूषण के बढ़ने घटने को जिम्मेदार माना जाता है| कोरोना महामारी के समय  विद्वान वैज्ञानिकों के द्वारा बार बार कहा भी जाता रहा है कि महामारी पैदा होने या संक्रमितों की संख्या बढ़ने घटने पर मौसम में आने वाले परिवर्तनों का प्रभाव पड़ता है | तापमान एवं वायु प्रदूषण के बढ़ने घटने का प्रभाव भी पड़ता है |
    वैज्ञानिकों को यदि यह पता ही था कि मौसम में जब जब इस इस प्रकार के बदलाव होने लगते हैं तब तब महामारियाँ पैदा होने की संभावना होती है,तब तो मौसम संबंधी उस प्रकार के बदलावों को देखकर ही वैज्ञानिकों को महामारी आने से पहले ही महामारी आने के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लेना चाहिए था | उससे वैज्ञानिक अनुसंधानों की सार्थकता तो सिद्ध होती ही इसके साथ ही साथ मानवता पर बहुत बड़ा उपकार हो सकता था |
     ऐसे अनुसंधानों  का प्रमुख उद्देश्य तो महामारियों से पहले होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों को खोजना ही होना चाहिए | जो हर सौ वर्ष बाद पैदा होने वाली महामारियों के लिए जिम्मेदार कारण हों | इसके साथ ही विद्वान वैज्ञानिकों को यह भी बताना चाहिए कि  महामारी के आने का कारण मौसम बनना बिगड़ना है या नहीं | महामारियों के पैदा और समाप्त होने पर वायु प्रदूषण या तापमान बढ़ने घटने का कोई प्रभाव पड़ता है या नहीं | यह भी स्पष्ट होना चाहिए | इसके साथ ही वैज्ञानिकों के द्वारा इसके भी सर्व मान्य तर्क दिए जाने चाहिए कि वायु प्रदूषण और तापमान का बढ़ना घटना तो वर्ष में अनेकों बार होते देखा जाता है किंतु महामारियाँ हमेंशा पैदा होते तो नहीं देखी जाती हैं | लंबे अंतराल के बाद कुछ विशेष वर्षों में ही ऐसा होते क्यों देखा जाता है | उनका भी आपसी अंतराल लगभग सौ वर्षों का ही क्यों होता है | 
      ऐसी घटनाओं को यदि मौसम के साथ जोड़कर देखा जाए तो महामारियों के समय होने वाले मौसमी बदलावों में ऐसा क्या विशेष होता है जो अन्य समयों में नहीं होता है|यह भी पता लगना चाहिए कि ऐसे बदलाव प्रत्येक सौ वर्षों के बाद में ही कुछ वर्षों के लिए होते देखे जाते हैं जो अन्य समयों में नहीं दिखाई पड़ते हैं |ये लक्षण इतने स्पष्ट होने चाहिए कि मौसम संबंधी इसप्रकार की घटनाएँ जब जब घटित होते दिखाई दें तब तब ऐसी महामारी शुरू होते दिखनी भी चाहिए |जिससे उन परिवर्तनों का संबंध  भी महामारियों के साथ सिद्ध हो | इसके साथ ही मौसम संबंधी जिन प्राकृतिक परिवर्तनों के कारण महामारियाँ जन्म लिया करती हैं वे बदलाव किस प्रकार के होते हैं और क्या यह सच है कि उस प्रकार के मौसमी परिवर्तन केवल तभी दिखाई पड़ते हैं जब महामारियाँ पैदा होने वाली होती हैं आदि बातों के वैज्ञानिक उत्तर समाज को मिलना चाहिए | 
___________________________________________________________________________________मौसम संबंधी इन घटनाओं के नहीं बताए जा सके पूर्वानुमान !see .... https://drsnvajpayee1965.blogspot.com/2022/08/blog-post.html

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वैज्ञानिकों ने स्वीकार किया कि वे मौसम पूर्वानुमान नहीं लगा सकते हैं ?see .... 




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                                                   महामारी आने के विषय में पूर्वानुमान !     
 मौसम पूर्वानुमान  के आधार  लगा  लिया जाना चाहिए महामारी आने के विषय में पूर्वानुमान !  
   बताया जाता है कि 22 दिसंबर 2020 को प्रकाशित एक समाचार में पढ़ने को मिला कि पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय  द्वारा एक ऐसी विशिष्ट प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली (Early Health Warning System) विकसित की जा रही है | जिससे देश में किसी भी रोग के प्रकोप की संभावना का अनुमान लगाया जा सकेगा।इस प्रकार की प्रणाली स्थानीय प्रशासन को बीमारी से निपटने हेतु पर्याप्त समय उपलब्ध कराएगी।
     प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली के आधार पर ऐसे रोगों से संबंधित सूचना एकत्र की जाती है, जो भविष्य में महामारी का रूप ले सकते हैं। चिकनगुनिया, मलेरिया, डायरिया, डेंगू, पीत ज्वर/येलो फीवर और चेचक रोग तथा कोरोना जैसी महामारियों के पैदा होने में मौसम की स्थिति भी अहम भूमिका निभाती है।इसी प्रकार से हृदय और श्वसन संबंधी बीमारियाँ भी हीट वेव तथा पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि से जुड़ी हुई हैं। इस प्रकार से मौसम की महत्ता समझते हुए भारतीय  मौसम विज्ञान विभाग (IMD) भी इस विशिष्ट प्रणाली के विकास अध्ययन और अनुसंधान प्रक्रिया में शामिल किया गया है।
   पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) द्वारा विकसित किया जा रहा मॉडल मौसम में आने वाले परिवर्तनों और रोग की घटनाओं के बीच संबंधों  पर आधारित है।माना जाता है कि इसी कारण वायु प्रदूषण तापमान और वर्षा पैटर्न के माध्यम से इसके प्रकोप के बारे में आसानी से पता लगाया जा सकता है | 
    ऐसी परिस्थिति में वैज्ञानिकों के द्वारा न केवल यह स्वीकार किया गया है कि मौसम के कारण अनेकों प्रकार के रोग पैदा होते हैं अपितु प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली के माध्यम से मौसम के आधार पर ही रोगों एवं महारोगों  के विषय में अनुसंधान भी प्रारंभ कर दिए गए हैं | इस प्रकार से उस अनुसंधान प्रक्रिया में भारतीय  मौसम विज्ञान विभाग (IMD) को भी शामिल किया गया है।उनका मानना है कि  महामारी पैदा होने का कारण यदि मौसम ही है तो मौसम के आधार पर ही महामारी के विषय में भी पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | 
                  मौसमवैज्ञानिकों के द्वारा मौसम पूर्वानुमान लगाना ही संभव नहीं है तो महामारी ..... !
     वास्तव में महामारी पैदा होने का कारण यदि का बिगड़ना ही है तब तो मौसमविज्ञान के द्वारा महामारी के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि क्यों नहीं लगाया जा सका |  वैज्ञानिकों के दावों पर यदि विश्वास किया जाए तो मौसम पूर्वानुमान लगाने की विद्या में वे इतने सिद्ध हस्त माने जाते हैं कि दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान महीनों पहले पता लगा लिया करते हैं | प्रतिवर्ष मानसून आने और जाने की तारीखों की भविष्यवाणी महीनों पहले कर दिया करते हैं | यहाँ तक कि आज  के सैकड़ों वर्ष बाद घटित होने वाली संभावित प्राकृतिक घटनाओं के विषय में विद्वान वैज्ञानिकों ने दशकों पहले से भविष्यवाणियाँ  कर रखी हैं कि उस समय जलवायु परिवर्तन के कारण  मौसम संबंधी कैसी कैसी भयानक प्राकृतिक घटनाएँ घटित होंगी |
     ये सब कुछ कई दशकों से वैज्ञानिक बताते चले आ रहे हैं| उसका कारण भी बता रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसा होगा किंतु जलवायु परिवर्तन होने का कारण क्या है ?ये किसी को नहीं पता है |  इतना ही नहीं अपितु उन्हीं के द्वारा मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा तापमान बढ़ते जाने के विषय में भी बार बार भविष्यवाणियाँ की जा रही  हैं | वायुप्रदूषण बढ़ने के विषय में भी वैज्ञानिक लोग बार बार भविष्यवाणियाँ करते देखे जा रहे हैं |उसके कारण भी बताते देखे जा रहे  हैं |  
  वैज्ञानिकों की इस प्रकार की महीनों वर्षों दशकों एवं शतकों पहले की भविष्यवाणियाँ देख सुनकर उनकी भविष्यवाणियों पर भरोसा किया जाए तो अपने वैज्ञानिक अनुसंधानों पर गर्व होता है कि हमारे विद्वान् वैज्ञानिक लोग आज के सैकड़ोंवर्ष बाद घटित होने वाली मौसम संबंधी संभावित घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने में सक्षम हैं | 
    ऐसी परिस्थिति में महामारी पैदा होने का कारण यदि मौसमी परिवर्तनों को मान लिया जाए या तापमान और वायु प्रदूषण के बढ़ने को ही मान लिया जाए तो  उसके विषय में महीनों वर्षों पहले पूर्वानुमान लगा लेने में हमारे वैज्ञानिक लोग स्वयं सक्षम हैं | यदि यह सच है तब तो उसी मौसमी असंतुलन  के कारण पैदा होने वाली महामारी और उसकी बार बार आने जाने वाली लहरों से संबंधित पूर्वानुमान लगाने में उन वैज्ञानिकों को कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए |

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  जलवायु परिवर्तन ! see ..... https://vigyanaursamay.blogspot.com/2022/08/blog-post.html
                                                             
                       
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समय विज्ञान

    
                         



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राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान की सेवाओं को पारदर्शी बनाने का संकल्प !
   
     भूकंप,आँधी तूफ़ान,सूखा ,वर्षा, बाढ़, बज्रपात या कोरोना जैसी महामारियों से मनुष्यों का जीवन प्रभावित होता है | इसलिए ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान पता कर लेने की अनादि काल से ही मनुष्यों में प्रवृत्ति रही है | यह जानकर  कुछ घटनाओं से बचाव के लिए रास्ते खोजे जाते हैं जबकि कुछ घटनाओं का सामना करने या उन्हें सहने के लिए आवश्यक संसाधन जुटा लिए जाते हैं | आपदा प्रबंधन की दृष्टि से सरकारों के द्वारा आवश्यक तैयारियाँ करके रख ली जाती हैं | 
  इसीप्रकार से सुख-दुःख,हानि-लाभ,जन्म-मृत्यु,रोग-निरोग तथा किसीसंबंध का बनना-बिगड़ना आदि घटनाएँ प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अचानक घटित होते देखी जाती हैं | जिनसे व्यक्ति के जीवन में आने वाले असंतुलन को सहना आसान नहीं होता है |जीवन में कई बार ऐसी रुकावटें आती हैं जिनसे जीवन ही अचानक बदल जाता है |
    ऐसी घटनाओं के विषय में उस व्यक्ति को यदि पहले से पता हो कि उसके जीवन के किस वर्ष में किस प्रकार की दुखद घटनाएँ घटित होंगी तो उनसे बचाव के लिए जितना संभव होगा वह उतने प्रयास कर लेगा | ऐसी घटनाओं का सामना करने के लिए कुछ आवश्यक संसाधन जुटाए जा सकते हैं | ऐसी घटनाओं को सहने के लिए मन को मजबूत किया जा सकता है | यह सब तभी संभव है जब ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान पहले से पता हो |यदि ऐसा नहीं होता है तो सारे उपाय रखे के रखे रह जाते हैं |
   भूकंप बाढ़ आँधी तूफान चक्रवात बज्रपात या कोरोना महामारी जैसी आजतक जितनी भी प्राकृतिक घटनाएँ घटित हुई हैं उनसे जहाँ जितनी जन धन की हानि होनी थी वो होने के बाद ही उस घटना के विषय में उन वैज्ञानिकों को पता लगा है जिन्हें ऐसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने की जिम्मेदारी सरकारों ने सौंप रखी है |


राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान का परिचय :
    
                             आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान एवं परंपरा विज्ञान  
     खगोलविज्ञानी गणितज्ञ, भौतिकीविद् और दार्शनिक आदि रूपों में प्रसिद्ध जिन गैलीलियो को आधुनिक विज्ञान का जनक माना जाता है उनका जन्म 15 फ़रवरी 1564 को हुआ था | अभी दो चार सौ वर्ष पहले पैदा हुए लोग भारत वर्ष के अत्यंत सफलतम प्राचीन विज्ञान की बराबरी कैसे कर सकते हैं |आधुनिक विज्ञानवेत्ता वैज्ञानिक लोग भूकंप,तूफ़ान,सूखा ,बाढ़ बज्रपात एवं कोरोना जैसी महामारियों को समझने में आजतक सफल नहींहो सके हैं | ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने में आधुनिक विज्ञान पूरी तरह विफल रहा है | विशेषकर कोरोना महामारी के विषय में आधुनिक वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए अनुमानों पूर्वानुमानों के निरंतर गलत निकलते रहने से आधुनिक विज्ञान बुरी तरह जलील हुआ है | ऐसे विषयों पर सफाई देने लायक अब आधुनिक वैज्ञानिकों के पास कुछ बचता नहीं है |उनके द्वारा लगाए गए  मौसम संबंधी पूर्वानुमान गलत निकल जाते हैं तो उसका कारण जलवायु परिवर्तन को बता दियाजाता है और महामारी  संबंधित पूर्वानुमान गलत निकल जाने पर उसका कारण महामारी के स्वरूप परिवर्तन को बता दिया जाता है | ऐसे परिवर्तनों को समझने की क्षमता से विहीन लोगों को ऐसे विषयों का  वैज्ञानिक कैसे माना जा सकता है | 
    ऐसे विषयों पर करोड़ों वर्ष पहले से भारत में सफलतम प्रयोग होते रहे हैं | सूर्य चंद्र ग्रहणों के विषय में  अपने गणित विज्ञान के द्वारा भारत वर्ष करोड़ों वर्ष पहले से पूर्वानुमान लगा लेता रहा है | प्रकृति एवं जीवन से संबंधित प्रत्येक गुत्थी भारतीय विज्ञान के द्वारा आदि काल में ही सुलझा ली गई थी|हमारे पूर्वजों ने आधुनिक वैज्ञानिकों के लिए अनुसंधान  करने लायक कुछ छोड़ा ही नहीं था |
   ऐसे ही विषयों की विशेषज्ञता के कारण तो भारत वर्ष विश्वगुरू जैसी पहचान बनाने में सफल रहा है |आक्रमणकारी साहित्य तस्करों ने इसीलिए तो भारत के साहित्य को सबसे अधिक निशाना बनाया था | कुछ ले गए कुछ नष्ट कर गए नालंदा जैसे विश्वप्रसिद्ध पुस्तकालयों के साथ जो दुर्व्यवहार किया गया वो किसी से छिपा नहीं है | 
    ऐसे ही विषयों की विशेषज्ञता के कारण तो भारत वर्ष विश्वगुरू जैसी पहचान बनाने में सफल रहा है |आक्रमणकारी साहित्य तस्करों ने इसीलिए तो भारत के साहित्य को सबसे अधिक निशाना बनाया था | कुछ ले गए कुछ नष्ट कर गए नालंदा जैसे विश्वप्रसिद्ध पुस्तकालयों के साथ जो दुर्व्यवहार किया गया वो किसी से छिपा नहीं है | 
     आक्रांताओं के द्वारा  हमारा प्राचीन साहित्य बड़ी मात्रा में नष्ट किए जाने के बाद भी भारत वर्ष प्रकृति और जीवन के स्वभाव को समझने में आज भी सक्षम है | ऐसे विषयों में भारत के प्राचीन विज्ञान की बराबरी आज भी किसी अन्य वैज्ञानिक विधा के द्वारा नहीं की जा सकती है |वैसे भी  प्रकृति एवं जीवन संबंधित अनुसंधानों में जिस आधुनिक विज्ञान की कोई भूमिका ही नहीं है | 
   भारतवर्ष कुछ सौ वर्षों तक निरंतर पराधीन रहा उस समय आक्रांताओं ने भारत वर्ष के प्राचीनविज्ञान की  पहचान मिटाने के लिए हर संभव प्रयत्न किए हैं |स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी भारतीय सरकारें अपने प्राचीन विज्ञानकी उपेक्षा करती रही हैं |वर्तमान समय में भी उन्हीं नीतियों का अनुपालन होते देखा जा रहा है | ऐसे विषयों से संबंधित विभाग भारतीय प्राचीन विज्ञान की उपेक्षा करते देखे जा रहे हैं |सबसे बड़ी बिडंबना की बात यह है कि सरकारी संस्कृत विश्व विद्यालयों में भी ऐसे अनुसंधान भ्रष्टाचार की भेंट चढ़े हुए हैं जो योग्य हैं उनकी नियुक्तियाँ  नहीं होतीं जो अयोग्य हैं वे सोर्स और घूस के बल पर प्रोफेसरी कर रहे हैं | 
    ऐसी परिस्थिति में योग्यलोग अनुसंधान में लगते हैं तो उनके लिए आजीविका की समस्या होती है और अयोग्य लोग अनुसंधान करना भी चाहें तो करेंगे कैसे उनकी अयोग्यता आड़े आती है तभी तो आज तक मौसम या महामारी के विषय में उनका कभी कोई रिसर्च वक्तव्य आदि देखा सुना नहीं जाता है |वहाँ भी अनुसंधानों के नाम पर केवल खाना पूर्ति होती रही है | 
   सरकारी स्तर पर भारत के प्राचीन ज्योतिषादि शास्त्र विज्ञान की उपेक्षा के दुष्परिणाम ही हैं कि भूकंप,तूफ़ान,सूखा ,बाढ़ बज्रपात या कोरोना जैसी महामारियों के स्वभाव को समझने में अभी तक सफलता नहीं मिल सकी  है | 
     ऐसी परिस्थिति में पिछले तीस वर्षों से 'राजेश्वरीप्राच्यविद्या शोधसंस्थान' के तत्वावधान में हमारे द्वारा चलाए जा रहे अनुसंधानों के द्वारा भूकंप,तूफ़ान,सूखा ,बाढ़ बज्रपात या कोरोना जैसी महामारियों के स्वभाव को समझने में बड़ी सफलता मिली है इसके द्वारा न केवल ऐसी घटनाओं के स्वभाव को समझा जा सका है अपितु इनके विषय में अनुसंधान पूर्वक अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना आसान हो गया है | 
   हमारे विषय में जानें - http://snvajpayee.blogspot.com/2012/10/drshesh-narayan-vajpayee-drsnvajpayee.html
        प्राकृतिक विषय में वैज्ञानिक अनुसंधानों  की असफलता के विषय में सोचिए    
      भूकंप,तूफ़ान,सूखा ,बाढ़ बज्रपात या कोरोना जैसी महामारियों के आने से पहले वैज्ञानिकों के द्वारा इनके विषय में कोई पूर्वानुमान नहीं बताया जाता है | भूकंप के विषय में जमीन के अंदर की प्लेटों के आपस में टकराने की एक कहानी है जो हर भूकंप आने के बाद सुनाई जाती है | तूफ़ान,सूखा ,बाढ़ बज्रपात आदि के लिए जलवायु परिवर्तन नाम की एक कहानी सुना दी  जाती है |ऐसी किस घटना ने कितने वर्षों का रिकार्ड तोड़ा है कहाँ कितने सेंटीमीटर पानी बरसा है | पहले कब कितनी बारिश हुई थी |  
   महामारी आने के लिए भी उसी जलवायु परिवर्तन  को जिम्मेदार बता दिया जाता है | तापमान बढ़ने घटने से लेकर वायु प्रदूषण बढ़ने घटने तक तथा मौसम बनने बिगड़ने को महामारी के लिए जिम्मेदार बताया जाता है | महामारी जनित संक्रमण बढ़ने घटने के लिए महामारी के स्वरूप  परिवर्तन होने की कहानी सुना दी जाती है |   
     हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वैज्ञानिक अनुसंधान ऐसी निरर्थक कहानियाँ सुनाने के लिए नहीं अपितु जनता के जीवन की कठिनाइयाँ कम करने एवं जीवन को आसान बनाने के लिए किए जाते हैं | ऐसी कहानियों से उस जनता को कैसे मदद मिल पाती होगी जो प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रही होती है | 
   इसीप्रकार से जीवन संबंधी समस्याओं से हैरान परेशान लोगों को जब वैज्ञानिकों की मदद की आवश्यकता पड़ती है  तब वैज्ञानिक लोग मदद तो कर नहीं पाते हैं अपितु कोई न कोई ऐसी कहानी सुनाने लगते हैं जिन कहानियों का न  तो कोई वैज्ञानिक आधार होता है और न ही मनुष्य जीवन से संबंधित उस प्रकार की घटनाओं से कोई लेना देना होता है |
   ऐसी परिस्थिति में वैज्ञानिक अनुसंधानों से जनता को जो मदद चाहिए यदि वो मिलनी ही नहीं है और संकट से जनता को स्वयं ही जूझना है तो  फिर ऐसे विषयों पर वैज्ञानिक अनुसंधान किए जाऍं या न किए जाएँ जनता का उनसे क्या लेना देना | जनता के द्वारा दिए गए टैक्स का पैसा ऐसे निरर्थक अनुसंधानों पर खर्च करने का औचित्य ही क्या रह जाता है | भूकंप,तूफ़ान,सूखा ,बाढ़ बज्रपात या कोरोना जैसी महामारियों के कठिन समय में वैज्ञानिक अनुसंधानों के योगदान को सामने रखकर सरकारों को इसकी समीक्षा करनी चाहिए | 
हमारे संस्थान के द्वारा प्राकृतिक घटनाओं के विषय में किए गए वैदिक  अनुसंधानों  सफलता -
     प्राकृतिक घटनाओं के स्वभाव को समझने एवं उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान लगाने में हमारे द्वारा किए गए अनुसंधान हमेंशा वरदान सिद्ध होते रहे हैं | हमारे द्वारा आँधी तूफ़ान,सूखा ,वर्षा, बाढ़ बज्रपात या प्राकृतिक रोगों महारोगों (महामारियों) के विषय में हमारे द्वारा लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि सही निकलते रहे हैं | जो पिछले कई वर्षों से भारत वर्ष के प्रधान मंत्री जी की मेल पर भेजे जाते हैं भारतीय मौसमविज्ञान विभाग को भेजे जाते हैं | इसके साथ ही साथ अनेकों मंत्रियों मुख्य मंत्रियों सांसदों विधायकों अधिकारियों समाज सेवियों पत्रकारों एवं पत्र पत्रिकाओं में भेजने के साथ साथ अपनी वेवसाइट(https://samayvigyan.com/) पर भी प्रकाशित किए जाते हैं |वे प्रायः सही  निकलते हैं | 
      इनमें प्रत्येक माह की प्रत्येक तारीख के विषय में हमारे यहाँ से जो मौसमपूर्वनुमान (वैदिक) प्रकाशित किया जाताहै उसमें प्रकृति एवं जीवन से संबंधित अत्यंत उपयोगी अनेकों अनुमान पूर्वानुमान आदि प्रकाशित होते हैं | किस महीने में किस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ अधिक घटित होंगी एवं किस दिन वर्षा  होगी, किस दिन आँधी तूफ़ान की संभावना है ,किस दिन तापमान घाट या बढ़ सकता है किस दिन आग लगने की संभावना अधिक है किस दिन वायु प्रदूषण बढ़ने एवं किस दिन कम होने की संभावना है | किस दिन ओले गिरने, बज्रपात होने,भूकंप आने  एवं सामाजिक तथा प्राकृतिक उपद्रव होने की संभावना है | किन दिनों में लोगों का तनाव अधिक बढ़ सकता है आदि | 
   कोरोना जैसी महामारी के विषय में एवं महामारी की प्रत्येक लहर के आने और जाने के विषय में भारत के प्रधान मंत्री कार्यालय को हमारे यहाँ से जो मेल भेजी जाती रही है उसमें जो तारीख लिखी जाती रही है कि किस महीने की किस तारीख से महामारी की कौन लहर प्रारंभ होगी और किस तारीख को समाप्त होगी यह स्पष्ट रूप से लिखा जाता रहा है जो सही निकलता रहा है | 
    इसके अतिरिक्त हमारे यहाँ भूकंपों के विषय में भी जो अनुसंधान किया जाता है वो बिल्कुल सही निकलता है | प्रत्येक भूकंपकोइ न कोई सूचना देने आता है जो प्रकृति या समाज से संबंधित होती है | उसे अनुसंधान पूर्वक पता कर लिया जाता है कि कौन सा भूकंप क्या सूचना देने के लिए आया है | 
    मनुष्य  जीवनसे संबंधित समस्याएँ और हमारे संस्थान द्वारा खोजे गए उनके समाधान !
     प्राकृतिक आपदाओं की तरह ही मानव जीवन से संबंधित भी कुछ ऐसी समस्याएँ होती हैं जो न कही जा सकती हैं और न ही सही जा सकती हैं| उनके लिए समाज कहाँ जाए किससे मिले ,अपने मन की बात किसे बतावे और समस्याओं के समाधान की उम्मींद किससे करे | वैज्ञानिकों  के द्वारा ऐसी समस्याओं का न तो समाधान किया जा रहा है और न ही मना किया जा रहा है कि इनका समाधान निकालना हमारे बश की बात नहीं है | 
     मनुष्य अपने जीवन में अक्सर पराजित और परेशान होता रहता है और जब जब ऐसा होता है तब तब मनुष्यों का परेशान होना स्वाभाविक ही है | प्रत्येक मनुष्य सफल होने के लिए बार बार प्रयत्न करता है जो सफल हो जाता है उसका प्रयत्न तो दिखाई पड़ता है किंतु सफल नहीं होता है उसके प्रयास पर लोग विश्वास ही नहीं करते जबकि असफलता के कारण ऐसे हैरान परेशान लोग अत्यंत संघर्ष पूर्वक बार बार प्रयत्न करते रहते हैं | प्रयास करने पर भी 
सफलता न मिले तो उसके प्रयास में ही कमी मानी जाती है जबकि अपने संघर्ष को वही समझता है जो प्रयास कर रहा होता है | 
    कोई व्यक्ति बार बार प्रयास करने के बाद भी जब लगातार असफल होता जाता है तब उसका मानसिक तनाव बढ़ता है इससे उसे नींद नहीं आती है|नींद न आने से भूख लगनी कम हो जाती है |पेट की प्रदूषित वायु पेट पाचन तंत्र को बिगाड़ देती है वही हृदय पर दबाव बनाकर घबराहट पैदा करती है | यही गंदी गैस जब सिर पर चढ़ती है तो सिर चकराने लगता है आँखों में अँधेरा छाने लगता है | उल्टी लगने लगती है|बालों और त्वचा में रूखापन होने लगता है|शुगर बीपी जैसे रोग पनपने लगते हैं|निराशा प्रबल होती चली जाती है |ऐसी स्थिति में कई बार हृदयरोग या हृदयघात जैसी गंभीर घटनाएँ घटित होती देखी जाती हैं|
     इस प्रकार से संघर्ष करते करते मानसिक रूप से टूट चुके किसी व्यक्ति का शरीर भी जब साथ नहीं देने लगता है तब वह पूरी तरह निराश होकर अपने ही जीवन को बोझ समझने लगता है |ऐसे हैरान परेशान लोग निराश हताश अपमानित जीवन जीने पर विवश होते हैं | उनमें से कुछ तो अपनी असफलता से आहत होकर आत्महत्या या सपरिवार आत्महत्या जैसे दुर्भाग्यपूर्ण कठोर कदम उठाते देखे जाते हैं |
            हमारे संस्थान के द्वारा ऐसी समस्याओं के निकाले गए समाधान !
       ऐसे निराश हताश लोगों के बहुमूल्य जीवन को सुरक्षित बचाने के लिए आधुनिक विज्ञान के क्षेत्र में वैज्ञानिकों के द्वारा अभी तक कोई ऐसे प्रभावी अनुसंधान नहीं किए जा सके हैं जो ऐसे लोगों के जीवन में आशा का संचार करने में सक्षम हों | वस्तुतः कोई व्यक्ति किन कारणों से कब सफल होता है और कब असफल होता है आधुनिक विज्ञान के द्वारा वे कारण ही अभी तक नहीं खोजे जा सके हैं जिनके बिना समाधान संभव नहीं है | परामर्श चिकित्सा (काउंसलिंग)भी तभी संभव है जब समस्याओं के कारण खोज लिए गए हों प्रभाव भी तभी पड़ता है |   
      ऐसे विषयों में हमारे द्वारा किए गए अनुसंधान हमेंशा वरदान सिद्ध होते रहे हैं | ऐसे लोग यदि समस्याएँ पैदा होने से पहले हमारे संपर्क में आ जाते हैं तो समस्याएँ पैदा होने से पहले ही उन्हें रोकने के लिए प्रभावी प्रयत्न किए जाते हैं | इसके अतिरिक्त जिनके जीवन में समस्याएँ पैदा हो चुकी हैं उसके बाद में वे हमारे संपर्क में आते हैं तो उनकी समस्याएँ कम करने के लिए प्रयत्न किया जाता है | बहुत लोग बिल्कुल अंतिम स्थिति में हमारे संपर्क में आते हैं जहाँ से वापस लौटना बहुत कठिन होता है | हमारे द्वारा दी गई सलाहों से उनकी भी रिकवरी होती है किंतु उसकी गति धीमी होती है | यद्यपि समय के सदुपयोग से ऐसे लोगों के भी बहुमूल्य जीवन को सुरक्षित बचाने में हमारे द्वारा सफल प्रयास किए जाते रहे हैं |  
    इसी प्रकार से कोरोना जैसी महामारी से डरे सहमे लोग हमारे यहाँ संपर्क करके अपने या अपनों के विषय में यह पता करते रहे हैं कि महामारी की किस लहर में किसे संक्रमित होने की संभावना कितनी है | उनके विषय में हमारे यहाँ से दी गई सलाह सही निकलती रही है | 
      महामारी क्या सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं या मनुष्यकृत दुर्घटनाओं में पीड़ित तो बहुत लोग हो जाते हैं किंतु उनमें से कुछ को खरोंच तक नहीं लगती है जबकि कुछ घायल होते हैं और कुछ की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु हो जाती है | उन सबके साथ एक जैसी घटना घटित होने के बाद भी तीन परिणाम दिखाई देते हैं ऐसा होने का कारण क्या है ये हमारे द्वारा खोज लिया गया है | किसी के साथ ऐसी घटना घटित होने से पहले ही उसके विषय में हमारे यहाँ से पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं | 
    कई बार किसी सामान्य रोगी को  चिकित्सा के लिए किसी चिकित्सालय ले जाया जाता है वहाँ अत्यंत सुयोग्य चिकित्सक उसकी अच्छी से अच्छी चिकित्सा करते हैं इसके बाद भी रोगी की स्थिति दिनों दिन बिगड़ते चली जाती है और उसकी मृत्यु हो जाती है | ऐसे रोगियों के विषय में हमारे यहाँ आगे से आगे अनुसंधान पूर्वक यह पूर्वानुमान लगा लिया जाता है कि किस रोगी के स्वस्थ होने की संभावना कितनी है |  
     कोई स्त्री पुरुष जिस किसी भी पुरुष या स्त्री से विवाह करता है इसके बाद उन दोनों के जीवनमें किस किस प्रकार की आर्थिक मानसिक सामाजिक पारिवारिक आदि कठिनाइयाँ आ सकती हैं जिनमें उनका जीवन साथी कितना सहयोग करेगा, कितना सहेगा या कितना संघर्ष करेगा !उसके बाद संबंध चलेगा या नहीं और चलेगा तो कैसे !हमारे यहाँ अनुसंधान पूर्वक ऐसे लोगों के जीवन में घटित होने वाली संभावित घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए जाते हैं एवं उन दोनों के जीवन में ऐसी समस्याएँ पैदा ही न हों उसके लिए हर संभवप्रयास किए जाते हैं | 
    कुछ विवाहित लोगों को संतान सुख होते नहीं देखा जाता है उनमें से कुछ को चिकित्सा आदि प्रयासों से सफलता मिल भी जाती है जबकि कुछ लोगोंपरचिकित्सा का भी प्रभाव नहीं पड़ता है | इसलिए चिकित्सा करने के बाद भी उन्हें संतान नहीं होती है जबकि उन दोनों की समस्त चिकित्सकीय रिपोर्ट सामान्य होती है |ऐसे लोगों को संतान न होने का कारण क्या है एवं उसका निवारण कैसे किया जा सकता है उसमें सफलता मिलने की संभावना कितने प्रतिशत है आदि बातों का पूर्वानुमान लगाने एवं ऐसी समस्याओं का समाधान निकालने के लिए हमारे यहाँ अनुसंधान पूर्वक आगे से आगे प्रयत्न किए जाते हैं | 
       कोई व्यक्ति किसी के साथ मित्रता करता है या उसके साथ साझे का व्यापार करता है या उसके यहाँ नौकरी करता है या किसी संस्था संगठन राजनैतिक दल या सरकार में रहकर कुछ लोगों के साथ कार्य करता है | उनके साथ अक्सर संबंध बनते बिगड़ते देखे जाते हैं | ऐसे लोग जिन लोगों के साथ जब जुड़ते हैं उसी समय हमारे यहाँ संपर्क करके यह पता लगा सकते हैं कि उनका उनमें से किसके साथ कैसा निर्वाह होगा और किसके साथ निर्वाह करने के लिए किस प्रकार के प्रयत्न करने होंगे | 
                                   


भूकंप आने ,आँधी तूफ़ान आने ,उल्कापात एवं बज्रपात  होने जैसी प्राकृतिक अस्थिरता को जलवायुपरिवर्तन जनित मानना तर्कसंगत  नहीं है | इसमें   


में वर्षा दिन 


 ऐसा प्राकृतिक असंतुलन कहीं कुछ  
इसके अतिरिक्त 


ऐसी परिस्थिति 


प्राचीन वेद विज्ञान में ऐसी घटनाओं के विषय में वर्णन मिलता है | इनके नियम हैं कि ऐसी घटनाएँ कब कब घाटी 
    ऐसी परिस्थिति में इन घटनाओं को  मनुष्यकृत कैसे 



को ही देखा जा सकता है   आकाश में बिचरते बादलों तथा आँधी तूफ़ान आदि घटनाओं को ही देखा जा सकता है 



होने की आशा इसलिए नहीं की जानी चाहिए का किसी को कुछ भी नहीं पता है 

जबकि 

यदि हवाओं में आँधी तूफ़ान 

 पर होने इ कारण रडार किसानों की इसी तकनीक पर आधारित प्रक्रिया से अपनाते हुए इसी को आधार बनाकर बादल आँधी तूफान आदि घटनाएँ बादलों आँधी तूफानों आदि को सुदूर आकाश उपग्रहों रडारों से किसी जगह घटित भूकंप,आँधी तूफ़ान,सूखा ,वर्षा, बाढ़, बज्रपात या कोरोना जैसी महामारियों प्राकृतिकघटनाओं से संबंधित  विज्ञान के अभाव में प्रत्येक प्राकृतिक घटना के विषय में वैज्ञानिकों के द्वारा जो काल्पनिक कारण गढ़े गए हैं  उन घटनाओं के साथ ऐसे कारणों का कोई संबंध है भी ये अभी तक प्रमाणित नहीं हो सका है जबकि वैज्ञानिकों ने उन कारणों को प्रमाणित मान रखा है जब उन कारणों को आधार बनाकर प्राकृतिक घटनाओं के विषय में वैज्ञानिक लोग जब कोई भविष्यवाणी करते हैं तो वो गलत निकल जाती हैं | वो गलती खोजने एवं उसमें सुधार करने की आवश्यकता होती है इस कठिन कार्य के करने की अपेक्षा वैज्ञानिक लोग यह कह देना आसान समझते हैं कि जलवायु परिवर्तन होने के कारण मेरी भविष्यवाणी गलत हुई है | 

क्योंकि उनके आधारभूत वास्तविक कारणों को अभी तक खोजा ही  नहीं  जा सका है |   

उन कारणों को प्रमाणित होना उस प्रकार के कुछ  
सरकारी आपदा प्रबंधनों के बिना  संभव 


ऐसी परिस्थिति में यदि पूर्वानुमान बताए ही नहीं जा सकते हैं तो ऐसे विषयों पर किए जाने वाले अनुसंधान किस काम के ? आपदा प्रबंधन की तैयारियाँ किस काम की जब उनसे घटना घटित होने से पहले बचाव की तैयारियाँ की ही नहीं जा सकती हैं | 

 उन वैज्ञानिकों की सैलरी तथा सुख सुविधाओं पर एवं उनके द्वारा किए जाने वाले अनुसंधान कार्यों पर सरकारें भारी भरकम धन राशि इसी काम के लिए खर्च किया करती हैं कि ऐसी घटनाओं के विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान पता लगते रहें ,ताकि आपदा प्रबंधन संबंधी संसाधनों का सही समय पर सही सही उपयोग हो सके | 
       
   
वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए पूर्वानुमान हमेंशा गलत ही निकलते रहे हैं !
    वैज्ञानिक लोग एक बार नहीं अपितु अनेकों बार यह स्वीकार कर चुके हैं कि  भूकंप वर्षा बाढ़ मानसून आँधी तूफान चक्रवात बज्रपात या कोरोना महामारी जैसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाना उनके बश की बात नहीं है उसका कारण ऐसे किसी विज्ञान का न होना है जिसके द्वारा ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता हो | 

इसके बाद भी संभव ही नहीं है वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए जाने वाले पूर्वानुमान 


जिनके विषय में पहले से पता न होने के कारण जीवन में 
    वैज्ञानिक प्रक्रिया विहीन विधि से प्रकृति या जीवन के विषय में अथवा मौसम के विषय में पूर्वानुमान लगाने के नाम पर जो भी अनुमान पूर्वानुमान लगाए जाते हैं वे पूरी तरह से अवैज्ञानिक होते हैं |इसीलिए प्रकृति एवं जीवन के विषय में किसी घटना  के विषय में जो भी अंदाजे लगाए जाते हैं उनका कोई वैज्ञानिक आधार इसलिए नहीं होता है क्योंकि विश्व के वैज्ञानिकों के पास ऐसा कोई विज्ञान ही नहीं है जिससे प्रकृति एवं जीवन से संबंधित घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सके |  


 आज के बत्तीस वर्ष पहले सन 1990 में मेरे मन में एक बिचार आया कि ज्योतिष आदि वेद विज्ञान संबंधी सेवाओं  की आवश्यकता लगभग सभी लोगों को होती है कुछ प्रत्यक्ष रूप से ज्योतिषियों से संपर्क करते हैं तो कुछ लुक छिपकर तरह तरह के ज्योतिषियों बाबाओं पंडितों पुजारियों मुल्ला मौलवियों आदि के पास जाकर अपना भविष्य पूछते हैं | भविष्य को देखने का एक मात्र विज्ञान ज्योतिष ही है |  इसके अतिरिक्त अपने या दूसरों के भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई दूसरा विज्ञान ही नहीं है | 


उनमें से बहुत लोग ऐसी सेवाओं के लिए किसी न किसी से संपर्क भी करते हैं | 

वे उसे विद्वान मानकर ही उसके पास जाते हैं | उस पर विश्वास करके ही उसके सामने अपने मन की सारी बातें  खोलकर रख देते हैं | उनमें कुछ बातें ऐसी भी होती हैं जिनके निकल जाने से उनका नुक्सान किया जा सकता है किंतु हैरान परेशान लोग समस्याओं का समाधान पाने स्वार्थ ऐसे बोल जाते हैं |आतुरतावश  कभीकभी कुछ स्त्री पुरुष अपने आर्थिक या चारित्रिक पतन संबंधी चर्चा कर बैठते हैं |
   ऐसी परिस्थिति में कल्पना कीजिए कि अपनी आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ज्योतिषी की वेषभूषा बनाकर बैठा कोई भी ऐसा पाखंडी व्यक्ति उस हैरान परेशान व्यक्ति को ज्योतिषीय सलाह कैसे दे सकता है उसने ज्योतिष तो पढ़ी नहीं होती है |इसलिए वो ज्योतिषीय मदद तो कर नहीं सकता है अपितु ऐसा पाखंडी व्यक्ति उन  गुप्त रहस्यों को उजागर करके  उनकी समस्याएँ और अधिक बढ़ा सकता है | उसका भयदोहन  (ब्लैकमेल) करके अधिक धन माँग सकता है या अपनी किसी अनुचितशर्त को मानने का दबाव बना सकता है | बड़े बड़े बहम डाल कर उपाय करने के नाम पर वह भारी भरकम धनराशि की डिमांड रख सकता है | ऐसे लोगों के द्वारा ठगे गए लोग वास्तविक ज्योतिष विद्वानों से भी डरने लगते हैं | ऐसे लोगों के द्वारा लुटपिट चुके कुछ लोग तो ज्योतिष शास्त्र एवं ज्योतिष विद्वानों की निंदा करने लगते हैं जबकि वे जिनके द्वारा ठगे जाते हैं उनका ज्योतिष से कोई संबंध ही नहीं होता है | 
     ज्योतिषी समझकर आप जिसके पास ज्योतिष सेवाओं के लिए जाते हो क्या वो ज्योतिष पढ़ा भी है ?
     ज्योतिष विद्वानों की आवश्यकता हर किसी को होती है हर कोई अपने अपने भविष्य के बारे में जानना चाहता है किंतु भविष्य जानने के लिए ज्योतिष शास्त्र के अतिरिक्त कोई दूसरा विकल्प नहीं है | कोई व्यक्ति  
उस विषय का विद्वान योग्य है या अयोग्य इसके विषय में उन्हें कुछ भी नहीं पता होता है |  जिनमें कई 

बहुत  हैं स्वास्थ्य सेवाओं की तरह 

मेरे मन में जिस प्रकार से स्वास्थ्य समस्याओं के लिए सरकारों ने चिकित्सालय खोल रखे हैं लोग वहाँ जाकर अपनी स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान पा लिया करते हैं|एक से एक बड़े अस्पताल हैं जहाँ एक से एक विशेषज्ञ एक ही स्थान पर उपलब्ध होते हैं | वहाँ सभी प्रकार की जाँच एवं चिकित्सा के लिए आवश्यक सभी व्यवस्थाएँ उपलब्ध होती हैं | 
     चिकित्सक के द्वारा किसी रोगी के रोग परीक्षण से लेकर उसकी चिकित्सा तक का समस्त विवरण उसके पर्चे पर लिख दिया जाता है ताकि रोगी की चिकित्सा में पारदर्शिता बरती जा सके |जिससे रोगी को कोई बहम डालने की गुंजाइस न रहे और इसके साथ साथ एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल या डॉक्टर के पास ले जाकर वहाँ की भी चिकित्सा का लाभ सफलता पूर्वक लिया जा सके | किसी एक अस्पताल या चिकित्सक से बँधकर चिकित्सा करवाने की बाध्यता न रहे |   
     इसीप्रकार से प्रकृति और जीवन से संबंधित समस्याओं को समझने उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने तथा उन समस्याओं का समाधान खोजने के संकल्प के साथ 'राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान' की स्थापना की गई है ताकि भारत के प्राचीन वेदविज्ञान से संबंधित सेवाओं का लाभ बिना किसी बहम के पारदर्शिता पूर्वक जनजन तक पहुँचाया जा सके | 
     प्रकृति या जीवन से संबंधित किसी भी घटना के विषय में जो भी अनुमान या पूर्वानुमान आदि बताए जाएँगे |या विभिन्न समस्याओं के अनुसंधान से लेकर उन समस्याओं के समाधान के लिए जो भी सुझाव दिए जाते हैं वे पारदर्शिता पूर्वक लिखित रूप में दिए जाते हैं |  
     निजी सेवाओं के लिए संस्थान के द्वारा निर्धारित की गई शुल्क देने में कुछ लोग असमर्थता जताते हैं संस्थान उनकी भी मदद करना चाहता है किंतु संस्थान के पास अभी तक ऐसे आर्थिक स्रोत नहीं हैं जो कुछ लोगों की निशुल्क भी मदद की जा सके | भविष्य में यदि ऐसा संभव हुआ तो फिर निशुल्क परामर्श सुविधाएँ भी उपलब्ध करवाई जा सकती हैं | 
    कुछ लोग सक्षम होने के बाद भी वेद विज्ञान संबंधी अनुसंधानों को  प्रोत्साहित करने में सहयोग नहीं करते हैं ऐसे लोगों को कोरोना महामारी की दूसरी लहर अवश्य याद रखनी चाहिए जब बहुतों को धन संपत्ति छोड़कर जाना पड़ा है | इस समय किसी भी वैज्ञानिक अनुसंधान से जनता को जब कोई मदद नहीं मिली उस समय भी हमारे संस्थान के अनुसंधान के केवल सही घटित हुए थे अपितु महामारी से मुक्ति दिलाने भी हमारे संस्थान ने बड़ी भूमिका का निर्वाह किया था | जिससे बहुतों के जीवन को सुरक्षित बचाया जा सका था | 
    प्रकृति या जीवन में कल क्या होगा इसका अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना आसान नहीं होता है | इसके लिए  प्रकृति और जीवन में वर्षों पहले से घटित होती आ रही घटनाओं का अध्ययन करना होता है उसके आधार पर वेद वैज्ञानिक प्रक्रिया से भविष्य संबंधी एक गणितीय मॉडल तैयार किया जाता है उसके आधार पर उस व्यक्ति के जीवन में क्या घटित होने की संभावना है|इसके आधार पर दस बीस वर्ष क्या अपितु आज के हजारों लाखों वर्ष बाद घटित होने वाली घटनाओं के विषय में भी अनुसंधान पूर्वक अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लिया जाता है | 
      हमारे संस्थान में आनलाइन भी वेद वैज्ञानिक ज्योतिषीय सेवाएँ  उपलब्ध करवाई जाती हैं | जिससे उन सभी लोगों तक पहुँच संभव हो | जो लोग संस्थान तक स्वयं नहीं पहुँच सकते वे ऑनलाइन भी सेवाओं का लाभ ले सकते हैं | 

संस्थान के संचालन में सबसे बड़ी समस्या यह है कि 

स्वास्थ्य से ही संबंधित कुछ ऐसी समस्याएँ हैं जिनका  
जिसके 
 ज्योतिष आदि प्राचीन विज्ञान से संबंधित वैज्ञानिकों की खोज कैसे की जाए ?
 
 प्राचीन वैज्ञानिक विषयों की सरकारी स्तर पर निरंतर उपेक्षा होते रहने के कारण कोई भी गरीब से गरीब व्यक्ति भी अपने पढ़ने लिखने वाले बच्चे को संस्कृत साहित्य नहीं पढ़ाना चाहता है | जिसका मन कुछ भी पढ़ने में नहीं लगता है बार बार फेल होते देखकर लोग अपने बच्चे को संस्कृत पढ़ने के लिए भेजते हैं ऐसे बच्चे क्या पढ़ेंगे लिखेंगे और क्या अनुसंधान करेंगे | उनमें से जो जितना पढ़ जाता है वो उसी स्तर के पौरोहित्य कर्म में लग जाता है |ऐसे लोग समाज में मठों मंदिरों तीर्थों एवं गृहस्थों के घर होने वाले पांडित्य कर्म में पंडितों पुजारियों के रूप में अपनी धार्मिक सेवाएँ  देते देखे जाते हैं | ऐसे लोग  प्रायः उच्चकोटि को योग्यता से विहीन होते हैं इसलिए उनसे प्राचीन विज्ञान संबंधी अनुसंधानों की अपेक्षा नहीं की जा सकती है | ऐसे लोग प्रकृति या जीवन से संबंधित जो भी अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाकर भविष्यवाणियाँ करते हैं वो उनकी योग्यता के अनुसार होती हैं इसलिए उनके सच होने की आशा प्राचीन वैज्ञानिकों की अपेक्षा बहुत कम होती है | 
      बिडंबना की बात यह है कि समाज सलाह लेते समय  उन मठों मंदिरों तीर्थों  में लगे कर्मकांडरत पंडितों पुजारियों से लेता है और जब उनके द्वारा की गई भविष्यवाणी गलत निकलती है तब दोष ज्योतिष आदि वेद विज्ञान को देता है जबकि उसने जिससे सलाह ली उसका ज्योतिष आदि वेद विज्ञान से कोई संबंध ही नहीं होता है | जिस प्रकार से चमड़ा काटने सिलने वाले मोचियों से अपनी हार्टसर्जरी करा लेने वाले लोगों को हार्टसर्जरी विज्ञान एवं वैज्ञानिकों को गलत बताना शोभा नहीं देता है | उसी प्रकार से पुरोहितों के द्वारा की गई भविष्यवाणियों के गलत निकल जाने पर ज्योतिष आदि प्राचीन वेद विज्ञान को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है |
   धनवान समाज प्राचीन विज्ञान से संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधान प्रक्रिया को  शृद्धा का विषय मानता है उसके साथ उसी प्रकार का उपेक्षित व्यवहार करता है | प्रायः अनपढ़ या कम पढ़े लिखे अपने परिचत   

    धन संपन्न सामाजिक लोग भी आधुनिक विज्ञान से संबंधित अनुसंधानों पर खर्च करने केलिए सरकारों को टैक्स रूप में बहुत सारा धन देते देखे जाते हैं |वही लोग प्राचीन विज्ञान से संबंधित अनुसंधानों का आर्थिक सहयोग करते समय दूरी बना लेते हैं | आर्थिक सहयोग की आवश्यकता तो प्राचीन विज्ञान से संबंधित अनुसंधानों को भी होती ही है | 
   ऐसी परिस्थिति में 
संबंधित अनुसंधानों को सरकारी स्तर पर ऐसा प्रोत्साहन नहीं मिला जिससे ऐसे विषयों पर कुछ सार्थक अनुसंधान कार्य किए जाने संभव होते | 





से उन विषयों पर वैज्ञानिकों के द्वारा न समाधान किया जा रहा है और न ही मना किया जा रहा है कि इनका समाधान निकालना हमारे बश की बात नहीं है |वैज्ञानिकों आवश्यकता पड़ने पर वैज्ञानिक लोग अपनी असफलता छिपाने के लिए ऊटपटाँगवैज्ञानिकों मनगढंत   मनगढंत कहानियाँ सुना दिया करते हैं | जैसे मौसम के विषय में भविष्यवाणी न कर पाए  मनगढंत
 ऐसी परिस्थिति में हम के विषय
  विज्ञान 
 
    हमारे वैज्ञानिक प्राकृतिक विषयों में स्वयं तो कोई मदद कर नहीं पाते हैं जो कर सकते हैं उनका उपहास उड़ाते हैं | उसे अंध विश्वास बताते हैं |वे ऐसे भ्रम का शिकार हैं कि जो आधुनिक विज्ञान के द्वारा नहीं किया जा सकता है वो किया ही नहीं जा सकता है जबकि आधुनिक विज्ञान का जन्म हुए ही अभी दो चार सौ वर्ष पहले हुआ है |इसीलिए तो भूकंप,तूफ़ान,सूखा ,बाढ़ बज्रपात या कोरोना जैसी महामारियों के विषय में न उसका कोई चिंतन न अनुसंधान और न ही पूर्वानुमान है | उपग्रहों की मदद से बादलों एवं आँधी तूफानों की जासूसी करने लगना मौसम विज्ञान नहीं है | कोरोना महामारी के विषय में वैज्ञानिकों की वैज्ञानिक योग्यता अध्ययनों अनुसंधानों अनुमानों पूर्वानुमानों को जनता ने खूब सहा है महामारी के विषय में उनके द्वारा कही गई प्रत्येक बात झूठ निकलती रही है| 

जिनका समाधान आधुनिक विज्ञान से होना संभव होता तो अब तक हो हो जाता |भूकंप,तूफ़ान,सूखा ,बाढ़ बज्रपात जैसी प्राकृतिकआपदाओं एवं  महामारियों के विषय में एक ओर वैज्ञानिक लोग अनुसंधान किया ही करते हैं वहीं दूसरी ओर ऐसी प्राकृतिक आपदाएँ अचानक घटित होने लगती हैं | जिनके विषय में उन वैज्ञानिकों को कुछ पता  ही नहीं होता है | ऐसे अनुसंधानों से उस समाज को क्या लाभ होता है जिसके खून पसीने की कमाई से दिए गए टैक्स का पैसा ऐसे अनुसंधानों के नाम पर खर्च किया जाता है | ऐसे अनुसंधान न हों तो क्या नुक्सान हो जाएगा | यद्यपि ये सरकार और वैज्ञानिकों का आपसी विषय है |  
   ऐसी आपदाएँ घटित होते ही उस समाज का नुक्सान तो तुरंत हो जाता है या फिर उसी समय नुक्सान होना प्रारंभ जाता है| जिससे जनधन की हानि जो  होनी होती है वो हो ही जाती है |इसके तुरंत बाद आपदाप्रबंधन विभाग सारी जिम्मेदारी सँभाल ही लेता है | वैज्ञानिकों के द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों की उपयोगिता क्या है |  
  इसीलिए राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान का लक्ष्य भारतवर्ष के प्राचीनविज्ञान से संबंधित अनुसंधानों के द्वारा ऐसे लोगों को सुरक्षित बचाना है|जो सभी तरफ से निराश हताश होकर अपने जीवन को बोझ समझने लगे हैं | ऐसे लोगों को सुरक्षित बचाकर उनके निराश हताश जीवन के खोए हुए आनंद को वापस लाने  के लिए प्रभावी प्रयत्न करना है | 
 1.   
 
 
कई उसकी असफलता का कारण उसके प्रयास  में कमी को माना जाता है
    ऐसी परिस्थिति में जिस असफलता के कारण ऐसी परिस्थिति पैदा हुई उसके लिए वह व्यक्ति कितना दोषी है सफलता के लिए जिसने निरंतर प्रयत्न किए इसके बाद भी उसे सफलता नहीं मिली इसका कारण क्या है ?
 
 ऐसी परिस्थिति में महामारी संबंधी अपने अनुसंधानों के द्वारा वैज्ञानिक लोग यदि महामारी के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाकर यदि समय रहते समाज एवं सरकार  को उपलब्ध करवा सकते हैं तब तो उनकी और उनके द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों की सार्थकता सिद्ध होती  है अन्यथा उनकी उपयोगिता पर संशय होना स्वाभाविक ही है |
          ____________________________________________________________________
 राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान की स्थापना की आवश्यकता !
                              राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान की स्थापना की आवश्यकता !
            प्राकृतिक आपदाओं से बचाव की दृष्टि से वैज्ञानिकअनुसंधानों की भूमिका  क्या है ?   
                                        वैज्ञानिक अनुसंधानों से समाज की अपेक्षा !
  भूकंप,तूफ़ान,सूखा ,बाढ़ बज्रपात जैसी प्राकृतिकआपदाएँ हों या महामारियाँ ये सब अचानक घटित होने लगती हैं |ऐसी आपदाएँ घटित होते ही तुरंत नुक्सान हो जाता है या फिर उसी समय नुक्सान होना प्रारंभ जाता है| जिससे जनधन की हानि जो  होनी होती है वो हो ही जाती है |इसके तुरंत बाद आपदाप्रबंधन विभाग सारी जिम्मेदारी सँभाल ही लेता है | 
     ऐसी परिस्थिति में आपदाएँ घटित होने एवं नुक्सान होने के बीच में समय इतना नहीं मिल पाता है कि संभावित प्राकृतिक आपदा से बचाव के लिए आवश्यक संसाधन जुटाए जा सकें या बचाव  के लिए आवश्यक सतर्कता बरती जा सके !
   इसलिए आवश्यकता ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों की है जिनके द्वारा प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने से पहले सरकार एवं  समाज को यह जानकारी उपलब्ध करवाई जा सके कि किस प्रकार की प्राकृतिक घटना कब घटित होने  वाली है |जिससे घटना घटित होने से पहले सरकार आपदा प्रबंधन संबंधी व्यवस्थाओं को तैयार कर ले एवं ऐसे आवश्यक संसाधन जुटाना प्रारंभ  कर दे जिससे  उस प्रकार की आपदा से नुक्सान कम से कम हो ऐसा  सुनिश्चित किया जा सके | इसके साथ ही  साथ ऐसे पूर्वानुमान पाकर समाज भी अपने स्तर से सावधानी बरतनी प्रारंभ कर दे |यदि ऐसा संभव हो तब तो प्राकृतिक विषयों में वैज्ञानिक अनुसंधानों की सार्थकता है अन्यथा ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों की जनहित में उपयोगिता ही क्या बचती है | 
      वर्षा संबंधी प्राकृतिक अनुसंधान !-  भारत कृषि प्रधान देश है! कृषि कार्यों एवं फसलयोजनाओं के लिए वर्षा की बहुत बड़ी भूमिका होती है | यद्यपि वर्षा की आवश्यकता तो सभी फसलों को होती है किंतु धान जैसी कुछ फसलों  के लिए अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है और मक्का जैसी कुछ फसलों के लिए कम वर्षा की आवश्यकता होती है|ऐसी परिस्थिति में धान जैसी अधिक पानी की आवश्यकता वाली फसलों को किसान लोग नीची जमीनों में बोते हैं जबकि मक्का जैसी कम वर्षा की आवश्यकता वाली फसलों को किसान ऊँची जमीनों पर बोते हैं | 
   इसी प्रकार से किसी वर्ष की वर्षाऋतु में वर्षा बहुत अधिक होती है जबकि किसी वर्ष की वर्षा ऋतु में वर्षा बहुत कम होती है | इसलिए जिस वर्ष में वर्षा अधिक होने की संभावना होती है उस वर्ष किसान लोग धान जैसी अधिक अधिक पानी की आवश्यकता वाली फसलें अधिक खेतों में बोते हैं जबकि मक्का जैसी कम वर्षा की आवश्यकता वाली फसलों को किसान कम खेतों में बोते हैं | 
     धान जैसी फसलों में पहले बीज बोकर थोड़ी जगह में बेड़ तैयार की जाती है निर्धारित समय बाद उन  पौधों की रोपाई पूरे खेत में करनी होती है उस समय अधिक पानी की आवश्यकता होती है इसलिए किसान लोग इस प्रकार की योजना पहले से बनाकर चलते हैं ताकि धान की रोपाई के समय तक मानसून आ चुका हो  जिससे पानी की कमी न पड़े | इसके लिए किसानों को सही सटीक मौसम संबंधी पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है | इसके लिए मानसून आने के विषय में सही तारीखों का पता लगना जरूरी  माना जाता है | 
     मार्च अप्रैल में फसलें तैयार होने पर किसान लोग वर्ष भर के लिए आवश्यक आनाज एवं भूसा आदि संग्रहीत करके बाकी बचा हुआ आनाज भूसा आदि बेच लिया करते हैं |जिससे उनकी आर्थिक आवश्यकताओं  पूर्ति हो जाती  है |इसके  लिए उन्हें मार्च अप्रैल में ही वर्षा ऋतु में  होने वाली संभावित बारिश का पूर्वानुमान पता करने की आवश्यकता इसलिए होती है क्योंकि खरीफ की फसल पर इसका प्रभाव पड़ता है | मार्च अप्रैल में किसानों को आनाज एवं भूसा आदि का संग्रह करके बाकी बचे हुए अनाज भूसा आदि की बिक्री के लिए किसानों को खरीफ की फसल की उपज को ध्यान में रखकर चलना होता है |इसके लिए वर्षा ऋतु संबंधी  सटीक मौसम  पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है |
तापमान संबंधी पूर्वानुमान - 
     तापमान ऋतुओं के  हिसाब से घटता बढ़ता रहता है उसका तो समाज को अभ्यास है |उसके आधार पर ही समाज ने अपना अपना जीवन व्यवस्थित कर रखा है किंतु जब तापमान बढ़ने और कम होने की प्रक्रिया असंतुलित होने लगती है तापमान ऋतु आधारित अपने क्रम को तोड़ते हुए अस्वाभाविक रूप से घटने या बढ़ने लगता है | उससे मनुष्यों को तरह तरह के रोग होने लगते हैं | फसलों वृक्षों बनस्पतियों आदि में अनेकों प्रकार के विकार पैदा होने लगते हैं जिससे उपज प्रभावित होती है |अतएव समाज को वैज्ञानिक अनुसंधानों से ऐसी अपेक्षा है कि ऋतु आधारित अपने क्रम को तोड़ते हुए तापमान कब अचानक बढ़ने या कम होने लगेगा इसका पूर्वानुमान समाज को पहले से पता होने चाहिए ताकि समाज उसी हिसाब से अपने कार्यों एवं जीवन को व्यवस्थित कर सके |  
 वायुप्रदूषण संबंधी अनुमान  पूर्वानुमान- मनुष्य भोजन के बिना हफ्तों तक जल के बिना कुछ दिनों तक जीवित रह सकता है, किन्तु वायु के बिना उसका जीवित रहना असम्भव है।इसलिए वायु सभी मनुष्यों, जीवों एवं वनस्पतियों के लिए अत्यंत आवश्यक है।वायु प्रदूषण बढ़ने से दमा, सर्दी-खाँसी, अँधापन, त्वचा  रोग आदि अनेकों प्रकार की बीमारियाँ पैदा होने लगती हैं। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि उसे प्रदूषण मुक्त शुद्ध वायु मिले  किंतु यह कैसे संभव है इसके लिए समाज को क्या अपनाना एवं क्या छोड़ना पड़ेगा और क्या करना होगा | इसके विषय में सही एवं सटीक जानकारी अनुसंधान पूर्वक समाज को उपलब्ध करवाई जाए |इसके साथ ही साथ यदि  वायु प्रदूषण घटने बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव हो तो समाज को वह उपलब्ध करवाया जाए | समाज अपने वैज्ञानिक अनुसंधानों से ऐसी अपेक्षा करता है |
 महामारी संबंधी अनुमान  पूर्वानुमान - लोगों को महामारियों से डर लगना स्वाभाविक ही है| महामारियों के समय का वातावरण बहुत भयावह होता है जो हर किसी को सहना ही होता है |भारी मात्रा में जन धन की  हानि होते देखी जाती है |महामारी काल में चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह निष्प्रभावी होती है | ऐसे समय में रोग और रोग के लक्षण  पता न होने के कारण चिकित्सा करना भी संभव नहीं होता है |
     ऐसे कठिन समय में वैज्ञानिक अनुसंधान कर्ताओं से जनता यह अपेक्षा रखती हैकि महामारी प्रारंभ होने से पहले उसे महामारी के विषय में अनुमानों पूर्वानुमानों से उसे अवगत कराया जाए कि इतने वर्षों या  महीनों के बाद महामारी प्रारंभ होने की संभावना है | इससे महामारी आने के समय तक समाज अपनी अपनी सामर्थ्य के अनुशार अपने लिए आवश्यक वस्तुओं का संग्रह कर सकता है | संभावित रोगों से बचाव के लिए आहार विहार रहन सहन खान पान में  आवश्यक संयम  का पालन करके अपने  बचाव के लिए प्रयत्न किया जा सकता है | 
     इसीप्रकार से महामारी के विषय में सरकारों को यदि अनुमान पूर्वानुमान आदि समय रहते पता चल जाए तो सरकारें बचाव के लिए यथा संभव संसाधन जुटा सकती हैं चिकित्सा की दृष्टि से आवश्यक प्रबंधन कर सकती हैं | जीवन यापन  के लिए आवश्यक वस्तुओं का पर्याप्त मात्रा में संग्रह करके रखा जा सकता है |
   ऐसी परिस्थिति में महामारी संबंधी अपने अनुसंधानों के द्वारा वैज्ञानिक लोग यदि महामारी के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाकर यदि समय रहते समाज एवं सरकार  को उपलब्ध करवा सकते हैं तब तो उनकी और उनके द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों की सार्थकता सिद्ध होती  है अन्यथा उनकी उपयोगिता पर संशय होना स्वाभाविक ही है |

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